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Friday, July 16, 2010

17.3 मगही कथा-काव्य "रुक्मिन के पाती" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द

रुपा॰ = "रुक्मिन के पाती" (मगही कथा-काव्य) - बाबूलाल मधुकर; प्रथम संस्करण 2008; प्रकाशकः सीता प्रकाशन, 105, स्लम, लोहियानगर, पटना-20; मूल्य - 101/- रुपये; कुल 144 पृष्ठ ।


देल सन्दर्भ में पहिला संख्या सम्वाद, दोसर संख्या पृष्ठ, आउ तेसर संख्या पंक्ति दर्शावऽ हइ ।

(वर्णक्रमानुसार य से ह तक)

485 रजल-गजल (रजल-गजल आज्झ सगर कुंडिलपुर धाम । लहकल दुपहरिया में भी, चलइ नहिं लू चुअइ नहिं घाम ।) (रुपा॰16:130.26)
486 रप-रप (कान्धा के नजरिया में नाचइ पल-पल, कभी-कबी धीमे-धीमे, कभी-कभी रप-रप ।) (रुपा॰11:103.9)
487 रसगर (देखि-देखि तोहरा लहालोट, होवे लगलइ तनमा कि मनमो, भीतर-भीतर फूटे लगलइ, रसगर-रसगर मनमा ।) (रुपा॰2:29.11)
488 रस्ता (= रास्ता) (~ धरना; ~ नापना) (तोहिनी भी अप्पन-अप्पन धरऽ रस्ता, हमनि के हकइ नहिं इहाँ अब कोई वस्ता ।; एहि गुने कहऽ हियो, अप्पन-अप्पन रस्ता नापऽ ।) (रुपा॰18:143.1, 5)
489 राँड़ (जदि तोरा मारे ला चाहतो हल, तऽ तोरा मथुरे में मारतो हल जान उ । जेकर बेटिया के करि देलहु राँड़ तूँ, तोरा नहिं छोड़तो हल छूटा साँड़ उ ।) (रुपा॰5:66.3)
490 राजी-खुसी (सभे के राजी-खुसी करे खातिर, तोरा गावे पड़तो फगुआ ।) (रुपा॰10:100.12)
491 राम-राम (छिया-छिया ~) (कइसे तोहर मुँहमा से निकललो, सिसुपाल के नाम । छिया-छिया राम-राम, जीभियो नञ कटलो, नञ गललो समाङ्ग तोहर ।) (रुपा॰7:81.24)
492 रिन (= ऋण) (उनखा से होवइ नञ उरिन कभी, सौ-सौ कलम लेवे पर भी, चुकतइ नञ रिन कभी ।) (रुपा॰9:94.14)
493 रिसिआना (खरा-खोंटा पढ़ि-पढ़ि, हम्मर पतिया, नहिं रिसिअइहऽ तूँ, नहिं खिसिअइहऽ तूँ ।) (रुपा॰4:51.17)
494 रूसना (मुदा अम्मा फुसलावऽ हथिन, हमरा दुलारऽ हथिन, रूसे पर मनावऽ हथिन, दूध-भात खिलावऽ हथिन ।) (रुपा॰1:24.14)
495 रूह-चुह (हाय राम छुटल जा हइ, कुंडिलपुर नगरिया । खेत-खलिहान आउ, बाबा के बाबनो पोखरिया, रूह-चहु डगरिया ।) (रुपा॰18:144.20)
496 रेगनी (सगर रेगनी के काँटा जइसन, पसरल-लथरल ओकरे वंस हइ ।) (रुपा॰10:100.7)
497 रेसे-रेसे (~ जनना) (कहाँ उपहल हेराल हे, हम्मर सखिया हेमन्ती । आउरो हिरदो के बतिया, रेसे-रेसे जनऽ हे वसंती । ओकरो पता नञ बनार हे, हो नञ हो लगऽ हे बीमार हे ।) (रुपा॰5:55.22)
498 लंगट (सुनऽ हियो सिसुपाल हको, तोहरे फुफेरा भइवा, जे लंगट-अवारा घमंडी हो, कइसे लेलऽ ओकर नइया हो दइवा ।) (रुपा॰5:59.6)
499 लंद-फंद (अप्पन धुन के मतवाला-निराला, लंद-फंद से रहऽ हइ किनारा, झूठे-मूठे लोग ओकरा कहऽ हइ बेचारा ।) (रुपा॰2:32.27)
500 लकधक (पेन्हि ओढ़ि लकधक से, गौरी पूजे चललइ, कुंडिलपुर के जनिअन । जोग-जुआन आउ बुढ़िअन, अउँठि-पौंठि घेरले सखियन ।) (रुपा॰16:131.8)
