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Tuesday, June 28, 2011

28. मगही शब्दचित्र "माटी के मरम" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द

माकेम॰ = "माटी के मरम", लेखक - रामदास आर्य; प्रकाशकः श्यामसुन्दरी साहित्य-कला धाम, बेनीबिगहा, बिक्रम (पटना); पहिला संस्करण - 1984; मूल्य - 11 रुपये; 64 पृष्ठ ।

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कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या - 905

ई शब्दचित्र संग्रह में कुल 9 लेख हइ ।

क्रम सं॰
विषय-सूची 
पृष्ठ
0
अप्पन बात
05-08



1
महतो जी
11-17
2
सनीचर
18-22
3
तड़ुका दाई
23-30



4
घसेटन
31-34
5
हदरी चाची
35-42
6
मुनारिक के माय
43-50



7
कलट्टर काका
51-55
8
धक बाबा
56-60
9
जागा
61-64

ठेठ मगही शब्द ( से तक):
1    अँखफोर (तिरिथ जाये इया न जाये, मेला-हाट जरूर जायत । जाय के चाहबे करी । मेला घूमे से अदमी अँखफोर बनऽ हे, एक-से-एक अदमी से भेंट-मुलकात होवऽ हे ।)    (माकेम॰46.22)
2    अँगेया-पेहानी (मउनी-दउरी, गरँउटी-सिकहर बेच के अप्पन अप्पन घरवाली के भी पेट भरे के इन्तजाम कर देलन । कहीं से कुछ सीधा-बारी मिल गेल, अँगेया-पेहानी आ गेल, कोई बयना-बखरा देल गेल - उनकर धरमपत्नी संगेर के रखत । वास्तव में ऊ संगेरनी हे भी ।)    (माकेम॰13.24)
3    अँजुरी (आ जब ऊ खेत-खलिहान से लौट के आवऽ हल तब अप्पन झोली फैला के बइठ जा हल । आ ओने से बड़की मलिकाइन एक अँजुरी भूँजा आउ रामपरपन तिवारी के लावल मिठाई उझील देव हलन ।)    (माकेम॰63.25)
4    अँटिया (= आँटी+आ प्रत्यय) (दू हप्ता पहिले ऊ बसावन सीन के गाँज गाँजइत हलन । बड़का गाँज हल । अचानक छउनी से कुछ अँटिया खरकल आउ महतो जी के गोदी में साटले जमीन पर आ गेल । महतो जी के भारी चोट पहुँचल । लोग टाँग-टुँग के उनका अस्पताल पहुँचवलन ।)    (माकेम॰15.4)
5    अँवरा (= अँवला, आँवला, आमला) (एगो पक्का इनार, इनार के अगल-बगल फूल-पत्ती, एगो अँवरा के पेड़, केला के बगान, सहिजन के गाछ, आम-अमरूध के दरखत उनकर दलान के सोभा हे ।)    (माकेम॰13.3)
6    अंगा (= कमीज) (मुनारिक हरवाहा न, सवांग हे सवांग - ई बात सब कोई समझऽ हे । जेह दिन ऊ जेकर देह धरत ओह दिन ओकरा हीं खूब बन-ठन के बनत । सगुन के दिन ओकरा धोती, अंगा आउ गमछा जरूर मिलत ।; बाकी कहऽ पुतोह के बलिहारी । इनके ला ऊ गारी-बात सब सुनत बाकि इनका आवइते लोटा में पानी लेके ठार हो जायत । बेना लेके तइयार ।)    (माकेम॰48.7; 54.18)
7    अउराना (= ओराना; अरुआना; खाद्य पदार्थ के बने देर होने से उसमें सड़ान की गंध होना; खाना ठंढ़ा होने पर स्वाद बिगड़ना) (हदरी चाची जब तरकारी लेके चलत तब भर रहता ओठ सिकुड़ावइत आवत । रह-रह के तोपल पत्ता उघार-उघार के देखइत चलत । केउ टोक देत त बहाना बना देत - 'न बबुआ, देखइथीक कि कुछ पिल्लू-कानर तो न पड़ गेलइ हे, अउरा तो न गेलई हे आउ का रहतवे में खाइथीक ।')    (माकेम॰39.6)
8    अकबद (~ बिगाड़ना) (लोग कहऽ हथ एके बार एहो सरापलन हल - 'जा, जइसन हमरा करइथऽ ओइसन तोर भुजा पर पड़त ।' ई बात सुन लेलन गाँव के पुरोहित दूबे जी । ऊ अपने से उनका घरे आके बड़ी समझयलन - न बेटी, तू अप्पन अकबद मत बिगाड़ऽ । एक तो ऊ जनम में कउन चूक कयलऽ कि तोरा ई फल भोगे पड़इथे, आ दूसर चूक फिर करे जाइथऽ ।; लोभी रहितन त कतना खेत अरज लेइतन अब ले । कतना लोग बीघा के बीघा, पलौट के पलौट इनकर नाम से रजिष्ट्री कर देइत । आझ ई बड़का जमीन्दार, लमहर खेतिहर बनल रहितन । बाकी नऽ - ई अप्पन अकबद न बिगाड़े गेलन, अप्पन ईमान न बेचलन ।; बात के डण्टा सहइत-सहइत एकर पुतोह तो ठण्ढा गेल । ऊ समझ गेल - इनका से मुँह लगावल अप्पन अकबद बिगाड़ना हे ।)    (माकेम॰28.4; 34.18; 35.14)
9    अगतहीं (= पहिलहीं; पहिले ही) (मुनारिक के माय के रोपनी ला खूब पूछ । भर सावन-भादो ऊ एको दिन न बइठे । चार दिन अगतहीं से बुक हो जायत । जइसन माय ओइसन बेटा । बाकी सुखदेवन देह से कदराह पड़ऽ हथ । ई लेल उनकर पूछ ओतना न जतना दूनो माय-बेटा के ।; केकरो हीं सादी-बिआह हे, मुनारिक के माय के दस दिन अगतहीं से नेवता पड़ जायत ।)    (माकेम॰48.14; 49.20)
10    अगरहट (फिर माय इयाद करके बोलल कि ऊ तो ओ घड़ी अँगना में हइए न हलन, बीमार हलन । खैर, बाबूजी एगो पिअर धोती लेके धउड़लन दाई के घरे । जाके देखइथथ कि ऊ अप्पन चउघट पर बइठल इधरे ताक रहल हथ - कुछ गुनगुना रहल हथ । उनका से रहायत न हल, मन के अगरहट थमाइत न हल । गाँव में केकरो बिआह हे, उनका अगरहट सबसे जादे ।)    (माकेम॰26.12, 13)

11    अगराना (जहिया केकरो बराती आ जायत तहिया उनकर पिअरी धोती गाँव-गाँव के कोने-कोने में फहर जायत, उनकर माथ के पगड़ी आ झुलंक कुरता देख के सबके मन अगरा जायत ।; परिवार में एक से एक पढ़ल-लिखल बिदमान, पट्ठा पहलवान, लड़वइया, गवइया-बजवइया, नाती-पोता देखके उनकर मन अगराइत रहऽ हल ।)    (माकेम॰12.23; 28.12)
12    अगाते (दू महीना ~ से) (एकर हाथ में एगो बड़का जस हे । कोनो परसौती के पीड़ा हो रहलहे, एकरा छुअइते छूमंतर । एही कारन हे कि गाँव के परसौतीन दू महीना अगाते से एकरा पोल्हवले रहत ।)    (माकेम॰38.18)
13    अगारू (ई सब देख-देख के उनकर घरनी के तरवा के लहर कपार पर चढ़ जायत । जतने ऊ कुढ़त ओतने ऊ कुढ़वतन । जउन समान ले हवतन सब पुतोहे के अगारू रख देतन ।)    (माकेम॰54.25)
14    अगिन (= अग्नि) (लोग कहऽ हथ उनकर मुँह में अगिन के वास हल आ गोदी में गनेस के ।)    (माकेम॰28.13)
15    अगुआन (= अगुआ) (आझ पइन उड़ाही हे, त कल्ह अखण्ड किरतन । रजिस्ट्री में गवाही देतन ई, ब्लौक में पैरवी करतन ई । पइन उड़ाही में अगुआन होयतन ई, अखण्ड किरतन के सारा सरजाम जुटवतन ई - इनका छुट्टी कहाँ ?)    (माकेम॰51.12)
16    अगोरना (अये, लोग जाव त जाव, हम नान्ह जात के झोपड़ी में न न जायब । हमरा भगवान बइठका न देलन हे कि ओकर झोपड़ी अगोरले रहूँ ?; आझ धक बाबा दोसर के दुआरी अगोरले चलइत हथ । अब दाढ़ी बढ़ा लेलन हे । एक दिन उनकर गाल में पौडर रगड़ा हल, आझ दाढ़ी में चीलर आउ ढील पड़ गेल हे बाकी नाक के फुनफुनाहट ओतने ।)    (माकेम॰49.29; 57.29)
17    अगोरी (~ करना) (उनके प्रभाव हे कि गाँव में आझ ले चोरी-चमारी न भेल । आझ ले एगो खेरो न खरकल । खेत में कोई पलानी न गिरावत, खरिहान में कोई अगोरी न करत ।)    (माकेम॰52.30)
18    अघाना (हमरा कुछ न चाही, खाली चाही अपने लोग के आसिरबाद के अछत आ बरदान के गंगाजल । अछत पा के अघा जायब आ गंगाजल पा के पवित्तर हो जायब ।; सवा सौ बढ़ामन जेवावल गेल, पाँच सौ कँगली खिलावल गेल । सेजियादान ! गऊदान !! पाँच रंग के मिठाई, बुनिया-पूड़ी सउँसे गाँव-जेवार खा के अघा गेल ।; आलूदम एक नम्बर के, खट-मिट्ठी अपने आप में जोरदार । जे खयलक से अघा गेल ।)    (माकेम॰8.20; 17.2, 4)
19    अच्छत (= अक्षत) (चउकोसी इनकर नाम हे, सभतर इनकर परचार हे - परचार हे इनकर दिआ के, नाम हे इनकर अच्छत के । इनकर दिआ ! बाप रे, देखइते हिया काँप जाहे, डाइन के काजर धोआ जाहे, देह के बायमत भाग जाहे । करिया भुच-भुच रीठल नादा लेखा, एक बित्ता करुआ तेल के परत जुगन से ई दिआ बरइत आ रहल हे ।)    (माकेम॰31.4)
20    अछोधार (~ रोना) (कउन महान आत्मा आझ अतना आदमी के दरसन देके चल देलक । उनकर गुन बखान के अउरत सब अछोधार रोवथ ।)    (माकेम॰29.10)
21    अजोध्या (= अयोध्या) (मड़वा में सेन्दुरदान हो रहल हे इया कनेयादान ऊ स्वयंवर के कोई गीत कढ़यतन, रामायन के अजोध्या काण्ड के कोनो अंस पर गीत गयतन - जनक के अरज सुनवतन इया जानकी के प्रार्थना ।)    (माकेम॰24.5)
22    अढ़ाई (नजरावल होवथ इया कयल, देल होवथ इया जोतल, सब के ला ऊ अच्छते देतन । दस दिन, पनरह दिन, सवा महीना, अढ़ाई महीना अच्छत खाये ला कहतन । ... नियम से खयला पर, बायमत का बायमत के बाप भी बाप-बाप करके भाग जायत ।)    (माकेम॰32.29)
23    अतना (= एतना, इतना) (लोग कहऽ हथ - ई सब उनकर पूरब जनम के कमाई के फल हे न तो लिख-लोढ़ा-पढ़-पथल के अतना गेयान कहाँ से ? अतने न, केकरो छप्पर चू रहल हे - महतो जी के बोला के छवा लऽ ।)    (माकेम॰12.8, 9)
24    अदउरी-तिसिअउरी (अदउरी-तिसिअउरी, दनउरी-चरउरी हिनका हीं जरूर मिल जायत । बोइआम में रखल एक से एक अँचार - आम के, लेमो के, इमली के, मिरचाई के, कटहर आउ करइला के, आलू आउ मुरई के - इनकर अलमारी के सोभा बढ़ावइत रहऽ हे ।)    (माकेम॰13.28)
25    अधिआना (ओही हाल भादो के रोपनी में । जखनी तेतरी आ मन्दोदरी फाँड़ा खोंसे लगत तखनी ले ऊ एक पाह लगा देत । जखनी ऊ अधिआवत तखनी ई आपन पाह पुराके निसचिन्त ।)    (माकेम॰45.7)
26    अनत (गेरा में हँसुली आ हाथ में पहुँची चौबीसो घण्टा डालले रहतन । उनकर दहिना हाथ में चाँदी के बनल अनत चाँद लेखा चमकइत रहत ।)    (माकेम॰27.18)
27    अपसोवारथी (गीत-गवनई के समय सबके आगू में रामायन बढ़ावे के चाही । बाकी तड़ुका दाई इहाँ अपसोवारथी हो जा हथ । आसिरवाद देवे में जतने तेयागी हथ, इहाँ ओतने ई कंजूस हो जा हथ । उनका कढ़वला पर से कोई दूसर औरत गीत कढ़ा देत त फिर का ? - ओकर मुँह नोच लेतन ।)    (माकेम॰24.12)
28    अमनख (हदरी चाची गाँव के तिलंगी हे, लइकन के पतंग । लइकन एकरा खूब उड़वतन, खूब चिढ़वतन । जतने ऊ चिढ़त, लोग ओतने चिढ़ावत । खूब सरापत, खूब गरिआवत बाकी एकर अमनख केकरो न । अमनख कोई काहे करत - जे चिढ़ावत हे से गारी सुनवे करत हे । कोई उसकावत ई सरापवे करत, फिर अमनख कउन बात के ।; अमनख कउन बात के ? अमनख करके कोई हम्मर का बिगाड़ देत । हमरा कोई चिरकावत त हम गरिअएबे करब, कउँचावत त हम सरापवे करब । एकरा ला केकरो अमनख होवे त मत बोलो, मत चिरकावो । आयँ बबुआ, झूठो कहित ही त कहिहऽ ।)    (माकेम॰35.3, 5; 36.24, 25)
29    अरउआ (बैल के जोड़के आगे हाँक देत पीछे से अपने अरउआ लेले टिटकारइत दनदनायल पहुँच जायत खेत पर ।)    (माकेम॰47.23)
30    अरजना (= कमाना, प्राप्त करना) (महतो जी खूब धन अरजलन - परलोकी धन । जस-किरती खूब कमयलन, खूब नाम के पताका फहरयलन, बाकी धरती-धन न अरजलन ।; इनकर अरजल सम्पत्ति से एगो बछेड़ियो साल भर बइठ के मजा से पेट न भर सकऽ हे ।; एकर कारन हे - ऊ केकरा ला अरजथ । जने गेलन ओनही खा लेलन ।)    (माकेम॰13.17, 18, 21, 22)
31    अलगाना (लोग कहऽ हथ जब कोई एकरा से न बोले त गली-कूची के झिटकी से लड़त, गाछ-बिरीछ से टकरायत । कहूँ ठेसो लग गेल, त गली अलगा देत, लुगा में कहूँ खोंच लग गेल, धरती उलट देत ।)    (माकेम॰36.1)
32    अहरा (फिर रंथी उहाँ से उठल त छोटकी अहरा पर दे होवइत मँझउली के संडक पकड़ लेल ।)    (माकेम॰16.6)
33    अहरा-पइन (गाँव के अहरा-पइन के उड़ाही हर साल करवाना ऊ अप्पन साल के बड़का त्योहार मानऽ हलन ।)    (माकेम॰52.19-20)
34    आ (= आउ; और) (बेनीबिगहा के अखाड़ा आ खरकपुरा के दह जइसे नामी हल ओइसहीं चिचौड़ा के सनीचर के जूता नामी हल ।; ई दू तरह के जूता बनवऽ हलन - चमरुआ आ कुरूम के । कुरूम के जूता ला चमड़ा बहरा से मँगावऽ हलन, बाकी चमरुआ घर के चमड़ा से ।)    (माकेम॰18.1, 15)
35    आँख (~ में ~) (जेकरा ऊ दूध पिलवलक से मुनारिके लेखा पट्ठा कमासुत निकलल । ... चमरू के तीनों बेटा तीन लाख के । तट-उपट कमाये में । तीनो कोइलवरी में पइसा पीट के धर देलक । ललायिन के आँख में आँख एक बेटा । ओहो आफिसर बनके सबके कान काट रहल हे ।; मुनारिक के बहिन चनपतिया बिआहे लाइक हो गेल हे । आँख-में-आँख एगो बेटी - ओहो तेतर । तेतर बेटी राज बिठावे, तेतर बेटा भीख मँगावे । ई से बड़का अरमान संजोगले हे ओकर माय ।)    (माकेम॰43.23; 48.23)
36    आँगा (= अंगा) (गुरुआइन आँगा देलन त पटखउलिया ओली चाची ओकर मेहरारू के झूला आ साड़ी ।)    (माकेम॰63.21)
37    आगू (= आगे) (घर के आगू में दू-चार गो केला के पेड़ लगवले रहत । ललका गेना के फूल किनारे-किनारे । बस, जादे जंगल झाड़ी ओकरा पसन न आवे ।; ईमान के पक्का !! बात के धनी !! बाकी अप्पन आन आउ गुमान के आगू ई केकरो कुछ न बुझलन ।)    (माकेम॰46.3; 58.25)
38    आझ (= आज) (आझ दमा उपटल आ कल्ह तेवरनी के झोपड़ी में । कल्ह बोखार लगल आ परसो परसीद सीन के चापाकल पर पहुँच जायत ।)    (माकेम॰41.11)
39    आन्हर (एने ओझवा बाबा अभी जिन्दा हथ बाकी आन्हर हो गेलन । उनकर देह ऊजर हो गेल । अब लाठी लेके चलऽ हथ ।; आदमी बात के आन आउ गुमान में आन्हर हो जाहे । आ जब आन्हर हो जाहे तो बहुत से लोग राह देखावे ला आगे आ जा हथ । धक बाबा धक के नाम पर आन्हर हो गेलन आउ उनकर आँख खुलल तब, जब अप्पन सब सम्पत्ति गाँजा के चिलिम पर फूँक देलन ।)    (माकेम॰30.12; 57.23, 25)
40    आन्ही (आन्ही आउ तूफान में, बाढ़ के बहाव में छोट-मोट पेड़-पौधा के कउन बिसात ।)    (माकेम॰8.9)
41    आयँ (हमरा कोई चिरकावत त हम गरिअएबे करब, कउँचावत त हम सरापवे करब । एकरा ला केकरो अमनख होवे त मत बोलो, मत चिरकावो । आयँ बबुआ, झूठो कहित ही त कहिहऽ ।)    (माकेम॰36.27)
42    आरजू-मिनती (अन्त में लोग पोरसिसिआ करे लगलन - अउरत के बात हे, इज्जत के सवाल हे । छोड़ देवल जाव, माफ कर देवल जाव । आरजू-मिनती होये लगल । ओकर आँख से ढर-ढर लोर गिरे लगल ।)    (माकेम॰32.11)
43    आरी (बैल के जोड़के आगे हाँक देत पीछे से अपने अरउआ लेले टिटकारइत दनदनायल पहुँच जायत खेत पर । आझ कहाँ हर चलत, कल्ह कहाँ आरी दिआयत, एकर धेयान ओहे रखत ।; कोई जोतत आठ कट्ठा, कोई पनरह कट्ठा, ई बिना सवा बिगहा पर हाथ फेरले आरी पर न बइठत ।)    (माकेम॰47.24, 31)
44    आव-ठाँव (ओकरा दुख हे - 'एगो के लगना धरवलन आ एगो के कुरसी बइठवलन । बाकी ऊ का करी ? दोस ओकर हे थोड़े । अपना से बाज आयल हल पढ़ावे ला । बाकी उनका करम में तो लिखल हलइन 'आव ठाँवे' करे ला त ई का करइत ? बइठवलक तो दूनो के पढ़े ला बाकी ऊ दुलारे में रह गेलन ।)    (माकेम॰41.17)
45    आसिन (= आश्विन) (का जनी ऊ कउन टिनोपाल लगावऽ हथ, कउन साबुन घँसऽ हथ । गोड़ के नोंह जरूर रँगतन, आसिन में मेंहदी जरूर लगवतन । लोग कहऽ हथ ई पूरबीला के इनकर चूक हे न त के कहत कि इनका मरदाना तेयागले हे ।)    (माकेम॰27.24)
46    इचना (केकरो माथा में तेल लगावे ला जीव खखनइत होयत बाकी इनका घरे रोज इचना आ बोआरी तेल में छना हल ।)    (माकेम॰56.9)
47    इनसाल (कभी कोई पूछ देत - काहो कलट्टर काका, इनो साल बिजुलिया न लगतई का ? ऊ जबाब देतन - घबड़ाये से काम होवऽ हे । खम्मा गिरिए गेल हे, लाइन के परमिट बाकी हे, सेकरा ला लिखा-पढ़ी चल रहल हे ।)    (माकेम॰53.28-29)
48    इनार (= इनारा, कुआँ) (एगो पक्का इनार, इनार के अगल-बगल फूल-पत्ती, एगो अँवरा के पेड़, केला के बगान, सहिजन के गाछ, आम-अमरूध के दरखत उनकर दलान के सोभा हे ।; एसो के अकाल में गाँव में कतना इनार खना गेल, कय गो बोरिंग धँस गेल, बाकी ई ? इनका ओहो घड़ी छुट्टी न ।)    (माकेम॰13.3; 51.26)
49    इलम (= इल्म) (सच पूछऽ त महतो जी वास्तव में बरहगुना हथ । बरहगुना के तो बारहे गुन होवऽ हे, बाकि महतो जे में एक-से-एक लूर, हुनर, इलम ।)    (माकेम॰11.12)
50    ईंटा (~ पारना) (गाँव में मिटिंग भेल - महतवाइन संरक्षक भेलन, सहुआइन सेकेटरी आ मिसिर जी अध्यक्ष । पंचायत भवन के निरमान ला ईंटा पारे के विचार भेल ।)    (माकेम॰17.11)
51    उकटना (बाकी ओहे में कोनो लइका पूछइत-पूछइत हँस देल इया कह देल 'हदरी चाची मथवा पर मेआऊँ' तो फिर देखऽ ओकर मिजाज । ... 'अरे तोर बाप के ... तोर दादा के ... तोर नाना के ...' नीचे से ऊपर ले परिछ देत, बापे-ददे उकट देत - सब फुटेहरी भूसा, सब हिसाब-किताब गूरा ।)    (माकेम॰38.6)
52    उकुत (= ज्ञान, बोध, युक्ति) (काहे छोड़लन ओझवा बाबा इनका, ई पता आझ ले केकरो न चलल । हँ, अपना-अपना उकुत से लोग अनुमान लगावऽ हे । कोई कहऽ हे उनका पसन्दे न भेलन । कोई कहऽ हे, ओझई-गुनई में मतिए मरा जाहे । कोई कहऽ हे बढ़ामनी होके घरे-घरे, जाते-परजाते दउड़ल फिरऽ हलन ।)    (माकेम॰26.26)
53    उघारना (हदरी चाची जब तरकारी लेके चलत तब भर रहता ओठ सिकुड़ावइत आवत । रह-रह के तोपल पत्ता उघार-उघार के देखइत चलत ।)    (माकेम॰39.4)
