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Saturday, October 19, 2013

99. कहानी संग्रह "गमला में गाछ" में प्रयुक्त ठेठ मगही शब्द



गमेंगा॰ = "गमला में गाछ" (मगही कहानी संग्रह), कहानीकार - रामचन्द्र 'अदीप'; प्रकाशक - चन्द्रकान्ता प्रकाशन, बिहारशरीफ (नालन्दा); प्राप्ति स्थानः विकास पदाधिकारी, भारतीय जीवन बीमा निगम, कमरूद्दीन गंज (पार्क के निकट), बिहारशरीफ, नालन्दा - 803101; संस्करण 1994 ई॰; 58 पृष्ठ । मूल्य 21 रुपइया ।

देल सन्दर्भ में पहिला संख्या पृष्ठ और बिन्दु के बाद वला संख्या पंक्ति दर्शावऽ हइ ।

कुल ठेठ मगही शब्द-संख्या - 576

ई कहानी संग्रह में कुल 16 कहानी हइ ।

क्रम सं॰
विषय-सूची 
लेखक
पृष्ठ
0.
सूची
-------
iii
0.
मत-सम्मत
डॉ॰ ब्रजमोहन पाण्डेय 'नलिन'
iv
0.
अप्पन समय के दस्तावेजी एलबम
मिथिलेश सिंह
v-vii
0.
कहे दीहऽ
डॉ॰ लक्ष्मण प्रसाद चन्द
viii-xi
0.
मानऽ ही कि ...
रामचन्द्र 'अदीप'
xii-xiii




