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Thursday, March 05, 2009

7. मगही के मानक रूप के पक्षधरः डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री

मगही के मानक रूप के पक्षधरः डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री

लेखक - डॉ॰ स्वर्णकिरण (जन्मः 16-3-1934)

["मगही पत्रिका", अंक 7, जुलाई 2002, में पृ॰ 21-22, 40 पर छपल मूल लेख के चुनिन्दा अंश]

'तीन कोस पर पानी बदले सात कोस पर बानी' याने तीन कोस पर पानी बदल जा हे, सात कोस पर बोली बदल जाहे । गया-पटना में "हम जाइत ही", नालन्दा (10 नवम्बर 1972 में पटना जिला से कट के बनल जिला) में "हम जा ही", कहूँ "ऊ जा हथुन", "ऊ जा हथिन"; कहूँ "ऊ जा हथ" । कहे के मतलब ई कि मगही बोली आउ भाषा में एकरूपता न हे - कउनो लोकभाषा के साथ ईहे कहल जात ।

श्रीकान्त शास्त्री के जनम नालन्दा जिला (पहिले के पटना जिला के नारायणपुर गाँव, इस्लामपुर थाना) में भेल हल बाकि एन्ने-ओन्ने जाये से मगही के अनेकरूपता के दूर करे ला इनका में छटपटाहट के भाव शुरू से ही देखे के आवऽ हे । ई पाँतियन के लेखक के डेरा पर एक बेर ई मगही भाषा दने प्रेम जगावे ला लगभग तीस बरिस पहिले ऐलन हल - इहे ई पाँतियन के लेखक के साथ इनकर पहिला साक्षात्कार कहल जाएत ।

ई पाँतियन के लेखक श्रीकान्त शास्त्री के नाम सुनले हल; मगही विद्यापीठ, बिहार मगही मंडल के साथ इनकर जुड़ाव हल आउ ई मगही के उन्नति, प्रगति आउ विकास ला सब कुछ देवे ले तैयार हलन - एकर आभास हल । ई पाँतियन के लेखक के जीविका के साधन हिन्दी रहल हे; ई से मगही भाषा दने कउनो खिंचाव न हल; फिन मगही भाषा के तरह-तरह के रूप के देख के वितृष्णा भी हल - "कहो हथिन", "कहो हथुन" (टाल क्षेत्र के मगही), "कहऽ हखिन", "कहऽ हीवऽ" (जल्ला क्षेत्र के मगही"), "कहऽ हियो" (पूर्वी पटना के मगही), "कहित हियो" (पश्चमी पटना के मगही), "कहइत ही" (गया के मगही), "कहऽ ही" (नालन्दा के मगही), वगैरह ।

श्रीकान्त शास्त्री के स्वागत-सत्कार कर के, हम बैठवली - मगही भाषा पर बातचीत चलल । मगही के प्रति एतना समर्पन भाव आउ एतना गहिर अध्ययन के पता न हल । शास्त्री जी मिठगर भाषा के बारे में बतलौलन - मगही भाषा आउ साहित्य के मर्मी विद्वान् कृष्णदेव प्रसाद के हवाला देलन कि मगही के ढेर विस्तार हे ।

आदर्श मगही - गया जिला में बोलल जा हे ।

शुद्ध मगही - राजगीर से ले के बिहारशरीफ के उत्तर चार कोस वेना स्टेशन तक आउ पटना जिला के कुछ दोसर-दोसर हिस्सन में बोलल जा हे ।

टलहा मगही - पूरा मोकामा, बड़हिया थाना, बाढ़ सबडिविजन के गंगा के ई पार के कुछ पूर्वी भाग, लक्खीसराय थाना के कुछ उत्तर भाग, गिद्धौर आउ पूरब में (?) फतुहाँ तक बोलल जा हे ।

सोनतटिया मगही - áसोन के किनारे किनार पटना आउ गया में बोलल जा हे ।

जंगली मगही - राजगीर, गया आउ छोटानागपुर के जंगल में बोलल जा हे ।

पुरान पटना जिला के भीतर भी पाँच भाग देखे में आवऽ हे । उत्तर में टाल, तरियानी आउ जल्ला तीन भाग, दक्खिन में पूर्वी पटना आउ पच्छिमी पटना दू भाग ।

टाल क्षेत्र - बख्तियारपुर, बाढ़ आउ मोकामा

जल्ला क्षेत्र - पटना शहर, पुनपुन आउ फतुहा

तरियानी क्षेत्र - दानापुर, मनेर आउ बिहटा

पूर्वी पटना - तेल्हाड़ा, एकंगरसराय, बिहारशरीफ, नालन्दा, राजगीर, इस्लामपुर आउ सिलाव

पच्छिमी पटना - नौबतपुर, विक्रम, मसौढ़ी आउ पालीगंज ।

श्रीकान्त शास्त्री के बतलौला से मगही क्षेत्र के पूरा नक्शा ई पाँतियन के लेखक के सामने आ गेल । मूल रूप से आरा के निवासी होला के कारन भोजपुरी भाषा-भाषी भेला से, ओकरा भीतर हिचक जरूर भेल बाकि लोकभाषा दने प्रेम जगल आउ संकल्प ले लेलक कि मगही के भी सीखे के चाही ।

मगही भाषा भोजपुरी भाषा के समान लठ्ठमार भाषा न हे, मिठगर भाषा हे आउ ढेर मनी शब्द मिलइत-जुलइत हे । हिन्दी भाषा के बीच मगही के शब्द के प्रयोग से आकर्षन आयत ऐसन धारना बँधल । कुछ दिन मगही के पत्र-पत्रिका आउ छोट-छोट किताब पढ़ के ढेर मनी शब्द संगृहीत हो गेल - इन्नर (इन्द्र), गिरही (गृह), थेथर, पहुँचा, इम्हक, कूँची, सुतरी, बुतरू, लइका (लड़का के अर्थ में), बाबू (गया जिला में लड़का के खातिर प्रयुक्त), इंजोरिया, बदरकट्टू (बदरी फटने पर), हरसट्टे (हमेशा) वगैरह । श्रीकान्त शास्त्री के ई श्रेय मिले के चाही कि ई पाँतियन के लेखक के झुकाव मगही दने भेल आउ बाद में चल के मगही में रचना करे लगल । अब तो कई-एक ठो किताब भी मगही में छप गेल हे ।

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