54    उछँहत (आँख पथरिया गेल आ ढर-ढर गिरे लगल लोर । हम्मर चाची के तो काठ मार गेल । ऊ जगा बइठल दू-चार अउरत भउँचक हो गेल । लोग बिगड़े लगलन हम्मर चाची पर । गाँव के मालूम भेल त अउरत सब एकरा घिनावे लगलन - निसोगी काहे ला पूछलई हल । ओकरा लेखा आउ केउ उछँहत न हलई । बेचारी के रोआ भरलई कातो ।; वास्तव में मरदाना ऊ हे भी । बड़का-बड़का मरदाना के ऊ कान काट लेवऽ हे । उछँहत-उछँहत जवान ओकरा सामने हार मान जा हथ जखनी ऊ टारऽ हे धान, ढोवऽ हे बोझा ।)    (माकेम॰27.10; 44.22)
55    उझिलना (= उझलना) (ई कहूँ से थकाल-फेदायल अवतन, ऊ झरुआ लेके बहारे लगत । पेन्ह-ओढ़ के कहीं जाय लगतन, मतुहायल पानी माँगतन, ऊ भरल गगरा के पानी उझिल देत ।)    (माकेम॰54.16)
56    उझीलना (= उझिलना; उझलना) (आ जब ऊ खेत-खलिहान से लौट के आवऽ हल तब अप्पन झोली फैला के बइठ जा हल । आ ओने से बड़की मलिकाइन एक अँजुरी भूँजा आउ रामपरपन तिवारी के लावल मिठाई उझील देव हलन । जइसे कोई माय अप्पन बेटा के छाती से लगा के सब दूध पिला देव हे ओइसहीं ओकर झोली में उझील देवल जा हल । जागा हँसइत गाल तर मसकावइत साँझु भेला चल देव हल अप्पन मुसहरी के ओर ।)    (माकेम॰63.26, 27)
57    उड़ाही (पइन ~) (आझ पइन उड़ाही हे, त कल्ह अखण्ड किरतन । रजिस्ट्री में गवाही देतन ई, ब्लौक में पैरवी करतन ई । पइन उड़ाही में अगुआन होयतन ई, अखण्ड किरतन के सारा सरजाम जुटवतन ई - इनका छुट्टी कहाँ ?; गाँव के अहरा-पइन के उड़ाही हर साल करवाना ऊ अप्पन साल के बड़का त्योहार मानऽ हलन ।)    (माकेम॰51.11, 12; 52.20)
58    उदेस (= उद्देश्य) (जखनी ई खादी के धोती-कुरता आ ऊपर से बण्डी झार के निकलतन तखनी लगत कोनो मिनिस्टर जा रहल हे । माथ पर गाँधी टोपी आ हाथ में छाता बतावऽ हे कोनो बड़का उदेस लेके चललन हे ।)    (माकेम॰55.16)
59    उधार (= उद्धार) (टूटल मस्जिद के मरम्मत करवा देल, कतना दरगाह के उधार कर देल ।)    (माकेम॰44.1)
60    उधार-पइँचा (हाय रे हम्मर दिन ! आझ माय के अइसन हाथ तर पड़ गेल हे कि उधार-पइँचा भी मिलना मोस्किल हो गेल ।)    (माकेम॰41.31)
61    उपहना (सनीचर के साथे उनकर कला भी बिला गेल, उनकर ईमान भी उपह गेल ।)    (माकेम॰22.14)
62    उलार (एतवार दिन हल । सोचली सूरुज भगवान के उलार में जलो ढार लेब आ लवटइत ऐनखाँव देखवाहू लेब ।)    (माकेम॰33.3)
63    उसकाना (= उकसाना, भड़काना) (अमनख कोई काहे करत - जे चिढ़ावत हे से गारी सुनवे करत हे । कोई उसकावत ई सरापवे करत, फिर अमनख कउन बात के ।; लड़ाकिन के लड़े के नसा होवऽ हे, बोले के आदत होवऽ हे । हदरी चाची लड़ाकिन हे, आदत से लाचार हे । बिढ़नी के उसकवला पर बिर-बिरैबे करत ।; मन कयलक कुछ कहूँ, तनी उसकाऊँ - बाकी सोचली स्कूल छूट जायत, अबेर हो जायत ।)    (माकेम॰35.4, 9; 42.15)
64    ऊजर (= उज्जर) (एने ओझवा बाबा अभी जिन्दा हथ बाकी आन्हर हो गेलन । उनकर देह ऊजर हो गेल । अब लाठी लेके चलऽ हथ ।)    (माकेम॰30.13)
65    ऊपर-झापड़ (= ऊपर-झाँपर; हलका-फुलका काम; भूत-प्रेत की बाधा; झाड़-फूँक; रोगी का प्रारम्भिक या बाहरी उपचार) (चउकिए इनकर आसन हे, चउरा हे । ओहो ओइसने तेल से रीठल करिया चिकनायल । ओहे पर बइठ के ऊपर-झापड़ देखऽ हथ ।)    (माकेम॰31.19)
66    एकबाल (परिवार एकर बहुत बढ़िया हे - सब एकरे सँवारल, एकरे एकबाल के सजावल । एकबाली हे । कहाँ रोपनी-डोभनी करे ओला आझ राजगद्दी पर बइठऽ हे । दूगो बेटा - दूनो कमासुत । एगो खेती-गृहस्थी में आ एगो पढ़उनी में । सात सौ अलावे टिसनी अलग । मास्टर गजटेड आफिसर, पइसा पीट रहल हे ।)    (माकेम॰40.1)
67    एकबाली (परिवार एकर बहुत बढ़िया हे - सब एकरे सँवारल, एकरे एकबाल के सजावल । एकबाली हे । कहाँ रोपनी-डोभनी करे ओला आझ राजगद्दी पर बइठऽ हे । दूगो बेटा - दूनो कमासुत । एगो खेती-गृहस्थी में आ एगो पढ़उनी में । सात सौ अलावे टिसनी अलग । मास्टर गजटेड आफिसर, पइसा पीट रहल हे ।)    (माकेम॰40.1)
68    एगाउ (= एक आउ; एक और) (उनकर व्यक्तित्व में चार चाँद लगावेओला एगाउ गुन हल - बाजा पर नाचे के गुन, दुआर लगइत खानी छड़पे के गुन ।)    (माकेम॰20.30)
69    एसा (तनी एसा = तनीये-सा, जरिक्के-सा) (ओही में केकरो माय आके तनी एसा भुनुक देल इया कोई साही में गवाही दे देल तब ओकरा देखऽ । भुतही कोसी नदी लेखा तूफान मचा देत, भड़कल बैल लेखा गरदा उड़ा देत - सब गुड़ गोबर, सब चिकनावल बेकार ।; केकरो कारज-परोज के दूसरका दिन तड़कहीं हुनका हीं पहुँच जायत । देखइते सवासिन बूझ जायत आ आदर से कहत - ए हदरी चाची, तनी एसा बइठ जा। हाथ नेटल हे, धोके देहीवऽ ।)    (माकेम॰38.7, 31)
70    एसो (= ई साल) (एसो के अकाल में गाँव में कतना इनार खना गेल, कय गो बोरिंग धँस गेल, बाकी ई ? इनका ओहो घड़ी छुट्टी न । गाँव के रोड पास करावे में बेदम, काम के बदले अनाज स्कीम सफल करे में परेसान । दूनो काम कइसे होयत ।)    (माकेम॰51.25)
71    ओकरा (= उसे, उसको) (जइसने घर-दुआर के सफाई ओइसने सरीर के भी । रोज नेहायत । दूर-दूर से करिक्की माटी ले आवत - ओकरे से माथा मलत । सउँसे देह में गोरकी मट्टी लगावत । खूब मल मल के नेहायत । साबुन से ओकरा घिरना हे । जेकरा फोड़ा-फुंसी हो जायत ओकरा गोरकी मट्टी लगाके नेहाये ला सलाह देत ।)    (माकेम॰46.10, 11, 12)
72    ओझई-गुनई (काहे छोड़लन ओझवा बाबा इनका, ई पता आझ ले केकरो न चलल । हँ, अपना-अपना उकुत से लोग अनुमान लगावऽ हे । कोई कहऽ हे उनका पसन्दे न भेलन । कोई कहऽ हे, ओझई-गुनई में मतिए मरा जाहे । कोई कहऽ हे बढ़ामनी होके घरे-घरे, जाते-परजाते दउड़ल फिरऽ हलन ।)    (माकेम॰26.28)
73    ओठँगाना (ऊ अप्पन हुक्का कखनियो ओइसहीं न छोड़ऽ हलन जइसे हारिल लकड़ी के न छोड़े, मट्ठा अप्पन नेउन क न तेजे । हँ, सत्तनारायन भगवान के कथा, छठ मइया के बरत आउ रामायन के पूजा के समय ऊ ओकरा गोड़ लाग के कोना में ओठँगा देवऽ हलन ।)    (माकेम॰23.10)
74    ओने (= ओद्धिर; उधर) (ई तो बेचारे अनपढ़ हइए हलन, गाँव के पढ़लो-लिखल लोग एकरा पर धेयान न देलन । जने गेलन ओने अप्पन कला आ ईमान लेले गेलन ।)    (माकेम॰18.28)
75    ओराना (गाँव आयल बाकी ऊ न अयलन । दू दिन बाद लहास मिलल । जे गेल से ठहर गेल । केकरो सतुआ ओरा गेल, केकरो भूँजा खतम हो गेल ।)    (माकेम॰29.13)
76    ओह (= ओ, वो, वह) (जेह ... ओह) (मुनारिक हरवाहा न, सवांग हे सवांग - ई बात सब कोई समझऽ हे । जेह दिन ऊ जेकर देह धरत ओह दिन ओकरा हीं खूब बन-ठन के बनत । सगुन के दिन ओकरा धोती, अंगा आउ गमछा जरूर मिलत ।)    (माकेम॰48.6)
77    औडर (काम ऊ करऽ हल अप्पन मन से - केकरो औडर से न । कभी मँझिला मालिक से ओकरा झगड़ा हो जा हल काहे कि ऊ चलती चलावऽ हलन, औडर जनावऽ हलन जादे ।)    (माकेम॰63.29, 31)
78    कंगली (दाह संस्कार करके लोग नेहयलन धोअयलन । घाट पर कंगली के खिलावल गेल ।)    (माकेम॰30.3)
79    कउँचाना (कोई इनकर जूता के सिकाइत कर देल, झट से जेबी से पइसा निकाल के कहतन - 'निकाल दऽ जूता, हई लऽ अप्पन दाम वापस ।' बाकी वापुस के लेवऽ हे - ऊ तो एगो खिलवाड़ हल, मजाक हल उनका कउँचावे ला ।; हमरा कोई चिरकावत त हम गरिअएबे करब, कउँचावत त हम सरापवे करब ।)    (माकेम॰20.22; 36.26)
80    कउँरना (बोझा ढोवऽ हे, लगऽ हे टमटम के सवारी आ रहल हे । सुखदेव सुतले रहतन तब ले ऊ बोझा खोल के कउँर देत, ऊ आवे-आवे करतन तब ले बैल नाध के ठीक ।)    (माकेम॰44.28)
81    कउची (कोई हँस देल - 'अरे जा, धक बाबा के कउची बात चलावइत ह, दुआर पर एगो फूटल ढोल हइए न हइन आउ ... ।' फिर का ? असपुरा रजिस्ट्री में दस कठा घिंसा गेल । राताराती हरमुनियाँ, ढोलक, सितार और बेंजो खरीदा के आ गेल ।)    (माकेम॰57.7)
82    कटनी (आझ कहाँ हर चलत, कल्ह कहाँ आरी दिआयत, एकर धेयान ओहे रखत । कउन खेत में बीहन डलायत, कहिया रोपनी लगत, कयगो लगत, कतना खाद छिटावत एकर लेखा-जोखा ओहे रखत । सोहनी सुरू होयत एकरा से पूछके, कटनी लगत एकरा से जानके ।)    (माकेम॰47.27)
83    कटनी-पिटनी (बिआहे रात सास चूल्हा धरा देलन । बने-बने साथे टाँगले चललन । कुटौना-पिसौना, रोपनी-डोभनी, कटनी-पिटनी सब कइली - सब सहली ।)    (माकेम॰36.14)
84    कटहर (= कटहल) (अदउरी-तिसिअउरी, दनउरी-चरउरी हिनका हीं जरूर मिल जायत । बोइआम में रखल एक से एक अँचार - आम के, लेमो के, इमली के, मिरचाई के, कटहर आउ करइला के, आलू आउ मुरई के - इनकर अलमारी के सोभा बढ़ावइत रहऽ हे ।)    (माकेम॰13.30)
85    कट्टिस (~ होना) (तनी हमरो कुछ देख देवल जाव । कुछ हे त झार-फूंक कर देवल जाव । अतना कहना हल कि ऊ बके लगलन जइसे सूई चढ़ावइते रेकार्ड बजे लगऽ हे, जोतिसी लिलार देखइते बके लगऽ हे ओइसहीं ई बके लगलन । देखिवऽ का ? पूरुब माहे घर के दुआरी हवऽ, आगे शंकर जी के मन्दिल हवऽ जे संकट हलवऽ से कट्टिस हो गेलवऽ ।)    (माकेम॰33.15)
86    कठघोड़ा (उनकर व्यक्तित्व में चार चाँद लगावेओला एगाउ गुन हल - बाजा पर नाचे के गुन, दुआर लगइत खानी छड़पे के गुन । इनकर बाजा में कठघोड़वा के नाच न जा हल, मोर-मोरनी के नाँव ओ घड़ी न हल । नाँव हल सनीचर के नाच के, डोमन के बाजा के ।)    (माकेम॰20.31)
87    कड़कड़ाना (घीव ~) (घीव ई एक नम्मर के बनावऽ हे । खूब कड़कड़ावत, सोन्हावत । एकर घीव के माँग सहर में जादे हे ।)    (माकेम॰39.18)
88    कढ़ाना (गीत ~) (केकर अँगना में कउन गीत कढ़ायम, केकर बिआह में कउन राग उठायम - एकरे चिन्ता से ऊ परेसान ।)    (माकेम॰25.18)
89    कतना (= केतना, कितना) (कतना के कोख भर गेल, कतना के माँग जुड़ा गेल ।; कतनो बात पूछऽ, चीलर के चह उखाड़ऽ - बाकी ऊ काहे ला अप्पन आसन से डोलथ ।)    (माकेम॰11.7, 19)
90    कदराह (= आलसी) (जइसने अपने पट्ठा हे ओइसने बैल पट्ठा चाहत । कदराह बैल से खेत जोते में ओकरा मने न भरे ।; मुनारिक के माय के रोपनी ला खूब पूछ । भर सावन-भादो ऊ एको दिन न बइठे । चार दिन अगतहीं से बुक हो जायत । जइसन माय ओइसन बेटा । बाकी सुखदेवन देह से कदराह पड़ऽ हथ । ई लेल उनकर पूछ ओतना न जतना दूनो माय-बेटा के ।; कलट्टर काका के दू बेटा - दूनो दू लाख के । बड़का महामाया आ छोटका कपूरी । महामाया सरीर से कदराह आ कपूरी सोभाव से कनपातर । बड़का गर बैल लेखा दिन-रात पड़ल रहत आ छोटका एने के बात ओने करइत रहत ।)    (माकेम॰47.28; 48.15; 51.2)
91    कनघटिआना (बात के डण्टा सहइत-सहइत एकर पुतोह तो ठण्ढा गेल । ऊ समझ गेल - इनका से मुँह लगावल अप्पन अकबद बिगाड़ना हे । ई से ऊ जादे चुप रहऽ हे । ई ओकरा खोदइत रहत बाकी ऊ कनघटिअवले रहत ।)    (माकेम॰35.15)
92    कनपातर (कलट्टर काका के दू बेटा - दूनो दू लाख के । बड़का महामाया आ छोटका कपूरी । महामाया सरीर से कदराह आ कपूरी सोभाव से कनपातर । बड़का गर बैल लेखा दिन-रात पड़ल रहत आ छोटका एने के बात ओने करइत रहत । कतना के ई कपार फोड़वा देल, कतना के बसल घर जुदागी करवा के उजाड़ देल ।)    (माकेम॰51.2)
93    कनफोरका (सब कोई एकरा चाहऽ हलन कि हमरा हीं रहे । ढेर लोग कनफोरका लगलन - लोभ देलन बाकी जागा पहिलहीं से जागल हल ।)    (माकेम॰62.25)
94    कनमनाना (बड़का गरबैल लेखा दिन-रात पड़ल रहत आ छोटका एने के बात ओने करइत रहत । कतना के ई कपार फोड़वा देल, कतना के बसल घर जुदागी करवा के उजाड़ देल । महमाया दिन के नाँवे झँखइत रहत । कलट्टर काका देख-देख के कनमनाइत रहतन, मने-मने कुड़बुड़ाइत रहतन, बाकी करथ का ? ई दोस केकर हे ? घोड़ा आ बेटा बिना कसले बेहाथ हो ही जाहे ।)    (माकेम॰51.6)
95    कनवाँ (= कनमा; छटाँक) (बिना लिखल, बिना जोड़ल सब ठीक - सेर पसेरी से लेके कनवाँ फुचकी ले सब ओकरा इयाद । आझ कोनो साइंस पढ़वैया हिसाब के जनकार से कोनो हिसाब पूछल जाव - पन्ना के पन्ना रंग देतन, पोथी के पोथी लिख डालतन तइयो सही उत्तर निकले में सके होयत  बाकी एकर फुटेहरी ला कोई किताब-कौपी के जरूरत न, कोई कागच-पिन्सिट के आवश्यकता न ।)    (माकेम॰37.22)
96    कनवाँ-फुचकी (बिना लिखल, बिना जोड़ल सब ठीक - सेर पसेरी से लेके कनवाँ फुचकी ले सब ओकरा इयाद । आझ कोनो साइंस पढ़वैया हिसाब के जनकार से कोनो हिसाब पूछल जाव - पन्ना के पन्ना रंग देतन, पोथी के पोथी लिख डालतन तइयो सही उत्तर निकले में सके होयत  बाकी एकर फुटेहरी ला कोई किताब-कौपी के जरूरत न, कोई कागच-पिन्सिट के आवश्यकता न ।)    (माकेम॰37.22)
97    कनियाँ (= कन्या, दुलहन) (सबके ला ऊ मकान एगो नमूना हे । निपल-पोतल-चिकनावल अइसन सुघर लगऽ हे जइसन चर में नया कनियाँ ।)    (माकेम॰13.10)
98    कनुनियाँ (= कानुन+आ प्रत्यय) (कउन गीत कै कदम पर उठावल जायत, केकर दुहारी पर से सुरू कयल जायत, एकर रहस्य ओहे जानऽ हलन । बजनियाँ के गीत अलग, नउनियाँ के गारी अलग, कनुनियाँ के गीत दोसर, तेलिनियाँ के तेसर । तिलक देउआ उनकर गीत सुनके दंग, बरतिआहा भउँचक ।)    (माकेम॰25.9)
99    कपार (तरवा के लहर ~ पर चढ़ना) (ई सब देख-देख के उनकर घरनी के तरवा के लहर कपार पर चढ़ जायत । जतने ऊ कुढ़त ओतने ऊ कुढ़वतन ।)    (माकेम॰54.24)
100    कबारना (= कबाड़ना, उखाड़ना) (हर जोते में ओइसने, मोरी कबारे में ओइसने, बोझा ढोवे में ओइसने । एही से धरती माय ऊ बेटा से बड़ी खुस रहऽ हल काहे कि सचमुच में हल ऊ माटी के औलाद ।)    (माकेम॰62.15)
101    कभी-कभाल (सूप खूँटी में न टँगायल, बढ़नी पार के न रखायल, चूल्हा न लिपायल, कोठ के मान न मुनायल एकरा ला बिसहन हुरकुच्चा । हुरकुच्चा सुनइत-सुनइत ऊ हेहर हो गेल । जान-बूझ के बहिर बनल रहत । तइयो कभी-कभाल एकाध झार देही देवत ।)    (माकेम॰35.20)
102    कमासुत (दूगो बेटा - दूनो कमासुत । एगो खेती-गृहस्थी में आ एगो पढ़उनी में । सात सौ अलावे टिसनी अलग । मास्टर गजटेड आफिसर, पइसा पीट रहल हे ।; सबके बिसवास हे - हमरो बेटा मुनारिक लेखा पट्ठा पहलवान बन जायत, मुनारिके लेखा कमासुत निकलत । ... जेकरा ऊ दूध पिलवलक से मुनारिके लेखा पट्ठा कमासुत निकलल ।)    (माकेम॰40.2; 43.16, 19)
103    करमात (= करामात) (सबसे पहिले पैरपूजी उनकर होयत - कोई एक रुपया से पूजे या सौ रुपया से, सबके बराबरे आसिरवाद देतन - उनका ला सब कोई बराबर । उनकर हाथ में बंसरोपन के बीज सैंतल हल, माली के करमात छिपल हल ।)    (माकेम॰25.27)
104    करवा (क-को ~, ख-खो खरवा) (बइदगिरिए न, ऊ मँहटरियो जानऽ हथ । उनका से क-को करवा, ख-खो खरवा, एक से एक फुटेहरी, चौपाई के अरथ, हिन्दू-सास्तर के अनुसार धरम-विधान, सोरहो संस्कार, बिआह-सादी, मरनी-हरनी में करमकाण्ड जान लऽ - सबके ज्ञाता, पण्डित बिदमान होवे के अधिकार उनका एक साथ मिलल हे ।)    (माकेम॰12.3)
105    कराकसीन (= करकस्सिन) (ई तो खैर कहऽ, दूनों पुतोह मिल गेलू हे मनगर सुभवगर न त ई बिना मारले मर जयतन हल । खाहूँ-पीहूँ ला केऊ न पूछइत - बेटा बनभाकुरे आउ अउरत कराकसीने ।)    (माकेम॰54.14)
106    करिक्की (= काली) (~ माटी) (जइसने घर-दुआर के सफाई ओइसने सरीर के भी । रोज नेहायत । दूर-दूर से करिक्की माटी ले आवत - ओकरे से माथा मलत । सउँसे देह में गोरकी मट्टी लगावत । खूब मल मल के नेहायत । साबुन से ओकरा घिरना हे । जेकरा फोड़ा-फुंसी हो जायत ओकरा गोरकी मट्टी लगाके नेहाये ला सलाह देत ।)    (माकेम॰46.10)
107    करिया (~ भुच-भुच) (चउकोसी इनकर नाम हे, सभतर इनकर परचार हे - परचार हे इनकर दिआ के, नाम हे इनकर अच्छत के । इनकर दिआ ! बाप रे, देखइते हिया काँप जाहे, डाइन के काजर धोआ जाहे, देह के बायमत भाग जाहे । करिया भुच-भुच रीठल नादा लेखा, एक बित्ता करुआ तेल के परत जुगन से ई दिआ बरइत आ रहल हे ।; हल तो करिआ भुच-भुच, बाकी ओकर भगवान राम लेखा बरऽ हल ।)    (माकेम॰31.6; 63.6)
108    करीगरी (= कारीगरी) (सुन्दरता तो आपन हाथ के करीगरी में हे, मन के हवेली में ही ।)    (माकेम॰45.28)
109    करुआइन (खाइत जायत आ सवाद-बेसवाद पर बकइत जायत - जेकर जइसन रूच होवऽ हे ओइसने तरकारियो बनऽ हे - कोनो करम के ना, तनी रिबिछो करुआइनो-तेलाइनो न । बढ़िया मिल गेला पर खूब सिसिआयत, जीभ चटकारत आ कहत - हँ, देखऽ त ई कइसन हे ।)    (माकेम॰39.10)
110    कलछुल-छोलनी (पहिल पहिलौंठ बेटी के बिआह ! ... लोटा-थारी, गिलास-कटोरा, बटलोही-बरहगुना, पीतल के कलछुल-छोलनी - सब ओकर माय धीरे-धीरे खरीद के रख लेलक हे ।)    (माकेम॰48.27)