501 लगन (तोहर हम्मर किर हो, जरूर आवऽ, एसो के लगल लगनिया में । ढोल-बाजा बजे लगलो, गाँव-घर दलनिया में ।) (रुपा॰8:89.15)
502 लगन-ओताहुल (अछय तिरतिया मास बैसख में, तोहिनी के ओताहुल हो लगनमा। तोहर कदराय आउ ढिलइ से होइ गेलइ पार फगुनमा ।) (रुपा॰8:90.33)
503 लटपट (~ करना) (मथुरे में रहऽ हइ कुब्जा, जे हकइ बड़ी सुन्नरी, ओकरो सङ्ग लटपट करऽ हइ, पता नञ झूठ हइ कि सच हइ, केकरा सङ्गे का-का करऽ हइ, हमरा नञ तनिको अकीन हइ ।) (रुपा॰5:55.1)
504 लड़क-हुसहुस (~ करना) (ओकरा आगू हम्मर भला, कुछो अउकात कुछ नञ ठेकान । लड़कहुसहुस करऽ मत, राह से कुराह चलऽ मत ।; कादो जलम भेलइ जेहलखनमा, जेहलखनमे हम्मर सौर हइ । एहि गुने कहऽ हियो, लड़क हुसहुस छोड़ऽ । बपा-भइया के कहना मानऽ, सिसुपाल से नाता जोड़ऽ ।) (रुपा॰4:50.8; 6:75.4)
505 लदबुद (लाले-लाल डम्हकल फलवा से, लदबुद लदल गुलरिया ।) (रुपा॰3:36.18)
506 लपना (चहर लेखा तनल जइसे, हववा से लपइ जइसे वंसवा के कोठिया । अङ्ग-अङ्ग भरल हकइ, हकइ गदरल देहिया के कठिया ।) (रुपा॰17:134.5)
507 लफङ्गा (एके समान सभ रहऽ हइ, कहिं कोई, चीज के नहिं तनिको अभाव हइ, चोर चाँय, लूजा-लफङ्गा-लफन्दर, आउ जुआड़िअन के तनिको नञ तरान हइ ।) (रुपा॰3:40.13)
508 लफन्दर (एके समान सभ रहऽ हइ, कहिं कोई, चीज के नहिं तनिको अभाव हइ, चोर चाँय, लूजा-लफङ्गा-लफन्दर, आउ जुआड़िअन के तनिको नञ तरान हइ ।) (रुपा॰3:40.13)
509 लमहर (सुदामा हम्मर मीतवा, सरल-सीधा इंसान हइ, लमहर विदमान हइ ।) (रुपा॰2:32.18)
510 लरकना (सखियन-सलोहर, परिजन-पुरजन के, नयना लोर ढरकइ, अङ्ग-अङ्ग लरकइ ।) (रुपा॰18:144.7)
511 ललकना (हम तो ऊपर-ऊपर हिअइ विदुकल, भीतर-भीतर हिअइ लहकल, भइया बाबू से लड़े लागि हिअइ ललकल ।) (रुपा॰3:42.26)
512 ललघँऊ (पुरूब दिसा ललघँऊ होवे लगलइ, जलदी फरिच्छ होतइ रतिया, टोला-टाटी खोंखे लगलइ, बंद करऽ हियो हमहु अब पतिया ।) (रुपा॰1:25.9)
513 लवार (हम तो अनपढ़ गमार हियो, छूछे लवार हियो, तनि-मनि पढ़ल हियो, दिन-रात दुसमन मुदइया से लङऽ हियो ।) (रुपा॰2:31.1)
514 लवेदा (आवइ आम चाहे जाइ लवेदा, कुंडिलपुर सोविस में अइवो ।) (रुपा॰11:104.10)
515 लहकना (हम तो ऊपर-ऊपर हिअइ विदुकल, भीतर-भीतर हिअइ लहकल, भइया बाबू से लड़े लागि हिअइ ललकल ।) (रुपा॰3:42.25; 6:68.17; 12:107.2; 16:130.28; 18:140.16)
516 लहना (सोंचल-गुनल बतिया नञ लहलइ, होइ गेलइ ठंडा उतसाह हम्मर । ठिके कहऽ हकइ रुक्मिन, लगि जइतइ पगड़ी में दाग हम्मर ।) (रुपा॰18:140.11)
517 लहरना (लहरल-लहकल दिन-दुपहरिया, दूनो गोटा पिए लगलह मट्ठा ।) (रुपा॰6:68.17)
518 लहरल-लहकल (लहरल-लहकल दिन-दुपहरिया, दूनो गोटा पिए लगलह मट्ठा ।) (रुपा॰6:68.17)
