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Monday, May 24, 2010

16.3 मगही उपन्यास "अलगंठवा" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द

अल॰ = "अलगंठवा" (मगही उपन्यास) - बाबूलाल मधुकर; प्रथम संस्करण 2001; सीता प्रकाशन, 105, स्लम, लोहियानगर, पटना-20; मूल्य: लाइब्रेरी संस्करण - 150/- रुपये; सामान्य संस्करण - 125/- रुपये; कुल x+158 पृष्ठ ।


देल सन्दर्भ में पहिला संख्या अनुच्छेद (section), दोसर संख्या पृष्ठ, आउ तेसर संख्या पंक्ति दर्शावऽ हइ ।

(पृष्ठ 1 से 103 तक कुल संगृहीत ठेठ मगही शब्द = 1138)


1 अँटियाना (दे॰ अटियाना, अंटियाना) (ओकरा में का हइ, कल्हे सितिया बराय के बाद अँटिया लेवहू अउर का । हम दूनो माय-बेटी ढो लेवो ।; चलते चलऽ, अँटियावल धनमा ढो लऽ ।) (अल॰9:28.5, 7, 8, 29.18)
2 अँय (नरिअर गुड़गुड़ावइत अकचका के नन्हकू पूछलक - "अँय, एने भी चेचक के सिकायत हइ का ?" -"हाँ, टभका टोय छोट-छोट बुतरूअन के पनसाही देखाय पड़लइ हे ।" बटेसर चौंकी के नीचे बइठत कहलक हल ।) (अल॰3:8.20; 6:17.30)
3 अंचरा (अलगंठवा के माय गंगा नेहा के कई गो पत्थर के मूरति पर पानी छिट-छिट के अप्पन अंचरा पकड़ के गोड़ लगलक हल ।) (अल॰6:16.8)
4 अंटियाना (दे॰ अँटियाना, अटियाना) (ठीके हे, हम कल्हे धान अंटिया लेवो ।) (अल॰9:28.14)
5 अंड-संड (= अंट-संट) (जानऽ हऽ, जउन दिन तूँ देवीथान किसान-मजदूर के हड़ताल समापत करइलहु हल ओकर कल्हे होके इस्कूलवा में अप्पन चुनल-चुनल जाति-भाय के बुला के तोहर विरोध में अंड-संड बकऽ हलो ।) (अल॰20:65.8; 23:71.29)
6 अइरवी-पइरवी (अलगंठवा के नाम किसान-मजदूर दूनों के कबूल हो जइतो । काहे कि उ दिन रात समाज के हर तवका के लोग के सेवा करइत रहऽ हे । देखऽ, हम्मर गाँव में ओकरे अइरवी-पइरवी आउर मेहनत से लोअर इस्कूल से हाई इस्कूल तक हो गेल हे ।) (अल॰15.44.29)
7 अउकात (हमरा सुमितरी के पढ़वे के अउकात हइ बड़ीजनी, पढ़ाना असान बात हे का ? आज हम गछ लिअइ आउ कल हमरा से खरचा-वरचा न जुटतइ तऽ हम का करवइ ।) (अल॰10.31.23)
8 अकचकाना (अप्पन मरद के बात सुन के सुमितरी के माय अकचका के बोलल हल -"हाय राम, हमरो कोय बात के इयादे न रहऽ हे, तुरते सुरते से भूला जाही ।") (अल॰9:27.13)
9 अकवार गहन (अगे बेटी, चिट्ठिया में हमरो ओर से अलगंठवा के असीरवाद आउर ओकर माय के अकवार गहन भी लिख देहु ।) (अल॰9:29.14, 16)
10 अकास (= आकाश) (चौदस के चान पछिम ओर अकास पर टहटह टहटहा रहल हल ।) (अल॰6:14.19)
11 अखड़ना (चन्दर दुलार-पिआर के चलते मिडिल पास करके ही घर में अखड़ते रहऽ हल ।) (अल॰12.35.29)
12 अखरखन (देखऽ बाबा, हेडमास्टर अखरखन कर रहल हे । तूँ घबड़ा न, हम ओकरा से मिल लेवइ आउर सुमितरी के फारम आज्झ से कल तक भरा जइतइ ।) (अल॰20:65.24)
13 अगम-अपार (उहें एगो बंगाली नट से मन्तर सिख के अगम-अपार बंगाल के सिध कलकत्ता से गाँव तक चेला-चुटरी के भरमार ।) (अल॰1:1.13)
14 अगराना (सुमितरी .... पातर कमर से नीचे लटकइत झुमइत केस के साथ खड़ी होके अगराइत बोलल हल -"का कहऽ हऽ, गाँव में आयल हमरा चार-पांच दिन बीत गेलो, मुदा हमरा ओर तनी झांके न अइलऽ । लगऽ हे कि इद के चान हो गेलऽ हे ।"; खेत-खलिहान फसल से अगरा रहल हे, इतरा रहल हे ।) (अल॰13.39.3; 19:61.10)
15 अगलउनी (सुमितरी अप्पन घर जाय से पहिले अलगंठवा के कह देलक हल कि तूँ पटना जाय से पहिले हमरा एगो पाती जरूर भेज दीहऽ। अलगंठवा लापरवाही के साथ कहलक हल कि चिट्ठी आउर डा... अगलउनी होबऽ हे । तूँ घर जाके अप्पन परीच्छा के तइयारी करिहऽ । चिट्ठी तोहर चित के चितचोर बन जइतो, जेकरा से पढ़े-लिखे में मन उचट-उचट जइतो ।) (अल॰14.41.26)
16 अगहनी (अगहनी धान टाल-बधार में लथरल-पथरल हल । कारीवांक, रमुनिया आउर सहजीरवा धान के गंध से सउंसे खन्धा धमधमा रहल हल ।; आज वसन्तपुर तरन्ना में अगहनी ताड़ी पीए ला रामखेलामन महतो के जमाइत जुटलन हल ।) (अल॰7:20.25; 8:23.6)
17 अगिया बैताल (येकर अलावे अगिया बैताल हल अलगंठवा, लड़का-लड़की के साथ लुका-छिपी आउर विआह-विआह खेले में अप्पन माय के किया से सेनूर चोरा के कोय लड़की के माँग में घिस देवे में बदनाम अलगंठवा।; बाप रे बाप, उ छउड़ा अगिया बैताल हइ । कुंआरी लड़की के मांग में सिनूर दे दे हइ ।) (अल॰1:2.2; 2:5.2; 10.30.2)
18 अगे (अगे मइया, दीदी आउर नाना आ रहलथुन हे ।) (अल॰3:8.8; 5:12.18)
19 अचाना (= अँचाना, आचमन करना) (ई बात सुन के बटेसर थरिए में अचावइत कहलक हल - हम तऽ कल्हे ही जा सकऽ ही ।) (अल॰9:27.31)
20 अचार (= अँचार) (अलगंठवा के चचा जी आम-नेमु-कटहर के अचार बोजे के आउ रंग-विरंग चिड़िया इयानी मैना-तोता, हारिल-कबूतर आउ किसिम-किसिम के पंछी पाले के बड़ सौखिन हलन ।) (अल॰12.37.6)
21 अच्छत-चन्नन (अल॰16:49.29)
22 अछरंग (जितने लोग उतने बात के अछरंग अलगंठवा पर लगऽ हल ।; हमरा तोहर नाम से अछरंग लगा-लगा के परझोवा मार-मार के गली-गुच्ची बुले न दे हे ।) (अल॰2:5.6; 20:64.14; 24:74.18; 32:103.14)
23 अजलती (बाप रे बाप, कुआरी छौंड़ी के मांग में सिनूर घिस देलकइ । अइसन अजलती तऽ कोय न कर सकऽ हे ।) (अल॰1:3.23)
24 अजीज (माय-भाय आउर चचा सब अलगंठवा से अजीज । रोज-रोज बदमासी, रोज-रोज सिकाइत, रोज-रोज जूता के मार ।) (अल॰1:2.7)
25 अजुरदा (उ लोग दवा विना, अन्न विना आउर कपड़ा-लत्ता विना अजुरदा बनल रहऽ हथ ।; मोहन सिंघ आउर जालिम सिंघ के अइसन दंड देवइ कि ओखनी के कहीं पनाह न मिलतइ । सब कुछ लेल अजुरदा हो जात ।) (अल॰19:61.2; 25:76.8)
26 अटान (गाड़ी में चढ़े के अटान न हल ।; अमदी के बैठे के अटान न रहऽ हल चिट्ठी लिखवे आउर पढ़वे ला ।) (अल॰7:21.16; 15:45.1)
27 अटियाना (दे॰ अँटियाना, अंटियाना) (हम तऽ कल्हे ही जा सकऽ ही । मुदा दू कट्ठा में धान के पतौरी लगा देली हे । ओकरा अटियाना जरुरी हे । न तऽ कोय रात-विरात के उठा के ले भागतइ । गोपाली महरा के चार कट्ठा के पतौरी उठा के ले भागलइ । आउ उत्तर भरु खंधवा में ले जा के मैंज लेलकइ ।) (अल॰9:28.1)
28 अठन्नी (कोनिया घर में काठ के पेटी में रखल येकन्नी-दूअन्नी-चरन्नी-अठन्नी चोरा के जैतीपुर में घनसाम हलुआई के दूकान में गाँव के तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के मिठाई खिलावे में दतादानी अलगंठवा ।) (अल॰1:2.9)
29 अठान (= अटान) (सुनऽ हिअइ कि इ बरिस उहाँ अमदी के ठहरे के अठान न हइ । मलमास मेला नेहाय ला बड़ भीड़ उमड़ल हइ ।) (अल॰31:96.2)
30 अड़कोसा (= अंडकोष) (अलगंठवा झट अप्पन दहिना गोड़ से बायाँ तरफ कदम करइत झट-सन दहिना हाथ लफा के ओकर तनल लाठी छिनइत बायाँ हाथ से कसल मुक्का ओकर नाक पर जड़इत दहिना गोड़ से ओकर अड़कोसा में कस के मारलक हल ।) (अल॰27:82.25)
31 अदमी (= आदमी; दे॰ अमदी) (अलगंठवा अप्पन माय के साथ भीड़ में माय के हाथ पकड़ के अदमी से भरल भीड़ में गंगा दने जाय लगल हल ।) (अल॰6:15.27)
32 अदहन (जब घर में चाउर-दाल आ जाय तऽ अलगंठवा के भोजाय गोइठा-अमारी से चूल्हा फूंक-फूंक के सुलगावऽ हलन । बड़ी देर में मेहुदल गोइठा सुलगऽ हल तऽ कहीं जाके अदहन सुनसुना हल ।) (अल॰12.36.30; 16:47.1, 11)
33 अदी-बदी (जय संकर, दुसमन के तंग कर । जे हमरा देख के जरे, उ गांड़ फट के मरे । जेकरा हमरा से अदी-बदी, उ चल जाय फलगु नदी ॥) (अल॰8:26.7)
34 अधपेटे (रोज-रोज अलगंठवा के दूरा-दलान पर आवल-गेल पहिले के ही तरह ही खइते-पीते रहऽ हल । चाहे अलगंठवा के परिवार अपने छूछे-रूखे, अधपेटे खा के काहे न रह जाय ।) (अल॰12.37.11; 15:44.19)
35 अधवइस (येगो अधवइस मरद दिसा फिर के हाथ में लोटा आउर ओकरे में गोरकी मिट्टी, कान पर जनेऊ धरके हाथ आउर लोटा मट्टी से मटिआ रहल हल ।; येगो अधवइस अउरत जरांठी से अप्पन तरजनी अंगुरी से दाँत रगड़ रहल हल ।) (अल॰3:6.9, 13; 6:15.16)
36 अनकर (रघुनाथ बोल पड़ल कि कहनी में का झूठ हे खेलामन भाय - अनकर चूका अनकर घी, पाँड़े के बाप के लगल की ।) (अल॰8:25.4)
37 अनचके (इ अनचके के मार से झमाइत आउर चिल्लाइत धम-सन जमीन पर गिर गेल हल ।) (अल॰27:82.25; 29:88.23)
38 अनन्द (कहनी में भी हे कि घर अनन्द तऽ बाहरो आनन्द ।) (अल॰16.47.16)
39 अनिस्टर-मनिस्टर (अरे इयार, नेतागिरी के लत तऽ तोरा कौलेजे से लगल हलो । ठीक हो, चुनाव-उनाव लड़के अनिस्टर-मनिस्टर हो जा ।) (अल॰28:86.26)
40 अनुनिया (गाँव के लोग नेहा धो के एक ठंइया खाय लगलन हल । मुदा अलगंठवा के माय आज्झ अनुनिया कइले हल । ई गुने उ फलहार के नाम पर परहवा केला जे फतुहा में खूब बिकऽ हे, ओकरे से अप्पन मुंह जुठइलक ।) (अल॰6:16.10)
41 अनेसा (अप्पन अउरत पर नजर पड़ते ही बटेसर तमतमाइत बोल पड़ल हल - "तूँ गंगा नेहाय गेलऽ हल कि पहुनइ खाय, तोरा कल ही लौटे के हलउ, फिन रात कहाँ बितउलऽ ? हमनी अनेसा में रात भर न सो सकली ।") (अल॰7:21.14)
42 अनोर (हल्ला-गुदाल सुन के गाँव के कुत्ता भी भुक-भुक के अनोर करे लगल हल ।) (अल॰7:22.27)
43 अन्दे (= इन्दे; आइन्दा) (अपने सबसे हमरा निहोरा हे कि आज्झ से अपने लोग उत्तर रूखे हाथ उठाके किरिआ-कसम खाके अन्दे से जात-पात के राजनीति करना छोड़ देथ ।) (अल॰30:94.8)
44 अन्देसा (= अनेसा, अन्देशा) (सुखदेव के देख के अलगंठवा के मन में कई तरह के अन्देसा होवे लगल हल ।) (अल॰29:90.5)
45 अन्देसा (= अनेसा, अन्देशा) (सुखदेव के देख के अलगंठवा के मन में कई तरह के अन्देसा होवे लगल हल ।) (अल॰29:90.5)
46 अपजस (~ करना) (एही सब सोंचइत सब अउरत पीछे-पीछे सले-सले अपजस करे ला चले लगल हल । करहा में लट्ठा के पानी बह रहल हल खेत पटे ला । करहा भीर आके सभे छप्प-छप्प पानी छूए लगल हल ।) (अल॰18:54.13)
47 अबहिए (सब परसादी तऽ बँटिए जा हे । इ गुने हम अप्पन हिस्सा अबहिए काहे न खा लूँ ।) (अल॰4:11.15; 16:46.29)
48 अमदी (=अदमी, आदमी) (ई बात सुन के चचा-भाय आउर भोजाय आउर टोला के कई गो अमदी के ठकमुरकी लग गेल हल ।) (अल॰4:11.26, 12.7; 6:19.17)
49 अमनिया (लाल टुह टुह सुरज, लगे कुम्हार के आवा से पक के घइला निअर देखाई देलक, लगे जइसे कोय पनिहारिन माथा पर अमनिया घइला लेके पनघट पर सले-सले जा रहल हे ।) (अल॰3:6.4)
50 अरउआ (सुमितरी के माय हाथ में अरउआ लेके बैल आउर भैंसा के हाँक के घर ले आवल हल ।) (अल॰7:21.25)
51 अरतन-बरतन (मोहन सिंघ आउर जालिम सिंघ के घर के चौखट-केवाड़ी घर के अरतन-बरतन, अनाज से लगाइत खूँटा पर बँधल गाय-बैल आउर भैंस-भैंसा कुरती-जपती होके इसलामपुर थाना चल गेल हल ।) (अल॰28:85.14, 86.7)
52 अरार (= अराड़) (अरार पर पीपल, बर आउर ताड़ के पेड़ एक साथ जोट्टा हो के बड़ी दूर में फैलल हल ।) (अल॰21:66.28)
53 अरैत-करैत (उनू-गुनू धातु गुनू, असत-कसत अरिया मन्तर, अरैत-करैत तोसित खंडा, उमू-घुमू धाह बटोरा) (अल॰18:56.27)
54 अलमुनिया (अलगंठवा के घर में माय के जीता-जिन्नगी में पीतल के वरतन में ही भोजन बनऽ हल । मुदा अब अलमुनिया के तसला में भोजन बने लगल हल ।) (अल॰12.37.3)
55 अलागम (लावऽ, गांजा हो तऽ मइजऽ हिओ, न तऽ तोहनी रहऽ, हम जा हियो । डेढ़ पहर दिन से कम न वित रहल हे, माथा पर तऽ सूरज आ रहलन हे । गाड़ मारी हम गांजा पीए के । तोहनी अइसन अलागम न न ही ।) (अल॰8:24.25)
56 अलाह (धूप-दीप जला के मंदिल से वाहर निकल के पहाड़ पर ही अलाह जोड़ के लिट्टी लगावे के उपाय करे लगलन हल ।) (अल॰16:50.1)
57 अल्हा (= आल्हा) (एकर अलावे दलान में तीन गो चौंकी, ताखा पर रमाइन-महाभारत, अल्हा-उदल, विहुला-विरजेभान के किताब लाल रंग के कपड़ा के बस्ता में बंधल रखल रहऽ हल ।) (अल॰12.37.15)
58 अवलदार (=तैयार) (येक रोज गाँव के बीच गली में येगो कुत्ता मर गेल हल । ओकरा फेके ला कोय अवलदार न हल ।; अप्पन गाँव में भी लइकी सब के पढ़े खातिर इस्कूल खुल गेलइ हे । जेकरा में मास्टरनी भी पढ़ावऽ हइ । मुदा तोर बाप पढ़वे ला अवलदार होथुन त नऽ ।; किसान सब मजदूर सब के मांग माने ला अवलदार न हो रहलन हल ।) (अल॰2:5.20; 5:13.22; 15:43.28, 44.7; 16:46.10)
59 अवाद (= आबाद) (बटेसर अप्पन गाँव के गोवरधन गोप से हरसज करके खेत अवाद कर रहलन हल ।) (अल॰7:21.5)
60 असंका (= आशंका) (असंका ओकर माय के मन में बनल रहऽ हल ।) (अल॰12.36.5)
61 असनान (= स्नान) (कतकी पुनिया नेहाय ला अलगंठवा के माय आउ टोला-टाटी के कइ गो अउरत-मरद फतुहा गंगा-असनान करे ला आपस में गौर-गट्ठा करे लगल हल ।) (अल॰6:14.11, 26)
62 असान (हमरा सुमितरी के पढ़वे के अउकात हइ बड़ीजनी, पढ़ाना असान बात हे का ? आज हम गछ लिअइ आउ कल हमरा से खरचा-वरचा न जुटतइ तऽ हम का करवइ ।) (अल॰10.31.23)
63 असीरवाद (अगे बेटी, चिट्ठिया में हमरो ओर से अलगंठवा के असीरवाद आउर ओकर माय के अकवार गहन भी लिख देहु ।) (अल॰9:29.14)
64 अहर-पहर (अरे हाँ भाय, तोहनी के अहर-पहर देखके आ रहलियो हे । हम वालमत विगहा के घाट पर पहर भर से बाट जोह रहलियो हल । ... चलऽ, अइते जा ।) (अल॰31:97.7)
65 अहरा (अप्पन अउरत के बात सुनके बटेसर कहलक हल कि पुरवारी अहरा में मछली मरा रहल हल ।) (अल॰5:14.1)
66 अहिल-दहिल (कभी-कभी असाढ़ के वादर गरज-बरज के बरस जा हल । जेकरा से खेत में पानी अहिल-दहिल हो रहल हल । मुदा खेत में फरनी न हो रहल हल, चास न लग रहल हल, दोखाड़ल न जा रहल हल ।) (अल॰15.43.21; 19:61.15)
67 अहे (अलगंठवा के माय के नजर जब सुमितरी के माय पर पड़ल तऽ अलगंठवा के माय तनी हँसइत बोललक हल - "अहे सुमितरी के माय, कपड़ा गार-गुर के इधर भी अइहऽ । तोहर नइहर के कई लोग भी गंगा नेहाय अइलथुन हे ।") (अल॰6:16.16)
68 आँउ-जाँउ (सुमितरी के लिखल-पढ़ल गारत कर रहलथिन हे बेटा । ओकर फारम भरे के नाम पर आँउ-जाँउ बकऽ हथिन । अनेकन तरह के बखेड़ा खड़ा कर रहलथिन हे ।) (अल॰20:65.21)
69 आँटी (अलगंठवा येगो नेवारी के आँटी के जौरी बाँट के कुत्ता के गोड़ में बाँध के खिचते-खिचते गाँव के बाहर पैन पर ले जा के रखलक, आउर घर से कुदाल ले जा के भर कमर जमीन खोद के ओकरे में कुत्ता के गाड़ देलक ।) (अल॰2:5.22)
70 आँय (सुमितरी के माय के रोग के बात सुनके चेहाइत अलगंठवा के माय पूछलक - आँय, उनखा कउन बीमारी होलइ हे । देखे में तऽ तनदुरूस्त हलथुन ?) (अल॰6:17.6, 22)
71 आउर (फिन उ लोगन से खिस्सा-कहानी आउर गीत सुने आउर सिखे में विदुर अलगंठवा ।) (अल॰1:2.14)
72 आगू (= आगे) (सुमितरी घी में बनल परौठा आलू के भुंजिआ आउर आम के अँचार सबके आगू में परोस देलक हल ।) (अल॰31:98.25)
73 आज्झ (= आज) (चेलहवा मछली देख के सुमितरी के माय पूछलक हल - आज्झ कने जतरा बनलो कि मछली ले अइलऽ ।) (अल॰5:13.29; 6:16:10)
74 आन्हर (सांप-बिच्छा नजर-गुजर झारे के अलावे जिन्दा सांप पकड़े के मंतर इयानी गुन से आन्हर अलगंठवा के बाबू ।) (अल॰1:1.17)
75 आपा-धापी (वसन्तपुर हाई इस्कूल के चारो ओर कुहराम मचल हल । लइका-लइकी आपा-धापी करइत भाग रहलन हल । गँउआ-गुदाल हो रहल हल कि नक्सलाइट लोग हेडमास्टर के पकड़ के गोला-लाट्ठी देले हइ ।) (अल॰23:71.21)
76 आम-नेमु-कटहर (अलगंठवा के चचा जी आम-नेमु-कटहर के अचार बोजे के आउ रंग-विरंग चिड़िया इयानी मैना-तोता, हारिल-कबूतर आउ किसिम-किसिम के पंछी पाले के बड़ सौखिन हलन ।) (अल॰12.37.6)
77 आवल-गेल (जाड़ा के दिन में गुड़ के भेली सोंप-जीरा आउर न जानी कउन-कउन मसाला मिला के चचा जी कोलसार में भेली बना के घर के कंटर में रख दे हलन । आवल-गेल आउ टोला-टाटी के भी खिलाबऽ हलथिन । मुदा आज्झ कोठी-कोहा-कंटर खाली भमाह रह गेल ।) (अल॰12.36.26, 37.10, 12)
78 आवा (लाल टुह टुह सुरज, लगे कुम्हार के आवा से पक के घइला निअर देखाई देलक, लगे जइसे कोय पनिहारिन माथा पर अमनिया घइला लेके पनघट पर सले-सले जा रहल हे ।) (अल॰3:6.3; 6:18.11)
79 इ (= ई, यह, ये) ("अलगंठवा भी पढ़ऽ हो न भउजी ?" "हाँ, पढ़ऽ हो, इ बरिस मैट्रीक पास करतो ।" चेहायत सुमितरी के माय कहलक हल - "आँय, बबुआ मलट्री में पढ़ऽ हो ? बाह, इ लइका बड़ होनहार होतो भउजी । एही सबसे छोटका न हथुन ?") (अल॰6:17.21, 22)
80 इंगोरा (~ धराना) (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.12)
81 इंजोरिया (रह रह के इंजोरिया में बसन्तपुर देखते बनऽ हल ।) (अल॰5:12.29)
82 इका (कहाउत ठीके न हे भाय कि आगे नाथ न पीछे पगहा, जइसे धूल में लोटे गदहा । येही हाल हमरा हो गेलो हे । इका जे हम्मर खेत जोत रहल हे ओकरे इहाँ येक तरह से बरहिली इया कमिअइ कर रहली हे ।; दरोगा जी के डपट सुन के हेडमास्टर कपसइत कहलक हल -"इका जनेउआ में बाँधल हइ माय-बाप ।") (अल॰8:24.3; 23:72.23)