1.
हकासल कंठ

1-3
2.
संजोगल सपना

4-7
3.
ओढ़ल चद्दर

8-10
4.
बाँट-बखरा

11-14




5.
खुंडी-खुंडी आदमी

15-17
6.
पोखरा के मछली

18-20
7.
नइका तराजू

21-24
8.
गाँव के देस

25-29




9.
सँझउकी सूरज के धूप

30-32
10.
सहरे के छहुँरी में

33-35
11.
धोखड़ल जमीन

36-38
12.
ओढ़ल जिनगी के जखम

39-42




13.
गमला में गाछ

43-46
14.
नइका राह के राही

47-50
15.
बगिया के धूप

51-55
16.
लूक लगल आदमी

56-58


ठेठ मगही शब्द ("" से "" तक):
1    अँखुआल (नौकरी-पेशा पर पनपल मानसिकता आउ बिचौलिया-संस्कार से अँखुआल अलगाव तो हमर परम्परा, मानव-मूल्य के उम्दा परम्परा के एकदम्मे धकिया रहल हे ।)    (गमेंगा॰x.11)
2    अंगना-ओसरा (रोजी-रोजगार के भाग-दौड़ में घर बड़ी आगू निकल गेल, अंगना-ओसरा से देवाल तक चकचका गेल, लेकिन अपन बूढ़ माय-बाप के साथे-साथ बुतरून के सोभाव में कोय तफड़का नइ पड़ल ।)    (गमेंगा॰9.5)
3    अंगा (= कमीज) (भोरहीं शारदा दीदी के हाथ पर वजनगर लिफाफा धरइत छोटका भगिना के साथ लेले प्रसाद साहेब घर से विदा होलन । बेचारा भगिना के अंगा पर गाँव के गरदा अपन असर डालले हल । रास्ता भर तांगा-टमटम करइत बेचारा भगिना खुब्बे उपयोगी लग रहल हल आउ बम्बई जइसन महानगर लेल तो अइसन घरेलू लड़का के उपयोग अनमोल हे ।)    (गमेंगा॰29.20)
4    अइँठ-जोंठ (क्लब, साहित आउ इयार-दोस जउरे कहकहा के रात तो उनकर सेहत के राज हल, लेकिन उनकर इहे सब आदत पर पुतहुन तो अइते के साथ अइँठ-जोंठ करे लगली हल ।)    (गमेंगा॰49.8)
5    अईंटा (= ईंट) (रिक्शा पर बइठल सौकत मियाँ कभी जमाल, कभी जमील आउ कभी मोहन के हाल पूछते जा हे । बस, एक्के बात रोज दिन । कइसे गरायँ जी के देवाल गिरल, बेन हाउस के अईंटा कइसे खड़कल ? अइसइँ रधिया से रमरतिया तक के कथा-कहानी कहते-कहते दुन्नू बच्छरो-बच्छर पुरान इयाद ताजा करऽ हथ ।)    (गमेंगा॰34.15)
6    अईटा (= अईंटा, ईंट) (सिगरेट के धुआँ आज मसान के धूआँ लगल जेकरा में कविता छटपटा रहली हे । मदन जी सिगरेट फेक देलन । नजर मकान पर फेंकलन तो लगल कि एक-एक अईटा से कविता बोल रहल हे - बाबू जी, सरिता के बियाह हमरा अइसन नइ करिहऽ ।)    (गमेंगा॰42.22)
7    अउगल (= अच्छा, उत्तम) (लड़कन खातिर आमदनी के अउगल जोगाड़ नइ बइठ सकल हल । अमर जी उनका नौकरी के सुझाव दे हलन ।)    (गमेंगा॰30.18)
8    अकबकाना (शादी हो गेल । कविता के विदागरी के समय समधी आउ लड़का के रुख बदल गेल हल । लेकिन लाजे-लिहाजे सब चपोतल रहल । कुछेक दिन बाद कविता के खत में टी॰वी॰ आउ फ्रीज के नक्शा आवे लगल । मदन जी अकबकाय लगला ।)    (गमेंगा॰41.25)
9    अकानना (हम मोटगर आमदनी के नौकरी करऽ ही । भला, हम तोहर बोझ बनम । हमरा तो तोहर बेटा आउ परिवार के बोझ उठावे पड़त ।/ सुनीता के बात सुनके सब उठ गेलन । दरोजा से बूढ़ी माय अकानलक कि लोग जा रहलन हल ।)    (गमेंगा॰24.28)
10    अकुताना (सउँसे शहर के एकमुस्त जानकारी देवेवला राम बाबू कखनउँ-कखनउँ अकुता भी जा हथ । उनका सौकत मियाँ, तारकेसर आउ कपिलदेव से अजीब उलझन होवऽ हे । ई सब जब भी आवऽ हथ तो मामू से भगिना तक के सवाल राम बाबू से करऽ हथ ।)    (गमेंगा॰34.2)