519 लहलह (~ करना; ~ इंगोरा) (छिंटे पड़तो, बोए पड़तो बीजवा लहलह करतो तभी खेतवा ।; अउरत गङ्गा रे जमुनमा के धारा, अउरत कनकन, सीतल आउ, लहलह इंगोरा, जेकर तनमा में रहऽ हइ डेरा ।) (रुपा॰10:100.17, 102.10; 17:133.1)
520 लहालोट (~ होना) (देखि-देखि तोहरा लहालोट, होवे लगलइ तनमा कि मनमो, भीतर-भीतर फूटे लगलइ, रसगर-रसगर मनमा ।) (रुपा॰2:29.8)
521 लाग-फांस (दूसर हको कुब्जा जे, चोरि-छिपे मिलऽ-जुलऽ हो, लाग-फांस लगावऽ हो, जान आउ प्रान बचावऽ हो ।) (रुपा॰5:60.22)
522 लारी-दुलारी (दादा कौसिक आउ भीसमक के, लारी-दुलारी-कुलतारिनी, रूप-खानि रुक्मिन) (रुपा॰2:27.6)
523 लाव-लसगर (सोंचि-सोंचि छोटा करऽ नहिं जी, नञ तो हम्मर बचतो नञ लाज अब । लाव-लसगर नञ लावऽ तूँ, एकसरे दउड़ल आवऽ तूँ ।) (रुपा॰5:58.22)
524 लिलकल (कभी-कभी लुके-छिपे आवऽ होतो, हवर-दवर भागऽ होतो । तूँ अभी तक होवऽ लिलकल के लिलकल, कभी-कभी पियऽ होतऽ पानी जमकल ।) (रुपा॰5:59.23)
525 लुक-लुक (वेर ~ करना) (लुक-लुक करऽ हकइ वेर अब, थोड़ी देर में होतइ अंधेर अब ।) (रुपा॰5:56.12)
526 लुकान (मुंहमा ~) (होते भिनसरवा मुंहमा लुकान, इतरइते, थिरकते जुमलइ, हेमन्ती, मारि-मारि मटकी ।) (रुपा॰12:107.4)
527 लुगा (= लुग्गा) (नेहाइ-नेहाइ अइलिअइ अरार पर, तितल-भीङ्गल लुगवा धइलिअइ कपार पर ।) (रुपा॰3:36.7)
528 लुचा (= लुच्चा) (अभी लुचा-लफङ्गा के जोर हो, पता नञ कउन हम्मर कउन तोर हो ।) (रुपा॰4:49.22)
529 लूजा (= लुच्चा) (एके समान सभ रहऽ हइ, कहिं कोई, चीज के नहिं तनिको अभाव हइ, चोर चाँय, लूजा-लफङ्गा-लफन्दर, आउ जुआड़िअन के तनिको नञ तरान हइ ।) (रुपा॰3:40.13)
530 लूतरी (~ लगाना) (अँखिया तरेरऽ हथिन, बघुआ हथिन,  मेअनमा से खिंचऽ हथिन तेगवा, भौजी हरदम लूतरी लगावऽ हथिन, गरिआवऽ हथिन, घिनावऽ हथिन ।) (रुपा॰1:24.3; 3:42.21; 5:55.6, 62.25)
531 लूरगर (= लुरगर) (गली-कुचि कादो-किचड़ किदोड़ लगलो, अमदी आउ मानुस बेसहुर लगलो, एको नहिं बुधिगर, एको नहिं लूरगर, कोय के नञ तनि बोले के सहूर लगलो ।) (रुपा॰1:22.3; 4:50.20)
532 लेरू (जइसे गाय-गोरु अप्पन लेरूआ के पुचकारऽ हइ, ओइसहिं नियति भी हमनि के दुलारऽ हइ ।) (रुपा॰4:49.13)
533 लोग-बाग (लोग-बाग कहइ - अइलइ कोई जदुगरवा, जादू-टोना जानऽ हकइ, हकइ अगम-अपरवा, छाती-मुक्का मारइ सभे छपित नगरिया, तोहरे पर गड़ि गेलइ सभे के नजरिया ।) (रुपा॰1:16.11, 25.21)
534 लोर-झोर (फुंक-फुंक के धरती पर धरऽ लात तूँ, खाली अँखिया करऽ मति लोर-झोर ।) (रुपा॰4:51.2)
535 लोहचुट्टी (कान्धा के देवइ जवाब अइसन, कि लगतइ लोह-चुट्टी । अभी रहतइ हल पास तनि, बकोटि के काटि लेतिअइ चुट्टी ।) (रुपा॰7:80.21)
536 लोहराइन-फोकराइन (पतिया के अन्त में एगो बात आउ लिखऽ हियो, हम हिअइ जात के तिरिया, जेकर मसवा लोहराइन-फोकराइन हइ, जेकरा पर पंचवन के हरदम उठऽ हइ अङ्गुरिया ।) (रुपा॰1:25.15)