111    कलटरी (दू दिन बाद लहास मिलल । जे गेल से ठहर गेल । केकरो सतुआ ओरा गेल, केकरो भूँजा खतम हो गेल । बाकी भूखे पिआसे सब अउरत गंगा के किनारे कलटरी घाट पर डेरा डालले रहल ।)    (माकेम॰29.14)
112    कलटाना (आझ अंतिम दिन हे उनकर । भगवान भी सायद बुझ गेलन कि अब ई आत्मा के जादे कलटावे के न चाही ।)    (माकेम॰59.25)
113    कलागिरी (कोई कयल-करतूत होवे तब न, उनका तो कमर में चोट पहुँचल हे - हड्डी टूट गेल हे । अब चले-फिरे से लाचार हो गेलन । इनकर सब कलागिरी बन्द । सब करामत बेकार ।; ओकर हाथ में कलागिरियो हे । ऊ सिऔनी-फरौनी खूब जानऽ हे । एक-से-एक कपड़ा के कतरन के गुड़िया, पोस्टकार्ड आ कुट के डोली, सलाई के फैक्टरी, चूड़ी के बैग, कागज के जानवर बनावे ला जानऽ हे । कुरती के एक-से-एक कटिंग सीखऽ एकरा से । मउनी-दउरी छनवावऽ एकरा से, लेदरा बइठवावऽ एकरा से ।)    (माकेम॰15.11; 49.7)
114    कल्ह (= कल) (आझ दमा उपटल आ कल्ह तेवरनी के झोपड़ी में । कल्ह बोखार लगल आ परसो परसीद सीन के चापाकल पर पहुँच जायत ।)    (माकेम॰41.11, 12)
115    कल्हवा (= कल्हा; कल्ला; दाढ़, जबड़ा) (एक महीना ले ऊ खाट पर कल्हवा काटइत रहलन । कातिक के महीना - चाँद इनकर पीड़ा देखके रो उठल, मुँह छिपा लेल । सुरुज आँख में आँसू भर के कलाकार के अन्तिम दरसन करे पहुँच गेल । एतवार दिन, सुबह 6 बजे ई दुनियाँ से अप्पन नाता तोड़ के चल देलन ।)    (माकेम॰15.18)
116    कवलेजिया (= कउलेजिया) (पाँच गो पोता - बड़का के देह से तीन गो आ छोटका के दूगो । बड़का के एगो किरानी आ एगो ओभरसियर, छोटका कवलेजिया ।)    (माकेम॰40.9)
117    कसार (= चावल के आटे में घी शक्कर मिलाकर बनाया लड्डू, कचवनियाँ) (आ एक खोंइछा पुआ-पकवान, टिकरी कसार उझिल देव हल ओकर अँचरा में - जइसे बेटी बिदा करे के टाइम में माय देव हे ।)    (माकेम॰64.10)
118    कहनाम (कहनामो ओकर ठीके हे । जतना बोलऽ हे ओकरा से जादे करबो करऽ हे । सब कोई सुतलहीं रहतन, ऊ उठके भईंस के सान्ही-पानी करे लगत । पुतोह चुल्हा धरावत तब ले ऊ एक छाँपी घास गढ़ के ले आवत । बूढ़ी हो गेल हे बाकी अबहियों ओही फुरती हे एकर देह में ।; मट्ठा-दही ऊ न बेचे । ओकर कहनाम हे - दूरा पर भइँस पोसली आ गाँव के कंठ न भिंजइली त पोसली काहे ला ।)    (माकेम॰36.29; 39.25)
119    का जनी (= न जाने) (लोग कहऽ हथ, महतो जी हथ कि ओकरा निबाह कर रहलन हे, दोसरा हीं रहइत त सहिए-साँझ घाठी दे देवल जाइत । का जनी कइसे ई एगो मधुमक्खी के छत्ता में बिढ़नी समा गेल हे ।)    (माकेम॰14.14)
120    कागच (= कागज) (आझ कोनो साइंस पढ़वैया हिसाब के जनकार से कोनो हिसाब पूछल जाव - पन्ना के पन्ना रंग देतन, पोथी के पोथी लिख डालतन तइयो सही उत्तर निकले में सके होयत बाकी एकर फुटेहरी ला कोई किताब-कौपी के जरूरत न, कोई कागच-पिन्सिट के आवश्यकता न ।)    (माकेम॰37.25)
121    कागच-पिन्सिट (आझ कोनो साइंस पढ़वैया हिसाब के जनकार से कोनो हिसाब पूछल जाव - पन्ना के पन्ना रंग देतन, पोथी के पोथी लिख डालतन तइयो सही उत्तर निकले में सके होयत बाकी एकर फुटेहरी ला कोई किताब-कौपी के जरूरत न, कोई कागच-पिन्सिट के आवश्यकता न ।)    (माकेम॰37.25-26)
122    कातो (आँख पथरिया गेल आ ढर-ढर गिरे लगल लोर । हम्मर चाची के तो काठ मार गेल । ऊ जगा बइठल दू-चार अउरत भउँचक हो गेल । लोग बिगड़े लगलन हम्मर चाची पर । गाँव के मालूम भेल त अउरत सब एकरा घिनावे लगलन - निसोगी काहे ला पूछलई हल । ओकरा लेखा आउ केउ उछँहत न हलई । बेचारी के रोआ भरलई कातो ।)    (माकेम॰27.10)
123    कानुन (= कानू, कांदू या भड़भूजा जाति की स्त्री) (कउन गीत कै कदम पर उठावल जायत, केकर दुहारी पर से सुरू कयल जायत, एकर रहस्य ओहे जानऽ हलन । बजनियाँ के गीत अलग, नउनियाँ के गारी अलग, कनुनियाँ के गीत दोसर, तेलिनियाँ के तेसर । तिलक देउआ उनकर गीत सुनके दंग, बरतिआहा भउँचक ।)    (माकेम॰25.9)
124    कान्ह (= कन्हा; कंधा) (जखनी केकरो हीं मिलल पिअरी पहिर लेवऽ हलन तखनी उनकर रूप देखऽ । बाकी ई रूप उनकर लगने भर । आसाढ़ चढ़इते धरती माता के गोद में । ओ घड़ी देखऽ मजदूर किसान के रूप । कभी हाथ में कुदाल, कभी कान्ह पर हर ।)    (माकेम॰21.32)
125    कान्हा (= कन्हा, कंधा) (कान्हे-कान्हे रंथी पहुँच गेल बाँसघाट, पटना । दस मन लकड़ी, सवा मन चन्दन-धूप आउ घीव अन्तिम कपाल किरिया के सब सरजाम जुटा के रेसा रचावल गेल । अब उनका आग, मुखबत्ती के देत ? - ई सवाल पर दस गो आदमी तइयार ।)    (माकेम॰16.9)
126    काम-किरिया (कतना दावा-दारू भेल बाकी ई बार ऊ न बच सकल । एगो तेतर बेटा, तीन गो बेटी आ एगो अउरत छोड़ के चल गेल । ओकर सब काम-किरिया पंडित जी अप्पन खरचा से कयलन ।)    -64.28
127    कारज-परोज (केकरो कारज-परोज के दूसरका दिन तड़कहीं हुनका हीं पहुँच जायत । देखइते सवासिन बूझ जायत आ आदर से कहत - ए हदरी चाची, तनी एसा बइठ जा। हाथ नेटल हे, धोके देहीवऽ ।)    (माकेम॰38.29)
128    काहे कि (= क्योंकि) (महतो जी जनानी मनोविज्ञान के पण्डित बुझा हथ । जब ऊ छड़पे लगत, त ई पुचकारे लगतन । जब ऊ फँउके लगत, त ई सुघरावे लगतन । लगऽ हे एको संतान न होवे से ऊ बिरबिरायल रहऽ हे । काहे कि महतो जी के सामने ऊ कभी अप्पन नाक के सुनसुना न बजावे ।)    (माकेम॰14.17-18)
129    किताब-कौपी (आझ कोनो साइंस पढ़वैया हिसाब के जनकार से कोनो हिसाब पूछल जाव - पन्ना के पन्ना रंग देतन, पोथी के पोथी लिख डालतन तइयो सही उत्तर निकले में सके होयत बाकी एकर फुटेहरी ला कोई किताब-कौपी के जरूरत न, कोई कागच-पिन्सिट के आवश्यकता न ।)    (माकेम॰37.25)
130    किरखी (= कृषि; खेती) (एकर सगुन बड़ा धारऽ हे । किरखी में उपज जादे होयत । एकर पैरुख बड़ा लछनमान हे जइसन ओकर माय के दूध ।)    (माकेम॰48.8)
131    किरतन (आझ पइन उड़ाही हे, त कल्ह अखण्ड किरतन । रजिस्ट्री में गवाही देतन ई, ब्लौक में पैरवी करतन ई । पइन उड़ाही में अगुआन होयतन ई, अखण्ड किरतन के सारा सरजाम जुटवतन ई - इनका छुट्टी कहाँ ?)    (माकेम॰51.11, 12)
132    किरतनिहा (दउड़ के डोमन के बाजा ठीक कर लेवल गेल । ठाकुरवाड़ी से घड़ी-घंट आ गेल, किरतनिहा लोग जुट गेलन ।)    (माकेम॰15.27)
133    किरती (= कीर्त्ति) (आझ गाँव उनके किरती से जगमगा रहल हे, उनके नाम से जानल जा रहल हे । जब ऊ मरलन गाँव के नाम उनके नाम पर रखा गेल हे - बहादुरपुर । बहादुर सीन नाम हल उनकर ।)    (माकेम॰52.21)
134    किरिंग (= किरण) (जइसने ओकर माय से रोपनी करावे ला मार होवऽ हे, ओइसने ओकरा से हर जोतावे ला । मालिक से जादे फिकिर ओकरे । किरिंग फूटइते डेयोढ़ी पर पहुँच जायत । साग-सतुआ जे आगू में पनपियार आयल, भर हीक खाके ढेकरइत कान्ह पर हर उठाके चल देत ।)    (माकेम॰47.21)
135    किरिन (= किरण) (उनकर दलानो बड़ा रोखगर, हवादार - पहिल किरिन से नेहाय ओला, चान से गमगाये ओला - गाँव के सबसे पूरुब हे ।)    (माकेम॰13.2)
136    किरिया-करम (= क्रिया-कर्म) (रात में गाँव भर के लोग जुट के उनकर किरिया-करम करे ला मिटिंग कयलन । चन्दा वसूलाये लगल, बिहरी छँटाये लगल । मिसिराइन दू मन आँटा पहुँचवलन त करमू तीन मन भंटा । लंगाटू साव आलू पहुँचवलन त अक्तर मियाँ साग, सहुआइन तीन टीन डलडा देलन त गंगा साव चीनी आउ पत्तल ।; जब लहास मिलल तब किरिया-करम करे के विचार भेल ।)    (माकेम॰16.23; 29.16)
137    किहाँ (= के यहाँ) (ई बेवहार दूसरा किहाँ मिल सकऽ हल ?)    (माकेम॰63.17)
138    कीचिन (= किच्चिन, चुड़ैल) (कयलन तो इहो ओझइये-गुनइए । कतना के घर के बायमत बान्ह देलन, देह के कीचिन उतार देलन ।)    (माकेम॰30.16)
139    कुँड़ी (गोल मुँह, सिलउट लेखा छाती, मुगदर लेखा बाँह, कुँड़ी लेखा काँधा, अढ़ाई हाथ के नापल जोखल सरीर । जखनी कान्ह पर हर आ पालो लेके बैल के टिटकारी मारइत पीछे-पीछे चले तो लगे कि नीला आकास में करिया बादर चकवा-चकई खेल रहल हे ।)    (माकेम॰61.24)
140    कुटौना-पिसौना (बिआहे रात सास चूल्हा धरा देलन । बने-बने साथे टाँगले चललन । कुटौना-पिसौना, रोपनी-डोभनी, कटनी-पिटनी सब कइली - सब सहली ।; खेत-बधारी एको धुर न हे बलुक घरो आम गरमजरुआ जमीन में उठावल हे । अपने बन-मजूरी, कुटौना-पिसौना करके कुछो ले आवत ।)    (माकेम॰36.13; 47.13)
141    कुड़बुड़ाना (एने गुड़गुड़ा गुड़गुड़ाये लगत आ ओने उनकर कण्ठ कुड़बुड़ाये लगत । जइसने उनकर गुड़गुड़ा ओइसने उनकर कण्ठ ।; बड़का गर बैल लेखा दिन-रात पड़ल रहत आ छोटका एने के बात ओने करइत रहत । कतना के ई कपार फोड़वा देल, कतना के बसल घर जुदागी करवा के उजाड़ देल । महमाया दिन के नाँवे झँखइत रहत । कलट्टर काका देख-देख के कनमनाइत रहतन, मने-मने कुड़बुड़ाइत रहतन, बाकी करथ का ? ई दोस केकर हे ? घोड़ा आ बेटा बिना कसले बेहाथ हो ही जाहे ।)    (माकेम॰23.18; 51.6)
142    कुरूम (ई दू तरह के जूता बनवऽ हलन - चमरुआ आ कुरूम के । कुरूम के जूता ला चमड़ा बहरा से मँगावऽ हलन, बाकी चमरुआ घर के चमड़ा से ।)    (माकेम॰18.15)
143    केवाल (~ माटी) (प्रकृति के बनावल-सँवारल के नकल आदमी का कर सकऽ हे । जागा माटी के औलाद हल । ओतने भुच-भुच करिआ - केवाल माटी लेखा - ओतने चिक्कन विचार - कोमल हृदय । मुलायम बेवहार बाकी काम करे में सूखल केवाल माटी लेखा कठोर ।)    (माकेम॰62.8, 9)
144    कोआ (= कोवा, ताड़ के फल के अन्दर का गुद्दा) (जे सुनल से पछतावे लगल - ओह हमहूँ रहिती त आझ डाइन के नाच देखिती न । अरे डाइन हल ! बाप रे ! बिलकुल अभी नवचेरिए तो हइए हल । उठल नाक, गोल-गोल गाल सेव लेखा, लाल फोंफी लेखा घेंची, ताड़ के कोआ लेखा आँख, बाँस के छउँकी लेखा कमर लचकावइत देख के, लमपोर सरीर, छरहर बदन, बैगनी रंग के साड़ी पेन्हले, माथ पर टिकुली साटले, माँग टिकले देख के लोग दाँते अँगुरी काटऽ हल - सरमा जा हल - केकर अउरत हे ई, कउन खानदान के इज्जत पर पानी फेर रहल हे ।)    (माकेम॰32.18)
145    कोठ (= कोठी) (रात में थरिया न मलायल ओकरा ला चार बात, लोटा न चमचम चमकल ओकरा ला दस गण्डा गारी । सूप खूँटी में न टँगायल, बढ़नी पार के न रखायल, चूल्हा न लिपायल, कोठ के मान न मुनायल एकरा ला बिसहन हुरकुच्चा । हुरकुच्चा सुनइत-सुनइत ऊ हेहर हो गेल ।)    (माकेम॰35.18)
146    खखनना (केकरो माथा में तेल लगावे ला जीव खखनइत होयत बाकी इनका घरे रोज इचना आ बोआरी तेल में छना हल ।)    (माकेम॰56.9)
147    खट-मिट्ठी (आलूदम एक नम्बर के, खट-मिट्ठी अपने आप में जोरदार । जे खयलक से अघा गेल ।)    (माकेम॰17.4)
148    खनदान (= खानदान) (जने गेलन ओने अप्पन कला आ ईमान लेले गेलन । उनकर खनदान के लोग हथ बाकी ओहो ई धन्धा न सिखलन ।)    (माकेम॰19.1)
149    खम्मा (= खम्भा) (कभी कोई पूछ देत - काहो कलट्टर काका, इनो साल बिजुलिया न लगतई का ? ऊ जबाब देतन - घबड़ाये से काम होवऽ हे । खम्मा गिरिए गेल हे, लाइन के परमिट बाकी हे, सेकरा ला लिखा-पढ़ी चल रहल हे ।)    (माकेम॰53.30)
150    खरंजा (अतने न, केकरो छप्पर चू रहल हे - महतो जी के बोला के छवा लऽ । केकरो नाद गाड़े ला होवे इया खरंजा लगावे ला - महतो जी के पकड़ लऽ ।)    (माकेम॰12.10)
151    खरकना (= घसकना, हटना; भागना) (उनके प्रभाव हे कि गाँव में आझ ले चोरी-चमारी न भेल । आझ ले एगो खेरो न खरकल । खेत में कोई पलानी न गिरावत, खरिहान में कोई अगोरी न करत ।)    (माकेम॰52.30)
152    खरकना (दू हप्ता पहिले ऊ बसावन सीन के गाँज गाँजइत हलन । बड़का गाँज हल । अचानक छउनी से कुछ अँटिया खरकल आउ महतो जी के गोदी में साटले जमीन पर आ गेल । महतो जी के भारी चोट पहुँचल । लोग टाँग-टुँग के उनका अस्पताल पहुँचवलन ।)    (माकेम॰15.4)
153    खरवा (क-को करवा, ख-खो ~) (बइदगिरिए न, ऊ मँहटरियो जानऽ हथ । उनका से क-को करवा, ख-खो खरवा, एक से एक फुटेहरी, चौपाई के अरथ, हिन्दू-सास्तर के अनुसार धरम-विधान, सोरहो संस्कार, बिआह-सादी, मरनी-हरनी में करमकाण्ड जान लऽ - सबके ज्ञाता, पण्डित बिदमान होवे के अधिकार उनका एक साथ मिलल हे ।)    (माकेम॰12.4)
154    खलास (= खरास; खरोंच) (बात अप्पन होवे इया गैर के, ओकरा में कुछ-न-कुछ अरथ छिपले रहऽ हे । दिमाग के खलास, हिरदा के टीस, दिल के दरद, आनन्द के सुमार, खुसी के उद्गार - सब कुछ ओकरा में ऐनक लेखा झलकइत रहऽ हे ।)    (माकेम॰5.2)
155    खाँटी (मिलावट के जुग में खाँटी कहाँ ? खाँटी हे भी त बिस्वास कहाँ ?)    (माकेम॰22.21)
156    खाना-बुतात (गाँव के लोग रोजे तीन-चार बार देख जाथ । केउ-न-केउ आके पूछ जाये । लोग खाना-बुतात पहुँचा जाथ ।)    (माकेम॰15.14)
157    खानी (= खन, क्षण, पल, समय) (उनकर व्यक्तित्व में चार चाँद लगावेओला एगाउ गुन हल - बाजा पर नाचे के गुन, दुआर लगइत खानी छड़पे के गुन ।)    (माकेम॰20.31)
158    खा-पोंछ जाना (ई तेल डालल चाहऽ हे जादे, मसाला भूंजल चाहऽ हे अधिक । बाकी ओकर पुतोह हे कंजूस, सेंगरनी । कह बइठत - तोरे लेखा खा-पोंछ न न जायब । जे कमयली से खा-पोंछ गेली । दुगो माथ पर बेटी सरेक हो गेल हे । तोरा अब का चिन्ता हवऽ । चिन्ता हमरा न हे । रात भर नीन न आवे ।)    (माकेम॰39.15, 16)
159    खिच-खिच (~ मिजाज) (जइसन माय ओइसन बेटा । बाकी सुखदेवन देह से कदराह पड़ऽ हथ । ई लेल उनकर पूछ ओतना न जतना दूनो माय-बेटा के । ऊ तनी खिच-खिच मिजाज के पड़ऽ हथ भी । इनका से जल्दी लोग के न पटे तइयो माय-बेटा के साथे इहो मालगाड़ी के डिब्बा लेखा ढनढनाइत खिंचा ही जा हथ ।)    (माकेम॰48.16)
160    खेंढ़ा (जहिया दिआ बुत जायत तहिया घसेटन खाट धर लेतन । हँ, एक बार के खेंढ़ा हे, दिआ बुतायल हल । बुतायल हल बाकी हलचल मच गेल हल ।)    (माकेम॰31.13)
161    खेढ़ा (= खेंढ़ा) (ऊ नाच रहल हे, घसेटन अप्पन चउकी पर चुपचाप बइठल हथ पालथी मार के । बड़ी देर ले ई खेढ़ा होइत रहल ।)    (माकेम॰32.8)
162    खेत-बधार (पइन उड़ाही में अगुआन होयतन ई, अखण्ड किरतन के सारा सरजाम जुटवतन ई - इनका छुट्टी कहाँ ? घर दुआर देखे ला मौका कहाँ ? एही कारन हे कि न तो घर दुआर पर ध्यान देलन न खेत-बधार पर ।)    (माकेम॰51.14)
163    खेत-बधारी (खेत-बधारी एको धुर न हे बलुक घरो आम गरमजरुआ जमीन में उठावल हे ।)    (माकेम॰47.12)
164    खेतिहर (लोभी रहितन त कतना खेत अरज लेइतन अब ले । कतना लोग बीघा के बीघा, पलौट के पलौट इनकर नाम से रजिष्ट्री कर देइत । आझ ई बड़का जमीन्दार, लमहर खेतिहर बनल रहितन । बाकी नऽ - ई अप्पन अकबद न बिगाड़े गेलन, अप्पन ईमान न बेचलन ।; कतना इनकर साथी जे दोसर के मनी-बटइया खेत लेके जीअ हलन ऊ इनकर चमचागिरी करके खेतिहर हो गेलन ।)    (माकेम॰34.17; 57.13)
165    खेती-बारी (ई लेल जागा लच्छनमान मानल जा हल । पहिला बिआ जागा अप्पन हाथ से छीटत । सगुन अप्पन हाथ से करत । खेती-बारी के हर काम ओकर हाथ से छुआ के होयत ।)    (माकेम॰62.23)
166    खेर (उनके प्रभाव हे कि गाँव में आझ ले चोरी-चमारी न भेल । आझ ले एगो खेरो न खरकल । खेत में कोई पलानी न गिरावत, खरिहान में कोई अगोरी न करत ।)    (माकेम॰52.29)
167    खेलाना (भूत ~) (ई देवास न लगावथ, भूत न खेलावथ - बस चउकी पर बइठ के खाली अच्छत बाँटऽ हथ - बाकी कह देतन नजरावल हे इया केकरो देल हे ।)    (माकेम॰32.26)
168    खेसारी (= खेसाड़ी) (ओकर मरदाना सुखदेवन रोज पर खटऽ हे । ओहो दूर से खेसारी लयबे करऽ हे ।)    (माकेम॰47.14)
169    खोंइछा (आ एक खोंइछा पुआ-पकवान, टिकरी कसार उझिल देव हल ओकर अँचरा में - जइसे बेटी बिदा करे के टाइम में माय देव हे ।)    (माकेम॰64.10)
170    खोंच (लोग कहऽ हथ जब कोई एकरा से न बोले त गली-कूची के झिटकी से लड़त, गाछ-बिरीछ से टकरायत । कहूँ ठेसो लग गेल, त गली अलगा देत, लुगा में कहूँ खोंच लग गेल, धरती उलट देत ।)    (माकेम॰36.1)
171    खोजरा (केकरो आम के मोजर खराब हो रहल हे, केला के फर गउँजा रहल हे - ओकर उपाय महतो जी के दलान पर लिखके टाँगल हे - धान में हरदा, मकई में खोजरा, आलू में गोजरा, साग में पोजरा लग गेल - ओकर इलाज महतो जी के दलान पर जा के पूछ लऽ ।)    (माकेम॰12.1)
172    खोरहा (दूगो बैलो रखले हथ बाकी ओकरो कोई धेयान न । एगो के सींग टूट के घवाहिल हो गेल हे त दूसरका के खोरहा धर लेल हे ।)    (माकेम॰51.22)