83 इजारा (अलगंठवा के माय के मरे के बाद ओकर घर के लछमी उपहे लगल हल । खेत-पथार जे सब अलगंठवा के इहाँ उ एरिया के लोगन इजारा रखलक हल, सब के सब अप्पन खेत छोड़ा लेलन हल । कुछ खेत जे हल भी ओकरा दूसर लोग बटइया जोतऽ हल । जे मन में आवऽ हल, बाँट-कूट के दे जा हल, ओकरे में अलगंठवा के परिवार गुजर-वसर करऽ हल ।) (अल॰12.35.10)
84 इटिंग-मिटिंग (अलगंठवा के बात सुन के सुमितरी नाकर-नोकर करइत कहलक हल -"तोहरा नेतागिरी से फुरसत मिलतो तऽ न, तूँ खाली दिन-रात इटिंग-मिटिंग में ही रमल रहऽ ह ।") (अल॰22:70.11)
85 इड़ोत (पूनिया के चान पछिम में उदास होके इड़ोत हो रहल हल आउ पूरब में सूरूज उगे ला सुगबुगा रहल हल ।) (अल॰16:51.23)
86 इतमिनान (अगे बेटी, जरा इतमिनान से पढ़ के सुनाबऽ तऽ।) (अल॰9:27.19; 22:70.4)
87 इतमिनान (हाँ बेटी, सब लोग ठीक हल । नन्हकू इतमिनान से चौकी पर बइठइत कहलक हल ।) (अल॰3:8.15; 14:42.29)
88 इन्टरभिउ (दू-तीन जगह नउकरी ला दरखास्त भी देलक हल । इन्टरभिउ में चुना भी जा हल ।) (अल॰16.46.11)
89 इया (= या) (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.11, 12)
90 इया (= हे!) (ई बड़ी बुधगर होतो भउजी । इया गंगा माय, हम्मर बाबू के निरोग रखिहऽ, नेहइते धोते एको केस न भंग होवे हम्मर पुतवा के ।) (अल॰6:16.27)
91 इस्कूल (= स्कूल) (अल॰2:5.20; 4:9.13, 14, 15)
92 उ (= ऊ, वह, वे) (फिन उ लोगन से खिस्सा-कहानी आउर गीत सुने आउर सिखे में विदुर अलगंठवा ।) (अल॰1:2.13, 3.2, 3)
93 उँऽऽहं (सुमितरी तभी सले-सले चाल से कि पत्ता भी न खड़के, आके अलगंठवा के गरदन पर अप्पन दूनो हाथ धरइत दूनो ठोर सिकुड़ावइत आउर नाक से उँऽऽहं कहलक हल ।) (अल॰13.38.28)
94 उकि (अगे मइया, सुमितरी के मइया भी गंगा नेहाय अइलथिन हे । उकि देखहीं न, नेहा के कपड़ा बदल रहलथिन हे ।) (अल॰6:16.14)
95 उगना (उगल रहना) (अलगंठवा के माय केला के छिलका फेंकइत असीरवाद देइत कहलक हल - 'दूधे-पुते उगल रहऽ ।') (अल॰6:16.21)
96 उघार (सुमितरी काली मट्टी से अप्पन माथा रगड़-रगड़ के धोवे लगल हल । काहे कि ओकर लमहर-लमहर केस लट्टियाल हल । जेकरा कठौती में पानी लेके साफ कर रहऽ हल । ओकर पीठ येकदम उघारे हल ।) (अल॰5:12.17)
97 उघारना (न बेटी, तूँ हदिया मत, तनिको मत डरऽ । उ सब बात कहे के बात हइ । हम इतना बुढ़बक ही, अप्पन इज्जत अपने उघारम ?) (अल॰3:7.28)
98 उच्चगर (= उँचगर, ऊँचा) (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.22)
99 उज्जर (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.22)
100 उझराना (सुमितरी इतमिनान से बइठइत अलगंठवा से कहे लगल हल -"बाप रे, कभी भी उ गुंडा से मत उझरइहऽ ।") (अल॰20:65.2)
101 उड़उती (~ उड़ना, ~ उड़ाना) (अलगंठवा तनी मुसकइत सुमितरी से कहलक हल -"जा, तूँ अप्पन परीच्छा के तइयारी करऽ गन । उत्तरवारी टोला जे कर रहल हे, करे देहु । उड़उती उड़ाना कमजोर लोगन के निसानी हे । कहाउत हे न कि हारे न हुरे तऽ दूनो गाल थूरे ।") (अल॰24:74.21)
102 उड़ौती (= उड़उती) (गाँव में जे हम्मर-तोहर नाम के उड़ौती उड़ रहल हे ओकरा सुन के तोहर मन कइसन-कइसन करऽ हो ?) (अल॰24:74.26; 32:103.15)
103 उतरवारी (= उत्तरवारी) (गाँव के उतरवारी टोला में तऽ आउर न कान देल जा हल । मोहन सिंघ, जालिम सिंघ के परिवार थरिया बजा-बजा के जगउनी गीत गावऽ हलन ।) (अल॰32:103.25)
104 उतरी (थानू हजाम से हजामत बनवा के गंगा में अस्नान करके आउर उतरी पहन के माय के मुँह में आग देवे से पहिले घाट के डोम से हुजत होल हल ।) (अल॰11.34.1)
105 उत्तरवारी (सुमितरी छत पर से नीचे उतरे ल चाह ही रहल हल कि उत्तरवारी टोला से विआह के गीत लउडीसपिकर पर सुनाई पड़ल ।) (अल॰22:70.18; 24:74.17, 21)
106 उदास-मनझान (फिन सुमितरी के झरइया करे लगलन । सुमितरी से तनी हट के अलगंठवा उदास-मनझान बइठ के एक टक से सुमितरी के तरफ देखइत हल । साँप झारे के मन्तर से देउथान गूँज रहल हल ।) (अल॰18:56.15)
107 उधार (= उद्धार) (करज-गोमाम से लदल हकइ देहिया, देहु न बकार अब, उधार होबऽ कहिया, लोटा-थारी गिरों हकइ, हकइ न एको गहनमा) (अल॰19:63.10)
108 उनखा (= उनका, उनको) (सुमितरी के माय के रोग के बात सुनके चेहाइत अलगंठवा के माय पूछलक - आँय, उनखा कउन बीमारी होलइ हे । देखे में तऽ तनदुरूस्त हलथुन ?) (अल॰6:17.6)
109 उपजना (बुढ़ल वंस कबीर के उपजल पूत कमाल ।) (अल॰4:12.13)
110 उपलल (= उपलाल) (जलवार नदी के दूनों कोर उपलल जा हल । उपलल नदी के देख के सुमितरी आउर ओकर माय-बाप आउ नाना के दिल हहर गेल हल ।) (अल॰31:96.20)
111 उपलाना (जलवार नदी के दूनों कोर उपलल जा हल । उपलल नदी के देख के सुमितरी आउर ओकर माय-बाप आउ नाना के दिल हहर गेल हल ।) (अल॰31:96.20)
112 उपहना (= गायब होना) (अलगंठवा के माय के मरे के बाद ओकर घर के लछमी उपहे लगल हल । खेत-पथार जे सब अलगंठवा के इहाँ उ एरिया के लोगन इजारा रखलक हल, सब के सब अप्पन खेत छोड़ा लेलन हल । कुछ खेत जे हल भी ओकरा दूसर लोग बटइया जोतऽ हल । जे मन में आवऽ हल, बाँट-कूट के दे जा हल, ओकरे में अलगंठवा के परिवार गुजर-वसर करऽ हल ।) (अल॰12.35.9; 29:89.8)
113 उपाहना (चितरलेखा, उस्सा के बात सुन के मन्तर के जरए दुआरका में सुतल अनिरुध के खटिया सहित उपाह के, उड़ा के उस्सा के राजमहल में ला देलक हल ।) (अल॰16:50.23, 51.4, 5)
114 उरेहना (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.23)
115 उसकाना (अलगंठवा नइका चूड़ा के साथ फतुहा के परसिध मिठाइ मिरजइ भर-भर फाँका खा ही रहल हल कि उ अप्पन माय के हाथ से उसकावइत बोलल हल ..; बटेसर के बात सुन के सुमितरी के माय ढिवरी के बत्ती उसकावइत कहलक; नानी घर के इयाद रह-रह के ओकर मन के उसका रहल हल) (अल॰6:16.13; 9:28.4, 18; 13:39.14)
116 उसबुसाना (फिन झरताहर सब गरान दे दे के मन्तर पढ़े लगलन । थोड़ी देर के बाद सुमितरी उसबुसाय लगल तऽ मंतरियन सब बहियार गा-गा के झारे लगलन ।) (अल॰18:58.6; 30:92.26)
117 उसाहना (लाठी घुमावइत सूरज पासवान दू हथो लाठी हवा भर के जालिम सिंघ पर उसाहवे कइलक हल कि रमेसर ओकर लाठी पकड़ लेलक हल ।) (अल॰24:74.11)
118 उहरा (अलगंठवा के तरफ मुंह फेरइत सुमितरी कहलक हल -"अरे बाप, मत पूछऽ, कल ही न बुलाकी बहु वचा निछड़वइलके हे । संउसे लूगा-फटा खून से बोथ हो गेलइ हल । हँड़िया के हँड़िया खून गिरलइ हल । संउसे टोला हउड़ा कर देलकइ कि कच्चा उहरा हो गेलइ हे । मुदा सच बात छिपऽ हे ?") (अल॰13.40.22)
119 उहाँ (= वहाँ) (न बेटा, उहाँ बड़ी भीड़ रहऽ हइ । तूँ मेला-ठला में भुला जयबऽ, इया कुचला जयबऽ । न, तूँ न जा बेटा, हम तोरा ला फतुहा के परसिध मिठाई मिरजइ लेते अइबो ।) (अल॰6:14.14)
120 ऊपरकी (नस्ता कर के जइते जइहऽ, मुदा उ लोग इ कह के चल देलन कि अपने अब हराम करऽ, फिन ऊपरकी बेला अइवो ।) (अल॰26:81.22)
121 ऊपरदम (अप्पन अउरत के बात सुन के ऊपरदम होइत बटेसर बोलल हल -"आज्झ सुरेन्दरा के नानीघर भेजवा के बोलवा लऽ ।)" (अल॰14.42.7)
122 एकक (= एक-एक) (फिन का हल, अलगंठवा डगर में आके, एगो पेड़ पर चढ़ के थोड़ा गड़ी, छुहाड़ा थोड़ा किसमिस आउर एकक गो केला-नारंगी, अमरुद लेके खाय लगल ।; खेत में धान के मोरी बढ़ के एकक हाथ के हो गेल हल ।) (अल॰4:11.17; 15:44.13; 16:49.13)
123 एकबाघट (भइया गुस्सा में अलगंठवा के दू तमाचा जड़इत कहलक हल - "ले रे भठियारा, सब परसादी तोंही खा जो । बाप रे बाप, सब एकबाघट कर देलकइ, बेहूदा-हरमजादा ।") (अल॰4:11.29)
124 एने (= एन्ने, इधर) (नरिअर गुड़गुड़ावइत अकचका के नन्हकू पूछलक - "अँय, एने भी चेचक के सिकायत हइ का ?" -"हाँ, टभका टोय छोट-छोट बुतरूअन के पनसाही देखाय पड़लइ हे ।" बटेसर चौंकी के नीचे बइठत कहलक हल ।) (अल॰3:8.20)
125 एने-ओने (सुमितरी माय-बेटी घर से चौखट पर आके एने-ओने ताके लगल हल । हल्ला-गुदाल सुन के गाँव के कुत्ता भी भुक-भुक के अनोर करे लगल हल ।) (अल॰7:22.26; 8:25.5)
126 एसो (= इस साल) (एसो के लगनिया में जोड़े के हइ गेठिया, चहर-जुआन लेखा घर बइठल बेटिया, एसो होतइ न निवाह तऽ का कहतइ जमनमा ।) (अल॰19:63.14)
127 ओखनी (ओकन्हीं) ("जाके पता लगावे में का हइ । ओखनी के मन ताड़े में का हइ ।) (अल॰9:27.29)
128 ओजी (= ओज्जी; उसी जगह) (सूरज पासवान हेडमास्टर आउर जालिम सिंघ से ओजी लेवे ला दाव-घात लगइले हल । कई वेर उ चाहलक हल कि जालिम सिंघ के छेवाठ के ओकरा जलवार नदी में जला दे, मुदा कोय के समझावे बुझावे पर अप्पन गुस्सा पी जा हल ।) (अल॰24:74.5)
129 ओजे (= ओज्जे, उसी जगह) (पनघट पर के पनीहारिन दूनो गोटा के लिट्टी आउर अंचार खइते येक टक से देख रहल हल । कुत्ता भी ओजे बैठल हल ।; नन्हकू के खैनी लगइते देख के एगो अदमी जे ओजे बैठल हल बोल पड़ल हल ...) (अल॰3:6.30, 7.2)
130 ओठंगाना (पेड़ तर बन्दूक ओठंगावइत दिलदार राम कहलक हल - तूँ खाली कविते आउर पराइन बाँचते रह जइबऽ, उधर उ भटियारा हेडमास्टर बंटाढार कर देतो, तऽ समझ में अइतो ।) (अल॰21:68.12)
131 ओने (अलगंठवा के बात सुन के सुखदेव घर दने चल गेल हल आउ ई चारो गोटा भी चउरी पर पर-पैखाना करे ला दखिन रूखे गलवात करइत चल गेलन हल । ओने नकफेनी के झाड़ी में तीतीर आउर आम के पेड़ पर कोयल बोले लगल हल । गाँव के धुर-जानवर भी खंदा में घर देने लौट रहल हल । सूरज भी डूबे ला झलमला रहल हल ।) (अल॰29:90.24)
132 ओने (अलगंठवा के बात सुन के सुखदेव घर दने चल गेल हल आउ ई चारो गोटा भी चउरी पर पर-पैखाना करे ला दखिन रूखे गलवात करइत चल गेलन हल । ओने नकफेनी के झाड़ी में तीतीर आउर आम के पेड़ पर कोयल बोले लगल हल । गाँव के धुर-जानवर भी खंदा में घर देने लौट रहल हल । सूरज भी डूबे ला झलमला रहल हल ।) (अल॰29:90.24)
133 ओरियाना, ओरिया जाना (ए जजमान, हमरा हीं गांजा एकदमे ओरिया गेलो हे । सुनलियो हे कि तोहरा हीं भगलपुरिया गांजा हो । लावऽ न, येक चिलिम हो जाय ।) (अल॰8:24.27)
134 ओल (सुमितरी आज ओल के तरकारी बनउलक हल । ओल छिले से ओकर दूनों हाथ कुलकुला रहल हल ।; "वाह बेटी, ओल के तरकारी खाय ला बड़ी दिन से मन ललचा रहल हल ।" तरकारी मुँह में लेइत बटेसर कहलक हल - "अरे, इ तऽ एकदम सालन के कान काटऽ हइ । ओल के तरकारी मांस से कम न होबऽ हे ।") (अल॰9:26.22, 29, 27.1, 3)
135 औरत-मरद-बूढ़-पुरनिया (गाँव के ~ के आंख में गढ़ल अलगंठवा सबके दुलरूआ ।) (अल॰1:2.1)
136 कंटर (जाड़ा के दिन में गुड़ के भेली सोंप-जीरा आउर न जानी कउन-कउन मसाला मिला के चचा जी कोलसार में भेली बना के घर के कंटर में रख दे हलन ।) (अल॰12.36.25, 27)
137 कउची (अगे सुमितरी, तोर पीठ में ई काला-काला बाम कउची के हउ गे ? हाय रे बाप, तोरो सितला मइया देखाय दे रहलथुन ह का गे ?) (अल॰5:12.19)
138 ककहरा (अलगंठवा जब ककहरा भी न जानऽ हल तबहिए ओकर माय हनुमान चलिसा, शिव चलिसा कंठस्थ करवा देलक हल ।) (अल॰4:10.20; 31:98.15)
139 कखने (अलगंठवा भी कुल्ली-कलाली कर के दलान पर चल गेल हल । रजेसर के देखे अलगंठवा कहलक हल -"कखने से आवल हऽ ? दिलदार भाय आउ रमेसर जी के का समाचार हइ ?") (अल॰29:89.19)
140 कचगर (गोर-गोर झुमइत धान के बाल में हम तोहर मस्ती भरल कचगर आउर दूधायल सूरत देख रहली हे ।; अलगंठवा अप्पन खाँड़ के एगो टील्हा पर बइठ के देखइत हल कि रूखी डमकल-डमकल आउर कचगर-कचगर अमरूद के कइसे कुतर-कुतर के, फुदक-फुदक के खा रहल हे ।) (अल॰6:18.27; 13:38.20)
141 कच-सन (सुमितरी भी करहा से पानी छूके गोड़ चले ला बढ़इवे कइलक हल कि एगो साँप पर कच-सन सुमितरी के पैर पड़ गेल हल । सुमितरी बाप रे बाप, मइगा गे मइया करइत गुदाल करे लगल हल कि हमरा साँप भमोर देलक रे बाप ।) (अल॰18:54.16)
142 कचूर (हरिअर ~) (गाँव के चारों ओर हर तरह के पेड़-बगान हे । ई गुने वारहो मास हरिअर कचूर लउकइत रहऽ हे ।; धरती के सिंगार हरिअर कचूर मोरी दुलार विना टुअर जइसन टउआ रहल हल ।) (अल॰8:22.30; 15:14.13; 22:69.12)
143 कजरौटी (सुमितरी नेहा-धो के घर आयल हल तऽ ओकर माय गड़ी के तेल से मालिस कर देलक हल । आउर कंघी से माथा झार के जुरा बाँध देलक हल । कजरौटी से काजल भी लगा देलक हल ।) (अल॰5:13.12)
144 कटहर (अलगंठवा के चचा जी आम-नेमु-कटहर के अचार बोजे के आउ रंग-विरंग चिड़िया इयानी मैना-तोता, हारिल-कबूतर आउ किसिम-किसिम के पंछी पाले के बड़ सौखिन हलन ।) (अल॰12.37.6)
145 कट्ठा (रामखेलामन महतो बड़गो पिआंक हथ । अप्पन मरुसी अट्ठारह विघा खेत ताड़ी-दारु-गांजा-भांग में ताप गेलन हे । अब उनखा पास एको कट्ठा खेत न बचऽ हे ।) (अल॰8:23.9)
146 कतकी (~ पुनिया, ~ धान) (कतकी पुनिया नेहाय ला अलगंठवा के माय आउ टोला-टाटी के कइ गो अउरत-मरद फतुहा-गंगा असनान करे ला आपस में गौर-गट्ठा करे लगल हल ।; कोय-कोय किसान अप्पन कतकी धान काट रहलन हल ।) (अल॰6:14.10, 26, 18.22, 20.27)
147 कत्ती (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.23)
148 कनकनी (भोर के दखिनाहा बेआर बह रहल हल । जेकरा से कनकनी महसूस होवइत हल ।) (अल॰6:14.21)
149 कनना (रो-कन के; रोवइत-कनइत) (येकर अलावे बकरी चरावे के सौख, दिन-रात रो-कन के चचा से येगो चितकबरी पाठी किना के पतिया-लछमिनिया, गौरी, रधिया, बुधनी, सुमिरखी, तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के साथ टाल-बधार में बकरी चरावे में मसगुल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.15; 11:33.25)
150 कने (= कन्ने, किधर) (चेलहवा मछली देख के सुमितरी के माय पूछलक हल - आज्झ कने जतरा बनलो कि मछली ले अइलऽ ।) (अल॰5:13.29; 17:52.6)
151 कनौसी (पउँया-पार्टी रंग के चपल पहिन के, कान में कनौसी आउर नाक में नकवेसर पहिन के झनकावऽ हलइ । दिन-रात अलगंठवा के साथ कोनिया घर में कोहवर रचावऽ हलइ । कोय-कोय कह हल कि "घोड़वा-घोड़िया राजी तऽ का करे गाँव के काजी ।") (अल॰32:103.22)
152 कपसना (जब नन्हकू आम के पेड़ तर बैठ के खैनी लगा रहल हल तऽ कपसल जइसन होके सुमितरी नाना से कहे लगल हल - "नाना, नानी तऽ बढ़नी से मारते-मारते सउंसे देह में बाम उखाड़ देवे कइलक हे, मुदा घर पर सेनूर वाला बात सुन के मइया आउ बाबू मारते-मारते हंसीली पसली एक कर देतन ।") (अल॰3:7.22; 11:33.17)
153 कबड्डी (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.23)
154 कमजोर (दुसमन के कभी छोटा आउर कमजोर न समझे के चाही ।) (अल॰25:75.18)
155 कमाना-कजाना (कमाय के न कजाय के, खाली बैठल-बैठल खाय के ।) (अल॰12.37.29)
156 कमिअइ (कहाउत ठीके न हे भाय कि आगे नाथ न पीछे पगहा, जइसे धूल में लोटे गदहा । येही हाल हमरा हो गेलो हे । इका जे हम्मर खेत जोत रहल हे ओकरे इहाँ येक तरह से बरहिली इया कमिअइ कर रहली हे ।) (अल॰8:24.4)
157 कमिया (किसान पुराना जमाना से ही दो सेर कची अनाज, इक्किस बोझा में एक बोझा, आउर पाँच कट्ठा खेत मजदूर इयानी कमिया सब के दे रहलन हल । मुदा मजदूर अब तीन सेर पक्की मजदूरी, चौदह बोझा में एक बोझा आउर तेरह कट्ठा के मांग कर रहलन हल ।) (अल॰15.43.25)
158 करकराना (लास जब पूरा जर गेल तऽ थोड़ा-सा कलेजा करकरा रहल हल तऽ ओकरा कपड़ा में बांध के कमर भर पानी में हेल के लोग परवह कर देलन हल ।) (अल॰11.34.28)
159 करज-गोमाम (= कर्ज-गोआम) (करज-गोमाम से लदल हकइ देहिया, देहु न बकार अब, उधार होबऽ कहिया, लोटा-थारी गिरों हकइ, हकइ न एको गहनमा) (अल॰19:63.10)
160 करम-किरिआ (आज तोहर करम-किरिआ करे ला हमनी इहाँ तोहरे आवे के बाट जोह रहलियो हे । आज तोहर कविता-केहानी आउ लिडरइ भूला जइतो ।) (अल॰27:82.14)
161 करमी (ठउरे गबढ़ा में करमी के लत्तड़ पर कइगो बगुला मछली के पकड़े ला धेआन मग्न हो के बइठल हल ।) (अल॰13.40.28)
162 करहा (= दौंग) (एही सब सोंचइत सब अउरत पीछे-पीछे सले-सले अपजस करे ला चले लगल हल । करहा में लट्ठा के पानी बह रहल हल खेत पटे ला । करहा भीर आके सभे छप्प-छप्प पानी छूए लगल हल ।) (अल॰18:54.13, 14, 15; 27:83:7, 17)
163 करिखा (= कारिख) (सुमितरी के माय मुसकइत येगो पुरान करिखा लगल हांड़ी में मछली धोवे ला उठावइत सुमितरी से कहलक हल - "अगे बेटी, तूँ लहसून-हल्दी-धनिया-सरसो आउर मिचाइ मेहिन करके लोढ़ी-पाटी धो-धो के पीसऽ ।" माय के बात सुन के सुमितरी लोढ़ी-पाटी पर मसाला पीसे लगल हल आउ मछली के लोहरउनी से घर महके लगल हल ।) (अल॰5:14.6)
164 करिया (= काला) (मंदिल में करिया कोयला अइसन महादे जी के लिंग इयानी सिउलिंग गड़ल हे ।) (अल॰16:48.23)