537 लोहा-लक्कड़ (सोना चान्दी हीरा मोती मानिक, के खान हम्मर मगध देसवा, लोहा-लक्कड़ पीतल-तामा अबरख के, पहाड़ हकइ हम्मर मगध देसवा ।) (रुपा॰3:39.23)
538 लौंड़ी-नफ्फर (सुनऽ मोहन, कुब्जा हकइ जाति के मलिनिया, लौंड़ी-नफ्फर सेविका, आउ तोहर सचो के प्रेमिका ।) (रुपा॰5:61.25)
539 वउआना (पता नहिं केकर पुन्न-परताप से, मिलि गेलन भइया विसकर्मा । हमरा जइसन वउआइल के, लपकि के लगाइ लेलन गरवा । उनके चमतकार से, उठलो अटरिया ।) (रुपा॰9:94.4)
540 वउसा (= बउसाह) (भोथर होलइ हम्मर तेगा-तलवरिया, कि टूटि गेलइ ढाल हम्मर । रुक्मिन के बुधिया के आगू, तनिको नञ चलइ वउसा हम्मर ।) (रुपा॰18:140.10)
541 वउसाह (ओकरा आगू हमरा नञ, कोई चारा लउक रहले हे, न कोई वउसाह चल रहले हे, लगऽ हइ हम्मर उदसाहे गल रहले हे ।) (रुपा॰4:46.16)
542 वदरङ्ग (हमरा पर लगल डेर अछरङ्ग हो, राजा के नञ बेटा हम, हम्मर जाति वदरङ्ग हो ।) (रुपा॰4:49.30)
543 वनगी (= बनगी, वन्दगी) (हम्मर टुअर-टापर जिन्नगी, जब तक घंट में प्रान रहतइ, सांस-सांस करवइ वनगी ।) (रुपा॰9:96.31)
544 वनिसार (रहे-सहे सोवे लागि, कोठा आउ अटारी लागि, भला कउन हकइ तरसल । महल-अटरिया में वनिसार, नियन भला कउन रतइ अँटकल ।) (रुपा॰7:84.1)
545 वरजात (सुनऽ हिअइ कादो बड़ी वरजात हइ, अनकर के घरे-घरे घुरऽ हइ, दही-मखन चोरावऽ हइ ।) (रुपा॰5:54.13)
546 वस्ता (= वास्ता) (तोहिनी बी अप्पन-अप्पन धरऽ रस्ता, हमनि के हकइ नहिं इहाँ अब कोई वस्ता ।) (रुपा॰18:143.2)
547 वहिआर (~ गाना) (सागर तट टापू में, विपत्ति गमावऽ हइ, विरहा कि वहिआर गावऽ हइ, देउता-देवी गोहरावऽ हइ ।) (रुपा॰7:80.14)
548 वास (कहीं नञ ~ होना) (कहिं नहिं हमरा वास हइ, डेग-डेग पर अछरंग, उदवास हइ ।) (रुपा॰6:72.6)
549 विंडोबा (तोहरा आवे के असरवा में, सभ टुक-टुक निहारऽ हो । हवा-पानी विंडोवा भी, तोरा लागि रस्ता बुहारऽ हो ।) (रुपा॰9:95.9)
550 विदमान (सुदामा हम्मर मीतवा, सरल-सीधा इंसान हइ, लमहर विदमान हइ ।) (रुपा॰2:32.18)
551 विदिया (= बिद्दा, विद्या) (सरोतरी बराहमन के पुतवा, सुदामा हकइ मोर मन मीतवा, बुधिया के आगर, विदिया के सागर ।) (रुपा॰2:33.24)
552 विदुकना (हम तो ऊपर-ऊपर हिअइ विदुकल, भीतर-भीतर हिअइ लहकल, भइया बाबू से लड़े लागि हिअइ ललकल ।) (रुपा॰3:42.24; 7:83.15)
553 विरिख (= वृक्ष) (रूखवन विरिखिया पर, गुन-गुन करइ भौंरवा कि, एके रागे टिसइ भिङ्गिरजवा ।) (रुपा॰3:36.24)
554 विलम (= विलम्ब) (खद-खद करऽ हको अदहन, मेरावल हको चउरा । समझऽ मढ़वो पेसावल हो, जदि करवऽ विलम तऽ सेरा जइतो । ओरिया जइतो, बसिया जइतो, टटका रहे पर जरि चौगर से खइबऽ ।) (रुपा॰12:112.9)
555 वृतान (= वृत्तान्त) (हाथ-गोड़ जोड़ि-जोड़ि के, कानि-कानि रोइ-धोइ के, अङ्गारक के सभे वृतनवा सुनइलकइ ।) (रुपा॰5:61.14)
556 वेगरल (इ हकइ कुब्जा आउ राधा से हिगरल, दूसर अउरतियन से एकदम वेगरल ।) (रुपा॰6:71.11)
