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Thursday, October 13, 2011

फैसला - भाग 11


- 11 -

“अपने के की चाही ?” - दयाल पूछलका ।
“सर, हम्मर नाम त्यागु । ई हम्मर माय हथिन । हम्मर दीदी नन्दिनी माउण्ट रोड में के एक ठो टायर कम्पनी में काम करऽ हला । परसूँ रात के हमर दीदी घर पर नयँ अइला ह । उनकर सहेली सब के आउ ऑफिस में हम पूछलिये हल । ऊ सब में केकरो कुछ मालूम नयँ । कामराज एवेन्यू में हम सब रहऽ हिअइ ।” - त्यागु बोलल ।
ऊ सब के दयाल बइठे  ल कहलका । अराम से पूछलका । नन्दिनी के कम्पनी में खुद पुच्छल सब बात, ऊ दिन नन्दिनी के अप्पन कम्पनी में बिदाय समारोह के बारे सूचना देल बिलकुल झूठ हलइ, ई बात;  ई सब पर सोच-विचार कइला पर ऊ अप्पन प्रेमी के साथ भाग गेल होत, ई सन्देह के बारे बतइलक ।

शिकायत लिक्खे वला के बोलाके दयाल ओरा से एक ठो शिकायत लिक्खे ल कहलका ।
“अप्पन दीदी के फोटो लइलऽ ह त्यागु ?” - दयाल पूछलका ।
“लइलिये ह सर ।”

फोटो लेके देखलका । जवानी भरल चेहरा । आकर्षक आँख । ब्लैक ऐण्ड ह्वाइट (श्वेत-श्याम) फोटो में भी मन के खींच लेवे वला सुन्दर होंठ ।

“परसूँ मतलब 14 तारीख के न ?”
“जी सर ।”
“ऊ दिन तोहर दीदी कइसन ड्रेस पेन्हलका हल, मालूम हको ?”
“नीला रंग के तीन पीस ड्रेस पेन्हलका हल ।”
“तोहर शिकायत में ई बतावऽ, ऊ जे कम्पनी में काम करऽ हला ओक्कर पता, ओकरा में देखके ….. घर में कोय चिट्ठी-पत्तर लिखके रखलका ह, ई देखलऽ ह ?”
“अच्छा से ढूँढ़के देख लेलिये ह सर । ओक्कर कम्पनी के टेलिफोन ऑपरेटर के बतावल बात के अधार पर ओक्कर रूम के पूरा छान-बीन कर लेलिअइ । ओक्कर प्रेमी के कोय चिट्ठी, चाहे ओक्कर फोटो -- कुछ तो मिलत, लेकिन कुछ नयँ मिलल ।”

दयाल शान्त हो गेला ।
नन्दिनी के माय के दुख उमड़ पड़ला से ऊ बोलल - “हमरा हीआँ आवे के मन नयँ हल, सर । भाग के गेल लड़की के ढूँढ़े के जरूरत नयँ, अइसन हम गोस्सा से कह देलूँ । ऊ अप्पन खुशी ल गेल । एतना होला पर भी मन नयँ मानऽ हके । कहीं भी रहे, ऊ ठीक-ठाक रहे, बस । लेकिन ऊ कइसन हके, ई हमरा कीऽ मालूम नयँ होवे के चाही ? ओहे से हीआँ अइलूँ हँ ।”

“हम्मर वश में जेतना हको ओतना कोशिश करवो, अम्माजी । तूँ धीरज रखके होके आवऽ ।”
विस्तार से शिकायत लिखके देके त्यागु आउ ओक्कर माय बाहर जाते बखत ही मायावरम् से फोन आल ।
“सर, अपने के देल पता वला घर में ताला लगल हलइ । पड़ोस के घर में पूछलिअइ त बतइलका - ‘ऊ मेनका मद्रास गेला ह । कल वापस आवे ल बतइलका हल । लेकिन अइला नयँ । उनकर पति माधव यूनि सेंग्यो दवा कम्पनी में मेडिकल प्रतिनिधि हका । एक्कर सम्मेलन कोचीन में चल रहले ह । ऊ ओरा में भाग लेवे ल गेला ह । गेला तीन दिन हो गेल ह ।”
“आइ सी --- कोचीन में काहाँ ठहरला ह ?”
“पूछलिये हल । उनका ई बात मालूम नयँ । मद्रास में ओक्कर एक ठो शाखा हइ । हुआँ पूछला पर मालूम पड़तइ ।”
“थैंक यू “

टेलिफोन डायरेक्टरी उठाके दयाल ऊ दवा कम्पनी के नम्बर ढूँढ़लका । मिल्लल । ऊ कम्पनी से सम्पर्क कइलका । कोचीन में सम्मेलन चल रहले ह की, ई पूछलका । स्वप्न इंटरनेशनल होटल में सम्मेलन चल रहल ह, मायावरम् एरिया प्रतिनिधि सम्मेलन हॉल में मिलता, आउ सम्मेलन के ओहे अन्तिम दिन हइ एतना जानकारी देला के बाद होटल स्वप्न के फोन नम्बर भी देलका ।

तीस मिनट में कॉल मिलल ।

“हैलो, माधव बोल रहलिये ह; अपने केऽ बोल रहलथिन हँ ?”
“हम मद्रास अडयार पुलिस स्टेशन से बोल रहलिये ह ।”
“पुलिस स्टेशन से ?”
“हाँ, घबराथिन नयँ । मेनका अपने के वाइफ़ न ?”
“ओकरा कीऽ होले ह सर ?”
“कुछ नयँ । एक ठो छोट्टे गो दुर्घटना होले ह । अस्पताल में ऐडमिट हथुन । अपने हीआँ आ जाथिन, स्टेशन । ऊ हीआँ काहाँ ठहरला हल ?”
“अप्पन मौसी के घर पर, सर । किरपा करके बताथिन सर, ओकरा कीऽ होले ह ? मेजर ऐक्सिडेंट ? अभी होश में तो हइ ? माइ गॉड, ई कइसे होलइ ?”
“बिना घबरइले आवऽ मिस्टर माधव । ऐक्सिडेंट मतलब अप्रत्याशित, हइ कि नयँ ? अप्पन मौसी के पता बतावऽ ।”

माधव के बतावल पता दयाल नोट कइलका ।
“ऊ मद्रास काहे ल अइला हल ?”
विवरण देला के बाद माधव कहलका - “कोचीन से मद्रास एक रात के उड़ान हइ सर । कइसहूँ करके हुआँ आ जइबइ ।”

फोन रिसीवर के रखके दयाल उच्छ्वास लेलका ।
“केतना घबराहट ई अदमी के ! ‘ऐक्सिडेंट’ बस एतने मालूम होल ह । हीआँ आवे के बाद असलियत मालूम होला पर केतना तकलीफ होत ! प्रिय पत्नी से वियोग आउ ऊ भी एतना कम उमर में .... अन्याय ! चण्डाल ! ... मांगल्य सहित खतम करके ऊ महिला के वेश्या के स्थान देके अनाथ लाश जइसन जलाके ... एक्कर पीछे कोय भी रहे ओरा अइसहीं छोड़े के नयँ ! .... हम तो छोड़े वला नयँ !!”

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