165 करुआ (~ तेल) (माय के बात सुन के सुमितरी करुआ तेल दूनों हाथ में चपोत लेलक हल । जेकरा से कुलकुलाहट ठीक हो गेल हल ।) (अल॰9:26.26)
166 करुका (~ तेल) (अगे बेटी, दूनों हथवा में करुका तेलवा रगड़ ले । ओकरे से ठीक हो जयतउ ।) (अल॰9:26.25)
167 कलकतिया (कलकतिया बाबू, चटकलिया बाबू, आउर अब ओस्ताद जी के नाम से जिला-जेवार में जस-इज्जत-मान-मरिआदा में कोय कमी न ।) (अल॰1:1.15)
168 कल्हे (= कल) (। कल्हे इनका एक दम पिला का देलूँ कि कानोकान वियावान कर देलका ।); ई बात सुन के बटेसर थरिए में अचावइत कहलक हल - हम तऽ कल्हे ही जा सकऽ ही ।) (अल॰8:25.2; 9:27.31)
169 कसइया (कभी-कभी अलगंठवा के माय-बाप में वतकुच्चन हो जा हल । तऽ माय एगो कहाउत कहऽ हल -"मइया के जिया गइया निअर आउ बपा के जिया कसइया निअर ।") (अल॰12.36.9)
170 कहनी (रघुनाथ बोल पड़ल कि कहनी में का झूठ हे खेलामन भाय - अनकर चूका अनकर घी, पाँड़े के बाप के लगल की ।) (अल॰8:25.3; 16:47.15)
171 कहाउत (कहाउत ठीके न हे भाय कि आगे नाथ न पीछे पगहा, जइसे धूल में लोटे गदहा । येही हाल हमरा हो गेलो हे । इका जे हम्मर खेत जोत रहल हे ओकरे इहाँ येक तरह से बरहिली इया कमिअइ कर रहली हे ।; कहाउत हे न कि हारे न हुरे तऽ दूनो गाल थूरे ।) (अल॰8:24.2; 24:74.22)
172 काँच कुँआर (अलगंठवा अभी काँचे-कुँआरे हल । ओकरा से विआह करे खातिर बहुत कुटुम आ-जा रहल हल ।) (अल॰16.46.7)
173 काज-परोज (अलगंठवा के घर में पीतर-सिलवर-कांसा-तामा के कोठी के कोठी बरतन हल । गाँव-घर में विआह-सादी आउर कोय भी काज-परोज में अलगंठवा के घर से ही बरतन जा हल ।) (अल॰12.35.16)
174 काजर-विजर (सुमितरी के नानी के टोला-टाटी के अउरत-मरद इ परचार करे में लगल हल कि जब से छउड़ी मलटरी पास कइलकइ तब से ओकर पैर जमीन पर न रहऽ हलइ, धइल न थमा हलइ । रोज-रोज धमधमिया साबुन से नेहा हलइ । काजर-विजर आउर टिकूली साट के गुरोगन के तेल माथा में पोर के, चपोर के, जूरा बाँध के छीट के साड़ी पहिन के चमकाबऽ हलइ, झमकाबऽ हलइ ।) (अल॰32:103.19)
175 काजिनी (= का जानी) (ओकर दवा से कोय फायदा न बुझायल । काजिनी कइसन दवा देहे ।) (अल॰14.42.17)
176 कातो (= कीतो) (सुनऽ ही कातो छउँड़ा पढ़े में बड़ तेज हइ, फिन ओकरा इतनो गियान न हइ कि परसादी निरैठा लावल जा हे । ठीके कहल गेल हे कि नेम न धरम, पहिले चमरवे पाखा ।) (अल॰4:12.4)
177 कादो (= कातो, कीतो) (अरे बाप रे बाप, रामदहिन पाड़े के सँढ़वा मार के पथार कर देलकइ । कादो ओकर गइया मखे ला उठलइ हल । ओकरे पगहा में बाँध के सढ़वा दने अप्पन गइया के डोरिअइते जा रहलथिन हल कि गाँव के कोय बुतरु सढ़वा के देखइत ललकारइत कह देलकइ - उन्नऽऽऽढाऽऽहेऽऽ । बास इतने में सढ़वा गइया दने आउ गइया सढ़वा दने बमकइत दौड़लइ । जेकरा से रामदहिन पाड़े के दहिना हथवा पगहवा में लटपटा गेलइ । जेकरा से पखुरबे उखड़ गेलइ । उका खटिया पर लदा के इसलामपुर हौसपिटल जा रहलथिन हे ।; कादो बड़ावर में कोय साधु हथिन जे जड़ी-बूटी के दवा करऽ हथिन ।; तूँ कादो कोय साधु जी के वारे में जानऽ हु ?) (अल॰7:22.17; 10.31.2, 4; 14:42.14; 18:54.9; 20:65.10)
178 कानना (= कनना) (अलगंठवा अब तक जीमन में दू बार खूब रोबल हल, कानल हल, अप्पन माय के मरे के बाद आउर दूसर भूरी पाठी मरे के बाद ।) (अल॰1:2.27; 28:85.16)
179 कारीवांक (अगहनी धान टाल-बधार में लथरल-पथरल हल । कारीवांक, रमुनिया आउर सहजीरवा धान के गंध से सउंसे खन्धा धमधमा रहल हल ।) (अल॰7:20.25)
180 काहे कि (नन्हकू येक घंटा रात छइते ही सुमितरी के लेके घर से बहरा गेल हल । काहे कि गरमी के दिन हल । येकर अलावे फरिछ होवे पर फिन टोला-टाटी के लोग सुमितरी आउर अलगंठवा के बात के जिकिर आउर छेड़-छाड़ देत हल ।) (अल॰3:5.30; 4:9.14)
181 किनछारे (इतने में दखिन से नदी के किनछारे-किनछारे एगो डेंगी खेवइत दू-ती अदमी के आवइत देखके सुमितरी कहलक हल -"अरे बाप, लगऽ हइ कोई परेत हमनी के पकड़े ला आ रहले ह ।") (अल॰31:97.2)
182 किनना (= खरीदना) (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.11; 6:18.3)
183 किनाना (= खरीदवाना) (येकर अलावे बकरी चरावे के सौख, दिन-रात रो-कन के चचा से येगो चितकबरी पाठी किना के पतिया-लछमिनिया, गौरी, रधिया, बुधनी, सुमिरखी, तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के साथ टाल-बधार में बकरी चरावे में मसगुल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.15)
184 किया (= कीया; सिंदूर रखने का लकड़ी का डिब्बा) (येकर अलावे अगिया बैताल हल अलगंठवा, लड़का-लड़की के साथ लुका-छिपी आउर विआह-विआह खेले में अप्पन माय के किया से सेनूर चोरा के कोय लड़की के माँग में घिस देवे में बदनाम अलगंठवा।) (अल॰1:2.3)
185 किरपा (वाह, भगमान के किरपा जे न हे । देउता-देवी के पुन-परताप से आउ आगे पढ़-लिख के गुनगर हो जाय कि तोहर घर से लगाइत जिला-जेवार के नाम रोसन होय ।) (अल॰10.30.25)
186 कुचकुचाना (येही बीच भोर भी हो गेल हल । कुचकुचिया बसेढ़ी में कुचकुचाय लगल हल, कौआ भी उड़-उड़ के बोले लगल हल ।) (अल॰26:81.17)
187 कुचकुचिया (येही बीच भोर भी हो गेल हल । कुचकुचिया बसेढ़ी में कुचकुचाय लगल हल, कौआ भी उड़-उड़ के बोले लगल हल ।) (अल॰26:81.17)
188 कुटुम (अलगंठवा अभी काँचे-कुँआरे हल । ओकरा से विआह करे खातिर बहुत कुटुम आ-जा रहल हल ।) (अल॰16.46.8)
189 कुबेला (खाय-पीए के बखेड़ा छोड़ऽ, न तऽ कुबेला हो जइतो । इहाँ से पांच-सात कोस से कम न बुले पड़तइ । रस्ते में ही कुछ खा-पी लेल जइतइ ।) (अल॰16.47.6)
190 कुम्ह (= कुम्भ) (मलमास मेला मगध के लेल बड़ परसिद्ध हे । जइसे कि कुम्ह मेला ।) (अल॰31:95.21)
191 कुम्हार (लाल टुह टुह सुरज, लगे कुम्हार के आवा से पक के घइला निअर देखाई देलक, लगे जइसे कोय पनिहारिन माथा पर अमनिया घइला लेके पनघट पर सले-सले जा रहल हे ।) (अल॰3:6.3; 6:18.11)
192 कुरचना (इमलिया घाट से कटहिया घाट लउक रहल हल । जहाँ माय के साथ कतकी अस्नान करके कुरचऽ हल । आउ आज्झ ओही माय के एही फतुहा में जरा रहल हल । जीमन-मउअत के कुछ कहल न जा सकऽ हे ।) (अल॰11.34.25)
193 कुरती-जपती (दरोगा उ लोग पर हर तरह के दफा लगा के केस कर देलक हल । वरंट जारी कर देलक हल । मुदा इ लोग तारीख पर कोट में हाजिर न होल तऽ कुरती-जपती के वरंट चला देल गेल हल ।) (अल॰28:85.12)
194 कुलकुलाना (सुमितरी आज ओल के तरकारी बनउलक हल । ओल छिले से ओकर दूनों हाथ कुलकुला रहल हल ।) (अल॰9:26.22, 27.6)
195 कुलकुलाहट (माय के बात सुन के सुमितरी करुआ तेल दूनों हाथ में चपोत लेलक हल । जेकरा से कुलकुलाहट ठीक हो गेल हल ।) (अल॰9:26.27)
196 कुल्ली-कलाली (अलगंठवा भी कुल्ली-कलाली कर के दलान पर चल गेल हल ।) (अल॰29:89.18)
197 कुवेरा (चलते चलऽ, अँटियावल धनमा ढो लऽ । फिन नानी घर जाय में कुवेरा हो जइतो ।) (अल॰9:29.18)
198 केता (= केत्ता, कितना) (सुमितरी के चिट्ठी पढ़ के हमरा बुझा हो कि ओकरा पढ़े के जेहन हो । केता सुन्नर अच्छर में चिट्ठी लिखलको हो । जरुर उ पढ़तो ।) (अल॰10.31.30; 21:67.29)
199 केहानी (= कहानी) (रमेसर वीड़ी धरा के दिलदार राम के ओर देइत सदावृच्छ आउर रानी सुरंगा के केहानी कहे ला अनुरोध कइलक हल ।) (अल॰26:81.1)
200 कोट-कचहरी (हमरा समझ में न आ रहल हे कि हम अपने सब के सामने पंचइती करे के लायक ही इया न । काहे कि इ सब काम नेता आउर कोट कचहरी के हे ।) (अल॰19:60.18)
201 कोठा (बिजुरी के तार से लगाइत पम्पिंग सेट आउर टरइक्टर के कल-पुर्जा खोलवावे से लेके दिन-दहाड़े लूट के माल में हिस्सा ले हल । जेकरा से खेत खरीदऽ हल, कोठा पर कोठा बनावऽ हल ।) (अल॰28:85.8)
202 कोठी (अलगंठवा के घर में पीतर-सिलवर-कांसा-तामा के कोठी के कोठी बरतन हल । गाँव-घर में विआह-सादी आउर कोय भी काज-परोज में अलगंठवा के घर से ही बरतन जा हल ।) (अल॰12.35.15)
203 कोठी-कोहा-कंटर (जाड़ा के दिन में गुड़ के भेली सोंप-जीरा आउर न जानी कउन-कउन मसाला मिला के चचा जी कोलसार में भेली बना के घर के कंटर में रख दे हलन । आवल-गेल आउ टोला-टाटी के भी खिलाबऽ हलथिन । मुदा आज्झ कोठी-कोहा-कंटर खाली भमाह रह गेल ।) (अल॰12.36.27)
204 कोनिया (~ घर) (कोनिया घर में काठ के पेटी में रखल येकन्नी-दूअन्नी-चरन्नी-अठन्नी चोरा के जैतीपुर में घनसाम हलुआई के दूकान में गाँव के तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के मिठाई खिलावे में दतादानी अलगंठवा ।; दिन-रात अलगंठवा के साथ कोनिया घर में कोहवर रचावऽ हलइ ।) (अल॰1:2.8; 9:27.18, 28.18; 12:37.22; 32:103.23)
205 कोय (= कोई) (कलकतिया बाबू, चटकलिया बाबू, आउर अब ओस्ताद जी के नाम से जिला-जेवार में जस-इज्जत-मान-मरिआदा में कोय कमी न ।) (अल॰1:1.16)
206 कोर (= कौर) (सुमितरी अभी दू कोर खइवे कइलक हल कि ओकर मुंह में आधा मिरचाई जे लिट्टी में सानल हल चल गेल हल । जेकरा से सुमितरी सी-सी करइत लिट्टी छोड़ देलक हल ।) (अल॰3:6.23)
207 कोलसार (जाड़ा के दिन में गुड़ के भेली सोंप-जीरा आउर न जानी कउन-कउन मसाला मिला के चचा जी कोलसार में भेली बना के घर के कंटर में रख दे हलन ।) (अल॰12.36.25)
208 कोहवर (~ रचाना) (पउँया-पार्टी रंग के चपल पहिन के, कान में कनौसी आउर नाक में नकवेसर पहिन के झनकावऽ हलइ । दिन-रात अलगंठवा के साथ कोनिया घर में कोहवर रचावऽ हलइ । कोय-कोय कह हल कि "घोड़वा-घोड़िया राजी तऽ का करे गाँव के काजी ।") (अल॰32:103.23)
209 कोहा (अलगंठवा के माय कोहा में जमल छाली भरल दूध के मथानी से मह के मखन निकाल ले हल आउ कोहा के कोहा मट्ठा गाँव-घर के गरीब-गुरबा के दे दे हल ।) (अल॰12.36.18, 19, 27)
210 कौपी (तूँ खाना-खुराक जुटा देहु, किताब-कौपी-कपड़ा-लत्ता के भार हमरा ऊपर छोड़ दऽ । गाहे-बगाहे अनाज-पानी भी भेज देवो आउर का ।) (अल॰10.31.26)
211 कौलबच्चिया (अलगंठवा सुमितरी के हाथ पकड़ के पीठ पर जूता के उखड़ल बाम दिखवइत कहलक हल कि देखऽ सुमितरी, तोरा चलते हम्मर पीठ मारते-मारते भइया फाड़ देलन हे । सुमितरी भी अलगंठवा के हाथ पकड़ के अप्पन देह पर बढ़नी के बाम देखइलक हल । फिर दूनो आपस में ~ कइलक हल कि तू नानी घर जाके पढ़ऽ आउर हम भी घर पर रह के पढ़वो ।) (अल॰1:4.9)
212 खंड (= खाँड़) (सुखदेव खंड दने जा ही रहल हल कि अलगंठवा भट्ठा तर से लपकल-धपकल, हाँफे-फाफे दूरा दने आ रहल हल ।) (अल॰26:77.17)
213 खंदा (= खन्धा) (अलगंठवा के बात सुन के सुखदेव घर दने चल गेल हल आउ ई चारो गोटा भी चउरी पर पर-पैखाना करे ला दखिन रूखे गलवात करइत चल गेलन हल । ओने नकफेनी के झाड़ी में तीतीर आउर आम के पेड़ पर कोयल बोले लगल हल । गाँव के धुर-जानवर भी खंदा में घर देने लौट रहल हल । सूरज भी डूबे ला झलमला रहल हल ।) (अल॰29:90.26)
214 खंदा (= खन्धा) (अलगंठवा के बात सुन के सुखदेव घर दने चल गेल हल आउ ई चारो गोटा भी चउरी पर पर-पैखाना करे ला दखिन रूखे गलवात करइत चल गेलन हल । ओने नकफेनी के झाड़ी में तीतीर आउर आम के पेड़ पर कोयल बोले लगल हल । गाँव के धुर-जानवर भी खंदा में घर देने लौट रहल हल । सूरज भी डूबे ला झलमला रहल हल ।) (अल॰29:90.26)
215 खखोरना (गँउआ-गुदाल हो रहल हल कि नक्सलाइट लोग हेडमास्टर के पकड़ के गोला-लाट्ठी देले हइ । चलितर ठाकुर ओकर माथा अस्तूरा से खखोर के मुँह में चूना कालिख लगा रहलइ हे ।) (अल॰23:71.23)
216 खड़कन्त (अलगंठवा फिन तीनों के समझावइत कहलक हल -"मुदा ई बात के भनक हवा के भी लगे के न चाही । काहे कि उ बड़ी खड़कन्त रहऽ हो ।") (अल॰21:69.2)
217 खतना (= खनना, खोदना) (उ जमाना में विनोबा जी गाँव-गाँव घूम के परवचन दे हलन कि पैखाना गाँव के बाहर फिरे तऽ सावा वित्ता जमीन खत के ओकरे में पैखाना करके मिट्टी से झांक देवे के चाही । जेकरा से गन्दगी भी न होयत आउर पैखाना खाद के काम आवत ।) (अल॰2:5.9)
218 खन्धा (अगहनी धान टाल-बधार में लथरल-पथरल हल । कारीवांक, रमुनिया आउर सहजीरवा धान के गंध से सउंसे खन्धा धमधमा रहल हल ।) (अल॰7:20.26; 9:28.3; 19:62.16; 25:75.6)
219 खरचा-बरचा, खरचा-वरचा (बेटी के जादा पढ़ा लिखा के का करवइ बेटा, खरचा-बरचा कहाँ से जुटतइ ।; आज हम गछ लिअइ आउ कल हमरा से खरचा-वरचा न जुटतइ तऽ हम का करवइ ।) (अल॰6:18.1; 10.31.24)
220 खरहना (न गे मइया, नेवारी के विनल खटिया पर खरहने में नानी घर येक दिन सो गेलिअइल हल । ओकरे से बाम उखड़ गेल हे । नेहा के गड़ी के तेल लगा लेम, तऽ ठीक हो जायत ।) (अल॰5:12.21)
221 खस (खस के पंखा) (अल॰29:88.26, 28)
222 खाँड़, खांड़ (अलगंठवा के घर के सटले पछिम खांड़ हल । ओकरे सटले एगो तलाबनुमा गबड़ा हल । जेकरा में पानी वारहो मास रहऽ हल । अलगंठवा के खांड़ में झमेठगर बाँस, तार, सहजन-पपीता, केला, अनार के अलावे तीन गो अमरुद के गाछ भी हल । अलगंठवा अप्पन खाँड़ के एगो टील्हा पर बइठ के देखइत हल कि रूखी डमकल-डमकल आउर कचगर-कचगर अमरूद के कइसे कुतर-कुतर के, फुदक-फुदक के खा रहल हे ।; बइठहु न चचा, छोटका बाबू खँड़िया में भट्ठा तर मुँह धो रहलथुन हे, बुलावऽ हियो ।) (अल॰13.38.16, 17, 19; 18:54.9; 26:77.15)
223 खिचना (= खींचना) (अलगंठवा येगो नेवारी के आँटी के जौरी बाँट के कुत्ता के गोड़ में बाँध के खिचते-खिचते गाँव के बाहर पैन पर ले जा के रखलक, आउर घर से कुदाल ले जा के भर कमर जमीन खोद के ओकरे में कुत्ता के गाड़ देलक ।) (अल॰2:5.23)
224 खिस्सा-कहानी (फिन उ लोगन से खिस्सा-कहानी आउर गीत सुने आउर सिखे में विदुर अलगंठवा ।) (अल॰1:2.13)
225 खिस्सा-गलवात (टोला-टाटी के अउरत के साथ सुमितरी टट्टी करे ला गाँव से दछिन पइन पर पहुँच के दू-दू हाथ के दूरी पर बैठ के खिस्सा-गलवात करइत झाड़ा फिरे लगल हल ।) (अल॰18:53.27; 26:80.28)
226 खूटा (नन्हकू के घरवाली सत्तू भरल लिट्टी आउर आम के अंचार गमछी के एगो खूटा में बाँध देलक हल ।) (अल॰3:6.6)
227 खेत-पथार (अलगंठवा के माय के मरे के बाद ओकर घर के लछमी उपहे लगल हल । खेत-पथार जे सब अलगंठवा के इहाँ उ एरिया के लोगन इजारा रखलक हल, सब के सब अप्पन खेत छोड़ा लेलन हल । कुछ खेत जे हल भी ओकरा दूसर लोग बटइया जोतऽ हल । जे मन में आवऽ हल, बाँट-कूट के दे जा हल, ओकरे में अलगंठवा के परिवार गुजर-वसर करऽ हल ।) (अल॰12.35.10)
228 खेलौना (= खिलौना) (अलगंठवा भीड़ भरल मेला देख के बड़ खुस हो रहल हल । .. रंग-विरंग के खेलौना देख के माय से खरीदे ला कह रहल हल ।) (अल॰6:16.1)
229 खेसाढ़ी (= खेसाड़ी) (जब पतौरी ढोवा गेलहल तऽ बटेसर नेहा-धो के खेसाढ़ी के साग आउ आलू के भात-भरता खा के कंधा पर येगो सूती के मोटगर चादर लेके वसन्तपुर जाय ला घर से निकले लगल) (अल॰9:29.21)
230 खोंथा (हम समझऽ ही कि एक सप्ताह के अन्दरे मधुमक्खी के खोंथा उड़ जइतो ।) (अल॰25:76.20, 23)
231 खोरना (रंथी के साथ कबीर पंथी दुखहरन दास भी अइलन हल । दुखहरन दास हाथ में बांस के फट्टा से लास के खोर-खोर के जरा रहलन हल आउ येगो निरगुन गा रहलन हल) (अल॰11.34.8)
232 गँउआ-गुदाल (साँझ पहर घर आवे पर गँउआ-गुदाल होवे पर अप्पन बड़ भाई के हाथ से चमरखानी जूता से मार खा के थेथर हो गेल हल अलगंठवा ।; वसन्तपुर हाई इस्कूल के चारो ओर कुहराम मचल हल । लइका-लइकी आपा-धापी करइत भाग रहलन हल । गँउआ-गुदाल हो रहल हल कि नक्सलाइट लोग हेडमास्टर के पकड़ के गोला-लाट्ठी देले हइ ।) (अल॰1:2.5; 23:71.22)
233 गँउआ-गोहार (चिट्ठी सुने के वाद कंघाय बोल पड़ल हल कि तोहनी दूनों के पीरितिया अब जमान आउर जड़गर हो रहलो हे । सुमितरी तोहरा पर पहिले से ही दीठिअइले हलो बचपने से ही । येकर वाद रमेसर हुंकारी भरइत कहलक हल - इ भी तऽ ओकरा पर टिसना लगइले हल न । अरे इ तऽ विआह-विआह बचपने में खेल-कूद के गँउआ-गोहार करइवे कइलक हल ।) (अल॰10.32.16)
234 गंगा-गजाधर (गंगा-गजाधर सेवे के बाद दो भाई में अप्पन माय-बाप के सबसे छोट बेटा हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.19)
235 गंजेड़ी (अल॰8:24.4)
236 गछना, गछ लेना (हमरा सुमितरी के पढ़वे के अउकात हइ बड़ीजनी, पढ़ाना असान बात हे का ? आज हम गछ लिअइ आउ कल हमरा से खरचा-वरचा न जुटतइ तऽ हम का करवइ ।) (अल॰10.31.24)
237 गजगजाना (मलमास मेला गजगजा रहऽ हल, अमदी सब के वेठिकाना भीड़ से ।) (अल॰31:100.12)
238 गजनौटा (सूरज भी डूबे जा रहलो हे । तूँ एगो सूरज अप्पन गजनौटा में छिपा के संझा-बाती दे दऽ । अउर उ दीआ तब तक जरइहऽ जब तक एगो सूरज पूरब में उग न जाय ।) (अल॰13.41.19)
