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Monday, March 02, 2009

3. मगही हमर मातृभासा

मगही हमर मातृभासा

लेखक - श्री कृष्णदेव प्रसाद (22 जून 1892 - 15 नवम्बर 1955)

हम्मर जलम पटना शहर में भेल । हम्मर माय बिहारशरीफ के इमादपुर महल्ला के सवासिन हल आउ ओकर ननिहर बाढ़ के भिरी अगमानपुर हल । से गुने हम्मर माय के बोली बिहार के सुद्ध मगही, जेहमें फारसी के सब्द घुस्सल हल, आउ तनी-मनी तरियानी के बोली के छिट्टा हल बाकी हमनी सभ भाय-बहीन बिहार तरहट्टी के मगही बोलऽ हली । 1908 में हम एन्ट्रेंस के परीक्षा देलूँ हल । हम्मर मँझली बहीन जे उर्दू से घृना करऽ हल एक बेरी कहलक कि उर्दू काहाँ के बोली हइ ? हम कहलिअइ कि पँछाही बोली हइ । उ पूछलक कि किताब-उताब में ओही बोली काहे लिखा हइ ? आउ हमन्नी सभ के बोली में काहे नञ लिखा हइ ? हम कहलूँ कि लिखवैया नञ रहला गुने । सेकरा पर उ कहलक कि काहे, हुम्मनी सभ के बोली बोलवइया पढ़ल-लिखल नञ रहऽ हइ की ? हम कहलिअइ कि हियाँ के लोग अप्पन बोली में लिखबे नञ करथ, तब पुस्तक कहाँ से आबइ ? उ कहलक, अच्छा तब तोंही एकरा में लिखल करऽ । बाकी लिखे लागी कलम उठइलूँ तो न कोइ विसय बुझाय; न कोइ बात ।

अछता-पछता के हम सभ से पहिले मगही कहाउत सभ इकट्ठा करे लगलूँ । साथे-साथ राजा ढोला के खिस्सा लिख गेलूँ । उ खिस्सा में खाली मगहिए नञ बलुक जोरदार मगही के भरमार हल । 'देस-देस में नगर-नगर में एगो राजा के गढ़ हल, ओकर नाम गढ़ नवल हल' .... ... इत्यादि ।

हम ई कहानी लिख तो गेलूँ हल बाकी हमहीं खाली पढ़ सकऽ हलूँ । पढ़वइया 'चलऽ' के 'चल' पढ़ दे हला । हमरा बुझाल कि मगही में ह्रस्व 'ए' आउ ह्रस्व 'ओ' ला चिन्हा-विसेस इया संकेत रहना चाही । अकारांत सब्द ला भी कोई चिन्हा देना आवश्यक हे । जइसे, 'तों की कहबऽ जी, हम सभ जानऽ ही ।' पहिले हम 'कहबऽ' लिखे में बड़ी छौ-पाँच में पड़लूँ । काहे कि लोग 'कहबऽ' के 'कहब' पढ़ देथ, जेकरा से सभ गुड़ मट्टी हो जाय । तब 'कहबऽ' के 'कह-ब' लिखऽ हलूँ । बाकी जल्दी से लिखा नञ सके, से लुप्ताकार 'ऽ' देबे लगलूँ

मगही के कोई व्याकरण नञ हल । से गुने बड़ी ओझड़हल बुझा हल कि 'अइबउ', 'अइबो', 'अइबइ', 'अइबहन' सब भविष्यद् काल के आउ सब के कर्त्ता उत्तम पुरुष हे । फिन चार रूपांतर कइसे हो गेल ? कुछ दिन के बाद सूझल कि मगही में खाली कर्त्ता के अनुसार नञ बलुक, प्रकट चाहे छिप्पल, कर्म के अनुसार क्रिया में रूपांतर होबे हे । अईसहहिं धीरे-धीरे प्राचीन गीत सब के अध्ययन कइला से पता चले लगल कि बोली में कइसे-कइसे अन्तर हो गेल ।

["मागधी विधा विविधा" (विविध विधा में स्तरीय मगही लेखन के परिचायक एगो संकलन); खण्ड-१: मगही गद्य साहित्य; सम्पादक - हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, मगध संघ प्रकाशन, सोहसराय (नालन्दा); १९८२; कुल पृष्ठ ४+१४२+२; ई लेख पृ॰४ पे छप्पल हकइ]

लेखक परिचयः
http://magahi-sahitya.blogspot.com/2006/08/blog-post_115581121693821313.html

3 comments:

Kaushal Kishore , Kharbhaia , Patna : कौशल किशोर ; खरभैया , तोप , पटना said...

भाई साहब
सादर प्रणाम
मैं भी इसी समस्या से जूझ रहा हूँ
कहय ( हलंत या आंशिक रूप से अ वाली धवनी ) रोमन से देवनागरी ,गूगल इंडिक की मदद से कैसे लिखें.
मगही में जब कभी लिखने की हिम्मत भी जुटा पातें हैं तो अर्थ गुड मिटटी होने की आशंका रहती है.
आप अगर इसका कोई सहज उपाय बताएं तो बढ़िया रहेगा.

नारायण प्रसाद said...

प्रणाम कौशल जी !
गूगल इण्डिक का प्रयोग मैंने किया नहीं । मैंने अपने लिए अलग ही एक यूनिकोड सम्पादित्र (editor) तैयार किया है । विस्तृत चर्चा हेतु व्यक्तिगत इ-मेल भेजें । ऐसे पूर्ण रूप से उच्चारित अकारान्त ध्वनि के लिए अवग्रह चिह्न "ऽ" का प्रयोग किया जाता है । जैसे -
चल (chal) = (तू) चल (छोटे बच्चों के लिए या अनादरार्थ)
चलऽ (chala) = चलिए (आदरार्थ)

Kaushal Kishore , Kharbhaia , Patna : कौशल किशोर ; खरभैया , तोप , पटना said...

मेरा ईमेल id है
kaushalkishorejnu@yahoo.कॉम
मैं ब्लॉगजगत में नया हूँ और कहें तो थोडा इस विधा में chalenged. इसी कारण वश ईमेल id नहीं दे पाया हूँ.
आपकी त्वरित टिपण्णी के लिए शुक्रिया
सादर