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Saturday, March 19, 2011

55. दिल्ली से प्रकाशित 'मगही पत्रिका' का लोकार्पण



 

 




मगध संस्कृति का प्राण तत्व

14 Mar 2011, 10:56 pm

जहानाबाद, निज प्रतिनिधि

स्थानीय रामकृष्ण परमहंस फाउंडेशन एवं मगही विकास मंच के संयुक्त तत्वावधान में सोमवार को रामकृष्ण परमहंस विद्यालय में दो दिवसीय कवि सम्मेलन का समापन किया गया। आखिरी दिन संस्था के निदेशक प्रो. चंद्रभूषण कुमार एवं साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष नरेश शर्मा गुलशन ने दिल्ली से प्रकाशित 'मगही पत्रिका' का लोकार्पण किया। मौके पर अपने संबोधन में विद्यालय के निदेशक प्रो. चंद्रभूषण उर्फ भोला जी ने कहा कि मगही हमारी अपनी अस्मिता व जमीर से जुड़ा एक बड़ा सवाल है । उन्होंने कहा कि मगही दरअसल मगध संस्कृति का प्राण तत्व है। इससे हरेक मगधवासी को बड़े गौरव के साथ आत्मसात करना चाहिए तथा बोल चाल की भाषा में ज्यादा से ज्यादा इसका इस्तेमाल पर बल देने की जरूरत है । उन्होंने उपस्थित लोगों से अपील करते हुए कहा कि जब कभी भी किसी को मौका मिले तो बड़े मंचों पर भी मगही का गौरव के साथ इस्तेमाल करना चाहिए । अन्य वक्ताओं ने भी मगही की महिमा पर प्रकाश डालते हुए इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में डाले जाने के लिए एक समग्र व सशक्त संघर्ष की आवश्यकता पर बल दिया । मंच के सचिव की ओर से पत्रिका के संपादक धनंजय श्रोत्रिय को अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया। मंच के सचिव अरविन्द आंजास एवं हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सचिव सुधाकर राजेन्द्र ने धनंजय श्रोत्रिय की मगही पत्रिका को सबसे मुखर आंदोलन करार दिया । इनके नेतृत्व में मगही आंदोलन को नयी दिशा मिलेगा । राम कृष्ण परमहंस विद्यालय में घमंडी राम की अध्यक्षता में आयोजित कवि सम्मेलन में साहित्यकारों ने कविता पाठ किया । प्रो. कुमार ने कवि साहित्यकार को नौनिहालों का प्रेरणा स्रोत बताया । इस अवसर पर माधव प्रसाद सिंह, कृष्ण कुमार, जयनंदन, विनय शर्मा विनय, रवि शंकर शर्मा, डा. बीएस लाल, विश्वजीत अलवेला, मौलेश्वर समेत कई लोग उपस्थित थे ।
 
12 Mar 2011, 10:44 pm
जहानाबाद, निज प्रतिनिधि

मगही विकास मंच जिला इकाई के तत्वावधान में शनिवार को बैठक की आयोजन किया गया। जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष नरेश कुमार गुलशन की अध्यक्षता में आयोजित बैठक के दौरान मगध की भाषा मगही में प्रकाशित मगही पत्रिका का लोकार्पण करने का निर्णय लिया गया। श्री शर्मा ने बताया कि आगामी 13 मार्च को स्थानीय राज कृष्ण परमहंस विद्यालय में मगध के जाने माने कवियो का जमावड़ा लगेगा। मगही और हिन्दी के कवियो को काव्य पाठ के उपरांत पत्रिका का लोकार्पण किये जाएगे।

Sunday, March 13, 2011

19. मासिक पत्रिका "अलका मागधी" (1998) में प्रयुक्त मगही शब्द


अमा॰ = मगही मासिक पत्रिका "अलका मागधी"; सम्पादक - डॉ॰ अभिमन्यु मौर्य, पटना
सन्दर्भ में पहिला संख्या संचित (cumulative) अंक संख्या; दोसर पृष्ठ संख्या, तेसर कॉलम संख्या आउ चौठा (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ । उदाहरण -
जुलाई 1995 खातिर संचित अंक संख्या = 1;

दिसम्बर 1995 खातिर संचित अंक संख्या = 6;
दिसम्बर 1996 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + 12 = 18;

दिसम्बर 2007 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2007-1995) X 12 = 6 + 12 X 12 = 150;
दिसम्बर 2009 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2009-1995) X 12 = 6 + 14 X 12 = 174;

जनवरी 2009 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2008-1995) X 12 + 1 = 6 + 13 X 12 + 1 = 163.
अप्रैल 2009 खातिर संचित अंक संख्या = 6 + (2008-1995) X 12 + 4 = 6 + 13 X 12 + 4 = 166.