557 वेवधान (= व्यवधान) (अछय तिरतिया दिन गुरुवार, ओहि दिन विधि के मेरावल विधान हो, एकरा में कहिं नञ वेवधान हो ।) (रुपा॰12:112.24)
558 वेवहार (= व्यवहार; बेवहार) (रुपा॰8:90.29)
559 वेसाहा (भइया-भौजी के अँखिया के, बनल हिअइ काँटा, रोजे-रोज झगड़ा वेसाहा हइ, अपने मन से अप्पना के सराहा हइ, तनिको नञ हमरा गदाना हइ ।) (रुपा॰3:40.28)
560 संझा-वाती (लुक-लुक करऽ हकइ वेर अब, थोड़ी देर में होतइ अंधेर अब । संझा-वाती करे के बेला, आज हिअइ केतना अकेला ।) (रुपा॰5:56.14)
561 सक-सुभा (रुपा॰1:22.15)
562 सका-सुभा (= सक-सुभा) (उ तो हम्मर अँखिया के देखल आउ, हम्मर पतिआइल हइ । ओकरा पर तनिको नहिं सका-सुभा, उ तो हम्मर हिरदा में समाइल हइ ।) (रुपा॰5:60.28)
563 सखी-सलोहर (रुक्मिन सखी हम्मर फुलमन्ती, हकइ हम्मर नाम हेमन्ती । सखिया-सलोहर हम्मर, दू देह एक प्रान हम्मर ।) (रुपा॰8:86.15; 11:104.19; 18:144.4)
564 सगुनना (सुनि तोतवा के टनगर बोलिया, रुक्मिन एने-ओने ताके लगलइ। .... मने-मने सगुनइ कि चउगनइ रूकमिन, रहि-रहि धड़कइ रूकमिन के छतिया । हो नञ हो अइलइ हे सुदामा ।) (रुपा॰5:52.9)
565 सचो (~ के) (सचो के कान्धा पर पड़ल हइ विपतिया ।) (रुपा॰5:53.16, 61.26; 18:140.1)
566 सनकना (खुसिया के मारे गनकऽ हइ मनमा, सले-सले सनकऽ हइ मनमा ।) (रुपा॰6:70.27)
567 सबुरी (= सब्र) (अबऽ धरि के सबुरी तनि सुनऽ, सुनऽ तनि अचरज के बतिया । मुदा हदसऽ नञ लाला तनि, तानऽ अप्पन छतिया ।) (रुपा॰12:109.29)
568 समतुल (जब कढ़लो सगुनमा, समतुल बैठलो लगनमा ।) (रुपा॰12:108.30)
569 समाङ्ग (= समांग) (कइसे तोहर मुँहमा से निकललो, सिसुपाल के नाम । छिया-छिया राम-राम, जीभियो नञ कटलो, नञ गललो समाङ्ग तोहर ।) (रुपा॰7:81.26)
570 समाठ ( (होवऽ हइ प्रेम जब गोड़वा में सटऽ हइ, छोड़ावे पर जल्दी नञ छूटऽ हइ । दुसमन मुदइ सबके ऊखड़ी में, समठवा के चोट देइ-देइ कूटऽ हइ ।) (रुपा॰3:43.16)
571 सरधा (= श्रद्धा) (नदी-नाला बहऽ हकइ बहऽ हकइ झरना, छठी मइया के होवऽ हकइ खड़ना । नियम-धरम से दीनानाथ के होवइ अराधना, सभ कोई सरधा से करइ परना ।) (रुपा॰5:64.5)
572 सरीखा (= समान) (हमरा पीछे हकइ खाली, तोहरा सरीखे देविजी के सक्ति, हरदम ओहि सभ के सेवऽ हिअइ, मनमा से करऽ हिअइ भगति ।) (रुपा॰2:31.5)
573 सरोतरी (= श्रोत्रिय) (सरोतरी बराहमन के पुतवा, सुदामा हकइ मोर मन मीतवा ।) (रुपा॰2:33.22)
574 सवासिन (अब कोई धिया के कहतइ नञ, अबला-अभागिन । जे हकइ परम-पवितर, घर के सवासिन ।) (रुपा॰17:136.4)
575 ससुरार (= ससुराल) (कहिं नहिं होतइ हम्मर नइहर, नहिं कहिं होतइ तोहर ससुरार । एहि हम्मर तोहर पहचान ।; रूकमिन आउर कान्धा, हाथ जोड़ि कुंडिलपुर के, करइ परनाम कि, मांगइ असीरवाद । नैहिरा आउ ससुरिया, रहइ सभे दिन अबाद ।) (रुपा॰7:82.26; 18:144.2)