173    गँरउरी (मउनी बिनवावऽ इनका से, खटिया छनवावऽ इनका से । एक से एक गँरउरी, जाब, मोहरी, नाधा-जोती, सिकहर इनका से बनवा लऽ - एको पइसा खरच न - नौ नगद न तेरह उधार । महतो जी हइए हथ त एकर सवाले कहाँ उठऽ हे ?)    (माकेम॰12.11)
174    गउँजाना (केकरो आम के मोजर खराब हो रहल हे, केला के फर गउँजा रहल हे - ओकर उपाय महतो जी के दलान पर लिखके टाँगल हे - धान में हरदा, मकई में खोजरा, आलू में गोजरा, साग में पोजरा लग गेल - ओकर इलाज महतो जी के दलान पर जा के पूछ लऽ ।)    (माकेम॰11.26)
175    गछना (= स्वीकार करना; उत्तरदायित्व लेना) (बिजली के कड़क आ देवाल गिरला के आवाज होवऽ हल इनकर डंका से । खुस होके कोई नोट साटइथे, कोई इनाम गछइथे - धोती के इनाम, लुगा के इनाम ।)    (माकेम॰21.8)
176    गड़हन (~ लगना) (केकरो चोरा समा गेल हे, ई झार देत । झूठा धयले हे, छोड़ा देत । केकरो अँगुरी मुरक गेल हे, माँड़ देत । लइका के गड़हन लगल हे, ठीक कर देत ।)    (माकेम॰49.17)
177    गण्डा (रात में थरिया न मलायल ओकरा ला चार बात, लोटा न चमचम चमकल ओकरा ला दस गण्डा गारी । सूप खूँटी में न टँगायल, बढ़नी पार के न रखायल, चूल्हा न लिपायल, कोठ के मान न मुनायल एकरा ला बिसहन हुरकुच्चा । हुरकुच्चा सुनइत-सुनइत ऊ हेहर हो गेल ।)    (माकेम॰35.17)
178    गते-गते (= धीरे-धीरे) (बाकी अइसन कुछ बात हो गेल जेकरा चलते समूचा मुसहर टोली उठ के आ गेल डग्घर पर । बाले-बच्चे, हँड़िया-पतीला लेले सब के सब मुसहर आके इहँई बस गेलन । सामन्ती ठाट के आगे - जमीन्दारी गुमान के सामने - ई सब बेचारा का करथ । गते-गते माटी के घर उठा-उठा के, झोपड़ी दे-दे के बस गेलन ।)    (माकेम॰61.7)
179    गदानना (= उचित महत्त्व देना; मान्यता देना) (जे अप्पन घर न देखे ऊ मरदाना का, जे अप्पन अउरत के न गदाने ऊ पुरुस का ? ई गदानथ का, इनका एको करम के बाकी छोड़ऽ हे ? ई तो खैर कहऽ, दूनों पुतोह मिल गेलू हे मनगर सुभवगर न त ई बिना मारले मर जयतन हल । खाहूँ-पीहूँ ला केऊ न पूछइत - बेटा बनभाकुरे आउ अउरत कराकसीने ।)    (माकेम॰54.11)
180    गन्ह (= गन्ध) (मिठाई खाये इया मत खाये बाकी दुकान पर दू मिनट ठाड़ होके ओकर गन्ह जरूर लेत ।)    (माकेम॰46.28)
181    गमछा (कतना फुरती हे सरीर में, कइसन कलाबाजी हे कमर में । कोई पेन्हावा न, कमर पर से धोती, एगो गोलगला गंजी, या या कुरता, माथ में गमछा । हँ, गमछा लाजबाब रंगीन झक-झक ।; ठेहुना पर ले धोती, एगो गमछा, बस एहे हे इनकर सालो भर के पोसाक ।)    (माकेम॰21.13; 34.9)
182    गर (= सुस्त, परुआ, सुस्ती से काम करनेवाला) (~ बैल) (बड़का गर बैल लेखा दिन-रात पड़ल रहत आ छोटका एने के बात ओने करइत रहत ।;  ऊ कभी गर बैल पसन्द न कयलक । मलिकार से ऊ बिगड़ जा हल बैल खरीदे ला । खुद अपने मेला में जा हल, अप्पन पसन्द से बैल मालिक से खरिदावऽ हल जे ओकर टिटकारी पर घिरनी लेखा नाचे लगे ।)    (माकेम॰51.3; 62.10)
183    गरँउटी-सिकहर (मउनी-दउरी, गरँउटी-सिकहर बेच के अप्पन अप्पन घरवाली के भी पेट भरे के इन्तजाम कर देलन । कहीं से कुछ सीधा-बारी मिल गेल, अँगेया-पेहानी आ गेल, कोई बयना-बखरा देल गेल - उनकर धरमपत्नी संगेर के रखत । वास्तव में ऊ संगेरनी हे भी ।)    (माकेम॰13.23)
184    गर-गृहस्थी (= गर-गिरहस्ती) (हम ओकर बेटा के पढ़ावऽ हली । कभी-कभी ऊ हमरो पढ़ावऽ हल - गर-गृहस्थी के बात बतिआवऽ हल । हम्मर अउरत से जादे पटरी रहऽ हल ।)    (माकेम॰50.5-6)
185    गरमजरुआ (खेत-बधारी एको धुर न हे बलुक घरो आम गरमजरुआ जमीन में उठावल हे ।)    (माकेम॰47.12)
186    गरिआना (हदरी चाची गाँव के तिलंगी हे, लइकन के पतंग । लइकन एकरा खूब उड़वतन, खूब चिढ़वतन । जतने ऊ चिढ़त, लोग ओतने चिढ़ावत । खूब सरापत, खूब गरिआवत बाकी एकर अमनख केकरो न । अमनख कोई काहे करत - जे चिढ़ावत हे से गारी सुनवे करत हे । कोई उसकावत ई सरापवे करत, फिर अमनख कउन बात के ।; गरिआना (ओही घड़ी कोनो पूछ देल - आ जान-बूझ के लोग पूछवे करत, तब ओकर अफसोस जनावल देखऽ - का करूँ बबुआ, सरधे बोलऽ ही, जान के गरिआवऽ ही ।; हमरा कोई चिरकावत त हम गरिअएबे करब, कउँचावत त हम सरापवे करब ।)    (माकेम॰35.3; 36.7, 26)
187    गवइया-बजवइया (परिवार में एक से एक पढ़ल-लिखल बिदमान, पट्ठा पहलवान, लड़वइया, गवइया-बजवइया, नाती-पोता देखके उनकर मन अगराइत रहऽ हल ।)    (माकेम॰28.11)
188    गहँकी (= ग्राहक) (कभी दउड़ के कभी उछिल के जूता के नमूना देखावे लगतन । अन्त में पैर से निकाल के हाथ में लेके दू बाजी फट-फट जमीन पर बजाड़ देतन, दूनों के मिलाके पट-पट बजा देतन । फिर का ? - अतना करइते चार गहँकी तइयार । पाँच गो बेयाना हाजिर ।)    (माकेम॰19.16)
189    गाँज (= पूँज; पुआल या नेवारी का पूँज) (दू हप्ता पहिले ऊ बसावन सीन के गाँज गाँजइत हलन । बड़का गाँज हल । अचानक छउनी से कुछ अँटिया खरकल आउ महतो जी के गोदी में साटले जमीन पर आ गेल । महतो जी के भारी चोट पहुँचल । लोग टाँग-टुँग के उनका अस्पताल पहुँचवलन ।; ई तरह से ऊ दिन-रात अरमान के गाँज गाँजइत रहऽ हे ।)    (माकेम॰15.3, 4; 49.3)
190    गाँजना (गाँव के लइकन उनकर लइकन । ई लेल उनका निकोखी होये के आह कभी न आयल । अप्पन बड़का गो परिवार देख के उनकर छाती गाँजल रुआ लेखा फूलल रहऽ हल । हरनी-मरनी में ऊ केकरो हीं न जा हलन । एकरा से उनका घिरना न हल । उनका हिरदये थमयेबे न करऽ हल । ऊ केकरो श्राद्ध देख के रोवे लगऽ हलन ।; लगऽ हे, ओकर अभिमान के गाँजल पर कोई लात मार देल हे, चमकइत गाल पर चमेटा जड़ देल हे ।; ई तरह से ऊ दिन-रात अरमान के गाँज गाँजइत रहऽ हे ।)    (माकेम॰28.23; 40.25; 49.3)
191    गाँव-जवार (= गाँव-जेवार) (मकान हे तो कच्चा माटी के, खपड़ा से छावल, बाकी ऊ गाँव-जवार के नमूना हे ।)    (माकेम॰13.7)
192    गाँव-जेवार (सवा सौ बढ़ामन जेवावल गेल, पाँच सौ कँगली खिलावल गेल । सेजियादान ! गऊदान !! पाँच रंग के मिठाई, बुनिया-पूड़ी सउँसे गाँव-जेवार खा के अघा गेल ।)    (माकेम॰17.2)
193    गाछ (= पेड़) (एगो पक्का इनार, इनार के अगल-बगल फूल-पत्ती, एगो अँवरा के पेड़, केला के बगान, सहिजन के गाछ, आम-अमरूध के दरखत उनकर दलान के सोभा हे ।)    (माकेम॰13.4)
194    गाछ-बिरीछ (लोग कहऽ हथ जब कोई एकरा से न बोले त गली-कूची के झिटकी से लड़त, गाछ-बिरीछ से टकरायत ।)     (माकेम॰35.27)
195    गाद (चइत के महीना हल । साँझ के बेरी हल । हम कॉलेज से लौट के आवइत हली घरे मुसहरी तीली होवइत । देखली कि जागा डग्घर पर चिताने परल हथ । उनकर मुँह से गाद निकल रहल हे ।)    (माकेम॰64.14)
196    गाभिन (सालो भर खूँटा पर एगो जनावर जरूर रखत । कहीं से मोल, कहीं से बटइया-तेहइया लाके पालत । बड़ा मिहनत करके सान्ही-पानी देके पोसत बाकी गाभिने में बेच देत ।)    (माकेम॰47.10)
197    गारी-बात (~ सुनना) (ई कहूँ से थकाल-फेदायल अवतन, ऊ झरुआ लेके बहारे लगत । पेन्ह-ओढ़ के कहीं जाय लगतन, मतुहायल पानी माँगतन, ऊ भरल गगरा के पानी उझिल देत ।  बाकी कहऽ पुतोह के बलिहारी । इनके ला ऊ गारी-बात सब सुनत बाकि इनका आवइते लोटा में पानी लेके ठार हो जायत । बेना लेके तइयार । एने ई अंगा उतारे लगतन ओने खाना परोस के तइयार हो जायत ।)    (माकेम॰54.17)
198    गिंजन (केतना के बेटा देलन, केतना के नौकरी लगा देलन बाकी ऊ सरधा-भक्ति लोग उनका खातिर न दिखवलन बलिक उलटे लोग घिनावऽ हथ । इनका देखके अउरत थूक देवऽ हे । मरदाना निहसावऽ हे, बूढ़-पुरनियाँ हिनावऽ हे, लइकन चिढ़ावऽ हे । सच पूछऽ त उनकर लास के अब गिंजन हे, गिंजन । लोग सरापऽ हथ - ई पिलुआके मरतन । इनकर लास के गीध कउआ नोच-नोच के खायत ।)    (माकेम॰30.20)
199    गितहारिन (= गीतहारिन) (आझ गाँव के गितहारिन चल गेल ।)    (माकेम॰29.32)
200    गिल-पील (एने दुआरी लगल खतम, ओने सनीचर परेसान । लोग जुटल हथ सट्टा लिखावे ला, बेयाना देवे ला - बाकी सब पहिलहीं से बुक । एकाधगो लगन बचइतो हे त ओकरा ला झगड़ा, मारामारी के नउबत । सनीचर केकर सट्टा लिखथ ई लेल पसेने-पसेन, गिल-पील ।)    (माकेम॰21.20)
201    गीत-गवनई (गीत-गवनई के समय सबके आगू में रामायन बढ़ावे के चाही । बाकी तड़ुका दाई इहाँ अपसोवारथी हो जा हथ ।)    (माकेम॰24.11)
202    गीतहारिन (केकरो मटकोड़वा सुरू भेल, ढोल बजे लगल, नाउन माथा पर दउरी लेके चलल ओ घड़ी तड़ुका दाई सबसे आगे-आगे चलतन पीछे से सब गीतहारिन ।)    (माकेम॰25.4)
203    गीताहर (का जनी उनका कहाँ से अतना गीत आवऽ हे । गीत गावे के न कहूँ टरेनी कयलन न कहूँ संगीत विद्यालय में पढ़लन-लिखलन । फिर ऊ अतना गीत सिखलन कहाँ से । लिखे-पढ़े आवे हइए न कि अपने से बनयवो करतन । लोग कहऽ हथ ई सब उनकर पूरुब जनम के कमाई हे । गीताहर आ सीता जलमें से गुन से भरल होवऽ हे । त तड़ुका दाई अइसने गीताहर हलन ।)    (माकेम॰24.24, 26)
204    गुड़गुड़ा (उनका अवइते कोई पीढ़ा लाके देत, कोई बेना, कोई बोरा बइठे ला देत, कोई चटाई । उनकर गुड़गुड़ा के सरजाम पहिलहीं से जुटा के रखल रहत । आवइते धड़ाधड़ टिकिया सुलग जायत, तमाकू बोझा जायत । फिर का ? - एने गुड़गुड़ा गुड़गुड़ाये लगत आ ओने उनकर कण्ठ कुड़बुड़ाये लगत । जइसने उनकर गुड़गुड़ा ओइसने उनकर कण्ठ ।)    (माकेम॰23.15, 17, 18)
205    गुड़गुड़ाना (एने गुड़गुड़ा गुड़गुड़ाये लगत आ ओने उनकर कण्ठ कुड़बुड़ाये लगत । जइसने उनकर गुड़गुड़ा ओइसने उनकर कण्ठ ।)    (माकेम॰23.17)
206    गुनावन (= गुनामन; गुण-दोष को याद कर की गई चिन्ता; पछतावा; सोच-विचार; खेद) ('बाप रे, तोर सरापल निधार न जायत बेटी । आझ से कसम खा लऽ कि हम अइसन बात मुँह से न निकालब ।' कहल जाहे, ओहे दिन से ऊ सरापल छोड़ देलन । जब ले ऊ जिन्दा रहलन, एकर गुनावन उनका कभी न भेल । परिवार में एक से एक पढ़ल-लिखल बिदमान, पट्ठा पहलवान, लड़वइया, गवइया-बजवइया, नाती-पोता देखके उनकर मन अगराइत रहऽ हल ।; हँ जी, त का चाहित हला - सब दिन भीखे माँगइत रहती । सब दिन तोर लोग के गोंहड़े-गोइठा करइत रहती हल । आ गुनावन न कइली हे जेकरा ला हे ? केकर ठाँव-चउका न कइली ? केकर पउता-पेहानी न ढोइली ? )    (माकेम॰28.10; 40.20)
207    गूरा (= घाव, फोड़ा) (बाकी ओहे में कोनो लइका पूछइत-पूछइत हँस देल इया कह देल 'हदरी चाची मथवा पर मेआऊँ' तो फिर देखऽ ओकर मिजाज । ... 'अरे तोर बाप के ... तोर दादा के ... तोर नाना के ...' नीचे से ऊपर ले परिछ देत, बापे-ददे उकट देत - सब फुटेहरी भूसा, सब हिसाब-किताब गूरा ।)    (माकेम॰38.7)
208    गेतहेरिन (= गीतहारिन) (केकरो साहसो न पड़े कि पूछे उनका से । एक दिन हम्मर चाची बड़ा हिम्मत बाँध के सपर के उनका से पूछ देलक - 'अयँ दाई, कतना सुघर हऽ, इतना सुन्दर गावऽ हऽ तइयो ओझवा बाबा काहे रूसल रहऽ हथु ? सुनऽ ही गेतहेरिन अउरत के मरदाना जादे मानऽ हे ।')    (माकेम॰27.4)
209    गेना (= गेंदा) (= ~ के फूल) (घर के आगू में दू-चार गो केला के पेड़ लगवले रहत । ललका गेना के फूल किनारे-किनारे । बस, जादे जंगल झाड़ी ओकरा पसन न आवे ।)    (माकेम॰46.4)
210    गेरा (= गियारी, गला) (सचमुच तड़ुका दाई के देखला पर कोई कहिए न सकऽ हे कि इनका मरदाना छोड़ देल हे । पावडर लगावथ चाहे न, काजर ऊ जरूर लगवतन, माथा गुहथ चाहे न, माँग जरूर टिकतन । गेरा में हँसुली आ हाथ में पहुँची चौबीसो घण्टा डालले रहतन ।)    (माकेम॰27.17)
211    गेहूम (= गोहूम, गोधूम, गेहूँ) (पहिल पहिलौंठ बेटी के बिआह ! ... रहल नगद के सवाल, त गेहूम-बूट सइंत के रखले हे । कुछ चानी के रुपइया भी गाड़के रखल हे ।)    (माकेम॰48.29)
212    गोंहड़-गोंइठा (पइसा कमाये में एकरो घर गिना हे गाँव में, एने एकर तरक्की देखके लोग जरे लगलन हे । जरे के एगो आउ कारन हे । अब ई अप्पन पहिलका धन्धा छोड़ देल । गोंहड़-गोंइठा अब न करे, केकरो पउता-पेहानी अब न ढोवे । जे घर-घर के दाई हल से पुरधाइन बन गेल ।)    (माकेम॰40.12)
213    गोंहड़-गोइठा (जिनगी गुजस {? गुजर} गेल बाबू तोरे लोग के गोंहड़-गोइठा करइत । आझ न बूढ़ी हो गेली हे, जवान हली त केकरो कुछ बुझऽ हली । घर-आँगन, बाहर-भीतर ले सब अकेले सँभार लेवऽ हली ।)    (माकेम॰36.10)
214    गोजरा (केकरो आम के मोजर खराब हो रहल हे, केला के फर गउँजा रहल हे - ओकर उपाय महतो जी के दलान पर लिखके टाँगल हे - धान में हरदा, मकई में खोजरा, आलू में गोजरा, साग में पोजरा लग गेल - ओकर इलाज महतो जी के दलान पर जा के पूछ लऽ ।)    (माकेम॰12.1)
215    गोठहुल (= गोठउर, गोठौर; गोइठा रखने का घर; जलावन रखने का घर, जारन घर । कहा॰ - जे न देखऽ हल गोठहुल से देखलक भुसहुल = जिसने गोइठा घर भी न देखा हो उसे भूसा घर मिल जाय; बुरी स्थिति से अच्छी दशा में आना) (अब ई अप्पन पहिलका धन्धा छोड़ देल । गोंहड़-गोंइठा अब न करे, केकरो पउता-पेहानी अब न ढोवे । जे घर-घर के दाई हल से पुरधाइन बन गेल । जे न देखलक गोठहुल से देखलक भुँसहुल ।)    (माकेम॰40.14)
216    गोतनी (घीवो देवऽ हे एक नम्मर के - कोई मिलावट न, कोई कयल-धयल न । ओहे जगा ओकर गोतनी बदनाम हे - जे एक बार लेलक से कान अईंठ लेल ।)    (माकेम॰39.21)
217    गोतिनी (घरे-बने एके रंग - पुतोह होवथ चाहे गोतिनी होवथ चाहे मलिकाइन । बिना टकरैले न रहत, उठिए सुत एक ढेला गोतिनी पर फेंकत जरूर ।)    (माकेम॰35.10, 11)
218    गोतिया-नइया (अरे बाल-बच्चा न हल, भाई-भतीजा तो हल - गोतिया-नइया तो हल । बाकी ऊ केकरो न ताकलन, आगे पीछे कुछो न सोचलन । लिखाए लगल तो बीघा के बीघा रगड़ा गेल । ई तो संजोग कहऽ कि उनकर गोतिया-नइया मिल के उनकर भतीजा के नाम से खेत अलग करवा देलन बाकी ई अप्पन धक डोलावे के आन आउ गुमान के नाम पर रहे ला एक बित्ता घरो न छोड़लन ।)    (माकेम॰57.16, 18)
219    गोर (~ भक-भक) (सरीरो हल घोड़े लेखा गठल । गोर भक-भक, रूपगर भी ओइसने ।; गोर भक-भक अनार के दाना लेखा लाल सरीर देखिए के लोग समझ जाहे कोनो संस्कारी आदमी हे ।)    (माकेम॰21.29; 55.17)
220    गोरकी (~ माटी; ~ मट्टी) (हर साल बरसात बाद घर के गोरकी माटी से लीपत, चिकनावत, दुहारी पर भइँस आ बकरी के चित्र बनावत ।; जइसने घर-दुआर के सफाई ओइसने सरीर के भी । रोज नेहायत । दूर-दूर से करिक्की माटी ले आवत - ओकरे से माथा मलत । सउँसे देह में गोरकी मट्टी लगावत । खूब मल मल के नेहायत ।)    (माकेम॰45.22; 46.12)
221    गोलगला (~ गंजी) (कतना फुरती हे सरीर में, कइसन कलाबाजी हे कमर में । कोई पेन्हावा न, कमर पर से धोती, एगो गोलगला गंजी, या या कुरता, माथ में गमछा । हँ, गमछा लाजबाब रंगीन झक-झक ।)    (माकेम॰21.12)
222    घघोटना (उनका कढ़वला पर से कोई दूसर औरत गीत कढ़ा देत त फिर का ? - ओकर मुँह नोच लेतन । ऊ टाइम अइसन घघोट के बोलतन कि बोलती बन्द । केकर मजाल कि उनका से मुँह लड़ा ले ।)    (माकेम॰24.15)
223    घड़ी-घंट (दउड़ के डोमन के बाजा ठीक कर लेवल गेल । ठाकुरवाड़ी से घड़ी-घंट आ गेल, किरतनिहा लोग जुट गेलन ।)    (माकेम॰15.27)
224    घर-दुआर (जइसने घर-दुआर के सफाई ओइसने सरीर के भी । रोज नेहायत । दूर-दूर से करिक्की माटी ले आवत - ओकरे से माथा मलत । सउँसे देह में गोरकी मट्टी लगावत । खूब मल मल के नेहायत । साबुन से ओकरा घिरना हे । जेकरा फोड़ा-फुंसी हो जायत ओकरा गोरकी मट्टी लगाके नेहाये ला सलाह देत ।; पइन उड़ाही में अगुआन होयतन ई, अखण्ड किरतन के सारा सरजाम जुटवतन ई - इनका छुट्टी कहाँ ? घर दुआर देखे ला मौका कहाँ ? एही कारन हे कि न तो घर दुआर पर ध्यान देलन न खेत-बधार पर ।)    (माकेम॰46.9; 51.13, 14)
225    घरनी (= पत्नी) (महतो जी के परिवार में उनकर घरनी के छोड़के आउ केउ न हे । ऊ सब के बेटा देलन, कतना के घर बसा देलन, डूबइत कुल के उबार देलन, बाकी अपना ला एगो कानी बेटियो न ।)    (माकेम॰13.11)
226    घवाहिल (= घायल) (दूगो बैलो रखले हथ बाकी ओकरो कोई धेयान न । एगो के सींग टूट के घवाहिल हो गेल हे त दूसरका के खोरहा धर लेल हे ।)    (माकेम॰51.21)
227    घाठी (= गोला-लाठी; गर्दन के नीचे ऊपर रखे दो लाठियों के बीच दबाकर हत्या करने का तरीका; घोड़े की जीभ और नीचे के जबड़े को कसकर हाँकने की प्रक्रिया) (लोग कहऽ हथ, महतो जी हथ कि ओकरा निबाह कर रहलन हे, दोसरा हीं रहइत त सहिए-साँझ घाठी दे देवल जाइत ।)    (माकेम॰14.14)