11    अगले-बगल (= अगल-बगल में ही) (क्लिनिक के अगले-बगल दवाखाना, जाँचघर, होटल आउ चाय-पान के दोकान खुल गेल हल ।)    (गमेंगा॰2.28)
12    अघाना (गाँव के करखाना के बनल समान कइसे महानगर में जाहे, कइसे खरीद-बिक्री कइल जाहे - एकर कहानी कहते-कहते ऊ कभी न अघाल ।; जसन के रंगत से आसपास के लोग चौंधिया गेलन । फेर गाँव आके भी एगो भोज भेल । पूजा-पाहुर कइलक । गाँव-गोरइया से लेके डाकबाबा आउ डिहवाल के चढ़ावा चढ़ल । भगत से फुलधरिया तक अघा गेल ।)    (गमेंगा॰8.10; 9.18)
13    अजान (= नमाज की पुकार, नमाज के समय की सूचना या उद्घोषणा) (अइसन बात सुनके बदरु दुन्नू परानी के होशे उड़ गेल । रात भर छो-पाँच करते रहल । कखनउँ नीन नइ आल । भोरउकी अजान के साथ बदरु अपन पुस्तइनी टीन के बक्सा आउ घरवली के छेकुनी लेले अपन घर से बहरा गेल । सुरुज निकले के पहिले गाँव के मंदिर के घंटा के अवाज सुनाय पड़े लगल ।)    (गमेंगा॰14.24)
14    अठवारा (कॉलेज से रिटायर करे के मतलब थोड़े हे कि काम के गियान कम जाहे ! तोहरे साथ बाल-बुतरुन भी बन्हल-छेकाल रहत । उकी, एगो मास्टर कइलियो हे तो अढ़ाय सो रुपइया महिना लेवो करऽ हको आउ महीना में एक अठवारा नदारत ।)    (गमेंगा॰51.7)
15    अनइ (जब सुनते-सुनते नइ रहल गेल तो सुनीता दरोजा के देवाल पकड़ के उठल । एन्ने-ओन्ने देखलक । आन्हर माय के चेहरा उतरल हल । बस ! ऊ धड़ाक से बइठका में पहुँच गेल । अचानक सुनीता के अनइ से सब के काठ मार देलक ।)    (गमेंगा॰24.22)
16    अनकहल (उनकर घरवली के याद आ रहल हल कि लड़कन तो बचपने से कहकहा वला कमरो के कहना में हल, अब अनकहल कइसे हो रहल हे ? कहियो तो नींद से जागके भी बाबूजी के यार-दोस के सेवा करे पड़ऽ हल ।)    (गमेंगा॰50.11)
17    अनचिन्हल (कलकत्ता के साँझ कैलास कउनो होटले में गुजारे लगल । ... बड़गो-बड़गो होटल के खानसामा भी कैलास से अनचिन्हल नइ रहल ।)    (गमेंगा॰9.23)
18    अनजानल (बेटा-पुतोह जतरा से लौट के सीधे अपन कोठी में आल, लेकिन बाहर दुआर पर दोसर अदमी के तख्ती लटकल हल । उनकर तो होशे उड़ गेल । दरवाजा पर लगल घंटी बजावे लगलन । भीतर से एगो अनजानल आदमी आल, जेकरा से सब कुछ मालूम हो गेल ।)    (गमेंगा॰50.21)
19    अनुभुआर (= अनभुआर) (कैलास लेल कलकत्ता अब अनुभुआर अइसन नइ लगे हे । ओकर पुस्तइनी रोजगार के जड़ तो गामे में हे, लेकिन खरीदार महानगरे में हे । ओकर बढ़ंती देखके तो गाँववला के भी सक-सुभा होवऽ हे ।)    (गमेंगा॰8.1)
20    अनेगन (= अनेकन) (घर-दुआर साफ करा देल गेल हे । बइठका में कुरसी, सोफा आउ अनेगन समान सजा देल गेल हे ।)    (गमेंगा॰21.4)
21    अनोर (कोय-कोय तो कह रहल हल कि अपनो फूफा के मरला पर भी नोह-नखुरी नइ करइलक हे । एतने में प्रसाद साहेब अइलन । भंडार में उनका हेले से मना कर देल गेल, काहे कि उनको नोह-नखुरी नइ होल हल । भोज के पंघत बइठते-बइठते तो सउँसे गाँव में चरचा होल कि बम्बेवली के भाय-भतीजा अइसन कि अपनो अदमी के कजा करला पर नोह-नखुरी नइ कइलक, छुत्तक नइ लेलक ... काहे नइ लेलक ! ई चरचा से अँगना अनोर हो गेल ।)    (गमेंगा॰28.32)
