विजेट आपके ब्लॉग पर

Saturday, April 28, 2012

56. "मगही पत्रिका" (वर्ष 2002: अंक 5-6) में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द


मपध॰ = मासिक "मगही पत्रिका"; सम्पादक - श्री धनंजय श्रोत्रिय, नई दिल्ली/ पटना

पहिला बारह अंक के प्रकाशन-विवरण ई प्रकार हइ -
---------------------------------------------
वर्ष       अंक       महीना               कुल पृष्ठ
---------------------------------------------
2001    1          जनवरी              44
2001    2          फरवरी              44

2002    3          मार्च                  44
2002    4          अप्रैल                44
2002    5-6       मई-जून             52
2002    7          जुलाई               44
2002    8-9       अगस्त-सितम्बर  52
2002    10-11   अक्टूबर-नवंबर   52
2002    12        दिसंबर             44
---------------------------------------------
मार्च-अप्रैल 2011 (नवांक-1) से द्वैमासिक के रूप में अभी तक 'मगही पत्रिका' के नियमित प्रकाशन हो रहले ह ।

ठेठ मगही शब्द के उद्धरण के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन वर्ष संख्या (अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर अंक संख्या; तेसर पृष्ठ संख्या, चउठा कॉलम संख्या (एक्के कॉलम रहलो पर सन्दर्भ भ्रामक नञ् रहे एकरा लगी कॉलम सं॰ 1 देल गेले ह), आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ ।

कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या (अंक 4 तक संकलित शब्द के अतिरिक्त) - 217

ठेठ मगही शब्द:

1    अंजुरी (जुवती के अंजुरी भरल हे लाल-पियर फूल से ।)    (मपध॰02:5-6:35:1.22)
2    अउ (= और) (हमर औरत सहरे में एगो मकान ठीक कइलकी हल अउ कहलकी हल - अजी सुनऽ हऽ, हमर तो विचार हे कि घर के अपन हिस्सा के खेत मकान बेच के यहीं सोमर साव वाला मकान ले लेवल जाय । हम कहलूँ हल - अञ् भाय ! भउजी से बँटवारा करे कहऽ हऽ ?  घर में एगो आउ डरवार देवे कहऽ हऽ ? जे भउजाय हमरा माय नियर पाललकी उनखा से हम कइसे ई सब कहम ?)    (मपध॰02:5-6:12:1.1)
3    अकेल्ले (= अकेले) (बाबू जी, ई ठीक हे कि रंजन सोनू के सच्चा दोस हे बकि छो महिन्ना के भाग-दौड़ ओकरा तोड़ के रख देलक हे । ऊ अब घर जाय चाह रहल हे । हमनी के पास अब पैसा-कउड़ी भी निघट चुकल हे । रंजन कोय बेवस्था करके भी जाय त कब तक ले । अकेल्ले कहीं काम खोजे में जी डेरा हे ।)    (मपध॰02:5-6:17:1.13)
4    अगड़धत्त (= ऊँचा और लम्बा, तगड़ा विशालकाय; प्रवीण, निपुण, चतुर) (हम्मर मीत प्रो॰ प्रवीण कुमार 'प्रेम' जी जदि सहियार के खंभा नञ् पकड़ले रहतन हल दिल्ली में त सायत हम 'मगही पत्रिका' के धाजा नञ् फहरा पयतूँ हल । काहे कि हमरा पास तो कउनो अगड़धत्त-अगड़धत्त वीर के गोहार तो हे नञ् ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.11)
5    अञ् (= अयँ, अईं, आयँ, ऐं) (हमरा खाय ले भउजी लिट्टी-दूध अउ चीनी दे हली । काम करमठ भेल, सेजिया दान अउ एकैसो पात लगल हल ... हम भउजी से पुछलूँ हल - अञ् भउजी ! ई सब काहे ले होवऽ हय । रोते-रोते भउजी बोललकी हल - अजी बाबू, ई सब कयला से परानी के मुक्ति मिलऽ हे ।; हमर औरत सहरे में एगो मकान ठीक कइलकी हल अउ कहलकी हल - अजी सुनऽ हऽ, हमर तो विचार हे कि घर के अपन हिस्सा के खेत मकान बेच के यहीं सोमर साव वाला मकान ले लेवल जाय । हम कहलूँ हल - अञ् भाय ! भउजी से बँटवारा करे कहऽ हऽ ?  घर में एगो आउ डरवार देवे कहऽ हऽ ? जे भउजाय हमरा माय नियर पाललकी उनखा से हम कइसे ई सब कहम ?; भउजी हौले से हँसली हल, अउ बोललकी हल - अञ् बाबू, एहाँ तोर भइया के असरा के देखत ही, रूसल के के मनावत, हो सके ऊ जो कभी आइये जइता ।)    (मपध॰02:5-6:10:2.8, 12:1.6, 2.28)
6    अभागल (= अभागा, अभागी) (कभी-कभी जी में आवऽ हे कि जहर-माहुर खा लूँ । बकि ई सोनू के साथ धोखा होत । बेचारा हमरा चलते कउन दुख नञ् भोगलक । हो सके त सोनू के पापा-मम्मी के खबर कर दीहऽ । ... अपने के अभागल बेटी - नीलम ।)    (मपध॰02:5-6:17:1.24)
7    अरग (= अर्घ्य) (रोहनी फूल से भरल अप्पन अंजुरी कौशिक कुमार के अंजुरी में उड़ेले लगल - एकदमे अरग देवे नीयर, प्रेम-भाव से ! कौशिक कुमार पूछे लगलन अनमलाएल - "ई फूल के अरग ?" - "हँ, फूल के अरग देके तोर सोवागत हम न कइली हल कबहींओ !")    (मपध॰02:5-6:35:2.22, 25, 26)
8    अरल (उत्प्रेक्षा, वीप्सा, अनुप्रास, चमक, रूपक अलंकार से त सउँसे रघुवंश अरल पड़ल हे ।)    (मपध॰02:5-6:38:1.5)
9    असरा (= आसरा) (हाँ, एगो परिवर्तन भेल हे कि मगही के सैकड़ों लेखक समष्टिवादी से व्यक्तिवादी हो गेलन हे । बाकि हिजड़ा सन थपड़ी पारे वला ई जमात से अगर अपने मगही के इतिहास में नाया अध्याय जोड़े के असरा लगैले ही त जरूर अपने के दिमाग के फ्युज उड़ गेल हे ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.11)
10    असीस (= आशीष) (डॉ॰ पंकज सलीमा से कहलक - "मौसा तोहर लेताहर बन के अयलथुन हे । तूँ चलऽ माय अउ मौसी के असीस ले लऽ ।")    (मपध॰02:5-6:15:2.6)
11    आउ (= और) (हमर औरत सहरे में एगो मकान ठीक कइलकी हल अउ कहलकी हल - अजी सुनऽ हऽ, हमर तो विचार हे कि घर के अपन हिस्सा के खेत मकान बेच के यहीं सोमर साव वाला मकान ले लेवल जाय । हम कहलूँ हल - अञ् भाय ! भउजी से बँटवारा करे कहऽ हऽ ?  घर में एगो आउ डरवार देवे कहऽ हऽ ? जे भउजाय हमरा माय नियर पाललकी उनखा से हम कइसे ई सब कहम ?)    (मपध॰02:5-6:12:1.7)
12    आद (= याद) (केकरो भउजी कहते, चाहे अपने आद करते, एगो सुत्थर जन्नी के चेहरा आगू में खड़ा हो जा हे । ममता के मूरुत, लमगर गठल देह, कजराल आँख, नाख खड़ी, ठोर लाल, गोरनार कुल मिला के देवी के रूप नियर सोहनगर ।; हमरा आद हे तनी-तनी, भइया खूब मोंट-घोंट गठल सरीर के जवान हला । ऊ कविता, कहानी लिखऽ हला, गाना-बजाना में भी इलाका में नामी हला ।)    (मपध॰02:5-6:10:1.2, 11:2.29)
13    आपस (= वापस) ('मगही पत्रिका' में ओकरा छापल जात । छपला के बाद अपने के धरोहर जस के तस आपस कर देल जात ।)    (मपध॰02:5-6:41:3.24)
14    आम-अमौरी (ई अंक के बारे में हमरा ई कहना हे कि 'एक तो करैला, उप्पर से नीम चढ़ल ।' याने एक तो अंक संयुक्तांक हे, ऊपर से ई में हजार वाद-विवाद के जड़ी महजूद हे । ऊ जड़ी हे - 'मगही के एक हजार कहावत/ लोकोक्ति' । ई कहावत/ लोकोक्ति मगह के राह-बाट, गल्ली-कुच्ची, खर-खरिहान, दर-दलान, दर-दोकान सब जगह से ऊँच-नीच, बड़-छोट, बर्हामन-सुद्दर, राड़-असराफ, खेतिहर-रईस, गरीब-अमीर, कुलीन-पतुरिया, ढोर-डांगर, चिरँय-चुरगुनी, कोदो-सामा, आम-अमौरी, छिया-गेन्हारी सबके बारे में हे ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.20)
15    इलहदा (= अलहदा; पृथक्, अलग) (जातिवाद भी खूब करऽ बाकि पहिले जाके मगही माय से अपन जात पूछ ल, दिक लगो त हम बता दे हियो, आधा से जादे लिखनिहार भाट हऽ भाट ! झुट्ठो गुनगान करे वला, सचाई से बिलकुल इलहदा ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.28)
16    उज्झट (सुदास इनकर प्रेमी हे ... केतना उज्झट आउ झकी ! ... बात-बात में झगड़े वोला ... आचार्य वशिष्ठे राम देलन हे कुलपति के ... सुदासे ठीक हे रोहनी लागी !)    (मपध॰02:5-6:36:1.8)
17    उदेस (= उद्देश्य) (विद्मान लेखक भाय-बहिन आउ पढ़ताहर भाय-बहिन से एकरा जस-के-तस प्रकाशित करे के हमर ढीठ कोरसिस ल हम माफी चाहऽ ही । एकरा जस-के-तस छापे के पीछे हमर सिरिफ एक्के उदेस हल, ऊ हल - सब तरह के मगही कहावत के एकजौर करना ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.24)
18    उसकाना (= उकसाना) (खालिद, सुमन, रणजीत धरम के देवाल ढाह के बिआह करे ला हमरा रोज-रोज उसकावऽ हथ । पटना मेडिकल कउलेज में हम्मर हौसला के तूँ जत्ते बुलंद कइलऽ हे ओकर बखान हम न कर सकऽ ही ।)    (मपध॰02:5-6:14:2.1)
19    उहँय (= वहीं) ("तू कह दिहऽ, पंकज अप्पन मरजी से बिआह करत ।" कहइत पंकज दरोजा से बहरा गेल । सचिंता अप्पन बेटा से मनमाकुल जबाब नञ् पाके झमायल मन से चुप हो गेल । उहँय बइठल सचिंता के भाय रामपुकार के भी अप्पन भगिना के बेरूखा बात सुन ठकमुरकी मार देलक ।)    (मपध॰02:5-6:13:2.28)
20    एकक (= एक-एक) (तोहनिन के उपाय नञ् सुझो त हम बता रहलियो हे कि ई सातो में से सिरिफ सरगवाली नवीनजी के रचना के प्रकाशन ले जुगत भिड़ावे पड़तो बाकी छोवो लोग के पास खाली सो-पचास मगहियन के दू दिन तक धरना देवे के काम हो । निम्मन खाना भी मिलतो उनकनहिन हीं आउ पुस्तक भी प्रकाश में आ जइतो । काहे कि छोवो लोग एकक हजार पेज तक के पुस्तक प्रकाशित करे में समर्थ हथ । हलुमान जी नियन उनकर तागत इयाद देलावे के जरूरत हे ।; सतेंद्र बाबू कुरता पहिरलन आउ रपरपाल कैलास बाबू दने चल पड़लन । जहिया से सोनू आउ नीलम फरार होल हल, तहिया से आज पहिला दिन सतेंद्र बाबू के कदम अपन दोस दने बढ़ रहल हल । रस्ता में उनका कैलास बाबू से होल बतकुच्चन के एकक बात इयाद आ रहल हल, जे नीलम के गायब होला के बाद ऊ कैलास बाबू के सुनइलन हल ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.34, 17:1.28)
21    एकजौर (विद्मान लेखक भाय-बहिन आउ पढ़ताहर भाय-बहिन से एकरा जस-के-तस प्रकाशित करे के हमर ढीठ कोरसिस ल हम माफी चाहऽ ही । एकरा जस-के-तस छापे के पीछे हमर सिरिफ एक्के उदेस हल, ऊ हल - सब तरह के मगही कहावत के एकजौर करना ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.25)
22    एकाएकी (= एक-एक करके) (एगारह बजे लगभग अइली आउ केबाड़ी खोल के भुड़की भिर चल अइली । कबूतर त सब दिन के नियन आझो हल, से जल्दीबाजी में दु-तीन कबूतर भाग परल आउ दु बच गेल । हम भुड़की भिर हाथ धइले खाड़ हली, आउ छटपटाइत कबूतर भागे ले बार-बार भुड़की भिर पहुँच जाय आउ इहे लेल दुनहुँ कबूतर एकाएकी हमर हाथ में पकड़ा गेल । हम बड़ खोस हली ।)    (मपध॰02:5-6:39:2.24)
23    ओइसहीं (= वैसे ही) (डॉ॰ पंकज मौसा के देख ओइसहीं नितरा गेल जइसे मोर सावन में नितरा हे ।)    (मपध॰02:5-6:15:1.32)
24    ओकालत (= वकालत) (हमर परिवार में बिआह के चरचा हो रहल हे । मगर तोरा तरफ से ओकालत करेओला कउनो अदमी लउकइत न हथ ।)    (मपध॰02:5-6:14:1.1)
25    ओक्कर (पास में बह रहल हे दूध नीयर उज्जर सरस्वती के जलधारा - उछलइत-कूदइत जवानी के उभार से भरल ! ओक्कर तट पर बइठल हे एगो तपस्वी जुवक - धेयान में मगन ।)    (मपध॰02:5-6:35:1.8)
26    ओगैरह (= वगैरह) (एक रोज पंकज जब दरोजा में बइठल अखबार बाँचइत हल तब ओकर मौसा रामकृपाल पूछलन - "अब तोर पढ़ाय खतमे हो गेलो अउ कत्ते अदमी हमरा रिस्ता जोड़े ला तंग करइत हथ । दु-चार लोग अप्पन बेटी के जलमपतरी अउ डिगरी के कागज ओगैरह भी थम्हा देलन हे ।")    (मपध॰02:5-6:13:1.17)
27    ओजा (= ओज्जा; उस जगह, वहाँ) (ओजा ठार पब्लिक अउ मारुति में बइठल अदमी हकबका के रह गेल कि कइसे ई बच गेल । मारुतिवला गोसा गेल अउ पब्लिक कहे लगल तोर माय खरजितिया कइलखुन हल ।)    (मपध॰02:5-6:39:3.20)
28    ओठंगना (ओकर मन में किसिम-किसिम के विचार उठइत हल । ऊ अप्पन मन के तनाव कम करे ला एगो गिरल अशोक के पेड़ के डार पर ओठंगइत बैठ गेल ।)    (मपध॰02:5-6:13:3.25)
29    कजराल (केकरो भउजी कहते, चाहे अपने आद करते, एगो सुत्थर जन्नी के चेहरा आगू में खड़ा हो जा हे । ममता के मूरुत, लमगर गठल देह, कजराल आँख, नाख खड़ी, ठोर लाल, गोरनार कुल मिला के देवी के रूप नियर सोहनगर ।)    (मपध॰02:5-6:10:1.4)
30    कनिआय (दे॰ कनियाय) (मरे से पहिले भउजी के बोला के, मइया हमनी भाय-बहीन के हाँथ धरावइत कहलक हल - "कनिआय, ई सब तोरे बाल-बुतरु हे, भगवान तोर कोख से तो नञ् देखइलका, अइसीं अतमा सिहाले जा रहल हे, मुदा ई सब के माय-बाप अब तूँहीं हऽ ।")    (मपध॰02:5-6:10:1.18)
31    कमहोस (जब हम्मर छोट भाय अउ बहीन जरी-जरी गो हल, अउ हम भी कमहोसे हलूँ, तहिने हमर बाबूजी हमनी के छोड़ के सरग चल गेला हल ।)    (मपध॰02:5-6:10:1.10)
32    कयसूँ (= कइसूँ; किसी तरह) (कयसूँ-कयसूँ रात बीतल । भोरे हम भउजी के उठावे गेलूँ हल अउ कहे ले सोंचलूँ हल कि सहर चलऽ, बकि ई की, ऊ तो दुआरी पर औंधे मुँह गिरल हली अउ बहरी दुआरी के केबाड़ी खुलल हल ।)    (मपध॰02:5-6:12:3.5)
33    करैला (= करेला) (ई अंक के बारे में हमरा ई कहना हे कि 'एक तो करैला, उप्पर से नीम चढ़ल ।' याने एक तो अंक संयुक्तांक हे, ऊपर से ई में हजार वाद-विवाद के जड़ी महजूद हे ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.15)
34    कहनाम (ओकर बाबू जी के कहनाम हे - दोसर जाति से बिआह करे पर हरिजन के बेटा-बेटी आरच्छन के लाभ से कट जयतन ।)    (मपध॰02:5-6:14:2.24)
35    कहना-सुनना (दोसर दिन पंकज घर में बिन कहले-सुनले हजारीबाग नेशनल पार्क घुमे ला चल गेल ।)    (मपध॰02:5-6:13:2.32)
36    कहिनो (दे॰ कहियो) (मगही में लोक चेतना जगावे वला संत-महातमा ढेर मनी होलन बाकि उनखर जगउनी चेला दर चेला चलते रहल । उनखर गूढ़ गेयान लिखल-सहेजल नञ् जा सकल कहिनो ।)    (मपध॰02:5-6:41:3.9)
37    काम-किरिया (= काम-किरिया; काम-क्रिया) (भउजी पुक्का फार के रो पड़ली हल - मइया जी मइया ! हमनियों भाय-बहीन लोट-लोट के काने लगलूँ हल । रो-धो के काम-किरिया खतम होल हल । घर के तरी-घरी पहिते से लगले हल, ई ले काम-किरिआ भउजी बड़ी लकधक से कइलकी हल ।; भउजी के आँख सगरखनी भइये के असरा में दुआरिये पर टँगल रहे । काहे कि माय-बाबू के बचते, बड़का भइया जे घर से भागला हल, से आज तक ले लौट के नञ् अइला । सब कहे कि उनखर भी काम-किरिया कर दऽ, मुदा भउजी कहथ, नञ् हम अप्पन हाँथ से अप्पन सेनुर नञ् पोछम ।)    (मपध॰02:5-6:10:1.28, 30, 11:2.25)
38    किताब-कोंपी (ई तरह, हमनी के टैम से खाना-कपड़ा अउ किताब-कोंपी के इंतजाम में भउजी कोय कसर नञ् करथ । बाबू जी के पाँच-छो बिगहा जमीन हल, सेकरा जन-मजूर अउ अपन मेहनत दिमाग से आबाद करा लेथ ।)    (मपध॰02:5-6:10:3.17)
39    किरिंग (= किरण) (वरुण देव के सोना नीयर किरिंग सरस्वती के चंचल जल पर खिलवाड़ कर रहल हल ।)    (मपध॰02:5-6:36:3.7)
40    केहू (= कोई भी) (ओकर मन के दरद के अंदाजा केहू लगा न सकल हल ।)    (मपध॰02:5-6:43:2.2)
41    कोढ़ी (= आलसी; बदमाश) (अरना भैंसा सन कादो में बोरल रहऽ इया कोढ़िया भैंसा सन उठान हारते रहऽ ।; चार दिन बादे दुपहरिया में ऊ फेर आ गेल । जब हम ओकरा भगावे लगली त ऊ अपन पहिलौका धमकी दोहरावे लगल । ऊ कोढ़ी के आगे हम बेबस हली ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.18, 17:1.2)
42    कोदो-सामा (ई अंक के बारे में हमरा ई कहना हे कि 'एक तो करैला, उप्पर से नीम चढ़ल ।' याने एक तो अंक संयुक्तांक हे, ऊपर से ई में हजार वाद-विवाद के जड़ी महजूद हे । ऊ जड़ी हे - 'मगही के एक हजार कहावत/ लोकोक्ति' । ई कहावत/ लोकोक्ति मगह के राह-बाट, गल्ली-कुच्ची, खर-खरिहान, दर-दलान, दर-दोकान सब जगह से ऊँच-नीच, बड़-छोट, बर्हामन-सुद्दर, राड़-असराफ, खेतिहर-रईस, गरीब-अमीर, कुलीन-पतुरिया, ढोर-डांगर, चिरँय-चुरगुनी, कोदो-सामा, आम-अमौरी, छिया-गेन्हारी सबके बारे में हे ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.20)
43    कोना-सांधी (= कोना-सान्ही) (ओकर मन में प्तिशोध के आग धधक रहल हल । परिवार के प्रति ओकर मन के कोनो कोना-सांधी में जरियो जगह न हल ।)    (मपध॰02:5-6:43:3.10)
44    कोहवर (= कोहबर) (जानकार बतावो हका कि 'जोगिया भवन' के संबंध जैन धर्म से हे, मुदा हिंदू लोग भी वियाह करे लगी एहाँ आवो हथ । कोहवर लिखाई के जइसन जेकरा कोहवरवा पेंटिंग कहल जाहे, जोगिया भवन गुफा के देवाल पर अंकित हे ।)    (मपध॰02:5-6:43:1.19)
45    कौर-घोंट (= कोर-घोंट) (आखिर अकलू काका, आउ सब नाता-कुटुम के कहला से, बात एक सो एक पर तय होल । सब धमा-कुचड़ी करके खैलका, अउ बाबाजी सब मोटरी बाँध-बाँध के घरे भी ले गेला । मुदा भउजी के हम कखनियों नञ् खाइत देखलूँ । हम कहवो करियय तो कौर-घोंट खा के पानी पी लेथ ।)    (मपध॰02:5-6:10:3.10)
46    खर-खरिहान (ई अंक के बारे में हमरा ई कहना हे कि 'एक तो करैला, उप्पर से नीम चढ़ल ।' याने एक तो अंक संयुक्तांक हे, ऊपर से ई में हजार वाद-विवाद के जड़ी महजूद हे । ऊ जड़ी हे - 'मगही के एक हजार कहावत/ लोकोक्ति' । ई कहावत/ लोकोक्ति मगह के राह-बाट, गल्ली-कुच्ची, खर-खरिहान, दर-दलान, दर-दोकान सब जगह से ऊँच-नीच, बड़-छोट, बर्हामन-सुद्दर, राड़-असराफ, खेतिहर-रईस, गरीब-अमीर, कुलीन-पतुरिया, ढोर-डांगर, चिरँय-चुरगुनी, कोदो-सामा, आम-अमौरी, छिया-गेन्हारी सबके बारे में हे ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.18)
47    खरजितिया (ओजा ठार पब्लिक अउ मारुति में बइठल अदमी हकबका के रह गेल कि कइसे ई बच गेल । मारुतिवला गोसा गेल अउ पब्लिक कहे लगल तोर माय खरजितिया कइलखुन हल ।)    (मपध॰02:5-6:39:3.25)
48    खेत-बारी (दे॰ खेती-बारी) (हम भउजी के केतना बेरी कहलूँ - भउजी हमरे साथे रहऽ, मुदा भउजी के घर-दुआर, खेत-बारी के ममता बाँध ले हल । अउ असरा के डोरी पकड़ले हली भउजी, भइया के आवे के इंतजार में ।)    (मपध॰02:5-6:11:3.22)
49    गल्ली-कुच्ची (ई अंक के बारे में हमरा ई कहना हे कि 'एक तो करैला, उप्पर से नीम चढ़ल ।' याने एक तो अंक संयुक्तांक हे, ऊपर से ई में हजार वाद-विवाद के जड़ी महजूद हे । ऊ जड़ी हे - 'मगही के एक हजार कहावत/ लोकोक्ति' । ई कहावत/ लोकोक्ति मगह के राह-बाट, गल्ली-कुच्ची, खर-खरिहान, दर-दलान, दर-दोकान सब जगह से ऊँच-नीच, बड़-छोट, बर्हामन-सुद्दर, राड़-असराफ, खेतिहर-रईस, गरीब-अमीर, कुलीन-पतुरिया, ढोर-डांगर, चिरँय-चुरगुनी, कोदो-सामा, आम-अमौरी, छिया-गेन्हारी सबके बारे में हे ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.18)
50    गारना (चिट्ठी पढ़ते घड़ी उनकर चेहरा पर कय तरह के रंग आल आउ चल गेल । अंतिम में लग रहल हल कि कैलास बाबू के कोय फीचल कपड़ा नियन गार देलक हे ।)    (मपध॰02:5-6:17:1.33)
51    गोसा-पित्ता (दे॰ गोस्सा-पित्ता) (एहे सब गोसा-पित्ता में भइया, जे घर छोड़ के गेला, से आझ तक ले सब परिवार आँख फारते हे ।)    (मपध॰02:5-6:11:3.9)
52    चंपाचीनी (= चिनियाँ केला) (चंपाचीनी, लाटेन, खासदिया, सिंघापुरी आउ इलायची केला, केला के प्रमुख किसिम हे अपन देस के । इलायची केला छोटा होवऽ हे बकि मिट्ठा होवऽ हे ।)    (मपध॰02:5-6:40:2.5)
53    चर-चर (= चार-चार) ('तीन कनौजिया तेरह चुल्हा' के जगह पर 'तेंरह' चुल्हा, ई कहावत के साधु रूप हे । काहे कि 'तेरह' चुल्हा त सिरिफ ई बतावे हे कि तीनो कनौजियन के पास चर-चर चुल्हा से कम नञ् हल ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.4)
54    चा (= चाचा) (इलाका के हर आदमी उनखा आदर के भाव से ईश्वरी चा कहऽ हल । छो बच्छर पहिले 'ईश्वरी चा' के काल अप्पन गाल में दबा लेलक ।)    (मपध॰02:5-6:13:1.8)
55    चाँतना (= दबाना) (भाय जी, आपस में लड़ऽ, खूब लड़ऽ, डंका बजा के लड़ऽ बाकि लड़ंतिया पहलमान नियन, जेकरा देख के जमाना दाँत तर अँगुरी चाँत ले । राँड़ी-बेटखौकी नियन नञ् ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.26)
56    चान (= चाँद) (भक-भक गोर, लम्मा छरहरा बदन, कंधा पर झुलइत घुंघराला बाल, टूसा नियन नाक, चान भी जेकरा देखके सिहा जाय अइसन सुंदर चेहरा वाला शिल्पी सुरेंद्र के देख के अचोक्के मुँह से निकल जा हल, इनकर सिरजन विधाता फुरसत के घड़ी में कैलन हे ।)    (मपध॰02:5-6:7:1.10)
57    चिनियाँ (~ केला) (इलायची केला छोटा होवऽ हे बकि मिट्ठा होवऽ हे । इहे तरह हाजीपुर में पावल जाय वला चिनियाँ केला भी अपना सामने केकरो टिक्के नञ् देहे । हुआँ उपजे वला मुठिया केला सबसे दोयम दरजा के केला हे । तिकोनिया केला जे मुठिया केला के अइसन जात हे जेकर सिरिफ सब्जी बनवल जाहे ।)    (मपध॰02:5-6:40:2.8)
58    चिरँई-चिरगुनी (अगल-बगल के झाड़ी-झूड़ी से झुंड के झुंड चिरँई-चिरगुनी चहचहा के घोसना कर रहल हथ - भोर होय के ।)    (मपध॰02:5-6:35:1.15)
59    चिरँय-चुरगुनी (ई अंक के बारे में हमरा ई कहना हे कि 'एक तो करैला, उप्पर से नीम चढ़ल ।' याने एक तो अंक संयुक्तांक हे, ऊपर से ई में हजार वाद-विवाद के जड़ी महजूद हे । ऊ जड़ी हे - 'मगही के एक हजार कहावत/ लोकोक्ति' । ई कहावत/ लोकोक्ति मगह के राह-बाट, गल्ली-कुच्ची, खर-खरिहान, दर-दलान, दर-दोकान सब जगह से ऊँच-नीच, बड़-छोट, बर्हामन-सुद्दर, राड़-असराफ, खेतिहर-रईस, गरीब-अमीर, कुलीन-पतुरिया, ढोर-डांगर, चिरँय-चुरगुनी, कोदो-सामा, आम-अमौरी, छिया-गेन्हारी सबके बारे में हे ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.20)
60    छछनना (सलीमा बोलल - "माय के मन के सुक्खल नदी तोहर मुहब्बत के बाढ़ देखे ला छछनइत हे । हमरो आँख उनकर दरसन ला तरसइत हे । हाली सन चले के तइयारी करऽ ।")    (मपध॰02:5-6:15:2.24)
61    छिया-गेन्हारी (ई अंक के बारे में हमरा ई कहना हे कि 'एक तो करैला, उप्पर से नीम चढ़ल ।' याने एक तो अंक संयुक्तांक हे, ऊपर से ई में हजार वाद-विवाद के जड़ी महजूद हे । ऊ जड़ी हे - 'मगही के एक हजार कहावत/ लोकोक्ति' । ई कहावत/ लोकोक्ति मगह के राह-बाट, गल्ली-कुच्ची, खर-खरिहान, दर-दलान, दर-दोकान सब जगह से ऊँच-नीच, बड़-छोट, बर्हामन-सुद्दर, राड़-असराफ, खेतिहर-रईस, गरीब-अमीर, कुलीन-पतुरिया, ढोर-डांगर, चिरँय-चुरगुनी, कोदो-सामा, आम-अमौरी, छिया-गेन्हारी सबके बारे में हे ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.21)
62    छेदा (हाय रे हमर जरल भाग ! पाँचे मिनट में फेर कॉलबेल बजल । छेदा से देखली त सोनू हल । एक कमरा के फ्लैट में ओकरा कहाँ छिपैती हल । सोनू भीतर आल । हम ओकरा सब कुछ सच-सच बता देली ।)    (मपध॰02:5-6:17:1.3)
63    छोटगर (जनम स्थान के आसपास के दस किलोमीटर पहाड़ से घिरल स्थान में दू गो छोटगर आदिवासी गाँव के अलावे आउर कोय गाँव नञ् हे ।)    (मपध॰02:5-6:42:3.8)
64    जखनी (दे॰ जखने) (हमरा आद हे तनी-तनी, भइया खूब मोंट-घोंट गठल सरीर के जवान हला । ऊ कविता, कहानी लिखऽ हला, गाना-बजाना में भी इलाका में नामी हला । डरामा के खूबे करऽ हला । जखनी राजा के पाठ करथ, तो लगे कि सच्चो के राजा रहथ ।)    (मपध॰02:5-6:11:2.30)
65    जखने (= जखनी; जिस क्षण; जब) (सच्चो एक दिन भउजी के साथे हम बजार गेलूँ हल, हिसुआ, महाजन के दोकान । जेवर बेचला पर ढेर मनी पैसा भेल हल । बेसे बेसे जेवर में भी टाँकी बाद हो गेलइ हल । हम पुछलूँ - अञ् भउजी, ई टाँकी की होवऽ हइ ? ऊ बोललकी - ई सब सेठ-महाजन के बनौरी हइ जी । जखने जेवर खरीदऽ तखने टाँकी-टाँका नञ् होवे अउ जखने बेचऽ तखने रुपइया में चार आना, पाँच आना टाँकी बाद कटवे करत ।)    (मपध॰02:5-6:11:1.23)
66    जगउनी (मगही में लोक चेतना जगावे वला संत-महातमा ढेर मनी होलन बाकि उनखर जगउनी चेला दर चेला चलते रहल । उनखर गूढ़ गेयान लिखल-सहेजल नञ् जा सकल कहिनो ।)    (मपध॰02:5-6:41:3.6)
67    जड़ी (= जड़) (ई अंक के बारे में हमरा ई कहना हे कि 'एक तो करैला, उप्पर से नीम चढ़ल ।' याने एक तो अंक संयुक्तांक हे, ऊपर से ई में हजार वाद-विवाद के जड़ी महजूद हे । ऊ जड़ी हे - 'मगही के एक हजार कहावत/ लोकोक्ति' ।; बदलल समय मोताबिक मौसा के गोस्सा ओइसहीं ठंढा होवे लगल जइसे लोछियाल गेहुँअन नट के जड़ी देख मन मार ले हे ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.15, 16, 15:1.30)
68    जत्ते (= जितना) (खालिद, सुमन, रणजीत धरम के देवाल ढाह के बिआह करे ला हमरा रोज-रोज उसकावऽ हथ । पटना मेडिकल कउलेज में हम्मर हौसला के तूँ जत्ते बुलंद कइलऽ हे ओकर बखान हम न कर सकऽ ही ।)    (मपध॰02:5-6:14:2.2)
69    जनकारी (= जानकारी) (डॉ॰ रामप्रसाद सिंह पर पिछला दू दशक से कोय माय के लाल ई आरोप नञ् लगा सकऽ हे । दू दशक के पहिले के बात के जनकारी कम से कम हमरा नञ् हे ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.23)
70    जन-मजूर (ई तरह, हमनी के टैम से खाना-कपड़ा अउ किताब-कोंपी के इंतजाम में भउजी कोय कसर नञ् करथ । बाबू जी के पाँच-छो बिगहा जमीन हल, सेकरा जन-मजूर अउ अपन मेहनत दिमाग से आबाद करा लेथ ।)    (मपध॰02:5-6:10:3.21)