228    घिनाना (आँख पथरिया गेल आ ढर-ढर गिरे लगल लोर । हम्मर चाची के तो काठ मार गेल । ऊ जगा बइठल दू-चार अउरत भउँचक हो गेल । लोग बिगड़े लगलन हम्मर चाची पर । गाँव के मालूम भेल त अउरत सब एकरा घिनावे लगलन - निसोगी काहे ला पूछलई हल । ओकरा लेखा आउ केउ उछँहत न हलई । बेचारी के रोआ भरलई कातो ।; केतना के बेटा देलन, केतना के नौकरी लगा देलन बाकी ऊ सरधा-भक्ति लोग उनका खातिर न दिखवलन बलिक उलटे लोग घिनावऽ हथ ।)    (माकेम॰27.9; 30.18)
229    घींचना (= खींचना) (महतो जी के फोटो घींचल गेल । रंथी गाँव के बीच गली से निकलल ।; इनार पर कोनो अउरत के पानी घींचे ला कहतन त बाल्टी छोड़के हट जायत ।)    (माकेम॰15.29; 30.15)
230    घुँसरना (= घुँसड़ना, घुसना) (करिया भुच-भुच रीठल नादा लेखा, एक बित्ता करुआ तेल के परत जुगन से ई दिआ बरइत आ रहल हे । कतना के देह के बायमत एकरा में समा गेल हे, कतना नजर-गुजर घुँसर गेल हे एकरा में ।)    (माकेम॰31.8)
231    घुनसारी (घसेटन के अच्छत दिआ पर फेंकायल आ दिआ उठ के फिर ताखा पर । घुनसारी लेखा करिआयल दिरखा पर आके बरे लगल पहिले लेखा ।)    (माकेम॰32.13)
232    घुमरी (मथपीरी, घुमरी, सूखा आ मिरगी के जड़ी-बूटी हमेसे एकर एगो बसना में छोट-छोट काट के रखल रहत ।)    (माकेम॰38.13)
233    घुरची (= उलझन) (जाय दऽ, बोलवे न करऽ ही, त ई तो औरत के सोहाग-भाग हे । हिरदा के जे साफ रहऽ हे ओहे बोलवो करऽ हे, मन में घुरची न रहे ओहे झगड़ऽ हे ।)    (माकेम॰36.21)
234    घेंची (जे सुनल से पछतावे लगल - ओह हमहूँ रहिती त आझ डाइन के नाच देखिती न । अरे डाइन हल ! बाप रे ! बिलकुल अभी नवचेरिए तो हइए हल । उठल नाक, गोल-गोल गाल सेव लेखा, लाल फोंफी लेखा घेंची, ताड़ के कोआ लेखा आँख, बाँस के छउँकी लेखा कमर लचकावइत देख के, लमपोर सरीर, छरहर बदन, बैगनी रंग के साड़ी पेन्हले, माथ पर टिकुली साटले, माँग टिकले देख के लोग दाँते अँगुरी काटऽ हल - सरमा जा हल - केकर अउरत हे ई, कउन खानदान के इज्जत पर पानी फेर रहल हे ।)    (माकेम॰32.17)
235    घेघा (दुपहर में सतुआ खेसारिए के सही बाकी साथे पिआज जरूर चाही, सूखल पकावल मिरचाई आ आम के अँचार बिना गोला घेघा से नीचे न उतरत । एकर धेयान मालिको के रहत । ओकरा ला अलग से दू-चार बोइयाम अँचार लगाके रख दिआयेत ।)    (माकेम॰48.2)
236    घोड़हवा (कुछ बोले लाइक हथ जे बोलथ । कफन देलन सिद्धनाथ, घोड़हवा पंडित जी, रामपरपन, रामानुज त्रिपाठी आउ मास्टर साहेब । आझ अप्पन खनदाने उनका साथ देलक ।)    (माकेम॰60.7)
237    चउकड़ी (कुरता-धोती पेन्ह-पेन्ह के लोग जुट गेलन । एक चउकड़ी उहँऊ किरतन भेल ।)    (माकेम॰16.5)
238    चउका (बसमतिया चाउर के भात, रहरी के दाल, गाय के घीव, पाँच गो तरकारी ओह घड़ी केकर धक हल गाँव में खाय के, बाकी इनका ला रोज चउका के सोभा हल ।)    (माकेम॰57.4)
239    चउकोसी (चउकोसी इनकर नाम हे, सभतर इनकर परचार हे - परचार हे इनकर दिआ के, नाम हे इनकर अच्छत के ।)    (माकेम॰31.3)
240    चउघट (= चउखट, चौखट) (खैर, बाबूजी एगो पिअर धोती लेके धउड़लन दाई के घरे । जाके देखइथथ कि ऊ अप्पन चउघट पर बइठल इधरे ताक रहल हथ - कुछ गुनगुना रहल हथ ।)    (माकेम॰26.11)
241    चउठारी (गाँव में केकरो बिआह-सादी ठन जायत त महतो जी सबसे जादे परेसान । छेंका से लेके तिलक ले, मटकोड़वा से लेके मँड़वा-भतवान ले, बराती से लेके चउठारी ले महतो जी पसेने-पसेने ।; बिआह में समधी आउ समधिन जादे परेसान रहऽ हथ, बाकी उनका से कम परेसान तड़ुका दाई न रहथ । तिलक-बिआह, मड़वा आउ चउठारी के दिन ऊ सबसे जादे परेसान ।)    (माकेम॰12.18-19; 25.13)
242    चउरा (देवी के ~; महरानी जी के ~; तुलसी के ~) (जखनी ई अप्पन दलान पर पलथी मार के बइठ जा हथ, तखनी लगऽ हे कोनो गेंहुअन गेंड़ुर मारले फन उठवले फुफकार रहल हे, कोनो भगत देवी के चउरा पर देवास लगवले हे, कोनो अवघड़ आसन जमवले हे ।; उनका एगो अलगे घर हे, छोटा गो के कोठरी, ओही में दिन-रात पड़ल रहतन । आँगन में एगो इनार, अनार के एगो पेड़ आ तुलसी जी के चउरा ।; ई बइठल हलन अप्पन चउकी पर । चउकिए इनकर आसन हे, चउरा हे ।; नहियो त घुमइतो-घामइत एकर झोपड़ी में पहुँच जायत आ अप्पन छाती छोड़ाके एकर गोदी में डाल देत । लगऽ हे जइसे कोनो महरानी जी के चउरा पर अप्पन बेटा के पार देल, कोनो भगत के गोदी में उछिलावे ला दे देल ।)    (माकेम॰11.14; 27.27; 31.18; 43.14)
243    चटकारना (हदरी चाची जब तरकारी लेके चलत तब भर रहता ओठ सिकुड़ावइत आवत । रह-रह के तोपल पत्ता उघार-उघार के देखइत चलत । ... घर आके हाली-हाली मुँह धोयत आ चिभला-चिभला, चटकार के खाये लगत ।; बढ़िया मिल गेला पर खूब सिसिआयत, जीभ चटकारत आ कहत - हँ, देखऽ त ई कइसन हे ।)    (माकेम॰39.7, 11)
244    चट्टन (तनी चट्टन हे भी ऊ । तीना ला ऊ घरे-घरे घूम आयत । सबके घरे के सोवाद के सौभाग एकर जीभ के परापित हे । केकरो बिबाह-सादी इया मरनी-हरनी में सबके धेयान मड़वा पर, केकरो सेजियादान पर, बाकी एकर धेयान कड़ाही पर, कड़ाही में डालल तेल-मसाला पर ।)    (माकेम॰38.24)
245    चमचगीर (= चमचा) (इनकर कसूर न, सब उनकर साथी लोग के दोस हे, चमचगीर के - जे लोग उनकर सुभचिन्तक हलन ओहे डुबवलन ।; आँख धँस गेल, दाढ़ी लटा गेल पक के, माखी भिनिक रहल हे । के आवो ? गोतिया-नइया सब कोई हे बाकी ई बुझलन केकरा ? अप्पन चमचगीर के लागे, बदाम के एगो छिलको गोतिया-नइया के अंगना में फेंकले रहितन हल त इयाद रहीत ।)    (माकेम॰58.30; 59.22)
246    चमचागिरी (कतना इनकर साथी जे दोसर के मनी-बटइया खेत लेके जीअ हलन ऊ इनकर चमचागिरी करके खेतिहर हो गेलन ।)    (माकेम॰57.12)
247    चमरुआ (= चमरखानी, चमरौंधा; देशी चमड़े का बना) (ई दू तरह के जूता बनवऽ हलन - चमरुआ आ कुरूम के । कुरूम के जूता ला चमड़ा बहरा से मँगावऽ हलन, बाकी चमरुआ घर के चमड़ा से ।; इनकर ईहे जूता नामी हल, चमरुए जादे बिकऽ हल । पहिले लोग चमरुए पेन्हवे करऽ हलन ।)    (माकेम॰18.15, 19, 20)
248    चमोकन (ओकर कमासुत काया देखके सबके मन करऽ हे - हमरे हीं टोपड़ा पर रह जाइत, रुपया पर बँध जाइत । बाकी ओहो अइसन चमोकन हे कि जेकरा हीं सटऽ हे, छोड़े के नाम न लेवे ।)    (माकेम॰47.17)
249    चर (सबके ला ऊ मकान एगो नमूना हे । निपल-पोतल-चिकनावल अइसन सुघर लगऽ हे जइसन चर में नया कनियाँ ।)    (माकेम॰13.10)
250    चरउरी (अदउरी-तिसिअउरी, दनउरी-चरउरी हिनका हीं जरूर मिल जायत । बोइआम में रखल एक से एक अँचार - आम के, लेमो के, इमली के, मिरचाई के, कटहर आउ करइला के, आलू आउ मुरई के - इनकर अलमारी के सोभा बढ़ावइत रहऽ हे ।)    (माकेम॰13.28)
251    चरघरवा (चरघरवा के आगे के टिकऽ हे । सामना सामनी ताकत के अजमाइस हो गेल । मामला हो गेल सान्त ।)    (माकेम॰61.16-17)
252    चलती (~ चलाना) (काम ऊ करऽ हल अप्पन मन से - केकरो औडर से न । कभी मँझिला मालिक से ओकरा झगड़ा हो जा हल काहे कि ऊ चलती चलावऽ हलन, औडर जनावऽ हलन जादे ।)    (माकेम॰63.30)
253    चह (= कुआँ; गड्ढा; चहुआ दाँत) (चीलर के ~ उखाड़ना) (कतनो बात पूछऽ, चीलर के चह उखाड़ऽ - बाकी ऊ काहे ला अप्पन आसन से डोलथ ।)    (माकेम॰11.20)
254    चांस (ठीक सात बजे उनकर ध्यान टूटल तब ले लोग के भीड़ के सुमार न । पहिले चांस में हम उनका से मिलली ।)    (माकेम॰33.9)
255    चाउर (= चावल) (सब मुँह के बक्सा में दिमाग के टेलीप्रिन्टर में सँइतल हे । जखनी मन करे तखनी सूद के हिसाब, चाउर के दाम, नेवारी के कीमत पूछ लऽ ।; बसमतिया चाउर के भात, रहरी के दाल, गाय के घीव, पाँच गो तरकारी ओह घड़ी केकर धक हल गाँव में खाय के, बाकी इनका ला रोज चउका के सोभा हल ।)    (माकेम॰37.27; 57.3)
256    चान (= चाँद) (उनकर दलानो बड़ा रोखगर, हवादार - पहिल किरिन से नेहाय ओला, चान से गमगाये ओला - गाँव के सबसे पूरुब हे ।; इँजोरा तो पूनमासी के चाने करत बाकी तइयो दूज के चाँद के महत्त्व हे, एकर अप्पन गरिमा हे ।)    (माकेम॰13.2; 23.26)
257    चानक (अचानक उनकर दिआ बुता गेल । इनका चानक भेल - कोई भेवे आ गेल । ई उठल चाहलन बाकी उठिए न हो आये ।)    (माकेम॰31.20)
258    चानी (= चाँदी) (पहिल पहिलौंठ बेटी के बिआह ! ... रहल नगद के सवाल, त गेहूम-बूट सइंत के रखले हे । कुछ चानी के रुपइया भी गाड़के रखल हे ।; ई तरह से कोनों-न-कोनों जोगाड़ बइठा के उनकर काम चानी हो जायत ।)    (माकेम॰48.29; 54.8)
259    चापाकल (आझ दमा उपटल आ कल्ह तेवरनी के झोपड़ी में । कल्ह बोखार लगल आ परसो परसीद सीन के चापाकल पर पहुँच जायत ।)    (माकेम॰41.12)
260    चाही (= चाहिए) (माथ में ओकरा रेंड़ी के तेल जरूर चाही । चोटी एके गो गूहत बाकी बढ़िया चोटी से ।; हाथ में चूड़ी दुइए गो रहे बाकी टिकाऊ होवे के चाही - बरते-तेवहार में बदलायत ।)    (माकेम॰46.15, 20)
261    चिचिआना (घरे-बने एके रंग - पुतोह होवथ चाहे गोतिनी होवथ चाहे मलिकाइन । बिना टकरैले न रहत, उठिए सुत एक ढेला गोतिनी पर फेंकत जरूर । जादे चिचिअयलन त एकाध डण्टा दे देत ।)    (माकेम॰35.12)
262    चिताने (~ पड़ना) (आज कइयक दिन से महतो जी खाट धइले हथ । जे गाँव-जेवार के खपड़ो-झिटकी से समाचार पूछऽ हल - आज चिताने पड़ल हे । सावँग हे त जान हे, जिनगी हे त जहान हे ।; देखली कि जागा डग्घर पर चिताने परल हथ । उनकर मुँह से गाद निकल रहल हे ।)    (माकेम॰15.2; 64.13)
263    चित्ते (= चिताने) (आझ धक बाबा अप्पन जमीन पर नयँ, दोसर के जमीन पर चित्ते लेटल हथ । उनकर भतीजा सिद्धनाथ फूट-फूट के रो रहल हे । पुतोह घर में भोंकार पार के छाती पीट रहल हे ।)    (माकेम॰59.30)
264    चिभलाना (= चम्हलाना)  (हदरी चाची जब तरकारी लेके चलत तब भर रहता ओठ सिकुड़ावइत आवत । रह-रह के तोपल पत्ता उघार-उघार के देखइत चलत । ... घर आके हाली-हाली मुँह धोयत आ चिभला-चिभला, चटकार के खाये लगत ।)    (माकेम॰39.7)
265    चिरकाना (= चिढ़ाना) (बइगन-भण्टा के तरकारी में ओकर रूच जादे रहऽ हे । एही लेल लइकन ओकरा 'बइगन' कहके चिरकयबो करऽ हथ ।)    (माकेम॰39.13)
266    चिहकल (= चिसकल; थोड़ा फटा हुआ) (कोई चिहकल कुरती सिआवे आवइथे त कोई खोंच लगल लुगा मखवाइथे ।  कोई माथा गुहावे आयल हे त कोई ढील हेरावे ।)    (माकेम॰49.11)
267    चूटी (= चींटी) (हुक्का से उनका बड़ा प्रेम हल - ओतने जतना चूटी के चीनी से, मधुमक्खी के मध से आउ बिलाई के मलाई से ।)    (माकेम॰23.6)
268    चूड़ा (= चिवड़ा) (कोई मड़ुआ के रोटी खिला रहल हे, कोई नयका धान के चूड़ा फँका रहल हे । केकरो हीं भूँजा, केकरो हीं फुटहा जरूर मिलत इनका । ई सब इनकर जूता के इनाम हे, काम आउ कला के मजूरी हे ।)    (माकेम॰20.27)
269    चोरा (~ समाना) (केकरो चोरा समा गेल हे, ई झार देत । झूठा धयले हे, छोड़ा देत । केकरो अँगुरी मुरक गेल हे, माँड़ देत । लइका के गड़हन लगल हे, ठीक कर देत ।)    (माकेम॰49.16)
270    चोरी-चमारी (उनके प्रभाव हे कि गाँव में आझ ले चोरी-चमारी न भेल । आझ ले एगो खेरो न खरकल । खेत में कोई पलानी न गिरावत, खरिहान में कोई अगोरी न करत ।)    (माकेम॰52.29)
271    छउँकी (जे सुनल से पछतावे लगल - ओह हमहूँ रहिती त आझ डाइन के नाच देखिती न । अरे डाइन हल ! बाप रे ! बिलकुल अभी नवचेरिए तो हइए हल । उठल नाक, गोल-गोल गाल सेव लेखा, लाल फोंफी लेखा घेंची, ताड़ के कोआ लेखा आँख, बाँस के छउँकी लेखा कमर लचकावइत देख के, लमपोर सरीर, छरहर बदन, बैगनी रंग के साड़ी पेन्हले, माथ पर टिकुली साटले, माँग टिकले देख के लोग दाँते अँगुरी काटऽ हल - सरमा जा हल - केकर अउरत हे ई, कउन खानदान के इज्जत पर पानी फेर रहल हे ।)    (माकेम॰32.18)
272    छउनी (दू हप्ता पहिले ऊ बसावन सीन के गाँज गाँजइत हलन । बड़का गाँज हल । अचानक छउनी से कुछ अँटिया खरकल आउ महतो जी के गोदी में साटले जमीन पर आ गेल । महतो जी के भारी चोट पहुँचल । लोग टाँग-टुँग के उनका अस्पताल पहुँचवलन ।; जेठ-बइसाख के महीना में ऊ माटी ढोवत, थपुआ पारत, आँवा लगाके खपड़ा पकावत । हर साल छप्पर के छउनी करावत ।)    (माकेम॰15.4; 45.20)
273    छकित (~ खाना) (खेत-खरिहान के लोग अलगहीं से बुझ जयतन - मुनारिक के माय आ रहल हे । बोझा ढोवऽ हे, लगऽ हे टमटम के सवारी आ रहल हे । सुखदेव सुतले रहतन तब ले ऊ बोझा खोल के कउँर देत, ऊ आवे-आवे करतन तब ले बैल नाध के ठीक । एने ई बैल हाँकतन, ओने ऊ चूल्हा जोरत । एने ई बैल खोलतन ओने ऊ सूप लेके तइयार । लोग देख के छकित खा हथ ।)    (माकेम॰45.1)
274    छकुनी (आझ हम जउन रूप में ही - जउन राह पर चलइत ही - कला आउ साहित्य के राह, कल्पना आउ विचार के राह, ऊ बतावल हे परम पूज्य गुरुदेव श्री कामता सिंह के जिनकर बकुली आउ छकुनी के इयाद अभी तक भुलायल न हे ।)    (माकेम॰5.17)
275    छड़ी (अइसन हल उनकर दिआ आ ओकर करामात । जे आवत सेकरा देखइत खानी दिआ पर तकवतन । जे ताकइत रह गेल समझऽ ओकर नजरावल हे - बायमत जोतल हे इया कोई-न-कोई छड़ी देह धयले हे ।)    (माकेम॰32.24)
276    छत (~ पीटना) (जेकरा ऊ दूध पिलवलक से मुनारिके लेखा पट्ठा कमासुत निकलल । ... चमरू के तीनों बेटा तीन लाख के । तट-उपट कमाये में । तीनो कोइलवरी में पइसा पीट के धर देलक । ... नूरी के पाँच बेटा - पाँचो पाँच पाण्डव, दलान के पाँच खम्भा । बिड़िये के बिजनेस से छत पीट देल ।)    (माकेम॰43.25)
277    छनकना (एकरा पास एगो बड़का मंतर हे - टोटड़म के मंतर । केकरो लांघन पड़ गेल हे, ई ठीक कर देत । केकरो भइँस के दूध छनक गेल हे, ई उतार देत । केकरो थनइल हो गेल हे, ई झार देत ।)    (माकेम॰38.12)
278    छनवाना (मउनी बिनवावऽ इनका से, खटिया छनवावऽ इनका से । एक से एक गँरउरी, जाब, मोहरी, नाधा-जोती, सिकहर इनका से बनवा लऽ - एको पइसा खरच न - नौ नगद न तेरह उधार । महतो जी हइए हथ त एकर सवाले कहाँ उठऽ हे ?; मउनी-दउरी छनवावऽ एकरा से, लेदरा बइठवावऽ एकरा से ।)    (माकेम॰12.11; 49.10)
279    छरहर (~ बदन) (जे सुनल से पछतावे लगल - ओह हमहूँ रहिती त आझ डाइन के नाच देखिती न । अरे डाइन हल ! बाप रे ! बिलकुल अभी नवचेरिए तो हइए हल । उठल नाक, गोल-गोल गाल सेव लेखा, लाल फोंफी लेखा घेंची, ताड़ के कोआ लेखा आँख, बाँस के छउँकी लेखा कमर लचकावइत देख के, लमपोर सरीर, छरहर बदन, बैगनी रंग के साड़ी पेन्हले, माथ पर टिकुली साटले, माँग टिकले देख के लोग दाँते अँगुरी काटऽ हल - सरमा जा हल - केकर अउरत हे ई, कउन खानदान के इज्जत पर पानी फेर रहल हे ।)    (माकेम॰32.19)
280    छाँपी (एक ~ घास) (कहनामो ओकर ठीके हे । जतना बोलऽ हे ओकरा से जादे करबो करऽ हे । सब कोई सुतलहीं रहतन, ऊ उठके भईंस के सान्ही-पानी करे लगत । पुतोह चुल्हा धरावत तब ले ऊ एक छाँपी घास गढ़ के ले आवत । बूढ़ी हो गेल हे बाकी अबहियों ओही फुरती हे एकर देह में ।)    (माकेम॰37.1)
281    छिलबिलाना (गाँव के अउरत कभी-कभी कह बइठऽ हे - 'हँ हे हदरी, अब तू ओहे हऽ । बेटा-पोता अफसर बन गेलवऽ, अब तू हमनी के पउता-पेहानी ढोयेबऽ । अब तो घरो-आँगन आयल छोड़ देलऽ ।' ... ई सुनके ओकर मन छिलबिला जायत । लोछिया के कहिए बइठत - 'हँ जी, त का चाहित हला - सब दिन भीखे माँगइत रहती । सब दिन तोर लोग के गोंहड़े-गोइठा करइत रहती हल ।...')    (माकेम॰40.17)
282    छेंउकाना (जउन घड़ी तरकारी छेंउकायत ओ घड़ी ऊ अजबे गीत रेघवतन, अँगना में तिलक कम मिलला पर लइका के बाप इया भाई तड़ंग-फड़ंग बान्ह रहल हे, ऊ अइसन गीत ठानतन कि सबके खीस ठण्ढा - सबके क्रोध जमके बरफ हो जायत ।)    (माकेम॰24.31)
283    छेंका (गाँव में केकरो बिआह-सादी ठन जायत त महतो जी सबसे जादे परेसान । छेंका से लेके तिलक ले, मटकोड़वा से लेके मँड़वा-भतवान ले, बराती से लेके चउठारी ले महतो जी पसेने-पसेने ।; केकरो बिआह होवे इया गवना, छेंका होवे इया तिलक, मड़वा होवे इया भतवान - हर समय उनकर हाथ में पैना लेखा हुक्का तइयार रहऽ हल ।)    (माकेम॰12.18; 23.3)
284    छेंका-तिलक (केकरो छेंका-तिलक में महतो जी के बोलाहट भेल, इधर एकर भोंपा बजे लगत ।)    (माकेम॰14.9)
285    छेमा (= क्षमा) (बाबूजी अप्पन पगड़ी धरके गोड़ पर धोती रखके आसिरवाद माँगलन, हाथ जोड़के छेमा माँगलन । तब ऊ अयलन हमरा परिछे ।)    (माकेम॰26.14)