239 गड़पिछुलिया (पहाड़ पर बड़ी सावधानी से चढ़े परऽ हल । काहे कि पथल से फिसले के डर हल । लोग उ रस्ता के गड़पिछुलिया कहऽ हलन ।) (अल॰16:48.15)
240 गड़ी (हिदायत कर देल गेल हल कि परसादी के समान लेके पेसाव-पैखाना न करे के आउर न जुठखुटार होवे के चाही । बड़ी नियम-धरम से परसादी इयानी गड़ी-छोहाड़ा-किसमिस-केला-अमरुद-नारंगी परसादी लइहऽ ।; सुमितरी नेहा-धो के घर आयल हल तऽ ओकर माय गड़ी के तेल से मालिस कर देलक हल ।) (अल॰4:11.3, 16; 5:13.10)
241 गतन्त (दूनों के बात काटइत देउकी पांडे बोल पड़न हल - छोड़ऽ उ सब बात, गतन्त के सोचन्त का । गंजवा जल्दी निकालऽ ।) (अल॰8:24.18)
242 गदरल (= गदराल) (हमनी तीनो आ रहलियो हल । मुदा नइकी वगीचवा में तेतर तिवारी मिल गेलक । कने से तऽ एक पांजा गदरल बूँट के झंगरी ले के होरहा बना रहलथुन हे । ओही लोग तोहरा बुलावे ला हमरा कहलथुन हे।) (अल॰29:89.22)
243 गदराना (हमनी तीनो आ रहलियो हल । मुदा नइकी वगीचवा में तेतर तिवारी मिल गेलक । कने से तऽ एक पांजा गदरल बूँट के झंगरी ले के होरहा बना रहलथुन हे । ओही लोग तोहरा बुलावे ला हमरा कहलथुन हे।) (अल॰29:89.22)
244 गधहवेला (= गदहवेला, गोधूलिवेला) (अमीरगंज में केसो जी के घर में दुपहरिया गमावे के वाद लोग राजगीर गधहवेला में पहुँच गेलन हल ।) (अल॰31:99.26)
245 गबड़ा (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.24)
246 गबढ़ा (= गबड़ा) (ठउरे गबढ़ा में करमी के लत्तड़ पर कइगो बगुला मछली के पकड़े ला धेआन मग्न हो के बइठल हल ।) (अल॰13.40.28)
247 गमछी (नन्हकू के घरवाली सत्तू भरल लिट्टी आउर आम के अंचार गमछी के एगो खूटा में बाँध देलक हल ।; बटेसर चरखानी गमछी से देह के पसीना पोछ के कमर में खोंसल खैनी-चूना निकाल के खैनी टूंग ही रहल हल कि लोटा में पानी लेके सुमितरी के माय जुम गेल हल ।) (अल॰3:6.6; 7:21.10; 27:83.17)
248 गरान (~ देना) (फिन झरताहर सब गरान दे दे के मन्तर पढ़े लगलन । थोड़ी देर के बाद सुमितरी उसबुसाय लगल तऽ मंतरियन सब बहियार गा-गा के झारे लगलन ।) (अल॰18:58.6)
249 गरियाना (उ लोग आपस में भुनुर-भुनुर बतिया रहल हल । बस फिन का हल, नाराइन भगत परझो मार-मार के गरियावे लगल, छिया-छिया के घिनौना गारी पारइत कहे लगल कि इ जगह डायन आवल हो ।) (अल॰18:57.31)
250 गरीब-गुरबा (अलगंठवा के माय कोहा में जमल छाली भरल दूध के मथानी से मह के मखन निकाल ले हल आउ कोहा के कोहा मट्ठा गाँव-घर के गरीब-गुरबा के दे दे हल ।) (अल॰12.36.19; 31:101.11)
251 गलमोछी (ओही भीड़ में गलमोछी लपेटले मोहन सिंघ परझोवा मारइत कहलक हल) (अल॰23:73.12; 27:82.11)
252 गलवात (= गलबात) (चारो गोटा बइठ के गलवात करइत गुलर के पेड़ तर होरहा खाहीं रहलन हल कि लपकल-धपकल सुखदेव हाथ में लेके कुछ आवइत देखाइ देलक हल ।) (अल॰29:90.3, 24)
253 गलवात (= गलबात) (चारो गोटा बइठ के गलवात करइत गुलर के पेड़ तर होरहा खाहीं रहलन हल कि लपकल-धपकल सुखदेव हाथ में लेके कुछ आवइत देखाइ देलक हल ।) (अल॰29:90.3, 24; 30:93.27)
254 गला-गोप (मोहन सिंघ आउर जालिम सिंघ के अइसन दंड देवइ कि ओखनी के कहीं पनाह न मिलतइ । सब कुछ लेल अजुरदा हो जात । ओकर चाल-ढाल आउर करतूत पर हम्मर पूरा धेआन हइ । तूँ लोग कहऽ तऽ आज्झे उ लोग के घर से उठा के गला गोप कर दे हिअइ ।) (अल॰25:76.10)
255 गली-कुच्ची (हमरा तोहर नाम से अछरंग लगा-लगा के परझोवा मार-मार के गली-गुच्ची बुले न दे हे ।) (अल॰20:64.15)
256 गाँव-जेवार (गाँव-जेवार के कइ गो लइका-लइकी परीच्छा देवे जइतइ, ओकरे साथ सुमितरी भी जइतइ आउर का ।) (अल॰22:69.20; 23:71.26)
257 गांड़ (~ फटना) (जय संकर, दुसमन के तंग कर । जे हमरा देख के जरे, उ गांड़ फट के मरे । जेकरा हमरा से अदी-बदी, उ चल जाय फलगु नदी ॥) (अल॰8:26.6)
258 गाड़ (~ मारना; ~ धोवे के अकले न होना; ~ मराना) (लावऽ, गांजा हो तऽ मइजऽ हिओ, न तऽ तोहनी रहऽ, हम जा हियो । डेढ़ पहर दिन से कम न वित रहल हे, माथा पर तऽ सूरज आ रहलन हे । गाड़ मारी हम गांजा पीए के । तोहनी अइसन अलागम न न ही ।; ओकरा अप्पन गाड़ धोवे के अकले न हइ आउ डगडरिए करऽ हे ।; बाप तोर गाड़ मरावउ, माय तोर हरनी, हाय-हाय करनी ।) (अल॰8:24.24; 14:42.26; 26:79.18)
259 गारजियन (ओ जी बाबू, तोहके गारजियन गाँव से अइलन हे जे तोहके खोजइत हथ ।; सनिचर के दिन तूँ अप्पन इस्कूल में एगो आमसभा बुलावऽ । ओकरा में इस्कूल के लइका-लइकी के अलावे उ सब के गारजियन के भी रहे के चाही ।; सनिचर के दिन सुबह से ही वसन्तपुर हाई स्कूल में गारजियन लोग जुटे लगते गेलन हल । … बसन्तपुर पंचायत से दोसर पंचायत के लोग अइते गेलन हल ।) (अल॰11.33.8; 30:91.15, 16, 24, 25, 92.30, 95.24, 28, 31)
260 गारत (सुमितरी के लिखल-पढ़ल गारत कर रहलथिन हे बेटा । ओकर फारम भरे के नाम पर आँउ-जाँउ बकऽ हथिन । अनेकन तरह के बखेड़ा खड़ा कर रहलथिन हे ।) (अल॰20:65.20)
261 गारना (अलगंठवा के माय के नजर जब सुमितरी के माय पर पड़ल तऽ अलगंठवा के माय तनी हँसइत बोललक हल - "अहे सुमितरी के माय, कपड़ा गार-गुर के इधर भी अइहऽ । तोहर नइहर के कई लोग भी गंगा नेहाय अइलथुन हे ।") (अल॰6:16.17)
262 गारी (उ लोग आपस में भुनुर-भुनुर बतिया रहल हल । बस फिन का हल, नाराइन भगत परझो मार-मार के गरियावे लगल, छिया-छिया के घिनौना गारी पारइत कहे लगल कि इ जगह डायन आवल हो ।) (अल॰18:58.1)
263 गाल (~ न जिद लगे देना) (खाली अलगंठवा आउर सुमितरी के अछरंग लगा के उड़ौती उड़ा रहलन हे लोग । मुदा सब एकर तरफ आउर सुमितरी के नानी एक तरफ । कोय भी गाल न जिद लगे दे हल । सुमितरी के नानी के टोला-टाटी के अउरत-मरद इ परचार करे में लगल हल कि जब से छउड़ी मलटरी पास कइलकइ तब से ओकर पैर जमीन पर न रहऽ हलइ, धइल न थमा हलइ । रोज-रोज धमधमिया साबुन से नेहा हलइ । काजर-विजर आउर टिकूली साट के गुरोगन के तेल माथा में पोर के, चपोर के, जूरा बाँध के छीट के साड़ी पहिन के चमकाबऽ हलइ, झमकाबऽ हलइ ।) (अल॰32:103.16)
264 गाहे-बेगाहे (तूँ खाना-खुराक जुटा देहु, किताब-कौपी-कपड़ा-लत्ता के भार हमरा ऊपर छोड़ दऽ । गाहे-बगाहे अनाज-पानी भी भेज देवो आउर का ।) (अल॰10.31.26)
265 गियान (= ज्ञान) (सुनऽ ही कातो छउँड़ा पढ़े में बड़ तेज हइ, फिन ओकरा इतनो गियान न हइ कि परसादी निरैठा लावल जा हे । ठीके कहल गेल हे कि नेम न धरम, पहिले चमरवे पाखा ।) (अल॰4:12.4)
266 गिरफदार (= गिरफ्तार) (अलगंठवा दूनों के परनाम-पाती कर के चौकी पर बइठे ला मुसकाइत कहलक हल -"का बात हे भइया, आज दूनो नेता मेरिआ के, गौर-गट्ठा कर के कने अइते गेलऽ हे ।" मोहन सिंघ आउर दिलदार राम दूनों हँसइत कहलन हल -"तोहरे गिरफदार करे अइते गेलियो हे ।") (अल॰17:52.7)
267 गिराँ (= महँगा) (करज-गोमाम से लदल हकइ देहिया, देहु न बकार अब, उधार होबऽ कहिया, लोटा-थारी गिरों हकइ, हकइ न एको गहनमा) (अल॰19:63.10)
268 गिरो-बंदक (घर के अरतन-बरतन तऽ सभे गिरो-बंदक रखा गेलो । कुछ नाम मंतर के खेत-वारी हो ।) (अल॰28:86.8)
269 गुजर-वसर (अलगंठवा के माय के मरे के बाद ओकर घर के लछमी उपहे लगल हल । खेत-पथार जे सब अलगंठवा के इहाँ उ एरिया के लोगन इजारा रखलक हल, सब के सब अप्पन खेत छोड़ा लेलन हल । कुछ खेत जे हल भी ओकरा दूसर लोग बटइया जोतऽ हल । जे मन में आवऽ हल, बाँट-कूट के दे जा हल, ओकरे में अलगंठवा के परिवार गुजर-वसर करऽ हल ।) (अल॰12.35.13)
270 गुदगर (पकल बम्बइया आम सुमितरी के मुँह में सटावइत अलगंठवा कहलक हल -"लऽ, हवक के मारऽ चोभा । तोहरे जइसन गुदगर आउर रसगर आउर सवदगर हो ।") (अल॰29:89.5)
271 गुदगुदी, गुदगुद्दी (~ बरना) (नन्हे के पीरितिया, आधी मिसी रतिया मचावऽ होतइ सोर । बरऽ होतइ गुगुदिया कि फड़कऽ होतइ सुगना आउ सुगनी के ठोर ॥) (अल॰10.32.25)
272 गुन (= गुण) (सांप-बिच्छा नजर-गुजर झारे के अलावे जिन्दा सांप पकड़े के मंतर इयानी गुन से आन्हर अलगंठवा के बाबू ।) (अल॰1:1.17)
273 गुने (इ गुने = इसके कारण) (अल॰3:8.16)
274 गुमसल (कल से गांजा न पीलूँ हे जेकरा से धुआँ ढेकार आ रहल हे । पेटवे गुमसल हे । येक दम लेवे से सब ठीक हो जायत ।) (अल॰8:25.15)
275 गुरुपिंडा (दे॰ गुरुपींडा) (सुमितरी भी अप्पन गाँव के गुरुपिंडा पर पढ़े ला कह रहल हल ।) (अल॰4:9.9)
276 गुरुपींडा (अलगंठवा गुरुपींडा जायके बदले बकरी चरावे आउर संघतिअन के साथ खेले-कूदे में ही बाउर रहऽ हल ।) (अल॰1:3.7, 30, 4.4, 19)
277 गुह (= गूह, मल, विष्ठा) (दोसर एगो अउरत बोलल - "पढ़ले सुगना गुह में डूबऽ हे ।") (अल॰4:12.7)
278 गुहना (= गूँथना) (जब माय सुमितरी के माथा गुह रहऽ हल तऽ सुमितरी कहलक हल - मइया, हमरा नानी घर में लोग गुरुपींडा पर पढ़े जाइ ला कहऽ हल ।) (अल॰5:13.16)
279 गूलर (= गुल्लड़) (पीपर-पाँकड़ वैर आउर गूलर के पोकहा चुन-चुन के कइसे खा हल सुमितरी, लइका-लइकी के साथ कइसे उछल-उछल के पोखर में नेहा हल सुमितरी आउर पानीए में छुआ-छूत खेलऽ हल सुमितरी । आज ओकर आँख में सब कुछ के फोटू देखाय पड़इत हल ।) (अल॰5:13.1)
280 गे (अगे सुमितरी, तोर पीठ में ई काला-काला बाम कउची के हउ गे ? हाय रे बाप, तोरो सितला मइया देखाय दे रहलथुन ह का गे ?) (अल॰5:12.19, 20)
281 गेठरी-मोटरी (कटहिया घाट जुमला पर गाँव के सब लोग एक जगह ~ रख के गंगा जी में नेहाय लगलन ।) (अल॰6:16.5)
282 गेठी (~ जोड़ना) (एसो के लगनिया में जोड़े के हइ गेठिया, चहर-जुआन लेखा घर बइठल बेटिया, एसो होतइ न निवाह तऽ का कहतइ जमनमा ।) (अल॰19:63.14)
283 गोइठा (इसलामपुर से सटले बूढ़ा नगर पड़ऽ हल जहाँ एगो इनार पर जमान-जोग अउरत वरतन गोइठा के बानी से रगड़-रगड़ के मैंज रहल हल ।) (अल॰3:6.8)
284 गोइठा-अमारी (जब घर में चाउर-दाल आ जाय तऽ अलगंठवा के भोजाय गोइठा-अमारी से चूल्हा फूंक-फूंक के सुलगावऽ हलन । बड़ी देर में मेहुदल गोइठा सुलगऽ हल तऽ कहीं जाके अदहन सुनसुना हल ।) (अल॰12.36.29)
285 गोटा (पनघट पर के पनीहारिन दूनो गोटा के लिट्टी आउर अंचार खइते येक टक से देख रहल हल । कुत्ता भी ओजे बैठल हल ।) (अल॰3:6.29; 16:48.13, 30; 17:52.22; 25:75.5; 29:90.3)
286 गोड़ (अलगंठवा येगो नेवारी के आँटी के जौरी बाँट के कुत्ता के गोड़ में बाँध के खिचते-खिचते गाँव के बाहर पैन पर ले जा के रखलक, आउर घर से कुदाल ले जा के भर कमर जमीन खोद के ओकरे में कुत्ता के गाड़ देलक ।) (अल॰2:5.23; 3:7.19; 6:16.8)
287 गोमाम (= गोआम; कर्ज, ऋण) (करज-गोमाम से लदल हकइ देहिया, देहु न बकार अब, उधार होबऽ कहिया, लोटा-थारी गिरों हकइ, हकइ न एको गहनमा) (अल॰19:63.10)
288 गोरइया थान (येक रोज अलगंठवा जइतीपुर बजार से दू घंटा रात विते पर अकेले लउट रहल हल कि गोरइया थान डगर पर झमेठगर इमली आम आउर तार के पेड़ तर भुनभुनाय के आउर धवर-धवर के अवाज सुनाई पड़ल ।) (अल॰27:82.8, 83.2)
289 गोरकी (~ मट्टी) (येगो अधवइस मरद दिसा फिर के हाथ में लोटा आउर ओकरे में गोरकी मिट्टी, कान पर जनेऊ धरके हाथ आउर लोटा मट्टी से मटिआ रहल हल ।) (अल॰3:6.10)
290 गोलकी (= गोलमिर्च) (देख, जे जड़ी दे रहलिउ हे ओकरा में एगो तुलसी जी के पत्ता एगो गोलकी के दाना मिला-मिला के खाली पेट में सुबह पहर हाथ-मुँह धो-धा के खाय पड़तइ ।) (अल॰16:49.12, 13, 14; 18:59.16)
291 गोला-लाट्ठी (वसन्तपुर हाई इस्कूल के चारो ओर कुहराम मचल हल । लइका-लइकी आपा-धापी करइत भाग रहलन हल । गँउआ-गुदाल हो रहल हल कि नक्सलाइट लोग हेडमास्टर के पकड़ के गोला-लाट्ठी देले हइ ।) (अल॰23:71.22, 72.7)
292 गोवार (= गोवारा, ग्वाला) (राजगीर रजवार के, गिरिअक गोवार के, बचल-खुचल जे भूमिहार के ।) (अल॰31:100.24)
293 गोहमन (~ साँप) (येक दिन गनौर सिंघ के नइकी बगीचा में जब गोहमन सांप ओकर पाठी के काट लेलक आउर अलगंठवा के सामने जब पाठी दम तोड़ देलक तऽ अलगंठवा जार-बेजार कई रोज तक रोते रहल, खोजते रहल ।; अरे बाप, गोहमन साँप पर हाथ गेलो भइया । साँपे काटकइ हे ।) (अल॰1:2.24; 18:55.17)
294 गौर-गट्ठा (कतकी पुनिया नेहाय ला अलगंठवा के माय आउ टोला-टाटी के कइ गो अउरत-मरद फतुहा गंगा-असनान करे ला आपस में गौर-गट्ठा करे लगल हल ।; अलगंठवा के माय आउ सुमितरी के माय फतुहा धरमसाला में ठहर के भोरे के गाड़ी पकड़े ला सोच के गौर-गट्ठा कर लेलक हल ।) (अल॰6:14.11, 18.14; 25:75.5)
295 घइला (लाल टुह टुह सुरज, लगे कुम्हार के आवा से पक के घइला निअर देखाई देलक, लगे जइसे कोय पनिहारिन माथा पर अमनिया घइला लेके पनघट पर सले-सले जा रहल हे ।) (अल॰3:6.4, 5; 6:18.12)
296 घरवाली (नन्हकू के घरवाली सत्तू भरल लिट्टी आउर आम के अंचार गमछी के एगो खूटा में बाँध देलक हल ।) (अल॰3:6.5)
297 घीअउड़ा (सत्तू के साथ घीअउड़ा अलगंठवा के बड़ वेस लगऽ हल ।) (अल॰12.36.23)
298 घुकड़ी-मुकड़ी (किसान सबके दूरा-दलान पर नाद में बइल सानी खाके ताकते रहऽ हल । आउर किसान सब हाथ पर हाथ रख के घुकड़ी-मुकड़ी लगा के मन मनझान कर के आपस में गपसप करइत देखाय दे रहलन हल ।) (अल॰15.44.11)
299 घुरना (घुर-घुर के अलगंठवा सुमितरी के माय के देख ले हल ।) (अल॰6:20.20; 19:63.24)
300 घुरियाना (बटेसर कहलक हल -"हाँ बेटी, तूँ ठीके कहऽ हऽ । बेचारा जग्गू ठाकुर के ओहे पांड़े मार देलकइ, दवा खिलइते-खिलइते ।" साड़ी में पेवन्द लगइते सुमितरी के माय कहलक हल -"तइयो तऽ तोहर वान न छूट रहलो हे । न जानी तोहरा कउन चीज पढ़ा के खिला देलको हे उ पांड़े । जब न तब घुरिया-घुरिया के ओकरे भीर जा हऽ । ओकरा अप्पन गाड़ धोवे के अकले न हइ आउ डगडरिए करऽ हे ।") (अल॰14.42.24)
301 घोसना (तू एगो सुमितरी के नाम चिट्ठी दे दऽ । हम ओकरा दे देवइ । उ तोर नाम बराबर घोसते भी रहऽ हो ।) (अल॰6:18.8)
302 चउरी (अलगंठवा के बात सुन के सुखदेव घर दने चल गेल हल आउ ई चारो गोटा भी चउरी पर पर-पैखाना करे ला दखिन रूखे गलवात करइत चल गेलन हल ।) (अल॰29:90.23)
303 चउरी (अलगंठवा के बात सुन के सुखदेव घर दने चल गेल हल आउ ई चारो गोटा भी चउरी पर पर-पैखाना करे ला दखिन रूखे गलवात करइत चल गेलन हल ।) (अल॰29:90.23)
304 चखना (तरबन्ना में एक हथौड़ा ताड़ी लेके रामखेलामन जी विना चखना के पी रहलन हे ।) (अल॰8:23.10)
305 चचा (= चाचा) (माय-भाय आउर चचा सब अलगंठवा से अजीज । रोज-रोज बदमासी, रोज-रोज सिकाइत, रोज-रोज जूता के मार ।) (अल॰1:2.6)
306 चच्चा (= चाचा) (उ जेवार में कोय के अइसन घर न हल जेकरा हीं अलगंठवा के घर के लोटा-थरिया-कठौती-बटलोही बंधिक न होत । माय-चच्चा आउर बाबू जी के मर जाय के वाद अलगंठवा के परिवार में घनघोर अंधेरा छा गेल हल ।) (अल॰12.35.23)
307 चटई (= चटाई) (अलगंठवा अप्पन घर के दखिनवारी भीतर में जमीन पर तार के चटई विछा के सुतल हल । एही बीच सुमितरी सले-सले अलगंठवा के भीतर में घुस गेल हल ।) (अल॰29:88.20, 21)
308 चटकल (= जूट का कारखाना) (पूरे आठ बरिस कलकत्ता गली-गली में टउआय के बाद चटकल में बोरा के सिलाय में नौकरी के जुगाड़ बैठल हल) (अल॰1:1.11)
309 चटकलिया (कलकतिया बाबू, चटकलिया बाबू, आउर अब ओस्ताद जी के नाम से जिला-जेवार में जस-इज्जत-मान-मरिआदा में कोय कमी न ।) (अल॰1:1.15)
310 चताना (गाँव में सूरज पासवान के बड़ी खुसी हो रहल हल काहे कि इस्कूल के नींव चताय से लेकर इस्कूल तइयार होबे तक दिन-रात विन मजदूरी के भूखे-पियासे खटलक हल ।) (अल॰24:73.25; 30:94.19)
311 चनन (= चन्दन) (सोहराय गांजा के विआ चुनइत कहलक -"मंगनी के चनन रगड़बऽ लाला, त लाबऽ न, भर निनार । ओही बात हे इनखर । अइसन हदिआयल जइसन दम मारऽ हका कि एक दम में सब गांजा भसम हो जा हे ।") (अल॰8:25.7)
312 चपोरना (सुमितरी के नानी के टोला-टाटी के अउरत-मरद इ परचार करे में लगल हल कि जब से छउड़ी मलटरी पास कइलकइ तब से ओकर पैर जमीन पर न रहऽ हलइ, धइल न थमा हलइ । रोज-रोज धमधमिया साबुन से नेहा हलइ । काजर-विजर आउर टिकूली साट के गुरोगन के तेल माथा में पोर के, चपोर के, जूरा बाँध के छीट के साड़ी पहिन के चमकाबऽ हलइ, झमकाबऽ हलइ ।) (अल॰32:103.20)
313 चभ-सन (ठहरे नहर में बेंग-बगुला देखाइ पड़ रहल हल । कभी-कभी मछली चभ-सन करऽ हल । जेकरा से पानी में हिलकोरा होवे लगऽ हल ।) (अल॰25:75.9)
314 चमकाना (सुमितरी के नानी के टोला-टाटी के अउरत-मरद इ परचार करे में लगल हल कि जब से छउड़ी मलटरी पास कइलकइ तब से ओकर पैर जमीन पर न रहऽ हलइ, धइल न थमा हलइ । रोज-रोज धमधमिया साबुन से नेहा हलइ । काजर-विजर आउर टिकूली साट के गुरोगन के तेल माथा में पोर के, चपोर के, जूरा बाँध के छीट के साड़ी पहिन के चमकाबऽ हलइ, झमकाबऽ हलइ ।) (अल॰32:103.21)