576 सहकल-वमकल (हम्मर भइया रूकमी, हकइ जलमे से सहकल-वमकल ।) (रुपा॰7:84.30)
577 सहजाना (जादे सहजा नञ, तूँ हऽ बड़ि हुरचुलिया, जोर से बकोटऽ मति, लऽ बढ़ावऽ हियो गलिया ।) (रुपा॰3:44.25)
578 सहूर (बोले के ~) (गली-कुचि कादो-किचड़ किदोड़ लगलो, अमदी आउ मानुस बेसहुर लगलो, एको नहिं बुधिगर, एको नहिं लूरगर, कोय के नञ तनि बोले के सहूर लगलो ।) (रुपा॰1:22.3)
579 साँड़ (= साड़, साँढ़) (जदि तोरा मारे ला चाहतो हल, तऽ तोरा मथुरे में मारतो हल जान उ । जेकर बेटिया के करि देलहु राँड़ तूँ, तोरा नहिं छोड़तो हल छूटा साँड़ उ ।) (रुपा॰5:66.4)
580 सांधी (= सान्ही) (अउरत होवइ सचमुच में, अमरित के खान आउ जहर के पोटरी । रहतइ नञ बंद कभी, कोना-सांधि-कोठरी ।) (रुपा॰18:140.22)
581 साड़ (= साँढ़) (देखि-देखि हमरा मारइ परझोवा, कहऽ हलो - बाघ लेखा गरजऽ हइ, हाथी सन चिघाड़ऽ हइ, असमान फाड़ऽ हइ, साड़ जइसन अखड़ऽ हइ) (रुपा॰1:23.15)
582 सानि (= सानी) (नदिया में नकिया डुबाइ बैला, तनिको नञ सानि खा हो चाउ में । मुड़िया डोलावऽ हो तोहरे निहारऽ हो, बुलावऽ हो कुंडिलपुर गाँव में ।) (रुपा॰8:89.11)
583 सामन-भादो (= सावन-भादो) (रह-रह के सामन-भादो के, विजुरी कड़क रहलो हे ।) (रुपा॰4:45.20)
584 सामसुन्नर (= श्यामसुन्दर) (सुनऽ दीदी कुब्जा, जदि सामसुन्नर से करहु पीरितिया, पता नञ तूँ केकर हहु तीरिया, मुदा तोहर हको हम्मर किरिया, हवा से भी नहिं कहिहऽ, जे कहऽ हियो तोहरा से बतिया ।) (रुपा॰1:17.29)
585 सिमाना (तोरा मगध सिमाना पर, तनिको नञ डर हो । इहाँ के नगर-महानगर, समझऽ तोहर घर हो ।) (रुपा॰8:92.8)
586 सिरका (कहऽथिन रूकमिन सिरका तानी रहवइ, जइसे रहइ नटवा-नटिनिया ।) (रुपा॰8:91.13)
587 सिरा-घर (= सीरा-घर) (तोहनी के डोलिया फइनइतइ, सिरा-घर से देवीथान-गोरइयाथान, सगर गीत-नाद नधइतइ ।) (रुपा॰8:90.25; 12:108.17)
588 सिरी (= श्री) (सिरी सोसति सरउपमा जोग । पाती लिखऽ हियो मगध देस के कुंडिलपुर गाँव से, तोहर नाम से ।) (रुपा॰1:13.1)
589 सुनगुन (तोहरा आवे के सुनगुन हको सगर गाँव में, फुसुर-फुसुर होवऽ हको गली-कुचि पेड़वन के छाँव में ।) (रुपा॰8:89.8)
590 सुन्नरी (मगध-सुन्नरी) (रुपा॰2:27.2; 4:45.26; 5:54.32)
591 सुसताना (तोहर गोदिया के छाँव में, हकासल-पियासल, तनि सुसतइवइ ।) (रुपा॰4:48.22)
592 सेराना (इया जरासंध आउ रूक्मी से, डेरा के सेरा गेलइ, कहिं उ हेरा गेलइ ।; खद-खद करऽ हको अदहन, मेरावल हको चउरा । समझऽ मढ़वो पेसावल हो, जदि करवऽ विलम तऽ सेरा जइतो । ओरिया जइतो, बसिया जइतो, टटका रहे पर जरि चौगर से खइबऽ ।; ओकर सभे जोसवा, पले में सेराइ गेलइ ।) (रुपा॰9:95.16; 12:112.9; 18:143.18)
593 सैरियत (दुअरा के कुत्तवा भी पुछिया डोलावऽ हइ, चोरवा-चिलहरवा से घरवा बचावऽ हइ । मुदा नूनमों के सैरियत नहिं रखइ अमदी, जइसे नन्दगाँव-वृन्दावन-मथुरा के अमदी ।) (रुपा॰10:101.16)
