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Saturday, November 26, 2011

11. मगही के दधीचि - स्व॰ डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री



लेखक - श्री शिवप्रसाद लोहानी (जन्म - 1924 ई॰), नूरसराय, जिला - नालन्दा

बात करीब-करीब 1956-57 के हे । मगही के दधीचि स्व॰ डॉ॰ श्रीकान्त शास्त्री मगही में एक कविता 'माहुरी मयंक' में छपे ला हमरा हीं भेजलका । मगही में कोई रचना छपे के बात ऊ घड़ी उटपटांग लगऽ हल । सम्पादन के सिलसिला में जैसहीं हम्मर ध्यान ऊ कविता पर गेल हम भभा के हँस गेलूँ । ई हँसी सुन के निकट में बैठल हम्मर अनुज कहलक कि कौन ऐसन बात होल कि तू एतना जोर से हँसलऽ । हम कहलूँ कि देखऽ न, श्रीकान्त शास्त्री जैसन हिन्दी संस्कृत के विद्वान ई गँवारू बोली मगही में छप्पे ला कविता भेजलका ह । तुरते हम उनका ऊ कविता एही बात लिख के वापस कर देलूँ ।

उनका ई कविता जैसे ही वापस मिलल, हमरा हीं ऊ धममदाड़ा हो गेला । उनका देख के हम फेर हँसलूँ आउ कहलूँ कि ई गँवारू बोली में कविता काहे ला भेजलऽ । अइसन अच्छा भाव-विचार के कविता हिन्दी या संस्कृत में बनैतऽ हल तो हम जरूर छापतूँ हल । हम ई गँवारू बोली के कविता छाप के पाठक के बीच हँसी के पात्र बने ला नई चाहऽ ही । आउर हम्मर पत्रिका उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उड़ीसा औ बंगाल जाहे । जरा सोचऽ कि हम्मर केतना हँसी होवत, सामाजिक पत्रिका में हम्मर पत्रिका के अच्छा नाम हे औ ई 1914 ईस्वी से छप रहल ह जौन घड़ी बिहार में इनले-गिनले पत्रिका हिन्दी में छप्पऽ हल ।

शास्त्री जी हम्मर ई बात गौर से सुनलका औ समझलका कि लोहानी जी मामूली बात से आपा में नई अइता । तो ऊ भी अप्पन बात हँसिये से शुरू कैलका कि 'ई बात जरूर हो कि छापला पर हँसी के पात्र बनवऽ, मालवीय जी भी हँसी के पात्र बनला हल जब ऊ चौराहा पर नुक्कड़ सभा में हिन्दू विश्वविद्यालय के बात करऽ हला । मगर देखऽ न कि मालवीय जी की कैलका औ कहाँ पहुँच गेला । ओइसने अगर तू भी ई छाप के अप्पन मगही मइया के श्रद्धा जतैवऽ तो एक दिन तोर नाम तो होवे करतो, ई पत्रिका 'माहुरी मयंक' भी अमर हो जैतो । औ फेर जब तू नई छापवऽ जबकि तोहर पत्रिका कोई स्तरीय साहित्यिक पत्रिका नई हे तो की, ई विशाल भारत, सरस्वती, हंस में छप्पत । एक बात तू सुन ल, कि एकरा से तू औ तोहर पत्रिका 'माहुरी मयंक' अमर हो जैतो । जब कभी भी मगही भाषा के इतिहास लिखल जैतो, या कोई शोधार्थी मगही पर शोध करतो तो उनखा 'माहुरी मयंक' औ ओकर सम्पादक के चर्चा करे पड़त । औ एक बात तू आउर  सुन लऽ कि ई पत्रिका के पहिला सम्पादक हला बाबू गोपीचन्द लाल गुप्त जे एगो माहुरी मंडल नाटक भी लिखलका ह, ऊ नाटक में मगही भाषा के प्रधानता हे, उनके उत्तराधिकारी होके तू मगही के एतना नीच दृष्टि से देखऽ ह ।

हम चुप्प हली औ भीतरे-भीतरे सोच रहली हल कि शास्त्री जी के बात में दम लगऽ हे । हम्मर गम्भीर औ शोचनीय मुद्रा देख के उनका हिम्मत बढ़ल औ मगही के शब्द शक्ति के विशेषता पर दस पन्द्रह मिनट बोलला । इनकर ऊ बात के वर्णन एही किताब के 'स्वर्गीय मगही के साहित्यकार' आउर 'मगही शब्द शक्ति' में देखल जा सकऽ हे ।

अन्त में हम ई बात पर राजी होलूँ कि 'माहुरी मयंक' में कभी-कभार मगही के रचना छापम । उनकर ऊ कविता तो छपवे कैल । इनकर अलावे सर्व श्री योगेश सिंह योगेश, मृत्युंजय मिश्र करुणेश, हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, सुरेन्द्र प्रसाद तरुण, रामाश्रय झा, देवनन्दन प्रसाद, रामगोपाल आर्यगोप, सुदामादत्त शर्मा, तारकेश्वर भारती, रामहरी राम, लक्ष्मण प्रसाद अध्यापक आदि के सैकड़ो कविता कहानी आदि छप्पल ।

शास्त्री जी बगले के थाना एकंगरसराय के वासी हला औ हम्मर गाँव से सटले अस्ता गाँव में उनकर बहन ब्याहल हली से अकसर हमरा दर्शन दे जाइ हला । कुछ दिन बाद जब ऊ अइला तो पहिले हँसला औ कहलका कि देखऽ, तोहर मगही प्रेम केतना रंग लैलक । खरबुजा देख के खरबुजा रंग बदलऽ हे । तोरा देखा-देखी तोहर अइसन दोसर पत्रिका वालन भी मगही में रचना छापे लगला ह ।

मगही उत्थान शास्त्री जी के मिशनरी स्प्रिट हल औ ऊ मगही के मिशन के रूप में मान के चलऽ हला । एही कारण हे कि आज ऊ मगही के दधीचि के रूप में स्थापित हका ।

[श्री शिवप्रसाद लोहानी लिखित "गलबात" (मगही निबन्ध संग्रह) में निबन्ध "जब हमरो हँसी आ गेल सम्पादन करे घड़ी" (पृ॰24-32) से  चुनिन्दा अंश पृ॰25-27 ]

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