71    जन्नी (= औरत; स्त्री; पत्नी) (केकरो भउजी कहते, चाहे अपने आद करते, एगो सुत्थर जन्नी के चेहरा आगू में खड़ा हो जा हे । ममता के मूरुत, लमगर गठल देह, कजराल आँख, नाख खड़ी, ठोर लाल, गोरनार कुल मिला के देवी के रूप नियर सोहनगर ।)    (मपध॰02:5-6:10:1.2)
72    जरना (= जलना) (एहे सब गोसा-पित्ता में भइया, जे घर छोड़ के गेला, से आझ तक ले सब परिवार आँख फारते हे । माय-बाबू जी गुजर गेला, मुदा भउजी के आँख में असरा के दीआ जरते हल ।; हाय रे हमर जरल भाग ! पाँचे मिनट में फेर कॉलबेल बजल । छेदा से देखली त सोनू हल ।)    (मपध॰02:5-6:11:3.14, 17:1.3)
73    जराना (= जलाना) (डॉ॰ रामप्रसाद सिंह के एकेश्वरवाद से झरकी बरो त तूहूँ फेंटा से माल निकालऽ ! घर जरावऽ मगही माय ले । तोरो जय-जयकार होतो ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.20)
74    जरी (~ गो = छोटा-सा) (जब हम्मर छोट भाय अउ बहीन जरी-जरी गो हल, अउ हम भी कमहोसे हलूँ, तहिने हमर बाबूजी हमनी के छोड़ के सरग चल गेला हल ।)    (मपध॰02:5-6:10:1.9)
75    जलढारी (~ में जलढारी करना) (ठाकुर रामबालक सिंह, डॉ॰ श्रीकांत शास्त्री, सुरेश दुबे 'सरस', अवधकिशोर सिंह, राजेंद्र कुमार 'यौधेय', पुंडरीक जी, मथुरा प्रसाद 'नवीन' सरग से उठ के मगही के बगैचा में जलढारी करे ल नञ् अइतन ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.16)
76    जलमपतरी (= जन्म-पत्रिका, जन्म-कुंडली) (एक रोज पंकज जब दरोजा में बइठल अखबार बाँचइत हल तब ओकर मौसा रामकृपाल पूछलन - "अब तोर पढ़ाय खतमे हो गेलो अउ कत्ते अदमी हमरा रिस्ता जोड़े ला तंग करइत हथ । दु-चार लोग अप्पन बेटी के जलमपतरी अउ डिगरी के कागज ओगैरह भी थम्हा देलन हे ।")    (मपध॰02:5-6:13:1.16)
77    जहर-माहुर (कभी-कभी जी में आवऽ हे कि जहर-माहुर खा लूँ । बकि ई सोनू के साथ धोखा होत । बेचारा हमरा चलते कउन दुख नञ् भोगलक ।)    (मपध॰02:5-6:17:1.20)
78    जुकुत (= जुकुर; लायक) (वर्मा जी के रघुवंश से सिंगार, करुन, भगति रस के बढ़िया धारा बहइत हे । हर तरह से ई रचना सराहे जुकुत हे ।)    (मपध॰02:5-6:39:2.6)
79    जेठसाली (= डेड़साली) (पंकज टुभकल - "अभी हम बिआह के जाल में न फँसे ले चाहऽ ही ।" रामकृपाल के जेठसाली अउ पंकज माय सचिंता बोललन - केतना लोग हमरो से लड़की देखे ला आरजू-मिन्नत कर रहलन हे ।; एक दिन सचिंता से रामकृपाल डॉ॰ पंकज के जस-गाथा गावे लगल । अप्पन पूत के बड़ाय सुन के सचिंता के हिरदा पसीजे लगल । जेठसाली सचिंता के कहला पर रामकृपाल अप्पन सढ़बेटा डॉ॰ पंकज के पास गेलन ।)    (मपध॰02:5-6:13:1.21, 15:1.25)
80    जेसे (= जिससे, जिसके कारण) (उहे दुनहुँ कबूतर हे जेकरा हम कल पकड़ के आजाद कइली हल । आझ ओकरे दया के फल हमरा मिलल जेसे बच गेली हे ।)    (मपध॰02:5-6:39:3.33)
81    जोड़ (= जोर) (काँपते हाँथ से लिफाफा खोललन सतेंदर बाबू । जोड़-जोड़ से धड़के लगल उनकर छाती । आठ तह मोड़ल कागज के सीधा करके पढ़े लगलन ऊ हाली-हाली ।; ऊ आव देखलक न ताव, बगल में रखल ताँबा के गणेश जी जोड़ से ओकर माथा पर पटक देलक । खून के फचक्का से एक तरफ के देवाल रँगा गेल कोठरी के ।)    (मपध॰02:5-6:16:1.1, 17:1.5)
82    जोड़ंडा (= जुड़ा हुआ, संयुक्त) (गाँधी जी नियन बुलौकिया बुले पड़ऽ हे, ई गुने दिल्ली देर से पहुँचली, जे से मई-जून अंक जोड़ंडा हे ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.14)
83    जोवायल (= जुआयल, जुआल) (मगह इलाका में प्रतिभा के ढेरो पेड़ लगल हे त कत्ते पेड़ लोघड़ा गेल हे । अइसने दमगर अउ जोवायल पेड़ डॉ॰ नरेश वर्मा हथ जे कहानीकार, नाटककार, निबंधकार, कवि अउ अनुवादक के पाँच गो डउँघी के रूप ले के मगही धरती पर छाया देइत हथ ।)    (मपध॰02:5-6:37:1.3)
84    झमाना ("तू कह दिहऽ, पंकज अप्पन मरजी से बिआह करत ।" कहइत पंकज दरोजा से बहरा गेल । सचिंता अप्पन बेटा से मनमाकुल जबाब नञ् पाके झमायल मन से चुप हो गेल ।)    (मपध॰02:5-6:13:2.27)
85    झरकी (= झरक; डाह; जलन) (~ बरना) (डॉ॰ रामप्रसाद सिंह के एकेश्वरवाद से झरकी बरो त तूहूँ फेंटा से माल निकालऽ ! घर जरावऽ मगही माय ले । तोरो जय-जयकार होतो ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.20)
86    झाड़ी-झूड़ी (अगल-बगल के झाड़ी-झूड़ी से झुंड के झुंड चिरँई-चिरगुनी चहचहा के घोसना कर रहल हथ - भोर होय के ।)    (मपध॰02:5-6:35:1.14)
87    झुट्ठो (जातिवाद भी खूब करऽ बाकि पहिले जाके मगही माय से अपन जात पूछ ल, दिक लगो त हम बता दे हियो, आधा से जादे लिखनिहार भाट हऽ भाट ! झुट्ठो गुनगान करे वला, सचाई से बिलकुल इलहदा ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.27)
88    टाँकी (सच्चो एक दिन भउजी के साथे हम बजार गेलूँ हल, हिसुआ, महाजन के दोकान । जेवर बेचला पर ढेर मनी पैसा भेल हल । बेसे बेसे जेवर में भी टाँकी बाद हो गेलइ हल । हम पुछलूँ - अञ् भउजी, ई टाँकी की होवऽ हइ ? ऊ बोललकी - ई सब सेठ-महाजन के बनौरी हइ जी । जखने जेवर खरीदऽ तखने टाँकी-टाँका नञ् होवे अउ जखने बेचऽ तखने रुपइया में चार आना, पाँच आना टाँकी बाद कटवे करत ।)    (मपध॰02:5-6:11:1.19, 21, 24, 26)
89    टाँकी-टाँका (सच्चो एक दिन भउजी के साथे हम बजार गेलूँ हल, हिसुआ, महाजन के दोकान । जेवर बेचला पर ढेर मनी पैसा भेल हल । बेसे बेसे जेवर में भी टाँकी बाद हो गेलइ हल । हम पुछलूँ - अञ् भउजी, ई टाँकी की होवऽ हइ ? ऊ बोललकी - ई सब सेठ-महाजन के बनौरी हइ जी । जखने जेवर खरीदऽ तखने टाँकी-टाँका नञ् होवे अउ जखने बेचऽ तखने रुपइया में चार आना, पाँच आना टाँकी बाद कटवे करत ।)    (मपध॰02:5-6:11:1.24)
90    टिटकारी (~ पारना) (ठाकुर रामबालक सिंह, डॉ॰ श्रीकांत शास्त्री, सुरेश दुबे 'सरस', अवधकिशोर सिंह, राजेंद्र कुमार 'यौधेय', पुंडरीक जी, मथुरा प्रसाद 'नवीन' सरग से उठ के मगही के बगैचा में जलढारी करे ल नञ् अइतन । नञ् डॉ॰ रामनंदन, मिथिलेश, श्रीनंदन शास्त्री, डॉ॰ संपत्ति अर्याणी, योगेश्वर प्रसाद सिंह 'योगेश', जयराम सिंह, हरिश्चंद्र 'प्रियदर्शी', मगहिया जी आउ बाबू मधुकर के रुगरुगाल हड्डी में पहिलौंठ जवानी के जोश आत, जे अपने के टिटकारी पार के जगा सकत ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.18)
91    टैम (= टाइम, बखत) (ई तरह, हमनी के टैम से खाना-कपड़ा अउ किताब-कोंपी के इंतजाम में भउजी कोय कसर नञ् करथ । बाबू जी के पाँच-छो बिगहा जमीन हल, सेकरा जन-मजूर अउ अपन मेहनत दिमाग से आबाद करा लेथ ।)    (मपध॰02:5-6:10:3.16)
92    टोला-टाटी (हम कुछ दूध घरे में रख के बाकी टोला-टाटी में बेच देम, जेकरा से घर के आमदनी बढ़त ।)    (मपध॰02:5-6:11:1.3)
93    ठकना (= ठगना) (श्रीनंदन शास्त्री जी ठीक कहऽ हथ - "दुनियाँ तो बढ़ करके चाँद पर चल गेल, तूँ हीऐं के हीऐं रह गेलऽ ।" अगर हम झूठ कहते ही त हमरा जे सजाय देवऽ, सहे ल तैयार ही । भइया जी ! जेकर धन जे रन-वन रोवे, फकिरवा ठक-ठक खाय ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.14)
94    ठकमुरकी (~ मारना) ("तू कह दिहऽ, पंकज अप्पन मरजी से बिआह करत ।" कहइत पंकज दरोजा से बहरा गेल । सचिंता अप्पन बेटा से मनमाकुल जबाब नञ् पाके झमायल मन से चुप हो गेल । उहँय बइठल सचिंता के भाय रामपुकार के भी अप्पन भगिना के बेरूखा बात सुन ठकमुरकी मार देलक ।)    (मपध॰02:5-6:13:2.30)
95    ठार (= ठाड़, खड़ी; खड़ा) (ओजा ठार पब्लिक अउ मारुति में बइठल अदमी हकबका के रह गेल कि कइसे ई बच गेल । मारुतिवला गोसा गेल अउ पब्लिक कहे लगल तोर माय खरजितिया कइलखुन हल ।)    (मपध॰02:5-6:39:3.20)
96    ठोकराना (= ठुकराना) (तोरा त कुछ-कुछ लस-फुस बबीता से भी चल रहल हल ?", सलीमा पुछलक, "का ऊ तोर प्रेम के ठोकरा देलको ?")    (मपध॰02:5-6:14:2.10)
97    डउँघी (मगह इलाका में प्रतिभा के ढेरो पेड़ लगल हे त कत्ते पेड़ लोघड़ा गेल हे । अइसने दमगर अउ जोवायल पेड़ डॉ॰ नरेश वर्मा हथ जे कहानीकार, नाटककार, निबंधकार, कवि अउ अनुवादक के पाँच गो डउँघी के रूप ले के मगही धरती पर छाया देइत हथ । हर डउँघी के अप्पन अलग पहचान हे ।)    (मपध॰02:5-6:37:1.5, 6)
98    डरवार (छोटका भाय बँटवारा करके अलगे रहऽ लगल अपन हिस्सा लेके । घर में डरवार पड़ गेल । मुदा भउजी अप्पन अउ हम्मर हिस्सा के दुआरी पर दीआ बार के ढेर रात ले बैठल रहथ ।; हमर औरत सहरे में एगो मकान ठीक कइलकी हल अउ कहलकी हल - अजी सुनऽ हऽ, हमर तो विचार हे कि घर के अपन हिस्सा के खेत मकान बेच के यहीं सोमर साव वाला मकान ले लेवल जाय । हम कहलूँ हल - अञ् भाय ! भउजी से बँटवारा करे कहऽ हऽ ?  घर में एगो आउ डरवार देवे कहऽ हऽ ? जे भउजाय हमरा माय नियर पाललकी उनखा से हम कइसे ई सब कहम ?)    (मपध॰02:5-6:11:3.27, 12:1.7)
99    ढुकना (= घुसना, प्रवेश करना) (पंकज के बहिन अमीता बोलल - "हम मलेच्छ भौजाय के घर में ढुके न देम । ओकर बनावल अउ परोसल हम न खायम ।")    (मपध॰02:5-6:14:3.30)
100    तखने (= तखनी; उस क्षण; तब) (सच्चो एक दिन भउजी के साथे हम बजार गेलूँ हल, हिसुआ, महाजन के दोकान । जेवर बेचला पर ढेर मनी पैसा भेल हल । बेसे बेसे जेवर में भी टाँकी बाद हो गेलइ हल । हम पुछलूँ - अञ् भउजी, ई टाँकी की होवऽ हइ ? ऊ बोललकी - ई सब सेठ-महाजन के बनौरी हइ जी । जखने जेवर खरीदऽ तखने टाँकी-टाँका नञ् होवे अउ जखने बेचऽ तखने रुपइया में चार आना, पाँच आना टाँकी बाद कटवे करत ।)    (मपध॰02:5-6:11:1.25)
101    तर (= तले; अन्दर) (भाय जी, आपस में लड़ऽ, खूब लड़ऽ, डंका बजा के लड़ऽ बाकि लड़ंतिया पहलमान नियन, जेकरा देख के जमाना दाँत तर अँगुरी चाँत ले । राँड़ी-बेटखौकी नियन नञ् ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.25)
102    तरी-घरी (भउजी पुक्का फार के रो पड़ली हल - मइया जी मइया ! हमनियों भाय-बहीन लोट-लोट के काने लगलूँ हल । रो-धो के काम-किरिआ खतम होल हल । घर के तरी-घरी पहिते से लगले हल, ई ले काम-किरिआ भउजी बड़ी लकधक से कइलकी हल ।)    (मपध॰02:5-6:10:1.29)
103    तिकोनिया (इलायची केला छोटा होवऽ हे बकि मिट्ठा होवऽ हे । इहे तरह हाजीपुर में पावल जाय वला चिनियाँ केला भी अपना सामने केकरो टिक्के नञ् देहे । हुआँ उपजे वला मुठिया केला सबसे दोयम दरजा के केला हे । तिकोनिया केला जे मुठिया केला के अइसन जात हे जेकर सिरिफ सब्जी बनवल जाहे ।)    (मपध॰02:5-6:40:2.11)
104    तीत (= तिक्त; तित्ता; तीखा) (तीत लगे इया मीठ, हम साफ कहम कि तोहनी के चलते मगही के भी स्थिति 'तेंरह' वला बन गेल हे । नहियों-नहियों त एक हजार फरागत लिखवइया हथ मगही में ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.7)
105    तोहनिन (= तोहन्हीं) (तोहनिन के उपाय नञ् सुझो त हम बता रहलियो हे कि ई सातो में से सिरिफ सरगवाली नवीनजी के रचना के प्रकाशन ले जुगत भिड़ावे पड़तो बाकी छोवो लोग के पास खाली सो-पचास मगहियन के दू दिन तक धरना देवे के काम हो । निम्मन खाना भी मिलतो उनकनहिन हीं आउ पुस्तक भी प्रकाश में आ जइतो । काहे कि छोवो लोग एकक हजार पेज तक के पुस्तक प्रकाशित करे में समर्थ हथ । हलुमान जी नियन उनकर तागत इयाद देलावे के जरूरत हे ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.31)
106    थम्हाना (= सौंपना) (एक रोज पंकज जब दरोजा में बइठल अखबार बाँचइत हल तब ओकर मौसा रामकृपाल पूछलन - "अब तोर पढ़ाय खतमे हो गेलो अउ कत्ते अदमी हमरा रिस्ता जोड़े ला तंग करइत हथ । दु-चार लोग अप्पन बेटी के जलमपतरी अउ डिगरी के कागज ओगैरह भी थम्हा देलन हे ।")    (मपध॰02:5-6:13:1.17)
107    थुम्हा (साँप काटे पर केला के थुम्हा के 2 तोला रस निकाल के ओकरा में 10 गोलकी मिर्च पिस के मिला के पिलावे से लाभ पहुँचऽ हे ।)    (मपध॰02:5-6:41:2.2)
108    थुम्हाँ (दे॰ थुम्हा) (केला के थुम्हाँ के चार चम्मच रस ले के एकरा में दु चम्मच घी मिला के पिलावे से पेशाब खुल के आवऽ हे ।)    (मपध॰02:5-6:41:2.17)
109    थोड़े-थाड़ (मगही में लोक चेतना जगावे वला संत-महातमा ढेर मनी होलन बाकि उनखर जगउनी चेला दर चेला चलते रहल । उनखर गूढ़ गेयान लिखल-सहेजल नञ् जा सकल कहिनो । इहे गति लोकगीत आउ कविता-कहानी के होल । थोड़े-थाड़ जे सहेजल गेल ऊहो राय-छित्तिर हो गेल ।)    (मपध॰02:5-6:41:3.11)
110    दर-दलान (ई अंक के बारे में हमरा ई कहना हे कि 'एक तो करैला, उप्पर से नीम चढ़ल ।' याने एक तो अंक संयुक्तांक हे, ऊपर से ई में हजार वाद-विवाद के जड़ी महजूद हे । ऊ जड़ी हे - 'मगही के एक हजार कहावत/ लोकोक्ति' । ई कहावत/ लोकोक्ति मगह के राह-बाट, गल्ली-कुच्ची, खर-खरिहान, दर-दलान, दर-दोकान सब जगह से ऊँच-नीच, बड़-छोट, बर्हामन-सुद्दर, राड़-असराफ, खेतिहर-रईस, गरीब-अमीर, कुलीन-पतुरिया, ढोर-डांगर, चिरँय-चुरगुनी, कोदो-सामा, आम-अमौरी, छिया-गेन्हारी सबके बारे में हे ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.18)
111    दर-दोकान (ई अंक के बारे में हमरा ई कहना हे कि 'एक तो करैला, उप्पर से नीम चढ़ल ।' याने एक तो अंक संयुक्तांक हे, ऊपर से ई में हजार वाद-विवाद के जड़ी महजूद हे । ऊ जड़ी हे - 'मगही के एक हजार कहावत/ लोकोक्ति' । ई कहावत/ लोकोक्ति मगह के राह-बाट, गल्ली-कुच्ची, खर-खरिहान, दर-दलान, दर-दोकान सब जगह से ऊँच-नीच, बड़-छोट, बर्हामन-सुद्दर, राड़-असराफ, खेतिहर-रईस, गरीब-अमीर, कुलीन-पतुरिया, ढोर-डांगर, चिरँय-चुरगुनी, कोदो-सामा, आम-अमौरी, छिया-गेन्हारी सबके बारे में हे ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.18)
112    दरोजा (= दरवाजा; मकान का प्रवेशद्वार; बैठका, पुरुषों का बैठकखाना) (एक रोज पंकज जब दरोजा में बइठल अखबार बाँचइत हल तब ओकर मौसा रामकृपाल पूछलन - "अब तोर पढ़ाय खतमे हो गेलो अउ कत्ते अदमी हमरा रिस्ता जोड़े ला तंग करइत हथ । दु-चार लोग अप्पन बेटी के जलमपतरी अउ डिगरी के कागज ओगैरह भी थम्हा देलन हे ।"; "तू कह दिहऽ, पंकज अप्पन मरजी से बिआह करत ।" कहइत पंकज दरोजा से बहरा गेल । सचिंता अप्पन बेटा से मनमाकुल जबाब नञ् पाके झमायल मन से चुप हो गेल ।)    (मपध॰02:5-6:13:1.11, 2.25)
113    दिक (= परेशानी) (जातिवाद भी खूब करऽ बाकि पहिले जाके मगही माय से अपन जात पूछ ल, दिक लगो त हम बता दे हियो, आधा से जादे लिखनिहार भाट हऽ भाट !)    (मपध॰02:5-6:5:1.27)
114    दोयम (~ दरजा) (इलायची केला छोटा होवऽ हे बकि मिट्ठा होवऽ हे । इहे तरह हाजीपुर में पावल जाय वला चिनियाँ केला भी अपना सामने केकरो टिक्के नञ् देहे । हुआँ उपजे वला मुठिया केला सबसे दोयम दरजा के केला हे । तिकोनिया केला जे मुठिया केला के अइसन जात हे जेकर सिरिफ सब्जी बनवल जाहे ।)    (मपध॰02:5-6:40:2.10)
115    धमा-कुचड़ी (आखिर अकलू काका, आउ सब नाता-कुटुम के कहला से, बात एक सो एक पर तय होल । सब धमा-कुचड़ी करके खैलका, अउ बाबाजी सब मोटरी बाँध-बाँध के घरे भी ले गेला ।)    (मपध॰02:5-6:10:3.6)
116    नबालिग (= नाबालिग) (रस्ता में उनका कैलास बाबू से होल बतकुच्चन के एकक बात इयाद आ रहल हल, जे नीलम के गायब होला के बाद ऊ कैलास बाबू के सुनइलन हल । एकरा कैलास बाबू के सबर कही कि ऊ सतेंद्र बाबू के बात पर लाठी-भाला आउ बंदुक-पिस्तौल तक नञ् गेलन । काहे कि लोग के नजर में उनकर बेटा सोनू गुनहगार हल जे मुहल्ला के एगो नबालिग लड़की के भगा के ले गेल हल ।)    (मपध॰02:5-6:17:1.30)
117    नहियों-नहियों (~ त = केतनो कम त; कितना भी कम तो) (तीत लगे इया मीठ, हम साफ कहम कि तोहनी के चलते मगही के भी स्थिति 'तेंरह' वला बन गेल हे । नहियों-नहियों त एक हजार फरागत लिखवइया हथ मगही में । ओकर बादो आगू के जगह पर पिछुए होल जा रहल हे मगही ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.7)
118    नाया-नोहर (ऐसे देखल जाय तो नाया-नोहर अरुण जेठली भी कभी कोय भ्रष्टाचार के जद में नञ् हलन हे ।)    (मपध॰02:5-6:6:2.19)
119    निघटना (बाबू जी, ई ठीक हे कि रंजन सोनू के सच्चा दोस हे बकि छो महिन्ना के भाग-दौड़ ओकरा तोड़ के रख देलक हे । ऊ अब घर जाय चाह रहल हे । हमनी के पास अब पैसा-कउड़ी भी निघट चुकल हे । रंजन कोय बेवस्था करके भी जाय त कब तक ले । अकेल्ले कहीं काम खोजे में जी डेरा हे ।)    (मपध॰02:5-6:17:1.12)
120    निठाह (= बिलकुल, निपट) (एतना कहते-कहते भउजी के हालत आउ खराब होवे लगल हल । हम फूट-फूट के काने लगलूँ हल । जहाँ तक गाँव में दवा-दारू मिलल, उपाय करावल गेल । भला रात में निठाह देहात से कहाँ ले जा सकलूँ हल ।)    (मपध॰02:5-6:12:3.3)
121    निहछल (ई तो हे अगस्त के निहछल बेटी एकलौती ! ... वेद के मंतर नियर पवित्तर ! ... हमरा आगु आज खड़ी हे !)    (मपध॰02:5-6:35:2.13)
122    नैहरा (= नइहर; मायका) (भउजी बोललकी हल - हम सब करम ने जी । अब तूहूँ तो सरेख हो गेला हऽ । तोहरा से की छिपाना । एक दिन चलिहऽ बजार । हमरा पास कुछ जेवर हे नैहरा के, ओकरे बेच के गाय लाम ।)    (मपध॰02:5-6:11:1.12)
123    पक्कल (= पका हुआ) (केला कच्चा आउ पक्कल दुनहुँ रूप में उपयोगी होवऽ हे । कच्चा केला के चटनी, भुँजिया आउ सब्जी बनवल जाहे । पक्कल केला अइसे तो खाल जइवे करऽ हे, सलाद, रतोवा आउ पकौड़ी बना के भी खाल जाहे ।)    (मपध॰02:5-6:40:2.15, 3.1)
124    परनाम (= प्रणाम) (हमरा घर हेलते टोला-पड़ोस के अदमी साथे-साथे ढेर मनी बुतरुन भी घरे आ गेल हल । हम भउजी के जाके परनाम कइलूँ हल ।)    (मपध॰02:5-6:12:2.11)
125    पर-परिवार (ऊ बेचारी के संतोख ई बात के हल कि ऊ सर-समाज में एगो वीर-शहीद के मेहरारू बन के जीअत । बाकि एते भारी सजाए सपनों में न सोचल हल । आखिर नोकरी भेंटाएल । नोकरी भेंटाइते पर-परिवार के सोभाव अचानक बदल गेल काहे कि अब ओकरा दूगो पइसा मिले वला जे हल ।)    (मपध॰02:5-6:43:3.2)
126    परसन्न (= प्रसन्न) (अगल-बगल के झाड़ी-झूड़ी से झुंड के झुंड चिरँई-चिरगुनी चहचहा के घोसना कर रहल हथ - भोर होय के । घोसना से परसन्न होके निकलइत हे एगो जुवती जगशाला से !)    (मपध॰02:5-6:35:1.18)
127    परोहित (= पुरोहित) (कुलपति इनकर परोहिते न हथ, इनकर परम बिसवासी आउ सहयोगियो ! ... इनके सहायता से आज दिवोदास सब आर्य लोग के इकट्ठा करके तृत्सु गाँव के विद्या संस्कृति के केंद्र बना देलन हे ।)    (मपध॰02:5-6:35:3.26)
128    पहलमान (= पहलवान) (भाय जी, आपस में लड़ऽ, खूब लड़ऽ, डंका बजा के लड़ऽ बाकि लड़ंतिया पहलमान नियन, जेकरा देख के जमाना दाँत तर अँगुरी चाँत ले । राँड़ी-बेटखौकी नियन नञ् ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.25)
129    पहिलौंठ (ठाकुर रामबालक सिंह, डॉ॰ श्रीकांत शास्त्री, सुरेश दुबे 'सरस', अवधकिशोर सिंह, राजेंद्र कुमार 'यौधेय', पुंडरीक जी, मथुरा प्रसाद 'नवीन' सरग से उठ के मगही के बगैचा में जलढारी करे ल नञ् अइतन । नञ् डॉ॰ रामनंदन, मिथिलेश, श्रीनंदन शास्त्री, डॉ॰ संपत्ति अर्याणी, योगेश्वर प्रसाद सिंह 'योगेश', जयराम सिंह, हरिश्चंद्र 'प्रियदर्शी', मगहिया जी आउ बाबू मधुकर के रुगरुगाल हड्डी में पहिलौंठ जवानी के जोश आत, जे अपने के टिटकारी पार के जगा सकत ।; मगही में अनुवाद के पहिलौंठ पेड़ सन् 1796 ई॰ में जिन बार्ली रोपलन । ई 'बाइबिल' के मगही अनुवाद ईसाई धरम के परचार ला जरूर कैलन । मगर एकर जादे महत्त्व ई बात ला हे कि जौन घड़ी भोजपुरी, मैथिली, अंगिका, बज्जिका, नगपुरिया में अनुवाद के कोय पेड़ न लगल हल, ओतिए घड़ी ई काम मगही में जिन बार्ली साहेब कैलन ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.18, 37:1.8)
130    पहिलौका (= पहिलका) (चार दिन बादे दुपहरिया में ऊ फेर आ गेल । जब हम ओकरा भगावे लगली त ऊ अपन पहिलौका धमकी दोहरावे लगल । ऊ कोढ़ी के आगे हम बेबस हली ।)    (मपध॰02:5-6:17:1.1)
131    पिछलका (पिछलके बरिस ओकर बियाह आनंद से होएल हल, जे कश्मीर में फौजी अफसर हलन ।)    (मपध॰02:5-6:43:2.10)
132    पीछू (= पीछे; पिछुए = पीछे ही) (तीत लगे इया मीठ, हम साफ कहम कि तोहनी के चलते मगही के भी स्थिति 'तेंरह' वला बन गेल हे । नहियों-नहियों त एक हजार फरागत लिखवइया हथ मगही में । ओकर बादो आगू के जगह पर पिछुए होल जा रहल हे मगही ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.7)
133    पुरखा (हम जानऽ ही कि ऊ दिन तोर जिनगी के सबसे कुहाग वला दिन होत, जब हम सोनू के साथ घर छोड़ के तोर साख में बट्टा लगा देली । पुरखा के इज्जत-हुरमत के छाय कर देली । हम जानऽ ही कि हमर चाल-चलन के चलते नेहा, स्वीटी आउ उपेंदर भइया के शादी-विवाह में भारी अड़चन खड़ा हो गेल होत ।)    (मपध॰02:5-6:16:1.7)
134    पुरजोर (पंकज अउ सलीमा के सादी अदालत में हो गेल । दुन्नो के हित-कुटुम ई बिआह के पुरजोर विरोध कैलन ।)    (मपध॰02:5-6:14:3.23)
135    पेराना (ऊ आव देखलक न ताव, बगल में रखल ताँबा के गणेश जी जोड़ से ओकर माथा पर पटक देलक । खून के फचक्का से एक तरफ के देवाल रँगा गेल कोठरी के । फेर की, थाना-पुलिस आउ कोट-कचहरी चलते रहल छो महिन्ना । हमन्नी के साथ बेचारा रंजन भी पेरइते रहल ।)    (मपध॰02:5-6:17:1.7)
136    फचक्का (ऊ आव देखलक न ताव, बगल में रखल ताँबा के गणेश जी जोड़ से ओकर माथा पर पटक देलक । खून के फचक्का से एक तरफ के देवाल रँगा गेल कोठरी के ।)    (मपध॰02:5-6:17:1.5)
137    फर (= फल) (केला में कार्बोहाइड्रेट के मात्रा 20 से 22 हिस रहऽ हे । ई मात्रा आउ दोसर फर के तुलना में काफी हे ।)    (मपध॰02:5-6:40:3.16)
138    फिन (= फेन, फेनु, फेर; फिर) (ओकर मन के दरद के अंदाजा केहू लगा न सकल हल । ऊ बेचारी मर-मर के जी रहल हल । मन में तो केते बेर आएल कि ऊ अप्पन जान हत दे, बाकि फिन सोचऽ हल, जान हतला से का शांति भेंटा जाएत ।)    (मपध॰02:5-6:43:2.5)
139    फीचना (= फींचना) (चिट्ठी पढ़ते घड़ी उनकर चेहरा पर कय तरह के रंग आल आउ चल गेल । अंतिम में लग रहल हल कि कैलास बाबू के कोय फीचल कपड़ा नियन गार देलक हे ।)    (मपध॰02:5-6:17:1.33)
140    फेन (= फिर) (हमर अउरत समझावइत बोलली - गाँव जा अउ उनखा समझा-बुझा के यहाँ ले आवऽ अउ फेन धीरे-धीरे हम बिच्चे में बात काटइत बोललूँ हल - हम उनखा कुछ नञ् कह सकऽ ही अउ अप्पन पुस्तैनी घर-मकान नञ् बेचम, भले हमर सहर में मकान होवे या नञ् ।)    (मपध॰02:5-6:12:1.20)
141    बगैचा (= बगइचा; बगीचा) (~ में जलढारी करना) (ठाकुर रामबालक सिंह, डॉ॰ श्रीकांत शास्त्री, सुरेश दुबे 'सरस', अवधकिशोर सिंह, राजेंद्र कुमार 'यौधेय', पुंडरीक जी, मथुरा प्रसाद 'नवीन' सरग से उठ के मगही के बगैचा में जलढारी करे ल नञ् अइतन ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.16)