594 सोंचल-गुनल (सोंचल-गुनल बतिया नञ लहलइ, होइ गेलइ ठंडा उतसाह हम्मर । ठिके कहऽ हकइ रुक्मिन, लगि जइतइ पगड़ी में दाग हम्मर ।) (रुपा॰18:140.11)
595 सोंस (मानलि कि रजा जरासंध हथिन परतापी, मुदा हथिन नहिं सोंस-घड़ियाल वाघ उ, जे जीते जी अमदी चिवइथिन, हथिन नहिं अइसन घाघ उ ।) (रुपा॰5:58.9)
596 सोनाना (अप्पन भूख लागि चूल्हा फुंकतइ, हम्मर भूखवा ला ओकर माथा दुखतइ । दिन-रात हमरा सोनइतइ, अपने पलङ्ग तोड़तइ ।) (रुपा॰9:98.14)
597 सोविस (आवइ आम चाहे जाइ लवेदा, कुंडिलपुर सोविस में अइवो ।) (रुपा॰11:104.11)
598 सोसति (= स्वस्ति) (सिरी सोसति सरउपमा जोग । पाती लिखऽ हियो मगध देस के कुंडिलपुर गाँव से, तोहर नाम से ।) (रुपा॰1:13.1)
599 सोहमन (= सोहामन; सुहावना) (दिनमा सोहमन लागइ, रतिया इंजोरिया । राहे-बाटे पनघट पर, तोहरे हिआवऽ हको गोरिया ।) (रुपा॰8:89.4)
600 सौरी (सचमुच में जलमे से, कान्धा हइ टुअर । सौरियो में लगलइ नञ तेलवा, एहि गुने लगइ कभी भुअर ।) (रुपा॰7:79.12)
601 हँकड़ना (जेहि रे पतलवा में खा हइ, ओकरे में करइ छेद उ । खाली हँकड़ऽ हइ, हुकड़ऽ हइ, तनिको नञ जानइ तिरिया के भेद उ ।) (रुपा॰7:82.9)
602 हकासल-पियासल (मिललो तोहर लिखल पाती, झटसन लगाइ लेलियो छाती ... जेकरे ला हलियो हकासल-पियासल ।) (रुपा॰2:27.15; 4:48.21; 7:85.14)
603 हदसना (अबऽ धरि के सबुरी तनि सुनऽ, सुनऽ तनि अचरज के बतिया । मुदा हदसऽ नञ लाला तनि, तानऽ अप्पन छतिया ।) (रुपा॰12:109.31)
604 हरफ (चकमक, गोल-गोल हरफ में, अच्छर में) (रुपा॰2:27.14)
605 हरिअर (~ कचूर) (हम्मर मगध देसवा हरिअर कचूर हइ, अन्न-धन सोना चानी से भरपूर हइ ।) (रुपा॰5:63.24)
606 हर्जा (ढूढ़ कोई अर्जा, नञ काम होवइ हर्जा ।) (रुपा॰9:98.24)
607 हल-हल (~ करना) (हलवा से हल-हल करऽ हको धरती, जोतल-कोड़ल हको सभे परती ।) (रुपा॰10:100.14)
608 हवर-दवर (कभी-कभी लुके-छिपे आवऽ होतो, हवर-दवर भागऽ होतो । तूँ अभी तक होवऽ लिलकल के लिलकल, कभी-कभी पियऽ होतऽ पानी जमकल ।) (रुपा॰5:59.22, 31)
609 हहरना (कभी नहिं हहरऽ, नहिं तनि डरऽ, कड़ा करऽ तानऽ तनि छाती ।) (रुपा॰1:22.9; 2:29.2; 5:67.7; 7:80.6)
610 हाँफे-फाँफे (हेमन्ती दे हइ पतिया, रूक्मिन के हाथ में । हाँफे-फाँफे मिललइ सुदामा कल्हे साम में, खड़ा हलिअइ अप्पन खाँड़ में ।) (रुपा॰12:107.29)
611 हाँफे-फाफे (=हाँफे-फाँफे ) (हाँफे-फाफे कुंडिलपुर आबऽ तूँ, सखि हम्मर रूकमिन के अंक में लगाबऽ तूँ ।) (रुपा॰8:92.22)
612 हाउ-हाउ (राजा-रजवड़वन करइ खाली हाउ-हाउ, आपसे में करऽ हकइ झाउँ-झाउँ ।) (रुपा॰10:100.24)
613 हावा (= हवा) (कइसन हकइ हावा-पानी ?) (रुपा॰9:94.30)
614 हिंछा, हिंच्छा (अप्पन चीजवा चिजोर हइ, दिनमा कि रतियो इंजोर हइ । हिंच्छा भर खाय के हिंछा भर पिए के, टूटलि मड़इया में नीन्द भर सोवे के ।) (रुपा॰5:60.14)