315 चमरखानी (~ जूता) (साँझ पहर घर आवे पर गँउआ-गुदाल होवे पर अप्पन बड़ भाई के हाथ से चमरखानी जूता से मार खा के थेथर हो गेल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.5; 10:32.17)
316 चमार (सुनऽ ही कातो छउँड़ा पढ़े में बड़ तेज हइ, फिन ओकरा इतनो गियान न हइ कि परसादी निरैठा लावल जा हे । ठीके कहल गेल हे कि नेम न धरम, पहिले चमरवे पाखा ।) (अल॰4:12.6)
317 चमेठगर (= झमेठगर) (अलगंठवा, दिलदार राम, रमेसर आउर रजेसर चारो गोटा कुछ गौर-गट्ठा करे लेल गाँव से दखिन चौरी खंधा में एगो चमेठगर सिरीस के पेड़ तर बैठकी लगइले हल ।) (अल॰25:75.6)
318 चरखानी (~ गमछी) (बटेसर चरखानी गमछी से देह के पसीना पोछ के कमर में खोंसल खैनी-चूना निकाल के खैनी टूंग ही रहल हल कि लोटा में पानी लेके सुमितरी के माय जुम गेल हल ।) (अल॰7:21.10)
319 चरन्नी (= चवन्नी) (कोनिया घर में काठ के पेटी में रखल येकन्नी-दूअन्नी-चरन्नी-अठन्नी चोरा के जैतीपुर में घनसाम हलुआई के दूकान में गाँव के तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के मिठाई खिलावे में दतादानी अलगंठवा ।) (अल॰1:2.8)
320 चहल-जुआन (एसो के लगनिया में जोड़े के हइ गेठिया, चहर-जुआन लेखा घर बइठल बेटिया, एसो होतइ न निवाह तऽ का कहतइ जमनमा ।) (अल॰19:63.15)
321 चाउर (समय आउर परिस्थिति के मुताबिक हम अपने सबसे एलान करऽ ही कि इक्किस बोझा के जगह पर सोलह बोझा, पन्द्रह कट्ठा के जगह बारह कट्ठा धनखेती आउर बिड़ार आउर पक्की तीन सेर चाउर आउर गेहूँ मजदूरी लेवे-देवे के चाही । अभी हमरा जानिस्ते समय के पुकार आउर माँग एही हे ।) (अल॰19:62.8)
322 चान (= चाँद) (चौदस के चान पछिम ओर अकास पर टहटह टहटहा रहल हल ।) (अल॰6:14.19, 18.24, 25)
323 चाननी (मकर ~) (ई लोग मकर चाननी में घर से निकल गेते गेलन हल । नदी पर आवे पर पता चलल हल कि अभी भोर होवे में देर हे । सुमितरी के नाना कहलक हल -"अरे, हमनी मकर चाननी के चक्कर में पड़ गेते गेलऽ ।") (अल॰31:96.26, 28)
324 चान-सुरुज (तोरा तऽ हम पहिले ही असीरवाद देइए देलियो हे कि चान-सुरुज नियन संसार में चमकते रहऽ ।) (अल॰10.30.30)
325 चानी (= चाँदी) (अँगना में छिटकइत चेलवा मछली चानी नियन चमचम चमक रहल हल ।) (अल॰5:14.3; 12:37.16)
326 चास (बटेसर अप्पन खेत के एक चास लगा के सिरिस के पेड़ तर सुस्ता रहलन हल ।) (अल॰7:21.8)
327 चाह (= चाय) (जा तूँ अब घर जाके अन्न-जल से मिलऽ गन । अब हम ठीक हियो । हाँ, घर में चाह बनवा के भेज दऽ इ लोग के लेल ।) (अल॰26:80.22)
328 चिकन (= चिक्कन, चिकना) (सबके बकरी से चिकन मोटा-ताजा अलगंठवा के पाठी हल । परान से भी पिआरी ।) (अल॰1:2.18)
329 चिट्ठी-चपाती (जा इयार, तूँ गाँव जा हऽ, तऽ हमनी के एकदमे भूल जा हऽ । अरे कम से कम चिट्ठी-चपाती तऽ भी भेजे के चाही ।) (अल॰28:86.22)
330 चिड़ँई-चुरगुन (राते रात भर अलगंठवा के तनिको आँख न लगल हल । कई वेर पेसाब करे ला उठल हल । अकास में तरगन आउर बसबेड़ी में चिड़ँई-चुरगुन के अवाज से अपने आपके भोरा रहल हल ।) (अल॰21:66.13)
331 चिताने (एने सुमितरी, अलगंठवा के दलान पर अइते-अइते बेहोस होके चिताने गिर गेल हल ।) (अल॰18:54.24; 26:77.22)
332 चिन्हा (सुमितरी के वेहोस पड़ल देखइत कुछ लोग कह रहलन हल कि हो सकऽ हइ कि फरका आबइ । मुदा बायाँ गोड़ में खून के दाग आउर साँप के धार जइसन चिन्हा पड़ल हल । इतने में कारू चौधरी, जमुना राम के देखइत कहलक हल -"ए जमुना भाय, पहिले हथवा चला के देखऽ कि सचो के साँप काटकइ हे कि फरका अइलइ हे ।") (अल॰18:55.2)
333 चिरइ-चिरगुनी (पेड़ पर चिरइ-चिरगुनी बोल रहलो हे ।) (अल॰9:28.27)
334 चिरइ-चुगुन (गाँव के चारों ओर हर तरह के पेड़-बगान हे । ई गुने वारहो मास हरिअर कचूर लउकइत रहऽ हे, हर तरह के चिरइ-चुगुन चह चहइते रहऽ हे ।) (अल॰8:23.1)
335 चिरई-चिरगुन (नगपाँचे नकचिया रहल हल । टाल-बधार में अमदी के जगह पर चिरई-चिरगुन, सियार-बिलार के चहल-पहल आउर सोर-गुल होबइत रहऽ हल ।) (अल॰15.44.9)
336 चिरई-चिरगुनी (पेड़ पर के चिरई-चिरगुनी अप्पन-अप्पन अवाज में बोले लगल हल ।) (अल॰27:82.10)
337 चिरांड़ी (तीनो जलवार नदी पर पहुँच के दिसा-मइदान करे ला बइठ गेलन हल । ठाहरे चिरांड़ी हल ।) (अल॰21:66.24)
338 चुकोमुको (~ बइठना) (एही बीच रजेसर नजदीक आवइत चुकोमुको बइठइत कहलक हल -"उ लोग के जाति इ इलाके के विधायक हइ ।..") (अल॰25:75.18)
339 चुचकारना (अलगंठवा ओकर देह पर हाथ फेर के चुचकारऽ हल ।) (अल॰1:2.23)
340 चुटकिआना (सुमितरी के गोल गाल सले से सहलावइत आउर चुटकिआवइत मुसकइत अलगंठवा कहलक हल) (अल॰22:70.12)
341 चुनाव-उनाव (अरे इयार, नेतागिरी के लत तऽ तोरा कौलेजे से लगल हलो । ठीक हो, चुनाव-उनाव लड़के अनिस्टर-मनिस्टर हो जा ।) (अल॰28:86.26)
342 चुनियाना (सत्तू खाके इतमिनान से बइठ के खैनी चुनियाबइत सुमितरी के मलारइत बटेसर कहलक हल) (अल॰14.42.29)
343 चुल्हा (= चूल्हा) (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.11)
344 चूका (= चुक्का) (रघुनाथ बोल पड़ल कि कहनी में का झूठ हे खेलामन भाय - अनकर चूका अनकर घी, पाँड़े के बाप के लगल की ।) (अल॰8:25.4)
345 चूड़ा (अलगंठवा झोला में नयका धान के अरबा चूड़ा आउर नयका गुड़ कंधा में टांग के सबसे अगाड़िए जाय ला तइयार हो गेल हल ।) (अल॰6:14.22)
346 चेलवा (= चेलहा) (अँगना में छिटकइत चेलवा मछली चानी नियन चमचम चमक रहल हल ।) (अल॰5:14.3)
347 चेलहा (चेलहवा मछली देख के सुमितरी के माय पूछलक हल - आज्झ कने जतरा बनलो कि मछली ले अइलऽ ।) (अल॰5:13.29)
348 चेला-चुटरी (उहें एगो बंगाली नट से मन्तर सिख के अगम-अपार बंगाल के सिध कलकत्ता से गाँव तक चेला-चुटरी के भरमार ।) (अल॰1:1.13)
349 चेहरा-मोहरा (अलगंठवा के नजर जब सुमितरी पर पड़ल तऽ ओकर उदास चेहरा-मोहरा देख के तनी मुस्कइत पूछलक हल ।) (अल॰20:64.8)
350 चेहाना (सुमितरी के माय के रोग के बात सुनके चेहाइत अलगंठवा के माय पूछलक - आँय, उनखा कउन बीमारी होलइ हे । देखे में तऽ तनदुरूस्त हलथुन ?) (अल॰6:17.6)
351 चोखा (घर पहुँचे पर सुमितरी अप्पन बाबू जी के खिचड़ी चोखा आउर मट्ठा खाय ला परोसे जा ही रहल हल कि ओकर माय कहलक हल ..) (अल॰7:21.28)
352 चोटाना (हम सबके पूरा चौकस रहे के चाही । काहे कि साँप अभी मरल न हे । चोटावल गेल हे । चोटावल साँप अभी आउर बिखिया के बौड़ा जाहे ।) (अल॰25:77.4)
353 चोभा (पकल बम्बइया आम सुमितरी के मुँह में सटावइत अलगंठवा कहलक हल -"लऽ, हवक के मारऽ चोभा । तोहरे जइसन गुदगर आउर रसगर आउर सवदगर हो ।") (अल॰29:89.5, 6, 7)
354 चोर-लूचंगा (इ हाई इस्कूल गूंडा चोर-लूचंगा के अड्डा बन गेल हे ।) (अल॰23:72.12)
355 चोराना (= चुराना) (येकर अलावे अगिया बैताल हल अलगंठवा, लड़का-लड़की के साथ लुका-छिपी आउर विआह-विआह खेले में अप्पन माय के किया से सेनूर चोरा के कोय लड़की के माँग में घिस देवे में बदनाम अलगंठवा।) (अल॰1:2.4, 9)
356 चौंका-पानी (सुमितरी चिट्ठी लिख के चौंका-पानीकर रहल हल तऽ ओकर माय कहलक हल) (अल॰9:29.8)
357 चौकस (हम सबके पूरा चौकस रहे के चाही । काहे कि साँप अभी मरल न हे । चोटावल गेल हे । चोटावल साँप अभी आउर बिखिया के बौड़ा जाहे ।) (अल॰25:77.3)
358 चौकियाना (चलऽ, तूँ बैलवा-भैंसवा हाँकले चलऽ । हम हर-पालो लेके आवइत हियो । हब कल एगो चास आउर करके गेहुँ बुन के चौकिया देवइ ।) (अल॰7:21.24)
359 चौकीदार (चौकीदार आउर दफादार के अलगंठवा कहलक हल -"अपने लोग थाना जाके इतलाय कर द गन ।") (अल॰27:84.2, 3)
360 चौन-भौन (बाप रे, केता अछा से चिट्ठी लिखको हे । सुमितरी तोहर परेम में चौन-भौन हो रहलो हे ।) (अल॰10.32.22)
361 छइते (नन्हकू येक घंटा रात छइते ही सुमितरी के लेके घर से बहरा गेल हल । काहे कि गरमी के दिन हल । ) (अल॰3:5.29; 6:14.18)
362 छपाक-सन (इतने में पानी में छपाक-सन के अवाज होल । जेकर अवाज सुन के रमेसर कहलक हल -"अरे बाप, भूतवा छपाक-सन कइलको, चलऽ हटऽ इहाँ से । इहाँ दिन-दहाड़े भूत कूदते रहऽ हइ ।") (अल॰21:67.1, 2)
363 छरविन्दा (= छरबिन्हा) (फिन सब मिलके दोख उतारे के मन्तर पढ़ के झारे लगलन -"बिच्छुक नन्दा, बिच्छुक नन्दा, हाय छरविन्दा हाय-हाय । बाप तोर गाड़ मरावउ, माय तोर हरनी, हाय-हाय करनी । सुखल काठ नोक पर धावा, दोख-विख नेह पर उतारूँ, सत् गुरु के बन्दे पाँव ।") (अल॰26:79.17)
364 छहुरा (= छाया) (नाना, तनी छहुरवा में सुस्ता ल, बड़ी गरमी लग रहल हे आउ गोड़ भी जर रहल हे ।) (अल॰3:7.18; 29:88.19)
365 छाली (~ भरल दही) (अलगंठवा चार बजे भोर के ही पढ़े ला रोज उठ जा हल । फिन फरिच्छ होवे पर नेहा-धो के छाली भरल दही आउर रोटी खाके इस्कूल चल जा हल ।) (अल॰4:8.34)
366 छिछियाना, छिछिअइते चलना (गांजा पिये ला एने ओने छिछिअइते चलऽ हका । मुदा आज्झ तक अप्पन ओर से कभी भी एको चिलिम गांजा पीलावे के रोजी न भेलइ ।) (अल॰8:25.5)
367 छिनरपत (सरधालू भगत लोग खूब ठगा हथ । चोरी-चमारी आउर छिनरपत भी कम न होबऽ हे ।) (अल॰31:95.26)
368 छिया-छिया (~ के गारी देना/ पारना) (उ लोग आपस में भुनुर-भुनुर बतिया रहल हल । बस फिन का हल, नाराइन भगत परझो मार-मार के गरियावे लगल, छिया-छिया के घिनौना गारी पारइत कहे लगल कि इ जगह डायन आवल हो ।) (अल॰18:57.31; 24:74.19)
369 छुहाड़ा (= छोहाड़ा) (फिन का हल, अलगंठवा डगर में आके, एगो पेड़ पर चढ़ के थोड़ा गड़ी, छुहाड़ा थोड़ा किसमिस आउर एकक गो केला-नारंगी, अमरुद लेके खाय लगल ।) (अल॰4:11.16)
370 छूछी (नानी एक दिन सोनरवा से छेदा के एगो नाक में छूछी पेन्हा देलक हे ।) (अल॰13.39.22, 23)
371 छूछे (छूछे गंवार गांव के रहे वाला अलगंठवा पटना आउर पटना कौलेज के चहल-पहल देख के चौंधिया गेल हल ।) (अल॰11.32.29)
372 छूछे-रूखे (रोज-रोज अलगंठवा के दूरा-दलान पर आवल-गेल पहिले के ही तरह ही खइते-पीते रहऽ हल । चाहे अलगंठवा के परिवार अपने छूछे-रूखे, अधपेटे खा के काहे न रह जाय ।) (अल॰12.37.11)
373 छेवाठना (सूरज पासवान हेडमास्टर आउर जालिम सिंघ से ओजी लेवे ला दाव-घात लगइले हल । कई वेर उ चाहलक हल कि जालिम सिंघ के छेवाठ के ओकरा जलवार नदी में जला दे, मुदा कोय के समझावे बुझावे पर अप्पन गुस्सा पी जा हल ।) (अल॰24:74.6)
374 छोट (= छोटा) (गंगा-गजाधर सेवे के बाद दो भाई में अप्पन माय-बाप के सबसे छोट बेटा हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.19)
375 छोटका ("अलगंठवा भी पढ़ऽ हो न भउजी ?" "हाँ, पढ़ऽ हो, इ बरिस मैट्रीक पास करतो ।" चेहायत सुमितरी के माय कहलक हल - "आँय, बबुआ मलट्री में पढ़ऽ हो ? बाह, इ लइका बड़ होनहार होतो भउजी । एही सबसे छोटका न हथुन ?" "हाँ, बड़का तऽ बाबू जी के साथ कलकत्ते में रहऽ हे ।") (अल॰6:17.23; 12:35.25)
376 छोटकी माय (हमरा तरफ चेचक के बहुत सिकाइत हइ, अपन टोला में कई लोगन के छोटकी माय देखाय देलथिन हे ।) (अल॰3:8.17)
377 छो-पांच (~ करना) (सुमितरी के लिखल चिट्ठी सुरेन्द्र के दुआरा पाके आउर पढ़के अलगंठवा छो-पांच करे लगल हल । ओकरा लगे लगल हल कि सुमितरी के आउर ओकर परिवार के मोह-जाल में फंसे के भय हो रहल हल ।) (अल॰16.46.5)
378 छोहाड़ा (= छुहाड़ा) (हिदायत कर देल गेल हल कि परसादी के समान लेके पेसाव-पैखाना न करे के आउर न जुठखुटार होवे के चाही । बड़ी नियम-धरम से परसादी इयानी गड़ी-छोहाड़ा-किसमिस-केला-अमरुद-नारंगी परसादी लइहऽ ।) (अल॰4:11.3; 12:36.21)
379 छौना (साँप-साँप गोहमन साँप जहाँ विआय बहत्तर छौना) (अल॰18:56.24)
380 जउर-साथ (उहाँ सुमितरी अकेले परीच्छा देवे जइतइ । जउर-साथ तोहूँ जइतु हल ।) (अल॰22:69.17; 32:103.14)
381 जउरी-पगहा (नानी आउ भइया के अवाज सुन के सुमितरी आउर अलगंठवा जे जउरी-पगहा जइसन आपस में सटल हल, एक दूसर से हड़बड़ाइत अलग होइत धीरे-धीरे दूनो दू दने सोझिया गेल हल ।) (अल॰13.41.13; 16:51.17)
382 जउरे-साथे (दू घंटा रात छइते ही इसलामपुर रेलगाड़ी पकड़े ला लोग जउरे-साथे निकल गेलन हल ।) (अल॰6:14.18; 31:101.28)
383 जखनी (= जब, जिस क्षण) (जखनी रमाइन रेघा के पढ़ऽ हइ तखनी सुनताहर के हम्मर घर में भीड़ हो जा हइ ।) (अल॰10.32.3)
384 जगउनी (गाँव के उतरवारी टोला में तऽ आउर न कान देल जा हल । मोहन सिंघ, जालिम सिंघ के परिवार थरिया बजा-बजा के जगउनी गीत गावऽ हलन ।) (अल॰32:103.26)
385 जजमनका (~ पूजाना) (तू तऽ बंडा हऽ, हमरा तऽ आठ गो बाल-बचा भी हे । उ लोगन हब खेते-खेत भीखे मांगत न । पढ़ल-गुनल भी न हे कि जजमनका पूजावत ।) (अल॰8:24.16)
386 जजमान (ए जजमान, हमरा हीं गांजा एकदमे ओरिया गेलो हे । सुनलियो हे कि तोहरा हीं भगलपुरिया गांजा हो । लावऽ न, येक चिलिम हो जाय ।) (अल॰8:24.27; 29:90.1)
387 जजात (गाँव के जजात आउर घर के अनाज चोरा के अप्पन पाठी के खिलावे में दिन-रात लउलिन रहऽ हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.19)
388 जट्ठा (= जटा) (साधु बाबा अप्पन लमहर-लमहर झुलइत जट्ठा पर हाथ फेरइत कहलन हल - हरे न रे, इ सब बाबा दिगमरी भोलानाथ, सिधनाथ के किरपा तोरा पर हउ रे बेटा ।) (अल॰16:49.4)
389 जड़गर (चिट्ठी सुने के वाद कंघाय बोल पड़ल हल कि तोहनी दूनों के पीरितिया अब जमान आउर जड़गर हो रहलो हे ।) (अल॰10.32.13)
390 जतरा (~ बनना) (चेलहवा मछली देख के सुमितरी के माय पूछलक हल - आज्झ कने जतरा बनलो कि मछली ले अइलऽ ।) (अल॰5:13.30)
391 जने जने .... ओने ओने (अल॰31:99.20)
392 जपान (= जापान) (इहाँ पहाड़ पर सांति अस्तूप, जपानी मंदिल जपान सरकार के सहजोग से बनल हे ।) (अल॰31:101.2)
393 जपानी (= जापानी) (इहाँ पहाड़ पर सांति अस्तूप, जपानी मंदिल जपान सरकार के सहजोग से बनल हे ।) (अल॰31:101.1)
394 जमाइत (आज वसन्तपुर तरन्ना में अगहनी ताड़ी पीए ला रामखेलामन महतो के जमाइत जुटलन हल । रामखेलामन महतो बड़गो पिआंक हथ । अप्पन मरुसी अट्ठारह विघा खेत ताड़ी-दारु-गांजा-भांग में ताप गेलन हे ।) (अल॰8:23.7, 11)
395 जमान (चिट्ठी सुने के वाद कंघाय बोल पड़ल हल कि तोहनी दूनों के पीरितिया अब जमान आउर जड़गर हो रहलो हे ।; जमान होइत सुमितरी के अब भान होवे लगल हल कि जमानी केता लोहराइन आउर फोकराइन होबऽ हे ।) (अल॰10.32.12; 18:54.11)
396 जमान-जोग (इसलामपुर से सटले बूढ़ा नगर पड़ऽ हल जहाँ एगो इनार पर जमान-जोग अउरत वरतन गोइठा के बानी से रगड़-रगड़ के मैंज रहल हल ।) (अल॰3:6.7)
397 जमानी (= जवानी) (जमान होइत सुमितरी के अब भान होवे लगल हल कि जमानी केता लोहराइन आउर फोकराइन होबऽ हे ।) (अल॰18:54.11)
398 जरना (= जलना) (नाना, तनी छहुरवा में सुस्ता ल, बड़ी गरमी लग रहल हे आउ गोड़ भी जर रहल हे ।) (अल॰3:7.19; 27:83.18)
399 जरांठी (येगो अधवइस अउरत जरांठी से अप्पन तरजनी अंगुरी से दाँत रगड़ रहल हल ।) (अल॰3:6.13)
400 जराना (= जलाना) (इमलिया घाट से कटहिया घाट लउक रहल हल । जहाँ माय के साथ कतकी अस्नान करके कुरचऽ हल । आउ आज्झ ओही माय के एही फतुहा में जरा रहल हल । जीमन-मउअत के कुछ कहल न जा सकऽ हे ।) (अल॰11.34.26, 35.6)
401 जलमना (कोय-कोय खेत में सरसो जलम के विता भर के हो गेल हल ।) (अल॰7:20.30)
402 जस-इज्जत-मान-मरिआदा (कलकतिया बाबू, चटकलिया बाबू, आउर अब ओस्ताद जी के नाम से जिला-जेवार में जस-इज्जत-मान-मरिआदा में कोय कमी न ।) (अल॰1:1.16)
403 जहिना (अरे बाप, जहिना से उ वसन्तपुर हाई इस्कूल में आवल हे, तहिना से उ गाँव-गाँव में लड़वा-लड़वा के पटिसन करवा रहल हे ।) (अल॰21:67.26)
404 जात-भाय (हाँ बेटा, तोहरे कहे पर सुमितरी के पढ़ावे के बीड़ा उठइली हल । तोहरे मदद से ही इ पढ़-लिख भी रहल हे । मुदा हेडमास्टर मुदेखली कर रहलथिन हे । अप्पन जात-भाय के लइका-लइकी सब के कबे फारम भरा के पुंगा देलथिन आउर हमनी सबके साथ रेढ़ कर रहलथिन हे ।) (अल॰20:65.29)
405 जानिस्ते (समय आउर परिस्थिति के मुताबिक हम अपने सबसे एलान करऽ ही कि इक्किस बोझा के जगह पर सोलह बोझा, पन्द्रह कट्ठा के जगह बारह कट्ठा धनखेती आउर बिड़ार आउर पक्की तीन सेर चाउर आउर गेहूँ मजदूरी लेवे-देवे के चाही । अभी हमरा जानिस्ते समय के पुकार आउर माँग एही हे ।) (अल॰19:62.9)
406 जिकिर (= जिक्र) (नन्हकू येक घंटा रात छइते ही सुमितरी के लेके घर से बहरा गेल हल । काहे कि गरमी के दिन हल । येकर अलावे फरिछ होवे पर फिन टोला-टाटी के लोग सुमितरी आउर अलगंठवा के बात के जिकिर आउर छेड़-छाड़ देत हल ।) (अल॰3:5.31)
407 जिनगी-मउअत (हाँ भउजी, जिनगी-मउअत के कउन भरोसा हे । ओकर बाबू के भी रोगे-बलाय लगल रहऽ हइ ।) (अल॰6:17.4)