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(अंक १ से ३० एवं अंक १६३ से १८६ में प्रयुक्त मगही शब्द के अतिरिक्त)
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1    अँकड़ी (सोना अइसन बेटा हमर लागे हर घड़िया, कइसे तो फेंटा गइले गेहूँ में अँकड़िया, का कहीं बबुआ, पतोह मिलल करिया ।)    (अमा॰33:10:2:6)
2    अँखफोर (एक महीना सेवा करके बच्चा पोसलियो, बढ़िया से अँखफोर भी न होलो कि आग में पका के खा गेलथुन ।)    (अमा॰31:25:2.28)
3    अँगारी (= अँगाड़ी, अगाड़ी; सामने) (बँसवारी से सीपी देखलक कि लोग तिलक के समान लेके जा रहलन हे । ऊ तनि झपट के घरे पहुँचल आउ बाबा के अँगारी में जाके ठार हो गेल ।)    (अमा॰36:8:2.21)
4    अँगेजना (= सहना; झेलना; स्वीकारना) (ओकर माए चुप हो गेल । अँचरा से लोर पोंछ के बोलल - 'कहाँ ले अँगेजूँ ? सहहूँ के एगो हद होवे हे ।')    (अमा॰36:7:1.30)
5    अँटान (अइसे तो टीसन पर अनदिनो अँटान न रहे, बाकि एक जगह कुछ जादे भीड़ देख के चन्दू ठुमक गेल ।)    (अमा॰31:7:2.2)
6    अंगूरी (खून-बून लब-लब करइत हे, आँखन के कोटर प्याला । लोग देख के लपक रहल हे, समझे अंगूरी हाला ।)    (अमा॰41:5:2.20)
7    अउँठी (= अँगूठी) (ई ग्रन्थ में विद्वान लेखक के अध्ययन के प्रचुर सम्पन्नता, गहराई आउ विस्तार पन्ना-पन्ना पर सोना के अउँठी में हीरा के नग के तरह जुड़ल हे ।)    (अमा॰37:12:1.11)
8    अगरी (घन गरजे, घन बरसे अइसन, गगन में बिजुरी चमके, बहे कभी पुरवइया, अगरी चूए हर-हर, जम के ।)    (अमा॰39:11:2.5)
9    अगहर (जरासंध के मन में शिवभक्ति कके साथ नाग देवता के प्रति भी उँचगर भाव हल । कुश्ती कला में ई अगहर हलन ।)    (अमा॰31:15:1.14)
10    अगियान (= अज्ञान)    (अमा॰39:7:2.5)
11    अगियानी (= अज्ञानी)    (अमा॰39:7:2.3)
12    अगुआड़ी (अगुआड़ी और पिछुआड़ी में गाड़ी आवे जाय भर जगह जरूर छोड़ल जाय ।)    (अमा॰36:6:1.16)
13    अचार-बेओहार (= आचार-व्यवहार) (सोहन आनन-फानन में ओजा पहुँचल । भीड़ चिरइत ओजा जाके तेज सुर में डाँटलक - 'अरे भइया ! तोहनी दूनहुन तो समझदार हऽ । तनि समझदारी से काम लऽ । नागरिकता के लूर-लच्छन समझ-बूझ के चलऽ । सड़क पर संसद के सभा आउ आचरन के अचार-बेओहार ठीक हे का ?')    (अमा॰36:9:1.25)
14    अततायी (= आततायी) (अततायी के राज में हर अदमी के दम घुट रहल हे ।)    (अमा॰36:15:2.15)
15    अतमा (= आत्मा) (देह समाएल हे अतमा जब होएत ई पहचान । जन-जन से नाता जुड़ जाएत, अप्पन लगत जहान॥)    (अमा॰38:19:1.5)
16    अता-पता (पत बरिस गाँओ में भागा-भागी के दू-चार गो घटना होवे हे आउ हमेशा ओकरा ला रुकमिन फुआ के बदनाम कएल जाहे । पढ़े {? परहे} एगो मेढ़ानू अप्पन परेमी सँगे भागल हे आउ अभी ले ओकर अता-पता तक न हे । लोग कहऽ हथ कि ओहू रुकमिन फुआ के करतूत हे ।; तीन बरिस तक महेन्दर बाबू के कोय अता-पता न रहल ।)    (अमा॰36:7:2.12; 38:14:2.10)
17    अत्तु-अत्तु (= अतु-अतु) (साठ के बाद अठाइस बरिस कुत्ता वाला आयु के योग ! ... कभी एहिजा धुनि रमावऽ तो कभी ओहिजा ! बदला में अपमान, उपेक्षा आउ अत्तु-अत्तु  के झूठा लालच !)    (अमा॰42:7:1.1)
18    अधवयस (बीच में एगो गोर सुन्नर महिला आउ बगल में एगो पान चबावित अधवयस औरत बइठल हल ।; अधवयस औरत टुभकल -'चल ! हमरा साथ रात-भर रहिहें, फिन सबेरे चल जइहें ।'; 'इनके साथ रिक्शा पर चल जो ! न तो हम तोरा जहाँ कह हुएँ पहुँचा देबउ ।' अधवयस सिपाही बोलल ।)    (अमा॰31:7:2.11)
19    अनदिनो (= आन दिन भी) (अइसे तो टीसन पर अनदिनो अँटान न रहे, बाकि एक जगह कुछ जादे भीड़ देख के चन्दू ठुमक गेल ।)    (अमा॰31:7:2.2)
20    अनपढ़पन (हम्मर अनपढ़पन आज जड़ पकड़ले हे काहे कि हम्मर राष्ट्रीय आउ समाजिक चेतना आउ भावना कमजोर पड़ गेल हे ।)    (अमा॰39:6:1.18)
21    अनपढ़ुआ (अपने तो लोकगीत के सब रंग में गीता के दरसन के अनपढ़ुओ के समझे ओला तरजुमा कइली हे, अंगरेजियो के न छोड़ली हे ।)    (अमा॰35:18:2.6)
22    अनाधुन (= अन्हाधुन, अन्धाधुन्ध) (ढेला-पत्थर खूब तेजी से चले लगल । बूढ़, जवान, लइका, लइकी, मेहारू सबके सब अनाधुन ढेला फेंकइत हलन ।)    (अमा॰42:12:2.16)
23    अनेर (दिल्ली में नेता सब बैठल अनेर, आधा हे तितिर आधा बटेर ।)    (अमा॰32:13:1:2)
24    अन्नस (< अन + सह; कोलाहल से खीज; असुविधा, कठिनाई; अवरोध)  (त रहऽ दूर फटाका से, न रंग में भंग मिलावऽ । खा बुनिया फरही मिठाई, अन्नस न तनिक बढ़ावऽ ।)    (अमा॰40:18:2.27)
25    अन्हारहीं (= सुबह-सुबह ही) (आज अन्हारहीं ननका ननकी के दूध पियावइत हलियो । एतने में हम्मर बाबू के हम्मर गोदी में से बरियरी खींच के मालिक पासी के दे देलथिन ।)    (अमा॰31:25:2:9)
26    अपनन्हीं (अपनन्हीं लोग के बिसवास नऽ हे त लीं हम्मर अडेन्टी कार्ड देख लीं ।; अपने लोग के घर में मरद नऽ हथ ? अपनन्हीं सब हमरा गारी नऽ देली, अप्पन बाप, भाई, चचा, बाबा के गरिअइली ।; हमरा से अपनन्हीं के तकलीफ हे त बोलीं हम चलतेर ट्रेन से कूद जाही । कूदला के बाद मरे पर खाली अपनन्हीं जिम्मा ले लेऊँ कि हम्मर माय के इया हम्मर बहिन के हमरे नियन बेटा आउ भाई दे देम ?)    (अमा॰42:14:1.4, 10, 14, 16)
27    अपनौती (= अपनउती) (दया, प्रेम कहुँ देखे-सुने ला भी न मिले, तेयाग आउ अपनौती सपना हो गेल ।)    (अमा॰42:11:2.4)
28    अबकहीं (= अभी-अभी) (हम अबकहीं आवइत ही आउ हम्मर वोट हमरा आवे से पहिलहीं पड़ गेल ?)    (अमा॰31:18:1.9)
29    अमारी (= गोबर का सूखा टुकड़ा, करसी, डँवारा) (ओटा पर बइठ के गेवन चचा माथा पर हाथ धर के दहइत चाउर, गेहूँ, भूसा, गोइँठा अमारी के चुपचाप निरखइत हलन ।)    (अमा॰31:22:1.28)
30    अरवा (~ चाउर) (हमनी सोनपुर मेला में खूब घुमलूँ आउ साधु-मंडली में हीं अरवा चाउर के भात, बूँट के दाल आउ कोंहड़ा के तरकारी भर पेट खइते गेली ।)    (अमा॰35:17:2.7)
31    अरार (एगो तलाब के अरार पर बइठ के एगो बकरी अप्पन पाठी जौरे पिपकार करइत हल ।)    (अमा॰31:25:2:1)
32    अरियाते (हम्मर कुत्ता धेआन के समान पहरेदारी करऽ हल तो गोपालगंज जाय के समय मखदुमपुर टीसन तक अरियाते आवे ।)    (अमा॰42:9:2.4)
33    अलेक्शन (= election) (जिला भर में इनका इज्जत हल । अलेक्शन में सब कंडीडेट इनका से अशीरवाद लेवे ला आवो हल ।)    (अमा॰38:15:1.15)
34    असूल (= वसूल) (हमरा तो अब ई उमीदे न हे कि मरते घड़ी तक भी नारायण से सूद पर लेल पइसा हमरा से अब असूल होयत ।)    (अमा॰37:15:1.13)
35    आग-बबूर (= आग-बबूला) (का जनी नऽ देखलन होत कि जनानी डिब्बा हे । एकरा में आग-बबूर होवे के कउन बात हे ?)    (अमा॰42:13:1.26)
36    आगरह (= आग्रह) (युग पुरुष गाँधी जी धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक क्षेत्र के साथे-साथ सब क्षेत्र में अहिंसा के पालन करे ला सबसे आगरह कएलन हल ।)    (अमा॰40:5:2.10)
37    आजाँस (अरविन्द कुमार 'आजाँस' लोग के गलती ढूँढ़े के प्रवृत्ति पर करारा व्यंग्य कैलन - हम्मर तिल बराबर गलती तोरा ताड़ नजर आवऽ हे ।)    (अमा॰40:13:1.10)
38    आला-थाला (हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई के अलगे आला-थाला । बाँट-चोट के पीले जेतना घर ले जा भर भर प्याला ।)    (अमा॰41:5:1.18)
39    इकालना (= इकासना, निकालना) (लघुकथा विशेषांक के रूप में 'अलका मागधी' के जनवरी अंक इकाले ला अपने सभ के धन्यवाद !)    (अमा॰35:2:1.10)
40    इसकूटर (= स्कूटर) (बेचारी पनपतिया के ओकर ससुराल वाला मिरचाई के धुक्कन देके मार देलकई खाली एतने ला कि माँगला पर इसकूटर काहे न मिलल ?)    (अमा॰40:13:2.15)
41    ईरषा (= ईर्ष्या)    (अमा॰31:14:1.2)
42    उकटा-पुरान (पालीगंज के रामलखन सिंह यादव कॉलेज में हिन्दी के व्याख्याता प्रो॰ अवधेश कुमार सिन्हा के लिखल मगही कविता के किताब 'उकटा-पुरान' के लोकार्पण समारोह धूमधाम से सम्पन्न भेल । 'उकटा-पुरान' के लोकार्पण कैलन पूर्व केन्द्रीय मन्त्री श्री रामलखन सिंह यादव ।)    (अमा॰40:14:1.3)
43    उखल-सूखल (चार हजार बरस से भी जादे बीतल, अरब के मरूभूमि में अदी के वास नयँ हल, निट्ठाहे बंजर, उखल पहाड़, सूखल पेड़ । पर ओकर उत्तर में देजला-फरात नदी के बीच बावुलो नयनमा शहर बसल हल ।)    (अमा॰34:5:1.2-3)
44    उजास-परगास (छनभर के उजास-परगास भरल जिनगी हजारो बरिस के धुआँइत जिनगी से जादा अच्छा हे ।)    (अमा॰42:6:1.24)
45    उतजोग (< उद्योग; = उपाय, गुर, प्रयत्न; कोशिश) ('लघुकथा विशेषांक' में एक पर एक बढ़िया रचना छापल गेल हे । अपने के ऐतहासिक उतजोग ले कोटिशः बधाई !)    (अमा॰35:2:2.22)
46    उपजाना (नौकरिये लगी सब न पढ़े हे, खेतो में खूब काम आवे हे । आधुनिक ढंग से खेती करके खाद नया नया छिटवावे हे । पढ़म तब नऽ बढ़िया बीज बुन के ढेर मनी अनाज उपजाम । पढ़म-लिखम त करम सबहे काम, भैंस चराम त खाली मट्ठे खाम ।)    (अमा॰39:8:1.26)
47    उभ-चुभ (समुन्दर के उमड़इत लहर के बीच में फँसल बिना पाल-पतवार के पुरान-धुरान नाव । जे करऽ हे उभ-चुभ जान बचावे ले ।)    (अमा॰42:17:1.23)
48    उरदी (= उड़द) (किसान हथ चिंतित केवाल न जोताएल हे । उरदी जिनोरा भी न डीह में बुनाएल हे ।)    (अमा॰39:13:2.3)
49    उरिन (पितृरिन से ~ होना) (बिसुनपत के सीता कुण्ड उनकर इयाद के आजो ताजा कर रहल हे । 'उड़ल सतुआ पितरन पइठ' वला कहाउत जग जाहिर हे । इहाँ आके भी पितृरिन से उरिन न होयम तब जल में रह के पियासल मीन नियन कहायम ।)    (अमा॰31:11:2.20)
50    एकबैग (फुआ हुआँ पर न हलन । माए कहलन - 'फुए बुनिया के बहकइले हथ । एक्के गो उनकर धन्धे हे । जहाँ कोई कुनूस देखलन कि उसका देलन ।' कहे के तो माय कह देलन बाकि फिनो एकबैग चुप हो गेलन ।)    (अमा॰36:8:2.10-11)
51    एगो (घर छोट जरूर हल बाकि एगो सभ्य विद्यार्थी के जेतना समान रहे के चाही सब मौजूद हल । एगो दुगो स्टूल आउ कुरसी भी खाली पड़ल हे ।)    (अमा॰38:11:1.26)
52    एगो-दुगो (घर छोट जरूर हल बाकि एगो सभ्य विद्यार्थी के जेतना समान रहे के चाही सब मौजूद हल । एगो दुगो स्टूल आउ कुरसी भी खाली पड़ल हे ।)    (अमा॰38:11:1.27)
53    एनहीं (= इधर ही) (मइया कहलवऽ हे कि आज तस्मई बनतई । एनहीं से दूध, चाउर, चीनी लेले जाय ला हे ।)    (अमा॰41:13:1.16)
54    ऐठाना (बैला बोलल - 'सरकार ! हमरा से केतना बोझा ढोवायम ? केतना सोंटा खिलायम ? केतना पोंछी ऐठायम ? हमरा चालीस बरिस के जिनगी नञ चाही । हमरा बीसे बरिस दे देईं ।')    (अमा॰42:6:1.31)
55    ओटा (ओटा पर बइठ के गेवन चचा माथा पर हाथ धर के दहइत चाउर, गेहूँ, भूसा, गोइँठा अमारी के चुपचाप निरखइत हलन ।)    (अमा॰31:22:1.27)
56    ओरहन (= ओलहन) (बात-बाते में हमरा जे ओरहन मिले । बूढ़ बाबू आउ मइया के गाली मिले ॥)    (अमा॰42:15:2.7)
57    ओराना (= ओरियाना, समाप्त होना) (पन्द्रह बीस आदमी घवाहिल होयलन आउ पुलिस अप्पन गोली ओराये के चलते अकबका गेल ।)    (अमा॰42:12:2.14)
58    ओसरा (= ओसारा) (अब ऊ अप्पन घर के आँगन में ठार हल । ओकर माए ओसरा में बइठ के पिपकारित हल ।)    (अमा॰36:7:1.22)
59    ओहरल (ओहरल बदरिया, निंगरल अँधरिया, दुनियाँ में भेलइ इंजोर रे - बड़ी कइलक हल बदरो इंजोर रे ।)    (अमा॰32:1:1.1)
60    औचक (हम आकस्मिक अवकाश में हली । हेडमास्टर साहेब भी हमरा छुट्टी देले हलन । क्षेत्रीय पदाधिकारी के औचक निरीक्षण भेल । हम्मर दर्खास्त के नजरअंदाज करके हमरा औफिस में बोलावल गेल ।)    (अमा॰31:27:1.2)
61    औरत-बानी (कोय सहानुभूति के दूगो बोली कौची बोलतय, औरत-बानी लोग अलगे ताना मार-मार के बेचारी के लहू-लोहान करते रहऽ हथिन ।)    (अमा॰40:15:2.1)
62    कखनो (= कभी) (अखने नयँ खखनो तो होतै सबेर ।)    (अमा॰32:14:2:12)
63    कट्टिस ('हम जइते ही तोर बाबा के कहे कि दूसर जगुन लइका ढूँढ़तन । दुनिया में लइका के कोंकरा नऽ खइले हइ । बाकि तूँ ई तो बताव कि का बात लेके तूँ ऊ लइका के कट्टिस कर रहलहीं हे ?)    (अमा॰36:8:1.30)
64    कड़कड़िया (~ नोट) (गाड़ी जइसहीं नवादा टीसन से खुलल, हम्मर नजर एगो कड़कड़िया सौटकिया नोट पर पड़ल ।; हम्मर दिमाग में एक बात आयल, फिन हम सौ के नोट जेभी में रख के पचसटकिया कड़कड़िया नोट निकाल के सभे से कहली -'भाई जी, ई रुपइया किनकर हे ?')    (अमा॰31:8:1.15, 21)
65    कड़की (रश्मि ऊ रुपइया लउटा देवे ला सोच लेलक । हलाकि पइसा के बहुत कड़की चल रहल हल, तइयो दूसरका दिन सबेरहीं ऊ दोकान पर पहुँच गेल, जहाँ से कल्हे किताब ले गेल हल ।)    (अमा॰31:28:1.12)
66    कड़य (= कड़ाई) ('एगो खाली सिन्हा जी के नवलवा पास भेलै । हमरा बुझा हे जे ऊ जरूर जा होथिन । एकदम हथवे में पुरजावा दे आवऽ होथिन ।' - 'अच्छा !' चेहैते ओकिल साहेब पूछलका -'एतना कड़य में भी हो ?')    (अमा॰31:20:1.32)
67    कथक्कड़ (डॉ॰ सिंह भी कथक्कड़लोग से सुनिए के ई ग्रन्थ में कथा संकलन कैलन हे जेकरा में रूढ़ितन्तु एक्के जइसन मिलऽ हे ।)    (अमा॰37:12:1.20)
68    कनफुँकवा (पुण्डरीक जी के जइसन हम देखली, पइली कि ऊ पहुँचल महातमा हथ, बाकि कनफुँकवा नऽ । .. उनखर मुँह से फूल झड़ऽ हल । न कबहुँ जहरमुँहा लोग के सिर चढ़ौलन, न नीमन लोग के दुलारे में कउनो कसर रखलन ।)    (अमा॰35:18:2.11)
69    कनरना (भेल भिंसारा प्राती गइहें, उठते-उठते गाँती बंधिहें, हाथ-पाँव सब ठिठुरे लगतउ, पोर-पोर भी कनरे लगतउ, अब होतउ न गरीब-गुजारा ।)    (अमा॰42:5:1.10)
70    कन्नी (कउन काटत अब सगर ई छितरायल कन्नी के, नेह आउ त्याग से सींचल दरखत हे फल रहलो ।)    (अमा॰37:5:1.11)
71    कमायल (= कमाना, अर्जित करना) (पढ़ल-लिखल लोग कम मेहनत करके जादे पइसा कमायल चाहऽ हथ । एही फेर में कभी-कभी दु-नमरियो काम करे ला तइयार हो जा हथ ।)    (अमा॰33:11:2:28)
72    कमिअई (न मुखिया जी ! आधा जिनगी हम तोहर कमिअई में गुजार देली । कउन अइसन दिन होवत जब तोहर परिवार के लोग कठोर बात के तीर से हम्मर करेजा न छेदऽ हलन ? अप्पन घर के भूँजा-फुटहा भला, तोहर घर के हलुआ-पूड़ी न भला ।)    (अमा॰31:22:1.5)
73    कमीज-उमीज (बेचारा कमीज-उमीज खींचते, ठीक-ठाक करते लजायल नियन आयल आउ बड़ी झुक के परनाम कैलक ।)    (अमा॰31:20:1.19)
74    करमजल्ला (जेकरा पर हम्मर सोलहो सिंगार निरभर करऽ हे ऊ करमजल्ला अइसन हे जे हमरा फुटलो कौड़ी भर न सोहाए ।)    (अमा॰34:7:1.17)
75    करियक्का (= करिक्का, काला रंग वाला) (हम्मर ऊ करियक्का कुत्ता दू-तीन बेर तो साँप से बचउलक - केवाड़ी नखोर-नखोर के सावधान कयलक आउ तीन-चार बेर चोर लोग के भँभोर-भँभोर के भगा देलक ।)    (अमा॰42:10:1.16)
76    करोध (= क्रोध)    (अमा॰31:14:1.2)
77    कलर्की (~ के नौकरी) (अंत में कलर्की के नोकरी मिलल ।)    (अमा॰31:23:2.4)
78    कल्ला (कुछ लयकन हम्मर कल्ला फाड़ के मुँह में से अटकल रसगुल्ला अँगुरी डाल के निकाल रहलन हे ् हम बेबस हो उठलूँ घाम-पसेना से तर-बतर ।)    (अमा॰31:16:1.22)
79    काबिज (= विद्यमान) (ऊ मगही के सुरुज हलन जे डूब गेला पर भी अप्पन उरजा काबिज रखऽ हे)    (अमा॰35:18:2.21)