142    बच्छर (= वत्सर; वर्ष) (इलाका के हर आदमी उनखा आदर के भाव से ईश्वरी चा कहऽ हल । छो बच्छर पहिले 'ईश्वरी चा' के काल अप्पन गाल में दबा लेलक ।)    (मपध॰02:5-6:13:1.8)
143    बजार (= बाजार) (भउजी बोललकी हल - हम सब करम ने जी । अब तूहूँ तो सरेख हो गेला हऽ । तोहरा से की छिपाना । एक दिन चलिहऽ बजार । हमरा पास कुछ जेवर हे नैहरा के, ओकरे बेच के गाय लाम । सच्चो एक दिन भउजी के साथे हम बजार गेलूँ हल, हिसुआ, महाजन के दोकान । जेवर बेचला पर ढेर मनी पैसा भेल हल ।)    (मपध॰02:5-6:11:1.11, 15)
144    बड़-छोट (= बड़ा-छोटा) (ई अंक के बारे में हमरा ई कहना हे कि 'एक तो करैला, उप्पर से नीम चढ़ल ।' याने एक तो अंक संयुक्तांक हे, ऊपर से ई में हजार वाद-विवाद के जड़ी महजूद हे । ऊ जड़ी हे - 'मगही के एक हजार कहावत/ लोकोक्ति' । ई कहावत/ लोकोक्ति मगह के राह-बाट, गल्ली-कुच्ची, खर-खरिहान, दर-दलान, दर-दोकान सब जगह से ऊँच-नीच, बड़-छोट, बर्हामन-सुद्दर, राड़-असराफ, खेतिहर-रईस, गरीब-अमीर, कुलीन-पतुरिया, ढोर-डांगर, चिरँय-चुरगुनी, कोदो-सामा, आम-अमौरी, छिया-गेन्हारी सबके बारे में हे ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.19)
145    बतकुच्चन (सतेंद्र बाबू कुरता पहिरलन आउ रपरपाल कैलास बाबू दने चल पड़लन । जहिया से सोनू आउ नीलम फरार होल हल, तहिया से आज पहिला दिन सतेंद्र बाबू के कदम अपन दोस दने बढ़ रहल हल । रस्ता में उनका कैलास बाबू से होल बतकुच्चन के एकक बात इयाद आ रहल हल, जे नीलम के गायब होला के बाद ऊ कैलास बाबू के सुनइलन हल ।)    (मपध॰02:5-6:17:1.28)
146    बनौरी (सच्चो एक दिन भउजी के साथे हम बजार गेलूँ हल, हिसुआ, महाजन के दोकान । जेवर बेचला पर ढेर मनी पैसा भेल हल । बेसे बेसे जेवर में भी टाँकी बाद हो गेलइ हल । हम पुछलूँ - अञ् भउजी, ई टाँकी की होवऽ हइ ? ऊ बोललकी - ई सब सेठ-महाजन के बनौरी हइ जी । जखने जेवर खरीदऽ तखने टाँकी-टाँका नञ् होवे अउ जखने बेचऽ तखने रुपइया में चार आना, पाँच आना टाँकी बाद कटवे करत ।)    (मपध॰02:5-6:11:1.23)
147    बर्हामन-सुद्दर (ई अंक के बारे में हमरा ई कहना हे कि 'एक तो करैला, उप्पर से नीम चढ़ल ।' याने एक तो अंक संयुक्तांक हे, ऊपर से ई में हजार वाद-विवाद के जड़ी महजूद हे । ऊ जड़ी हे - 'मगही के एक हजार कहावत/ लोकोक्ति' । ई कहावत/ लोकोक्ति मगह के राह-बाट, गल्ली-कुच्ची, खर-खरिहान, दर-दलान, दर-दोकान सब जगह से ऊँच-नीच, बड़-छोट, बर्हामन-सुद्दर, राड़-असराफ, खेतिहर-रईस, गरीब-अमीर, कुलीन-पतुरिया, ढोर-डांगर, चिरँय-चुरगुनी, कोदो-सामा, आम-अमौरी, छिया-गेन्हारी सबके बारे में हे ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.19)
148    बहराना (= बाहर जाना) ("तू कह दिहऽ, पंकज अप्पन मरजी से बिआह करत ।" कहइत पंकज दरोजा से बहरा गेल । सचिंता अप्पन बेटा से मनमाकुल जबाब नञ् पाके झमायल मन से चुप हो गेल ।)    (मपध॰02:5-6:13:2.25)
149    बहरी (= बाहरी) (कयसूँ-कयसूँ रात बीतल । भोरे हम भउजी के उठावे गेलूँ हल अउ कहे ले सोंचलूँ हल कि सहर चलऽ, बकि ई की, ऊ तो दुआरी पर औंधे मुँह गिरल हली अउ बहरी दुआरी के केबाड़ी खुलल हल ।)    (मपध॰02:5-6:12:3.9)
150    बारना (= जलाना) (छोटका भाय बँटवारा करके अलगे रहऽ लगल अपन हिस्सा लेके । घर में डरवार पड़ गेल । मुदा भउजी अप्पन अउ हम्मर हिस्सा के दुआरी पर दीआ बार के ढेर रात ले बैठल रहथ ।)    (मपध॰02:5-6:11:3.29)
151    बिआह (= बियाह, विवाह) (पंकज जहिया से मेडिकल के आखिरी डिगरी ले लेलक तहिया से घर-परिवार, हित-कुटुम, गाँव-गिराँव में बिआह के चरचा होवे लगल ।)    (मपध॰02:5-6:13:1.4)
152    बिन (= बिना) (दोसर दिन पंकज घर में बिन कहले-सुनले हजारीबाग नेशनल पार्क घुमे ला चल गेल ।)    (मपध॰02:5-6:13:2.31)
153    बुलना (= चलना) (गाँधी जी नियन बुलौकिया बुले पड़ऽ हे, ई गुने दिल्ली देर से पहुँचली, जे से मई-जून अंक जोड़ंडा हे ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.13)
154    बुलौकी (बुलौकी+'आ' प्रत्यय = बुलौकिया) (~ बुलना) (गाँधी जी नियन बुलौकिया बुले पड़ऽ हे, ई गुने दिल्ली देर से पहुँचली, जे से मई-जून अंक जोड़ंडा हे ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.13)
155    बेकती (= व्यक्ति) (स्व॰ सुरेंद्र शिल्पी जिनका लोग शिल्पी सुरेंद्र के रूप में जानऽ हलन एगो बेकती न, संस्था हलन ।)    (मपध॰02:5-6:7:1.3)
156    बेयग्गर (= बेअग्गर; व्यग्र)(बड़ी दिन के बाद कुमार अप्पन गाँव से गुरु के आसरम में अयलन हे । रोहनी बड़ी बेयग्गर हल, कुमार के न आवे से ।)    (मपध॰02:5-6:36:3.2)
157    भइलू (= वैल्यू; value) (सुधी-गुनी पाठक भाय-बहिन सुनलन होत - "लिखतं आगु वक्तं की ड़" याने लिखल चीज के जादे भइलू हे, बोलल से ।)    (मपध॰02:5-6:41:3.4)
158    भक-भक (~ गोर) (भक-भक गोर, लम्मा छरहरा बदन, कंधा पर झुलइत घुंघराला बाल, टूसा नियन नाक, चान भी जेकरा देखके सिहा जाय अइसन सुंदर चेहरा वाला शिल्पी सुरेंद्र के देख के अचोक्के मुँह से निकल जा हल, इनकर सिरजन विधाता फुरसत के घड़ी में कैलन हे ।)    (मपध॰02:5-6:7:1.8)
159    भदेस (= भद+देस; परदेस, विदेश; बुरा देस) (एकर पहिले जे भी कहावत/ लोकोक्ति के पुस्तक छपल हे, ओकर संपादक के मन में इहे दुविधा रहल हल कि लोक में बसल भदेस कहावत के पुस्तक में स्थान देल जाय इया नञ् । चाहे ऊ 'भारतीय कहावत कोश' के संपादक विश्वनाथ दिनकर नरवणे जी रहथ इया कन्हैया लाल सहल जइसन 'राजस्थानी कहावत कोश' के संपादक ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.28)
160    भलाय (= भलाई) (ऊ घड़ी हम चुपहीं रहे में भलाय समझली । बकि ई नञ् जानऽ हली कि ई नरक के तरफ हमर पहिला डेग हल ।)    (मपध॰02:5-6:16:1.32)
161    भाय-बहीन (मरे से पहिले भउजी के बोला के, मइया हमनी भाय-बहीन के हाँथ धरावइत कहलक हल - "कनिआय, ई सब तोरे बाल-बुतरु हे, भगवान तोर कोख से तो नञ् देखइलका, अइसीं अतमा सिहाले जा रहल हे, मुदा ई सब के माय-बाप अब तूँहीं हऽ ।")    (मपध॰02:5-6:10:1.17)
162    भुक्खल (धेयान रहे, केला भुक्खल पेट नञ् खाल जाय, न एक समय में 2-3 केला से जादे खाना चाही ।)    (मपध॰02:5-6:41:2.29)
163    भुड़की (खिड़की त बंद कर दे हली मुदा तीन-चार भुड़की हल । ओकरे से कबूतर आवो हल आउ ओकरे से हमनी के अइला पर भागो भी हल । ई बात से तीनो गोटा अवगत हली ।; एक दिन पलान बनल कि कबूतर के पकड़ल जाय {काहे कि भुड़की से भागे में कबूतर के देर होवऽ हल आउ जब तक एकड़ लेल जा सको हल} आउ बना के खाल जाय ।; एगारह बजे लगभग अइली आउ केबाड़ी खोल के भुड़की भिर चल अइली । कबूतर त सब दिन के नियन आझो हल, से जल्दीबाजी में दु-तीन कबूतर भाग परल आउ दु बच गेल । हम भुड़की भिर हाथ धइले खाड़ हली, आउ छटपटाइत कबूतर भागे ले बार-बार भुड़की भिर पहुँच जाय आउ इहे लेल दुनहुँ कबूतर एकाएकी हमर हाथ में पकड़ा गेल । हम बड़ खोस हली ।)    (मपध॰02:5-6:39:1.23, 29, 2:17, 23)
164    मध (= मधु, शहद) जंगली केला के पत्ता के एक मासा राख, एक तोला मध में मिला के चाटे से हिचकी बंद हो जा हे ।)    (मपध॰02:5-6:41:1.30)
165    मनकड़ड़ (हाँ, तो हम चरचा कर रहली हल कि जदि राजग के मनकड़ड़ आउ निर्भीक प्रधानमंत्री के जरूरत हे, जेकर पृष्ठभूमि रचे ले जदि ऊ अडवाणी जी के आगे लइलन हे त एक्के बेरी साहस भरल निरनय ले लेना हल ।)    (मपध॰02:5-6:6:2.23)
166    मनमाकुल (= मनमाफिक, मन के अनुसार) ("तू कह दिहऽ, पंकज अप्पन मरजी से बिआह करत ।" कहइत पंकज दरोजा से बहरा गेल । सचिंता अप्पन बेटा से मनमाकुल जबाब नञ् पाके झमायल मन से चुप हो गेल ।)    (मपध॰02:5-6:13:2.26)
167    मिट्ठा (चंपाचीनी, लाटेन, खासदिया, सिंघापुरी आउ इलायची केला, केला के प्रमुख किसिम हे अपन देस के । इलायची केला छोटा होवऽ हे बकि मिट्ठा होवऽ हे ।)    (मपध॰02:5-6:40:2.6)
168    मीठ (= मीठा) (तीत लगे इया मीठ, हम साफ कहम कि तोहनी के चलते मगही के भी स्थिति 'तेंरह' वला बन गेल हे । नहियों-नहियों त एक हजार फरागत लिखवइया हथ मगही में । ओकर बादो आगू के जगह पर पिछुए होल जा रहल हे मगही ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.7)
169    मुठिया (~ केला) (इलायची केला छोटा होवऽ हे बकि मिट्ठा होवऽ हे । इहे तरह हाजीपुर में पावल जाय वला चिनियाँ केला भी अपना सामने केकरो टिक्के नञ् देहे । हुआँ उपजे वला मुठिया केला सबसे दोयम दरजा के केला हे । तिकोनिया केला जे मुठिया केला के अइसन जात हे जेकर सिरिफ सब्जी बनवल जाहे ।)    (मपध॰02:5-6:40:2.10, 11)
170    मुलकात (= मुलाकात) (हमरा लगऽ हे जुलाई तक कम से कम बिहार के लेखक भाय-बहिन से मुलकात के ई सिलसिला जरूर पूरा हो जात ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.7)
171    मोंछ (दे॰ मोछ) (ओछबुधियन के त मोंछ मुड़वा देवे के चाही ।)    (मपध॰02:5-6:38:2.21)
172    मोंट-घोंट (हमरा आद हे तनी-तनी, भइया खूब मोंट-घोंट गठल सरीर के जवान हला । ऊ कविता, कहानी लिखऽ हला, गाना-बजाना में भी इलाका में नामी हला ।)    (मपध॰02:5-6:11:2.30)
173    मोटाना (= मोटा होना) (खाना खाय के बाद 2-3 पक्कल केला कुछ महिन्ना तक रोजीना खाय से दुर्बलता दूर होवऽ हे । दू केला खा के पाव भर दूध पीए से शरीर मोटाऽ हे ।)    (मपध॰02:5-6:41:1.37)
174    रगन-रगन (= रंगन-रंगन) (पाँच-छह साल के उमर से ही ई जमीन आउ देवाल पर रगन-रगन के चित्र उकेरे लगलन आउ माटी के रंग-बिरंग के मूरत बनावे लगलन ।)    (मपध॰02:5-6:7:2.9)
175    रग्गड़ (केला सब तरह के सूजन में लाभ दे हे । चोट इया रग्गड़ में केला के छिलका बांध देवे से सूजन नञ् बढ़ऽ हे ।)    (मपध॰02:5-6:41:2.23)
176    रतोवा (= रायता) (केला कच्चा आउ पक्कल दुनहुँ रूप में उपयोगी होवऽ हे । कच्चा केला के चटनी, भुँजिया आउ सब्जी बनवल जाहे । पक्कल केला अइसे तो खाल जइवे करऽ हे, सलाद, रतोवा आउ पकौड़ी बना के भी खाल जाहे ।)    (मपध॰02:5-6:40:3.2)
177    रन-वन (~ रोना) (श्रीनंदन शास्त्री जी ठीक कहऽ हथ - "दुनियाँ तो बढ़ करके चाँद पर चल गेल, तूँ हीऐं के हीऐं रह गेलऽ ।" अगर हम झूठ कहते ही त हमरा जे सजाय देवऽ, सहे ल तैयार ही । भइया जी ! जेकर धन जे रन-वन रोवे, फकिरवा ठक-ठक खाय ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.14)
178    रपरपाना (सतेंद्र बाबू कुरता पहिरलन आउ रपरपाल कैलास बाबू दने चल पड़लन । जहिया से सोनू आउ नीलम फरार होल हल, तहिया से आज पहिला दिन सतेंद्र बाबू के कदम अपन दोस दने बढ़ रहल हल ।)    (मपध॰02:5-6:17:1.26)
179    राँड़ी-बेटखौकी (भाय जी, आपस में लड़ऽ, खूब लड़ऽ, डंका बजा के लड़ऽ बाकि लड़ंतिया पहलमान नियन, जेकरा देख के जमाना दाँत तर अँगुरी चाँत ले । राँड़ी-बेटखौकी नियन नञ् ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.26)
180    राड़-असराफ (ई अंक के बारे में हमरा ई कहना हे कि 'एक तो करैला, उप्पर से नीम चढ़ल ।' याने एक तो अंक संयुक्तांक हे, ऊपर से ई में हजार वाद-विवाद के जड़ी महजूद हे । ऊ जड़ी हे - 'मगही के एक हजार कहावत/ लोकोक्ति' । ई कहावत/ लोकोक्ति मगह के राह-बाट, गल्ली-कुच्ची, खर-खरिहान, दर-दलान, दर-दोकान सब जगह से ऊँच-नीच, बड़-छोट, बर्हामन-सुद्दर, राड़-असराफ, खेतिहर-रईस, गरीब-अमीर, कुलीन-पतुरिया, ढोर-डांगर, चिरँय-चुरगुनी, कोदो-सामा, आम-अमौरी, छिया-गेन्हारी सबके बारे में हे ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.19)
181    रुगरुगाना (ठाकुर रामबालक सिंह, डॉ॰ श्रीकांत शास्त्री, सुरेश दुबे 'सरस', अवधकिशोर सिंह, राजेंद्र कुमार 'यौधेय', पुंडरीक जी, मथुरा प्रसाद 'नवीन' सरग से उठ के मगही के बगैचा में जलढारी करे ल नञ् अइतन । नञ् डॉ॰ रामनंदन, मिथिलेश, श्रीनंदन शास्त्री, डॉ॰ संपत्ति अर्याणी, योगेश्वर प्रसाद सिंह 'योगेश', जयराम सिंह, हरिश्चंद्र 'प्रियदर्शी', मगहिया जी आउ बाबू मधुकर के रुगरुगाल हड्डी में पहिलौंठ जवानी के जोश आत, जे अपने के टिटकारी पार के जगा सकत ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.17)
182    रूसना (= रूठना) (भउजी हौले से हँसली हल, अउ बोललकी हल - अञ् बाबू, एहाँ तोर भइया के असरा के देखत ही, रूसल के के मनावत, हो सके ऊ जो कभी आइये जइता ।)    (मपध॰02:5-6:12:2.29)
183    रेयान (डॉ॰ पंकज कहलक - "तू मजाक करऽ हऽ ।" सलीमा कहलक - "हम मजाक न कर रहली हे । जब रेयान के छुए से देवालय अशुद्ध हो हे, तब का तोहर परिवार के लोग मलेच्छ के बेटी से छुअइला पर अशुद्ध न होतन ?")    (मपध॰02:5-6:15:3.16)
184    रोजीना (ई बात हम कउनो मन से उपजा के नञ् कहते ही बलुक रोजीना छपते अखबार के खबर के आधार मान के कहते ही ।; खाना खाय के बाद 2-3 पक्कल केला कुछ महिन्ना तक रोजीना खाय से दुर्बलता दूर होवऽ हे । दू केला खा के पाव भर दूध पीए से शरीर मोटाऽ हे ।)    (मपध॰02:5-6:6:1.7, 41:1.35)
185    लकधक (~ से करना) (भउजी पुक्का फार के रो पड़ली हल - मइया जी मइया ! हमनियों भाय-बहीन लोट-लोट के काने लगलूँ हल । रो-धो के काम-किरिआ खतम होल हल । घर के तरी-घरी पहिते से लगले हल, ई ले काम-किरिआ भउजी बड़ी लकधक से कइलकी हल ।)    (मपध॰02:5-6:10:1.31)
186    लड़ंतिया (~ पहलमान) (भाय जी, आपस में लड़ऽ, खूब लड़ऽ, डंका बजा के लड़ऽ बाकि लड़ंतिया पहलमान नियन, जेकरा देख के जमाना दाँत तर अँगुरी चाँत ले । राँड़ी-बेटखौकी नियन नञ् ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.25)
187    लमगर (= लम्बा) (केकरो भउजी कहते, चाहे अपने आद करते, एगो सुत्थर जन्नी के चेहरा आगू में खड़ा हो जा हे । ममता के मूरुत, लमगर गठल देह, कजराल आँख, नाख खड़ी, ठोर लाल, गोरनार कुल मिला के देवी के रूप नियर सोहनगर ।)    (मपध॰02:5-6:10:1.4)
188    लम्मा (= लम्बा) (भक-भक गोर, लम्मा छरहरा बदन, कंधा पर झुलइत घुंघराला बाल, टूसा नियन नाक, चान भी जेकरा देखके सिहा जाय अइसन सुंदर चेहरा वाला शिल्पी सुरेंद्र के देख के अचोक्के मुँह से निकल जा हल, इनकर सिरजन विधाता फुरसत के घड़ी में कैलन हे ।)    (मपध॰02:5-6:7:1.8)
189    लरम-गरम (हमरा तो लगे हे कि जे रस्सा-कस्सी पहिले ममता-समता आउ जयललिता के चलते झेलते रहल देश, ऊ सब दुमुहियाँ नेतृत्व के चलते झेले पड़त । दुमुहियाँ नेतृत्व से हमर मतलब वाजपेयी-अडवाणी के लरम-गरम सोनाव आउ तेवर से हे ।)    (मपध॰02:5-6:6:3.4)
190    लस-फुस (तोरा त कुछ-कुछ लस-फुस बबीता से भी चल रहल हल ?", सलीमा पुछलक, "का ऊ तोर प्रेम के ठोकरा देलको ?")    (मपध॰02:5-6:14:2.7)
191    लिखनिहार (= लिखताहर) (जातिवाद भी खूब करऽ बाकि पहिले जाके मगही माय से अपन जात पूछ ल, दिक लगो त हम बता दे हियो, आधा से जादे लिखनिहार भाट हऽ भाट ! झुट्ठो गुनगान करे वला, सचाई से बिलकुल इलहदा ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.27)
192    लेताहर (डॉ॰ पंकज सलीमा से कहलक - "मौसा तोहर लेताहर बन के अयलथुन हे । तूँ चलऽ माय अउ मौसी के असीस ले लऽ ।")    (मपध॰02:5-6:15:2.4)
193    लोछियाना (बदलल समय मोताबिक मौसा के गोस्सा ओइसहीं ठंढा होवे लगल जइसे लोछियाल गेहुँअन नट के जड़ी देख मन मार ले हे ।)    (मपध॰02:5-6:15:1.30)
194    सकसकाहट (= हिचकिचाहट) (हमरा सामने एक दरजन कहावत/ लोकोक्ति के किताब पड़ल हे, जेकरा में संपादक कहावत के जस-के-तस प्रकाशित कयलन हे । आउ उनकर पुस्तक देश के नामी-गरामी पुस्तकालय में बड़ी ठीक-ठाक ढंग से धैल हे । ई हमर सकसकाहट के कम कयलक । आउ 'मगही के एक हजार कहावत/ लोकोक्ति' अपने के सामने हे ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.34)
195    सगरखनी (= सभी क्षण; हमेशा) (भउजी के आँख सगरखनी भइये के असरा में दुआरिये पर टँगल रहे । काहे कि माय-बाबू के बचते, बड़का भइया जे घर से भागला हल, से आज तक ले लौट के नञ् अइला । सब कहे कि उनखर भी काम-किरिया कर दऽ, मुदा भउजी कहथ, नञ् हम अप्पन हाँथ से अप्पन सेनुर नञ् पोछम ।)    (मपध॰02:5-6:11:2.20)
196    सगरे (= सगरो; सर्वत्र) (इहाँ कलाकारन के जल्दीये जमघट लग गेल आउ संस्था के सोहरत सगरे भेल ।)    (मपध॰02:5-6:7:3.24)
197    सजल-धजल (चुस्त पैजामा, गलाबंद कुरता मेम सजल-धजल सुरेंद्र शिल्पी जी अप्पन हाथ से काढ़ल कसीदा वाला झोला कंधा से लटकैले जब पहिले-पहिल गया जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन भवन में आयोजित कवि सम्मेलन में अयलन, अप्पन व्यक्तित्व के चमत्कार से केकरा न प्रभावित कैलन ।)    (मपध॰02:5-6:8:1.15)
198    सढ़बेटा (एक दिन सचिंता से रामकृपाल डॉ॰ पंकज के जस-गाथा गावे लगल । अप्पन पूत के बड़ाय सुन के सचिंता के हिरदा पसीजे लगल । जेठसाली सचिंता के कहला पर रामकृपाल अप्पन सढ़बेटा डॉ॰ पंकज के पास गेलन ।)    (मपध॰02:5-6:15:1.26)
199    सन (= सनी, -सा, से) (सलीमा बोलल - "माय के मन के सुक्खल नदी तोहर मुहब्बत के बाढ़ देखे ला छछनइत हे । हमरो आँख उनकर दरसन ला तरसइत हे । हाली सन चले के तइयारी करऽ ।")    (मपध॰02:5-6:15:3.1)
200    सबद (= शब्द) ("हमहूँ तोरे से बिआह करे ले मन बनौले ही, मगर ... ।" कहइत पंकज के गियारी में कुछ सबद अँटक गेल ।)    (मपध॰02:5-6:14:1.24)
201    सबर (= सब्र; धैर्य) (रस्ता में उनका कैलास बाबू से होल बतकुच्चन के एकक बात इयाद आ रहल हल, जे नीलम के गायब होला के बाद ऊ कैलास बाबू के सुनइलन हल । एकरा कैलास बाबू के सबर कही कि ऊ सतेंद्र बाबू के बात पर लाठी-भाला आउ बंदुक-पिस्तौल तक नञ् गेलन ।)    (मपध॰02:5-6:17:1.29)
202    सरग (= स्वर्ग) (जब हम्मर छोट भाय अउ बहीन जरी-जरी गो हल, अउ हम भी कमहोसे हलूँ, तहिने हमर बाबूजी हमनी के छोड़ के सरग चल गेला हल ।)    (मपध॰02:5-6:10:1.11)
203    सर-समाज (ऊ बेचारी के संतोख ई बात के हल कि ऊ सर-समाज में एगो वीर-शहीद के मेहरारू बन के जीअत । बाकि एते भारी सजाए सपनों में न सोचल हल ।)    (मपध॰02:5-6:43:2.23)
204    सरेख (= सयाना) (भउजी बोललकी हल - हम सब करम ने जी । अब तूहूँ तो सरेख हो गेला हऽ । तोहरा से की छिपाना । एक दिन चलिहऽ बजार । हमरा पास कुछ जेवर हे नैहरा के, ओकरे बेच के गाय लाम ।)    (मपध॰02:5-6:11:1.8)
205    सहियारना (= संभालना) (हम्मर मीत प्रो॰ प्रवीण कुमार 'प्रेम' जी जदि सहियार के खंभा नञ् पकड़ले रहतन हल दिल्ली में त सायत हम 'मगही पत्रिका' के धाजा नञ् फहरा पयतूँ हल ।)    (मपध॰02:5-6:4:1.9)
206    सिहाना (सबसे बड़ सवाल जे उपजऽ हे मन में ऊ ई हे कि अडवाणी जी भी कश्मीर मसला पटेल के तर्ज पर वाजपेइए जी के पाले में रहे देतन इया वाजपेयी जी खुदे 84 तरह के काम अडवाणी जी के सौंप के कश्मीर के कटोरा खुद अपन हाँथ में लेके देश के जनता के सिहैते रहतन ।; भक-भक गोर, लम्मा छरहरा बदन, कंधा पर झुलइत घुंघराला बाल, टूसा नियन नाक, चान भी जेकरा देखके सिहा जाय अइसन सुंदर चेहरा वाला शिल्पी सुरेंद्र के देख के अचोक्के मुँह से निकल जा हल, इनकर सिरजन विधाता फुरसत के घड़ी में कैलन हे ।; मरे से पहिले भउजी के बोला के, मइया हमनी भाय-बहीन के हाँथ धरावइत कहलक हल - "कनिआय, ई सब तोरे बाल-बुतरु हे, भगवान तोर कोख से तो नञ् देखइलका, अइसीं अतमा सिहाले जा रहल हे, मुदा ई सब के माय-बाप अब तूँहीं हऽ ।")    (मपध॰02:5-6:6:2.2, 7:1.11, 10:1.21)
207    सेजिया-दान (हमरा खाय ले भउजी लिट्टी-दूध अउ चीनी दे हली । काम करमठ भेल, सेजिया दान अउ एकैसो पात लगल हल, पिंड परधान होले हल, ढोल बाजा बजल हल । बड़ी भीड़-मेला अइसन ।)    (मपध॰02:5-6:10:2.4)
208    सेनुर (= सिन्दूर) (भउजी के आँख सगरखनी भइये के असरा में दुआरिये पर टँगल रहे । काहे कि माय-बाबू के बचते, बड़का भइया जे घर से भागला हल, से आज तक ले लौट के नञ् अइला । सब कहे कि उनखर भी काम-किरिया कर दऽ, मुदा भउजी कहथ, नञ् हम अप्पन हाँथ से अप्पन सेनुर नञ् पोछम ।)    (मपध॰02:5-6:11:2.27)
209    सोचल (= सोचलक) (ऊ बेचारी के संतोख ई बात के हल कि ऊ सर-समाज में एगो वीर-शहीद के मेहरारू बन के जीअत । बाकि एते भारी सजाए सपनों में न सोचल हल ।)    (मपध॰02:5-6:43:2.25)
210    सोनाव (हमरा तो लगे हे कि जे रस्सा-कस्सी पहिले ममता-समता आउ जयललिता के चलते झेलते रहल देश, ऊ सब दुमुहियाँ नेतृत्व के चलते झेले पड़त । दुमुहियाँ नेतृत्व से हमर मतलब वाजपेयी-अडवाणी के लरम-गरम सोनाव आउ तेवर से हे ।)    (मपध॰02:5-6:6:3.5)
211    सोहनगर (= सोहाना, सुहावना) (केकरो भउजी कहते, चाहे अपने आद करते, एगो सुत्थर जन्नी के चेहरा आगू में खड़ा हो जा हे । ममता के मूरुत, लमगर गठल देह, कजराल आँख, नाख खड़ी, ठोर लाल, गोरनार कुल मिला के देवी के रूप नियर सोहनगर ।)    (मपध॰02:5-6:10:1.7)
212    हकबकाना (ओजा ठार पब्लिक अउ मारुति में बइठल अदमी हकबका के रह गेल कि कइसे ई बच गेल । मारुतिवला गोसा गेल अउ पब्लिक कहे लगल तोर माय खरजितिया कइलखुन हल ।)    (मपध॰02:5-6:39:3.22)
213    हमन्नी (= हमन्हीं; हमलोग) (ऊ आव देखलक न ताव, बगल में रखल ताँबा के गणेश जी जोड़ से ओकर माथा पर पटक देलक । खून के फचक्का से एक तरफ के देवाल रँगा गेल कोठरी के । फेर की, थाना-पुलिस आउ कोट-कचहरी चलते रहल छो महिन्ना । हमन्नी के साथ बेचारा रंजन भी पेरइते रहल ।)    (मपध॰02:5-6:17:1.7)
214    हलुमान (= हनुमान) (तोहनिन के उपाय नञ् सुझो त हम बता रहलियो हे कि ई सातो में से सिरिफ सरगवाली नवीनजी के रचना के प्रकाशन ले जुगत भिड़ावे पड़तो बाकी छोवो लोग के पास खाली सो-पचास मगहियन के दू दिन तक धरना देवे के काम हो । निम्मन खाना भी मिलतो उनकनहिन हीं आउ पुस्तक भी प्रकाश में आ जइतो । काहे कि छोवो लोग एकक हजार पेज तक के पुस्तक प्रकाशित करे में समर्थ हथ । हलुमान जी नियन उनकर तागत इयाद देलावे के जरूरत हे ।)    (मपध॰02:5-6:5:1.34)
215    हाल (= जमीन की नमी जिसमें हल आसानी से चल सके) (केला उपजे ल जउन हाल वला जमीन के जरूरत हो हे भारत में ऊ बहुत्ते जादे हे । ऐसे तो केला समुंदर से छो हजार फीट उप्पर तक उपजऽ हे ।)    (मपध॰02:5-6:40:1.6)
216    हाली (~ सन = जल्दी से) (सलीमा बोलल - "माय के मन के सुक्खल नदी तोहर मुहब्बत के बाढ़ देखे ला छछनइत हे । हमरो आँख उनकर दरसन ला तरसइत हे । हाली सन चले के तइयारी करऽ ।")    (मपध॰02:5-6:15:2.25)
217    हेलना (= घुसना) (हमरा घर हेलते टोला-पड़ोस के अदमी साथे-साथे ढेर मनी बुतरुन भी घरे आ गेल हल । हम भउजी के जाके परनाम कइलूँ हल ।)    (मपध॰02:5-6:12:2.8)
 