408 जिन्नगी (= जिनगी, जिन्दगी) (हम्मर जिन्नगी में हम्मर कोय बेटा दूसर के गुलामी न करत ।) (अल॰12.36.1, 10; 31:102.29)
409 जिला-जेवार (कलकतिया बाबू, चटकलिया बाबू, आउर अब ओस्ताद जी के नाम से जिला-जेवार में जस-इज्जत-मान-मरिआदा में कोय कमी न ।; इ जिला-जेवार में अलगंठवा अप्पन नाम कइले हका ।) (अल॰1:1.16; 10.30.27; 15:45.10, 17; 21:67.23; 30:92.9, 93.3)
410 जिलेवी (= जलेबी) (फिन अलगंठवा के माय एगो तसतरी में जिलेवी देइत कहलक हल) (अल॰10.30.23, 24)
411 जीता-जिन्नगी (अलगंठवा के घर में माय के जीता-जिन्नगी में पीतल के वरतन में ही भोजन बनऽ हल । मुदा अब अलमुनिया के तसला में भोजन बने लगल हल ।) (अल॰12.37.2; 28:85.28; 31:96.1)
412 जीते-जिन्नगी (जदि बड़का भाय के नौकरी माय-बाप के जीते-जिन्नगी लग जइतइ हल तऽ आज्झ घर के इ हालत न होतइ हल ।) (अल॰12.36.10)
413 जीभियाना (कुछ लोग कुंआ से हट के दतमन से दाँत रगड़ रहलन हल । तऽ कुछ लोग दतमन के बीच से फाड़ के जीभ के जीभिया रहलन हल ।) (अल॰3:6.13)
414 जीमन (= जीवन) (अलगंठवा अब तक जीमन में दू बार खूब रोबल हल, कानल हल, अप्पन माय के मरे के बाद आउर दूसर भूरी पाठी मरे के बाद ।) (अल॰1:2.27; 6:19.20; 11:32.27)
415 जीमन-मउअत (इमलिया घाट से कटहिया घाट लउक रहल हल । जहाँ माय के साथ कतकी अस्नान करके कुरचऽ हल । आउ आज्झ ओही माय के एही फतुहा में जरा रहल हल । जीमन-मउअत के कुछ कहल न जा सकऽ हे ।) (अल॰11.34.26)
416 जीमन-मौत (अलगंठवा अमदी के जीमन-मौत के वारे में सोंच ही रहल हल कि होस्टल के चपरासी हबीब मियाँ गंगा घाट पर धेआन मगन अलगंठवा के भंग करइत कहलक हल) (अल॰11.33.5)
417 जीलेबी (= जलेबी) (ओकर बाद नाना-नतनी इसलामपुर बजार में दुरगाथान जाके एगो हलुआइ के दुकान पर जाके सौगात में सिनरी के रूप में पाभर बतासा खरीदलक आउर सुमितरी ला गरम-गरम जीलेबी ।) (अल॰3:7.9)
418 जुठखुटार (= जुठकुठार) (हिदायत कर देल गेल हल कि परसादी के समान लेके पेसाव-पैखाना न करे के आउर न जुठखुटार होवे के चाही । बड़ी नियम-धरम से परसादी इयानी गड़ी-छोहाड़ा-किसमिस-केला-अमरुद-नारंगी परसादी लइहऽ ।) (अल॰4:11.2)
419 जुठाना (गाँव के लोग नेहा धो के एक ठंइया खाय लगलन हल । मुदा अलगंठवा के माय आज्झ अनुनिया कइले हल । ई गुने उ फलहार के नाम पर परहवा केला जे फतुहा में खूब बिकऽ हे, ओकरे से अप्पन मुंह जुठइलक ।) (अल॰6:16.11)
420 जुमना, जुम जाना (इस्कूल पहुँचते ही सनिचरा गुरु जी के दे देलक हल आउ सब लड़कन के साथ गोबर-मिट्टी से इस्कूल निपे में लग गेल हल । काहे कि हर सनिचर के दिन इस्कूल निपा हल । इस्कूल निपा ही रहल हल कि साइकिल पर इस्कूल इंस्पेक्टर इस्कूल में जुम गेल हल ।; एही बीच सुमितरी आउर ओकर नाना नन्हकू ऊपर छत पर जुम गेते गेलन हल ।) (अल॰4:9.16; 6:16.4; 7:21.12; 22:69.14)
421 जुरा (= जूरा) (सुमितरी नेहा-धो के घर आयल हल तऽ ओकर माय गड़ी के तेल से मालिस कर देलक हल । आउर कंघी से माथा झार के जुरा बाँध देलक हल । कजरौटी से काजल भी लगा देलक हल ।) (अल॰5:13.11)
422 जूठकठार (= जूठकुठार; दे॰ जुठखुटार) (भला सुनऽ तो, ओकरा भगमानों से डर-भय न लगऽ हई । बाप रे, भगमान के परसदिया जूठकठार कर देकइ, गजब के लइका हइ ई भाय ।) (अल॰4:12.9-10)
423 जूरा (सुमितरी के नानी के टोला-टाटी के अउरत-मरद इ परचार करे में लगल हल कि जब से छउड़ी मलटरी पास कइलकइ तब से ओकर पैर जमीन पर न रहऽ हलइ, धइल न थमा हलइ । रोज-रोज धमधमिया साबुन से नेहा हलइ । काजर-विजर आउर टिकूली साट के गुरोगन के तेल माथा में पोर के, चपोर के, जूरा बाँध के छीट के साड़ी पहिन के चमकाबऽ हलइ, झमकाबऽ हलइ ।) (अल॰32:103.20)
424 जेभी (रघुनाथ अप्पन जेभी से दू गो वीड़ी निकाल के फक-सन्न सलाइ जला के वीड़ी सुलगा के एगो वीड़ी रामखेलामन के ओर बढ़ावइत आउर एगो बीड़ी अप्पन मुंह में दवाबइत कहलक हल) (अल॰8:23.22)
425 जेवार (उ जेवार में कोय के अइसन घर न हल जेकरा हीं अलगंठवा के घर के लोटा-थरिया-कठौती-बटलोही बंधिक न होत । माय-चच्चा आउर बाबू जी के मर जाय के वाद अलगंठवा के परिवार में घनघोर अंधेरा छा गेल हल ।) (अल॰12.35.21; 17:52.13)
426 जोग्ग (= योग्य) (उ इस्कूल के हेडमास्टर भी जोग्ग-जोग्ग हलन ।) (अल॰22:69.28)
427 जोजना (अलगंठवा बहुत आगे-पीछे सोंच के बाद दिलदार राम, रजेसर आउर रमेसर के भी जउर-साथ लेके राजगीर जाय के मने मन जोजना वनावइत कहलक हल -"ठीक हे, तूँ लोग जाके तइयारी करऽ गन ।") (अल॰31:96.17)
428 जोट्टा (अरार पर पीपल, बर आउर ताड़ के पेड़ एक साथ जोट्टा हो के बड़ी दूर में फैलल हल ।) (अल॰21:66.28)
429 जोड़ (= जोर) (सुमितरी सीऽऽऽसीऽऽऽ करइत कहलक हल - "एता जोड़ से नाक अंइठ देलऽ कि लहरे लगल । छोड़ऽ, अब हम जाही ।") (अल॰13.40.27)
430 जोड़ापारी (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.25)
431 जोड़ी (राम मिलावल ~) (अरे, हमनि दूनो तऽ राम मिलावल जोड़ी, येक अंधा येक कोढ़ी हइए हऽ । हम ताड़ी के चलते अट्ठारह विघा फुक देली तऽ तूँ गांजा के चलते नौ विघा । गांजा के चिलिम पर गुल बना के सोंट गेलऽ ।) (अल॰8:24.12)
432 जोहियाना (बाहर से बदमास सब के जुटा के गोली-बन्दूक भी जोहिया रहलो हे ।) (अल॰25:75.15)
433 जौरी (~ बाँटना) (अलगंठवा येगो नेवारी के आँटी के जौरी बाँट के कुत्ता के गोड़ में बाँध के खिचते-खिचते गाँव के बाहर पैन पर ले जा के रखलक, आउर घर से कुदाल ले जा के भर कमर जमीन खोद के ओकरे में कुत्ता के गाड़ देलक ।) (अल॰2:5.22)
434 जौरी (= जउरी, रज्जु) (बटेसर के बात सुन के माय-बेटी हाथ में नेवारी के जउरी लेके खेत दने सोझिया गेल हल ।) (अल॰9:29.20)
435 झंगरी (हमनी तीनो आ रहलियो हल । मुदा नइकी वगीचवा में तेतर तिवारी मिल गेलक । कने से तऽ एक पांजा गदरल बूँट के झंगरी ले के होरहा बना रहलथुन हे । ओही लोग तोहरा बुलावे ला हमरा कहलथुन हे।) (अल॰29:89.23)
436 झकझकाना (चौदस के चान पछिम ओर अकास पर टहटह टहटहा रहल हल । जेकरा से बाग बगीचा झकझका रहल हल ।) (अल॰6:14.20)
437 झट-सन (अलगंठवा झट अप्पन दहिना गोड़ से बायाँ तरफ कदम करइत झट-सन दहिना हाथ लफा के ओकर तनल लाठी छिनइत बायाँ हाथ से कसल मुक्का ओकर नाक पर जड़इत दहिना गोड़ से ओकर अड़कोसा में कस के मारलक हल ।) (अल॰27:82.23)
438 झनकाना (पउँया-पार्टी रंग के चपल पहिन के, कान में कनौसी आउर नाक में नकवेसर पहिन के झनकावऽ हलइ । दिन-रात अलगंठवा के साथ कोनिया घर में कोहवर रचावऽ हलइ । कोय-कोय कह हल कि "घोड़वा-घोड़िया राजी तऽ का करे गाँव के काजी ।") (अल॰32:103.22)
439 झमकाना (सुमितरी के नानी के टोला-टाटी के अउरत-मरद इ परचार करे में लगल हल कि जब से छउड़ी मलटरी पास कइलकइ तब से ओकर पैर जमीन पर न रहऽ हलइ, धइल न थमा हलइ । रोज-रोज धमधमिया साबुन से नेहा हलइ । काजर-विजर आउर टिकूली साट के गुरोगन के तेल माथा में पोर के, चपोर के, जूरा बाँध के छीट के साड़ी पहिन के चमकाबऽ हलइ, झमकाबऽ हलइ ।) (अल॰32:103.21)
440 झमाना (इ अनचके के मार से झमाइत आउर चिल्लाइत धम-सन जमीन पर गिर गेल हल ।) (अल॰27:82.26)
441 झमेठगर (कुंइआ से ठउरे येगो झमेठगर बेल के पेड़ हल । ... नन्हकू ओही झमेठगर बेल के पेड़ पर सुमितरी के बइठा के मुंह धोवे लगल हल ।) (अल॰3:6.16, 18; 5:12.30)
442 झरइया (फिन सुमितरी के झरइया करे लगलन । सुमितरी से तनी हट के अलगंठवा उदास-मनझान बइठ के एक टक से सुमितरी के तरफ देखइत हल । साँप झारे के मन्तर से देउथान गूँज रहल हल ।) (अल॰18:56.15)
443 झरताहर (सब लोग जमुना राम, गनौर पासमान, चमारी माली, कारू चौधरी आउर नाराइन भगत के खोजे लगला । काहे कि उ लोग झरताहर हथ । उ लोग साँप-विच्छा-कुत्ता आउर सियार के काटे पर मन्तर से झारऽ हथ ।; झारते-झारते झरताहर सब पसीने-पसीने हो गेलन हल । मुदा सुमितरी के ठीक होवे के आसा पर पानी फिर रहल हल ।) (अल॰18:54.27, 30, 55.7, 57.25; 26:77.23)
444 झलझल (~ करना) (अल॰29:88.27)
445 झलमलाना (गाँव के धुर-जानवर भी खंदा में घर देने लौट रहल हल । सूरज भी डूबे ला झलमला रहल हल ।) (अल॰29:90.27)
446 झलमलाना (गाँव के धुर-जानवर भी खंदा में घर देने लौट रहल हल । सूरज भी डूबे ला झलमला रहल हल ।) (अल॰29:90.27)
447 झांकना (= ढँकना, झाँपना) (उ जमाना में विनोबा जी गाँव-गाँव घूम के परवचन दे हलन कि पैखाना गाँव के बाहर फिरे तऽ सावा वित्ता जमीन खत के ओकरे में पैखाना करके मिट्टी से झांक देवे के चाही । जेकरा से गन्दगी भी न होयत आउर पैखाना खाद के काम आवत ।) (अल॰2:5.10)
448 झाड़ा (~ फिरना) (टोला-टाटी के अउरत के साथ सुमितरी टट्टी करे ला गाँव से दछिन पइन पर पहुँच के दू-दू हाथ के दूरी पर बैठ के खिस्सा-गलवात करइत झाड़ा फिरे लगल हल ।) (अल॰18:53.27)
449 झामा (आवऽ, अब झामा से तलवार पजाबऽ, दुसमन तोहर गाँव में, पहले ओकरा पार लगाबऽ । पाछ-पाछ के खूनगर देह पर नमक रगड़ के धिकल गज से ओकरा बेड़ा पार लगाबऽ ॥) (अल॰21:68.19)
450 झारना (नजर-गुजर ~) (सांप-बिच्छा नजर-गुजर झारे के अलावे जिन्दा सांप पकड़े के मंतर इयानी गुन से आन्हर अलगंठवा के बाबू ।; उ लोग साँप-विच्छा-कुत्ता आउर सियार के काटे पर मन्तर से झारऽ हथ ।; झारते-झारते झरताहर सब पसीने-पसीने हो गेलन हल । मुदा सुमितरी के ठीक होवे के आसा पर पानी फिर रहल हल ।) (अल॰1:1.17; 18:54.28, 57.25; 26:77.28)
451 झारना (माथा ~) (सुमितरी नेहा-धो के घर आयल हल तऽ ओकर माय गड़ी के तेल से मालिस कर देलक हल । आउर कंघी से माथा झार के जुरा बाँध देलक हल । कजरौटी से काजल भी लगा देलक हल ।) (अल॰5:13.11)
452 झिटकी (फिन सुमितरी झिटकी से सुपती के मैल छुड़ा-छुड़ा के नेहाय लगल हल ।; जमुना राम पुरब रूखे मुँह कर के हाथ में एगो झिटकी लेके जमीन पर डिंडार पार के ओकरे पर हाथ चला के मन्तर पढ़े लगल) (अल॰5:12.23; 18:55.6)
453 झुनझुनी (= झुनझुन्नी) (उ घर में रखल जड़ी-बुटी लोड़ी-पाटी पर पीस के पिलावे के काम भी करते रहल । आउर झार-फूंक भी चलते रहल । करीब दू-तीन घंटा में अलगंठवा के झुनझुनी बुझाय लगल । झुनझुनी आवे के बाद लोग के जी में जी आयल हल ।) (अल॰26:80.3, 81.19)
454 झूठा (= जूठा) (झूठा थरिया उठावइत सुमितरी कहलक हल ।) (अल॰9:28.8)
455 टउँच (अलगंठवा के भतीजा टउँच जलाके देखलक तऽ देखऽ हे कि ओकर नाक से हर-हर खून गिर रहल हे आउर उ अमदी अचेत हो गेल हे ।) (अल॰27:83.6)
456 टउआना (पूरे आठ बरिस कलकत्ता गली-गली में टउआय के बाद चटकल में बोरा के सिलाय में नौकरी के जुगाड़ बैठल हल ।; धरती के सिंगार हरिअर कचूर मोरी दुलार विना टुअर जइसन टउआ रहल हल ।) (अल॰1:1.11; 15:44.14)
457 टन्न (सब परानी अन्न विना टन्न मारे लगतन ।) (अल॰19:60.25)
458 टभका टोय (नरिअर गुड़गुड़ावइत अकचका के नन्हकू पूछलक - "अँय, एने भी चेचक के सिकायत हइ का ?" -"हाँ, टभका टोय छोट-छोट बुतरूअन के पनसाही देखाय पड़लइ हे ।" बटेसर चौंकी के नीचे बइठत कहलक हल ।) (अल॰3:8.21; 31:96.25)
459 टरइक्टर (= ट्रैक्टर) (बिजुरी के तार से लगाइत पम्पिंग सेट आउर टरइक्टर के कल-पुर्जा खोलवावे से लेके दिन-दहाड़े लूट के माल में हिस्सा ले हल । जेकरा से खेत खरीदऽ हल, कोठा पर कोठा बनावऽ हल ।) (अल॰28:85.7)
460 टहकना (टहकल इंजोरिया) (अल॰1:3.9; 16:49.20, 24)
461 टहटह (लाल ~) (चौदस के चान पछिम ओर अकास पर टहटह टहटहा रहल हल ।; कतकी पुनिया के चांद पूरबओर लाल टह-टह होके आग के इंगोरा नियन इया कुम्हार के आवा से पक के लाल भिमिर हो के बड़गो घइला नियन उग रहल हल ।) (अल॰6:14.19, 18.10)
462 टहटहाना (चौदस के चान पछिम ओर अकास पर टहटह टहटहा रहल हल ।) (अल॰6:14.19)
463 टाल-बधार (येकर अलावे बकरी चरावे के सौख, दिन-रात रो-कन के चचा से येगो चितकबरी पाठी किना के पतिया-लछमिनिया, गौरी, रधिया, बुधनी, सुमिरखी, तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के साथ टाल-बधार में बकरी चरावे में मसगुल हल अलगंठवा ।; अगहनी धान टाल-बधार में लथरल-पथरल हल । कारीवांक, रमुनिया आउर सहजीरवा धान के गंध से सउंसे खन्धा धमधमा रहल हल ।) (अल॰1:2.17; 7:20.25; 15:44.8)
464 टिकिआ (~ धराना) (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.12)
465 टिटहीं (नदी किनारे टिटहीं बोल रहल हल । रजेसर दिसा पर से ही बैठल-बैठल टिटहीं के अवाज सुन के थूकथूका देलक हल । काहे कि टिटहीं के बोली असुभ मानल जाहे ।) (अल॰21:66.25, 26)
466 टिसना (~ लगाना) (चिट्ठी सुने के वाद कंघाय बोल पड़ल हल कि तोहनी दूनों के पीरितिया अब जमान आउर जड़गर हो रहलो हे । सुमितरी तोहरा पर पहिले से ही दीठिअइले हलो बचपने से ही । येकर वाद रमेसर हुंकारी भरइत कहलक हल - इ भी तऽ ओकरा पर टिसना लगइले हल न । अरे इ तऽ विआह-विआह बचपने में खेल-कूद के गँउआ-गोहार करइवे कइलक हल ।) (अल॰10.32.15)
467 टिसना (< तृष्णा) (सुमितरी जइते-जइते घुर-घुर के अलगंठवे के देख रहल हल । अलगंठवा भी गीत गइते-गइते ओकरा पर टिसना गड़इले हल ।) (अल॰19:63.25)
468 टील्हा (अलगंठवा अप्पन खाँड़ के एगो टील्हा पर बइठ के देखइत हल कि रूखी डमकल-डमकल आउर कचगर-कचगर अमरूद के कइसे कुतर-कुतर के, फुदक-फुदक के खा रहल हे ।) (अल॰13.38.19)
469 टीसन (इसलामपुर टीसन पहुँचे पर फतुहा के टिकट कटावे ला सब लाइन में लग गेलन हल ।) (अल॰6:14.24, 25, 15.19)
470 टुअर (अलगंठवा के बाबू इयानी कलकतिया बाबू, जे बारह बरिस के उमर में बूढ़ा बाप, चार बरिस के माय के टुअर भाय आउर अप्पन अउरत के नैहर में छोड़ के कलकत्ता चल गेलन हल ।) (अल॰1:1.9; 10.30.9; 15:44.14)
471 टुकुर-टुकुर (अलगंठवा खड़ा होके होके टुकुर-टुकुर ऊ झूंड में अप्पन चितकबरी पाठी के हिआवऽ हल / निहारऽ हल ।) (अल॰1:3.1)
472 टुह-टुह (लाल ~ सुरज) (लाल टुह टुह सुरज, लगे कुम्हार के आवा से पक के घइला निअर देखाई देलक, लगे जइसे कोय पनिहारिन माथा पर अमनिया घइला लेके पनघट पर सले-सले जा रहल हे ।) (अल॰3:6.3)
473 टो-टा के (उ का डागडर हथिन बाबूजी ? कउन कउलेज में पढ़लथिन हे । टो-टा के तऽ एक वित्ता में अप्पन लाम लिखऽ हथिन । अप्पन गाँव के कई लोगन के मुरदघट्टी पुवचा देलथिन हे । जहाँ पेड़ न बगान, उहाँ रेड़ परधान ।) (अल॰14.42.19)
474 टोला-टाटी (अलगंठवा से ~ गाँव-घर के लोग ऊब चुकल हल) (अल॰1:3.11, 13; 3:8.30; 4:10.27)
475 ठंइया (गाँव के लोग नेहा धो के एक ठंइया खाय लगलन हल । मुदा अलगंठवा के माय आज्झ अनुनिया कइले हल ।) (अल॰6:16.9)
476 ठउरे (कुंइआ से ठउरे येगो झमेठगर बेल के पेड़ हल ।) (अल॰3:6.16; 13:40.28; 27:82.10)
477 ठउहरे (= ठउरे) (वसन्तपुर गाँव के पूरब - देवीथान । ठउहरे हाई इस्कूल, मिडिल इस्कूल आउर पाठशाला ।) (अल॰19:59.27)
478 ठकमुरकी (~ लग जाना) (ई बात सुन के चचा-भाय आउर भोजाय आउर टोला के कई गो अमदी के ठकमुरकी लग गेल हल ।) (अल॰4:11.27)
479 ठनना (बाबू जी लगातार दू-दू-तीन-तीन बरिस के बाद कलकत्ता से गाँव आबऽ हलन । जेकरा से दूनो परानी में भीतर-भीतर ठनल रहऽ हल ।) (अल॰12.36.4)
480 ठहरे (= ठउरे) (ठहरे नहर में बेंग-बगुला देखाइ पड़ रहल हल । कभी-कभी मछली चभ-सन करऽ हल । जेकरा से पानी में हिलकोरा होवे लगऽ हल ।) (अल॰25:75.8; 31:101.7, 102.24)
481 ठाँम (नन्हकू ओही ठाँम बइठ के येगो अप्पन धोकड़ी से लसोढ़ा के दतमन निकाल के मुंह धोवे लगल हल ।) (अल॰3:6.15)
482 ठाहरे (= ठउरे) (तीनो जलवार नदी पर पहुँच के दिसा-मइदान करे ला बइठ गेलन हल । ठाहरे चिरांड़ी हल ।) (अल॰21:66.24)
483 ठुल (~ करना) (पहिले तऽ गाँव के लोग ठुल करऽ हल, मुदा अलगंठवा के समझावे पर बूढ़ पुरनियन के बात समझ में आवे लगऽ हल ।) (अल॰2:5.15)
484 डगर (एकर बाद नाना-नतनी खुदागंज के डगर पर सोझिआ गेल हल ।) (अल॰3:8.4; 4:11.16)
485 डमकल (अलगंठवा अप्पन खाँड़ के एगो टील्हा पर बइठ के देखइत हल कि रूखी डमकल-डमकल आउर कचगर-कचगर अमरूद के कइसे कुतर-कुतर के, फुदक-फुदक के खा रहल हे ।) (अल॰13.38.20)
486 डर-भय (कोय कहे कि रात-रात भर बगीचवा में डोलपत्ता खेलऽ हइ । ओकरा तनिको भूत-मूंगा से डर-भय न लगऽ हइ ।) (अल॰2:5.4; 4:12.9)
487 डहुँड़ी (= डाली) (इ सब करे के बाद नीम के डहुँड़ी से घूम-घूम के झरताहर झारे लगऽ हथन ।) (अल॰18:56.7, 58.9)
488 डाँढ़ (= डाल) (सुमितरी, देखऽ तऽ, रुखी सब कइसन इ डाँढ़ से उ डाँढ़ उछल-कूद करइत कुलेल करइत हे ।) (अल॰13.39.8)