80    कारिख (= कालिख) (होली के रंग में भंग करेवला के भी कमी न हे । कोई-कोई तो अइसन कारिख चेहरा पर पोत देतन कि घंटो छोड़यला पर भी ऊ रंग न छूटे ।)    (अमा॰33:4:1:28)
81    किनाना (= खरीदा जाना) (पइसा के अभाव में ओकर किताब न किना रहल हे ।)    (अमा॰31:12:1.8)
82    किरियाठ (एक कान के बाली बम के धमाका से अइसन कान में चिपक गेल हे जइसन राँगा कोनो पदार्थ से चिपक जाहे । ओकर गरदन के हंसुली, गोड़ के गेराँव, हाथ के पहुँची पिघलल लोहा लेखा पघिल-पघिल के किरियाठ हो गेल हे ।)    (अमा॰32:13:2:10)
83    कीच-काच (पुण्डरीक ! माने कमल ! मगह के कीच-काच में अइसने कमल खिलत ! धन हे हम्मर मगह के माटी ।)    (अमा॰35:15:1.20)
84    कुकुरमुत्ता (लोग बतावऽ हथ कि जहाँ-जहाँ कुकुर मूत दे हल उहाँ-उहाँ कुकुरमुत्ता जम जा हल । कुत्ता के जहर मिटावऽ हल - कुकुरौंधा । आझ तो आदमी के जमात में कुकुरमुत्ता के बढ़न्ती जादा हे आउ कुकुरौंधा अप्पन परभाव खो बइठल हे ।)    (अमा॰42:9:1.5, 7)
85    कुटेव (साक्षरता से उनकर कुटेव दूर करल जा सके हे, उनका में अच्छा विचार आउ संस्कार भरल जा सके हे ।)    (अमा॰39:6:1.15)
86    कुनूस (फुआ हुआँ पर न हलन । माए कहलन - 'फुए बुनिया के बहकइले हथ । एक्के गो उनकर धन्धे हे । जहाँ कोई कुनूस देखलन कि उसका देलन ।')    (अमा॰36:8:2.9)
87    कुर्की-जबती (दुनियावी धन-सम्पत्ति में लाभ-हानि दुन्नो हे । एकरा चोरो लूट लेहे, बाँट-बखरा में भाई-बन्धु से बन्दूको-पिस्तौल, लाठी-भाला चल जाहे, राज के तरफ से कुर्की जबती भी हो जाहे, बाकि विद्या-धन कोई न छीन सके ।)    (अमा॰39:5:1.5)
88    कुर्सियाना (पहिले के लोग सठिया हला । आज के लोग कुर्सियाय लगला हे ।)    (अमा॰42:9:1.4)
89    कोंकरा ('हम जइते ही तोर बाबा के कहे कि दूसर जगुन लइका ढूँढ़तन । दुनिया में लइका के कोंकरा नऽ खइले हइ । बाकि तूँ ई तो बताव कि का बात लेके तूँ ऊ लइका के कट्टिस कर रहलहीं हे ?)    (अमा॰36:8:1.29)
90    कोंचिआना (मार के भगावऽ हरमजादा के । एकरा आउ कहीं जगह न मिललई, तब जननिये में कोंचिआय आयल हे ?)    (अमा॰42:13:1.13)
91    कोटिम किल्ला (= कोटि यत्न या उपाय) (सीपी जिद धइले रहल - 'खेत न बिकत न रेहन होत । अगर खेत बिकत तो कोई कोटिम किल्ला करत, तइयो हम बिआह न करम ।')    (अमा॰36:8:2.25)
92    कोताही (ओन्ने सुनीता मिचाई से भकभकाइत हाथ से भी मसाला पीसे में कोताही न कर रहल हे ।)    (अमा॰31:10:1.20)
93    कोनाहि (हम्मर तो ब्लड-परेसर से हँफनी बढ़ गेल । एगो कोनाहि में दूर खड़ा भे गेली ।)    (अमा॰36:9:1.20)
94    खइताहर (पहिले ऊ दोसर के घर में जाके कुटाई-पिसाई करऽ हलन, अब तो दरल दाल आउ छाँटल चाउर के खइताहर बन गेलन । पेट भेल भारी, तऽ कउन करे बेगारी ?)    (अमा॰31:21:2.18)
95    खखनल (= इच्छा पूरी होने के लिए आतुर होना, काम पूरा न होने का खेद अनुभव करना, आतुर होना; आतुर) (मनुस्स खीखियायल । खखनल गोड़ पर गिरल ब्रह्मा जी के - 'इहो हमरे ...।')    (अमा॰42:6:2.21)
96    खटवास-पटवास (कुछ दिन के बात हे जब घरवाली सोना के चेन गढ़वावे ला नाक में दम कयले हल । खटवास-पटवास लेके बस रात-दिन कोसइत रहऽ हल ।)    (अमा॰31:5:2.13)
97    खनखन (चूड़ी खनके खनखन-खनखन ।)    (अमा॰33:5:1:14)
98    खयला (= खइलाह, द्वेषी, डाही) (खयला बाहर झपसी में भइंसो बिसुख गेल । दूध लागी लइकन संग बुढ़वो टिरुस गेल ।)    (अमा॰39:12:1.21)
99    खरचा-बरचा (विधवा माय आउ बेटा के खरचा-बरचा कोनो तरह पैतृक जमीन से चल रहल हल ।)    (अमा॰38:16:1.4)
100    खानी (= खनी; क्षण, पल, समय) (हम बाबूजी के निर्देशानुसार बैल के गवत देइत खानी आउ भईंस चरावित खानी भी कुछ न कुछ इयादे करित रहऽ हली ।; जाइत खानी ऊ मंत्री लोग के बीच गीता-गीत सुनावे ला दिल्ली आवे के भी उनका निमंत्रण देलन ।)    (अमा॰35:8:1.7, 10:1.18)
101    खाय (= खाइक; खाना, भोजन) (घर गृहस्थी के एक्को काम ठीक से करे आवऽ हउ तोरा ? न बाल-बच्चा के साफ-सुथरा कपड़ा पेन्हावे हें, न सवदगर खाय पकावे हें ।)    (अमा॰39:13:1.11)
102    खीखियाना (= खिखियाना) (मनुस्स खीखियायल । खखनल गोड़ पर गिरल ब्रह्मा जी के - 'इहो हमरे ...।'):    (अमा॰42:6:2.21)
103    खोंटना (= किसी वस्तु के ऊपर का भाग काटना, तोड़ना या नोचना) (दू दिन से घर में चाउर न हलई । ओही से ऊ भूपति सिंघ के खेत में बथुआ के साग खोंटे गेल जिनका पास पाँच सौ बिघा खेत हे ।)    (अमा॰32:7:2.6)
104    खोभार (= खोभाड़, खोभाही, खोभारी; सूअर रखने का स्थान; बखोर; गंदी जगह; कूड़ा-करकट फेंकने का गढ़ा; घाव का गढ़ा) (ऊ दूर बहुत दूर धुँआयल सपना जइसन झिलमिल, झलफल, अबोध लइकन से पाड़ल टेढ़-मेढ़ डँरेर अइसन ओकर झोपड़ी हे, जहाँ ओकर बाप बखोरा सूअर के साथ खोभार में नौ गो लइकन आउ मेहरारू के साथ रहऽ हे ।)    (अमा॰36:5:1.14)
105    खोहिया (गगन-गुफा खोहिया में, अमरित के सोरिया में, हौले-हौले हवा लेले जा रहल ॥)    (अमा॰40:19:1.6)
106    गँड़थइये (कुरसी पर ऊ बइठल-बइठल गँड़थइये नाँचे कसके, आँख न पानी, हाथ में गोली, दिला रहल हे मधुसाला ॥)    (अमा॰41:5:1.6)
107    गछाना (कममा के बेरिया करनी गछावे हे, सुइया में का तगवो समावे हे ?)    (अमा॰40:12:1.8)
108    गड़बड़घिचोड़ (अइसन गड़बड़घिचोड़ परिस्थिति में जब सम्पादक के खुदे समझ में न आवइत हे कि देशहित आउ जनहित में कउन निरनय करल जाय, तब पाठक के सीधा निर्देशन कइसे दे सकऽ ही । हाली-हाली होवे वला चुनाव के चलते महँगाई अलगे जनता के कमर तोड़ले हे ।)    (अमा॰32:4:2.16)
109    गढ़ल (= गढ़ना) (घास गढ़ल कउनो बुरा काम न हे । अगरचे ई काम नापसन्द हउ तब हम्मर केबिन अगोर ।)    (अमा॰31:22:1.1)
110    गरवई (= गरवैया, गोरैया) (खेतवा में उतरल गरवई चिड़इया, फुलवा से झाँपल हे तलवा तलइया, आज अजबे लगऽ हे बिहान ।)    (अमा॰42:5:2.5)
111    गरीब-गुजारा (भेल भिंसारा प्राती गइहें, उठते-उठते गाँती बंधिहें, हाथ-पाँव सब ठिठुरे लगतउ, पोर-पोर भी कनरे लगतउ, अब होतउ न गरीब-गुजारा ।)    (अमा॰42:5:1.11)
112    गरीबी-गुरबत (अच्छा अंक आवे पर ओकर बहाली हो जायत । तब परिवार के गरीबी गुरबत से मुक्ति भी मिल जायत ।)    (अमा॰31:12:1.9)
113    गलबहियाँ ('साठी' मगही भासा के दूगो समर्पित कवि, कथाकार आउ नाटककार प्रो॰ दिलीप कुमार आउ प्रो॰ सुखित वर्मा के गलबहियाँ सम्पादन में मगही भासा के उन्नति लागी फिफिहिया भेल संस्था 'मौर्य प्रकाशन' से प्रकाशित मगही कविता के एगो अइसन संकलन हे, जेकरा में मगही भासा के साठ गो नामी-गिरामी, नया-पुरान, समर्पित समाज के प्रभावित करेवला सब तरह के बिसय पर रचनाकार सभे के कलम चलल हे ।)    (अमा॰41:7:2.1)
114    गवत (हम बाबूजी के निर्देशानुसार बैल के गवत देइत खानी आउ भईंस चरावित खानी भी कुछ न कुछ इयादे करित रहऽ हली ।)    (अमा॰35:8:1.7)
115    गहना-गुरिया (उमेस के घरवाली सांति के गहना गुरिया से लदकल रहे के कारन एही समझऽ हल कि ओकर मरद ओकरा जी जान से चाहऽ हे ।)    (अमा॰31:5:2.18)
116    गाँव-टोला (नामी नगर के विधायक जी भी भूपति सिंघ के चचेरा भाई हथ । एही से उनका पास जाय ला भुखल ठाकुर के मन न होयल ! अप्पन गाँव-टोला, जात-बिरादरी ओलन भी भुखल के साथ न देलन । सब में फूट हल ।)    (अमा॰32:7:2:28)
117    गाहँक (= गाँहक, ग्राहक) (सुन कीमत टटोल जेव के, गाहँक चउँक रहल हे ।)    (अमा॰33:5:2:24)
118    गाहे-गाहे (इहे बीच चिट्ठी-पतरी के आदान-प्रदान पहिले कम होल, फेर क्रम टूटल आउ फेर लगभग छूट गेल । समाचार वगैरह गाहे-गाहे मिल पावऽ हल आउ फेर मीना के बिआह हो गेल । ई खबर आमोद के मीना से नञ मिलल, बलुक मिलल बेबी से ।)    (अमा॰40:16:1.29)
119    गिरहथ (= गृहस्थ) (देखते-देखते पुलिस तीरी नियन एन्ने-ओन्ने छितरा गेलन । झपट के कुछ मजूर के पकड़लन कुछ गिरहथ के । कुछ नौकरिओ वालन पकड़ा गेलन जे विपत पड़े खबर सुन के गाँँ में आयल हलन ।)    (अमा॰42:12:1.4)
120    गिरहथ-मजूर (गिरहथ-मजूर, बड़का-छोटका सब रोवइत कलपइत हलन । हरिहरपुर गाँव में अब गरीब-अमीर, ऊँच-नीच के भेद-भाव न हल ।)    (अमा॰42:11:2.23)
121    गिरावल (= गिराना) (जब हम उहाँ पहुँचली तब देखऽ ही कि ऊ एक्के गोड़ पर खड़ा होके दुन्नो हाथ जोड़ले ध्यान लगौले हल । सोचली कि एकरा गिरावल कउन मोसकिल हे । बाकि केतनो आँधी-तूफान अयला पर भी ऊ नऽ डिगल ।)    (अमा॰34:12:2.31)
122    गिलावा (= गिलेवा; मिट्टी का घोल जिसमें पत्थर, ईंट जोड़ी जाती है; गारा; ईंट, पत्थर जोड़ने का मसाला) (गेवन चचा के घर में पानी घुस गेल । दिन-रात एक करके गिलावा पर मकान खड़ा कयलन से दोसरे बरसात में टन बोल देलक ।)    (अमा॰31:22:1.24)
123    गिल्ला (= गीला) (आटा ~ करना) (अब बी॰ए॰ पास करके दस बरिस से नोकरी के फेरा में दउड़-धूप कर रहली हे, घरो के आटा गिल्ला कर रहली हे ।; बाहर हर दिन नियर गप्प मारित रहत अप्पन रिमझिम गिल्ला अवाज में, पेड़-पौधा, पशु पंछी के साथ ।)    (अमा॰33:11:1:18; 42:17:2.27)
124    गुड़िया (= गुरिया, छोटा टुकड़ा) (मछली के ~) (तीनो भाई दम भर खा-खा के अँड़िआइत उठ के मुँह धोयलन तब मइया देखलक कि जूठा थरिया में कुछ नोचल-चोथल मछरी के गुड़िया बच रहल हे ।)    (अमा॰31:10:1.26)
125    गुरगुरायल (= गुरगुराना, गुर्राना) (ब्राह्मण के देख के दोसर ब्राह्मण के गुरगुरायल तो सब्भे जगह देखल जा सकऽ हे - 'ब्राह्मणः ब्राह्मणं दृष्ट्वा श्वानवत् गुर्रायते' ।)    (अमा॰42:7:1.23)
126    गुल्ला (= ईख का मुँह में रखने भर का टुकड़ा, ईख के दो पोरों के बीच का भाग) (जरे लगतउ मड़ेर केतारी, जरतउ लत्तर पारा पारी, गुल्ला जरतउ गुल्ली जरतउ, गली गली में आग लहरतउ, सुगबा बइठल पढ़े पहाड़ा । देख रे बाबू अलउ जाड़ा ।)    (अमा॰42:5:1.15)
127    गुल्ली (जरे लगतउ मड़ेर केतारी, जरतउ लत्तर पारा पारी, गुल्ला जरतउ गुल्ली जरतउ, गली गली में आग लहरतउ, सुगबा बइठल पढ़े पहाड़ा । देख रे बाबू अलउ जाड़ा ।)    (अमा॰42:5:1.15)
128    गेराँव (एक कान के बाली बम के धमाका से अइसन कान में चिपक गेल हे जइसन राँगा कोनो पदार्थ से चिपक जाहे । ओकर गरदन के हंसुली, गोड़ के गेराँव, हाथ के पहुँची पिघलल लोहा लेखा पघिल-पघिल के किरियाठ हो गेल हे ।)    (अमा॰32:13:2:9)
129    गैरिक (~ वस्त्रधारी महात्मा) (रमणरेती में रोज करीब 500 आदमी के पंहत बइठऽ हल । ओकरा में आधा तो गैरिक वस्त्रधारी महात्मा लोग हलन जेकर पंक्ति अलगे बइठऽ हल ।)    (अमा॰35:10:2.12)
130    गोइँठा-अँवारी (बेचारी घास छील-बेंच के, गोइँठा-अँवारी बेंच-खोंच के आउ नून-भात खाके पेट पालऽ हल ।)    (अमा॰32:7:2.3)
131    गोबर-गोइठा (राजू के माय बोललन -'त का होतई ? दू गो पुतोह रहत आउ का ? ऊ अतइ त घरे खाय बनयतइ आउ तूँ दूरा दलान पर गोबर गोइठा करिहें ।')    (अमा॰31:18:1.28)
132    गोरखिया (ऊ किसान सब के बहुत दिन से गोरखिया नई मिल रहल हल, से मुखिया जी के ऊ सब भी कृतज्ञ होला ।)    (अमा॰31:19:2.11, 13)
133    गोल (= जमात, दल, मंडली) (पुलिस अप्पन जान बचा के भाग चलल । पकड़ायल अदमी जीप से उतर के गोल में मिल गेलन हल ।)    (अमा॰42:12:2.18)
134    गोहमन (हाय रे पछिया हवा गोहमन के मात कर देलै ।)    (अमा॰33:13:2:12)
135    गौताहर (= गानेवाला) (करुण, वीर रस के गौताहर बड़ी सुर में जान । सुन के किरतन के नै कानल साधु, सन्त, सैतान ?)    (अमा॰41:20:1.7)
136    ग्यान (= ज्ञान) (आज समाज गाँधी, महावीर आउ महात्मा बुद्ध के बतावल सन्देस के सही रूप से पालन करत त समाज में ग्यान के परकास जरूर फैलत ।)    (अमा॰40:6:1.4)
137    घउका (= गाल) (कै बार हम किरानी के परीक्षा देली बाकि घूस पैरवी बिना नोकरी न भेल । फिन चपरासी में जाय ला कै बार परीक्षा पास कइली त इन्टरभिउ में छँट गेली । जब पढ़ाई के बारे में पूछल जाय, तब हम झूठ न बोल के सच बोल दीं - 'बी॰ए॰ पास ही ।' बस ! हम्मर रिजल्ट जखनिए {? तखनिए} निकल जाय - 'घरे जाके अराम करऽ ! इहाँ सतवाँ पास के जरूरत हे ।' हम मुँह बनैले, घउका लटकैले घरे लउट जाईं ।)    (अमा॰33:12:1:15)
138    घट (~ से) (नौ बजऽ हे त बेग लटकावऽ हे फट् से, इसकूल चल जाहे झट से । खाय के बेरिया दरवो घटोर जाहे घट से, सच कहबो त लगतो भक् से ।)    (अमा॰40:12:1.12)
139    घर-घुस्सा (लोभ मोह साथी घर-घुस्सा अच्छा हे लेके इतराऊँ ?)    (अमा॰40:11:1.20)
140    घरफोरनी (जानबे करऽ हें कि हम एही से गाँ-जेवार में खट्टा रहऽ ही । लोग घरफोरनी आउ कुटनी कहे में बाज न आवऽ हथ ।)    (अमा॰36:8:1.24)
141    घरवाँसी (क्षणभंगुर ही हम, फिर भी ही लोभ-मोह के हम घरवाँसी । दीखे जग-मग भरल अंधेरा, मन के दीप फिरीं ले काशी ।)    (अमा॰40:11:1.17)
142    घवाहिल (= घायल) (सरहद पर शरणार्थी के भारी भीड़, घवाहिल इराकी जनमानस के जमाव, मलेटरी के सिपाही द्वारा जाँच-पड़ताल चल रहल हे ।; तब पुलिस फिन फायरिंग करे लगल । केतना लोग घवाहिल होवे लगलन ।; पन्द्रह बीस आदमी घवाहिल होयलन आउ पुलिस अप्पन गोली ओराये के चलते अकबका गेल ।)    (अमा॰32:12:1:23, 29, 31; 42:12:2.10, 13)
143    घसगढ़ा (एक दिन ऊ घास गढ़ रहलन हल तब मुखिया जी पूछलन -'का हाल-चाल हे भुअन ?' भुअन भगत कहलन -'हाल-चाल ठीक हे मुखिया जी । बेटा के कमाई के बदौलत दिनोदिन तरक्की हो रहल हे । पहिले मजूर हली । अब घसगढ़ा बन गेली हे ।')    (अमा॰31:21:2.30)
144    घीचना (= घींचना, खींचना) (सीपी घरे न विनमल । फिनो बँसवरिये में पहुँच गेल । लइकन के गोली खेलते हलक से कहूँ चल गेल हल, से ऊ टुंगना लेके भुइयाँ पर डील घीचे लगल, फिनों विचार के दुनिया में भटक गेल ... ।)    (अमा॰36:7:2.18)
145    घुज (~ अन्हरिया) (अजादी के पचासवाँ सुरुज उगल मुदा सगरो घुज अन्हरिया, कुछे के घर-दुआरी पर इंजोर हे टह-टह ।)    (अमा॰38:6:1.2)
146    घोकसल (लाख घोकसल हो अन्हरिया, दीया हे जल रहलो । जोस के गरमी से तातल, बरफ मन पिघल रहलो ।)    (अमा॰37:5:1.1)
147    घोलटाल (= घोलटल; लेटा हुआ) (थोड़हीं दूर पर मंदिर के बाहरी दुआरी के तीन तरफ के चबूतरा पर एगो दुबरे-पतरे जनानी घोलटाल हल ।; आमोद खटिया पर घोलटाल सोचे लगल अप्पन बीतल पुरनका दिन के बारे में ...।)    (अमा॰40:15:1.16, 2.6)
148    चकचुक (= चकचुख; वैर, विरोध, किचकिच, टंटा) (रोज-रोज के चकचुक से अच्छा हे कि एक्के दिन हो जाय आर चाहे पार ।)    (अमा॰39:11:1.16)
149    चढ़उआ (= चढ़ावा) (जब इसमाइल चार बरिस के भेल त हजरत इब्राहिम सपनैलन कि जे सबसे जादे प्यारा चीज होय ओकरा तूँ भगवान के नाम पर चढ़उआ दे द । पूत से बढ़ के आउ कोई प्यारा चीज उनका ला नयँ हल । बेटा इसमाइल से बोललन कि हम तोरा भगवान के चढ़उआ देम । इसमाइल झट तैयार भे गेलन ।; पहिला जिकाद के घर बनावे ला आरम्भ कैलन त आठ जिकाद के चढ़उआ के वाकिया भेल ।)    (अमा॰34:5:2.16, 18, 29)
150    चनमारी (< चाँद+मारना; बन्दूक आदि से निशाना लगाने का कार्य अथवा स्थान; सशस्त्र बल के आग्नेय अस्त्रों की परीक्षा करने का स्थान) (अइसन कभी न मोका मिलतो, पांचो अंगुरी घीवे में । ई विज्ञान के चनमारी में नया खोज हे मधुसाला ।)    (अमा॰41:5:1.18)