22    अन्धड़ (जब देस में जादी के अन्धड़ आल तो हवेली आउ फाटक के अईंटा छितरा गेल, खाली रह गेल बदरु मियाँ जइसन टुट्टल छान-छप्पर ।)    (गमेंगा॰13.1)
23    अन्हरगरे (आज अन्हरगरे से लाल बाबू मनसूबा बाँधले हथ । बजार से सब सर-समान आइये गेल हे । बड़ी लकधक से तैयारी हो रहल हे ।)    (गमेंगा॰21.1)
24    अन्हराल (रामसेवक बाबू के गुमान परमान पकड़ रहल हल । बेटा के बियाह के सवाल पर उनकर सब आदर्श ताखा पर चढ़ गेल हल । लगले लहार एगो धनकुबेर आदमी से बरतुहारी के बात बइठ गेल । बेचारा रोजगरिया आदमी पइसा से अन्हराल हल ।)    (गमेंगा॰6.24)
25    अन्हार (= अंधकार) (दिन तो कइसउँ कट गेल आउ रात में पानी आउ बिजली गोल । सउँसे शहर अन्हारे ओढ़ले हल । बुतरुन सब छज्जा पर निकसके देख रहल हल कि अपन शहर के सामने तो ई एगो अउरे हिन्दुस्तान हे ।)    (गमेंगा॰27.18)
26    अन्हेर (जब कभी लाल बाबू कानपुर जा हलन तो अनिल के हालत देखके एकदम फट जा हलन । बेचारे मन के बात मने में रखले घूर आवऽ हलन । उनका लेल पूरब आउ पच्छिम दुन्नू दने के सुरुज डूबले हल । बेचारे के बुढ़ारी अन्हेर से ढँकल हल ।)    (गमेंगा॰23.22)
27    अपनउती (लाल साहेब अपन समय के बात सोचऽ हलन । अपन यार-दोस्त आउ नाता-गोता के दुख-सुख में केतना अपनउती देखावऽ हलन । कमजोर के ऊ खुब्बे सहयोग दे हलन ।; सउँसे घर में रोवा-कन्नी होवे लगली । दीदी के तो कानलो नइ जा हल । खाली हपस-हपस के लोर पोछऽ हली । अपन भतीजन के देखके उनका में दरद उमड़ गेल । अइसन मौका में अपनउती के ममता भी तो उमड़के लोरे गिरावऽ हे ।)    (गमेंगा॰19.21; 28.18)
28    अलोपना (= लुप्त होना) (अपन नउका बनल दिल्ली वली कोठी में सिन्हा साहेब नींद से लड़ रहलन हल । उनकर घरवली के तो नींदिये अलोप गेल हल ।)    (गमेंगा॰43.2)
29    असमान (= आसमान) (कैलास जब रोजगार हियावऽ हल तो मन असमान में खिल जा हल आउ जब परिवार पर नजर पड़ऽ हल त माथा झुकिए जा हल ।)    (गमेंगा॰10.4)
30    असालतन (डॉक्टर कहे लगल - "बाबूजी, तोहर रोज-रोज के बइठकी से अब डर लगे लगल कि कहीं एकर असर लड़कन पर भी ने पड़ जाय ।" / सक्सेना साहेब अपन घरवली के मुँह से अइसन बात असालतन रूप में तो रोज सुनवे करऽ हलन । लेकिन लड़कनो के मुँह से अइसने सुनके ऊ एकदम्मे तिलमिला गेलन ।)    (गमेंगा॰49.27)
31    आगू (= आगे) (कउनो सभा-सोसाइटी में आगू बइठनइ रामसेवक बाबू के सोभाव हल । नामी-गिरामी हस्ती आउ वजनदार अधिकारी से मेल-जोल बढ़ावे के कला में कमाल के काम करऽ हलन ।; रोजी-रोजगार के भाग-दौड़ में घर बड़ी आगू निकल गेल, अंगना-ओसरा से देवाल तक चकचका गेल, लेकिन अपन बूढ़ माय-बाप के साथे-साथ बुतरून के सोभाव में कोय तफड़का नइ पड़ल ।)    (गमेंगा॰4.6; 9.5)
32    आगू-पाछू (मुजफ्फर मियाँ अपन आगू-पाछू ढेरोढेर नाम सुनइत-सुनइत अब सउँसे इलाका में मुज्जु भाय बनल के रह गेलन हल । जमींदारी घड़ी मुजफ्फर बाबू, फिनु खान साहेब आउ मुजफ्फर साहेब तो लमहर घड़ी तलुक बनल रहलन ।; नौकरी के उतार-चढ़ाव आउ आगू-पाछू करे के तुम्बाफेरी ऊ लोग देख रहलन हल । नौकरी में बदला-बदली आउ रोकाबा-रोकाबी के झमेला से ऊ लोग एकदम्मे दूर रहे ले चाहऽ हलन ।)    (गमेंगा॰15.1; 48.20)