286    छोटका (पाँच गो पोता - बड़का के देह से तीन गो आ छोटका के दूगो । बड़का के एगो किरानी आ एगो ओभरसियर, छोटका कवलेजिया ।; छोटका बेटा एकरा मानऽ हे जादे । छोटकी पुतोह से पटरी न रहे ।)    (माकेम॰40.9; 41.3)
287    छोटकी (फिर रंथी उहाँ से उठल त छोटकी अहरा पर दे होवइत मँझउली के संडक पकड़ लेल ।; छोटका बेटा एकरा मानऽ हे जादे । छोटकी पुतोह से पटरी न रहे ।)    (माकेम॰16.6; 41.3)
288    जंतर (= यन्त्र) (उनकर रंथी ढोवे में लोग पुन समझथ । उनकर कफन फारके जंतर बनावे ला रख लेवल गेल ।)    (माकेम॰29.27)
289    जखनी (= जिस समय, जब) (जखनी ई अप्पन दलान पर पलथी मार के बइठ जा हथ, तखनी लगऽ हे कोनो गेंहुअन गेंड़ुर मारले फन उठवले फुफकार रहल हे, कोनो भगत देवी के चउरा पर देवास लगवले हे, कोनो अवघड़ आसन जमवले हे ।; सब मुँह के बक्सा में दिमाग के टेलीप्रिन्टर में सँइतल हे । जखनी मन करे तखनी सूद के हिसाब, चाउर के दाम, नेवारी के कीमत पूछ लऽ ।)    (माकेम॰11.13; 37.27)
290    जगा (= जगह) (आँख पथरिया गेल आ ढर-ढर गिरे लगल लोर । हम्मर चाची के तो काठ मार गेल । ऊ जगा बइठल दू-चार अउरत भउँचक हो गेल । लोग बिगड़े लगलन हम्मर चाची पर । गाँव के मालूम भेल त अउरत सब एकरा घिनावे लगलन - निसोगी काहे ला पूछलई हल । ओकरा लेखा आउ केउ उछँहत न हलई । बेचारी के रोआ भरलई कातो ।; घीवो देवऽ हे एक नम्मर के - कोई मिलावट न, कोई कयल-धयल न । ओहे जगा ओकर गोतनी बदनाम हे - जे एक बार लेलक से कान अईंठ लेल ।)    (माकेम॰27.7; 39.21)
291    जतन (= यत्न) (माय होवे त अइसन आ बेटा होवे त अइसन । एकरा पढ़ावे ला ऊ कउन जतन न कयलक ? जउन घड़ी ओकर मरदाना के पैंतालीस रुपया मिलवऽ हल ओकरे में खयबो-पीबो करऽ हल आ बेटा के पढ़वनियो । पेट काट के, मन जाँत के कालेज ले ठेका देल । टरेनी करवा देल ।)    (माकेम॰42.8)
292    जनकार (= जानकार) (आझ कोनो साइंस पढ़वैया हिसाब के जनकार से कोनो हिसाब पूछल जाव - पन्ना के पन्ना रंग देतन, पोथी के पोथी लिख डालतन तइयो सही उत्तर निकले में सके होयत बाकी एकर फुटेहरी ला कोई किताब-कौपी के जरूरत न, कोई कागच-पिन्सिट के आवश्यकता न ।)    (माकेम॰37.23)
293    जनावर (= जानवर) (सालो भर खूँटा पर एगो जनावर जरूर रखत । कहीं से मोल, कहीं से बटइया-तेहइया लाके पालत । बड़ा मिहनत करके सान्ही-पानी देके पोसत बाकी गाभिने में बेच देत ।)    (माकेम॰47.8)
294    जने (= जन्ने; जिधर) (ई तो बेचारे अनपढ़ हइए हलन, गाँव के पढ़लो-लिखल लोग एकरा पर धेयान न देलन । जने गेलन ओने अप्पन कला आ ईमान लेले गेलन ।)    (माकेम॰18.28)
295    जर (= जड़) (सब ओकरे दूध पिलावल, ओकरे गोदी में खेलावल । कतना गिनावल जाव, कोंहड़ा के फर लेखा एक पर एक लोंघड़ल हे, सउँसे गाँव के चप्पर पर पसरल हे, दूब के जर आउ पपीता के फर लेखा गिनले न गिनाये ।)    (माकेम॰44.3)
296    जरना (= जलना; ईर्ष्या करना) (पइसा कमाये में एकरो घर गिना हे गाँव में, एने एकर तरक्की देखके लोग जरे लगलन हे । जरे के एगो आउ कारन हे । अब ई अप्पन पहिलका धन्धा छोड़ देल । गोंहड़-गोंइठा अब न करे, केकरो पउता-पेहानी अब न ढोवे । जे घर-घर के दाई हल से पुरधाइन बन गेल ।)    (माकेम॰40.11)
297    जरासंधी (बात के ~ अखाड़ा) (उनका कढ़वला पर से कोई दूसर औरत गीत कढ़ा देत त फिर का ? - ओकर मुँह नोच लेतन । ऊ टाइम अइसन घघोट के बोलतन कि बोलती बन्द । केकर मजाल कि उनका से मुँह लड़ा ले । बात के जरासंधी अखाड़ा में ओकरा बिना पटकले न छोड़तन ।)    (माकेम॰24.16)
298    जलम-कुण्डली (कोई बात इयाद करे में ई बड़ा तेज । कोई लिखा-पढ़ी न, कोई बही-खाता न, बाकी सब सही - सब कण्ठस्थ । केकर बिआह कहिया भेल, केकर जनम कउन महीना, कउन निछतर, कउन दिन, कै बजे भेल - सबके जलम-कुण्डली एकर माथ में ।)    (माकेम॰37.15)
299    जलसा (ऊ एगो हरवाहिए न करऽ हल, इनकर घर के सब काम सवाँग लेखा सम्भारऽ हल । हर परब-त्योहार में, जलसा आउ उत्सव में ओकरा नया-नया कपड़ा, बढ़िया-बढ़िया भोजन, खुसी में मिठाई खिलावल जा हल ।)    (माकेम॰63.19)
300    जस (= यश) (सरस्वती के किरपा भेल - इनकर जस के पताखा अकास-पताल खिल गेल । बाकी लछमी का जाने काहे इनका से बिदुकल रह गेल । इनकर अरजल सम्पत्ति से एगो बछेड़ियो साल भर बइठ के मजा से पेट न भर सकऽ हे ।)    (माकेम॰13.20)
301    जस-किरती (= यश-कीर्ति) (महतो जी खूब धन अरजलन - परलोकी धन । जस-किरती खूब कमयलन, खूब नाम के पताका फहरयलन, बाकी धरती-धन न अरजलन ।)    (माकेम॰13.17)
302    जहिया (= जिस दिन) (जहिया केकरो बराती आ जायत तहिया उनकर पिअरी धोती गाँव-गाँव के कोने-कोने में फहर जायत, उनकर माथ के पगड़ी आ झुलंक कुरता देख के सबके मन अगरा जायत ।; केकरो बिआह में इनका पिअरी देखके ओकर मुँह के पिअरी छिठक जायत ।)    (माकेम॰12.21; 14.11, 12)
303    जाँतना (माय होवे त अइसन आ बेटा होवे त अइसन । एकरा पढ़ावे ला ऊ कउन जतन न कयलक ? जउन घड़ी ओकर मरदाना के पैंतालीस रुपया मिलवऽ हल ओकरे में खयबो-पीबो करऽ हल आ बेटा के पढ़वनियो । पेट काट के, मन जाँत के कालेज ले ठेका देल । टरेनी करवा देल ।; हई ल एगो झूला, जाँत ल काँख तर न त छोटकी देखतवऽ त हल्ला करे लगतवऽ - ओकरे नइहर से अलवह हे ।)    (माकेम॰42.10; 64.8)
304    जात-परजात (काहे छोड़लन ओझवा बाबा इनका, ई पता आझ ले केकरो न चलल । हँ, अपना-अपना उकुत से लोग अनुमान लगावऽ हे । कोई कहऽ हे उनका पसन्दे न भेलन । कोई कहऽ हे, ओझई-गुनई में मतिए मरा जाहे । कोई कहऽ हे बढ़ामनी होके घरे-घरे, जाते-परजाते दउड़ल फिरऽ हलन ।)    (माकेम॰26.28-29)
305    जाब (मउनी बिनवावऽ इनका से, खटिया छनवावऽ इनका से । एक से एक गँरउरी, जाब, मोहरी, नाधा-जोती, सिकहर इनका से बनवा लऽ - एको पइसा खरच न - नौ नगद न तेरह उधार । महतो जी हइए हथ त एकर सवाले कहाँ उठऽ हे ?)    (माकेम॰12.11)
306    जिरवानी (= जिरमानी; भूने हुए जीरा से बनाया गया पेय; जीरे की छौंक) (इनकर दही-दूध, जिरवानी डालल मट्ठा, जड़ी-बूटी के नोस्खा, महरानी जी के भभूत, गोरैया के सिरवानी, महबीर जी के पेड़ा, गनेस जी के लड्डू, बरहम बाबा के अच्छत, ठाकुर जी के मनभोग - इनकर एक-से-एक करामात से लोग नेहाल हो गेलन ।)    (माकेम॰11.4)
307    जीअल (धक बाबा के जीअल बेकार हे । मरतन त इनका कफनो मिलत की न भगवाने जानइत होयतन । आझ इनकर दुख सुने ओला कोई न ।)    (माकेम॰59.18)
308    जुदागी (= जुदाई) (कलट्टर काका के दू बेटा - दूनो दू लाख के । बड़का महामाया आ छोटका कपूरी । महामाया सरीर से कदराह आ कपूरी सोभाव से कनपातर । बड़का गरबैल लेखा दिन-रात पड़ल रहत आ छोटका एने के बात ओने करइत रहत । कतना के ई कपार फोड़वा देल, कतना के बसल घर जुदागी करवा के उजाड़ देल ।)    (माकेम॰51.4)
309    जेकरा (= जिसे, जिसको) (जइसहीं मंजिलाहा लोग गाँव में पैर धयलन कि सउँसे गाँव में पिपकार मच गेल । जेकरे देखऽ सेकरे आँख डबडबायल ।; साबुन से ओकरा घिरना हे । जेकरा फोड़ा-फुंसी हो जायत ओकरा गोरकी मट्टी लगाके नेहाये ला सलाह देत ।)    (माकेम॰16.20; 46.11)
310    जेह (= जे; जो) (जेह ... ओह) (मुनारिक हरवाहा न, सवांग हे सवांग - ई बात सब कोई समझऽ हे । जेह दिन ऊ जेकर देह धरत ओह दिन ओकरा हीं खूब बन-ठन के बनत । सगुन के दिन ओकरा धोती, अंगा आउ गमछा जरूर मिलत ।)    (माकेम॰48.5)
311    जोगाड़ (~ बइठाना) (ई तरह से कोनों-न-कोनों जोगाड़ बइठा के उनकर काम चानी हो जायत ।)    (माकेम॰54.8)
312    जोतिसी (= ज्योतिषी) (तनी हमरो कुछ देख देवल जाव । कुछ हे त झार-फूंक कर देवल जाव । अतना कहना हल कि ऊ बके लगलन जइसे सूई चढ़ावइते रेकार्ड बजे लगऽ हे, जोतिसी लिलार देखइते बके लगऽ हे ओइसहीं ई बके लगलन । देखिवऽ का ? पूरुब माहे घर के दुआरी हवऽ, आगे शंकर जी के मन्दिल हवऽ जे संकट हलवऽ से कट्टिस हो गेलवऽ ।)    (माकेम॰33.13)
313    जोरना (= जोड़ना) (चूल्हा ~) (कहत - माय बड़ा दुख कयले हे । ऊ दिन हमरा इयाद हे - पानी पड़इत हल । चूल्हा जोर के बड़की भउजी हीं पइँचा आटा ला गेले हल । बाकी त उधर से आटा के जगह पर भर कटोरा लोर लेले अयले हल ।)    (माकेम॰41.27)
314    झँखना (बड़का गरबैल लेखा दिन-रात पड़ल रहत आ छोटका एने के बात ओने करइत रहत । कतना के ई कपार फोड़वा देल, कतना के बसल घर जुदागी करवा के उजाड़ देल । महमाया दिन के नाँवे झँखइत रहत । कलट्टर काका देख-देख के कनमनाइत रहतन, मने-मने कुड़बुड़ाइत रहतन, बाकी करथ का ? ई दोस केकर हे ? घोड़ा आ बेटा बिना कसले बेहाथ हो ही जाहे ।)    (माकेम॰51.5)
315    झक-झक (रंगीन ~) (कतना फुरती हे सरीर में, कइसन कलाबाजी हे कमर में । कोई पेन्हावा न, कमर पर से धोती, एगो गोलगला गंजी, या या कुरता, माथ में गमछा । हँ, गमछा लाजबाब रंगीन झक-झक ।)    (माकेम॰21.13)
316    झटाझट (जखनी मन करे तखनी सूद के हिसाब, चाउर के दाम, नेवारी के कीमत पूछ लऽ । झटाझट ओकर मुँह से निकल जायत - टेलीप्रिन्टर भी फेल । ऊ एक से एक फुटहे जानऽ हे ।)    (माकेम॰37.28)
317    झमठगर (एगो नीम के पेड़ हे ऊ कमाल के पेड़ हे । ओकर छाया तर दूपहर में बइठे ला लोग ललकल रहऽ हे । ओकर बीया से ई तेल निकलवावऽ हे । हँ, डउँघी-छउँकी न छूये देत, दतुअन ओकरा से न करे देत । एही लेल खूब झमठगर हे ।)    (माकेम॰46.8)
318    झरुआ (= झारू, झाड़ू) (ई कहूँ से थकाल-फेदायल अवतन, ऊ झरुआ लेके बहारे लगत । पेन्ह-ओढ़ के कहीं जाय लगतन, मतुहायल पानी माँगतन, ऊ भरल गगरा के पानी उझिल देत ।)    (माकेम॰54.15)
319    झार (सूप खूँटी में न टँगायल, बढ़नी पार के न रखायल, चूल्हा न लिपायल, कोठ के मान न मुनायल एकरा ला बिसहन हुरकुच्चा । हुरकुच्चा सुनइत-सुनइत ऊ हेहर हो गेल । जान-बूझ के बहिर बनल रहत । तइयो कभी-कभाल एकाध झार देही देवत ।; बहिया बयल लेखा खटइत रहत तइयो चार झार मालिक के सुनहीं पड़ऽ हे ।)    (माकेम॰35.21; 41.21)
320    झारना (चाहे लोग जे कहो, ई कतना के पीठ दाग के सुकरमांस झारले होयतन । बायमत-चुड़ैल उतार के कतना के कोख भरले होयतन । कोई खरचा न, कोई दाम-कउड़ी न ।)    (माकेम॰33.31)
321    झार-फूंक (तनी हमरो कुछ देख देवल जाव । कुछ हे त झार-फूंक कर देवल जाव ।)     (माकेम॰33.11)
322    झिटकी (आज कइयक दिन से महतो जी खाट धइले हथ । जे गाँव-जेवार के खपड़ो-झिटकी से समाचार पूछऽ हल - आज चिताने पड़ल हे । सावँग हे त जान हे, जिनगी हे त जहान हे ।; लोग कहऽ हथ जब कोई एकरा से न बोले त गली-कूची के झिटकी से लड़त, गाछ-बिरीछ से टकरायत ।)    (माकेम॰15.2; 35.27)
323    झुलंक (= झोलंगा) (जहिया केकरो बराती आ जायत तहिया उनकर पिअरी धोती गाँव-गाँव के कोने-कोने में फहर जायत, उनकर माथ के पगड़ी आ झुलंक कुरता देख के सबके मन अगरा जायत ।)    (माकेम॰12.22)
324    झुला (भले केकरो खुसी भेल - एगो लुगा पेन्हा देल, केकरो लाज लगल - एगो झुला सिआ देल । बाकी ऊ अपने से माँगे न जायत । हूँ, हलुआ-बतीसा न मिलला पर, बड़का होवथ इया छोटका, दूस देत जरूर - 'बेटा भेलवऽ आ तनी हलुओ न खिलवलऽ, तनी बतीसो न चिखवलऽ ।')    (माकेम॰38.21)
325    झूठा (~ धरना) (केकरो चोरा समा गेल हे, ई झार देत । झूठा धयले हे, छोड़ा देत । केकरो अँगुरी मुरक गेल हे, माँड़ देत । लइका के गड़हन लगल हे, ठीक कर देत ।)    (माकेम॰49.16)
326    टँठगर (त अइसन हे मुनारिक के माय - सानवाला औरत, गुमानवाला मतारी । अभी जिन्दा हे । सरीर से टँठगर, मिजाज से दुरुस्त लगऽ हे ।)    (माकेम॰50.2)
327    टटका (= ताजा) (खाये-पीये में सवखीन महतो जी सालो भर गाय रखतन । टटका छोड़ के बासी पर नजरो उठा के न देखथ ।)    (माकेम॰14.22)
328    टरेनी (= ट्रेनिंग) (केकरो बोलहटा पड़े इया न, इनका जरूर पड़त - स्पेसल अदमी भेजल जायत बोलावे ला । का जनी उनका कहाँ से अतना गीत आवऽ हे । गीत गावे के न कहूँ टरेनी कयलन न कहूँ संगीत विद्यालय में पढ़लन-लिखलन ।; माय होवे त अइसन आ बेटा होवे त अइसन । एकरा पढ़ावे ला ऊ कउन जतन न कयलक ? जउन घड़ी ओकर मरदाना के पैंतालीस रुपया मिलवऽ हल ओकरे में खयबो-पीबो करऽ हल आ बेटा के पढ़वनियो । पेट काट के, मन जाँत के कालेज ले ठेका देल । टरेनी करवा देल ।)    (माकेम॰24.21; 42.10)
329    टसकना (जागा धन के भूखल न, मान आउ सम्मान के भूखल हल । पीढ़ा पर बइठा के ओकरा के खिलावत के ? मुसहर के खटिया पर के बइठावत ? ... पंडित जी हीं ओकरा साथे छुआछूत, ऊँच-नीच के कभी व्यवहार न भेल । ई लेल ऊ कभी उनका हीं से न टसकल ।)    (माकेम॰62.32)
330    टहल-टिकोरा (घोड़ा आ बेटा बिना कसले बेहाथ हो ही जाहे । ई कसथ त कइसे ? - दूसर के काम से छुट्टी होवे तब न , समाज सेवा से फुरसत मिले तब न । अपने तो दिन-रात दूसरे के टहल-टिकोरा में लगल रहतन - आझ मुसमतवा के खेत लिखावे जा रहल हे, त कल्ह ढोंढ़ा के सिमेन्ट के परमिट लेवे ला हे ।)    (माकेम॰51.9)
331    टाँगना-टुँगना (दू हप्ता पहिले ऊ बसावन सीन के गाँज गाँजइत हलन । बड़का गाँज हल । अचानक छउनी से कुछ अँटिया खरकल आउ महतो जी के गोदी में साटले जमीन पर आ गेल । महतो जी के भारी चोट पहुँचल । लोग टाँग-टुँग के उनका अस्पताल पहुँचवलन ।)    (माकेम॰15.5)
332    टाँठ (अब ई बूढ़ी हो गेल हे, थक गेल हे बाकी ओकर हदर अबहियो टाँठे हे ।)    (माकेम॰41.9)
333    टिकरी (= आटे का चिपटा गोल मीठा पकवान; आटे की एक गोलाकार चिपटी मिठाई, छोटा टिक्कड़)  (आ एक खोंइछा पुआ-पकवान, टिकरी कसार उझिल देव हल ओकर अँचरा में - जइसे बेटी बिदा करे के टाइम में माय देव हे ।)    (माकेम॰64.10)
334    टिकुली-सेन्नुर (कोई जरूरी हे कि जेकरा खरीदे ला हे ओही मेला जाय ? बल्कि ऊ तो आझ ले लहठी-चूड़ी आउ टिकुली-सेन्नुर छोड़के कुछो न खरीदलक । हँ, पथलौटी जरूर खरीदत । चटनी के ऊ सौखीन जादे हे, आ पथलौटी में चटनी खराब न होवे ।)    (माकेम॰46.25)
335    टिटकारना (बैल के जोड़के आगे हाँक देत पीछे से अपने अरउआ लेले टिटकारइत दनदनायल पहुँच जायत खेत पर ।)    (माकेम॰47.23)
336    टिटकारी (~ मारना) (जखनी ऊ लगना पर हाथ धरत तखनी बैल बिना टिटकारी मारलहीं फुरदुंगी हो जायत ।)    (माकेम॰47.30)
337    टिनोपाल (का जनी ऊ कउन टिनोपाल लगावऽ हथ, कउन साबुन घँसऽ हथ । गोड़ के नोंह जरूर रँगतन, आसिन में मेंहदी जरूर लगवतन । लोग कहऽ हथ ई पूरबीला के इनकर चूक हे न त के कहत कि इनका मरदाना तेयागले हे ।)    (माकेम॰27.23)
338    टिसनी (= ट्यूशन) (दूगो बेटा - दूनो कमासुत । एगो खेती-गृहस्थी में आ एगो पढ़उनी में । सात सौ अलावे टिसनी अलग । मास्टर गजटेड आफिसर, पइसा पीट रहल हे ।)    (माकेम॰40.3)
339    टीप-टौप (कला के जिन्दा रखे ला कदउटी चाही, ईमान के बचावे ला इन्सान चाही । आझ तो न कसउटी हे न इन्सान । त हे का ? - खाली देखावटी, बनावटी - ऊपर ढोल भीतर से पोल । टीप टौप जादे । देखादेखी सब डलडे में छना रहल हे, बिना दूधे के पकवान बन रहल हे ।)    (माकेम॰22.17)
340    टील्हा (= टीला) (अलगे से देखला पर लगवे न करे कि ऊ औरत हे । मुठानो कुछ ओइसने मरदाना लेखा - लमा-चौड़ा मुँह, टील्हा लेखा उठल लिलार, मुगदर लेखा मोटे-मोटे बाँह, ताड़ लेखा कमर, सिलउट लेखा छाती, लम्ब-धड़ंग छव फुट ।)    (माकेम॰44.17)
341    टुनकी (कखनियो कोई अप्पन गोरू के दवाई पूछे ला आवऽ हे, त कखनियो अप्पन बकरी के टुनकी बेमारी के इलाज ला ।)    (माकेम॰11.25)
342    टूअर-टापर (एहो चल जयतन नौकरिए में त गाँव के देखत ? टूअर-टापर के देखभाल के करत ? सब केउ सहरे में भाग जायत त इनको तो इहाँ रहे दऽ । इहाँ के रहत, भूत ?)    (माकेम॰55.27)
343    टोटड़म (~ के मंतर) (एकरा पास एगो बड़का मंतर हे - टोटड़म के मंतर । केकरो लांघन पड़ गेल हे, ई ठीक कर देत । केकरो भइँस के दूध छनक गेल हे, ई उतार देत । केकरो थनइल हो गेल हे, ई झार देत ।)    (माकेम॰38.11)
344    ठाँव-चउका (केकर ठाँव-चउका न कइली ? केकर पउता-पेहानी न ढोइली ? बिआह-सादी में जूठा पत्तल उठयबे कइली, लोकदिन गेवे कइली । का छूटल हे हमरा ।)    (माकेम॰40.20)
345    ठार (= ठाड़, खड़ा) (बाकी कहऽ पुतोह के बलिहारी । इनके ला ऊ गारी-बात सब सुनत बाकि इनका आवइते लोटा में पानी लेके ठार हो जायत । बेना लेके तइयार ।)    (माकेम॰54.18)