151    चरकाहा ('अयँ गे ! नउआ-कउआ के बेटी होके, हम्मर खेत में हेले के हिम्मत कइसे होलउ ? अयँ ?' एतना कह के बिगड़ैल सिंघ बसंती के पखुरा पकड़ के बूँट के खेत में लसाड़ देलक । बेचारी बसंती हाथ-पाँव चलावइत '.... दोगलवावाला, चरकाहा, मोंछकबरा, तोर देह में घुन लगउ रे' कहइत बचे के असफल प्रयास करइत रहल, लेकिन सिंघ जीवा अप्पन दौलत, सवाँग आउ जवानी के जोश में होश हवास खो बैठलक ।)    (अमा॰32:7:2.15)
152    चर्राना (शौक ~) (जब हम सठिअइला के बाद सेवा निवृत्त भे गेली आउ कुत्ता के आयु भोगे लेल विवश भेली तो ऊ करिया कुत्ता 'सेतु' के मर गेला पर कुत्ता पोसे के शौक बार-बार चर्रायल आउ शौक बदल गेल शोक या 'शॉक' में ।)    (अमा॰42:7:1.9)
153    चलती (नेता जी के तो बाते मत पूछऽ । उनकर चलती के का बखान कयल जाय ? ... संसद आउ विधान सभा में आवे जाय ला चमचमाइत कार, मोटर, बंगला, विलासिता के सब साधन मौजूद । रात में बिस्तर गरम करे ला सुन्दर आउ जवान लइकी ।)    (अमा॰38:12:1.1)
154    चाभना (कउन केकर सुनऽ हे । सब कोई अप्पन-अप्पन राग अलापे में लगल हे । चपरासी से लेके साहेब तक तो चाभइते हथ ।)    (अमा॰38:11:2.28)
155    चाय-घुघनी (अब तो हमरा एही लगऽ हे कि यदि हमहूँ अनपढ़ रहती हल त कोई तरह के मेहनत-मजूरी करे लगती । ... टमटम चलइती इया रेक्सा खींचती, साईकिल बनावे के दोकान खोल बइठती इया चाय-घुघनी के ।)    (अमा॰33:12:1:22)
156    चाहिला-कोठिला (चाहिला कोठिला में भरल रहे धन-धान, त मिलके सिच्छा-अभियान चलाईं हम, घर-घर कर दीं अंजोर ।)    (अमा॰39:7:2.17)
157    चितकाबर (लाल, हरियर, नीला, पीला, बैंगनी, गुलाबी, असमानी आउ नारंगी रंग घोर के एक-दूसरा के कपड़ा के चितकाबर बनावे में तो मजा मिलवे करऽ हे, एही सब रंग के अबीर-गुलाल जब अप्पन मीत के गाल पर लगऽ हे, तन उनकर खुशहाल चेहरा देखते बनऽ हे ।)    (अमा॰33:4:1:17)
158    चिमड़ (कातो पखेरू होवे के पहिलहीं मास खाय में नरम लगऽ हे आउ जोवायल कबूतर के मांस चिमड़ हो जाहे ।)    (अमा॰31:26:1.2)
159    चिमोकन (= चमोकन) (ऊ रामावतार बाबू में चिमोकन नियन सट गेल ।)    (अमा॰32:14:1:18)
160    चीट (बिगना आव देखलक न ताव, जल्दी से चीट में के सब बात उतार देलक ।; ऊ हड़बड़ में चीट के बदले अप्पन चीनी वाला परमिटवे दे देलन हल, जेकरा पर परमिट के पूरा विवरण आउ बी॰डी॰ओ॰ साहेब के मोहर लगल हल ।)    (अमा॰31:6:1.26, 33)
161    चीट-पुरजा (मैट्रिक बोर्ड में हिन्दी के परीक्षा होवइत हल । सब परीक्षार्थी अप्पन-अप्पन चीट-पुरजा से चोरी करइत हलन, बाकि बिगना चुपचाप अप्पन चीट-पुरजा के आशा में बइठल हल ।; एतने में ओकर बाबूजी खिड़की से चीट-पुरजा देइत कहलन -'बेटा, लऽ ! ई में के सब बात उतार लिहऽ ।..')    (अमा॰31:6:1.20, 21, 23)
162    चील-गीध (केतना मर गेलन लोग ई इलाका में, आयल कोई देखे ? उहाँ तो चील-गीध के पहरा हे । आउ आमदनी के बात होइत हल तो ओहनिये चील-गीध नियन पहुँच जयतन हल मरी पर ।)    (अमा॰42:11:2.20, 22)
163    चील्ह (= चील) (इराक के धरती पर घमसान जुध, असमान में मँड़राइत चील्ह आउ गीध, बम बरसावइत हवाई जहाज, समुन्दर के किनारा से सेना के जलपोत आउ उधर चप्पे-चप्पे में घुड़दौड़ मचावइत अमरिकी सेना ।)    (अमा॰32:12:1:20)
164    चैता (= चैतावर) (नालन्दा जिला के पतासंग गाँव के ओही कलाकार जे जितिया प्रस्तुत कैलन हल, एक बार फिर से 'चैता' गाके समा बाँध देलन आउ श्रोता लोग के मन मोह लेलन ।)    (अमा॰39:10:2.3, 5)
165    चोटगर (भोर होके तनी मानी पानी थमल त खिड़की से झाँकली । मालूम भेल कि राते के बरसात केकरो निछोके न छोड़लक । भीड़ से एक्के अवाज सुनाई पड़ऽ हल -'प्रकृति के मार चोटगर होवऽ हे, आदमी का कर सकऽ हे ?')    (अमा॰31:22:1.31)
166    चौपहरा (किरतन, जग्ग, नवाह, चौपहरा पूजा उनकर प्रान । कुछ ने कुछ करते रहला, कहियो नै भेल सुनसान ।)    (अमा॰41:20:1.13)
167    छठी-छिल्ला (उचित समय पर अबकी उनका बेटा भेल । परिवार में खुशी के लहर दउड़ गेल आउ बड़ी धूम-धाम से छठी-छिल्ला मनावल गेल ।)    (अमा॰36:10:1.21)
168    छनकना ('बड़ी जोर से छनकलहूँ बाबा ! का बात हई ? हनीमून मनावे का जाइत ह ?' अबकी आउ पनकावे ला ऊ युवक बोललक ।)    (अमा॰33:8:2:9)
169    छरिआना (= किसी वस्तु के लिए हठ या जिद्द करना; अकारण लगातार रोता रहना; हाथ-पैर पटकना) (जब धयलन घाटी के डेरा, इनका  कहलन लोग लुटेरा, कहे नऽ करतन ई झगड़ा, मत छेड़ऽ ई छरिआयल हथ, ई करमवीर भरमायल हथ ।)    (अमा॰32:6:2.21)
170    छिटवाना (नौकरिये लगी सब न पढ़े हे, खेतो में खूब काम आवे हे । आधुनिक ढंग से खेती करके खाद नया नया छिटवावे हे । पढ़म तब नऽ बढ़िया बीज बुन के ढेर मनी अनाज उपजाम । पढ़म-लिखम त करम सबहे काम, भैंस चराम त खाली मट्ठे खाम ।)    (अमा॰39:8:1.24)
171    छिलाना (सब लयकन लेमनचूस लूटे ले मारा-मारी करे लगलन । केकरो हाथ छिलायल त केकरो गोर ।)    (अमा॰31:16:1.14)
172    छुइमुइ (राजनीति के कियारी में गाँधी, नेहरू, लोहिया के सिद्धान्त छुइमुइ बन जल रहल हे ।)    (अमा॰36:15:2.3)
173    छुछुम (तोर बाबू तो हम्मर बेटा के बिआह में हमरा खूब बुड़बक बनयलन । न टी॰भी॰, न मोटर साईकिल ! दान-दहेज भी छुछुम । अइसन गरीब-फकीर के इहाँ बिआह करके हम ई फँसान फँसलूँ हे कि कुछ कहे के नञ !')    (अमा॰32:11:2:11)
174    छुछे (= छुच्छे) (जिन्दा के कोई बात न पूछे, भूखे ह कि खाइत ह छुछे । मर गेला पर खूब हंगामा, खबर फैले देश विदेश । हाय रे हम्मर भारत देश ॥)    (अमा॰41:15:2.17)
175    छेवना (बम-बारूद के गड़गड़ाहट के बीच बसंती खून से सनल-लथपथ ताड़ छेवेवला हँसुली लेले बाघिन जइसन दहाड़इत हल - 'सरकार, दरोगा, नेता, मुखिया, बिगड़ैल ... सब उग्रवादी ... बलात्कारी ... !')    (अमा॰32:8:1:8)
176    छो-पाँच (~ में पड़ना) (रश्मि के ई बात पसन्द न आयल । ऊ छो-पाँच में पड़ गेल । समझ में न आ रहल हल कि कउची करे आउ कउची न करे ।)    (अमा॰31:28:1.8)
177    जँतसार (अछुआ गाँव, पटना के ओही महिला मंडली जँतसार भी गैलन ।; बिहार से जउन लोग मारिशस, फीजी, सूरीनाम, हालैंड आउ वेस्ट इंडीज के देश में जाके बस गेलन हे ऊ लोग इहाँ से 'जँतसार गीत' भी लेले गेलन हे आउ आज भी उहाँ ई गीत सुनल जा सकऽ हे ।)    (अमा॰39:9:2.24, 25, 29)
178    जँतसारी (< यंत्रशाल + ई प्रत्यय; = चक्की पीसने का काम; चक्की चलाते समय गाया जानेवाला अत्यंत कारुणिक मगही लोकगीत)    (अमा॰35:8:2.14)
179    जउरी (= रस्सी) (जिनगी सचमुच एगो जउरी ही तो हे ।)    (अमा॰41:8:1.7)
180    जगत (= जकत; समान, जैसा) (अइसने सुत्थर हल फिन ऊ । बड़गो-बड़गो आँख, पतरा ठोर, गोरा-चिट्टा रंग, भरल गदराएल देह परी जगत लगऽ हल ।)    (अमा॰36:7:1.10)
181    जग्ग (= यज्ञ) (किरतन, जग्ग, नवाह, चौपहरा पूजा उनकर प्रान । कुछ ने कुछ करते रहला, कहियो नै भेल सुनसान ।)    (अमा॰41:20:1.13)
182    जनानी (ओकर जनानी के ई सब ठीक न लगऽ हल । ऊ हलकू से खेती के काम करे से मना करऽ हल, जे से हलकू हमेशा ओकरा पिटइत रहऽ हल ।)    (अमा॰31:23:2.20)
183    जने (= जन्ने; जिधर) (अगर फ्लैट न मिलत तब तोहरा ई घर में रहना मुश्किल हे । के तोहर देख-रेख करत ? जा जने मन करे ।)    (अमा॰38:15:2.20)
184    जन्ने-तन्ने (जन्ने तन्ने अखबार आउ पत्र-पत्रिका बिछौना पर नजर आवइत हे ।)    (अमा॰38:11:1.3)
185    जबड़दस्ती (कहीं भी उखड़ापन या शब्द के जबड़दस्ती तोड़ल-मरोड़ल रूप देखे में नञ आवऽ हे ।)    (अमा॰31:18:2.12)
186    जबरदस (= जबरदस्त) (दू बरिस बाद उनका से भेंट भेल तो उनकर जबरदस घ्राणशक्ति के बखान उनका सामने ही भैया डा॰ विद्यानिवास मिश्र से कयली ।)    (अमा॰42:7:2.23)
187    जबुर (ऊ स्वेटरवा बीने वाली के समझावे पर सब जहिलवन के आउ जबुर गुजरल । उल्टे ऊ सब आउ गरम हो गेलन ओकरा पर ।)    (अमा॰42:13:2.2)
188    जमएकड़ा (= जमकड़ा, आदमियों की भीड़, जमाव) (साँझ के महतो के बइठका में जुआन लोग के जमएकड़ा जुटे हे तो ओकर चर्चा छिड़े हे । लोग कहे हे - 'एकर बिआह में तिलक के जरूरत न होतइ ।')    (अमा॰36:7:1.11)
189    जर-जजात (पितृरिन से उरिन होयत कि न होयत मुदा ओकर लेल रिन दिने दिन बढ़िआयत । देवे में देरी भेल तो जर-जजात भी हाथ से निकल जायत ।)    (अमा॰31:12:1.5)
190    जर-ज्वाला (ई रुबाई बच्चन के न, ई मगही के जर ज्वाला । पीये ओला जरे न कोई, जर जाय देखे ओला ।)    (अमा॰41:5:1.2)
191    जलमपत्री (ई एगो जलमपत्री हम्मर बेटी के हे आउ एगो ऊ लड़का के हे जेकरा से हम ओकर बिआह के बात चलावइत ही ।)    (अमा॰41:13:1.21)
192    जहन्ना (= जहानाबाद) ('रात के कहाँ जयबऽ ? जहन्ना जाना ठीक न हो । तूँ पटने रुक जा । बिहान होतो त चल जइहऽ !' एगो सिपाही बोललक ।; चुपचाप गाड़ी धर के जहन्ना लउट जो ।; 'नऽ नऽ बाबू ! हम जहन्ने चल जायम ।' एतना कह के ऊ गाड़ी में चढ़ गेल ।; चन्दू डेरा में लउट के जब अप्पन घरनी के ई लीला सुनयलक तब ओकर घरनी बोललन -'रात में जहन्नास ? ऊ कउन बड़ा सुधरल जगह हई ?)    (अमा॰31:7:2.8, 8:1.5, 8, 11)
193    जहरमुँहा (पुण्डरीक जी के जइसन हम देखली, पइली कि ऊ पहुँचल महातमा हथ, बाकि कनफुँकवा नऽ । .. उनखर मुँह से फूल झड़ऽ हल । न कबहुँ जहरमुँहा लोग के सिर चढ़ौलन, न नीमन लोग के दुलारे में कउनो कसर रखलन ।)    (अमा॰35:18:2.14)
194    जाँता (~ पीसना) (जाँता पीसइत रहम तऽ जाँता पीसे लगत, धान कुटइत रहम तब मूसड़ छीन के कूटे लगत ।)    (अमा॰41:19:1.29)
195    जात (एक तो हम अइसहीं कम पढ़ल-लिखल ही, ऊपर से लड़की जात, नञ तो हमहूँ बहुत कुछ कर सकऽ ही ।)    (अमा॰40:16:1.18)
196    जात-बिरादरी (नामी नगर के विधायक जी भी भूपति सिंघ के चचेरा भाई हथ । एही से उनका पास जाय ला भुखल ठाकुर के मन न होयल ! अप्पन गाँव-टोला, जात-बिरादरी ओलन भी भुखल के साथ न देलन । सब में फूट हल ।)    (अमा॰32:7:2:29)
197    जिनगीलेवा (= जिन्दगी लेनेवाला या बर्बाद करनेवाला) (सचमुच परदूषण आज जिनगीलेवा बन गेल हे ।)    (अमा॰41:8:2.27)
198    जिनोरा (= जिनोर, जिन्होरा; मकई; बाजरे की एक प्रजाति जिसे मुख्यतः चारों के लिए लगाते हैं; मसूरिया जिनोर; बाजरे जैसा अन्न जिसके बाल पौधे के सिर पर गुच्छा के रूप में लगते हैं) (किसान हथ चिंतित केवाल न जोताएल हे । उरदी जिनोरा भी न डीह में बुनाएल हे ।)    (अमा॰39:13:2.3)
199    जीउ (= जीव) (धरती पर के अनगिनती जीउ में से एगो मनुस भी हे जे पैदा होवऽ हे खा-पीयऽ हे आउ अप्पन उमर पूरा करके मर जाहे ।)    (अमा॰35:4:1.1, 4)
200    जीउ-जन्तु (ज्ञान आउ विज्ञान के बदौलत ऊ न खाली अप्पन जान के हिफाजत करे के जतन करे हे बलुक दोसर जीउ-जन्तु के बारे में भी जानकारी प्रापत करे के चेष्टा करइत रहे हे ।)    (अमा॰35:4:1.9)
201    जुआनी (ओकर माय के किस्मत में भोला के कमाई से सुख लिखले न हल, एहि से ऊ भरल जुआनी में चल बसल ।)    (अमा॰31:21:2.5)
202    जुआर (= ज्वार) (एन्ने दस बरिस से गाँओ में बँटवारा के जुआर आल हे, पत बरिस दस-पाँच घर में बँटवारा होवे हे आउ हर बँटवारा के मूल में रुकमिन फुआ के हाथ मानल जाहे ।)    (अमा॰36:7:2.5)
203    जुगुति (= युक्ति) (सोच यही जर मरे पतिंगा, जुगुति कउन जीवन सरसाऊँ ?)    (अमा॰40:11:1.15)
204    जुध (= युद्ध) (इराक के धरती पर घमसान जुध, असमान में मँड़राइत चील्ह आउ गीध, बम बरसावइत हवाई जहाज, समुन्दर के किनारा से सेना के जलपोत आउ उधर चप्पे-चप्पे में घुड़दौड़ मचावइत अमरिकी सेना ।)    (अमा॰32:12:1:20)
205    जूरा (= जूड़ा) (जब भोला बेकारी के समुन्दर में डूब रहलन हल, उनकर परिवार के पालन-पोसन भुअन भगत मजूरिए करऽ हलन । कहिनो मजूरी न मिलऽ हल तब भोला के घरुआरी के पेट कुहुर-कुहुर करऽ हल । मगर अब उनकर जूरा महमह करे लगल ।)    (अमा॰31:21:2.7)
206    जेभी (हम्मर दिमाग में एक बात आयल, फिन हम सौ के नोट जेभी में रख के पचसटकिया कड़कड़िया नोट निकाल के सभे से कहली -'भाई जी, ई रुपइया किनकर हे ?')    (अमा॰31:8:1.20)
207    जोग (= योग्य) (=योग्य; योग, ध्यान, तप; किसी काम को करने का उपयुक्त समय, लग्न; शुभ अथवा अशुभ घड़ी) (अब तक सरकारी तो का, पढ़ाई जोग एगो प्राइवेटो नोकरी तो न मिलल ।; ई झपसी से हाल बेहाल हे लोग के । सभे कोई कोसइत हथ बरसा के जोग के ॥)    (अमा॰33:11:1:20; 39:13:2.8)
208    जोताना (धनमा काटित काटित देखलक सपनमा, हरवा जोताई बुनम सरसो के दनमा, दनमा जे बढ़त हंसी आवत हो, सपना देखल किसनमा ।)    (अमा॰42:5:2.19)
209    जोवायल (कातो पखेरू होवे के पहिलहीं मास खाय में नरम लगऽ हे आउ जोवायल कबूतर के मांस चिमड़ हो जाहे ।)    (अमा॰31:26:1.1)
210    जौराती (धन्य ढोलकिया नाथो जी, जौराती उनकर प्रान । अन्त अन्त तक साथ निभौलन कैलन पुण्य महान ।)    (अमा॰41:20:1.5)
211    झखुरा (पहिले-पहिले सब बहुरिआ के इहे हाल रहऽ हे फेंकना के माय ! बाकि जब झखुरा कबाड़ऽ हे तब न बुझा हे ?)    (अमा॰41:19:2.14)
212    झखुरा-झखुरी (एक दिन जब दुन्नो सास-पुतोह में झखुरा-झखुरी होइत हल, उहे समय पड़िआइन जी पहुँचलन आउ दुन्नो के छोड़एलन ।)    (अमा॰41:19:2.23)
213    झमक-झमाझम (~ बरसना)    (अमा॰39:11:2.7)
214    झरनी (मुहर्रम के गम से डूबल  माहौल में धर्म-सम्प्रदाय के सीमा लाँघइत मगहियन जब बाँस से बनावल झरनी के बजावइत झरनी के गीत गावऽ हथ तब बुझा हे कि दुखसाकार रूप धारन कर लेलक हे ।)    (अमा॰39:10:2.11, 13)
215    झरुआ (= झारु, झाड़ू) (लगले उहे झरुआ से तीन चार जड़ देलन । पटक देलन ओकरा आउ जोर से रगड़ देलन ।)    (अमा॰36:17:2.9)
216    झलफल (ऊ दूर बहुत दूर धुँआयल सपना जइसन झिलमिल, झलफल, अबोध लइकन से पाड़ल टेढ़-मेढ़ डँरेर अइसन ओकर झोपड़ी हे, जहाँ ओकर बाप बखोरा सूअर के साथ खोभार में नौ गो लइकन आउ मेहरारू के साथ रहऽ हे ।)    (अमा॰36:5:1.9)
217    झूठ-झाठ (कलयुग हो, कलयुगिया बन जा, बात बना वैतरणी तर जा । झूठ-झाठ कुच्छो नै करतो, सच में होतो भारी हरजा ॥)    (अमा॰34:17:2.1)
218    झूमर (अकसर शादी-बिआह चाहे आउ कोई मौका पर झूमर गावल जाहे ।)    (अमा॰39:10:1.9, 10)
219    झोंटी (बुतरू हम्मर भूखल हे आउ रो रहल हे बिटिया । दे-दे के जइसे ताना कोई नोंच रहल हे झोंटिया ।)    (अमा॰38:8:1.4)
220    टिरुसना (खयला बाहर झपसी में भइंसो बिसुख गेल । दूध लागी लइकन संग बुढ़वो टिरुस गेल ।)    (अमा॰39:12:1.24)
221    टीपन (= जलमपत्री; जन्मकुण्डली) (बचिया के मइया कहलक कि बिना दुन्नो के टीपन मिलैले बिआह न करम । का जानि दुन्नो के जोड़ी मिलऽ हे कि न ।; एतवार के लड़का-लड़की के नाम से यज्ञ करके शनि के शांत कर देबुअ आउ सोमार के दुन्नो टीपन लउटा देबुअ ।; बाबूजी ! दोसर के जोड़ी मिलावऽ ह आउ अप्पन घरवा के भविष्य पर ध्यान न दे हऽ । दीदी के टीपन मिला के काहे न देखलहुँ हल ? बिआह के दुइए साल के बाद जीजा जी मारल गेलथिन ।)    (अमा॰41:13:1.26, 14:2.20, 15:1.4)