Saturday, April 21, 2012

55. "मगही पत्रिका" (वर्ष 2002: अंक 4) में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द


मपध॰ = मासिक "मगही पत्रिका"; सम्पादक - श्री धनंजय श्रोत्रिय, नई दिल्ली/ पटना

पहिला बारह अंक के प्रकाशन-विवरण ई प्रकार हइ -
---------------------------------------------
वर्ष       अंक       महीना               कुल पृष्ठ
---------------------------------------------
2001    1          जनवरी              44
2001    2          फरवरी              44

2002    3          मार्च                  44
2002    4          अप्रैल                44
2002    5-6       मई-जून             52
2002    7          जुलाई               44
2002    8-9       अगस्त-सितम्बर  52
2002    10-11   अक्टूबर-नवंबर   52
2002    12        दिसंबर             44
---------------------------------------------
मार्च-अप्रैल 2011 (नवांक-1) से द्वैमासिक के रूप में अभी तक 'मगही पत्रिका' के नियमित प्रकाशन हो रहले ह ।

ठेठ मगही शब्द के उद्धरण के सन्दर्भ में पहिला संख्या प्रकाशन वर्ष संख्या (अंग्रेजी वर्ष के अन्तिम दू अंक); दोसर अंक संख्या; तेसर पृष्ठ संख्या, चउठा कॉलम संख्या (एक्के कॉलम रहलो पर सन्दर्भ भ्रामक नञ् रहे एकरा लगी कॉलम सं॰ 1 देल गेले ह), आउ अन्तिम (बिन्दु के बाद) पंक्ति संख्या दर्शावऽ हइ ।

ठेठ मगही शब्द (अंक 3 तक संकलित शब्द के अतिरिक्त):