346    ठेकना (कुछ चानी के रुपइया भी गाड़के रखल हे । सब मिला-जुला के हजार ले ठेक जायत । अतना में मन लाइक लड़का मिलिए जायत ।)    (माकेम॰49.1)
347    डउँघी (कुछ भगवानो के देन होवऽ हे । ओई जगा सहुआइन के दूधे न होवे । उनकर सब लइकन दूधकटुए रह गेलन । सटले बखोरना के माय माड़ पिअइते रह गेल, मसुरी के दाल सुड़कइते रह गेल बाकी काहे ला दूध उतरो । एने मुनारिक के माय कइसन हे - सालो भर ओकर छाती से दूध चुअइते रहऽ हे । बर के डउँघी हे, कभी सुखवे न करे ।)    (माकेम॰44.11)
348    डउँघी-छउँकी (उनके परिछन के फल हे कि हम्मर परिवार के डउँघी-छउँकी अतना फुदक गेल हे कि लगऽ हे छाँटे परत ।; एगो नीम के पेड़ हे ऊ कमाल के पेड़ हे । ओकर छाया तर दूपहर में बइठे ला लोग ललकल रहऽ हे । ओकर बीया से ई तेल निकलवावऽ हे । हँ, डउँघी-छउँकी न छूये देत, दतुअन ओकरा से न करे देत । एही लेल खूब झमठगर हे ।)    (माकेम॰26.17; 46.7-8)
349    डग्घर (= डगर) (हम्मर गाँव के उत्तर छोटकी अहरा से एगो डग्घर फूटल हे, जे शाहजहाँपुर पुल में जा के मिल गेल हे । ओही डग्घर पर चिचौंढ़ा गाँव के सामने मुसहर टोली हे ।;  बाकी अइसन कुछ बात हो गेल जेकरा चलते समूचा मुसहर टोली उठ के आ गेल डग्घर पर ।; सरन मिलल डग्घर पर, अप्पन जमीन मिलल, बपौती-खन्दानी परिवार बस गेल ।)    (माकेम॰61.1, 2, 5, 18)
350    डाइन (चउकोसी इनकर नाम हे, सभतर इनकर परचार हे - परचार हे इनकर दिआ के, नाम हे इनकर अच्छत के । इनकर दिआ ! बाप रे, देखइते हिया काँप जाहे, डाइन के काजर धोआ जाहे, देह के बायमत भाग जाहे । करिया भुच-भुच रीठल नादा लेखा, एक बित्ता करुआ तेल के परत जुगन से ई दिआ बरइत आ रहल हे ।)    (माकेम॰31.5)
351    डिजइनगर (हर साल बरसात बाद घर के गोरकी माटी से लीपत, चिकनावत, दुहारी पर भइँस आ बकरी के चित्र बनावत । घर मटिए के सही बाकी डिजइनगर होवे, साफ-सुथर रहे ।)    (माकेम॰45.23)
352    डेयोढ़ी (जइसने ओकर माय से रोपनी करावे ला मार होवऽ हे, ओइसने ओकरा से हर जोतावे ला । मालिक से जादे फिकिर ओकरे । किरिंग फूटइते डेयोढ़ी पर पहुँच जायत । साग-सतुआ जे आगू में पनपियार आयल, भर हीक खाके ढेकरइत कान्ह पर हर उठाके चल देत ।)    (माकेम॰47.21)
353    डेरा-डण्डा (आझ गाँव के बूढ़-बूढ़ लोग भी मुनारिक के माय न, सबके माय समझऽ हथ । ... एही कारन हे कि जेकरा गोदी में लइका भेल ओकरा हीं एकर डेरा-डण्डा गिरल रहत । नहियो त घुमइतो-घामइत एकर झोपड़ी में पहुँच जायत आ अप्पन छाती छोड़ाके एकर गोदी में डाल देत ।)    (माकेम॰43.11)
354    ढकना (= मिट्टी का बना बड़ा ढक्कन) (देखइथी कि ई नहा-धोआ के पूजा पर बइठल हथ । ओहे चउकी पर आसन लगा के धेयान लगवले हथ । बगल में एगो ढकना, लोहबान, अगरबत्ती-धूप आ ओड़हुल के फूल - इहे सामान हल उनकर पूजा करे के ।)    (माकेम॰33.6)
355    ढनढनाना (जइसन माय ओइसन बेटा । बाकी सुखदेवन देह से कदराह पड़ऽ हथ । ई लेल उनकर पूछ ओतना न जतना दूनो माय-बेटा के । ऊ तनी खिच-खिच मिजाज के पड़ऽ हथ भी । इनका से जल्दी लोग के न पटे तइयो माय-बेटा के साथे इहो मालगाड़ी के डिब्बा लेखा ढनढनाइत खिंचा ही जा हथ ।)    (माकेम॰48.18)
356    ढर-ढर (अतना पूछना हल कि उनकर बिहँसइत चेहरा मुरझा गेल । ओठ के दूनो पट बन्द हो गेल । आँख पथरिया गेल आ ढर-ढर गिरे लगल लोर ।; ओकर आँख से ढर-ढर लोर गिरे लगल ।)    (माकेम॰27.6; 32.11)
357    ढील (= ढिल्ला) (~ हेराना) (कोई चिहकल कुरती सिआवे आवइथे त कोई खोंच लगल लुगा मखवाइथे ।  कोई माथा गुहावे आयल हे त कोई ढील हेरावे ।)    (माकेम॰49.13)
358    तइयो (आम छाप लूगा ऊ कभी न छोड़लक - भले इधर बेटा के कहे-सुने से वायल के पंजी पर धेयान कुछ चल गेल हे, तइयो बेसकीमती कपड़ा न पेन्हे ।)    (माकेम॰46.19)
359    तकतेहानी (एने पानी मोरायल तब तक ओने बलुआही जमीन सूख गेल । एने परीत रह गेल त ओने मुआर हो गेल । खेती आ बेटी तकतेहानिए से बनऽ हे । बेटी बिना बिअहले आ खेत बिना बिदहले बर्बाद हो ही जायत ।)    (माकेम॰51.19)
360    तकाना (= ताकने के लिए कहना या आदेश देना) (अइसन हल उनकर दिआ आ ओकर करामात । जे आवत सेकरा देखइत खानी दिआ पर तकवतन । जे ताकइत रह गेल समझऽ ओकर नजरावल हे - बायमत जोतल हे इया कोई-न-कोई छड़ी देह धयले हे ।)    (माकेम॰32.23)
361    तखनी (= उस समय, तब) (जखनी ई अप्पन दलान पर पलथी मार के बइठ जा हथ, तखनी लगऽ हे कोनो गेंहुअन गेंड़ुर मारले फन उठवले फुफकार रहल हे, कोनो भगत देवी के चउरा पर देवास लगवले हे, कोनो अवघड़ आसन जमवले हे ।; सब मुँह के बक्सा में दिमाग के टेलीप्रिन्टर में सँइतल हे । जखनी मन करे तखनी सूद के हिसाब, चाउर के दाम, नेवारी के कीमत पूछ लऽ ।)    (माकेम॰11.14; 37.27)
362    तट-उपट (= तर-ऊपर; तरुपरी) (जेकरा ऊ दूध पिलवलक से मुनारिके लेखा पट्ठा कमासुत निकलल । ... चमरू के तीनों बेटा तीन लाख के । तट-उपट कमाये में । तीनो कोइलवरी में पइसा पीट के धर देलक । ललायिन के आँख में आँख एक बेटा । ओहो आफिसर बनके सबके कान काट रहल हे ।)    (माकेम॰43.21-22)
363    तड़ंग-फड़ंग (~ बान्हना) (जउन घड़ी तरकारी छेंउकायत ओ घड़ी ऊ अजबे गीत रेघवतन, अँगना में तिलक कम मिलला पर लइका के बाप इया भाई तड़ंग-फड़ंग बान्ह रहल हे, ऊ अइसन गीत ठानतन कि सबके खीस ठण्ढा - सबके क्रोध जमके बरफ हो जायत ।)    (माकेम॰24.32)
364    तमाकू (उनका अवइते कोई पीढ़ा लाके देत, कोई बेना, कोई बोरा बइठे ला देत, कोई चटाई । उनकर गुड़गुड़ा के सरजाम पहिलहीं से जुटा के रखल रहत । आवइते धड़ाधड़ टिकिया सुलग जायत, तमाकू बोझा जायत ।)    (माकेम॰23.17)
365    तरख (~ मिजाज) (तीना के सवाद तीन तरह से आवऽ हे - तरगर तेल, तितगर मसाला आ तरख मिजाज । तरकारी छेंउकेओला के रूच पर भी तरकारी के स्वाद आवऽ हे ।)    (माकेम॰38.28)
366    तरगर (तीना के सवाद तीन तरह से आवऽ हे - तरगर तेल, तितगर मसाला आ तरख मिजाज । तरकारी छेंउकेओला के रूच पर भी तरकारी के स्वाद आवऽ हे ।)    (माकेम॰38.28)
367    तरवा (= तलवा) (~ के लहर कपार पर चढ़ना) (ई सब देख-देख के उनकर घरनी के तरवा के लहर कपार पर चढ़ जायत । जतने ऊ कुढ़त ओतने ऊ कुढ़वतन ।)    (माकेम॰54.24)
368    तहिया (= उस दिन) (जहिया केकरो बराती आ जायत तहिया उनकर पिअरी धोती गाँव-गाँव के कोने-कोने में फहर जायत, उनकर माथ के पगड़ी आ झुलंक कुरता देख के सबके मन अगरा जायत ।)    (माकेम॰12.21)
369    तितगर (तीना के सवाद तीन तरह से आवऽ हे - तरगर तेल, तितगर मसाला आ तरख मिजाज । तरकारी छेंउकेओला के रूच पर भी तरकारी के स्वाद आवऽ हे ।)    (माकेम॰38.28)
370    तिरिथ (= तीर्थ) (छोटका बड़ा मौज से हे । ओकरे मौज से एकरो मौज हे । एकरा सब तिरिथ करा देल । सब सहर घुमा देल । सिनेमा-थियेटर देखा देल । बुढ़ारी के 'आह' न आवे देल चाहे ।; तिरिथ जाये इया न जाये, मेला-हाट जरूर जायत । जाय के चाहबे करी । मेला घूमे से अदमी अँखफोर बनऽ हे, एक-से-एक अदमी से भेंट-मुलकात होवऽ हे ।)    (माकेम॰41.23; 46.20)
371    तिलक (= तिल्लक, दहेज) (गाँव में केकरो बिआह-सादी ठन जायत त महतो जी सबसे जादे परेसान । छेंका से लेके तिलक ले, मटकोड़वा से लेके मँड़वा-भतवान ले, बराती से लेके चउठारी ले महतो जी पसेने-पसेने ।)    (माकेम॰12.18)
372    तिसिअउरी (अदउरी-तिसिअउरी, दनउरी-चरउरी हिनका हीं जरूर मिल जायत । बोइआम में रखल एक से एक अँचार - आम के, लेमो के, इमली के, मिरचाई के, कटहर आउ करइला के, आलू आउ मुरई के - इनकर अलमारी के सोभा बढ़ावइत रहऽ हे ।)    (माकेम॰13.28)
373    तीना (तनी चट्टन हे भी ऊ । तीना ला ऊ घरे-घरे घूम आयत । सबके घरे के सोवाद के सौभाग एकर जीभ के परापित हे । केकरो बिबाह-सादी इया मरनी-हरनी में सबके धेयान मड़वा पर, केकरो सेजियादान पर, बाकी एकर धेयान कड़ाही पर, कड़ाही में डालल तेल-मसाला पर ।)    (माकेम॰38.24)
374    तीना-चटनी (हँ, ऊ एक चीज के सौखीन बहुत हे - साग-सब्जी आउ तीना-चटनी के । पावे भर खरीदत बाकी सब तरह के तरकारी तनी-तनी जरूर खरीदत । सबके सोवाद जरूर लेत । आम इया इमली कतनो महँगा होवे ऊ जरूर लेत ।)    (माकेम॰46.29)
375    तूड़ना (= तोड़ना) (प्रेम तूड़ देला पर औरत मरदाना के सरापइत रहऽ हे ।)    (माकेम॰27.32)
376    तेतर (मुनारिक के बहिन चनपतिया बिआहे लाइक हो गेल हे । आँख-में-आँख एगो बेटी - ओहो तेतर । तेतर बेटी राज बिठावे, तेतर बेटा भीख मँगावे । ई से बड़का अरमान संजोगले हे ओकर माय ।; कतना दावा-दारू भेल बाकी ई बार ऊ न बच सकल । एगो तेतर बेटा, तीन गो बेटी आ एगो अउरत छोड़ के चल गेल । ओकर सब काम-किरिया पंडित जी अप्पन खरचा से कयलन । जागा बहू के परवरिस मलिकाइन लोग चलावे लगलन । आ तेतरा के पोसे लगलन मास्टर साहेब - अप्पन बेटा लेखा । आझ तेतरा जवान हे - पंडित जी के परिवार हे - सवाँग हे - एगो जागा के रूप में विद्यमान हे ।)    (माकेम॰48.23, 24; 64.27, 29, 30)
377    तेलवट (~ करना) ('बाप उठा के धर गेल, गरीब हल । का करित, बेटी माथ के बोझ होवऽ हे, सक्ती न हल बरिआत बोलावे के, दान-दहेज न देलक - तेलवट तो कयलक न - कहूँ निकस-पइस न न गेली' - कहइत-कहइत ढर-ढर रोवे लगत ।)    (माकेम॰36.16)
378    तेलाइन (खाइत जायत आ सवाद-बेसवाद पर बकइत जायत - जेकर जइसन रूच होवऽ हे ओइसने तरकारियो बनऽ हे - कोनो करम के ना, तनी रिबिछो करुआइनो-तेलाइनो न । बढ़िया मिल गेला पर खूब सिसिआयत, जीभ चटकारत आ कहत - हँ, देखऽ त ई कइसन हे ।)    (माकेम॰39.10)
379    तेलिन (केकरो कारज-परोज के दूसरका दिन तड़कहीं हुनका हीं पहुँच जायत । देखइते सवासिन बूझ जायत आ आदर से कहत - ए हदरी चाची, तनी एसा बइठ जा। हाथ नेटल हे, धोके देहीवऽ । देखऽ न रात के तरकारी कतना बच गेलवऽ हे । सोचली कि जाय दऽ - कुछ तोरा दे देम आ कुछ तेलिनियाँ दीदी के । आ बचतई से पवनियन के दे देवल जतई ।)    (माकेम॰39.2)
380    तेसर (= तीसरा) (कउन गीत कै कदम पर उठावल जायत, केकर दुहारी पर से सुरू कयल जायत, एकर रहस्य ओहे जानऽ हलन । बजनियाँ के गीत अलग, नउनियाँ के गारी अलग, कनुनियाँ के गीत दोसर, तेलिनियाँ के तेसर । तिलक देउआ उनकर गीत सुनके दंग, बरतिआहा भउँचक ।)    (माकेम॰25.9)
381    थकाल-फेदायल (ई कहूँ से थकाल-फेदायल अवतन, ऊ झरुआ लेके बहारे लगत । पेन्ह-ओढ़ के कहीं जाय लगतन, मतुहायल पानी माँगतन, ऊ भरल गगरा के पानी उझिल देत ।)    (माकेम॰54.14)
382    थनइल (एकरा पास एगो बड़का मंतर हे - टोटड़म के मंतर । केकरो लांघन पड़ गेल हे, ई ठीक कर देत । केकरो भइँस के दूध छनक गेल हे, ई उतार देत । केकरो थनइल हो गेल हे, ई झार देत ।)    (माकेम॰38.13)
383    थपुआ (= हाथ से ठोककर बनाया हुआ; छप्पर छाने का एक प्रकार का खपड़ा जो हाथ से थापकर बनाया जाता है ।; हाथ से ठोककर बनाई गई मोटी रोटी, थोपा) (जइसन इनकर काम ओइसने सरीर । लमा-लमा हाथ, एक हाथ के पेट, धँसल धवना, थपुआ लेखा गोड़ के सिपुली, बड़का-बड़का आँख, ताके में बकडेढ़, एक आँख लाल सुरूका, लगऽ हे अब बाहर फेंक देत ।; जेठ-बइसाख के महीना में ऊ माटी ढोवत, थपुआ पारत, आँवा लगाके खपड़ा पकावत । हर साल छप्पर के छउनी करावत ।)    (माकेम॰34.7; 45.19)
384    थरिया (रात में थरिया न मलायल ओकरा ला चार बात, लोटा न चमचम चमकल ओकरा ला दस गण्डा गारी । सूप खूँटी में न टँगायल, बढ़नी पार के न रखायल, चूल्हा न लिपायल, कोठ के मान न मुनायल एकरा ला बिसहन हुरकुच्चा । हुरकुच्चा सुनइत-सुनइत ऊ हेहर हो गेल ।)    (माकेम॰35.16)
385    दउरी (केकरो मटकोड़वा सुरू भेल, ढोल बजे लगल, नाउन माथा पर दउरी लेके चलल ओ घड़ी तड़ुका दाई सबसे आगे-आगे चलतन पीछे से सब गीतहारिन ।)    (माकेम॰25.3)
386    दतुअन (= दतमन) (ओ घड़ी कोलगेट हइए न हल, लाल मंजन हल, बाकी ऊ बेचारा लाल मंजन कहाँ से देखलक । बाँस आउ लिसोढ़ा के दतुअन काफी हल ।)    (माकेम॰62.6)
387    दनउरी-चरउरी (अदउरी-तिसिअउरी, दनउरी-चरउरी हिनका हीं जरूर मिल जायत । बोइआम में रखल एक से एक अँचार - आम के, लेमो के, इमली के, मिरचाई के, कटहर आउ करइला के, आलू आउ मुरई के - इनकर अलमारी के सोभा बढ़ावइत रहऽ हे ।)    (माकेम॰13.28)
388    दनदनाना (बैल के जोड़के आगे हाँक देत पीछे से अपने अरउआ लेले टिटकारइत दनदनायल पहुँच जायत खेत पर ।)    (माकेम॰47.23)
389    दरखत (= दरख्त, पेड़) (एगो पक्का इनार, इनार के अगल-बगल फूल-पत्ती, एगो अँवरा के पेड़, केला के बगान, सहिजन के गाछ, आम-अमरूध के दरखत उनकर दलान के सोभा हे ।)    (माकेम॰13.4)
390    दलान (= दालान) (जइसन साहु जी के दोकान ओइसन महतो जी के दलान । महतो जी के के न जाने ?)    (माकेम॰11.1)
391    दह (= नदी या तालाब में बना गहरा गड्ढा; बहुत अधिक गहराई का जलमग्न स्थान; बड़ा जलाशय) (बेनीबिगहा के अखाड़ा आ खरकपुरा के दह जइसे नामी हल ओइसहीं चिचौड़ा के सनीचर के जूता नामी हल ।)    (माकेम॰18.1)
392    दहना (जीभ बड़ा बेहाया होवऽ हे । बेहयपने में बेचारे दह गेलन । बह गेलन अप्पन गुमान के धार में ।)    (माकेम॰58.29)
393    दावा-दारू (= दवा-दारू) (उनकर बिसाल सरीर के ई हाल देख के हम्मर आँख में आँसू छलक गेल । दउड़ के मास्टर साहेब के बुलावल गेल । दावा-दारू चले लगल ।; दू साल के बाद फिर जागा के ओही बेमारी । कतना दावा-दारू भेल बाकी ई बार ऊ न बच सकल ।)    (माकेम॰64.18, 26)
394    दिआ (चउकोसी इनकर नाम हे, सभतर इनकर परचार हे - परचार हे इनकर दिआ के, नाम हे इनकर अच्छत के । इनकर दिआ ! बाप रे, देखइते हिया काँप जाहे, डाइन के काजर धोआ जाहे, देह के बायमत भाग जाहे । करिया भुच-भुच रीठल नादा लेखा, एक बित्ता करुआ तेल के परत जुगन से ई दिआ बरइत आ रहल हे ।)    (माकेम॰31.4, 5, 7)
395    दिकदारी (= दिक्कत, कठिनाई; तंगी) (हम्मर अउरत से जादे पटरी रहऽ हल । हाट-बजार, पुनियाँ नेहान में हमेसा साथ ले लेवऽ हल । डेरा तनी दूर बदल जाये से भेंट होवे में दिकदारी हो जाहे ।)    (माकेम॰50.8)
396    दुहारी (कउन गीत कै कदम पर उठावल जायत, केकर दुहारी पर से सुरू कयल जायत, एकर रहस्य ओहे जानऽ हलन । बजनियाँ के गीत अलग, नउनियाँ के गारी अलग, कनुनियाँ के गीत दोसर, तेलिनियाँ के तेसर । तिलक देउआ उनकर गीत सुनके दंग, बरतिआहा भउँचक ।; सबेरे-सबेरे चारगो अउरत एकर दुहारी पर खाड़ रहत - कोई लोटा लेले, कोई कटोरा लेले । ई नरकटा से सबके बर्तन भर देत ।)    (माकेम॰25.7; 39.28)
397    दूधकट्टु (कुछ भगवानो के देन होवऽ हे । ओई जगा सहुआइन के दूधे न होवे । उनकर सब लइकन दूधकटुए रह गेलन ।)    (माकेम॰44.8)
398    दूरा (केकरो दूरा पर बइठ जयतन - कोई सरबत ला पूछइथे, कोई सतुआ ला, कोई खैनी खिलावइथे, कोई बीड़ी पिलावइथे ।; उनके महिमा से सालो भर एगो लगहर दूरा पर बान्हले रहत । मट्ठा-दही से गाँव के तर कयले रहत ।)    (माकेम॰20.24; 39.24)
399    दे (= से) (फिर रंथी उहाँ से उठल त छोटकी अहरा पर दे होवइत मँझउली के संडक पकड़ लेल ।)    (माकेम॰16.6)
400    देवपूजी (केकरो देवपूजी हो रहल हे - आगे-आगे ओहे चलतन । हरदी-कलसा हो रहल हे - सबसे आगे ऊ बइठतन । लावा छिंटावे चलल, बर के परिछन होये चलल, ओ घड़ी तड़ुका दाई पर सबके नजर टिकल रहत ।)    (माकेम॰25.4)
401    देवास (= भूत-प्रेत आदि के झाड़-फूक का आयोजन; ओझा या मंतरिआ पर देवता आने का स्वांग; झाड़-फूँक; देवता की पूजा का प्रबन्ध) (जखनी ई अप्पन दलान पर पलथी मार के बइठ जा हथ, तखनी लगऽ हे कोनो गेंहुअन गेंड़ुर मारले फन उठवले फुफकार रहल हे, कोनो भगत देवी के चउरा पर देवास लगवले हे, कोनो अवघड़ आसन जमवले हे ।; ई देवास न लगावथ, भूत न खेलावथ - बस चउकी पर बइठ के खाली अच्छत बाँटऽ हथ - बाकी कह देतन नजरावल हे इया केकरो देल हे ।)    (माकेम॰11.15; 32.25)
402    देह (~ धरना) (अइसन हल उनकर दिआ आ ओकर करामात । जे आवत सेकरा देखइत खानी दिआ पर तकवतन । जे ताकइत रह गेल समझऽ ओकर नजरावल हे - बायमत जोतल हे इया कोई-न-कोई छड़ी देह धयले हे ।)    (माकेम॰32.24)
403    देह-नेह (सबेरे-सबेरे चारगो अउरत एकर दुहारी पर खाड़ रहत - कोई लोटा लेले, कोई कटोरा लेले । ई नरकटा से सबके बर्तन भर देत । जइसे बर्तन भर देवऽ हे ओइसहीं भगवान एकरा देहे-नेहे, नातिए-पोते भर देलन हे ।)    (माकेम॰39.30)