222    टुंगना (सीपी घरे न विनमल । फिनो बँसवरिये में पहुँच गेल । लइकन के गोली खेलते हलक से कहूँ चल गेल हल, से ऊ टुंगना लेके भुइयाँ पर डील घीचे लगल, फिनों विचार के दुनिया में भटक गेल ... ।)    (अमा॰36:7:2.18)
223    टुअरा-टुअरी (हमरा लगऽ हे जहर खाके मर जाउँ झट से । फिन सोचऽ ही, हम्मर टुअरा टुअरी केकरा साथे सुततई सट के । सच कहबो त लगतो भक् से ।)    (अमा॰40:12:2.1)
224    टुघरना (एगो अधेड़ उमिर के औरत पेटकुनिए टुघरइत-टुघरइत उनकर दवाखाना में पहुँच गेल ।)    (अमा॰32:13:2:3)
225    टुभुकना (= टुभकना) (एगो मेहारू स्वेटर बुनइत हल । ओकरा जब न रहल गेल त टुभुकलक - 'ए जी ! तोहनी एतना गंदा गारी काहे बकइत ह ? बेचारा चढ़िये गेलन त का ?..')    (अमा॰42:13:1.21)
226    टेढ़की (विचार-गोष्ठी लगले हल कि टेढ़की की बकुली लेले दादा दुआरी पर प्रकट भेलन । ऊ दुआरी पर ढेर देरी से खड़ा हलन प्रताप के भारत के सपना देखइत ।)    (अमा॰38:12:2.29)
227    टोक-टाक (पड़ोस के रुकमिन फुआ आके समझावे लगलन ओकर माए के - 'काहे ला तूँ टोक-टाक करऽ हहु भउजी ? घर में कारज नधाइत हवऽ, झगड़ा-झंझट करबऽ त दुनिया जहान में हिनसतई होतवऽ । केकर-केकर मुँह बन्द करबऽ । लोग कहतवऽ कि बिआह के खरचा लेके पितपिताएल हे । कारज भर मुँह सी के रहे पड़तवऽ ।')    (अमा॰36:7:1.24)
228    टोला-पड़ोस (पहिले तो जदू गुरू जी अन्हरा में काना राजा बनल हलन । ई घड़ी तो हम्मरो बेटा टोला-पड़ोस के नाक के बाल बनल हे ।)    (अमा॰31:21:2.7)
229    ठार (<प्रा॰ ठड्ढ; = ठंढक, जाड़ा, पाला; ठंढा, शीतल) (एक दिन सीपी के कान में बात आल कि ओकर बिआह ठीक करे ला ओकर बाबा घूम रहलन हे । दुपहर के बेरा हल, ठार के दिन ।)    (अमा॰36:7:1.16)
230    ठार (= ठाढ़, ठड़ा, खड़ा) (अब ऊ अप्पन घर के आँगन में ठार हल । ओकर माए ओसरा में बइठ के पिपकारित हल ।; बँसवारी से सीपी देखलक कि लोग तिलक के समान लेके जा रहलन हे । ऊ तनि झपट के घरे पहुँचल आउ बाबा के अँगारी में जाके ठार हो गेल ।)    (अमा॰36:7:1.21, 8:2.22)
231    ठुकमुकाना (ऊ बेचारा गेटवे पर ठुकमुकायल मुड़ी गिरा के उनकन्हीं के बात सुनइत हल । अंधरा-बहिरा, काना-कोढ़िया, लूल्हा-लंगड़ा के सुगंधित अच्छत से ओकरा लोग परिछे लगलन ।)    (अमा॰42:13:1.16)
232    ठेगुरी (बढ़ रहल हे माथा पर करजा के बोझ, लगऽ हे जिनगी भर न रहम सोझ । बोझ से दब के झुक जाइत कमर, हाथ में आ जाइत ठेगुरी हम्मर । जल्दी पहुँच जायम बाँस घाट, लइकन सरापतन निकम्मा हल बाप ।)    (अमा॰33:11:2:12)
233    डँरेर (= डँड़ेड़, डँड़ीड़, डँड़ीर, डँड़ेर, डँड़ेरी, डँरीर, डँरेरी; लकीर, रेखा; लम्बी रेखा; सीमा रेखा; खेत की आर या आरी; खेतों के बीच का पानी का खजाना) (ऊ दूर बहुत दूर धुँआयल सपना जइसन झिलमिल, झलफल, अबोध लइकन से पाड़ल टेढ़-मेढ़ डँरेर अइसन ओकर झोपड़ी हे, जहाँ ओकर बाप बखोरा सूअर के साथ खोभार में नौ गो लइकन आउ मेहरारू के साथ रहऽ हे ।)    (अमा॰36:5:1.11)
234    डउँघी-पउँघी (गगन-तलैया में फूलो फुलाएल, डउँघी-पउँघी पर थिरके पवनवां - हियरा बनल हरहोर रे ।)    (अमा॰32:1:1.6)
235    डगरल (अर्द्धशती आजादी के दिन उत्सव के, शुभ मने दिवाली । सुन्दर क्षण, अरपित तन मन हे, डगरल ले गोली औ गाली । हरष शोक के बीच भरमलक, मन के केतना धीर धराऊँ ? बोलऽ केतना दीया जराऊँ ?)    (अमा॰40:11:2.6)
236    डफला-बँसुरी (= एक मगही लोकगीत)    (अमा॰39:10:1.1, 3)
237    डमको (= डमकोल, डमकोला, डमकोइआ, डमखोइआ; वृंत के साथ ताड़ का पत्ता) (तड़वा-खजुरवा में बलुरी लटकलइ, डमको बजावइ करताल । तीसिया के संग-संग सरसो झनकलइ, बूँटवा बजावऽ हइ झाल ।)    (अमा॰33:6:1:6)
238    डाँठ (खेतवा-बधरवा में गेहूँ गदरयलइ, अंग-अंग लथरल हइ बाल । मसुरी के डँठवा से सोभइ खरिहनवा, बदलल किसनवा के चाल ।)    (अमा॰33:6:2:3)
239    डील (~ घींचना) (सीपी घरे न विनमल । फिनो बँसवरिये में पहुँच गेल । लइकन के गोली खेलते हलक से कहूँ चल गेल हल, से ऊ टुंगना लेके भुइयाँ पर डील घीचे लगल, फिनों विचार के दुनिया में भटक गेल ... ।)    (अमा॰36:7:2.18)
240    डोमिनि-चमइनि (कबहु न डोमिनि चमइनि देखि घिनाइब हो । बहिनो शबरिहि राम समान इनहिं अपनाइब हो ।)    (अमा॰35:6:2.25)
241    ढाला (बंधल मिलतउ पइसा, खर्चा बड़लउ ढाला गे, करबउ घोटाला गे ना ॥)    (अमा॰33:10:1:19)
242    ढुर-ढुर (~ लोर) (का हल पहिले अब का हो गेल ढुर-ढुर लोरवा ढरकावित ही ।)    (अमा॰38:9:1.11)
243    ढेरी (= ढेर) (धनवाँ के काट काट ढेरी लगइली, खाद गोबर से खेतवा भरइली, देली उन्नत बीया के दान ।)    (अमा॰42:5:2.10)
244    ढोल-ताशा (ढोल-ताशा प्रस्तुत कैलन नालन्दा जिला के पतासंग गाँव के श्रवण कुमार,  रामानन्द दस, दिनेश दास, विद्यानन्द दास, अरविन्द कुमार, रामकृष्ण, सत्येन्द्र कुमार, रवीन्द्र कुमार आउ धूरी दास ।)    (अमा॰39:10:2.7)
245    ढोवाना (बैला बोलल - 'सरकार ! हमरा से केतना बोझा ढोवायम ? केतना सोंटा खिलायम ? केतना पोंछी ऐठायम ? हमरा चालीस बरिस के जिनगी नञ चाही । हमरा बीसे बरिस दे देईं ।')    (अमा॰42:6:1.30)
246    तनखाह (सुखल ~) (उमेस बार-बार समझावे ला चाहलक हल कि सांति के मरद आयकर विभाग में बड़का अफसर हे । ओकरा हजारों रुपइया के ऊपरी आमदनी हे । आउ ओकर मरद हे एगो मामूली बाबू । सुखल तनखाह पावे वाला ।)    (अमा॰31:5:2.17)
247    तमशबीन (= तमाशबीन, दर्शक) (छन भर में देखते-देखते ई अघटनीय घटनास घट गेल जबकि जुलूस के जौरे सड़क पर चलइत पुलिस के डण्डा पार्टी टुकुर-टुकुर ताकेओला तमशबीन बनल हलन ।)    (अमा॰41:4:1.30)
248    तस्मई (मइया कहलवऽ हे कि आज तस्मई बनतई । एनहीं से दूध, चाउर, चीनी लेले जाय ला हे ।; अइसन न करबउ तब तोहर मइया तस्मई कहाँ से बनैतउ ?)    (अमा॰41:13:1.16, 14:2.11)
249    तहाबोर (खून से साड़ी तहाबोर हो गेल हे ।)    (अमा॰32:13:2:6)
250    तहियाना (अब तो हमरा एही लगऽ हे कि यदि हमहूँ अनपढ़ रहती हल त कोई तरह के मेहनत-मजूरी करे लगती । कुछ गाय-भइंस पाल-पोस के चरइती आउ दूध में पानी मिला के बेच-बेच के नोट तहियती, कउनो हीं ईंटा ढोइती, त कउनो हीं माटी ।)    (अमा॰33:12:1:19)
251    तीता (= तित्ता, तिक्त) (ओह पापा ! तूँ तो हम्मर टॉफी खाय के सवादे मिट्ठा से तीता कर दे हऽ ।; अब मुँह मिठायत का कि तीता हो जायत ।)    (अमा॰37:9:1.26, 11:1.5)
252    तीरा-झोंकी (= खींचा-तानी) (एगो करमचारी गमछी में लेके लेमनचूस बाँटे लगल । लयकन सब में तीरा-झोंकी होवे लगल । ऊब के ऊ करमचारी लेमनचूस के लुटावे लगलन ।)    (अमा॰31:16:1.12)
253    तीरी (~ नियन छितरा जाना) (देखते-देखते पुलिस तीरी नियन एन्ने-ओन्ने छितरा गेलन ।)    (अमा॰42:12:1.3)
254    तुलसीवीर (भुइयाँ जाति के एगो महापुरुष हलन तुलसीवीर । इनके महिमा उनकर जात के लोग आज तक ले गावऽ हथ ।)    (अमा॰39:9:2.10)
255    तोड़ल-मरोड़ल (कहीं भी उखड़ापन या शब्द के जबड़दस्ती तोड़ल-मरोड़ल रूप देखे में नञ आवऽ हे ।)    (अमा॰31:18:2.12-13)
256    थप (~ से) (तोहरे कमइया बाले बच्चे खाइत हे चट से, अप्पन कमइया बकसा में बन्द कर देहे फट से । जब ई सक तोरा कहऽ ही, त तोहूँ हम्मर मुह पर मार देहऽ थप से । सच कहबो त लगतो तोरा भक् से ।)    (अमा॰40:12:1.30)
257    थाह (अभी बजइत हल दिन के बारह आउ थाह न लगइत हल कि दिन हे कि रात ।; लोग के थाह न चलइत हल । आखिर कउन कसूर के सजा मिलइत हे ?)    (अमा॰42:11:1.2, 12:1.9)
258    थेथर (= उद्दंड; जिस पर समझाने-बुझाने या ताड़ने का कोई असर न हो) (हम अप्पन मुझौसा से कहऽ ही कि दोसर कोई नौकरी करऽ इया कोई रोजगार देखऽ, जेकरा से दू-चार पइसा हाथ पर आवे । बाकि ई कामचोरवा कुछ सुनवे न करऽ हे, देह चोरवले एन्ने-ओन्ने माकल फिरऽ हे । समझाते-समझाते थेथर हो गेली हे बाकि ई बेहाया, बेशरम के कुछ बुझयवे न करऽ हे ।; एजी तनि दबावऽ गोड़ ! कहित-कहित मुँह थेथर होल ।)    (अमा॰34:7:2.24; 40:12:2.28)
259    दरख (= दर्शन, भेंट) ('अपने भी मगहिए ही का ?' -'मगहिया न रहती हल, त ई माटी के खिलल कमल पर भौंरा कइसे बनती हल ?' पुण्डरीक से एही हम्मर पहिल दरख-परख हल, जे आगे घना होइत गेल ।)    (अमा॰35:15:1.20)
260    दरख-परख (= भेंट-घाँट) ('अपने भी मगहिए ही का ?' -'मगहिया न रहती हल, त ई माटी के खिलल कमल पर भौंरा कइसे बनती हल ?' पुण्डरीक से एही हम्मर पहिल दरख-परख हल, जे आगे घना होइत गेल ।)    (अमा॰35:15:1.20)
261    दवा-वीरो (एही बीच में एक दिन चन्द्रमोहन के छोटकी बहिन के बोखार लग गेल । दवा-वीरो होइत रहल बाकि कउनो अराम न होयल ।)    (अमा॰40:17:2.22)
262    दहाड़ (कभी जादे पानी पड़े से दहाड़, त कभी पानी न पड़े से सुखाड़, ओकरो पर सरकार के मार अलगे ।; बाढ़ के दहाड़ अइसन पानी फुहियाइत हे । घरवा में बइठल-बइठल जीव अकुलाइत हे ॥)    (अमा॰38:13:1.22; 39:12:1.5)
263    दान-दहेज (तोर बाबू तो हम्मर बेटा के बिआह में हमरा खूब बुड़बक बनयलन । न टी॰भी॰, न मोटर साईकिल ! दान-दहेज भी छुछुम । अइसन गरीब-फकीर के इहाँ बिआह करके हम ई फँसान फँसलूँ हे कि कुछ कहे के नञ !')    (अमा॰32:11:2:10-11)
264    दिरखा (= दरखा, ताखा, ताख, ताक) (तोर मन लायक नौकरी अभी तक न मिलल हे, न मिलत । आजकल एम॰ए॰ के डिगरी दिरखा पर रख के हमरा नियर अनपढ़ न बनवऽ, भूखे मरे के सिवाय कोई रास्ता न हे ।)     (अमा॰37:15:2.23)
265    दिलावल (हम एतना ध्यान दिलावल चाहऽ ही कि ई विशेषांक में सउँसे पत्रिका दू भाग में बँटल हे ।)    (अमा॰31:4:2.20)
266    दुतल्ला (~ मकान) (भोला भगत के पड़ोसी दूध-दही के रोजगार से दुतल्ला मकान बना लेलन हल ।)    (अमा॰31:21:2.20)
267    दु-नमरी (~ काम) (पढ़ल-लिखल लोग कम मेहनत करके जादे पइसा कमायल चाहऽ हथ । एही फेर में कभी-कभी दु-नमरियो काम करे ला तइयार हो जा हथ ।)    (अमा॰33:11:2:29)
268    दुनियावी (दुनियावी धन-सम्पत्ति में लाभ-हानि दुन्नो हे । एकरा चोरो लूट लेहे, बाँट-बखरा में भाई-बन्धु से बन्दूको-पिस्तौल, लाठी-भाला चल जाहे, राज के तरफ से कुर्की जबती भी हो जाहे, बाकि विद्या-धन कोई न छीन सके ।)    (अमा॰39:5:1.2)
269    देखवैया (कोय पूछ-ताछ नयँ हे, बचल हे केवल 'तंत्र' । बतावऽ हे, राह देखवैया ! ही हम स्वतंत्र ?)    (अमा॰38:6:1.12)
270    देवी-गीत (भीखमपुर, गया के एही कलाकार लोग देवी गीत भी प्रस्तुत कैलन । देवी माता के पूजा-पाठ आउ भूत-प्रेत के झाड़-फूँक वला अइसन गीत आज भी गाँव में देखल जा सकऽ हे ।)    (अमा॰39:10:1.15, 16)
271    देहचोरनी (अरविन्द कुमार मिश्र अप्पन देहचोरनी मेहरारू के बखान करइत श्रोता लोग के खूब हँसैलन ।)    (अमा॰40:12:2.25)
272    दोकान-दौरी (गाँव में खास जगह पर हाट-बजार, दोकान-दौरी, अनाज रखे के गोदाम, गोशाला, पंचायत, इसकूल, अस्पताल, खेल-कूद के मैदान, मंदिर-मस्जिद बनावल जाय ।)    (अमा॰36:6:1.23)
273    दोगलवावाला ('अयँ गे ! नउआ-कउआ के बेटी होके, हम्मर खेत में हेले के हिम्मत कइसे होलउ ? अयँ ?' एतना कह के बिगड़ैल सिंघ बसंती के पखुरा पकड़ के बूँट के खेत में लसाड़ देलक । बेचारी बसंती हाथ-पाँव चलावइत '.... दोगलवावाला, चरकाहा, मोंछकबरा, तोर देह में घुन लगउ रे' कहइत बचे के असफल प्रयास करइत रहल, लेकिन सिंघ जीवा अप्पन दौलत, सवाँग आउ जवानी के जोश में होश हवास खो बैठलक ।)    (अमा॰32:7:2.15)
274    धड़धड़ायल (एतने में पाँच छौ जीप धड़धड़ायल आयल । फटाफट खाकी बरदी वालन उतरे लगलन ।)    (अमा॰42:11:2.28)
275    धरफड़ाल (= धड़फड़ाल) (ऊ बँसवारी भिजुन जाके बइठल हल । घरे से माए के काने के अवाज आल त धरफड़ाल चलल, ओकर करेजा धक-धक कर रहल हल ।)    (अमा॰36:7:1.18)
276    धुइयाँ (बारूद के धुइयाँ में जीना बड़ दुश्वार हे ।)    (अमा॰33:13:2:9)
277    धुक्कन (बेचारी पनपतिया के ओकर ससुराल वाला मिरचाई के धुक्कन देके मार देलकई खाली एतने ला कि माँगला पर इसकूटर काहे न मिलल ?)    (अमा॰40:13:2.14)
278    धुरखेली (जइसे-जइसे होली नजदीक आवइत गेल, लोग के दिल-दिमाग में मस्ती के बोखार चढ़इत जाहे । ई बोखार धुरखेली आउ बसिऔरा के बादे उतरत ।)    (अमा॰33:4:1:12)
279    धूर-जानवर (धूर-जानवर रखे ले घर के पिछौती में बेवस्था कैल जाय ।)    (अमा॰36:6:2.5-6)
280    नउआ-कउआ (-'केकर बेटी हें गे ?' -'भुखल ठाकुर के ।' -'अयँ गे ! नउआ-कउआ के बेटी होके, हम्मर खेत में हेले के हिम्मत कइसे होलउ ? अयँ ?')    (अमा॰32:7:2.12)
281    नखोरना (हम्मर ऊ करियक्का कुत्ता दू-तीन बेर तो साँप से बचउलक - केवाड़ी नखोर-नखोर के सावधान कयलक आउ तीन-चार बेर चोर लोग के भँभोर-भँभोर के भगा देलक ।)    (अमा॰42:10:1.17)
282    नजर-गुजर (= नज्जर-गुज्जर) (एतना सभे कुछ होला पर भी मगही आज भी नजर गुजर से नऽ उबरल हे । कल भी एकरा फटकारल गेल हल आउ आजो दुतकारल जा रहल हे ।)    (अमा॰40:10:1.10)
283    ननका-ननकी (= नन्हका-नन्हकी) (आज अन्हारहीं ननका ननकी के दूध पियावइत हलियो । एतने में हम्मर बाबू के हम्मर गोदी में से बरियरी खींच के मालिक पासी के दे देलथिन ।)    (अमा॰31:25:2:9)
284    ननौर (ननौर के रामावतार बाबू बड़ी धार्मिक विचार के हथिन । उनकर बेटा सुधीर अप्पन परिवार के जौरे जिम्बाब्वे में रहऽ हे, बाकि अप्पन बाबूजी जइसन ओकरो भगवान पर पूरा भरोसा हे ।)    (अमा॰32:14:1:1)
285    नमरी (सुन्दर भाषण, सुन्दर दर्शन, एक से एक महान । सब चुनाव से पहिले, फिर तो सब नमरी सैतान ॥)    (अमा॰32:16:1:4)
286    नवाह (किरतन, जग्ग, नवाह, चौपहरा पूजा उनकर प्रान । कुछ ने कुछ करते रहला, कहियो नै भेल सुनसान ।)    (अमा॰41:20:1.13)
287    नश्ता (= नाश्ता) (चारो एगो निमन होटल में बइठ के नश्ता कैलन ।)    (अमा॰31:9:2.12)
288    नहिरा (= नइहर) (ओहनी के नहिरा से अप्पन कोई आवऽ हे, त चाह पिलावऽ हे कप से । हम्मर बाबा-भइया आवऽ हथ त मुहवा फुला लेहे हप् से ।)    (अमा॰40:12:1.14)
289    नाटा-खुटा (हम्मर किलास में बंगाली बाबू हेडमास्टर के साथ नाटे-खुटे ठेहुँना तक धोती पहिनले, देह पर गमछी ओढ़ले, दाढ़ी बढ़ौले, कंधा में एगो झोला लटकएले एगो अदमी अएलन हल ।)    (अमा॰35:17:1.4)
290    नामी-गरामी (= नामी-गिरामी) (मगही के नामी-गरामी कवि बाबूलाल मधुकर के डॉ॰ राम प्रसाद सिंह साहित्य पुरस्कार देल गेल ।)    (अमा॰40:9:1.4)
291    निंगरना (= बहकर निकल जाना, निकल जाना, समाप्त या खाली होना) (ओहरल बदरिया, निंगरल अँधरिया, दुनियाँ में भेलइ इंजोर रे - बड़ी कइलक हल बदरो इंजोर रे ।)    (अमा॰32:1:1.1)
292    निछोके (~ न छोड़ना) (भोर होके तनी मानी पानी थमल त खिड़की से झाँकली । मालूम भेल कि राते के बरसात केकरो निछोके न छोड़लक । भीड़ से एक्के अवाज सुनाई पड़ऽ हल -'प्रकृति के मार चोटगर होवऽ हे, आदमी का कर सकऽ हे ?')    (अमा॰31:22:1.30)
293    निट्ठाह (= निठाह) (चार हजार बरस से भी जादे बीतल, अरब के मरूभूमि में अदी के वास नयँ हल, निट्ठाहे बंजर, उखल पहाड़, सूखल पेड़ । पर ओकर उत्तर में देजला-फरात नदी के बीच बावुलो नयनमा शहर बसल हल ।)    (अमा॰34:5:1.2)
294    निपुत्तर    (अमा॰36:18:1.11)