615 हिआना (मने-मने गुनऽ हिअइ, माथा अप्पन धुनऽ हिअइ, हिआवऽ हिअइ बड़ेरी कि गिनऽ हिअइ तारा ।; कभी दूरा दलान, कभी गली-कूचि, कभी चढ़ि के अटारी, रुकमिन हिआवऽ हइ । मथुरा-दुआरिका से अभी तक, कोई नहिं आवऽ हइ, कान्हा के हेस नेस कोई नहिं लावऽ हइ ।) (रुपा॰2:32.14; 7:77.4; 8:89.7; 16:131.17)
616 हिगरल (इ हकइ कुब्जा आउ राधा से हिगरल, दूसर अउरतियन से एकदम वेगरल ।) (रुपा॰6:71.10)
617 हिजे (करऽ मति बात पीछे हिजे, तोरा जेमे खातिर करऽ हियो बिजे ।) (रुपा॰12:112.4)
618 हिनतइ (इयार-दोस्त दुसमन मुदइ भेलो, खाली चारो ओर हम्मर हिनतइ होलो ।) (रुपा॰4:50.16)
619 हिनती (एहि गुने कर जोड़ि करऽ हियो मिनती, गँउआ-गुदालमत करिहऽ, नञ तो होतइ हम्मर हिनती, तोहरे कहे पर पहिले भेजऽ हियो पाती ।) (रुपा॰1:25.29)
620 हिम्मत-हिआउ (ओहि लोग फेरतइ, अप्पन-अप्न मोछवा पर ताउ । जेकरा हकइ कुछो नहिं, हिम्मत-हिआउ ।) (रुपा॰5:67.6)
621 हुक-हुक (हुक-हुक जान हलो, मुरदा समान हलो, हम्मर जिन्नगी नञ, हम्मर अधीन हलो ।) (रुपा॰9:93.20)
622 हुमचना (मुदा कोइली के कूक हमरा लगइ हूक, देहिया के हुमचइ-दुमचइ चढ़ल जमनिया ।) (रुपा॰5:57.6)
623 हुमाद (= हुमाध; समिधा) (आजा-बाजा के अनोर से, गइया-गोरूआ थिरकइ बथान । धूप-दीप-हुमदवा से, महमह करइ देविथान ।) (रुपा॰16:131.6)
624 हुरचना (दादा कौसिक मने-मने कुरचऽ हथिन, तोहर वीरता के सुने खातिर हुरचऽ हथिन ।) (रुपा॰1:24.21)
625 हुरचुलिया (= हुलचुलिया, नटखट) (जादे सहजा नञ, तूँ हऽ बड़ि हुरचुलिया, जोर से बकोटऽ मति, लऽ बढ़ावऽ हियो गलिया ।) (रुपा॰3:44.26)
626 हुलकी (~ मारना) (करिके बहाना कोई, गिरिव्रज भागतो ।  फेनु कभी नहिं, हुलकी भी मारतो ।) (रुपा॰5:66.29)
627 हुलरी-दुलरी (दादा कौसिक के हुलरी-दुलरी पोतिया, भइया रुक्मी के एकपिठिये मुँहबोली बहिनी, भौजी सुव्रता के ननदी अलोधनी जे रहि-रहि करथिन हँसि-मजाक कहि-कहि गोतनी ।) (रुपा॰1:13.11)
628 हेराना (= गुम होना, गायब होना) (रहि-रहि जियरा डेरा हे, सोंचल बुधियो हेरा हे, कहाँ उपहल हेराल हे, हम्मर सखिया हेमन्ती ।; लगऽ हकइ अइतइ नहिं कान्धा । रहिया हेरा गेलइ या, होलइ कहिं बाधा ।) (रुपा॰5:55.18, 19, 57.17; 9:95.17; 16:131.22)
629 हेस-नेस (कुंडिलपुर रहिहऽ तनि गम के, अपना के तौलिहऽ नेहि कभी कम के, तोहर हेस-नेस पावे खातिर, तकवो हम रहिया में अँखिया पसार के ।; कभी दूरा दलान, कभी गली-कूचि, कभी चढ़ि के अटारी, रुकमिन हिआवऽ हइ । मथुरा-दुआरिका से अभी तक, कोई नहिं आवऽ हइ, कान्हा के हेस नेस कोई नहिं लावऽ हइ ।) (रुपा॰2:34.21; 5:66.23; 7:77.7; 9:93.11)
630 हेस-नेसदि (तोहूँ अप्पन हेस-नेसदि दिहऽ, तनि देर मति करिहऽ, निके-सुखे रहिहऽ ।) (रुपा॰1:26.18)

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