1    अउसान (= आसान) (उनकर आभारी ही, जे पीठ पर हाँथ रखलन आउ उनकर भी, जे तातल चीज समझ के हाँथ पीछे खींच लेलन । कचउमरिया लेखक भाय के उत्साह हमर डग्गर अउसान जरूर करत, अइसन उमेद हे ।)    (मपध॰02:4:4:1.8)
2    अकबारना (दीना मिंती के एतना जोर से अकबारलक कि ओकर अंग-अंग चटके लगल । आजाद होल त दीना के सीना में जल्दी-जल्दी दस-बीस धौल जमा देलक । फेर धीरे से ओकर सीना पर सिर टिका के बोलल, "अब जा हियो ।")    (मपध॰02:4:25:2.31)
3    अझुराना (= ओझराना; उलझाना)(फेर रजेसर माटसा के गोड़ पर गिर पड़लन, "कका, हमरा माफ करऽ । हम तोरा बड़ी अझुरइली ।" रजेसर माटसा बिनेसर बाबू के उठयलन आउ फट पड़लन, "हमरा एकर फिकिर नञ् हे कि तूँ हमरा अझुरइलऽ,फिकिर तो ई बात के हे कि अब हमर दीना से के सादी-बियाह करत ।")    (मपध॰02:4:26:2.17, 20)
4    अनेसा (पाँच मिनट में सउँसे गाँव जामा हो गेल । सब अवाक् ! रजेसर माटसा जे एगो डंटा लेले दीना के मारे ले चललन हल, अनेसा में ... । 'दीना-दीना' पुकार रहलन हल । देवदूत नियन दीना परघट भेल ।)    (मपध॰02:4:26:1.33)
5    अन्हारा (= अन्हार; अंधकार, अँधेरा) ("भाय लोग, ई दीना के गाँव हे । ई गाँव के इज्जत दीना के इज्जत हे । तूँ सब रेंज में हऽ । अगर जान चाहऽ ह त अपन रस्ता नापऽ । नञ् त ... ।" कहूँ अन्हारा से अवाज आ रहल हल ।)    (मपध॰02:4:26:1.24)
6    अपसोस (= अफसोस) ('मगही के मरम' स्तंभ में 'सही से भरऽ' ले, जे जबाब आल ऊ हमर उत्साह बढ़ावे वला हे । अपसोस हे कि ई बेर कोय सही उत्तर नञ् आ सकल ।)    (मपध॰02:4:4:1.28)
7    अमदी (= अदमी; आदमी) (नवीन जी बिलकुल मौजी आउ फक्कड़ किसिम के कवि हलन । इनकर कविता के तेवर एक तरफ सत्ता आउ कुरसी वला के तिकतिका के रख दे हल तब दोसर तरफ आम अमदी ओकरा अप्पन कविता समझ के घुरी-घुरी गावे लगऽ हल ।)    (मपध॰02:4:7:1.5)
8    अमौरी (एक दिन झोला-झोला होला पर ऊ अपन बगैचा दने से लौटल आ रहल हल । एक हाँथ में एगो किताब हल आउ दोसर हाँथ में गमछी में बन्हल दस-बीस गो अमौरी ।)    (मपध॰02:4:24:1.28)
9    अराम (= आराम) (एकर जड़ी, फूल आउ बिच्चा के सेवन से पेट के रोग, कब्ज आउ आँव में अराम मिलऽ हे ।)    (मपध॰02:4:28:1.2)
10    असवार (= सवार) ("अच्छा, हम बूढ़ा ! ... चालिसे साल में ... साँझ होवे दऽ ... बताम ।" - "ठीक, हम जानऽ ही कि आज तोरा पर गामा पहलवान असवार हो जात । ... आउ सुनऽ, घुरी-घुरी छउँड़ी से लग-लग काहे करते रहऽ हो ... काँच-कुमार बेटी चूड़ी नियन तुन्नुक होवऽ हे । ... जरियो ठुनका लगे पर ... ।")    (मपध॰02:4:23:2.30)
11    असानी (= आसानी) (तुलसी के ई किसिम जादेतर ठंढा आउ सूखा जगह पर पावल जाहे । ई अपन तेज सुगंध आउ उज्जर छोट-छोट फूल के चलते असानी से पछानल जा सकऽ हे ।)    (मपध॰02:4:28:1.25)
12    अहनी (= एकन्हीं; ये लोग) (फिरंगी सब आझो एकर गली-गली में भारत के पुरान संस्कृति अउ सभ्यता देख के लोभा जा हथ । अहनी भी धोती-कुरता, चन्नन-टीका, खड़ाऊँ-चटकी अउ कंठीमाला अपना ले हथ ।)    (मपध॰02:4:32:1.7)
13    आजिज (= तंग, परेशान) (दीना के फटफटिया सवार दोस-मोहिम जब गाँव में ढुक जा हल त डर से औरत-बानी कर-केबाड़ी लगावे लगऽ हलन । बिनेसर बाबू कोट उपाय कइलन बकि गरमजरुआ वला दुनहु तलाब के मछली अब दीने मरवावऽ हल । बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल ।)    (मपध॰02:4:24:3.36)
14    इंजोरिया (रात झम-झम करइत हल बाबू ! झम-झम करइत हल । टह-टह चाँदनी हल । इंजोरिया पसरल । इहाँ से उहाँ तक इंजोरिया पसरल हल ।)    (मपध॰02:4:20:1.3, 4)
15    इन्नर (~ के पड़ी) (कल्हीं बिनेसर बाबू कह रहलन हल - 'की हो रामपुकार भाय, मौज हइ ने ।' साला, हम समझऽ हूँ कि केतना मौज हे । ... भित्तर के मार सहदेवे जानऽ हे । फेर मेहरारू दने देख के बोललन ऊ, "आउ ऊ सब गलती थोड़े कहऽ हथ जब दु-दु गो इन्नर के पड़ी घर में रखले रहम त हंगामा करवे करतन लोग ।")    (मपध॰02:4:23:3.14)
16    उछास (= उच्छ्वास, गहरी साँस) (ई अंक 'मगही के मीरा' कुमारी राधा आउ 'मगही के कबीर' मथुरा प्रसाद 'नवीन' के समर्पित हे, जिनका गमा के हमनीन के मन बिछोह रहल हे । नञ् अब 'अधरतिया के बँसुरी' सुने के मिलत, नञ् 'राहे राह अन्हरिया कटतो' । उनका सबके आगू सरधा के फूल चढ़ा के मन के उछास करगिआ रहली हे ।)    (मपध॰02:4:4:1.12)
17    उनकनहिन (= उनकन्हीं) (ऊ दुनहुँ के कुछ कविता अपने के आगू रख रहली हे । जरूरी नञ् कि ई उनकनहिन के प्रतिनिधि कविता होय, बकि एकरा से अपने के उनकर रचना करम के छहँक जरूर मिलत ।; एकमात्र रस्ता हे कि उनकनहिन के निकाल बाहर कैल जाय ।)    (मपध॰02:4:4:1.13, 6:3.12)
18    उप्पर (= ऊपर; अधिक; बाहरी) (साल से उप्पर से बिनेसर बाबू बहीन के बियाह करे ल सोंचले हलन बकि दीना के डर आउ गाँव-जेवार में नमहँस्सी के डर से कोय जग नञ् ठान रहलन हल । छाती पर पत्थल रख के जग नाध देलन हे ।; फेर उप्पर मन से कहलक, "नञ्, आज नञ् ।" - "आज कुछ नञ् करवो ।" दीना ओकर गोड़ बान्हलक । - "ए गो ... ।" - "नञ्, काम हे । तूँ बड़ी चलाँक हऽ । दीदी से हमर हाँथ माँगे जा हऽ आउ हमरा से 'ए गो' माँगऽ हऽ ।")    (मपध॰02:4:25:1.24, 2.9)
19    उमेद (= उम्मीद) (उनकर आभारी ही, जे पीठ पर हाँथ रखलन आउ उनकर भी, जे तातल चीज समझ के हाँथ पीछे खींच लेलन । कचउमरिया लेखक भाय के उत्साह हमर डग्गर अउसान जरूर करत, अइसन उमेद हे ।)    (मपध॰02:4:4:1.8)
20    एकबैक (= एकबैग; अचानक) (औरत-मरद अपन दूनो लइकन के साथे जादूघर के मुरती देखइत हलन । एकबैक लमहर 'यक्षीणी' के मुरती के पास ठहर गेलन, जे दीदारगंज पटना सिटी से मिलल हल ।; एगो गोर चमड़ी वला फिरंगी मस्त चाल से बनारस के गलियन में चलल जाइत हल । एकबैक एगो बनारसी साइकिल सवार सामने से आके ओकरा से टकरा गेल ।)    (मपध॰02:4:32:1.15, 2.4)
21    एतबड़ (= एतना बड़गर; इतना बड़ा) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल । कत्ते साल से इलाका में बियाह के एतबड़ तैयारी नञ् होल हल ।)    (मपध॰02:4:25:3.17)
22    एन्ने-ओन्ने (= इधर-उधर) (कोय हौले से पुकार रहल हल, राह चलते - "विनीता !" केतना मिठास हे । पीछे घुर के ताकलक त दीना हल । ओकर सीना लोहार के भाथी सन चले लगल । एन्ने-ओन्ने ताक के देखलक । कोय देख तो नञ् रहल हे ।)    (मपध॰02:4:25:2.6)
23    एलाउंस (= अनाउंस, announce) (आधा घंटा में गोली-बारी थम गेल । मैक से कोय एलाउंस कर रहल हल - "अपने से हमरा कोय दुसमनी नञ् हे । हमर काम फतह हो चुकल हे । अपने के कय अदमी हमर कब्जा में हथ, जिनका हम गाँव से बाहर निकलतहीं छोड़ देम । ...")    (मपध॰02:4:25:3.33)
24    औरत-बानी (दीना के फटफटिया सवार दोस-मोहिम जब गाँव में ढुक जा हल त डर से औरत-बानी कर-केबाड़ी लगावे लगऽ हलन । बिनेसर बाबू कोट उपाय कइलन बकि गरमजरुआ वला दुनहु तलाब के मछली अब दीने मरवावऽ हल । बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल ।)    (मपध॰02:4:24:3.32)
25    कखनी (= कब ?; कखनिओ = कभी भी) ("अपने लावऽ अपन सिकरेट । हम नहाय जा रहलूँ हें ।" - "कहाँ ?" रामपुकार बाबू मोछ तर मुसुकते बोललन । "देखऽ हीं न गे दीदी ।" मिंती बहिन दने देख के नखरा उतारे लगल । फेर मोका देख के दोसर भित्तर दने भाग गेल । "ए गे, हमरा दिमाग न हे । ... बूढ़ा होल जइतन ... बुढ़भेस लगले रहल ।" मोका देख के मरदाना दने मुँह बिचका के कखनिओ के ओल ले लेलन मिंती के दीदी ।)    (मपध॰02:4:23:2.25)
26    कचउमरिया (~ लेखक) (उनकर आभारी ही, जे पीठ पर हाँथ रखलन आउ उनकर भी, जे तातल चीज समझ के हाँथ पीछे खींच लेलन । कचउमरिया लेखक भाय के उत्साह हमर डग्गर अउसान जरूर करत, अइसन उमेद हे ।)    (मपध॰02:4:4:1.7)
27    कज्जो (= किसी जगह, कहीं पर) (चारो बगल हँसी-खुशी के माहौल हो गेल । कज्जो भीड़ में खड़ा कमली अँगुठा से मट्टी खोद रहल हल ।)    (मपध॰02:4:26:3.19)
28    कतना (= कितना; कतनो = कितना भी) (बुतरू सब के माय-बाप कतनो पीटे बकि ऊ दीना से पिस्तौल चलवे ल सिक्खे ले हरदम लबधल रहऽ हे ।)    (मपध॰02:4:25:1.17)
29    कत्ते (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल । कत्ते साल से इलाका में बियाह के एतबड़ तैयारी नञ् होल हल ।)    (मपध॰02:4:25:3.16)
30    कनकन्नी (हवा न चलइत हे, बाकि कनकन्नी रह-रह के सिहका देहे ।)    (मपध॰02:4:21:1.10)
31    कनझप्पा (~ टोपी) (ठंढा के रात हल । दस बजिया गाड़ी से उतरली हल । इ कोस के सफर हल । हमनी दुन्नु पैंट-कोट में हली । तरे सूटर-ऊटर सब पहिनले हली । गुलबंद लपेटले हली अउर बिसेसरा कनझप्पा टोपी लगइले हल ।)    (मपध॰02:4:20:1.19)
32    कन्हा (= कन्धा) (उज्जर बग-बग लुंगी-गंजी पहिनले आउ कन्हा पर एगो दू गज के विंध्याचल वला पातर गमछी रखले गोर-सुत्थर सजीला जवान में मिंती के कहैं गुंडा के छहँक नञ् नजर आल ।)    (मपध॰02:4:23:1.15)
33    कर-केबाड़ी (दीना के फटफटिया सवार दोस-मोहिम जब गाँव में ढुक जा हल त डर से औरत-बानी कर-केबाड़ी लगावे लगऽ हलन । बिनेसर बाबू कोट उपाय कइलन बकि गरमजरुआ वला दुनहु तलाब के मछली अब दीने मरवावऽ हल । बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल ।)    (मपध॰02:4:24:3.32)
34    करगिआना (ई अंक 'मगही के मीरा' कुमारी राधा आउ 'मगही के कबीर' मथुरा प्रसाद 'नवीन' के समर्पित हे, जिनका गमा के हमनीन के मन बिछोह रहल हे । नञ् अब 'अधरतिया के बँसुरी' सुने के मिलत, नञ् 'राहे राह अन्हरिया कटतो' । उनका सबके आगू सरधा के फूल चढ़ा के मन के उछास करगिआ रहली हे ।)    (मपध॰02:4:4:1.12)
35    कल्हे (= कल) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।)    (मपध॰02:4:25:3.14)
36    काँच-कुमार ("अच्छा, हम बूढ़ा ! ... चालिसे साल में ... साँझ होवे दऽ ... बताम ।" - "ठीक, हम जानऽ ही कि आज तोरा पर गामा पहलवान असवार हो जात । ... आउ सुनऽ, घुरी-घुरी छउँड़ी से लग-लग काहे करते रहऽ हो ... काँच-कुमार बेटी चूड़ी नियन तुन्नुक होवऽ हे । ... जरियो ठुनका लगे पर ... ।")    (मपध॰02:4:23:3.2)
37    कार (= काला) (भारत में तुलसी के ई किसिम हरेक जगह पावल जा हे । एकर पहचान एकर छोटे-छोटे गुलाबी इया बैंगनी रंग के फूल आउ कार बिच्चा से कइल जा सकऽ हे । ताजा रहला पर एकर बिच्चा उज्जर होवऽ हे ।; एकर पत्ता छोट आउ कार रंग के होवऽ हे । एकरा में उज्जर चिन्हाँ होवऽ हे आउ रुक्खड़ होवऽ हे ।)    (मपध॰02:4:28:2.11, 35)
38    कूप्पह (गाँव खा-पी के निचीत हल । अचानक तड़-तड़ गोली चले लगल । बम के धुआँ से कूप्पह हो गेल, बिनेसर बाबू के बंगला । चरखी-झालर जन्ने-तन्ने रस्ता में बिखर गेल ।)    (मपध॰02:4:25:3.20)
39    केतना (= कितना) (कोय हौले से पुकार रहल हल, राह चलते - "विनीता !" केतना मिठास हे । पीछे घुर के ताकलक त दीना हल ।)    (मपध॰02:4:25:2.3)
40    कोट (= कोटि) (दीना के फटफटिया सवार दोस-मोहिम जब गाँव में ढुक जा हल त डर से औरत-बानी कर-केबाड़ी लगावे लगऽ हलन । बिनेसर बाबू कोट उपाय कइलन बकि गरमजरुआ वला दुनहु तलाब के मछली अब दीने मरवावऽ हल । बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल ।)    (मपध॰02:4:24:3.33)
41    गज-गज (~ करना = गजगजाना) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।)    (मपध॰02:4:25:3.13)
42    गते-गते (= धीरे-धीरे) (दस-बीस कदम चल के ऊ घुर गेल, अइसे कइले, जइसे ओकर कुछ गिर गेल हे, जेकरा खोजे खातिर ऊ पीछु लौटल हे । गते-गते बढ़ते-बढ़ते ऊ चोर नजर से दीना के भी निहार ले हल । दीना भी मिंती के भाँप के ओकरा भर नजर देखलक, त मिंती के रोमा-रोमा गनगना गेल ।)    (मपध॰02:4:23:1.8)
43    गनगनाना (दस-बीस कदम चल के ऊ घुर गेल, अइसे कइले, जइसे ओकर कुछ गिर गेल हे, जेकरा खोजे खातिर ऊ पीछु लौटल हे । गते-गते बढ़ते-बढ़ते ऊ चोर नजर से दीना के भी निहार ले हल । दीना भी मिंती के भाँप के ओकरा भर नजर देखलक, त मिंती के रोमा-रोमा गनगना गेल ।)    (मपध॰02:4:23:1.11)
44    गमछी (उज्जर बग-बग लुंगी-गंजी पहिनले आउ कन्हा पर एगो दू गज के विंध्याचल वला पातर गमछी रखले गोर-सुत्थर सजीला जवान में मिंती के कहैं गुंडा के छहँक नञ् नजर आल ।; एक दिन झोला-झोला होला पर ऊ अपन बगैचा दने से लौटल आ रहल हल । एक हाँथ में एगो किताब हल आउ दोसर हाँथ में गमछी में बन्हल दस-बीस गो अमौरी ।)    (मपध॰02:4:23:1.16, 24:1.27)
45    गमाना (= गँवाना, खोना) (ई अंक 'मगही के मीरा' कुमारी राधा आउ 'मगही के कबीर' मथुरा प्रसाद 'नवीन' के समर्पित हे, जिनका गमा के हमनीन के मन बिछोह रहल हे । नञ् अब 'अधरतिया के बँसुरी' सुने के मिलत, नञ् 'राहे राह अन्हरिया कटतो' । उनका सबके आगू सरधा के फूल चढ़ा के मन के उछास करगिआ रहली हे ।)    (मपध॰02:4:4:1.10)
46    गरमजरुआ (दीना के फटफटिया सवार दोस-मोहिम जब गाँव में ढुक जा हल त डर से औरत-बानी कर-केबाड़ी लगावे लगऽ हलन । बिनेसर बाबू कोट उपाय कइलन बकि गरमजरुआ वला दुनहु तलाब के मछली अब दीने मरवावऽ हल । बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल ।)    (मपध॰02:4:24:3.34)
47    गहना-जेवर (सब गहना-जेवर, रुपइया-पैसा छीन-छोर के डकैत सब निकले चाह रहल हल ।)    (मपध॰02:4:26:1.8)
48    गहिदा (सब सुनसान । न टमटम न रिक्सा । ... बिलकुल सन्नाटा हल । ... पाँव रखे के बराबर पर त रखा जाहे गहिदा में । से हम दुन्नु टाँफे-पाँफे चलइत हली । दुन्नु गोटा आपस में बुदबुदैते-बुदबुदैते चलइत रहली ।)    (मपध॰02:4:20:2.5)
49    गियारी (ताजा रहला पर एकर बिच्चा उज्जर होवऽ हे । एकर उपयोग सरदी-खोंखी, ब्रोंकाइटिस आउ गियारी के दवाय बनावे ल कइल जा हे ।)    (मपध॰02:4:28:2.15)
50    गिरल-मरल (वुिदेसी शुद्ध हिंदी में जवाब देलक - "कोई बात नहीं, ऐसा होता है ।" ओकर मुँह से निकसल बात बनारसी बाबू के अइसन लगल जइसे ओकरा कोय जोड़ से थप्पड़ मार के गारी दे देल । बनारसी बाबू गिरल-मरल सोचे लगलन - " अबहियों हमनी गुलाम ही, अंगरेजियत अउ अंगरेजी के । ..")    (मपध॰02:4:32:3.4)
51    गुल्लक (= बैंक चुकड़ी) (ऊ भाय-बहिन जिनका हमर निहोरा तनिको ठीक लग रहल हे त हम कहम कि अगर अपने 365 रुपइया निकाले में समर्थ ही त तुरतम मगही ले पहल करी । जदि अपने एक बार में 365 रुपइया निकाल नञ् सकऽ ही तो आझे एगो गुल्लक खरीद लेवल जाय । जल्दीये अपने के संकल्प पूरा होयत ।)    (मपध॰02:4:5:1.31)
52    गोटा (दुन्नु ~) (ठंढा के रात हल । दस बजिया गाड़ी से उतरली हल । इ कोस के सफर हल । हमनी दुन्नु पैंट-कोट में हली । ... बाकि काहे तो टीसन के ढलान पार करते-करते एकबारगी दुन्नु गोटा सिहर गेली । सब सुनसान । न टमटम न रिक्सा । ... दुन्नु गोटा के नए बिआह होवे कइल हल ।)    (मपध॰02:4:20:1.21, 2.2)
53    गोलकी (= गोलमिर्च) (गोलकी के साथ एकर पान-छे पत्ता निहार मुँह सेवन करे से मधुमेह कंट्रोल में रहऽ हे ।)    (मपध॰02:4:28:2.21)
54    गोस्सा (= गुस्सा) (आज दीना कमली के साथ जे बेहवार कइल हल ऊ कमली ल बरदास से बाहर हल । ओकरा अंदर गोस्सा के नागिन फुँफकार छोड़े लगल ।)    (मपध॰02:4:24:2.31)
55    घुरना (= लौटना; मुड़ना) (दस-बीस कदम चल के ऊ घुर गेल, अइसे कइले, जइसे ओकर कुछ गिर गेल हे, जेकरा खोजे खातिर ऊ पीछु लौटल हे ।; कोय हौले से पुकार रहल हल, राह चलते - "विनीता !" केतना मिठास हे । पीछे घुर के ताकलक त दीना हल ।)    (मपध॰02:4:23:1.5, 25:2.4)
56    घुरी-घुरी (= बार-बार, तुरन्त-तुरन्त) (उनका रहते यदि खून-खराबा हो रहल हे गुजरात में, त खून के छिटका त उनखो पर भी पड़वे करत । चेहरा तो दागदार होवे करत । कतनो घुरी-घुरी चेहरा पर सफेद रूमाल फेरते रहथ ।; नवीन जी बिलकुल मौजी आउ फक्कड़ किसिम के कवि हलन । इनकर कविता के तेवर एक तरफ सत्ता आउ कुरसी वला के तिकतिका के रख दे हल तब दोसर तरफ आम अमदी ओकरा अप्पन कविता समझ के घुरी-घुरी गावे लगऽ हल ।; "अच्छा, हम बूढ़ा ! ... चालिसे साल में ... साँझ होवे दऽ ... बताम ।" - "ठीक, हम जानऽ ही कि आज तोरा पर गामा पहलवान असवार हो जात । ... आउ सुनऽ, घुरी-घुरी छउँड़ी से लग-लग काहे करते रहऽ हो ... काँच-कुमार बेटी चूड़ी नियन तुन्नुक होवऽ हे । ... जरियो ठुनका लगे पर ... ।"; रामप्रकाश बाबू हीं तो कोय लड़की हे नञ् से-से कउलेज बंद होला पर जब से मिंती उनका हीं आल हल, ओकरे गीत-नाध में जाय पड़ऽ हे । घुरी-घुरी दुआरी दने ताक रहल हे कि कखने बोलहटा आवे ।)    (मपध॰02:4:6:2.5, 7:1.5, 23:3.1, 25:1.34)
57    चउँर (हत् मरदे, तूँ तो हमरो जान ले लेमें । आधा करेजा के तो हम अमदी ही । ओहू पर तू झमदगर जवान होके अइसन बोलमें, त जाने न ले लेमे । चल चल, गोड़ झार । इहाँ की तोरा टेम्पू मिलतउ कि चउँर में चाह के दुकान । चुपचाप चलल चल अउर गोड़ पटक-पटक के चल ।; तू तो अइसन न भूगोल पढ़ावे लगलऽ कि लगे हे इ चउँर में किलमनजारो सुत गेल हे ।)    (मपध॰02:4:20:3.1, 21:3.20)
58    चउहट (एतने न, मगह छेत्तर में लोकनाटक के परचलन कम न हे - रामलीला, रासलीला, डोमकच, चउहट, बगुली, जाट-जटिन आउर सीता-मीता । फागुन के होरी, चइत के चइता, सावन के कजरी आउर भादो के चउहट रितु लोक गीतन में गिनल जाहे । चउमासा, बारहमासा आउर पराती के चलंसार मगही लोक साहित में खूब हे ।)    (मपध॰02:4:16:1.9, 12)
59    चढ़ाय (= चढ़ाई) (चीख-पुकार मच रहल हल । गाँव के अदमी सोंचलक कि जरूर दीना अपन गैंग के साथ बिनेसर बाबू पर चढ़ाय कर देलक हे ।)    (मपध॰02:4:25:3.31)
60    चन्नन-टीका (= चन्दन-टीका) (फिरंगी सब आझो एकर गली-गली में भारत के पुरान संस्कृति अउ सभ्यता देख के लोभा जा हथ । अहनी भी धोती-कुरता, चन्नन-टीका, खड़ाऊँ-चटकी अउ कंठीमाला अपना ले हथ ।)    (मपध॰02:4:32:1.7)
61    चरखी (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।)    (मपध॰02:4:25:3.12)
62    चरखी-झालर (गाँव खा-पी के निचीत हल । अचानक तड़-तड़ गोली चले लगल । बम के धुआँ से कूप्पह हो गेल, बिनेसर बाबू के बंगला । चरखी-झालर जन्ने-तन्ने रस्ता में बिखर गेल ।)    (मपध॰02:4:25:3.21)
63    चलाँक (= चालाक) (फेर उप्पर मन से कहलक, "नञ्, आज नञ् ।" - "आज कुछ नञ् करवो ।" दीना ओकर गोड़ बान्हलक । - "ए गो ... ।" - "नञ्, काम हे । तूँ बड़ी चलाँक हऽ । दीदी से हमर हाँथ माँगे जा हऽ आउ हमरा से 'ए गो' माँगऽ हऽ ।")    (मपध॰02:4:25:2.14)
64    चलाँकी (मैक से कोय एलाउंस कर रहल हल - "अपने से हमरा कोय दुसमनी नञ् हे । हमर काम फतह हो चुकल हे । अपने के कय अदमी हमर कब्जा में हथ, जिनका हम गाँव से बाहर निकलतहीं छोड़ देम । रस्ता दे दी हमनी के ... । अगर कोय चलाँकी देखयतन त अपना साथ ऊ इनकनहियों के जान लेतन ।")    (मपध॰02:4:26:1.6)
65    चिट्ठी-चपाती (अपने सब के नेह तभिए मिलऽ हे, जब हम अंक लेके अपने के दुआरी तक जाही । फेर अपने बिसर जाही हमरा । अच्छा लगत जब चिट्ठी-चपाती लिखते रहवऽ । अकेलुआ अदमी कहिया तक घर-घर जइते रहम ।)    (मपध॰02:4:4:1.32-33)
66    चौरा (भारत भर में तुलसी पूजल जा हलन । घर-घर में तुलसी चौरा होवऽ हल । कोय पूजा-पाठ के परसाद तुलसी दल बिना पूरा नञ् मानल जा हल ।)    (मपध॰02:4:27:1.29)