295    निरइठ (= निरैठा; जो जूठा न हो; पवित्र) (एगो भारतीय नारी के जीवन चरित आउ 'भिक्षुक' में एगो सही भारतवासी के मूरत, जेकरा निरइठ दाना तऽ ममोसर नयँ हे, जूठा पत्तलो ले लिलकइत हे ।)    (अमा॰32:5:2.22)
296    निरमान (= निर्माण) (सत्य आउ अहिंसा, प्रेम आउ शांतिसे भरल आनन्दपूर्ण समाज के निरमान कर सकऽ हे ?)    (अमा॰40:5:2.21)
297    निहकाम (= निष्काम) (ओहनी के निहकाम जोगी नियन भीख मांगइत देख के सरोता के बड़ा अचरज भेल ।)    (अमा॰31:2:2.4)
298    नुकाल (= नुक्कल; छिपा हुआ) (कारूओ देखलक, बाकि देख के ऊ नुकाल नियन हो गेल ।)    (अमा॰31:20:1.16)
299    नून-भात (बेचारी घास छील-बेंच के, गोइँठा-अँवारी बेंच-खोंच के आउ नून-भात खाके पेट पालऽ हल ।)    (अमा॰32:7:2.4)
300    नेवाना (= नीचे करना) (मुड़ी ~) (कार्यकर्त्ता मुड़ी नेवा के गते उहाँ से घसक गेलन ।)    (अमा॰31:2:2.11)
301    नेहाली (देख रे बाबू अलउ जाड़ा । गेलउ गरमी, गेलउ बरखा, चले लगल जाड़ा के चरखा, फटल सुजनी फटल नेहाली, गूँज गेलउ एकर नगाड़ा ।)    (अमा॰42:5:1.4)
302    नोचल-चोथल (तीनो भाई दम भर खा-खा के अँड़िआइत उठ के मुँह धोयलन तब मइया देखलक कि जूठा थरिया में कुछ नोचल-चोथल मछरी के गुड़िया बच रहल हे ।)    (अमा॰31:10:1.26)
303    नोनगर (= नूनगर) (पी न जइती, त का करती हल ? जान-बूझ के नीमक के शरबत तो नहियें घोरल गेल हल ? फिन हल्ला करे से नोनगर पानी मीठा तो नहिंये हो जायत ।)    (अमा॰39:15:1.3)
304    पंचइनी (लेकिन चमर-टोली के कुछ जवान होइत पढ़ल-लिखल लइकन ओही रात भुखल ठाकुर आउ बसंती के बोला के पंचइनी बइठैलन ।)    (अमा॰32:8:1:2)
305    पंचबजना (पंचबजना - एकरा में दूगो ढोलकी, एगो ताशा, एगो पिपही आउ एगो बट्टा मिला के पाँच गो बाजा बजऽ हे ।)    (अमा॰39:10:2.20)
306    पंहत (= पंक्ति) (रमणरेती में रोज करीब 500 आदमी के पंहत बइठऽ हल । ओकरा में आधा तो गैरिक वस्त्रधारी महात्मा लोग हलन जेकर पंक्ति अलगे बइठऽ हल ।)    (अमा॰35:10:2.11)
307    पखुरा ('अयँ गे ! नउआ-कउआ के बेटी होके, हम्मर खेत में हेले के हिम्मत कइसे होलउ ? अयँ ?' एतना कह के बिगड़ैल सिंघ बसंती के पखुरा पकड़ के बूँट के खेत में लसाड़ देलक ।)    (अमा॰32:7:2.13)
308    पगाएल (सनेह से पगाएल कहाँ मिलत आउ ठाँव रे ।)    (अमा॰34:19:2.11)
309    पघिलना (= पिघलना) (एक कान के बाली बम के धमाका से अइसन कान में चिपक गेल हे जइसन राँगा कोनो पदार्थ से चिपक जाहे । ओकर गरदन के हंसुली, गोड़ के गेराँव, हाथ के पहुँची पिघलल लोहा लेखा पघिल-पघिल के किरियाठ हो गेल हे ।)    (अमा॰32:13:2:9)
310    पचसटकिया (~ नोट) (हम्मर दिमाग में एक बात आयल, फिन हम सौ के नोट जेभी में रख के पचसटकिया कड़कड़िया नोट निकाल के सभे से कहली -'भाई जी, ई रुपइया किनकर हे ?'; न भाई जी ! ई नोट हम्मर न हे । हम्मर नोट सौटकिया हेरायल हे आउ ई पचसटकिया हे ।)    (अमा॰31:8:1.21, 31)
311    पचसमा (= पचासवाँ) (ई पचसमा सुरुज के पहिले भी उगल हल सुरुज सतजुग, त्रेता, द्वापर में औ एकाध बेरी ई कलजुग में भी, मुदा अयसन सुरुज कहियो नयँ देखलूँ हे ।)    (अमा॰38:6:1.18)
312    पढ़लकी (ई बात पढ़लकी मेहरुआ समझयलक ।; 'केकरो लिलार पर लिखल तो न न रहई कि कउन चोर हे आउ कउन गुण्डा । ...' पढ़लकी अप्पन दलील देलक ।)    (अमा॰42:13:2.19)
313    पढ़वैया (पढ़ौताहर आउ ~)    (अमा॰36:14:1.28)
314    पढ़साल (= परसाल, परहे) (तिलक असमान ठेक रहल हे । पढ़साल (? परसाल) जौन-जौन आदमी बेटी बिआहलक तौन-तौन अप्पन दू बिगहा चार बिगहा खेत बेचलक, तब कहूँ दहेज के पइसा जुटा सकल । जे खेत न बेचलक से कहूँ से करजा लेलक ।)    (अमा॰36:7:2.20)
315    पढ़े (= परहे) (पत बरिस गाँओ में भागा-भागी के दू-चार गो घटना होवे हे आउ हमेशा ओकरा ला रुकमिन फुआ के बदनाम कएल जाहे । पढ़े {? परहे} एगो मेढ़ानू अप्पन परेमी सँगे भागल हे आउ अभी ले ओकर अता-पता तक न हे । लोग कहऽ हथ कि ओहू रुकमिन फुआ के करतूत हे ।)    (अमा॰36:7:2.11, 15)
316    पत (= प्रत्येक) (एन्ने दस बरिस से गाँओ में बँटवारा के जुआर आल हे, पत बरिस दस-पाँच घर में बँटवारा होवे हे आउ हर बँटवारा के मूल में रुकमिन फुआ के हाथ मानल जाहे । पत बरिस गाँओ में भागा-भागी के दू-चार गो घटना होवे हे आउ हमेशा ओकरा ला रुकमिन फुआ के बदनाम कएल जाहे ।)    (अमा॰36:7:2.6, 8)
317    पता-ठेकाना (सुमितरी हमेशा अप्पन सास के कहऽ हल कि उनका चिट्ठी भेज के बोला दऽ । बाकि ओकर सास न तो खुदे चिट्टी भेजे न ओकरा उहाँ के पता-ठेकाना बतावे ।)    (अमा॰31:13:2.4, 7, 8, 10, 15)
318    पताल (= पाताल) (धरती के रंग बदल गेल, पर्यावरण बिगड़ गेल । गंगा के पानी पाप से पताल में समा गेल ।)    (अमा॰33:13:2:4)
319    पनकना ('बड़ी जोर से छनकलहूँ बाबा ! का बात हई ? हनीमून मनावे का जाइत ह ?' अबकी आउ पनकावे ला ऊ युवक बोललक ।)    (अमा॰33:8:2:10)
320    पनसोखा (= इन्द्रधनुष) (पनसोखा के झुलुआ लगलइ, गगन-अँगनवाँ । सतरंगी पनसोखा अइसन चुनरी नीयन चमके, जइसन गोरी के चुनरी मन देख-देख के लिलके ।)    (अमा॰39:11:2.13, 15)
321    परकास (= प्रकाश) (आज समाज गाँधी, महावीर आउ महात्मा बुद्ध के बतावल सन्देस के सही रूप से पालन करत त समाज में ग्यान के परकास जरूर फैलत ।)    (अमा॰40:6:1.4)
322    परब (= पर्व, त्योहार) (आपसी मतभेद के भुला के प्रेम से अँकवारी में भरे वला परब हे होली ।)    (अमा॰33:4:2:22)
323    परिकना (= परकना) (ग्रह-शांति लेल सनीचर नौ बजे दिन में खिचड़ी के नियम बनउली तो एगो कुत्ता ठीक समय पर आवे लेल परिक गेल ।)    (अमा॰42:9:2.6)
324    परिछना (ऊ बेचारा गेटवे पर ठुकमुकायल मुड़ी गिरा के उनकन्हीं के बात सुनइत हल । अंधरा-बहिरा, काना-कोढ़िया, लूल्हा-लंगड़ा के सुगंधित अच्छत से ओकरा लोग परिछे लगलन ।)    (अमा॰42:13:1.19)
325    पलेटफारम (= प्लैटफॉर्म) (मधुआ उतरल आउ पलेटफारम पर तब तक खड़ा रहल जब तक सब बहिन के ले के गाड़ी आँख से ओझल न हो गेल ।)    (अमा॰42:14:2.12)
326    पसुली (आज अन्हारहीं ननका ननकी के दूध पियावइत हलियो । एतने में हम्मर बाबू के हम्मर गोदी में से बरियरी खींच के मालिक पासी के दे देलथिन । तुरतहीं ऊ टिपउर बाबा के पिंडी पर ले जाके हम्मर बाबू के मूड़ी के धड़ से सन चढ़ावल पसुली से अलग कर देलक ।)    (अमा॰31:25:2.12)
327    पहुँची (एक कान के बाली बम के धमाका से अइसन कान में चिपक गेल हे जइसन राँगा कोनो पदार्थ से चिपक जाहे । ओकर गरदन के हंसुली, गोड़ के गेराँव, हाथ के पहुँची पिघलल लोहा लेखा पघिल-पघिल के किरियाठ हो गेल हे ।)    (अमा॰32:13:2:9)
328    पासी (आज अन्हारहीं ननका ननकी के दूध पियावइत हलियो । एतने में हम्मर बाबू के हम्मर गोदी में से बरियरी खींच के मालिक पासी के दे देलथिन ।)    (अमा॰31:25:2:10)
329    पिछुआड़ी (अगुआड़ी और पिछुआड़ी में गाड़ी आवे जाय भर जगह जरूर छोड़ल जाय ।)    (अमा॰36:6:1.16)
330    पिछुत्ति (= पिछुत्ती) (कोई अनजानो अभ्यागत आवे तो पिछुत्ति जा-जाके भूँके, अप्पन भासा में कहे कि कोई अभ्यागत अयलथुन हे ।)    (अमा॰42:10:1.19)
331    पिछौती (धूर-जानवर रखे ले घर के पिछौती में बेवस्था कैल जाय ।)    (अमा॰36:6:2.6)
332    पिट्ठु (आउ 'तुलसीदास' में - गरीब के खून अँगरेज के पिट्ठु राजा कइसे चूस रहल हे ?)    (अमा॰32:6:1.2)
333    पितराना (काहे पितरायल लोटा नियन मुँह बना लेलऽ लोग ?)    (अमा॰42:6:1.14)
334    पितृरिन (~ से उरिन होना) (बिसुनपत के सीता कुण्ड उनकर इयाद के आजो ताजा कर रहल हे । 'उड़ल सतुआ पितरन पइठ' वला कहाउत जग जाहिर हे । इहाँ आके भी पितृरिन से उरिन न होयम तब जल में रह के पियासल मीन नियन कहायम ।)    (अमा॰31:11:2.20)
335    पिपकार (~ करना) (एगो तलाब के अरार पर बइठ के एगो बकरी अप्पन पाठी जौरे पिपकार करइत हल ।)    (अमा॰31:25:2:1)
336    पिपकारना (= रोपना-पीटना) (अब ऊ अप्पन घर के आँगन में ठार हल । ओकर माए ओसरा में बइठ के पिपकारित हल ।)    (अमा॰36:7:1.22)
337    पीसमान (पढ़साल {? परसाल} जौन-जौन आदमी बेटी बिआहलक तौन-तौन अप्पन दू बिगहा चार बिगहा खेत बेचलक, तब कहूँ दहेज के पइसा जुटा सकल । जे खेत न बेचलक से कहूँ से करजा लेलक । आउ खरचा से पीसमान होके रहल अब ओकनी के टनटनाये में जमाना लगतई ...।)    (अमा॰36:7:2.20)
338    पुन (= पुण्य) (राजा के पुन प्रताप से प्रजा के कल्याण होवऽ हे ।)    (अमा॰42:11:2.6)
339    पुनमानी (= पुण्यवती) (मगर नौकरी का करतन, देश सेवा के भूत सवार । बड़ पुनमानी ई धरती, जहाँ लेलन जे॰पी॰ अवतार ॥)    (अमा॰40:5:1.18)
340    पेधा (~ देना) (पवन झुलावे झुलुआ, बइठल बरखा रानी झूले । पुरब-पछेया पेधा देवे, देख-देख मन फूले ।)    (अमा॰39:11:2.23)
341    पैमाल (रो-रो के अप्पन दशा बनयलक ओकर हाल बेहाल । दशा देख के ओकर हमहूँ हो गेली पैमाल ।)    (अमा॰38:8:1.8)
342    पौदान (टिकट कटा के जइसहीं मधुआ स्टेशन पर आयल, ओइसहीं गाड़ी के हरियर झंडी पड़ गेल । आपाधापी में ऊ भरपूर दउड़ लगा के एगो डिब्बा के पौदान पकड़ लेलक ।)    (अमा॰42:13:1.3)
343    प्राती (= प्रातकाली, परतकाली) (भेल भिंसारा प्राती गइहें, उठते-उठते गाँती बंधिहें, हाथ-पाँव सब ठिठुरे लगतउ, पोर-पोर भी कनरे लगतउ, अब होतउ न गरीब-गुजारा ।)    (अमा॰42:5:1.7)
344    प्राथना (= प्रार्थना) (एक्के कपड़ा, एक्के भाखा, एक्के सूरत, एक्के प्राथना, आउ ई चउदह सौ साल से विला नागा हो रहल हे ।)    (अमा॰34:6:2.29)
345    फँसान (~ फँसना) (तोर बाबू तो हम्मर बेटा के बिआह में हमरा खूब बुड़बक बनयलन । न टी॰भी॰, न मोटर साईकिल ! दान-दहेज भी छुछुम । अइसन गरीब-फकीर के इहाँ बिआह करके हम ई फँसान फँसलूँ हे कि कुछ कहे के नञ !')    (अमा॰32:11:2:12)
346    फगुनहट (चलल फगुनहट, गूँजल आवाज फगुआ के मिसरी नियर मीठगर ।)    (अमा॰33:5:1:1)
347    फट् (~ से) (नौ बजऽ हे त बेग लटकावऽ हे फट् से, इसकूल चल जाहे झट से । खाय के बेरिया दरवो घटोर जाहे घट से, सच कहबो त लगतो भक् से ।)    (अमा॰40:12:1.10)
348    फरफन्द (= धूर्तता; छल-कपट; छली, लफंदिया) (छल-फरफन्द; अपने गरज सब बाउर, छल फरफन्द भरे । देशवा रसातल जात, नहीं मन कोई डरे ।)    (अमा॰35:8:2.19)
349    फरही (= फड़ही) (मनमोदक खाके अपने से मन फरही फाँक फँकावित ही ।)    (अमा॰38:9:1.5)
350    फुटपाथी (अज्ञेय तो आझ के रौंदायल-गौंदायल आदमी के कुत्ता, ऊ भी फुटपाथी मान के, बिफड़ पड़ला हे - मैं ही हूँ वह पदाक्रान्त, रिरियाता कुत्ता !)    (अमा॰42:8:2.27)
351    फुहियाना (बाढ़ के दहाड़ अइसन पानी फुहियाइत हे । घरवा में बइठल-बइठल जीव अकुलाइत हे ॥)    (अमा॰39:12:1.6)
352    फूटल-पचकल (ऊ जइसहीं कमला के आगे अयलक, कमला फूटल-पचकल कटोरा ओकरा सामने फैला के कहे लगल - 'ई विधवा बहिन पर कुछ दया कर छाया !')    (अमा॰37:18:2.30)
353    फेकरना (= फेंकरना, मादा सियार का रोना या बोलना; दर्द भरी आवाज करना) (रात के कभी सियार-कुत्ता के रोवाई सुनाइत हे, कभी फेकार फेकरइत हे, त कभी मरद-मेहारु मिलजुमते चिल्लाय लगइत हथ - 'भगवान भला अइसन बैरी होवऽ हे ?')    (अमा॰42:11:1.27)
354    फेकार (= फेंकार; सियार जाति का नर; ऊसठ बोली बोलनेवाला) (रात के कभी सियार-कुत्ता के रोवाई सुनाइत हे, कभी फेकार फेकरइत हे, त कभी मरद-मेहारु मिलजुमते चिल्लाय लगइत हथ - 'भगवान भला अइसन बैरी होवऽ हे ?')    (अमा॰42:11:1.27)
355    फेक्स (अब तो हमरा एही लगऽ हे कि यदि हमहूँ अनपढ़ रहती हल त कोई तरह के मेहनत-मजूरी करे लगती । ... सटेशन पर अखबार बेचती इया चिनिया बेदाम, नरियर बेचती इया फेक्स ।)    (अमा॰33:12:1:25)
356    फोबियाना (आझ के मानव फोबिया गेल हे । लीडरोफोबिया, मिनिस्टरोफोबिया आदि रोग बेहतर संक्रामक रूप ले लेलक ।)    (अमा॰42:8:2.29)
357    बखोरा (ऊ दूर बहुत दूर धुँआयल सपना जइसन झिलमिल, झलफल, अबोध लइकन से पाड़ल टेढ़-मेढ़ डँरेर अइसन ओकर झोपड़ी हे, जहाँ ओकर बाप बखोरा सूअर के साथ खोभार में नौ गो लइकन आउ मेहरारू के साथ रहऽ हे ।)    (अमा॰36:5:1.13)
358    बख्तौर (= बकतउर) (बाबा बख्तौर - इहो एगो लोक गाथा हे । एकरो गैलन कुमार इन्द्रदेव, जे लोरिकायन आउ बाबा बख्तौर के विशेषज्ञ मानल जा हथ ।)    (अमा॰39:10:1.23)
359    बचिया (बचिया के मइया कहलक कि बिना दुन्नो के टीपन मिलैले बिआह न करम । का जानि दुन्नो के जोड़ी मिलऽ हे कि न ।; बचिया के कह दिहऽ कि हरेक शनीचर के भोरे-भोरे पीपर में पानी देला के बादे अन्न-जल ग्रहण करे ।)    (अमा॰41:13:1.25, 14:2.21)
360    बटइया (मदन अप्पन जमीन बटइया दे के नोकरी पर चल गेल ।)    (अमा॰31:23:2.25)
361    बटलोही (एगो देहाती औरत अप्पन बुद्धि के बटलोही उघारलक ।)    (अमा॰42:13:2.15)
362    बढ़ल-चढ़ल (पहिले उद्योग हल बढ़ल-चढ़ल, विज्ञान बढ़ल तो आउ बढ़ल । अब काहे सब बन्द पड़ल ? केकरा पर दोष ई जाय मढ़ल ?)    (अमा॰38:9:1.7)
363    बतफरोस (ई संकलन में बेंगरानी, भुआली पुत्ता, बेंगवा के संतान, अलबत्ता चिरई, सबसे बलवान कउन, अन्हेर नगरी चौपट राजा, बुरबक लइका, एगो गप्पी, बतफरोस बेटा, काना बेटा, गदहा से आदमी आदि कथा पढ़े से मन चमत्कृत आउ उल्लसित हो जाहे ।)    (अमा॰37:13:2.3)
364    बतावल (= बताना) (हस्तरेखा देख के केकरो भविष्य में होवेवला सुख-दुख बतावल बहुत भारी काम हई न बाबूजी ?)    (अमा॰41:15:1.20)
365    बथुआ (= खरथुआ) (दू दिन से घर में चाउर न हलई । ओही से ऊ भूपति सिंघ के खेत में बथुआ के साग खोंटे गेल जिनका पास पाँच सौ बिघा खेत हे ।)    (अमा॰32:7:2.6)
366    बन-मजुरी (तूँ आजे घरे चल जा आउ घरहीं बन-मजुरी करके अप्पन जिनगी गुजारिहऽ !)    (अमा॰37:15:2.29)
367    बनल-बनावल (चाय के दौर शुरू होवे से पहिले विजय आउ प्रकाश भी पहुँचिये गेलन । लग रहल हे कि सबके प्रोग्राम पहिले से बनल बनावल हल ।)    (अमा॰38:12:2.12)
368    बन्हिया (= बढ़िया) (लगऽ हे कि बिआह शादी न करे से बन्हिया ।; ऊ बन्हिया घर-वर ढूढ़ के अप्पन औकात से जादे तिलक-दहेज देके झुलनी के बिआह देलन ।)    (अमा॰40:13:2.18, 20)
369    बरियरी (= जबर्दस्ती, बलपूर्वक) (आज अन्हारहीं ननका ननकी के दूध पियावइत हलियो । एतने में हम्मर बाबू के हम्मर गोदी में से बरियरी खींच के मालिक पासी के दे देलथिन ।)    (अमा॰31:25:2:10)
370    बलजोरी (चोरी, डाका, हत्या बलजोरी आम जहाँ, परमिट के बिकरी बनल लोग के काम जहाँ, मंत्री से बढ़ के चमचा के हे रोब जहाँ, बेकार तिरंगा फहर रहल हे आज उहाँ ।)    (अमा॰38:5:1.21)
371    बलबस्ती (= बलपूर्वक, जबर्दस्ती) (जीप में बलबस्ती बइठावल अदमी रोवइत हलन, छटपटाइत हलन, घिघिआइत हलन - 'छोड़ देउ हमनी के । हमनी के कोई कसूर न हे । कुछ जनइत भी न ही हमनी ।')    (अमा॰42:12:1.31)
372    बलुरी (तड़वा-खजुरवा में बलुरी लटकलइ, डमको बजावइ करताल । तीसिया के संग-संग सरसो झनकलइ, बूँटवा बजावऽ हइ झाल ।)    (अमा॰33:6:1:5)