489 डाँहट (= डाँट) (सुमितरी के नानी डाँहट पारइत पुकार उठल हल - "सु उ उ उ मि इ इ इ त ऽ ऽ ऽ री इ इ इ गे ऽ ऽ ।") (अल॰13.41.9)
490 डागडर (डागडर के बुलावे के पहिले ही दम टूट गेलइ । लास फतुहा आयल हो । माय के मुँह में आग तोहरे देवे पड़तो । काहे कि छोट बेटा ही आग दे हे ।) (अल॰11.33.19)
491 डायन-कमाइन (गनौर पासवान भीड़ के देखइत विगड़इत हट जाइ ला कह रहलन हे । खास कर के अउरत सबके । काहे कि डायन-कमाइन के अइसने बेला में वान चलावे के दाव लगऽ हे ।) (अल॰18:56.12)
492 डिंडा (= डिंडार) (सावा हाथ धरतिया कुंआरी, जेकरा पर ढाइ अच्छर डिंडा पारूँ ।) (अल॰18:55.9)
493 डिंडार (जमुना राम पुरब रूखे मुँह कर के हाथ में एगो झिटकी लेके जमीन पर डिंडार पार के ओकरे पर हाथ चला के मन्तर पढ़े लगल) (अल॰18:55.6)
494 डिल्ली (= दिल्ली) (हाँ बउआ, टोला-टाटी के चिट्ठी सुमितरी ही लिखऽ हइ । ओकर लिखल चिट्ठी डिल्ली-पटना-कलकत्ता तक चल जा हइ ।) (अल॰10.32.2; 15:45.19)
495 डेंगी (इतने में दखिन से नदी के किनछारे-किनछारे एगो डेंगी खेवइत दू-ती अदमी के आवइत देखके सुमितरी कहलक हल -"अरे बाप, लगऽ हइ कोई परेत हमनी के पकड़े ला आ रहले ह ।") (अल॰31:97.2, 5, 13)
496 डोरिआना (अरे बाप रे बाप, रामदहिन पाड़े के सँढ़वा मार के पथार कर देलकइ । कादो ओकर गइया मखे ला उठलइ हल । ओकरे पगहा में बाँध के सढ़वा दने अप्पन गइया के डोरिअइते जा रहलथिन हल कि गाँव के कोय बुतरु सढ़वा के देखइत ललकारइत कह देलकइ - उन्नऽऽऽढाऽऽहेऽऽ । बास इतने में सढ़वा गइया दने आउ गइया सढ़वा दने बमकइत दौड़लइ । जेकरा से रामदहिन पाड़े के दहिना हथवा पगहवा में लटपटा गेलइ । जेकरा से पखुरबे उखड़ गेलइ । उका खटिया पर लदा के इसलामपुर हौसपिटल जा रहलथिन हे ।) (अल॰7:22.18)
497 डोलपत्ता (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.23; 2:5.3)
498 ढहल-ढुहल (अलगंठवा अप्पन ढहल-ढुहल ईंटा के भट्ठा पर बइठ के उत्तर रूखे मुँह कर के नीम के दतवन से रगड़-रगड़ के मुँह धोवइत ....सोचइत हल ।) (अल॰26:77.8)
499 ढिवरी (बटेसर के बात सुन के सुमितरी के माय ढिवरी के बत्ती उसकावइत कहलक) (अल॰9:28.4)
500 ढेंगराना (सबसे पहिले तऽ उ इस्कूल में जे एके जाति के मास्टर-किरानी आउर चपरासी हे उ सब के इहाँ से बदली करा देवे के चाही । काहे कि कुरफात आउर भरस्टाचार के जड़ छूछे एके जाति के ढेंगराल लोग हे ।) (अल॰25:76.15)
501 ढेकरना ("नाना-नानी तइयार होथिन तऽ न ।" ढेकरइत बटेसर हप्पन जनाना के बात सुनइत कहलक हल ।) (अल॰9:27.28)
502 तइयो (बटेसर कहलक हल -"हाँ बेटी, तूँ ठीके कहऽ हऽ । बेचारा जग्गू ठाकुर के ओहे पांड़े मार देलकइ, दवा खिलइते-खिलइते ।" साड़ी में पेवन्द लगइते सुमितरी के माय कहलक हल -"तइयो तऽ तोहर वान न छूट रहलो हे । न जानी तोहरा कउन चीज पढ़ा के खिला देलको हे उ पांड़े । जब न तब घुरिया-घुरिया के ओकरे भीर जा हऽ । ओकरा अप्पन गाड़ धोवे के अकले न हइ आउ डगडरिए करऽ हे ।") (अल॰14.42.24)
503 तखनी (= तब, उस क्षण) (जखनी रमाइन रेघा के पढ़ऽ हइ तखनी सुनताहर के हम्मर घर में भीड़ हो जा हइ ।) (अल॰10.32.3)
504 तनी (= जरा, थोड़ा) (नाना, तनी छहुरवा में सुस्ता ल, बड़ी गरमी लग रहल हे आउ गोड़ भी जर रहल हे ।) (अल॰3:7.18)
505 तफरका (किसान सब मजदूर सब के मांग माने ला अवलदार न हो रहलन हल । जेकरा से किसान-मजदूर में तफरका हो गेल हल ।) (अल॰15.43.28)
506 तबहिए (अलगंठवा जब ककहरा भी न जानऽ हल तबहिए ओकर माय हनुमान चलिसा, शिव चलिसा कंठस्थ करवा देलक हल ।) (अल॰4:10.20; 30:93.30)
507 तरन्ना (= तरबन्ना) (आज वसन्तपुर तरन्ना में अगहनी ताड़ी पीए ला रामखेलामन महतो के जमाइत जुटलन हल । रामखेलामन महतो बड़गो पिआंक हथ । अप्पन मरुसी अट्ठारह विघा खेत ताड़ी-दारु-गांजा-भांग में ताप गेलन हे ।) (अल॰8:23.6)
508 तरबन्ना (गाँव के दखिन बगीचा आउर तरबन्ना हे । उ तरबन्ना में बिसु पासी तार छेव के ताड़ी उतारइत रहऽ हे । वसन्तपुर गाँव में ताड़ी पीए ला कइ गाँव के लोग आबऽ हथ ।; तरबन्ना में एक हथौड़ा ताड़ी लेके रामखेलामन जी विना चखना के पी रहलन हे ।) (अल॰8:23.4, 10, 24.7, 26.11)
509 तरे-तरे (हगइत एगो अधवइस अउरत सुमितरी के ओर मुंह करइत, सले से सरकइत कहलक हल, "अहे सुमितरी, तोहरा आउर अलगंठवा के बारे में सुनऽ हियो कि तोहनी दूनो बड़ावर में जाके खूबे चकलस कइलऽ हे । तोहनी के बारे में तरे-तरे आग सुलग रहलो हे ।" अइसन बात सुन के सुमितरी के दिसा सटक गेल हल ।) (अल॰18:54.2)
510 तरेता (= त्रेता) (बड़ावर पर कइगो खोह हे जेकरा में कहल जाहे कि तरेता से लेके दुआपर तक रीसि-मुनि अभी तक तपसिया कर रहलन हे ।) (अल॰16:50.4)
511 तसतरी (= तश्तरी) (फिन अलगंठवा के माय एगो तसतरी में जिलेवी देइत कहलक हल) (अल॰10.30.23, 24)
512 तसला (अलगंठवा के घर में माय के जीता-जिन्नगी में पीतल के वरतन में ही भोजन बनऽ हल । मुदा अब अलमुनिया के तसला में भोजन बने लगल हल। अलगंठवा अप्पन घर के अइसन धच्चर देख के कभी-कभी एकान्त में रो जा हल ।) (अल॰12.37.3)
513 तहमुल (~ करना) (गाँव के लोग ताकते रह गेल, तमासा देखते रह गेल । मुदा अलगंठवा कुत्ता के तहमुल करके, नेहा-धो के अप्पन घर आ गेल ।) (अल॰2:5.26)
514 तहिना (ए जी, तहिना तूँ जे बड़ावर के साधु बाबा के बारे में जे कह रहलु हल, उ तऽ बीचे में ही छूट गेलो हल । रामदहिन पाड़े के तहिना सँढ़वा पटक देलकइ हल । हल्ला-गुदाल सुन के ओकरे तरफ चल गेली हल । जरा निमन से समझाबऽ ।) (अल॰9:27.9, 11; 16:50.15; 21:67.26)
515 ताड़ी (गाँव के दखिन बगीचा आउर तरबन्ना हे । उ तरबन्ना में बिसु पासी तार छेव के ताड़ी उतारइत रहऽ हे । वसन्तपुर गाँव में ताड़ी पीए ला कइ गाँव के लोग आबऽ हथ । आज वसन्तपुर तरन्ना में अगहनी ताड़ी पीए ला रामखेलामन महतो के जमाइत जुटलन हल ।; ताड़ी पिए तरन भए खुस होय भगमान । जे नर ताड़ी न पिए ओकर वंस निदान ॥) (अल॰ 8:23.5, 6, 8, 10, 26.19, 20)
516 ताड़ी-दारु-गांजा-भांग (आज वसन्तपुर तरन्ना में अगहनी ताड़ी पीए ला रामखेलामन महतो के जमाइत जुटलन हल । रामखेलामन महतो बड़गो पिआंक हथ । अप्पन मरुसी अट्ठारह विघा खेत ताड़ी-दारु-गांजा-भांग में ताप गेलन हे ।) (अल॰8:23.8)
517 ताड़ी-दारू (लइका-लइकी के इज्जत उतारे पर दिन-रात ताड़ी-दारू पीके पड़ल रहऽ हलइ ।) (अल॰23:71.28)
518 तातल (अलगंठवा आउर बटेसर तातल-खिचड़ी फूंक-फूंक के खा रहलन हल ।) (अल॰16.47.17)
519 तापना, ताप जाना (आज वसन्तपुर तरन्ना में अगहनी ताड़ी पीए ला रामखेलामन महतो के जमाइत जुटलन हल । रामखेलामन महतो बड़गो पिआंक हथ । अप्पन मरुसी अट्ठारह विघा खेत ताड़ी-दारु-गांजा-भांग में ताप गेलन हे ।) (अल॰8:23.8)
520 तामा (= ताँबा, ताम्र) (अलगंठवा के घर में पीतर-सिलवर-कांसा-तामा के कोठी के कोठी बरतन हल । गाँव-घर में विआह-सादी आउर कोय भी काज-परोज में अलगंठवा के घर से ही बरतन जा हल ।) (अल॰12.35.15)
521 तार (= ताड़) (रह रह के इंजोरिया में बसन्तपुर देखते बनऽ हल । मदी-पोखरा, झमेठगर-झमेठगर बाँस के कोठी तार-खजूर-पीपर-पाँकड़ आउर वैर के पेड़ ओकर आँख के सामने नाच-नाच जा हल ।) (अल॰5:12.30; 19:59.28; 29:88.21)
522 ताव (एक ~ कागज) (अल॰6:18.18)
523 तितइ (सुमितरी अभी दू कोर खइवे कइलक हल कि ओकर मुंह में आधा मिरचाई जे लिट्टी में सानल हल चल गेल हल । जेकरा से सुमितरी सी-सी करइत लिट्टी छोड़ देलक हल । आउर ओकर मुंह से तितइ के लार चुए लगल हल ।) (अल॰3:6.25)
524 तिलसकरात (= तिल-संक्रान्ति) (ठहरे तपोवन हे जहाँ भी गरम कूंड के झरना जरते रहऽ हे । खास कर के तिलसकरात में तपोवन में बड़ भारी मेला लगऽ हे ।) (अल॰31:101.8)
525 तीतना (हलफा के पानी से सुमितरी आउर अलगंठवा के कमर के नीचे के कपड़ा तीत गेल हल ।) (अल॰31:98.8)
526 तीन डंड़िया (भोर के पहर हम तोहरा पास पाती लिख रहलियो हे । तीन डंड़िया एकदम माथा पर हो । आउर सुकर महराज भी पछिम रुखे अकास में चमचम कर रहलो हे ।; इ तरह से झारते-झारते तीन डंड़िया माथा पर आ गेल हल ।) (अल॰9:28.25; 16:46.16; 18:58.8)
527 तुका (= तुक्का; गुलेल) (सामर वरन, छरहरा बदन, तुका जइसन खड़ा नाक, कमल लेखा आँख, लमहर-लमहर पुस्ट बाँह, सटकल पेट, चाक निअर छाती, बड़गो-बड़गो कान, उच्चगर लिलार, उज्जर सफेद सघन दांत, पातर ओठ से उरेहल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.20; 13:39.1)
528 तुक्का (दें॰ तुका) (ई बात सुन के अलगंठवा तुक्का जइसन उठल सुमितरी के नाक चुटकिआवइत कहलक हल - उलटे चोर कोतवाल के डाँटे ।) (अल॰16:51.6)
529 तेउरी (अलगंठवा के चढ़ल तेउरी देख के सुमितरी सिढ़ी पर से फिन छत पर आवइत हलगंठवा के कंधा पर हाथ धरइत कहलक हल) (अल॰22:71.1)
530 तेरुस (= विगत या आगामी तीसरा वर्ष) (अलगंठवा के इयाद आ रहल हल कि तेरुस साल ही माय के साथ कतकी पुनिया नेहाय ला कटहिया घाट आयल हल । इमलिया घाट से कटहिया घाट लउक रहल हल ।) (अल॰11.34.23, 35.5)
531 तेसर (= तीसरा) (तेसर अमदी बोलल कि जे बड़ तेज रहऽ हे उ तीन जगह मखऽ हे ।) (अल॰4:12.7)
532 तोपना (= ढँकना) (बूंदा-बूंदी करइ इ असाढ़ के बदरवा, चारो कोना तोपले हइ, सिहरऽ हइ तनमा ।) (अल॰19:62.30)
533 थकौनी (= थकावट) (आज्झ अलगंठवा हवा से बात कर रहल हल, ओकर देह में सुमितरी के पास करे के खुसी से गुदगुदा रहल हल । ओकर सब थकौनी उपह गेल हल ।) (अल॰28:88.7)
534 थरभसाना, थरभसा जाना (अलगंठवा के झिड़की सुन के सुमितरी आउर थरभसा गेल हल ।) (अल॰20:65.18)
535 थरिया (ई बात सुन के बटेसर थरिए में अचावइत कहलक हल - हम तऽ कल्हे ही जा सकऽ ही ।) (अल॰9:27.30, 28.9)
536 थलवल (= शीघ्र बच्चा देने वाली मादा पशु) (थलवल एगो गाय खूँटा पर हे ।) (अल॰31:96.12)
537 थूकथूकाना (नदी किनारे टिटहीं बोल रहल हल । रजेसर दिसा पर से ही बैठल-बैठल टिटहीं के अवाज सुन के थूकथूका देलक हल । काहे कि टिटहीं के बोली असुभ मानल जाहे ।) (अल॰21:66.26)
538 थेथर (साँझ पहर घर आवे पर गँउआ-गुदाल होवे पर अप्पन बड़ भाई के हाथ से चमरखानी जूता से मार खा के थेथर हो गेल हल अलगंठवा ।) (अल॰1:2.5)
539 दखिनबारी, दखिनवारी (देखल जाय, दखिनबारी कोठरी के ताला खोलवाबल जाय कि ओकरा में का-का सइंतल हे ।; अलगंठवा अप्पन घर के दखिनवारी भीतरमें जमीन पर तार के चटई विछा के सुतल हल ।) (अल॰23:72.14, 17; 29:88.20, 89.8)
540 दखिनाहा (= दखनाहा) (भोर के दखिनाहा बेआर बह रहल हल ।) (अल॰6:14.20; 21:66.22; 31:98.6)
541 दतमन (= दतवन) (कुछ लोग कुंआ से हट के दतमन से दाँत रगड़ रहलन हल । तऽ कुछ लोग दतमन के बीच से फाड़ के जीभ के जीभिया रहलन हल ।) (अल॰3:6.12, 15)
542 दतादानी (= दातादानी) (कोनिया घर में काठ के पेटी में रखल येकन्नी-दूअन्नी-चरन्नी-अठन्नी चोरा के जैतीपुर में घनसाम हलुआई के दूकान में गाँव के तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के मिठाई खिलावे में दतादानी अलगंठवा ।) (अल॰1:2.10)
543 दनादन (अलगंठवा थोड़हीं दिन में किताब दनादन पढ़े लगल हल ।) (अल॰2:4.27)
544 दने (दुनों धीरे-धीरे अप्पन-अप्पन घर दने चल देलक हल) (अल॰1:4.15; 6:15.28, 29)
545 दफादार (चौकीदार आउर दफादार के अलगंठवा कहलक हल -"अपने लोग थाना जाके इतलाय कर द गन ।") (अल॰27:84.2, 3)
546 दम्मा (= दमा) (हाँ, अलगंठवा के माय तोहर दम्मा के समाचार सुन के बड़ावर में कोय साधु के बारे में कोय साधु के बारे में बतइलथिन हल कि साधु जड़ी-बुटी के दवा देके जड़ से ही रोग ठीक कर दे हथिन ।) (अल॰7:22.6)
547 दरखास (हम्मर विभाग में चपरासी आउ किरानी के बहाली होवे जा रहलो हे । तू आज्झ आउर अभी ही दरखास भरा दऽ । हम हर तरह से अइरवी-पइरवी कर के तोर दूनो भाय के नउकरी लगा देवो ।) (अल॰28:87.1, 3)
548 दलान (जब दलान से भीड़ छँट गेल हल तऽ बटेसर धोकड़ी से चिट्ठी निकाल के अलगंठवा के माय के हाथ में देइत कहलक हल) (अल॰10.31.8)
549 दवकल (= दबकल) (जब हमनी गेहुँआ के खेतवा में दवकल हली आउ दारु पीके मन बना रहली हल कि इतने में मोहन सिंघ बतउलक कि देखऽ, जे आ रहलो हे, ओकरे मारना हे ।) (अल॰27:83.12)
550 दवा-विरो (दू बरिस से उनखा दमा के रोग से परेसान हियो । दवा-विरो कराके थक गेलियो हे ।) (अल॰6:17.9; 13:40.17)
551 दहना (जलवार नदी के दूनों कोर उपलल जा हल । उपलल नदी के देख के सुमितरी आउर ओकर माय-बाप आउ नाना के दिल हहर गेल हल । ... बाप रे, इ में तऽ हमनी सबके सब दह जइबऽ ।) (अल॰31:96.24)
552 दहाना (आज्झ फतुहा में अप्पन माय के सदा के लेल छोड़ के, जरा के, दहा के, सिसकइत माय के टुअर होके जा रहल हल ।) (अल॰11.35.7)
553 दही (~ में सही, दही-सही) (दिलदार राम के बात के दही में सही लोग भरलन हल । आउर सुमितरी के आगे पढ़वे ला कहते गेलन हलन ।) (अल॰30:95.13)
554 दामुल (अ॰ दायमुल = उम्र कैद; देश निकाला की सजा; काला पानी की सजा) (चाहे येकरा लेल दामुल जाके फाँसी पर चढ़े ला जाय पड़तइ हल तऽ हंसते-हंसते मर-मार के मरे ला तइयार हो जइती हल ।) (अल॰27:83.26)
555 दावा (= दवा) (इतने में ओकरा जड़ी-बूटी वाला दावा के इयाद पड़ गेल हल ।) (अल॰9:27.8)
556 दिआँ (= दीमक) (किताब सब में भी दिआँ लग रहल हल ।) (अल॰12.37.20)
557 दिगमरी (= दिगम्बर) (साधु बाबा अप्पन लमहर-लमहर झुलइत जट्ठा पर हाथ फेरइत कहलन हल - हरे न रे, इ सब बाबा दिगमरी भोलानाथ, सिधनाथ के किरपा तोरा पर हउ रे बेटा ।) (अल॰16:49.5)
558 दिठियाना (इ जगह डायन आवल हो । एही सुमितरी के अप्पन वान चला के पेस देलको हे । मुनेसर के माय आउर कुलेसर के जनाना तरफ दिठियावइत कहलक हल कि जदि इहाँ से न हटल तऽ उल्टे मन्तर पढ़ के एही देवीथान में सबके लंगटे नचा देवइ ।) (अल॰18:58.3)
559 दिनगते (आज्झे आउर अबहिए बड़ावर चले ला तइयार हो जा । आज्झ दिनगते पहुँच जइते जइबइ ।) (अल॰16.46.29, 48.8)
560 दिन-दसा (अलगंठवा के मुँह से ई बात सुन के सब लोग बड़ खुस होते गेलन हल । सबके लगल हल कि अब अलगंठवा के घर के दिन-दसा फिर रहल हे ।) (अल॰29:90.20)
561 दिन-दसा (अलगंठवा के मुँह से ई बात सुन के सब लोग बड़ खुस होते गेलन हल । सबके लगल हल कि अब अलगंठवा के घर के दिन-दसा फिर रहल हे ।) (अल॰29:90.20)
562 दिनादिसती (केता लइकन आउर लइकिन के डेरा-धमका के इज्जत लूटऽ हइ । तोहरा दिनादिसती उ मरवा के फेकवा देत ।) (अल॰20:65.5)
563 दिलजमय (= दिलजमई) (अलगंठवा के बात सुन के दिलदार राम आउर मोहन सिंघ दिलजमय होइत अलगंठवा के दलान से खैनी-चूना ठोकइत, राम-सलाम करइत चल देलन हल ।) (अल॰17:53.8)
564 दिसा (~ फिरना; ~ सटकना) (येगो अधवइस मरद दिसा फिर के हाथ में लोटा आउर ओकरे में गोरकी मिट्टी, कान पर जनेऊ धरके हाथ आउर लोटा मट्टी से मटिआ रहल हल ।; हगइत एगो अधवइस अउरत सुमितरी के ओर मुंह करइत, सले से सरकइत कहलक हल, "अहे सुमितरी, तोहरा आउर अलगंठवा के बारे में सुनऽ हियो कि तोहनी दूनो बड़ावर में जाके खूबे चकलस कइलऽ हे । तोहनी के बारे में तरे-तरे आग सुलग रहलो हे ।" अइसन बात सुन के सुमितरी के दिसा सटक गेल हल ।) (अल॰3:6.10; 18:54.3; 21:66.25)
565 दिसा-मइदान (~ करना) (तीनो जलवार नदी पर पहुँच के दिसा-मइदान करे ला बइठ गेलन हल । ठाहरे चिरांड़ी हल ।) (अल॰21:66.24; 27:84.12)
566 दीठिआना (चिट्ठी सुने के वाद कंघाय बोल पड़ल हल कि तोहनी दूनों के पीरितिया अब जमान आउर जड़गर हो रहलो हे । सुमितरी तोहरा पर पहिले से ही दीठिअइले हलो बचपने से ही ।) (अल॰10.32.13)
567 दीया (इ दुनिया में अइसन लइका दीया लेके खोजे पर भी न मिलतइ ।) (अल॰4:12.11)
568 दुआपर (= द्वापर) (बड़ावर पर कइगो खोह हे जेकरा में कहल जाहे कि तरेता से लेके दुआपर तक रीसि-मुनि अभी तक तपसिया कर रहलन हे ।) (अल॰16:50.4)
569 दुआरा (= द्वारा) (बाबू जी के दुआरा चिट्ठी जरुरे भेजिहऽ ।) (अल॰9:29.4; 16:46.4)
570 दुरगा (= दुर्गा) (दुरगा-सरसती-लछमी आदि इतिआदी देवी खाली मट्टी के देउता न हथ । बल्कि उ लोग तोहरे जइसन हलन जिनखर नाम-जस-गुन के चरचा आज्झ भी घर-घर में हे । सगर उ लोग के पूजा पाघुर होवऽ हे ।) (अल॰6:19.8)
571 दुरगाथान (ओकर बाद नाना-नतनी इसलामपुर बजार में दुरगाथान जाके एगो हलुआइ के दुकान पर जाके सौगात में सिनरी के रूप में पाभर बतासा खरीदलक आउर सुमितरी ला गरम-गरम जीलेबी ।) (अल॰3:7.8; 28:87.8)
572 दुसना (माय-बाप छाती पीट-पीट के कानऽ हल, आउर गाँव-घर के लोग दुसऽ हल ।) (अल॰28:85.17)
573 दुसाधी (आज्झ सूरज पासवान सिरा घर के तेल पिआवल लाल लाठी लेके गाँव में चौकड़ी मार रहल हल । आउर झुम-झुम के दुसाधी गा रहल हल ।) (अल॰24:74.9)