67    छउँड़की (= छउँड़ी) (कमली गाँव के सबसे धनगर आउ शानियल अदमी बिनेसर बाबू के बेटी हल । अंग-अंग झनझन, पोरे-पोर टेढ़ । की मजाल कि गाँव के कोय मानिंदे अदमी के भी राने । गाँव के सब छउँड़किन ओकरा से हेंठ हल । काहे कि ऊ गाँव के सबसे बड़का के बेटी हल ।; बुतरू सब के माय-बाप कतनो पीटे बकि ऊ दीना से पिस्तौल चलवे ल सिक्खे ले हरदम लबधल रहऽ हे । कोय चुलबुल छउँड़किन भले यदि दीना के रस्ता में एकेल्ले पड़ जाहे त ओकर मुँह सुख जाहे ।)    (मपध॰02:4:24:2.23, 25:1.20)
68    छगुनना (उज्जर बग-बग लुंगी-गंजी पहिनले आउ कन्हा पर एगो दू गज के विंध्याचल वला पातर गमछी रखले गोर-सुत्थर सजीला जवान में मिंती के कहैं गुंडा के छहँक नञ् नजर आल । राह चलते मने-मन छगुने लगल ऊ, 'अइसन कइसे हो सकऽ हे ! दीना सन भला मानुस - गुंडा !')    (मपध॰02:4:23:1.19)
69    छहँक (= आभास, छाया, प्रतिरूप) (ऊ दुनहुँ के कुछ कविता अपने के आगू रख रहली हे । जरूरी नञ् कि ई उनकनहिन के प्रतिनिधि कविता होय, बकि एकरा से अपने के उनकर रचना करम के छहँक जरूर मिलत ।; उज्जर बग-बग लुंगी-गंजी पहिनले आउ कन्हा पर एगो दू गज के विंध्याचल वला पातर गमछी रखले गोर-सुत्थर सजीला जवान में मिंती के कहैं गुंडा के छहँक नञ् नजर आल ।)    (मपध॰02:4:4:1.14, 23:1.18)
70    छानना (= जकड़ना) (बिसेसरा त चलते ठमक जाय । कहे, पाठक भइया, लगो हो कि गोड़वे छान लेलको । - के रे ? - का जाने, बाकि लगो हो कि गोड़बे छान लेलको ।; ढिमका पर से उठ के घर दने जाय लगल त दीना के लगल कि ओकर दुनु गोड़ कोय छानले हे ।)    (मपध॰02:4:20:2.21, 24, 23:3.29)
71    छिटका (= छिंटका; छींटा) (उनका रहते यदि खून-खराबा हो रहल हे गुजरात में, त खून के छिटका त उनखो पर भी पड़वे करत । चेहरा तो दागदार होवे करत । कतनो घुरी-घुरी चेहरा पर सफेद रूमाल फेरते रहथ ।)    (मपध॰02:4:6:2.3)
72    छीनना-छोरना (सब गहना-जेवर, रुपइया-पैसा छीन-छोर के डकैत सब निकले चाह रहल हल ।)    (मपध॰02:4:26:1.9)
73    छो (= छे; छह) (अभी तक 'हेपेटाइटिस' रोग के छो किसिम के पुष्टि डाक्टर लोग कइलन हे - ए, बी, सी, डी, ई आउ जी ।)    (मपध॰02:4:29:1.6)
74    छोट (= छोटा) (एकर पत्ता छोट आउ कार रंग के होवऽ हे । एकरा में उज्जर चिन्हाँ होवऽ हे आउ रुक्खड़ होवऽ हे ।)    (मपध॰02:4:28:2.35)
75    छोट-छोट (= छोटा-छोटा) (तुलसी के ई किसिम जादेतर ठंढा आउ सूखा जगह पर पावल जाहे । ई अपन तेज सुगंध आउ उज्जर छोट-छोट फूल के चलते असानी से पछानल जा सकऽ हे ।)    (मपध॰02:4:28:1.25)
76    छोटे-छोटे (= छोट्टे-छोट्टे; छोटा-छोटा) (भारत में तुलसी के ई किसिम हरेक जगह पावल जा हे । एकर पहचान एकर छोटे-छोटे गुलाबी इया बैंगनी रंग के फूल आउ कार बिच्चा से कइल जा सकऽ हे । ताजा रहला पर एकर बिच्चा उज्जर होवऽ हे ।)    (मपध॰02:4:28:2.10)
77    जग (= यज्ञ; अनुष्ठान) (साल से उप्पर से बिनेसर बाबू बहीन के बियाह करे ल सोंचले हलन बकि दीना के डर आउ गाँव-जेवार में नमहँस्सी के डर से कोय जग नञ् ठान रहलन हल । छाती पर पत्थल रख के जग नाध देलन हे ।)    (मपध॰02:4:25:1.27, 28)
78    जरियो (= तनिक्को; थोड़ा-सा भी) ("अच्छा, हम बूढ़ा ! ... चालिसे साल में ... साँझ होवे दऽ ... बताम ।" - "ठीक, हम जानऽ ही कि आज तोरा पर गामा पहलवान असवार हो जात । ... आउ सुनऽ, घुरी-घुरी छउँड़ी से लग-लग काहे करते रहऽ हो ... काँच-कुमार बेटी चूड़ी नियन तुन्नुक होवऽ हे । ... जरियो ठुनका लगे पर ... ।")    (मपध॰02:4:23:3.3)
79    जवार (= जेवार, क्षेत्र) (ई सब बात के साच्छी गाँव-जेवार के आम अदमी हल । ओकरा नजर में दीना अब एगो अइसन भेटनर गुंडा हल जे जवार के कउनो अदमी से नञ् बद्दऽ हल ।)    (मपध॰02:4:25:1.11)
80    जाट-जटिन (एतने न, मगह छेत्तर में लोकनाटक के परचलन कम न हे - रामलीला, रासलीला, डोमकच, चउहट, बगुली, जाट-जटिन आउर सीता-मीता । फागुन के होरी, चइत के चइता, सावन के कजरी आउर भादो के चउहट रितु लोक गीतन में गिनल जाहे । चउमासा, बारहमासा आउर पराती के चलंसार मगही लोक साहित में खूब हे ।)    (मपध॰02:4:16:1.9)
81    झउँसाना (= झौंसाना) (मोदी जी ए.सी. में चले के आदी हो गेलन हे । उनका पता नञ् चले कि केकरो घर जले के धाह केतना तेज होवऽ हे । जे जर गेलन ऊ तो जरिए गेलन बकि जे बचल भी हथ ओकर जिनगी अइसन झउँसा जाहे कि ऊ जीवन भर दिन नञ् पावे ।)    (मपध॰02:4:6:2.12)
82    झनझन (कमली गाँव के सबसे धनगर आउ शानियल अदमी बिनेसर बाबू के बेटी हल । अंग-अंग झनझन, पोरे-पोर टेढ़ । की मजाल कि गाँव के कोय मानिंदे अदमी के भी राने ।)    (मपध॰02:4:24:2.19)
83    झम-झम (रात झम-झम करइत हल बाबू ! झम-झम करइत हल । टह-टह चाँदनी हल । इंजोरिया पसरल । इहाँ से उहाँ तक इंजोरिया पसरल हल ।)    (मपध॰02:4:20:1.1, 2)
84    झमदगर (हत् मरदे, तूँ तो हमरो जान ले लेमें । आधा करेजा के तो हम अमदी ही । ओहू पर तू झमदगर जवान होके अइसन बोलमें, त जाने न ले लेमे । चल चल, गोड़ झार । इहाँ की तोरा टेम्पू मिलतउ कि चउर में चाह के दुकान । चुपचाप चलल चल अउर गोड़ पटक-पटक के चल ।)    (मपध॰02:4:20:2.27)
85    झाड़ा (~ फिरना = मलत्याग करना, शौच करना, हगना) (चौधरी ताड़-फेंड़ तर ताड़ी बेचइत हल । थोड़े हट के बोतल में पानी लेले उँकड़ूँ बैठल कोई निर्लज्ज झाड़ा फिरइत हल ।)    (मपध॰02:4:32:3.25)
86    झोला-झोला (एक दिन झोला-झोला होला पर ऊ अपन बगैचा दने से लौटल आ रहल हल । एक हाँथ में एगो किताब हल आउ दोसर हाँथ में गमछी में बन्हल दस-बीस गो अमौरी ।)    (मपध॰02:4:24:1.24)
87    झोला-झोली (= झोलाझोली, झोराझोरी; परस्पर झकझोरने की क्रिया या भाव) (आज दीना कमली के साथ जे बेहवार कइल हल ऊ कमली ल बरदास से बाहर हल । ओकरा अंदर गोस्सा के नागिन फुँफकार छोड़े लगल । ऊ दीना के सबक सिखावे ल ठान लेलक । झोला-झोली के समय हल । अचोक्के गाँव में कोहराम मच गेल । चारो तरफ से लाठी-भाला निकले लगल ।)    (मपध॰02:4:24:3.1)
88    झौंसना (पहिले गौतम के धरती बिहार खूने-खून हल, अब गाँधी के धरती गुजरात जल रहल हे । लोग जिंदा आग में झौंसल जा रहलन हे ।)    (मपध॰02:4:6:1.4)
89    टह-टह (रात झम-झम करइत हल बाबू ! झम-झम करइत हल । टह-टह चाँदनी हल । इंजोरिया पसरल । इहाँ से उहाँ तक इंजोरिया पसरल हल ।)    (मपध॰02:4:20:1.2)
90    टाँफे-पाँफे (सब सुनसान । न टमटम न रिक्सा । ... बिलकुल सन्नाटा हल । ... पाँव रखे के बराबर पर त रखा जाहे गहिदा में । से हम दुन्नु टाँफे-पाँफे चलइत हली । दुन्नु गोटा आपस में बुदबुदैते-बुदबुदैते चलइत रहली ।)    (मपध॰02:4:20:2.12)
91    टेम्पू (हत् मरदे, तूँ तो हमरो जान ले लेमें । आधा करेजा के तो हम अमदी ही । ओहू पर तू झमदगर जवान होके अइसन बोलमें, त जाने न ले लेमे । चल चल, गोड़ झार । इहाँ की तोरा टेम्पू मिलतउ कि चउँर में चाह के दुकान । चुपचाप चलल चल अउर गोड़ पटक-पटक के चल ।; टेम्पू में बइठल जंक्शन जाइत एगो सज्जन ई नजारा देख के कहलन - ये ही जंगल राज हे ।)    (मपध॰02:4:20:2.29, 32:3.26)
92    ठुनका ("अच्छा, हम बूढ़ा ! ... चालिसे साल में ... साँझ होवे दऽ ... बताम ।" - "ठीक, हम जानऽ ही कि आज तोरा पर गामा पहलवान असवार हो जात । ... आउ सुनऽ, घुरी-घुरी छउँड़ी से लग-लग काहे करते रहऽ हो ... काँच-कुमार बेटी चूड़ी नियन तुन्नुक होवऽ हे । ... जरियो ठुनका लगे पर ... ।")    (मपध॰02:4:23:3.4)
93    डंटी (= डंठल) (एकर लंबा डंटीवला पत्ता नीचे झुकल रहऽ हे आउ बिच्चा के रंग एकदम मटिया रंग होवऽ हे । बीज तिनकोनियाँ होवऽ हे ।)    (मपध॰02:4:28:1.8)
94    डग्गर (= डगर) (उनकर आभारी ही, जे पीठ पर हाँथ रखलन आउ उनकर भी, जे तातल चीज समझ के हाँथ पीछे खींच लेलन । कचउमरिया लेखक भाय के उत्साह हमर डग्गर अउसान जरूर करत, अइसन उमेद हे ।)    (मपध॰02:4:4:1.7)
95    डोभा (दीना के फटफटिया सवार दोस-मोहिम जब गाँव में ढुक जा हल त डर से औरत-बानी कर-केबाड़ी लगावे लगऽ हलन । बिनेसर बाबू कोट उपाय कइलन बकि गरमजरुआ वला दुनहु तलाब के मछली अब दीने मरवावऽ हल । बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल । कभी उनकर दुनहूँ टरेक्टर के पहिला डोभा में मिले । कभी सुत के उठला पर ऊ देखथ उनकर सउँसे घर आउ बंगला के पकिया देवाल गोबर से नीपल हे ।)    (मपध॰02:4:25:1.2)
96    डोमकच (एतने न, मगह छेत्तर में लोकनाटक के परचलन कम न हे - रामलीला, रासलीला, डोमकच, चउहट, बगुली, जाट-जटिन आउर सीता-मीता । फागुन के होरी, चइत के चइता, सावन के कजरी आउर भादो के चउहट रितु लोक गीतन में गिनल जाहे । चउमासा, बारहमासा आउर पराती के चलंसार मगही लोक साहित में खूब हे ।)    (मपध॰02:4:16:1.9)
97    ढिमका (चार कदम चलके मिंती थोड़े ठमक गेल । पीछू घुम के ऊ भर नजर ढिमका पर बैठल दीना के देखे लगल । फेर ओकरा अपना दने देखते देख के आगू बढ़ गेल ।; ढिमका पर से उठ के घर दने जाय लगल त दीना के लगल कि ओकर दुनु गोड़ कोय छानले हे ।)    (मपध॰02:4:23:1.2, 3.27)
98    तड़-तड़ (गाँव खा-पी के निचीत हल । अचानक तड़-तड़ गोली चले लगल । बम के धुआँ से कूप्पह हो गेल, बिनेसर बाबू के बंगला । चरखी-झालर जन्ने-तन्ने रस्ता में बिखर गेल ।)    (मपध॰02:4:25:3.19)
99    तहियाना (दीना के नजर कमली के बगल में खड़ा मिंती से मिलल त ओकरा लगल कि कारू के खजाना हाँथ लग गेल हे । मिंती के लग रहल हल कि ठेहुना भर तहियावल गुलाब के पँखुड़ी में धँसल जा रहल हे ।)    (मपध॰02:4:26:3.24)
100    तागत (= ताकत, शक्ति) (पहिले गौतम के धरती बिहार खूने-खून हल, अब गाँधी के धरती गुजरात जल रहल हे । लोग जिंदा आग में झौंसल जा रहलन हे । हैवानियत चरम पर हे । हिंदू-मुस्लिम जउन तागत एकर पीछे लगल हे, दुनियाँ के सबसे बड़ हेमान में से एक हे ।)    (मपध॰02:4:6:1.6)
101    तातल (= गरम, उष्ण) (उनकर आभारी ही, जे पीठ पर हाँथ रखलन आउ उनकर भी, जे तातल चीज समझ के हाँथ पीछे खींच लेलन । कचउमरिया लेखक भाय के उत्साह हमर डग्गर अउसान जरूर करत, अइसन उमेद हे ।)    (मपध॰02:4:4:1.6)
102    तिकतिकाना (नवीन जी बिलकुल मौजी आउ फक्कड़ किसिम के कवि हलन । इनकर कविता के तेवर एक तरफ सत्ता आउ कुरसी वला के तिकतिका के रख दे हल तब दोसर तरफ आम अमदी ओकरा अप्पन कविता समझ के घुरी-घुरी गावे लगऽ हल ।)    (मपध॰02:4:7:1.4)
103    तिनकोनियाँ (= तिकोना) (एकर लंबा डंटीवला पत्ता नीचे झुकल रहऽ हे आउ बिच्चा के रंग एकदम मटिया रंग होवऽ हे । बीज तिनकोनियाँ होवऽ हे ।)    (मपध॰02:4:28:1.10)
104    तुन्नुक (= टुन्नुक; नाजुक) ("अच्छा, हम बूढ़ा ! ... चालिसे साल में ... साँझ होवे दऽ ... बताम ।" - "ठीक, हम जानऽ ही कि आज तोरा पर गामा पहलवान असवार हो जात । ... आउ सुनऽ, घुरी-घुरी छउँड़ी से लग-लग काहे करते रहऽ हो ... काँच-कुमार बेटी चूड़ी नियन तुन्नुक होवऽ हे । ... जरियो ठुनका लगे पर ... ।")    (मपध॰02:4:23:3.3)
105    थाह-पता (ऊ दीना के सबक सिखावे ल ठान लेलक । झोला-झोली के समय हल । अचोक्के गाँव में कोहराम मच गेल । चारो तरफ से लाठी-भाला निकले लगल । दु-चार गो फायर भी हो गेल । बकि अभी कहैं कुछ थाह-पता नञ् चल रहल हल ।)    (मपध॰02:4:24:3.5)
106    थीर (~ के पानी लेना) (बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल । कभी उनकर दुनहूँ टरेक्टर के पहिला डोभा में मिले । कभी सुत के उठला पर ऊ देखथ उनकर सउँसे घर आउ बंगला के पकिया देवाल गोबर से नीपल हे । सायते दिन ऊ थीर के पानी ले होतन ।)    (मपध॰02:4:25:1.5)
107    थोड़के (~ देर में) (दूरा पर आके ऊ सच्चो लोठरी बंद करके पड़ रहल । थोड़के देर में ऊ सपना के दुनिया में हल ।)    (मपध॰02:4:24:1.11)
108    दनी (= दबर) (पट ~; झट ~) (दोकान से चीनी लेके मिंती हाली-हाली घर पहुँचल त पट दनी दीदी पुछलक, "कउन दोकान से चीनी लावे गेलें हल मिंती ? बुतरू एहाँ कान-कान के हलकान हो गेल 'चीनी-चीनी करते ।")    (मपध॰02:4:23:1.27)
109    दवाय (= दवाई, दवा) (तुलसी से विदेसो में ढेर दवाय बनावल जा हे ।; ताजा रहला पर एकर बिच्चा उज्जर होवऽ हे । एकर उपयोग सरदी-खोंखी, ब्रोंकाइटिस आउ गियारी के दवाय बनावे ल कइल जा हे ।)    (मपध॰02:4:27:2.12, 28:2.15)
110    दस-बजिया (~ गाड़ी) (ठंढा के रात हल । दस बजिया गाड़ी से उतरली हल । इ कोस के सफर हल ।)    (मपध॰02:4:20:1.14)
111    दावा-बीरो (जमाना 'पश्चिमीकरण' के आ गेल हे । 'पश्चिमीकरण' के चलते हमनिन के रहन-सहन से भारत के मट्टी के सुगंध उड़ते जा रहल हे । अइसे में दावा-बीरो के रूप-रंग भी बदल रहल हे ।)    (मपध॰02:4:27:1.2)
112    दिन (~ नञ् पाना) (मोदी जी ए.सी. में चले के आदी हो गेलन हे । उनका पता नञ् चले कि केकरो घर जले के धाह केतना तेज होवऽ हे । जे जर गेलन ऊ तो जरिए गेलन बकि जे बचल भी हथ ओकर जिनगी अइसन झउँसा जाहे कि ऊ जीवन भर दिन नञ् पावे ।)    (मपध॰02:4:6:2.13)
113    दुरा (= दूरा) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।)    (मपध॰02:4:25:3.11)
114    देवाल (= दीवाल, दीवार) (बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल । कभी उनकर दुनहूँ टरेक्टर के पहिला डोभा में मिले । कभी सुत के उठला पर ऊ देखथ उनकर सउँसे घर आउ बंगला के पकिया देवाल गोबर से नीपल हे ।)    (मपध॰02:4:25:1.4)
115    दोकान (= दुकान) (दोकान से चीनी लेके मिंती हाली-हाली घर पहुँचल त पट दनी दीदी पुछलक, "कउन दोकान से चीनी लावे गेलें हल मिंती ? बुतरू एहाँ कान-कान के हलकान हो गेल 'चीनी-चीनी करते ।")    (मपध॰02:4:23:1.26)
116    दोम (= मध्यम श्रेणी का; साधारण, तुच्छ) (हलाँकि जइसे कोय-कोय जज तुरतम निरनय सुना दे हथ, ओइसहीं कुछ पाठक/ लेखक तुरतम अपन राय कायम कर देलन - बेस इया दोम । अच्छा लगल ।)    (मपध॰02:4:4:1.4)
117    दोस (= दोस्त) (फेर धीरे से ओकर सीना पर सिर टिका के बोलल, "अब जा हियो ।" - "कहाँ जाइत हऽ ?" दीना पूछलक । - "तोर दोस हीं । उनकर बहिन के बियाह के गीत गावे ।" आँख नचा के बोलल मिंती ।)    (मपध॰02:4:25:3.4)
118    धनगर (= धनवान) (कमली गाँव के सबसे धनगर आउ शानियल अदमी बिनेसर बाबू के बेटी हल । अंग-अंग झनझन, पोरे-पोर टेढ़ । की मजाल कि गाँव के कोय मानिंदे अदमी के भी राने ।)    (मपध॰02:4:24:2.17)
119    धाह (= धाही; आग की गरमी, लपट) (मोदी जी ए.सी. में चले के आदी हो गेलन हे । उनका पता नञ् चले कि केकरो घर जले के धाह केतना तेज होवऽ हे । जे जर गेलन ऊ तो जरिए गेलन बकि जे बचल भी हथ ओकर जिनगी अइसन झउँसा जाहे कि ऊ जीवन भर दिन नञ् पावे ।)    (मपध॰02:4:6:2.9)
120    धी-सवासिन (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।)    (मपध॰02:4:25:3.15)
121    नमहँस्सी (= नामहँसी) (साल से उप्पर से बिनेसर बाबू बहीन के बियाह करे ल सोंचले हलन बकि दीना के डर आउ गाँव-जेवार में नमहँस्सी के डर से कोय जग नञ् ठान रहलन हल । छाती पर पत्थल रख के जग नाध देलन हे ।)    (मपध॰02:4:25:1.26)
122    नाया (= नया) (उनकर कविता नाया तरह के चेतना जगावे वला आउ मन के विछोहे वला दरद से सनल रहऽ हे । नाया आउ पुराना हर तरह के प्रयोग ऊ अपन कविता में करके अपन विलक्षण प्रतिभा के परिचय देलन ।)    (मपध॰02:4:12:1.15, 16)
123    निचिंत (= निश्चिन्त) (ऊपर जा के रुकलन । साँस में साँस आयल । बैठलन । निचिंत होलन । फिन खड़ा होके देखलन ।)    (मपध॰02:4:21:2.20)
124    निचीत (दे॰ निचिंत) (गाँव खा-पी के निचीत हल । अचानक तड़-तड़ गोली चले लगल । बम के धुआँ से कूप्पह हो गेल, बिनेसर बाबू के बंगला । चरखी-झालर जन्ने-तन्ने रस्ता में बिखर गेल ।)    (मपध॰02:4:25:3.18)
125    निहार (~ मुँह) (गोलकी के साथ एकर पान-छे पत्ता निहार मुँह सेवन करे से मधुमेह कंट्रोल में रहऽ हे ।)    (मपध॰02:4:28:2.22)
126    पकिया (~ देवाल) (बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल । कभी उनकर दुनहूँ टरेक्टर के पहिला डोभा में मिले । कभी सुत के उठला पर ऊ देखथ उनकर सउँसे घर आउ बंगला के पकिया देवाल गोबर से नीपल हे ।)    (मपध॰02:4:25:1.4)
127    पट्टी (= तरफ, ओर) (दोकान से चीनी लेके मिंती हाली-हाली घर पहुँचल त पट दनी दीदी पुछलक, "कउन दोकान से चीनी लावे गेलें हल मिंती ? बुतरू एहाँ कान-कान के हलकान हो गेल 'चीनी-चीनी करते ।" - सोमर साव हीं झरल हलइ, दीदी । ऊ पट्टी से ला रहलियो हऽ । - "अच्छा ! तनी हमरो सिकरेट ला देवऽ ऊ पट्टी से ।" पिठदोबारे घर घुंसते ओकर जीजा रामपुकार जी मिंती के कनखिऐते बोललन ।)    (मपध॰02:4:23:1.33, 2.2)
128    पत (= प्रत्येक) ('हेपेटाइटिस' एगो खतरनाक आउ जानलेवा बिमारी हे । पत साल लाखो अदमी के ई ग्रस ले हे ।)    (मपध॰02:4:29:1.2)
129    परघट (= प्रकट) (पाँच मिनट में सउँसे गाँव जामा हो गेल । सब अवाक् ! रजेसर माटसा जे एगो डंटा लेले दीना के मारे ले चललन हल, अनेसा में ... । 'दीना-दीना' पुकार रहलन हल । देवदूत नियन दीना परघट भेल ।)    (मपध॰02:4:26:1.35)
130    परसाद (= प्रसाद) (भारत भर में तुलसी पूजल जा हलन । घर-घर में तुलसी चौरा होवऽ हल । कोय पूजा-पाठ के परसाद तुलसी दल बिना पूरा नञ् मानल जा हल ।)    (मपध॰02:4:27:1.30)
131    पराती (= परतकाली) (एतने न, मगह छेत्तर में लोकनाटक के परचलन कम न हे - रामलीला, रासलीला, डोमकच, चउहट, बगुली, जाट-जटिन आउर सीता-मीता । फागुन के होरी, चइत के चइता, सावन के कजरी आउर भादो के चउहट रितु लोक गीतन में गिनल जाहे । चउमासा, बारहमासा आउर पराती के चलंसार मगही लोक साहित में खूब हे ।)    (मपध॰02:4:16:1.13)
132    पहिनना (= पहनना, पेन्हना) (उज्जर बग-बग लुंगी-गंजी पहिनले आउ कन्हा पर एगो दू गज के विंध्याचल वला पातर गमछी रखले गोर-सुत्थर सजीला जवान में मिंती के कहैं गुंडा के छहँक नञ् नजर आल ।)    (मपध॰02:4:23:1.14)
133    पान-छे (= पाँच-छह) (गोलकी के साथ एकर पान-छे पत्ता निहार मुँह सेवन करे से मधुमेह कंट्रोल में रहऽ हे ।)    (मपध॰02:4:28:2.22)
134    पिठदोबारे (दोकान से चीनी लेके मिंती हाली-हाली घर पहुँचल त पट दनी दीदी पुछलक, "कउन दोकान से चीनी लावे गेलें हल मिंती ? बुतरू एहाँ कान-कान के हलकान हो गेल 'चीनी-चीनी करते ।" - सोमर साव हीं झरल हलइ, दीदी । ऊ पट्टी से ला रहलियो हऽ । - "अच्छा ! तनी हमरो सिकरेट ला देवऽ ऊ पट्टी से ।" पिठदोबारे घर घुंसते ओकर जीजा रामपुकार जी मिंती के कनखिऐते बोललन ।)    (मपध॰02:4:23:2.2)
135    पेटभरन (रोटी, कपड़ा आउ मकान अदमी के उजिआय नञ् दे हे । काहे कि ई तीनों के सरूप अब बदल गेल हे । पहिले रोटी के मतलब पेट के आग बुझे से हल बकि अब एकर मतलब पेटभरन के साथ-साथ मुँहफेरन भी हो गेल हे ।)    (मपध॰02:4:5:1.16)
136    पोरे-पोर (कमली गाँव के सबसे धनगर आउ शानियल अदमी बिनेसर बाबू के बेटी हल । अंग-अंग झनझन, पोरे-पोर टेढ़ । की मजाल कि गाँव के कोय मानिंदे अदमी के भी राने ।)    (मपध॰02:4:24:2.19)