373    बसिऔरा (= बसिऔड़ा; बासी भोजन) (जइसे-जइसे होली नजदीक आवइत गेल, लोग के दिल-दिमाग में मस्ती के बोखार चढ़इत जाहे । ई बोखार धुरखेली आउ बसिऔरा के बादे उतरत ।)    (अमा॰33:4:1:13)
374    बहटना (= बहकना) ("सँवली" आउ "चुटकी भर सेनुर" उपन्यास में समाज के पुरनका सड़ल-पचल बन्धन के सिक्कड़ तोड़ के आज के बहटल समाज के रस्ता बतावल जा चुकल हे ।)    (अमा॰33:14:1:14)
375    बहवाही (= वाह-वाही) (शाही युग में हे युग अफसरशाही । मारे मजा अफसर लूटे बहवाही ॥)    (अमा॰38:18:2.11)
376    बाँट-बखरा (दुनियावी धन-सम्पत्ति में लाभ-हानि दुन्नो हे । एकरा चोरो लूट लेहे, बाँट-बखरा में भाई-बन्धु से बन्दूको-पिस्तौल, लाठी-भाला चल जाहे, राज के तरफ से कुर्की जबती भी हो जाहे, बाकि विद्या-धन कोई न छीन सके ।)    (अमा॰39:5:1.3)
377    बाजी (= बार) (हजारी सिंह के पत्नी के जब देह भारी हो हल तब घर में नया उत्साह भर जा हल कि अबकी भगवान बेटा दे हथ, बाकि पाँच बाजी लगातार बेटीये पैदा भेल । छठा बाजी फिरो हजारी सिंह के पत्नी के जब देह भारी भेल तब सउँसे घर में खुशी के लहर दउड़ गेल ।)    (अमा॰36:10:1.13, 14)
378    बाना (मुँह ~) (दुश्मन फिर से सीमा पर हे मुँह बयले विकराल ।)    (अमा॰41:1:2.5)
379    बाया (= प्राण, मन; अन्न तौलने का काम करनेवाला व्यक्ति, हटवे) (नया कपड़ा पहिने लागी मन छछन जाहे, फटले-पुरान पेन्हित दिन गुजर रहल हे ।)    (अमा॰34:7:1.13)
380    बार (= बाल, केश) (आई॰ए॰ पास करे के पहिलहीं उनकर माथा के बाल झड़े लगल । जब भर-भर कंघी बाल हँसोता के माथा पर से उतरे लगल तब रघुवीर के बड़ी चिन्ता होयल । ऊ अप्पन माथा के बार बचावे लागी बड़ी दवा-दारु कैलन ।)    (अमा॰33:7:1:21)
381    बाल (= फसल या पौधों का अन्न का गुच्छा; मकई का भुट्टा)  (खेतवा-बधरवा में गेहूँ गदरयलइ, अंग-अंग लथरल हइ बाल ।)    (अमा॰33:6:2:2)
382    बाली (= बाल) (बगइचा के रूख बिरिख रन के मैदान के लाश जइसन धरती पकड़ले हल । जब दरख्त के ई हाल हल त धान के बाली के केतना जान ?)    (अमा॰42:11:1.12)
383    बिरिख (= वृक्ष) (बगइचा के रूख बिरिख रन के मैदान के लाश जइसन धरती पकड़ले हल । जब दरख्त के ई हाल हल त धान के बाली के केतना जान ?)    (अमा॰42:11:1.10)
384    बिलाय (= बिल्ली) (वंशवाद के दुसलक, बुझलक अपना के जे महान । अब कुक्कुर, चूहा, बिलाय ओकरो घर के परधान ॥ सब छिप्पल सैतान, के करतै कल्यान ?)    (अमा॰32:16:1:22)
385    बिसुखना (= बिसखाना) (खयला बाहर झपसी में भइंसो बिसुख गेल । दूध लागी लइकन संग बुढ़वो टिरुस गेल ।)    (अमा॰39:12:1.22)
386    बुझउअल (नारद जी के बुझउअल बुझावे में बड़ी मन लगऽ हइन ।; ई जग आउ ई जीवन एगो अनबूझ बुझउअल हे ।)    (अमा॰34:14:2.10; 42:9:2.21)
387    बुनिया-फरही (त रहऽ दूर फटाका से, न रंग में भंग मिलावऽ । खा बुनिया फरही मिठाई, अन्नस न तनिक बढ़ावऽ ।)    (अमा॰40:18:2.26)
388    बूढ़-पुरनियाँ (बूढ़-पुरनियाँ खाट पकड़ले, बोरसी में हथ हाथ घुसेड़ले, ठूँठ पिपरवा खाँस रहल हे, जाड़ा के भी आँक रहल हे, अब न उतरतउ एकर पारा, देख रे बाबू अलउ जाड़ा ।)    (अमा॰42:5:1.19)
389    बेंच-खोंच के (बेचारी घास छील-बेंच के, गोइँठा-अँवारी बेंच-खोंच के आउ नून-भात खाके पेट पालऽ हल ।)    (अमा॰32:7:2.4)
390    बेकहल (= जो कहा न माने, अवज्ञाकारी; अकथित; मनगढ़ंत) (सभे के सभे बेराह, बेकहल, माथा से पाँव तक अहं से भरल ।)    (अमा॰36:5:2.28)
391    बेगर (= वगैर, बिना) (इनकर माय-बाबूजी भी बेगर संकोच कैले, बेगर देर कैले, नियत समय पर आ गेलन । शादी कोर्ट में होयल ।)    (अमा॰40:18:1.29)
392    बेगारी (पहिले ऊ दोसर के घर में जाके कुटाई-पिसाई करऽ हलन, अब तो दरल दाल आउ छाँटल चाउर के खइताहर बन गेलन । पेट भेल भारी, तऽ कउन करे बेगारी ?)    (अमा॰31:21:2.19)
393    बेटा-दमाद (एक सौ पचीस बरिस तक बगुला नियन धेयान लगउले रहऽ । कन्ने कोई बेटा-दमाद इया नाती-पोता आ के कुछ देहे ।)    (अमा॰42:7:1.4)
394    बेना (= बिन्ना, पंखा) (धुआँ के घूँट घोंटइत अनीता भिंजल गोइठा लगा के चुल्हा में ताबड़-तोड़ बेना हउँक रहल हे ।)    (अमा॰31:10:1.19)
395    बेपानी (अन्हरा नगरी चउपट राजा, जिअइत हई बेपानी से, फटल करेजा से का कहूँ, कउन राजा आउ रानी से ।)    (अमा॰38:19:1.26)
396    बौराहा (= बउराहा, बौड़ाहा)    (अमा॰39:11:2.2)
397    भँभोरना (हम्मर ऊ करियक्का कुत्ता दू-तीन बेर तो साँप से बचउलक - केवाड़ी नखोर-नखोर के सावधान कयलक आउ तीन-चार बेर चोर लोग के भँभोर-भँभोर के भगा देलक ।)    (अमा॰42:10:1.18)
398    भकचोंधरी (तोरे पढ़ावे में सब कुछ झोंक देली । ई भकचोंधरी पढ़इया से होयल हम्मर लुटाई ।)    (अमा॰41:15:2.3)
399    भकभकाना (ओन्ने सुनीता मिचाई से भकभकाइत हाथ से भी मसाला पीसे में कोताही न कर रहल हे ।)    (अमा॰31:10:1.20)
400    भकुआ (मोहरवा के नाम सुनइत उनकर होश उड़ गेल। ऊ अप्पन माथा ठोकइत कहलन -'जो रे भकुआ ! जइसने हम, ओइसने तूँ ।')    (अमा॰31:6:1.32)
401    भक् (~ से) (सच कहबो त लगतो तोरा भक् से ।)    (अमा॰40:12:1.1)
402    भरमना (= भ्रमण करना) (अर्द्धशती आजादी के दिन उत्सव के, शुभ मने दिवाली । सुन्दर क्षण, अरपित तन मन हे, डगरल ले गोली औ गाली । हरष शोक के बीच भरमलक, मन के केतना धीर धराऊँ ? बोलऽ केतना दीया जराऊँ ?)    (अमा॰40:11:2.7)
403    भरल-पड़ल (ललटेन के मद्धिम इंजोरा में एगो 'सहीदन के जिनगी' किताब रखल हे जेकरा में सुभास चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, खुदीराम बोस आउ भारत के सभे सहीदन के गाथा भरल-पड़ल हे ।)    (अमा॰38:11:1.8)
404    भाखन (= भाषण) (नेता अप्पन तेज भाखन से सरोता के मोहले हलन ।)    (अमा॰31:2:2.1, 3, 6, 7, 9)
405    भागा-भागी (पत बरिस गाँओ में भागा-भागी के दू-चार गो घटना होवे हे आउ हमेशा ओकरा ला रुकमिन फुआ के बदनाम कएल जाहे । पढ़े {? परहे} एगो मेढ़ानू अप्पन परेमी सँगे भागल हे आउ अभी ले ओकर अता-पता तक न हे । लोग कहऽ हथ कि ओहू रुकमिन फुआ के करतूत हे ।)    (अमा॰36:7:2.8)
406    भिंसारा (= भिनसारा) (भेल भिंसारा प्राती गइहें, उठते-उठते गाँती बंधिहें, हाथ-पाँव सब ठिठुरे लगतउ, पोर-पोर भी कनरे लगतउ, अब होतउ न गरीब-गुजारा ।)    (अमा॰42:5:1.7)
407    भुईंटोली (फेंकनी पैसा लेल दसो दुआरी हो अइलन हल, मुदा कहीं से पैसा नयँ मिलल हल । मिलतइ हल भी कहाँ से ? सउँसे भुईंटोली के एक्के हालत हल ।)    (अमा॰31:27:1.20)
408    भूँजा-फुटहा (न मुखिया जी ! आधा जिनगी हम तोहर कमिअई में गुजार देली । कउन अइसन दिन होवत जब तोहर परिवार के लोग कठोर बात के तीर से हम्मर करेजा न छेदऽ हलन ? अप्पन घर के भूँजा-फुटहा भला, तोहर घर के हलुआ-पूड़ी न भला ।)    (अमा॰31:22:1.7)
409    भोरहीं-भोरहीं (एक दिन घर के पिछुत्ती में भोरहीं-भोरहीं नहा-धो के मीना टंगना पर सूखे लागी कपड़ा पसार रहल हल ।)    (अमा॰40:15:2.21)
410    मजूरा (= मजूर, मजदूर) (अइसन वित्त-रहित कउलेज में पढ़ावे ओला पोरफेसर के फोकटिया पोरफेसर कहल जाहे । ... एकरा से तो अच्छा सुखलुआ मजूरा हे जे पचास रुपइया रोज कमा लेहे, आउ अप्पन घर-गृहस्थी सम्भारऽ हे, बाल-बच्चा के देखऽ हे ।)    (अमा॰34:7:2.17)
411    मड़ई (कबीर के मड़ई के बाहरी भाग । एगो कोना में चटाई पर बइठ के कबीर चरखा चला रहलन हे ।)    (अमा॰39:11:1.1)
412    मड़ेर (= धान की फसल के साथ उपजनेवाली एक पशु खाद्य घास, धान का झरंगा घास) (जरे लगतउ मड़ेर केतारी, जरतउ लत्तर पारा पारी, गुल्ला जरतउ गुल्ली जरतउ, गली गली में आग लहरतउ, सुगबा बइठल पढ़े पहाड़ा । देख रे बाबू अलउ जाड़ा ।)    (अमा॰42:5:1.13)
413    मनता (= मनीता, मन्नत) (छठा बाजी फिरो हजारी सिंह के पत्नी के जब देह भारी भेल तब सउँसे घर में खुशी के लहर दउड़ गेल । भगवान आउ देवी-देवता के मनौती मानल गेल आउ बेटा भेला पर गोरइया बाबा के एक पाट दारू चढ़ावे के मनता मानल गेल ।; अब हजारी सिंह के महसूस होवे लगल कि गोरइया बाबा के मनता से जलमल बेटा लायक न भेल ।)    (अमा॰36:10:1.18, 2.2)
414    मनुस (धरती पर के अनगिनती जीउ में से एगो मनुस भी हे जे पैदा होवऽ हे खा-पीयऽ हे आउ अप्पन उमर पूरा करके मर जाहे ।)    (अमा॰35:4:1.1, 3, 4, 5)
415    मनुस्स (= मनुष्य) (सबसे अन्त में मनुस्सो गिड़गिड़ायल । ब्रह्मा जी मनुस्स से पूछला - 'काहे उदास भेलऽ हो ?')    (अमा॰42:6:1.16, 17)
416    मनुहार (~ करना) ('नयँ तो का ! तोहर परेसानी हम नयँ समझम त आउ कउन समझत, ऐं ! रख लऽ ! तोहरा हमरे किरिया !' घरवाली मनुहार करे लगल ।)    (अमा॰31:5:2.30)
417    ममोसर (एगो भारतीय नारी के जीवन चरित आउ 'भिक्षुक' में एगो सही भारतवासी के मूरत, जेकरा निरइठ दाना तऽ ममोसर नयँ हे, जूठा पत्तलो ले लिलकइत हे ।)    (अमा॰32:5:2.22)
418    मरल (एतना कम उमर में मरल तो अकाल मिरतु कहावऽ हे ।)    (अमा॰34:16:2.1)
419    माँगना-चाँगना (फेंकनी के लगल कि गाँव-गाँव माँग-चाँग के खाय ओली सुकनी बूढ़ी भीखमंगनी नयँ हे बलुक ममता के देवी हे ।)    (अमा॰31:27:1.29)
420    माकल (~ फिरना) (हम अप्पन मुझौसा से कहऽ ही कि दोसर कोई नौकरी करऽ इया कोई रोजगार देखऽ, जेकरा से दू-चार पइसा हाथ पर आवे । बाकि ई कामचोरवा कुछ सुनवे न करऽ हे, देह चोरवले एन्ने-ओन्ने माकल फिरऽ हे । समझाते-समझाते थेथर हो गेली हे बाकि ई बेहाया, बेशरम के कुछ बुझयवे न करऽ हे ।)    (अमा॰34:7:2.23)
421    माय-बाबू (माय-बाबू के बात तो सुनबे करऽ ही, सास-ससुर के ताना भी सुने-सहे पड़ऽ हे ।; कउन काम हमरा जोग हे, ई काम हमरा लायक न हे त कइसे करूँ ।)    (अमा॰33:11:1:28, 2.26)
422    मास (= मांस) (कातो पखेरू होवे के पहिलहीं मास खाय में नरम लगऽ हे आउ जोवायल कबूतर के मांस चिमड़ हो जाहे ।)    (अमा॰31:26:1.1)
423    मिठबोला (अदमी के हरमेसा मिठ-बोला होवे के चाही ।)    (अमा॰35:18:1.30)
424    मिन्नती (कहाँ से लइअउ हम रोटी, सब नेतवन हउ खयले । जे भी कोना-टुकड़ी बचलउ, मालिक हउ हथिअयले । लाख मिन्नती कर अइली पर देलक न कोई ध्यान । तइयो कुछ मत कहिहँऽ बेटी, अप्पन देश महान ।)    (अमा॰38:8:1.17)
425    मुझौसा (= मुँहझौंसा) (परमेसरा मुझौसा सब गत कैलक हे हमरा, न तो का अइसने घर में बिआह होइत हल ?; हम अप्पन मुझौसा से कहऽ ही कि दोसर कोई नौकरी करऽ इया कोई रोजगार देखऽ, जेकरा से दू-चार पइसा हाथ पर आवे ।)    (अमा॰34:7:1.21, 2.20)
426    मुड़कटउअल (~-जानमारी) (पाप के घड़ा भर गेल हे - चोरी, घूसखोरी, बेईमानी, मुड़कटउअल-जानमारी, बेभिचार आउ का का !)    (अमा॰42:11:2.2)
427    मुरझाल (प्राण बिना शरीर ... अइसने मुरझाल हल आमोद आउ अइसन में भला जीवन कइसन, आवाज कइसन ?)    (अमा॰40:16:2.9)
428    मूतना (आसमान में उड़ते जाइत एगो चील खजूर के माथा पर मूत देलक ।)    (अमा॰31:1:2.8)
429    मूसड़ (= मूसल; समाठ) (जाँता पीसइत रहम तऽ जाँता पीसे लगत, धान कुटइत रहम तब मूसड़ छीन के कूटे लगत ।)    (अमा॰41:19:1.30)
430    में के (संयोग से ओकरा में के एगो लइका मुसलमान हल, काहे कि ऊ घड़ी जुलूस कटरा पर मुहल्ला {सब्जी बाग} से गुजरइत हल ।)    (अमा॰41:4:1.17)
431    मेंट (मेंटवा से भरल अहरिया, पोखरिया, शीतवा से सनल समतल पहड़िया । सन सन सनकई पवनवाँ हो, हुलसल मनवाँ ॥)    (अमा॰40:11:2.28)
432    मेढ़ानू (पत बरिस गाँओ में भागा-भागी के दू-चार गो घटना होवे हे आउ हमेशा ओकरा ला रुकमिन फुआ के बदनाम कएल जाहे । पढ़े {? परहे} एगो मेढ़ानू अप्पन परेमी सँगे भागल हे आउ अभी ले ओकर अता-पता तक न हे । लोग कहऽ हथ कि ओहू रुकमिन फुआ के करतूत हे । भगमाने बता सकऽ हथ कि सच्चाई का हे ? बाकि दिन भर उनका हीं गाँव के मेढ़ानू के भीड़े लगल रहे हे ।)    (अमा॰36:7:2.11, 15)
433    मेढ़ारू (सीपी हुआँ से लौट के बँसवारी देने गेल आउ बइठ के देरी ले सिसकइत रहल । घड़ी दू घड़ी के बाद घरे आल । घरे टोला पड़ोस के मेढ़ारू {मेहरारू} सब के भीड़ लगल हल ।)    (अमा॰36:8:2.5)
434    मेहनत-मजूरी (अब तो हमरा एही लगऽ हे कि यदि हमहूँ अनपढ़ रहती हल त कोई तरह के मेहनत-मजूरी करे लगती ।)    (अमा॰33:12:1:17)
435    मेहारू (= मेहरारू, मेढ़ारू) (ढेला-पत्थर खूब तेजी से चले लगल । बूढ़, जवान, लइका, लइकी, मेहारू सबके सब अनाधुन ढेला फेंकइत हलन ।; एगो मेहारू स्वेटर बुनइत हल ।)    (अमा॰42:12:2.16, 13:1.20)
436    मोंछकबरा ('अयँ गे ! नउआ-कउआ के बेटी होके, हम्मर खेत में हेले के हिम्मत कइसे होलउ ? अयँ ?' एतना कह के बिगड़ैल सिंघ बसंती के पखुरा पकड़ के बूँट के खेत में लसाड़ देलक । बेचारी बसंती हाथ-पाँव चलावइत '.... दोगलवावाला, चरकाहा, मोंछकबरा, तोर देह में घुन लगउ रे' कहइत बचे के असफल प्रयास करइत रहल, लेकिन सिंघ जीवा अप्पन दौलत, सवाँग आउ जवानी के जोश में होश हवास खो बैठलक ।)    (अमा॰32:7:2.16)
437    मोजर (= मंजर, मांजर) (फिन मोजर से लदल आम के बिरिछ लेत अँगड़ाई ।)    (अमा॰33:1:1:12)
438    मोरबाजा    (अमा॰39:9:1.30)
439    रंगाना (ई बात सही हे कि होली के रंग में रंगाय के असली मजा तब हे जब ऊ रंग हाली न छूटे । बाकि सच बात तो ई हे कि अदमी के तन के साथे मन भी रंगा जाय के चाही ।)    (अमा॰33:4:2:2, 4)
440    रंथी (केकरो खटिया पर, केकरो बग्घी पर, केकरो रंथी पर लाद के लावल जा रहल हे ।)    (अमा॰32:12:1:30)
441    रतभोज (< रात + भोज) (ओकरे में से एगो उमरदराज अदमी बोलल -'ई तो छोकरी हई रे, चललई ई सब के रतभोज ।‘)    (अमा॰31:7:2.23)
442    रस्ता (= रास्ता) (ईमानदारी के रस्ता के लाभ समझतन, श्रम के मूल्य बूझतन आउ अच्छा से जीविकोपार्जन करतन । उनका समझ में आएत कि एही रस्ता भय से मुक्ति दिलायत आउ घर-परिवार के लोग के सुखी जीवन मिलत ।)    (अमा॰39:6:1.9, 11)
443    राँगा (एक कान के बाली बम के धमाका से अइसन कान में चिपक गेल हे जइसन राँगा कोनो पदार्थ से चिपक जाहे । ओकर गरदन के हंसुली, गोड़ के गेराँव, हाथ के पहुँची पिघलल लोहा लेखा पघिल-पघिल के किरियाठ हो गेल हे ।)    (अमा॰32:13:2:9)
444    राम-सलाम (दुन्नो इयार के हथुआ मार्केट पहुँचला के बाद लड़का अप्पन बाबूजी के जौरे रिक्शा से उतरलन । राम सलाम भेल । चारो एगो निमन होटल में बइठ के नश्ता कैलन ।)    (अमा॰31:9:2.11)
445    रिन (= ऋण) (पितृरिन से उरिन होयत कि न होयत मुदा ओकर लेल रिन दिने दिन बढ़िआयत । देवे में देरी भेल तो जर-जजात भी हाथ से निकल जायत ।)    (अमा॰31:12:1.4)
446    रूबाई (रघूवीर प्रसाद समदर्शी के रूबाई रुचिकर हे ।)    (अमा॰41:8:2.29)
447    रोकशदी (= रोकसदी, रोसकद्दी, रुख्सत) (तोर बाबूजी के जिनगी तो एहि सोचते बीत गेलवऽ कि बेटा नौकरी करे लगत त दूगो घर बनवाइए के ओकर रोकशदी करम । बाकि ई न हो सकल ।; प्रभुनाथ हीं कल छाया के रोकशदी ला एगो दिन भेज देही ।)    (अमा॰37:16:2.23, 17:2.8)
448    रोग-बलाय (सच बात तो ई हे कि आज के मनुस जहाँ जीउ-जन्तु आउ पेड़-पौधा के होवे वला रोग-बलाय के उपचार जान गेल हे उहईं विज्ञान के सहारा लेके विनास के सैकड़न साधन भी पैदा कर देलक हे ।)    (अमा॰35:4:1.15)