574 दूअन्नी (= दुअन्नी) (कोनिया घर में काठ के पेटी में रखल येकन्नी-दूअन्नी-चरन्नी-अठन्नी चोरा के जैतीपुर में घनसाम हलुआई के दूकान में गाँव के तेतर तिवारी, कंधाई साव, तुलसी भाई के मिठाई खिलावे में दतादानी अलगंठवा ।) (अल॰1:2.8)
575 दूधायल (गोर-गोर झुमइत धान के बाल में हम तोहर मस्ती भरल कचगर आउर दूधायल सूरत देख रहली हे ।) (अल॰6:18.27)
576 दूनो (= दुन्नू, दोनों) (पनघट पर के पनीहारिन दूनो गोटा के लिट्टी आउर अंचार खइते येक टक से देख रहल हल । कुत्ता भी ओजे बैठल हल ।) (अल॰3:6.29)
577 दूरा-दलान (अलगंठवा आउर सुमितरी के हलचल गाँव भर में मचल हल । दूरा-दलान पर ओही दूनो के बात होवइत हल ।) (अल॰2:4.17; 12:37.10)
578 दू-हथो (= दु-हत्थो) (लाठी घुमावइत सूरज पासवान दू हथो लाठी हवा भर के जालिम सिंघ पर उसाहवे कइलक हल कि रमेसर ओकर लाठी पकड़ लेलक हल ।) (अल॰24:74.11; 27:83.14)
579 देउता-देवी (वाह, भगमान के किरपा जे न हे । देउता-देवी के पुन-परताप से आउ आगे पढ़-लिख के गुनगर हो जाय कि तोहर घर से लगाइत जिला-जेवार के नाम रोसन होय ।) (अल॰10.30.25)
580 देउथान (= देवीथान) (फिन सुमितरी के झरइया करे लगलन । सुमितरी से तनी हट के अलगंठवा उदास-मनझान बइठ के एक टक से सुमितरी के तरफ देखइत हल । साँप झारे के मन्तर से देउथान गूँज रहल हल ।) (अल॰18:56.15)
581 देउनी-देमाही (= दौनी-दमाही) (अँय, हरिअर बूट अभी तक खेत में लगले हई, बूट गेहूँ तऽ कट-कूट के खलिहान में देउनी-देमाही हो के कोठी में सइंता गेल होत, फिन होरहा लाइक बूट कने से तिवारी लइलका ?) (अल॰29:89.27)
582 देखताहर (इस्कूल में पहुँचे पर देखलक कि हेडमास्टर के गोला-लाट्ठीदेके दिलदार राम, रजेसर आउर रमेसर सुअर जइसन जमीन पर पाड़ले हका । पलटन के देख के देखताहर के भीड़ एने-ओने खिसके लगल हल ।) (अल॰23:72.9; 27:84.9)
583 देने (= दने, दन्ने) (गाँव के धुर-जानवर भी खंदा में घर देने लौट रहल हल । सूरज भी डूबे ला झलमला रहल हल ।) (अल॰29:90.26)
584 देने (= दने, दन्ने) (गाँव के धुर-जानवर भी खंदा में घर देने लौट रहल हल । सूरज भी डूबे ला झलमला रहल हल ।) (अल॰29:90.26)
585 देवीथान (फिन चमारी माली बोलल हल - "तऽ देखते का जा हऽ, चलऽ, जल्दी से देवीथान ले चलऽ ।" अलगंठवा गोड़ दने आउ कइ गो गाँव के लोग सिरहना दने पकड़ के सुमितरी के देवीथान ले जाके चबुतरा पर धर देलक हल ।) (अल॰18:55.19, 20, 58.4)
586 देसी हिसाब (अलगंठवा थोड़हीं दिन में किताब दनादन पढ़े लगल हल । आउर देसी हिसाब भी फटाफट बना दे हल ।) (अल॰2:4.27)
587 दोख (गनौर के बुझइत देर न लगल । उ उहाँ के औरत-मरद के भीड़ के हटावइत झरताहर सब के कहलक हल - का देख रहलऽ हे, येकरा दोख चढ़ गेलइ हे । दोख के मन्तर से झारऽ । फिन गनौर भी अप्पन देह बांध के भूत भगावे के मन्तर पढ़े लगल हल ।) (अल॰26:78.26, 79.15, 22)
588 दोखाड़ना (कभी-कभी असाढ़ के वादर गरज-बरज के बरस जा हल । जेकरा से खेत में पानी अहिल-दहिल हो रहल हल । मुदा खेत में फरनी न हो रहल हल, चास न लग रहल हल, दोखाड़ल न जा रहल हल ।) (अल॰15.43.22, 23)
589 दोदर (= उखड़ल, उभरल) (अलगंठवा भी सुमितरी के हाथ पकड़ के अप्पन पीठ पर जूता के दोदर वाम दिखलइलक हल रात के बँसवेड़ी में ।) (अल॰5:12.28)
590 दोसर (= दूसरा) (दोसर एगो अउरत बोलल - "पढ़ले सुगना गुह में डूबऽ हे ।") (अल॰4:12.6)
591 दो-हथो (= दू-हथो, दो-हत्थो) (इतने में जमाइत में से येगो आके अलगंठवा पर सीधे दोहथो लाठी तान देलक हल ।) (अल॰27:82.22)
592 धइल (~ न थमाना) (सुमितरी के नानी के टोला-टाटी के अउरत-मरद इ परचार करे में लगल हल कि जब से छउड़ी मलटरी पास कइलकइ तब से ओकर पैर जमीन पर न रहऽ हलइ, धइल न थमा हलइ । रोज-रोज धमधमिया साबुन से नेहा हलइ । काजर-विजर आउर टिकूली साट के गुरोगन के तेल माथा में पोर के, चपोर के, जूरा बाँध के छीट के साड़ी पहिन के चमकाबऽ हलइ, झमकाबऽ हलइ ।) (अल॰32:103.18)
593 धच्चर (अलगंठवा के घर में माय के जीता-जिन्नगी में पीतल के वरतन में ही भोजन बनऽ हल । मुदा अब अलमुनिया के तसला में भोजन बने लगल हल। अलगंठवा अप्पन घर के अइसन धच्चर देख के कभी-कभी एकान्त में रो जा हल ।) (अल॰12.37.4)
594 धत् (धत्, तूँ लोगन के फेरा में तऽ अभी तक येक पथिया घास तक न गढ़ पइलूँ । हम्मर भैंस येक तऽ जे सेर भर दूध दे रहल हे, उ भी लेके विसूख जात ।) (अल॰8:24.20; 13:39.18)
595 धथूरा (मंदिल में करिया कोयला अइसन महादे जी के लिंग इयानी सिउलिंग गड़ल हे । जेकरा पर धथूरा के फूल चढ़ल हल ।) (अल॰16:48.24)
596 धनखेती (समय आउर परिस्थिति के मुताबिक हम अपने सबसे एलान करऽ ही कि इक्किस बोझा के जगह पर सोलह बोझा, पन्द्रह कट्ठा के जगह बारह कट्ठा धनखेती आउर बिड़ार आउर पक्की तीन सेर चाउर आउर गेहूँ मजदूरी लेवे-देवे के चाही । अभी हमरा जानिस्ते समय के पुकार आउर माँग एही हे ।) (अल॰19:62.8)
597 धमधमाना (अगहनी धान टाल-बधार में लथरल-पथरल हल । कारीवांक, रमुनिया आउर सहजीरवा धान के गंध से सउंसे खन्धा धमधमा रहल हल ।) (अल॰7:20.26)
598 धमधमिया (सुमितरी के नानी के टोला-टाटी के अउरत-मरद इ परचार करे में लगल हल कि जब से छउड़ी मलटरी पास कइलकइ तब से ओकर पैर जमीन पर न रहऽ हलइ, धइल न थमा हलइ । रोज-रोज धमधमिया साबुन से नेहा हलइ । काजर-विजर आउर टिकूली साट के गुरोगन के तेल माथा में पोर के, चपोर के, जूरा बाँध के छीट के साड़ी पहिन के चमकाबऽ हलइ, झमकाबऽ हलइ ।) (अल॰32:103.19)
599 धम-सन (इ अनचके के मार से झमाइत आउर चिल्लाइत धम-सन जमीन पर गिर गेल हल ।) (अल॰27:82.26)
600 धमसाना (हेडमास्टर के जेल जाय से ओकर जात-भाय में उदासी रह-रह के खुसियाली के धमका रहल हल, धमसा रहल हल ।) (अल॰24:73.23)
601 धरमसाला (= धर्मशाला) (अलगंठवा के माय आउ सुमितरी के माय फतुहा धरमसाला में ठहर के भोरे के गाड़ी पकड़े ला सोच के गौर-गट्ठा कर लेलक हल ।) (अल॰6:18.13, 17)
602 धवर-धवर (येक रोज अलगंठवा जइतीपुर बजार से दू घंटा रात विते पर अकेले लउट रहल हल कि गोरइया थान डगर पर झमेठगर इमली आम आउर तार के पेड़ तर भुनभुनाय के आउर धवर-धवर के अवाज सुनाई पड़ल ।) (अल॰27:82.9)
603 धिकना (= धिपना; गरम होना) (आवऽ, अब झामा से तलवार पजाबऽ, दुसमन तोहर गाँव में, पहले ओकरा पार लगाबऽ । पाछ-पाछ के खूनगर देह पर नमक रगड़ के धिकल गज से ओकरा बेड़ा पार लगाबऽ ॥) (अल॰21:68.22)
604 धिया-पुता (अपने लोग अब निचिंत होके अप्पन धिया-पुता के मोह-ममता तेआग के वैर-भाव के भूल के पढ़े खातिर इस्कूल में भेजथिन ।) (अल॰23:73.4)
605 धीचोदा (फिन अलगंठवा वसन्तपुर हाई इस्कुल के हेडमास्टर के बारे में कहीं ला चाह रह हल कि दिलदार राम कहलक हल कि तूँ उ धीचोदा के वारे में कुछ न कहऽ, खाली हुकुम करऽ ।) (अल॰21:67.19)
606 धुआँ ढेकार (कल से गांजा न पीलूँ हे जेकरा से धुआँ ढेकार आ रहल हे । पेटवे गुमसल हे । येक दम लेवे से सब ठीक हो जायत ।) (अल॰8:25.14)
607 धुकना (जदि सरकार मधुमक्खी इया विरनी के खोंथा न उजाड़त तऽ हमनी आग लगा के धुँआ से धुक-धुक के मार देवइ ।) (अल॰25:76.23)
608 धुर-जानवर (अलगंठवा के बात सुन के सुखदेव घर दने चल गेल हल आउ ई चारो गोटा भी चउरी पर पर-पैखाना करे ला दखिन रूखे गलवात करइत चल गेलन हल । ओने नकफेनी के झाड़ी में तीतीर आउर आम के पेड़ पर कोयल बोले लगल हल । गाँव के धुर-जानवर भी खंदा में घर देने लौट रहल हल । सूरज भी डूबे ला झलमला रहल हल ।) (अल॰29:90.26)
609 धुर-जानवर (अलगंठवा के बात सुन के सुखदेव घर दने चल गेल हल आउ ई चारो गोटा भी चउरी पर पर-पैखाना करे ला दखिन रूखे गलवात करइत चल गेलन हल । ओने नकफेनी के झाड़ी में तीतीर आउर आम के पेड़ पर कोयल बोले लगल हल । गाँव के धुर-जानवर भी खंदा में घर देने लौट रहल हल । सूरज भी डूबे ला झलमला रहल हल ।) (अल॰29:90.26)
610 धोकड़ी (नन्हकू ओही ठाँम बइठ के येगो अप्पन धोकड़ी से लसोढ़ा के दतमन निकाल के मुंह धोवे लगल हल ।) (अल॰3:6.15; 6:15.15; 6:18.18; 8:24.28)
611 न जानी (पाती पढ़के न जानी सुमितरी के मन में का भाव उठत ।) (अल॰6:20.22)
612 नइका (= नयका) (अलगंठवा नइका चूड़ा के साथ फतुहा के परसिध मिठाइ मिरजइ भर-भर फाँका खा ही रहल हल कि उ अप्पन माय के हाथ से उसकावइत बोलल हल ..) (अल॰6:16.12)
613 नइकी (= नई) (हमनी तीनो आ रहलियो हल । मुदा नइकी वगीचवा में तेतर तिवारी मिल गेलक । कने से तऽ एक पांजा गदरल बूँट के झंगरी ले के होरहा बना रहलथुन हे । ओही लोग तोहरा बुलावे ला हमरा कहलथुन हे।) (अल॰29:89.22)
614 नइहर (अहे सुमितरी के माय, कपड़ा गार-गुर के इधर भी अइहऽ । तोहर नइहर के कई लोग भी गंगा नेहाय अइलथुन हे ।) (अल॰6:16.17; 16:48.4)
615 नकचियाना (= नजदीक आना) (नगपाँचे नकचिया रहल हल । टाल-बधार में अमदी के जगह पर चिरई-चिरगुन, सियार-बिलार के चहल-पहल आउर सोर-गुल होबइत रहऽ हल ।) (अल॰15.44.8)
616 नकफेनी (अलगंठवा के बात सुन के सुखदेव घर दने चल गेल हल आउ ई चारो गोटा भी चउरी पर पर-पैखाना करे ला दखिन रूखे गलवात करइत चल गेलन हल । ओने नकफेनी के झाड़ी में तीतीर आउर आम के पेड़ पर कोयल बोले लगल हल । गाँव के धुर-जानवर भी खंदा में घर देने लौट रहल हल । सूरज भी डूबे ला झलमला रहल हल ।) (अल॰29:90.25)
617 नकफेनी (अलगंठवा के बात सुन के सुखदेव घर दने चल गेल हल आउ ई चारो गोटा भी चउरी पर पर-पैखाना करे ला दखिन रूखे गलवात करइत चल गेलन हल । ओने नकफेनी के झाड़ी में तीतीर आउर आम के पेड़ पर कोयल बोले लगल हल । गाँव के धुर-जानवर भी खंदा में घर देने लौट रहल हल । सूरज भी डूबे ला झलमला रहल हल ।) (अल॰29:90.25)
618 नकवेसर (नाक के नीचे एगो छेद आउर करवा लिहऽ जेकरा में नकवेसर इयानी बुलाकी पेन्ह लेबऽ तऽ आउर वेस लगबऽ ।) (अल॰13.39.24; 32:103.22)
619 नगपाँचे (= नागपंचमी) (नगपाँचे नकचिया रहल हल । टाल-बधार में अमदी के जगह पर चिरई-चिरगुन, सियार-बिलार के चहल-पहल आउर सोर-गुल होबइत रहऽ हल ।) (अल॰15.44.8)
620 नजर (अलगंठवा के माय के नजर जब सुमितरी के माय पर पड़ल तऽ अलगंठवा के माय तनी हँसइत बोललक हल - "अहे सुमितरी के माय, कपड़ा गार-गुर के इधर भी अइहऽ । तोहर नइहर के कई लोग भी गंगा नेहाय अइलथुन हे ।") (अल॰6:16.15, 19)
621 नजर-गुजर (~ झारना) (सांप-बिच्छा नजर-गुजर झारे के अलावे जिन्दा सांप पकड़े के मंतर इयानी गुन से आन्हर अलगंठवा के बाबू ।) (अल॰1:1.17)
622 नदी-नाहर (कबड्डी-चिक्का-लाठी, डोलपत्ता, आउर कत्ती खेले में, पेड़-बगान चढ़े में, गाँव में नदी-नाहर से गबड़ा में मछली मारे में आउर अप्पन जोड़ापारी के संघतिअन में तेज तरार हल अलगंठवा ।) (अल॰1:1.24; 13:38.17)
623 नयका (अलगंठवा झोला में नयका धान के अरबा चूड़ा आउर नयका गुड़ कंधा में टांग के सबसे अगाड़िए जाय ला तइयार हो गेल हल ।) (अल॰6:14.22)
624 नरिअर (ओही पइसा से तम्बाकू किन के गाँव के बूढ़वा-बूढ़ियन के बोरसी से इया चुल्हा के लहकल लकड़ी के इंगोरा इया टिकिआ धरा के चिलिम में तम्बाकू बोज के नरिअर पर चढ़ाके पीलावे में तेज अलगंठवा ।) (अल॰1:2.13; 3:8.18, 20)
625 नाकर-नोकर (= नाकर-नुकुर) (अलगंठवा के बात सुन के सुमितरी नाकर-नोकर करइत कहलक हल -"तोहरा नेतागिरी से फुरसत मिलतो तऽ न, तूँ खाली दिन-रात इटिंग-मिटिंग में ही रमल रहऽ ह ।") (अल॰22:70.10, 24; 26:81.5)
626 नाद (= नाँद) (किसान सबके दूरा-दलान पर नाद में बइल सानी खाके ताकते रहऽ हल । आउर किसान सब हाथ पर हाथ रख के घुकड़ी-मुकड़ी लगा के मन मनझान कर के आपस में गपसप करइत देखाय दे रहलन हल ।) (अल॰15.44.10)
627 नाम-जस-गुन (दुरगा-सरसती-लछमी आदि इतिआदी देवी खाली मट्टी के देउता न हथ । बल्कि उ लोग तोहरे जइसन हलन जिनखर नाम-जस-गुन के चरचा आज्झ भी घर-घर में हे । सगर उ लोग के पूजा पाघुर होवऽ हे ।) (अल॰6:19.9-10)
628 निअर (लाल टुह टुह सुरज, लगे कुम्हार के आवा से पक के घइला निअर देखाई देलक, लगे जइसे कोय पनिहारिन माथा पर अमनिया घइला लेके पनघट पर सले-सले जा रहल हे ।) (अल॰3:6.4)
629 निके-सुखे (अलगंठवा ढाढ़स बंधावइत कहलक हल - घबड़ाय के कोय बात न हे, हमनी निके-सुखे पार उतर जायब ।) (अल॰31:96.29, 97.1)
630 निचिंत (= निश्चिंत) (अलगंठवा बड़ी जल्दी में ई बात कह के सुमितरी से अलग हो गेल हल कि उ बाहर जा रहल हे । फिन कभी निचिंत से बात करे ला कहलक हल ।) (अल॰18:53.21; 20:64.28; 23:73.3)
631 निछड़वाना (बच्चा ~) (अलगंठवा के तरफ मुंह फेरइत सुमितरी कहलक हल -"अरे बाप, मत पूछऽ, कल ही न बुलाकी बहु वचा निछड़वइलके हे । संउसे लूगा-फटा खून से बोथ हो गेलइ हल । हँड़िया के हँड़िया खून गिरलइ हल । संउसे टोला हउड़ा कर देलकइ कि कच्चा उहरा हो गेलइ हे । मुदा सच बात छिपऽ हे ?") (अल॰13.40.20)
632 निनार (= लिलार, ललाट) (सोहराय गांजा के विआ चुनइत कहलक -"मंगनी के चनन रगड़बऽ लाला, त लाबऽ न, भर निनार । ओही बात हे इनखर । अइसन हदिआयल जइसन दम मारऽ हका कि एक दम में सब गांजा भसम हो जा हे ।") (अल॰8:25.8)
633 निपना (= लीपना) (इस्कूल पहुँचते ही सनिचरा गुरु जी के दे देलक हल आउ सब लड़कन के साथ गोबर-मिट्टी से इस्कूल निपे में लग गेल हल । काहे कि हर सनिचर के दिन इस्कूल निपा हल ।) (अल॰4:9.14)
634 निपाना (इस्कूल पहुँचते ही सनिचरा गुरु जी के दे देलक हल आउ सब लड़कन के साथ गोबर-मिट्टी से इस्कूल निपे में लग गेल हल । काहे कि हर सनिचर के दिन इस्कूल निपा हल । इस्कूल निपा ही रहल हल कि साइकिल पर इस्कूल इंस्पेक्टर इस्कूल में जुम गेल हल ।) (अल॰4:9.15)
635 निमन (ए जी, तहिना तूँ जे बड़ावर के साधु बाबा के बारे में जे कह रहलु हल, उ तऽ बीचे में ही छूट गेलो हल । रामदहिन पाड़े के तहिना सँढ़वा पटक देलकइ हल । हल्ला-गुदाल सुन के ओकरे तरफ चल गेली हल । जरा निमन से समझाबऽ ।) (अल॰9:27.12; 15:45.23)
636 नियन (= निअन, नियर) (अँगना में छिटकइत चेलवा मछली चानी नियन चमचम चमक रहल हल ।) (अल॰5:14.3)
637 निरैठा (= जुट्ठा नयँ कइल, निरुच्छिष्ट, पवित्र) (सुनऽ ही कातो छउँड़ा पढ़े में बड़ तेज हइ, फिन ओकरा इतनो गियान न हइ कि परसादी निरैठा लावल जा हे । ठीके कहल गेल हे कि नेम न धरम, पहिले चमरवे पाखा ।) (अल॰4:12.5)
638 निवाह (= विवाह) (एसो के लगनिया में जोड़े के हइ गेठिया, चहर-जुआन लेखा घर बइठल बेटिया, एसो होतइ न निवाह तऽ का कहतइ जमनमा ।) (अल॰19:63.16)
639 निवाहना (= विवाह करना) ("तोहर सुमितरी भी तऽ सेआन हो गेलथुन होयत" - अलगंठवा के माय पूछलक हल । "हाँ भउजी, लड़की के बाढ़ भी खिंचऽ हे न, उ तऽ मिडिल पास करके घर के काम-काज भी करे लगलो हे । अगिला साल तक हीं निवाहे के विचार हई ।" - सुमितरी के माय बोललक हल । "हाँ भाय, दिन-दुनिया खराब वित रहल हे, सेआन लइकी के निवाह देवे में ही फाइदा हे ।") (अल॰6:17.1, 3)
640 निसवद (= निःशब्द) (निसवद रतिया में टरऽ टरऽ करऽ हइ ददुरवा । रहि-रहि मारऽ हइ लथार, हहार करइ पूरबा ।) (अल॰19:63.2)
641 निहोरा (अलगंठवा निहोरा करइत आउर जिद करइत कहलक हल -"माय हम भी तोरा साथ गंगा-असनान करे ला फतुहा चलवो ।") (अल॰6:14.12)
642 नीन (~ टूटना, ~ मारना ) (सपना में रोज चितकबरी पाठी के देखऽ हल आउर नीन टूटला पर फफक फफक के रोवऽ हल ।; हम एक नीन मार लेलियो । ) (अल॰1:3.5; 9:28.20; 16:51.22)
643 नी-नी (तूँ डरपोक हऽ, हम तऽ तोहरा रनचंडी के तरह देखे ला चाहऽ हलियो । तूँ ओकरा इस्कूले में ओकर मुँह पर चार चप्पल जमा के काहे न हमरा भीर अइलऽ ? नी-नी करे से कोय काम थोड़े ही होबऽ हे ।) (अल॰20:65.17)
644 नेउता (= न्योता) (सुमितरी के विआह में नेता देबऽ तऽ जरुरे अइवो अलगंठवा के लेके ।) (अल॰6:20.16)
645 नेमु (अलगंठवा के चचा जी आम-नेमु-कटहर के अचार बोजे के आउ रंग-विरंग चिड़िया इयानी मेना-तोता, हारिल-कबूतर आउ किसिम-किसिम के पंछी पाले के बड़ सौखिन हलन ।) (अल॰12.37.6)
646 नेवारी (अलगंठवा येगो नेवारी के आँटी के जौरी बाँट के कुत्ता के गोड़ में बाँध के खिचते-खिचते गाँव के बाहर पैन पर ले जा के रखलक, आउर घर से कुदाल ले जा के भर कमर जमीन खोद के ओकरे में कुत्ता के गाड़ देलक ।) (अल॰2:5.22; 5:12.21; 9:29.20)
647 नेहाना (= नहाना) (पीपर-पाँकड़ वैर आउर गूलर के पोकहा चुन-चुन के कइसे खा हल सुमितरी, लइका-लइकी के साथ कइसे उछल-उछल के पोखर में नेहा हल सुमितरी आउर पानीए में छुआ-छूत खेलऽ हल सुमितरी । आज ओकर आँख में सब कुछ के फोटू देखाय पड़इत हल ।) (अल॰5:13.2, 10; 6:16:5, 6, 7)