137    फटफटिया (दीना के फटफटिया सवार दोस-मोहिम जब गाँव में ढुक जा हल त डर से औरत-बानी कर-केबाड़ी लगावे लगऽ हलन । बिनेसर बाबू कोट उपाय कइलन बकि गरमजरुआ वला दुनहु तलाब के मछली अब दीने मरवावऽ हल । बिनेसर बाबू तो आजिज आ गेलन हल ।)    (मपध॰02:4:24:3.30)
138    बग-बग (उज्जर ~) (उज्जर बग-बग लुंगी-गंजी पहिनले आउ कन्हा पर एगो दू गज के विंध्याचल वला पातर गमछी रखले गोर-सुत्थर सजीला जवान में मिंती के कहैं गुंडा के छहँक नञ् नजर आल ।)    (मपध॰02:4:23:1.14)
139    बगुली (एतने न, मगह छेत्तर में लोकनाटक के परचलन कम न हे - रामलीला, रासलीला, डोमकच, चउहट, बगुली, जाट-जटिन आउर सीता-मीता । फागुन के होरी, चइत के चइता, सावन के कजरी आउर भादो के चउहट रितु लोक गीतन में गिनल जाहे । चउमासा, बारहमासा आउर पराती के चलंसार मगही लोक साहित में खूब हे ।)    (मपध॰02:4:16:1.9)
140    बतिआना (अरे तू तो ढेर राजनीति बतिआवे हें । कुछ बतिऔते चल । रस्ता कटतउ । मन भी लगतउ ।)    (मपध॰02:4:21:1.1)
141    बदना (= काबू या वश में आना) (ई सब बात के साच्छी गाँव-जेवार के आम अदमी हल । ओकरा नजर में दीना अब एगो अइसन भेटनर गुंडा हल जे जवार के कउनो अदमी से नञ् बद्दऽ हल ।)    (मपध॰02:4:25:1.12)
142    बन्हना (= बँधना) (एक दिन झोला-झोला होला पर ऊ अपन बगैचा दने से लौटल आ रहल हल । एक हाँथ में एगो किताब हल आउ दोसर हाँथ में गमछी में बन्हल दस-बीस गो अमौरी ।)    (मपध॰02:4:24:1.27)
143    बरदास (= बर्दाश्त) (आज दीना कमली के साथ जे बेहवार कइल हल ऊ कमली ल बरदास से बाहर हल । ओकरा अंदर गोस्सा के नागिन फुँफकार छोड़े लगल ।)    (मपध॰02:4:24:2.30)
144    बहिन (= बहीन; बहन) (फेर धीरे से ओकर सीना पर सिर टिका के बोलल, "अब जा हियो ।" - "कहाँ जाइत हऽ ?" दीना पूछलक । - "तोर दोस हीं । उनकर बहिन के बियाह के गीत गावे ।" आँख नचा के बोलल मिंती ।; कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।)    (मपध॰02:4:25:3.4, 14)
145    बहीन (= बहिन; बहन) (साल से उप्पर से बिनेसर बाबू बहीन के बियाह करे ल सोंचले हलन बकि दीना के डर आउ गाँव-जेवार में नमहँस्सी के डर से कोय जग नञ् ठान रहलन हल । छाती पर पत्थल रख के जग नाध देलन हे ।)    (मपध॰02:4:25:1.24)
146    बान्हना (= बाँधना, जकड़ना) (फेर उप्पर मन से कहलक, "नञ्, आज नञ् ।" - "आज कुछ नञ् करवो ।" दीना ओकर गोड़ बान्हलक । - "ए गो ... ।" - "नञ्, काम हे । तूँ बड़ी चलाँक हऽ । दीदी से हमर हाँथ माँगे जा हऽ आउ हमरा से 'ए गो' माँगऽ हऽ ।")    (मपध॰02:4:25:2.12)
147    बिगहा (= बीघा) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।)    (मपध॰02:4:25:3.12)
148    बिच्चा (= बीज) (एकर जड़ी, फूल आउ बिच्चा के सेवन से पेट के रोग, कब्ज आउ आँव में अराम मिलऽ हे ।; एकर लंबा डंटीवला पत्ता नीचे झुकल रहऽ हे आउ बिच्चा के रंग एकदम मटिया रंग होवऽ हे । बीज तिनकोनियाँ होवऽ हे ।; भारत में तुलसी के ई किसिम हरेक जगह पावल जा हे । एकर पहचान एकर छोटे-छोटे गुलाबी इया बैंगनी रंग के फूल आउ कार बिच्चा से कइल जा सकऽ हे । ताजा रहला पर एकर बिच्चा उज्जर होवऽ हे ।)    (मपध॰02:4:28:1.1, 9, 2.11, 12)
149    बिछोहना (ई अंक 'मगही के मीरा' कुमारी राधा आउ 'मगही के कबीर' मथुरा प्रसाद 'नवीन' के समर्पित हे, जिनका गमा के हमनीन के मन बिछोह रहल हे । नञ् अब 'अधरतिया के बँसुरी' सुने के मिलत, नञ् 'राहे राह अन्हरिया कटतो' । उनका सबके आगू सरधा के फूल चढ़ा के मन के उछास करगिआ रहली हे ।)    (मपध॰02:4:4:1.10)
150    बुड़बक (सुन-सुन किलमनजारो के कथा । अफ्रीका के छत के कथा । सउँसे छत पर ग्लेसियर हल । बरफ के नदी । कहियो देखले हें बरफ के नदी, न देखले हें ? - तू देखलऽ हऽ भइया ? - भत् बुड़बक, बिना देखले कह रहली हे, सुन ।)    (मपध॰02:4:21:1.18)
151    बुढ़भेस ("अपने लावऽ अपन सिकरेट । हम नहाय जा रहलूँ हें ।" - "कहाँ ?" रामपुकार बाबू मोछ तर मुसुकते बोललन । "देखऽ हीं न गे दीदी ।" मिंती बहिन दने देख के नखरा उतारे लगल । फेर मोका देख के दोसर भित्तर दने भाग गेल । "ए गे, हमरा दिमाग न हे । ... बूढ़ा होल जइतन ... बुढ़भेस लगले रहल ।" मोका देख के मरदाना दने मुँह बिचका के कखनिओ के ओल ले लेलन मिंती के दीदी ।)    (मपध॰02:4:23:2.23)
152    बुताना (= बुझाना) (गोधरा के प्रतिक्रिया में जे आग भड़कल ऊ अब तक समित हो चुकल होत जदि समर्थ लोग ओकरा बुतावे के कोरसिस करतन हल ।)    (मपध॰02:4:6:1.27)
153    बेटैती (अभी भी अटल जी, मोदी जी आउ संघ के कैडर चेतथ आउ जलते गुजरात के आग बुझावथ ईहे में बेटैती हे, ईहे में इनसानियत हे ।)    (मपध॰02:4:6:3.33)
154    बेमारी (= बीमारी) (रोग-~) (एकर एक पत्ता के भी यदि रोज सेवन कइल जाय तो अदमी के कईएक रोग-बेमारी दूर हो जाहे ।)    (मपध॰02:4:27:2.19)
155    बेस (= उत्तम, अच्छा, बढ़ियाँ, ठीक) (हलाँकि जइसे कोय-कोय जज तुरतम निरनय सुना दे हथ, ओइसहीं कुछ पाठक/ लेखक तुरतम अपन राय कायम कर देलन - बेस इया दोम । अच्छा लगल ।)    (मपध॰02:4:4:1.4)
156    बोलहटा (= बुलाहट, निमंत्रण) (ई दुनहुँ किताब के पांडुलिपि भी तैयार करवा रहलन हल ऊ कि इहे बीच बीतल 4 मार्च 2002 के उनका बोलहटा आ गेल, भगमान घर से, आउ ऊ हमनी के छोड़ के सरग के रस्ता अपना लेलन ।; रामप्रकाश बाबू हीं तो कोय लड़की हे नञ् से-से कउलेज बंद होला पर जब से मिंती उनका हीं आल हल, ओकरे गीत-नाध में जाय पड़ऽ हे । घुरी-घुरी दुआरी दने ताक रहल हे कि कखने बोलहटा आवे ।)    (मपध॰02:4:12:1.21, 25:1.35)
157    बौल (= बल्ब) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।)    (मपध॰02:4:25:3.13)
158    भत् (~ बुड़बक) (सुन-सुन किलमनजारो के कथा । अफ्रीका के छत के कथा । सउँसे छत पर ग्लेसियर हल । बरफ के नदी । कहियो देखले हें बरफ के नदी, न देखले हें ? - तू देखलऽ हऽ भइया ? - भत् बुड़बक, बिना देखले कह रहली हे, सुन ।)    (मपध॰02:4:21:1.18)
159    भित्तर (= अन्दर का कमरा; अन्दर) ("अपने लावऽ अपन सिकरेट । हम नहाय जा रहलूँ हें ।" - "कहाँ ?" रामपुकार बाबू मोछ तर मुसुकते बोललन । "देखऽ हीं न गे दीदी ।" मिंती बहिन दने देख के नखरा उतारे लगल । फेर मोका देख के दोसर भित्तर दने भाग गेल । "ए गे, हमरा दिमाग न हे । ... बूढ़ा होल जइतन ... बुढ़भेस लगले रहल ।" मोका देख के मरदाना दने मुँह बिचका के कखनिओ के ओल ले लेलन मिंती के दीदी ।; कल्हीं बिनेसर बाबू कह रहलन हल - 'की हो रामपुकार भाय, मौज हइ ने ।' साला, हम समझऽ हूँ कि केतना मौज हे । ... भित्तर के मार सहदेवे जानऽ हे ।)    (मपध॰02:4:23:2.21, 3.11)
160    भुकभुकिया (~ बौल) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।)    (मपध॰02:4:25:3.13)
161    भेटनर (ई सब बात के साच्छी गाँव-जेवार के आम अदमी हल । ओकरा नजर में दीना अब एगो अइसन भेटनर गुंडा हल जे जवार के कउनो अदमी से नञ् बद्दऽ हल ।)    (मपध॰02:4:25:1.11)
162    मट्टी (= मिट्टी) (चारो बगल हँसी-खुशी के माहौल हो गेल । कज्जो भीड़ में खड़ा कमली अँगुठा से मट्टी खोद रहल हल । दीना के नजर कमली के बगल में खड़ा मिंती से मिलल त ओकरा लगल कि कारू के खजाना हाँथ लग गेल हे । मिंती के लग रहल हल कि ठेहुना भर तहियावल गुलाब के पँखुड़ी में धँसल जा रहल हे ।; जमाना 'पश्चिमीकरण' के आ गेल हे । 'पश्चिमीकरण' के चलते हमनिन के रहन-सहन से भारत के मट्टी के सुगंध उड़ते जा रहल हे । अइसे में दावा-बीरो के रूप-रंग भी बदल रहल हे ।)    (मपध॰02:4:26:3.20, 27:1.2)
163    मति-गति (लोग-बाग चरचा कर रहलन हल, "मन नञ् गोवाही दे हे । दीना अइसन ।" - "काहे नञ् । मति-गति के कउन ठेकाना हे । नउजवान हल आउ सुनऽ हिअइ कि सरीर-विग्यान पढ़ऽ हलइ ।")    (मपध॰02:4:24:3.14)
164    मरदे (बिसेसरा त चलते ठमक जाय । कहे, पाठक भइया, लगो हो कि गोड़वे छान लेलको । - के रे ? - का जाने, बाकि लगो हो कि गोड़बे छान लेलको । - हत् मरदे, तूँ तो हमरो जान ले लेमें । आधा करेजा के तो हम अमदी ही । ओहू पर तू झमदगर जवान होके अइसन बोलमें, त जाने न ले लेमे ।)    (मपध॰02:4:20:2.25)
165    माटसा (= मास्टर साहब) (गाँव के सबसे धनी अदमी के बहिन के साथ बलात्कार के कोरसिस में गाँव के मिद्धि रजेसर माटसा के बेटा दीना के पुलिस पकड़ के ले गेल ।; रजेसर माटसा कतनो पैरवी लगा लेलन बकि बेटा के बचा नञ् सकलन ।)    (मपध॰02:4:24:3.10, 20)
166    मुँहफेरन (रोटी, कपड़ा आउ मकान अदमी के उजिआय नञ् दे हे । काहे कि ई तीनों के सरूप अब बदल गेल हे । पहिले रोटी के मतलब पेट के आग बुझे से हल बकि अब एकर मतलब पेटभरन के साथ-साथ मुँहफेरन भी हो गेल हे ।)    (मपध॰02:4:5:1.16)
167    मुनना (= मूनना; बंद करना) (एक दिन झोला-झोला होला पर ऊ अपन बगैचा दने से लौटल आ रहल हल । एक हाँथ में एगो किताब हल आउ दोसर हाँथ में गमछी में बन्हल दस-बीस गो अमौरी । अचोक्के कोय पीछे से आके आँख मुन लेलक ।)    (मपध॰02:4:24:1.29)
168    मेहीन (दे॰ मेहिन) ('के हें । ... छोड़ । ... ' दीना डपट के पूछलक । - "पछानऽ ।" एगो मेहीन अवाज आल । - "देख कमली, तोरा केतना बेरी बोल चुकलिऔ हे कि हमरा से लग-लग नञ् कर, बाकि माने ले तैयार नञ् हें । ..." रोसिया के बोलल दीना ।)    (मपध॰02:4:24:2.2)
169    मैक (= माइक) (आधा घंटा में गोली-बारी थम गेल । मैक से कोय एलाउंस कर रहल हल - "अपने से हमरा कोय दुसमनी नञ् हे । हमर काम फतह हो चुकल हे । अपनेे के कय अदमी हमर कब्जा में हथ, जिनका हम गाँव से बाहर निकलतहीं छोड़ देम । ...")    (मपध॰02:4:25:3.33)
170    मोछ (= मूँछ) ("अपने लावऽ अपन सिकरेट । हम नहाय जा रहलूँ हें ।" - "कहाँ ?" रामपुकार बाबू मोछ तर मुसुकते बोललन । "देखऽ हीं न गे दीदी ।" मिंती बहिन दने देख के नखरा उतारे लगल । फेर मोका देख के दोसर भित्तर दने भाग गेल ।)    (मपध॰02:4:23:2.12)
171    रभसना ('के हें । ... छोड़ । ... ' दीना डपट के पूछलक । - "पछानऽ ।" एगो मेहीन अवाज आल । - "देख कमली, तोरा केतना बेरी बोल चुकलिऔ हे कि हमरा से लग-लग नञ् कर, बाकि माने ले तैयार नञ् हें । ..." रोसिया के बोलल दीना । "लास्ट वार्निंग दे रहलिअउ हे । अगर फेर हमरा से रभसलें त अच्छा नञ् होतउ ।" कमली के हाँथ झार के चल पड़ल ऊ ।)    (मपध॰02:4:24:2.14)
172    रस्ता (= रास्ता) (एकमात्र रस्ता हे कि उनकनहिन के निकाल बाहर कैल जाय ।; जेल से जब लौट के आल त दोसर अदमी हल दीना । बिनेसर बाबू के पच्छ में गोवाही देवे वला के तो जीना हराम हल । खुद बिनेसर बाबू दीना के देख के रस्ता काट ले हलन ।)    (मपध॰02:4:6:3.11, 24:3.29)
173    रानना (कमली गाँव के सबसे धनगर आउ शानियल अदमी बिनेसर बाबू के बेटी हल । अंग-अंग झनझन, पोरे-पोर टेढ़ । की मजाल कि गाँव के कोय मानिंदे अदमी के भी राने ।)    (मपध॰02:4:24:2.21)
174    रुक्खड़ (= रुखड़ा) (एकर पत्ता छोट आउ कार रंग के होवऽ हे । एकरा में उज्जर चिन्हाँ होवऽ हे आउ रुक्खड़ होवऽ हे ।)    (मपध॰02:4:28:3.2)
175    रेकड (= रेकर्ड) (रजेसर माटसा कतनो पैरवी लगा लेलन बकि बेटा के बचा नञ् सकलन । पिछला रेकड के अधार पर ओकरा साथ जज रहम कइलन आउ ओकरा सिरिफ छो महिन्ना के कड़ा सजाय मिलल ।)    (मपध॰02:4:24:3.22)
176    रोग-बेमारी (रोग-~) (एकर एक पत्ता के भी यदि रोज सेवन कइल जाय तो अदमी के कईएक रोग-बेमारी दूर हो जाहे ।)    (मपध॰02:4:27:2.19)
177    लग-लग (~ करना) (आउ सुनऽ, घुरी-घुरी छउँड़ी से लग-लग काहे करते रहऽ हो ... काँच-कुमार बेटी चूड़ी नियन तुन्नुक होवऽ हे । ... जरियो ठुनका लगे पर ... ।"; 'के हें । ... छोड़ । ... ' दीना डपट के पूछलक । - "पछानऽ ।" एगो मेहीन अवाज आल । - "देख कमली, तोरा केतना बेरी बोल चुकलिऔ हे कि हमरा से लग-लग नञ् कर, बाकि माने ले तैयार नञ् हें । ..." रोसिया के बोलल दीना ।)    (मपध॰02:4:23:3.1, 24:2.11)
178    लबधना (बुतरू सब के माय-बाप कतनो पीटे बकि ऊ दीना से पिस्तौल चलवे ल सिक्खे ले हरदम लबधल रहऽ हे ।)    (मपध॰02:4:25:1.19)
179    लुंगी-गंजी (उज्जर बग-बग लुंगी-गंजी पहिनले आउ कन्हा पर एगो दू गज के विंध्याचल वला पातर गमछी रखले गोर-सुत्थर सजीला जवान में मिंती के कहैं गुंडा के छहँक नञ् नजर आल ।)    (मपध॰02:4:23:1.14)
180    लूक (= लू) (एक्कर सुक्खल पत्ता पीस के चूरन के रूप में प्रयोग करे से उल्टी रुक जा हे । गरमी में लूक से बचाव ले एकर फूल के ठंढा पानी के साथ सेवन कइल जा हे ।)    (मपध॰02:4:28:2.2)
181    लेमू (= नींबू) (बिच्छा इया साँप काटला पर भी एकर पत्ता पिस के लगावल जा हे । 'दाद' जइसन बिमारी में लेमू के रस के साथ एकर पत्ता पिस के लगावे से अराम मिलऽ हे ।)    (मपध॰02:4:28:2.26)
182    शानियल (कमली गाँव के सबसे धनगर आउ शानियल अदमी बिनेसर बाबू के बेटी हल । अंग-अंग झनझन, पोरे-पोर टेढ़ । की मजाल कि गाँव के कोय मानिंदे अदमी के भी राने ।)    (मपध॰02:4:24:2.18)
183    सउँसे (= समूचा) (सुन-सुन किलमनजारो के कथा । अफ्रीका के छत के कथा । सउँसे छत पर ग्लेसियर हल । बरफ के नदी ।; कभी सुत के उठला पर ऊ देखथ उनकर सउँसे घर आउ बंगला के पकिया देवाल गोबर से नीपल हे ।)    (मपध॰02:4:21:1.14, 25:1.3)
184    सच्चो (दूरा पर आके ऊ सच्चो लोठरी बंद करके पड़ रहल ।)    (मपध॰02:4:24:1.4)
185    सजाय (= सजा, दंड) (रजेसर माटसा कतनो पैरवी लगा लेलन बकि बेटा के बचा नञ् सकलन । पिछला रेकड के अधार पर ओकरा साथ जज रहम कइलन आउ ओकरा सिरिफ छो महिन्ना के कड़ा सजाय मिलल ।)    (मपध॰02:4:24:3.24)
186    सदाबरत (= सदाव्रत) (फेर मेहरारू दने देख के बोललन ऊ, "आउ ऊ सब गलती थोड़े कहऽ हथ जब दु-दु गो इन्नर के पड़ी घर में रखले रहम त हंगामा करवे करतन लोग ।" - "अच्छऽ ! ... मुँह चमका के बोललन मिंती के दीदी, "त सदाबरत बाँट द ।" फेर थोड़े रुक के बोललन, "न भाय, छउँड़ी सुत्थर भी ओतने निकलय ।")    (मपध॰02:4:23:3.23)
187    सरदी-खोंखी (= सर्दी-खाँसी) (पत्ता खौला के ओकर पानी पीए से सरदी-खोंखी में आराम मिलऽ हे ।; ताजा रहला पर एकर बिच्चा उज्जर होवऽ हे । एकर उपयोग सरदी-खोंखी, ब्रोंकाइटिस आउ गियारी के दवाय बनावे ल कइल जा हे ।)    (मपध॰02:4:28:1.33, 2.14)
188    सर-समान (देखते-देखते सब कुछ बदल गेल । डकैत अपन घायल साथी के लेके भाग छुटल, सब सर-समान जहाँ के तहाँ फेंक के ।)    (मपध॰02:4:26:1.28)
189    सिकरेट (= सिगरेट) (दोकान से चीनी लेके मिंती हाली-हाली घर पहुँचल त पट दनी दीदी पुछलक, "कउन दोकान से चीनी लावे गेलें हल मिंती ? बुतरू एहाँ कान-कान के हलकान हो गेल 'चीनी-चीनी करते ।" - सोमर साव हीं झरल हलइ, दीदी । ऊ पट्टी से ला रहलियो हऽ । - "अच्छा ! तनी हमरो सिकरेट ला देवऽ ऊ पट्टी से ।" पिठदोबारे घर घुंसते ओकर जीजा रामपुकार जी मिंती के कनखिऐते बोललन । जीजा दने ताकलक त मिंती के करेजा धक-धक करे लगल । 'हो न हो मेहमान हमरा कोय दूरा-दलान पर बइठ के देख रहला हल ।' बकि मन कड़ा करके बोलल ऊ, "अपने लावऽ अपन सिकरेट । हम नहाय जा रहलूँ हें ।")    (मपध॰02:4:23:2.1, 10)
190    सिरिफ (= सिर्फ, केवल) (रजेसर माटसा कतनो पैरवी लगा लेलन बकि बेटा के बचा नञ् सकलन । पिछला रेकड के अधार पर ओकरा साथ जज रहम कइलन आउ ओकरा सिरिफ छो महिन्ना के कड़ा सजाय मिलल ।)    (मपध॰02:4:24:3.23)
191    सिहकाना (हवा न चलइत हे, बाकि कनकन्नी रह-रह के सिहका देहे ।)    (मपध॰02:4:21:1.11)
192    सीता-मीता (एतने न, मगह छेत्तर में लोकनाटक के परचलन कम न हे - रामलीला, रासलीला, डोमकच, चउहट, बगुली, जाट-जटिन आउर सीता-मीता । फागुन के होरी, चइत के चइता, सावन के कजरी आउर भादो के चउहट रितु लोक गीतन में गिनल जाहे । चउमासा, बारहमासा आउर पराती के चलंसार मगही लोक साहित में खूब हे ।)    (मपध॰02:4:16:1.10)
193    सुत्थर (फेर मेहरारू दने देख के बोललन ऊ, "आउ ऊ सब गलती थोड़े कहऽ हथ जब दु-दु गो इन्नर के पड़ी घर में रखले रहम त हंगामा करवे करतन लोग ।" - "अच्छऽ ! ... मुँह चमका के बोललन मिंती के दीदी, "त सदाबरत बाँट द ।" फेर थोड़े रुक के बोललन, "न भाय, छउँड़ी सुत्थर भी ओतने निकलय ।")    (मपध॰02:4:23:3.25)
194    सूटर-ऊटर (ठंढा के रात हल । दस बजिया गाड़ी से उतरली हल । इ कोस के सफर हल । हमनी दुन्नु पैंट-कोट में हली । तरे सूटर-ऊटर सब पहिनले हली ।)    (मपध॰02:4:20:1.17)
195    सो-पचास (= सौ-पचास) (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।)    (मपध॰02:4:25:3.12)
196    हत् (~ मरदे !) (बिसेसरा त चलते ठमक जाय । कहे, पाठक भइया, लगो हो कि गोड़वे छान लेलको । - के रे ? - का जाने, बाकि लगो हो कि गोड़बे छान लेलको । - हत् मरदे, तूँ तो हमरो जान ले लेमें । आधा करेजा के तो हम अमदी ही । ओहू पर तू झमदगर जवान होके अइसन बोलमें, त जाने न ले लेमे ।)    (मपध॰02:4:20:2.25)
197    हरमुनिया (= हारमोनियम) (एक तरफ हरमुनिया आउर नगाड़ा बजावे ओला लोग रंगमंच पर बइठऽ हथ । दोसर तरफ अभिनेता तरह-तरह के पोसाक पेन्ह के रंगमंच पर आ के अभिनय करऽ हे ।)    (मपध॰02:4:16:3.9)
198    हरमेसा (= हमेशा) (ओकर नजर में गाँव के सब छउँड़किन ओकरा से हेंठ हल । काहे कि ऊ गाँव के सबसे बड़का के बेटी हल । हरमेसा दीना के पीछे पड़ल रहऽ हल । पड़े भी काहे नञ्, गाँव में कउन नवजवान दीना सन सुत्थर, गठीला आउ होनहार हल ।)    (मपध॰02:4:24:2.25)
199    हलसना (कल तक जे अदमी अपन बेटा के 'संघ' आउ 'शाखा' में हलस के जाय देवे लगलन हल, ऊ दौर अब फेर खतम हो गेल ।)    (मपध॰02:4:6:3.24)
200    हाली-हाली (= जल्दी-जल्दी) (दोकान से चीनी लेके मिंती हाली-हाली घर पहुँचल त पट दनी दीदी पुछलक, "कउन दोकान से चीनी लावे गेलें हल मिंती ? बुतरू एहाँ कान-कान के हलकान हो गेल 'चीनी-चीनी करते ।")    (मपध॰02:4:23:1.27)
201    हित-कुटुम (बिनेसर बाबू के दुरा से लेके सो-पचास बिगहा तक चरखी आउ भुकभुकिया बौल से गज-गज कर रहल हल । कल्हे उनकर बहिन के बराती आवे वला हल । हित-कुटुम, धी-सवासिन से घर भरल हल ।; सब गहना-जेवर, रुपइया-पैसा छीन-छोर के डकैत सब निकले चाह रहल हल । बिनेसर बाबू के सब हित-कुटुम के ऊ देवाल दने मुँह करवा के हाथ उठवैले हल आउ बिनेसर बाबू, उनकर दुनहुँ बेटा आउ बियाहता कमली के अगुअइले निकल रहल हल डकैत सब ।)    (मपध॰02:4:25:3.15, 26:1.10)
202    हेंठ (= नीचा, तबके में छोटा) (कमली गाँव के सबसे धनगर आउ शानियल अदमी बिनेसर बाबू के बेटी हल । अंग-अंग झनझन, पोरे-पोर टेढ़ । की मजाल कि गाँव के कोय मानिंदे अदमी के भी राने । … ओकर नजर में गाँव के सब छउँड़किन ओकरा से हेंठ हल । काहे कि ऊ गाँव के सबसे बड़का के बेटी हल ।)    (मपध॰02:4:24:2.23)
203    हेमान (= हैवान; जानवर; पशुतुल्य व्यक्ति; नष्ट, बरबाद) (पहिले गौतम के धरती बिहार खूने-खून हल, अब गाँधी के धरती गुजरात जल रहल हे । लोग जिंदा आग में झौंसल जा रहलन हे । हैवानियत चरम पर हे । हिंदू-मुस्लिम जउन तागत एकर पीछे लगल हे, दुनियाँ के सबसे बड़ हेमान में से एक हे ।)    (मपध॰02:4:6:1.7)