449    रोना-कानना (तोहरा तो हर घड़ी रोवे काने के आदते हो । जे भाग में हल ऊ मिलल । आदमी के सन्तोख करे के चाही ।)    (अमा॰32:11:2:21-22)
450    रौंदायल-गौंदायल (अज्ञेय तो आझ के रौंदायल-गौंदायल आदमी के कुत्ता, ऊ भी फुटपाथी मान के, बिफड़ पड़ला हे - मैं ही हूँ वह पदाक्रान्त, रिरियाता कुत्ता !)    (अमा॰42:8:2.26)
451    लड़ाय (= लड़ाई) (रोज दिन लड़ाय नित दिन दंगा । दुनिया में दहशत मचावे लफंगा ॥)    (अमा॰38:18:1.10)
452    लथरल (खेतवा-बधरवा में गेहूँ गदरयलइ, अंग-अंग लथरल हइ बाल ।)    (अमा॰33:6:2:2)
453    लबरा (देखऽ ! कहाउत हे कि 'मियाँ-बीवी के झगड़ा, पंच होय से लबरा' । माउग-मरद के झगड़ा में तो पड़हीं के न चाही ।)    (अमा॰39:15:1.28)
454    लमरी (बिहटा स्टेशन पर जब बिपत नाना रेलगाड़ी से उतरलन तब उनकर पाकिट से एक सौ के एगो लमरी हल । ऊ सोचलन कि अगर लमरी भंज जायत तब सब रुपइया खरच हो जायत ।; ई लमरिया हमरा दे दऽ ! खुदरा पइसा हमरो से खरच हो जाहे ।; एतना कहके चेतन नाना के हाथ से लमरी लेके अप्पन पाकिट में रख लेलक ।)    (अमा॰31:24:1:14, 26, 30, 32)
455    ललटेन (= लालटेन) (ललटेन के मद्धिम इंजोरा में एगो 'सहीदन के जिनगी' किताब रखल हे जेकरा में सुभास चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, खुदीराम बोस आउ भारत के सभे सहीदन के गाथा भरल-पड़ल हे ।)    (अमा॰38:11:1.5)
456    लसाड़ना (= जमीन पर पटकना; मिट्टी लगाकर गंदा करना) ('अयँ गे ! नउआ-कउआ के बेटी होके, हम्मर खेत में हेले के हिम्मत कइसे होलउ ? अयँ ?' एतना कह के बिगड़ैल सिंघ बसंती के पखुरा पकड़ के बूँट के खेत में लसाड़ देलक ।)    (अमा॰32:7:2.14)
457    लहरचुंट्टी (= लहचुट्टी) (दुइए महीना पर नया साड़ी मांगऽ हथ आउ हम अप्पन लचारी सुनावऽ ही । एही कारन हे कि जब हम उनका से पेयार से दूगो बात करल चाहऽ ही, त उनकर बात लहरचुंट्टी जइसन हम्मर दिल लहरा देहे ।)    (अमा॰33:11:2:5)
458    लहरना (= जलना) (आग ~) (जरे लगतउ मड़ेर केतारी, जरतउ लत्तर पारा पारी, गुल्ला जरतउ गुल्ली जरतउ, गली गली में आग लहरतउ, सुगबा बइठल पढ़े पहाड़ा । देख रे बाबू अलउ जाड़ा ।)    (अमा॰42:5:1.16)
459    लाव-लसगर (= लाव-लश्कर) (लोग देरी करना उचित न समझलन । बाबा लाव-लसगर के साथ सब समान लेके बहरइलन ।)    (अमा॰36:8:2.19)
460    लियो-लियो (~ करना) (सिहो-सिहो जब तक हम करबै, लियो-लियो ऊ करतै । एक बार जब चढ़ जैबै तब फिन कहियो नै लड़तै ।)    (अमा॰38:10:2.17)
461    लिलकना (पनसोखा के झुलुआ लगलइ, गगन-अँगनवाँ । सतरंगी पनसोखा अइसन चुनरी नीयन चमके, जइसन गोरी के चुनरी मन देख-देख के लिलके ।)    (अमा॰39:11:2.18)
462    लिलकल (कइएक लोग से 'अलका मागधी' के खूब बड़ाय सुनलूँ हे, पर देखे ले पढ़े ले नयँ मिल सकलई । ई ले मन लिलकल हे, 'अलका मागधी' खातिर ।)    (अमा॰31:19:1.5)
463    लुच्चा-लफंगा (सीपी के माए दाँओ-दाँओ करित रहे हे - 'एन्ने-ओन्ने अकसरे मत जाल कर ! जमाना खराब हे, सगर लुच्चा-लफंगा चक्कर मारित रहे हे ।')    (अमा॰36:7:1.3)
464    लूर-बुद्धि (~ सीखना)    (अमा॰37:19:2.25)
465    लोरे-झोर (बकरी के लोरे-झोर देख के एगो अधबूढ़ भेंड़ी पूछ देलक -'का बहिन ! कउन दुख पड़लो कि चारा-पानी छोड़ के दुन्नो माय-बेटी जार-बेजार होके खाली ममिया रहलऽ हे ?')    (अमा॰31:25:2:5)
466    लोरे-लोर (उड़-उड़ सबके महल-मड़इया, गा-गा बोले रोज चिरइया, घुम-फिर देखलूँ दुन्नू अँगनवाँ - तइयो लोरे-लोर रे ।)    (अमा॰32:1:1.15)
467    वकार (मुँह से ~ न निकलना) ('न मुखिया जी ! आधा जिनगी हम तोहर कमिअई में गुजार देली । कउन अइसन दिन होवत जब तोहर परिवार के लोग कठोर बात के तीर से हम्मर करेजा न छेदऽ हलन ? अप्पन घर के भूँजा-फुटहा भला, तोहर घर के हलुआ-पूड़ी न भला ।' भुअन भगत के बोली में बदलाव देख के मुखिया जी के मुँह से एक्को वकार न निकलल ।)    (अमा॰31:22:1.9)
468    विनमना (सीपी घरे न विनमल । फिनो बँसवरिये में पहुँच गेल ।)    (अमा॰36:7:2.16)
469    शुक्कर (= शुक्रवार) (शुक्कर दिन, नवम्बर उनतीस, अगहन असुभ महान । जे दिन किरतन प्रेमी सब के लुट गेल सर्वस प्रान ।)    (अमा॰41:20:1.19)
470    संझौती (मगही माय के दुआरी पर इहे पत्रिका संझौती देवे के काम कर रहल हे ।)    (अमा॰32:10:2:5)
471    सगर (= सगरो, सगरे) (इनकर हालत कब सुधरत, सगर मचल हे शोर । गाँधी बाबा हो, असरा लगैले हिवऽ तोर ।)    (अमा॰40:1:2.4)
472    सगरे (= सगरो) (जात पात आउ सम्प्रदाय के सगरे छिड़ल लड़ाई ।)    (अमा॰41:1:2.15)
473    सठिआना (जब हम सठिअइला के बाद सेवा निवृत्त भे गेली आउ कुत्ता के आयु भोगे लेल विवश भेली तो ऊ करिया कुत्ता 'सेतु' के मर गेला पर कुत्ता पोसे के शौक बार-बार चर्रायल आउ शौक बदल गेल शोक या 'शॉक' में ।)    (अमा॰42:7:1.6)
474    सठियाना (पहिले के लोग सठिया हला । आज के लोग कुर्सियाय लगला हे ।)    (अमा॰42:9:1.3)
475    सड़ल-पचल ("सँवली" आउ "चुटकी भर सेनुर" उपन्यास में समाज के पुरनका सड़ल-पचल बन्धन के सिक्कड़ तोड़ के आज के बहटल समाज के रस्ता बतावल जा चुकल हे ।)    (अमा॰33:14:1:14)
476    सननीचर-एतवार (जब भी ऊ सनीचर-एतवार के घरे आवऽ हलन, तब हम उनका डरे लुकायल चलऽ हली ।)    (अमा॰35:7:1.4)
477    सन्देस (= सन्देश) (आज समाज गाँधी, महावीर आउ महात्मा बुद्ध के बतावल सन्देस के सही रूप से पालन करत त समाज में ग्यान के परकास जरूर फैलत ।)    (अमा॰40:6:1.2)
478    समराट (= सम्राट्)    (अमा॰41:20:1.2)
479    समशान (= मशान, श्मशान) (गाँव में समशान आउ कब्रिस्तान पर भी ध्यान देवे के चाही । लाश के जहाँ-तहाँ जलावे के नयँ चाही।)    (अमा॰36:6:2.19)
480    सरमन (= श्रवण) ('के हऽ बउआ ?' - 'हम सरमन ही बाबूजी ! अप्पन बहिन के बिदाय करावे ला हमरा बाबूजी भेजलन हे ।')    (अमा॰32:11:2:3)
481    सर्वस (= सर्वस्व) (शुक्कर दिन, नवम्बर उनतीस, अगहन असुभ महान । जे दिन किरतन प्रेमी सब के लुट गेल सर्वस प्रान ।)    (अमा॰41:20:1.20)
482    सवाँग (चउका-बरतन करके कइसहूँ ऊ अप्पन सवाँग के साथे दिन काटऽ हल ।)    (अमा॰31:20:1.8)
483    सवाँग, सवांग (= समांग; ताकत, शक्ति) (बेचारी बसंती हाथ-पाँव चलावइत '.... दोगलवावाला, चरकाहा, मोंछकबरा, तोर देह में घुन लगउ रे' कहइत बचे के असफल प्रयास करइत रहल, लेकिन सिंघ जीवा अप्पन दौलत, सवाँग आउ जवानी के जोश में होश हवास खो बैठलक । ऊ सब कुछ लूट लेललक जे बसंती खातिर सर्वस्व हल ।)    (अमा॰32:7:2.17)
484    ससुरारी (बाप-माय, बंधु सब पीछे, आगे ससुरारी साला । आँख मून के गटक-गटक के, खाली करते जा प्याला ।)    (अमा॰41:5:2.2)
485    सहजोग (= सहयोग)    (अमा॰42:6:2.18)
486    साँझे-बिहाने (सुनऽ भुखल ! बात बढ़ावे से कोई फयदा न हवऽ ! अप्पन बेटिया के नऽ समझावऽ ? साँझे-बिहाने कहाँ छिछिआय गेलवऽ हल ?)    (अमा॰32:7:2:26)
487    साठी (= साठ रचना, वस्तु आदि का संग्रह; प्रायः साठ दिनों में अर्थात् भादो-कुआर में तैयार होनेवाला एक मोटा धान; तु॰ 'साठा' आलू) (जउन मगही कविता संकलन के बारे में हम कह रहलूँ हे ऊ कृति हे 'साठी' । 'साठी' मगही भासा के दूगो समर्पित कवि, कथाकार आउ नाटककार प्रो॰ दिलीप कुमार आउ प्रो॰ सुखित वर्मा के गलबहियाँ सम्पादन में मगही भासा के उन्नति लागी फिफिहिया भेल संस्था 'मौर्य प्रकाशन' से प्रकाशित मगही कविता के एगो अइसन संकलन हे, जेकरा में मगही भासा के साठ गो नामी-गिरामी, नया-पुरान, समर्पित समाज के प्रभावित करेवला सब तरह के बिसय पर रचनाकार सभे के कलम चलल हे ।)    (अमा॰41:7:1.27, 28)
488    साले-साल (= प्रत्येक वर्ष) (छोड़ द पाँच बरिस के आशा, देखऽ साले-साल तमाशा । रोज-रोज नया-नया पार्टी के निर्माण जी, नऽ करबई मतदान जी हो !)    (अमा॰32:15:2:16; 41:1:2.1)
489    सावद (= सवाद, स्वाद) (घास गढ़ल कउनो बुरा काम न हे । अगरचे ई काम नापसन्द हउ तब हम्मर केबिन अगोर । हम चार कट्ठा हरा चारा बुनली हे आउ एगो जरसी गाय मोल लेली हे । ओकर सेवा करके रोज-रोज दूध-दही के सावद लिहें ।)    (अमा॰31:22:1.4)
490    सिम्पुल-बिम्पुल (एक्के दिन बीच कर के माथा मइस देवऽ हे, उहो कइसन तो सिम्पुल बिम्पुल से, मट्टी से नऽ । उठइते अँचरा से गोड़ लागऽ हे ।)    (अमा॰41:19:1.32)
491    सियार-कुत्ता (रात के कभी सियार-कुत्ता के रोवाई सुनाइत हे, कभी फेकार फेकरइत हे, त कभी मरद-मेहारु मिलजुमते चिल्लाय लगइत हथ - 'भगवान भला अइसन बैरी होवऽ हे ?')    (अमा॰42:11:1.26)
492    सिरमिट (= सिमेंट) (आयल चिट्ठी, खुश भेल खूब ऊ । मन अगरा गेल, जिया हरसा गेल, जइसे टूटल देवाल के सिरमिट जोड़ देवऽ हे ।)    (अमा॰33:5:1:23)
493    सिवान (= सीमा, सीमाना) (जीप गाँव के सिवान से दूर होयल जाइत हल, तइयो गाँव के लोग सुर में ढेला पत्थर फेंकते जाइत हलन ।)    (अमा॰42:12:2.19)
494    सिहो-सिहो (~ करना) (सिहो-सिहो जब तक हम करबै, लियो-लियो ऊ करतै । एक बार जब चढ़ जैबै तब फिन कहियो नै लड़तै ।)    (अमा॰38:10:2.17)
495    सीमर (= सिम्मर; सेमल) (गोल-गोल गेंदा फिन फूलत खिलत फूल सीमर के । फिन सोभत कमल किसलय से डार-डार पीपर के ।)    (अमा॰33:1:1:9)
496    सुखलुआ (~ मजूरा) (अइसन वित्त-रहित कउलेज में पढ़ावे ओला पोरफेसर के फोकटिया पोरफेसर कहल जाहे । ... एकरा से तो अच्छा सुखलुआ मजूरा हे जे पचास रुपइया रोज कमा लेहे, आउ अप्पन घर-गृहस्थी सम्भारऽ हे, बाल-बच्चा के देखऽ हे ।)    (अमा॰34:7:2.17)
497    सुजनी (देख रे बाबू अलउ जाड़ा । गेलउ गरमी, गेलउ बरखा, चले लगल जाड़ा के चरखा, फटल सुजनी फटल नेहाली, गूँज गेलउ एकर नगाड़ा ।)    (अमा॰42:5:1.4)
498    सुरगर (जादे न तप करऽ, जादे न हठ, बन जा गिरहत, जाके बइठऽ न मठ । लुरगर बन टानऽ सुरगर तार, जादे न कम बेस वीणा के तार ।)    (अमा॰37:1:1.14)
499    सोंटा-अरउआ (खूब बैल नियन खटइत रहऽ परिवार लेल । सोंटा-अरउआ खाइत चलऽ समाज के, परिवार के ।)    (अमा॰42:6:2.27)
500    सोन्हापन (मगही के माटी में जे सोन्हापन हे ऊ सोन्हापन विद्यार्थी के ई कविता 'कटनी' में भी मौजूद हे ।)    (अमा॰41:8:2.17)
501    सोरिया (गगन-गुफा खोहिया में, अमरित के सोरिया में, हौले-हौले हवा लेले जा रहल ॥)    (अमा॰40:19:1.7)
502    सोहदा (एतने में एगो अवाज भीतर से आयल - 'देखऽ ई सोहदा के, एकर अँखिये फूटल हई कि दीदवे बइठल हलई जे जनानी डिब्बा में घुस गेल ।)    (अमा॰42:13:1.3)
503    सोहराना (= सहलाना) (घरवाली मारे अनुराग के माथा सोहरावे लगल -'रख लऽ ! तोहरा हमरे किरिया, ... तोहरा नन्हका किरिया । कसम से, अब कहिओ ताना नयँ मारबो ।')    (अमा॰31:6:1.5)
504    सौटकिया (~ नोट) (गाड़ी जइसहीं नवादा टीसन से खुलल, हम्मर नजर एगो कड़कड़िया सौटकिया नोट पर पड़ल ।; न भाई जी ! ई नोट हम्मर न हे । हम्मर नोट सौटकिया हेरायल हे आउ ई पचसटकिया हे ।)    (अमा॰31:8:1.16, 31)
505    हँठुआ (~ मनी) (नेता लीडर के बात न पूछो । कहतो हँठुआ मनी करतो न कुछो ॥)    (अमा॰38:18:2.14)
506    हँसुली (ताड़ छेवेवला ~) (बम-बारूद के गड़गड़ाहट के बीच बसंती खून से सनल-लथपथ ताड़ छेवेवला हँसुली लेले बाघिन जइसन दहाड़इत हल - 'सरकार, दरोगा, नेता, मुखिया, बिगड़ैल ... सब उग्रवादी ... बलात्कारी ... !')    (अमा॰32:8:1:8)
507    हँसोताना (आई॰ए॰ पास करे के पहिलहीं उनकर माथा के बाल झड़े लगल । जब भर-भर कंघी बाल हँसोता के माथा पर से उतरे लगल तब रघुवीर के बड़ी चिन्ता होयल । ऊ अप्पन माथा के बार बचावे लागी बड़ी दवा-दारु कैलन ।)    (अमा॰33:7:1:19)
508    हंसुली (गरदन के ~) (एक कान के बाली बम के धमाका से अइसन कान में चिपक गेल हे जइसन राँगा कोनो पदार्थ से चिपक जाहे । ओकर गरदन के हंसुली, गोड़ के गेराँव, हाथ के पहुँची पिघलल लोहा लेखा पघिल-पघिल के किरियाठ हो गेल हे ।)    (अमा॰32:13:2:9)
509    हथलपक (सुबह बिदा लेते समय पुण्डरीक जी हमनी के हाथ में गीता के मगही अनुवाद भी थमा देलन जेकरा जोगा के कई बरिस तक रखली । बाद में कोय हथलपक इयार ऊ पोथी के गायब कर लेलन ।)    (अमा॰35:17:2.12)
510    हप् (~ से) (ओहनी के नहिरा से अप्पन कोई आवऽ हे, त चाह पिलावऽ हे कप से । हम्मर बाबा-भइया आवऽ हथ त मुहवा फुला लेहे हप् से ।)    (अमा॰40:12:1.17)
511    हरजा (रोग के कारन जाने ला डागडर लोग प्रयास कैलन त पता चलल कि सरसो तेल में कुछ अइसन चीज मिलल हे जे खाय के चीज हइए न हे आउ शरीर ला ऊ एकदम से हरजा करेवला हे ।)    (अमा॰40:4:1.14)
512    हरवाही ('एतना खेत बेच के बिआह करबऽ त फिनो खइबऽ पीबऽ का ? केकरो हीं हरवाही करबऽ ?)    (अमा॰36:8:1.13)
513    हर-हमेशे (= हर-हमेसे) (हर-हमेशे ई जाँच करइत रहे के चाही कि हम अप्पन फर्ज ठीक से निभावइत ही कि नऽ ।)    (अमा॰39:16:2.13; 41:4:1.4)
514    हलुआ-पूड़ी (न मुखिया जी ! आधा जिनगी हम तोहर कमिअई में गुजार देली । कउन अइसन दिन होवत जब तोहर परिवार के लोग कठोर बात के तीर से हम्मर करेजा न छेदऽ हलन ? अप्पन घर के भूँजा-फुटहा भला, तोहर घर के हलुआ-पूड़ी न भला ।)    (अमा॰31:22:1.8)
515    हाला (पसु-पंछी के चिखना करके, पी अलकतरा के हाला । भेजा {मेधा} के भी चाट रहल हे, पचा रहल बरदी-खाला ।; रहतो बाँस न बजतो बँसुरी, फिर का हाला का प्याला ? नेम धरम सब तोड़-फोड़ के घुरऽ फिरऽ बन मतवाला ।; खून-बून लब-लब करइत हे, आँखन के कोटर प्याला । लोग देख के लपक रहल हे, समझे अंगूरी हाला ।)    (अमा॰41:5:1.26, 2.10, 20)
516    हालाकि (= हालाँकि) (हालाकि ई जानऽ हलन ऊ लोग कि दुनहूँ के माय-बाबूजी ई शादी लगी राजी भी शायदे होतथिन, तभियो दुन्नो न जाने कौन आस के डोरी से बंधल हलन ।)    (अमा॰40:16:1.10-11)
517    हिनसतई (पड़ोस के रुकमिन फुआ आके समझावे लगलन ओकर माए के - 'काहे ला तूँ टोक-टाक करऽ हहु भउजी ? घर में कारज नधाइत हवऽ, झगड़ा-झंझट करबऽ त दुनिया जहान में हिनसतई होतवऽ । केकर-केकर मुँह बन्द करबऽ । लोग कहतवऽ कि बिआह के खरचा लेके पितपिताएल हे । कारज भर मुँह सी के रहे पड़तवऽ ।')    (अमा॰36:7:1.26)
518    हुक (= हूक, छाती का दर्द, कलेजे की पीड़ा, दर्द, कसक) (ई बेटा से बेटीये भल हल, कम से कम माय-बाप के बेइज्जत तो न करऽ हे । बात-बात पर बाप के लातवावऽ तो न हे । एही सब हुक में एक दिन हजारी सिंह के पत्नी दुनिया छोड़ देलन ।)    (अमा॰36:10:2.8)
519    हुड़दंग (हँसी-ठिठोली से भरल हुड़दंग से होली के गहरा संबंध हे ।; होली के हुड़दंग के एगो अलगे रंग होवऽ हे ।)    (अमा॰33:4:1:1, 3)
520    हुड़ार (काहे कि गद्दीया पर बइठ गेल चोर बटमार, आदमखोर भेड़िया खूनी हुड़ार । दिनोदिन करऽ हई जुलुम अपार, जनता के कयलक बंटाधार ।)    (अमा॰32:11:1:7)
521    हुरियाना (पुलिस अप्पन राइफल से भीड़ के हुरियावे लगल, डाँटे-फटकारे लगल, भगावे लगल ।)    (अमा॰42:12:2.5)
522    हुलुक्का (= हुलकी) (ई सरीफ रहत हल त इहाँ हुलुक्का मारतक हल ।)    (अमा॰42:13:2.5)
523    होवल (लमहर रचना के शब्द-जाल से मुक्त होवल चाहऽ हथ आज के पाठक )    (अमा॰31:4:1.1)
524    होशगर    (अमा॰32:12:2.8)