404    दोआ (= दुआ) (तोरे लोग भिर हार तूड़ के कमइली, जीव जात के खइली त आझ चार पइसा हाथो पर हे न । केकरो खा-पचा न न गेली । तोर लोग के दोआ से बेटा कमाइत हे ।)    (माकेम॰36.19)
405    दोदरा (= चकत्ता) (~ उठना) (केकरो मतवाही हो गेल, देह में दोदरा उठ गेल हे, ओकर उपचार ई खूब जानऽ हे ।)    (माकेम॰38.15)
406    दोस (= दोष) (बड़की तो उनका फुटलो आँखे न सोहाये । ओकरा दुख हे - 'एगो के लगना धरवलन आ एगो के कुरसी बइठवलन । बाकी ऊ का करी ? दोस ओकर हे थोड़े ।)    (माकेम॰41.16)
407    दोसर (= दूसरा) (कउन गीत कै कदम पर उठावल जायत, केकर दुहारी पर से सुरू कयल जायत, एकर रहस्य ओहे जानऽ हलन । बजनियाँ के गीत अलग, नउनियाँ के गारी अलग, कनुनियाँ के गीत दोसर, तेलिनियाँ के तेसर । तिलक देउआ उनकर गीत सुनके दंग, बरतिआहा भउँचक ।)    (माकेम॰25.9)
408    धउड़ (= दौड़) (एतवार दिन, सुबह 6 बजे ई दुनियाँ से अप्पन नाता तोड़ के चल देलन । जे सुनलक से धउड़ मारलक, पुक्का फार के रो उठल ।; सुन्न भेल से सुन्ने रह गेल जदपि कि उनकर सँघतिया रिक्शा पर लाद के अस्पताल में भरती करवा देलन । गाँव पर खबर पहुँचा देल गेल । जे सुनलक से धउड़ मारलक । साग-सतुआ बान्ह के चल पड़ल बड़का अस्पताल में दाई के देखे ।)    (माकेम॰15.21; 29.2)
409    धउड़ना (= दौड़ना) (फिर माय इयाद करके बोलल कि ऊ तो ओ घड़ी अँगना में हइए न हलन, बीमार हलन । खैर, बाबूजी एगो पिअर धोती लेके धउड़लन दाई के घरे ।)    (माकेम॰26.10)
410    धक (= झूठा अभिमान, अहंभाव; उमंग, झख) (धक बाबा केकर धक न डोलवलन । बड़का घराना से लेके चउक तक, पछिआरी पट्टी से लेके पुरवारी पट्टी तक सबके धक डोला के चोड़ देलन । धक कउन चीज । आन के धक, मान के धक, अरमान आउ गुमान के धक, जान आउ पहिचान के धक, धन आउ दौलत के धक ।; रामबहाल सिंह आउ कमता सिंह, रामभवन सीन आउ सिवबचन सीन सौखीन गिना हलन बाकी ओहो इनकर धक के आगे न टिक सकलन । अरे ऐनखाँव के राजाजी आ बिक्रम के गुप्ताजी, मिसिरजी टिकवे न कयलन त ई लोग के कउन बिसात !; बसमतिया चाउर के भात, रहरी के दाल, गाय के घीव, पाँच गो तरकारी ओह घड़ी केकर धक हल गाँव में खाय के, बाकी इनका ला रोज चउका के सोभा हल ।)    (माकेम॰56.1, 2, 3, 4, 11; 57.4)
411    धगंचना (जूतो बनावऽ हलन एक नम्बर के, डिजाइन होवे इया न, बाकी टिकाऊ खूब । दू साल खूब धगंच के पेन्हऽ, बीच में टूट गेला पर फेंक आवऽ हिनकर कोठरी में । नया करके ऊ अपने से घरे पहुँचा अयतन ।)    (माकेम॰18.5)
412    धन (= धन्य) (पंडित जी के घर में मनौती उतारल जाइत हे, कथा कहावल जाइत हे । जागा के कायाकल्प हो गेल । धन हे जागा ! आ धन हथ उनकर मालिक आ मालकिन !)    (माकेम॰64.24)
413    धरना (देह ~) (अइसन हल उनकर दिआ आ ओकर करामात । जे आवत सेकरा देखइत खानी दिआ पर तकवतन । जे ताकइत रह गेल समझऽ ओकर नजरावल हे - बायमत जोतल हे इया कोई-न-कोई छड़ी देह धयले हे ।)    (माकेम॰32.24)
414    धवना (= धौना, धओना;  कंधा के पीछे या पीठ का ऊपर का भाग, बाहुमूल के पीछे का अंग) (जइसन इनकर काम ओइसने सरीर । लमा-लमा हाथ, एक हाथ के पेट, धँसल धवना, थपुआ लेखा गोड़ के सिपुली, बड़का-बड़का आँख, ताके में बकडेढ़, एक आँख लाल सुरूका, लगऽ हे अब बाहर फेंक देत ।)    (माकेम॰34.7)
415    धाध (केकरो महिनवारी खराब हे, धाध के सिकाइत हे, ई काढ़ा आ गोली देके ठीक कर देतन । अउरत के एक रुपया में एक बोतल काढ़ा आ मरदाना के 30 गोली पनरह दिन के । बस, अतने में बेमारी भूसा ।)    (माकेम॰34.3)
416    धारना (दे॰ लहना) (कहल जाहे कि ओझा-गुनी के बंस न चले । डाक्टर अप्पन बेटा-बेटी के इलाज न करे - लहबे न करे, धारवे न करे । माहटर अप्पन बेटा-बेटी के न पढ़ा सकऽ हे - ऊ लचार हे, मजबूर हे अप्पन करम भाग पर ।; एकर सगुन बड़ा धारऽ हे । किरखी में उपज जादे होयत । एकर पैरुख बड़ा लछनमान हे जइसन ओकर माय के दूध ।)    (माकेम॰13.14; 48.7)
417    धुर (= एक कट्ठे जमीन का बीसवाँ भाग) (खेत-बधारी एको धुर न हे बलुक घरो आम गरमजरुआ जमीन में उठावल हे ।)    (माकेम॰47.12)
418    धूर (दे॰ धुर) (जा ए धक बाबा ! आझ एहे सिद्धनाथ तोर लास के गंगा घाट तक पहुँचौतन, बाकी तू इनका ला एको धूर जमीन न छोड़लऽ ।; चाचा जी हमरा ला एको धूर न छोड़लऽ, आझ हमहीं तोरा साथ देली । तोर एको दोस्त-इयार न अयलन ।)    (माकेम॰59.7; 60.2)
419    नउनियाँ (= नाउन+आ प्रत्यय) (कउन गीत कै कदम पर उठावल जायत, केकर दुहारी पर से सुरू कयल जायत, एकर रहस्य ओहे जानऽ हलन । बजनियाँ के गीत अलग, नउनियाँ के गारी अलग, कनुनियाँ के गीत दोसर, तेलिनियाँ के तेसर । तिलक देउआ उनकर गीत सुनके दंग, बरतिआहा भउँचक ।)    (माकेम॰25.8)
420    नट-नगाड़ (इनके बसावल ही हमनी । जब बिसुनदयाल सीन अप्पन घर से निकाल देहन हल तो नट-नगाड़ लेखा बसना-टहरी टाँगले चलऽ हली । ... अंत में एही धक बाबा हथ जे हमनी के जमीन देके बसवलन ।)    (माकेम॰58.6)
421    नपसन्द (= नापसन्द) (उनकर परिवार के केउ ई काम न सिखलक । उनकर एगो बेटा हे । हरवाही करऽ हे । बाजा बजावऽ हे बिआह-सादी में । एकरा नपसन्द हल ई काम ।)    (माकेम॰19.6)
422    नम्मर (= नम्बर) (घीव ई एक नम्मर के बनावऽ हे । खूब कड़कड़ावत, सोन्हावत । एकर घीव के माँग सहर में जादे हे ।; घीवो देवऽ हे एक नम्मर के - कोई मिलावट न, कोई कयल-धयल न । ओहे जगा ओकर गोतनी बदनाम हे - जे एक बार लेलक से कान अईंठ लेल ।)    (माकेम॰39.18, 20)
423    नया-नोहर (नवोढ़ा, नववधू, नई नबेली) (मुनारिक के बिआह हो गेल हे बाकी औरत घर से अभी न निकले । नया-नोहर कनियाँ हे, सालो भर तो घर में रहे के चाही ।)    (माकेम॰48.21)
424    नरकोरवा (केकरो चिन्ता हे पत्तल आउ नरकोरवा ला, केकरो चीनी आउ सूजी ला - केकरो तीना तरकारी ला, केकरो गहना-जेवर ला । कोई लूगा-फाटा ला रूसल हे त कोई पूछला बिना फूलल हे । बाकी ई मस्त ! निफिकिर - गावे ला परेसान ।)    (माकेम॰25.14)
425    नवचेरी (~ कनियाँ; ~ गवतहेरीन) (जउन घड़ी केकरो हीं तिलक आवे ला हे ओ घड़ी उनकर इज्जत देखऽ । बूढ़-पुरनियाँ, नवचेरी कनियाँ सब उनका गोड़ लगतन । ऊ सबके जिये ला, घर बसे ला आसिरवाद देतन ।; एही से बिआह-सादी के अवसर पर उनकर पूछ जादे होवऽ हे । कभी-कभी तो नवचेरी गवतहेरीन उनका से रंज हो जाहे, मने-मने कुढ़ल रहऽ हे । सभा-सोसाइटी में सबके कुछ कहे ला मौका देवे के चाही ।; तड़ुका दाई के परिवार बहुत लमहर हे, बड़का लर-जर । बाकी इनका देह से एको बाल-बच्चा न भेल । होवो कइसे ? लोग कहऽ हथ कि ऊ नवचेरिए हलन त उनकर मरद ओझवा बाबा छोड़ देलन ।; लोग कहऽ हथ उनकर मुँह में अगिन के वास हल आ गोदी में गनेस के । ई लेल जेकरा आसिरबाद देलन, ऊ डाढ़े-पाते फर-फुल से लद गेल । जेकरा गोदी लेलन देहे-आँगे नीरोग हो गेल । ललक से नवचेरी अप्पन बेटा-बेटी उनकर गोदी में जरूर देत, आसिरबाद जरूर लेत ।; जे सुनल से पछतावे लगल - ओह हमहूँ रहिती त आझ डाइन के नाच देखिती न । अरे डाइन हल ! बाप रे ! बिलकुल अभी नवचेरिए तो हइए हल ।)    (माकेम॰23.13; 24.9; 26.23-24; 28.15; 32.16)
426    नाँव (= नाम) (उनकर व्यक्तित्व में चार चाँद लगावेओला एगाउ गुन हल - बाजा पर नाचे के गुन, दुआर लगइत खानी छड़पे के गुन । इनकर बाजा में कठघोड़वा के नाच न जा हल, मोर-मोरनी के नाँव ओ घड़ी न हल । नाँव हल सनीचर के नाच के, डोमन के बाजा के ।)    (माकेम॰21.1)
427    नाउन (= नौआ के स्त्री॰ रूप; नाई की स्त्री) (केकरो मटकोड़वा सुरू भेल, ढोल बजे लगल, नाउन माथा पर दउरी लेके चलल ओ घड़ी तड़ुका दाई सबसे आगे-आगे चलतन पीछे से सब गीतहारिन ।)    (माकेम॰25.2)
428    नाती-पोता (सबेरे-सबेरे चारगो अउरत एकर दुहारी पर खाड़ रहत - कोई लोटा लेले, कोई कटोरा लेले । ई नरकटा से सबके बर्तन भर देत । जइसे बर्तन भर देवऽ हे ओइसहीं भगवान एकरा देहे-नेहे, नातिए-पोते भर देलन हे ।)    (माकेम॰39.30)
429    नाद (= नाँद) (अतने न, केकरो छप्पर चू रहल हे - महतो जी के बोला के छवा लऽ । केकरो नाद गाड़े ला होवे इया खरंजा लगावे ला - महतो जी के पकड़ लऽ ।)    (माकेम॰12.10)
430    नादा (= छोटी नाद) (चउकोसी इनकर नाम हे, सभतर इनकर परचार हे - परचार हे इनकर दिआ के, नाम हे इनकर अच्छत के । इनकर दिआ ! बाप रे, देखइते हिया काँप जाहे, डाइन के काजर धोआ जाहे, देह के बायमत भाग जाहे । करिया भुच-भुच रीठल नादा लेखा, एक बित्ता करुआ तेल के परत जुगन से ई दिआ बरइत आ रहल हे ।)    (माकेम॰31.6)
431    नाधना (बोझा ढोवऽ हे, लगऽ हे टमटम के सवारी आ रहल हे । सुखदेव सुतले रहतन तब ले ऊ बोझा खोल के कउँर देत, ऊ आवे-आवे करतन तब ले बैल नाध के ठीक ।)    (माकेम॰44.28)
432    नाधा-जोती (मउनी बिनवावऽ इनका से, खटिया छनवावऽ इनका से । एक से एक गँरउरी, जाब, मोहरी, नाधा-जोती, सिकहर इनका से बनवा लऽ - एको पइसा खरच न - नौ नगद न तेरह उधार । महतो जी हइए हथ त एकर सवाले कहाँ उठऽ हे ?)    (माकेम॰12.12)
433    नान्ह (= नन्हा, छोटा) (अये, लोग जाव त जाव, हम नान्ह जात के झोपड़ी में न न जायब । हमरा भगवान बइठका न देलन हे कि ओकर झोपड़ी अगोरले रहूँ ?)    (माकेम॰49.28)
434    नामी-गिरामी (आझ हम जउन रूप में ही - जउन राह पर चलइत ही - कला आउ साहित्य के राह, कल्पना आउ विचार के राह, ऊ बतावल हे परम पूज्य गुरुदेव श्री कामता सिंह के जिनकर बकुली आउ छकुनी के इयाद अभी तक भुलायल न हे ।)    (माकेम॰5.18-19)
435    निकसना (निकस-पइस जाना) ('बाप उठा के धर गेल, गरीब हल । का करित, बेटी माथ के बोझ होवऽ हे, सक्ती न हल बरिआत बोलावे के, दान-दहेज न देलक - तेलवट तो कयलक न - कहूँ निकस-पइस न न गेली' - कहइत-कहइत ढर-ढर रोवे लगत ।)    (माकेम॰36.16)
436    निकोखी (गाँव के लइकन उनकर लइकन । ई लेल उनका निकोखी होये के आह कभी न आयल । अप्पन बड़का गो परिवार देख के उनकर छाती गाँजल रुआ लेखा फूलल रहऽ हल । हरनी-मरनी में ऊ केकरो हीं न जा हलन । एकरा से उनका घिरना न हल । उनका हिरदये थमयेबे न करऽ हल । ऊ केकरो श्राद्ध देख के रोवे लगऽ हलन ।)    (माकेम॰28.22)
437    निछतर (= नक्षत्र) (कोई बात इयाद करे में ई बड़ा तेज । कोई लिखा-पढ़ी न, कोई बही-खाता न, बाकी सब सही - सब कण्ठस्थ । केकर बिआह कहिया भेल, केकर जनम कउन महीना, कउन निछतर, कउन दिन, कै बजे भेल - सबके जलम-कुण्डली एकर माथ में ।)    (माकेम॰37.15)
438    निधार (न बेटी, तू अप्पन अकबद मत बिगाड़ऽ । एक तो ऊ जनम में कउन चूक कयलऽ कि तोरा ई फल भोगे पड़इथे, आ दूसर चूक फिर करे जाइथऽ । हम तोरा सरापइत सुनली त ठाकुरवाड़ी से लवट के आ रहली हे । तू सतवंती हऽ, सती अनसूइया हऽ । बाप रे, तोर सरापल निधार न जायत बेटी । आझ से कसम खा लऽ कि हम अइसन बात मुँह से न निकालब ।)    (माकेम॰28.7)
439    निपल (सबके ला ऊ मकान एगो नमूना हे । निपल-पोतल-चिकनावल अइसन सुघर लगऽ हे जइसन चर में नया कनियाँ ।)    (माकेम॰13.9)
440    निफिकिर (= बेफिक्र) (केकरो चिन्ता हे पत्तल आउ नरकोरवा ला, केकरो चीनी आउ सूजी ला - केकरो तीना तरकारी ला, केकरो गहना-जेवर ला । कोई लूगा-फाटा ला रूसल हे त कोई पूछला बिना फूलल हे । बाकी ई मस्त ! निफिकिर - गावे ला परेसान ।)    (माकेम॰25.17)
441    निरनय (= निर्णय) (सनीचर केकर सट्टा लिखथ ई लेल पसेने-पसेन, गिल-पील । अन्त में निरनय भेल - अभी खायल-पिअल जाय, देखऽ लइका के बोलहटा आ गेल ।)    (माकेम॰21.20)
442    निसंठ (~ मिजाज) (लोहा के के बनल हे ? हाड़-माँस के बनल तो लमर जयबे करत । भार पड़ला पर चरमरा के ढीला होहीं जायत । ओकरा साथे काम करे ओला के चाही पत्थल के करेजा, इस्पात के सरीर, पोरे-पोरे तेल पिआवल लाठी लेखा निसंठ मिजाज ।)    (माकेम॰45.14)
443    निसोगी (आँख पथरिया गेल आ ढर-ढर गिरे लगल लोर । हम्मर चाची के तो काठ मार गेल । ऊ जगा बइठल दू-चार अउरत भउँचक हो गेल । लोग बिगड़े लगलन हम्मर चाची पर । गाँव के मालूम भेल त अउरत सब एकरा घिनावे लगलन - निसोगी काहे ला पूछलई हल । ओकरा लेखा आउ केउ उछँहत न हलई । बेचारी के रोआ भरलई कातो ।)    (माकेम॰27.9)
444    निहसाना (केतना के बेटा देलन, केतना के नौकरी लगा देलन बाकी ऊ सरधा-भक्ति लोग उनका खातिर न दिखवलन बलिक उलटे लोग घिनावऽ हथ । इनका देखके अउरत थूक देवऽ हे । मरदाना निहसावऽ हे, बूढ़-पुरनियाँ हिनावऽ हे, लइकन चिढ़ावऽ हे ।)    (माकेम॰30.19)
445    नीन (= नींद) (उनका अगल-बगल के तो लोग कहऽ हथ कि ऊ तो रात भर सुतबे न करथ । जब ले बरिआत लवट न जायत, चउठारी खतम न हो जायत उनका आँख में नीन न । का जनी कउन गीत के अभ्यास करऽ हथ ऊ रात भर जाग के ।; दुगो माथ पर बेटी सरेक हो गेल हे । तोरा अब का चिन्ता हवऽ । चिन्ता हमरा न हे । रात भर नीन न आवे ।)    (माकेम॰25.21; 39.17)
446    नेंव (= नींव) (पुस्तकालय आ वाचनालय बनावे ला निर्नय लेल गेल । एगो रंगसाला के नेंव दिआ गेल ।)    (माकेम॰17.13)
447    नेउन (= नेनू, नवनीत, मक्खन) (ऊ अप्पन हुक्का कखनियो ओइसहीं न छोड़ऽ हलन जइसे हारिल लकड़ी के न छोड़े, मट्ठा अप्पन नेउन क न तेजे ।)    (माकेम॰23.8)
448    नेटना (= लेटना; गन्दा होना) (केकरो कारज-परोज के दूसरका दिन तड़कहीं हुनका हीं पहुँच जायत । देखइते सवासिन बूझ जायत आ आदर से कहत - ए हदरी चाची, तनी एसा बइठ जा। हाथ नेटल हे, धोके देहीवऽ ।)    (माकेम॰38.31)
449    नेब (= नींव) (आझ गाँव के मन्दिर बनावल उनके हे, तलाव खनावल उनके । पुस्तकालय आ सभा-भवन के नेब देल हे उनके ।)    (माकेम॰52.17)
450    नेवारी (= अन्न निकाला धान का पुल्ला या अँटिया; पुआल) (सब मुँह के बक्सा में दिमाग के टेलीप्रिन्टर में सँइतल हे । जखनी मन करे तखनी सूद के हिसाब, चाउर के दाम, नेवारी के कीमत पूछ लऽ ।)    (माकेम॰37.27)
451    नेहान (पुनियाँ ~) (हम्मर अउरत से जादे पटरी रहऽ हल । हाट-बजार, पुनियाँ नेहान में हमेसा साथ ले लेवऽ हल ।)    (माकेम॰50.7)
452    नेहाना (= नहाना) (उनकर दलानो बड़ा रोखगर, हवादार - पहिल किरिन से नेहाय ओला, चान से गमगाये ओला - गाँव के सबसे पूरुब हे ।; जइसने घर-दुआर के सफाई ओइसने सरीर के भी । रोज नेहायत । दूर-दूर से करिक्की माटी ले आवत - ओकरे से माथा मलत । सउँसे देह में गोरकी मट्टी लगावत । खूब मल मल के नेहायत । साबुन से ओकरा घिरना हे । जेकरा फोड़ा-फुंसी हो जायत ओकरा गोरकी मट्टी लगाके नेहाये ला सलाह देत ।)    (माकेम॰13.2; 46.9, 11, 12)
453    नेहाल (~ होना; ~ करना) (इनकर दही-दूध, जिरवानी डालल मट्ठा, जड़ी-बूटी के नोस्खा, महरानी जी के भभूत, गोरैया के सिरवानी, महबीर जी के पेड़ा, गनेस जी के लड्डू, बरहम बाबा के अच्छत, ठाकुर जी के मनभोग - इनकर एक-से-एक करामात से लोग नेहाल हो गेलन ।)    (माकेम॰11.7)
454    नेहाली (जउन घड़ी माघ के मलमली में सब लोग नेहाली पर फोंफ काटऽ हथ, ऊ घड़ी ऊ बर्तन-बासन करके छुट्टी ।)    (माकेम॰45.3)
455    नोंह (= नख) (का जनी ऊ कउन टिनोपाल लगावऽ हथ, कउन साबुन घँसऽ हथ । गोड़ के नोंह जरूर रँगतन, आसिन में मेंहदी जरूर लगवतन । लोग कहऽ हथ ई पूरबीला के इनकर चूक हे न त के कहत कि इनका मरदाना तेयागले हे ।)    (माकेम॰27.23)
456    नोचना (उनका कढ़वला पर से कोई दूसर औरत गीत कढ़ा देत त फिर का ? - ओकर मुँह नोच लेतन ।; लोग सरापऽ हथ - ई पिलुआके मरतन । इनकर लास के गीध कउआ नोच-नोच के खायत ।)    (माकेम॰24.14; 30.21)
457    नोस्खा (= नुस्खा) (इनकर दही-दूध, जिरवानी डालल मट्ठा, जड़ी-बूटी के नोस्खा, महरानी जी के भभूत, गोरैया के सिरवानी, महबीर जी के पेड़ा, गनेस जी के लड्डू, बरहम बाबा के अच्छत, ठाकुर जी के मनभोग - इनकर एक-से-एक करामात से लोग नेहाल हो गेलन ।)    (माकेम॰11.5)
458    नोह (= नख, नाखुन) (ओठ न रँगत बाकी नोह जरूर रँगत । नोह रंगल सोहाग बढ़ावऽ हे ।)    (माकेम॰46.17)
459    नोहर (= अलभ्य, दुर्लभ; तहदरज, नया) (नया-~ = नवोढ़ा) (मुनारिक के बिआह हो गेल हे बाकी औरत घर से अभी न निकले । नया-नोहर कनियाँ हे, सालो भर तो घर में रहे के चाही ।)    (माकेम॰48.21)


 

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