33    आर-पगार (हालत अइसन होल कि सउँसे परिवार शहर से ससर के गामे में उतर आल । बड़का लड़का बचल-खुचल खेत के आर-पगार नापे लगल ।)    (गमेंगा॰28.11)
34    आल-गेल (~ आदमी) (नामी-गिरामी आदमी के चिट्ठी-चपाती जोगइले रहऽ हलन आउ आल-गेल आदमी के देखावे में कउनो चूक नइ करऽ हलन ।; नावा कोठी के चौकठा पर उनकर परिवार के कउनो आदमी फिट नइ बइठऽ हल । ई लेल कैलास के मन होटल आउ बाजार में जादे लगऽ हल । तेकरो पर आल-गेल फूफा, मामा, चाचा-चाची तो ओकरा देखलो नगर सोहा हल । लेकिन करे की ? ओकरा सब कुछ सहे पड़ऽ हल ।; आजादी आन्दोलन में मुजफ्फर भाय के जानदार भूमिका हल । विदेशी शासन के खिलाफ दिन-रात बहस-तकरार करते रहऽ हलन । बइठका में आल-गेल लोग-बाग के अंगरेजी शासन के जोर-जुलुम के बात बतावऽ हलन ।)    (गमेंगा॰4.15; 10.1; 15.12)
35    आवा-जाही (आपा-धापी में घर के कमरा-कोठरी सजे लगल । इयार-दोस आउ नवका रिश्तेदार के आवा-जाही में तेजी आ गेल । पुतहुन के टटका तेवर से अमर जी दुन्नू परानी घबड़ाय लगलन ।)    (गमेंगा॰31.16)
36    इंजोर (मोहन के नाम निमन कॉलेज में लिखा गेल । ओकर भाय-भोजाय सोचऽ हल कि घर में एक्को के आगू निकले से घर के बाल-बुतरुन के जिनगी में इंजोर आ जात ।)    (गमेंगा॰36.7)
37    इजलास (= बैठक; हाकिम या अधिकारी का (विचार के लिए) बैठना; कचहरी) (मोखतार साहेब अपन कानूनी बहस इजलास में करऽ हलन आउ नरेश बाबू इयार-दोस्त संगे कानूनिये रंगदारी के बात करे लगलन हल ।)    (गमेंगा॰28.4)
38    इड़ोत (ई देश के टुकड़ा करेवलन अपने टुकड़ा हो जइतन । ई बात आउ समझदारी मुज्जू भाय के कउनो काम नइ आल । भाय लोग आँख से इड़ोत होइये गेलन ।)    (गमेंगा॰16.6)
39    इधिर-उधिर (= इधर-उधर) (परिचय के बाद अँचरा ओढ़इत दुन्नू के गोड़ छूके परनाम कइलकी आउ अंदर चल गेली । रामसेवक बाबू तनी आउरो झाँके के चक्कर में इधिर-उधिर ताके लगलन । एतने में उनकर होवेवला रोजगरिया समधी अप्पन बड़गा अटइची लेले महानगर के भीड़ में समा गेलन ।)    (गमेंगा॰7.28)
40    इयार-दोस (= यार-दोस्त) (कैलास अपन गाँव के इयार-दोस लेल जान बिछइले रहऽ हल । बर-बीमारी में तो हाथ खोल दे हल । तर-तेहवार खूब जोश-खरोश से मना के समूचे गाँव के चौंधिया दे हल ।)    (गमेंगा॰8.20)
41    इस्कूल (= school) (टर-टिसनी के बासी पइसा आउ घरवलन के बेहवार ओकरा एगो इस्कूल खोले लेल मजबूर कर देलक । इस्कूल के सइनबोड चढ़ गेल । मोटगर अच्छर में लिखइलक - "शिक्षा का माध्यम अंगरेजी, हम सुनहले भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं । प्रतियोगिताओं में सफलता की गारंटी ।")    (गमेंगा॰38.6, 7)
42    उँचगर (कहीं-कहीं लड़की के उँचगर शिक्षा आउ नौकरी के सवाल पर अइसन बात सुने पड़ऽ हल कि उनकर तो होशे उड़ जा हल । जाहिल जमात में लड़की के उँचगर शिक्षा आउ कामकाजी होना भी केतना बेजा समझल जाहे । सगरो नारी-आन्दोलन फैलल हे ।)    (गमेंगा॰24.4, 6)
43    उकटना (= उगटना) (हरिद्वार से रामेश्वर तक के बात में बझल लड़कन के प्रसाद साहेब नालन्दा के इतिहास उकट-उकट के समझा रहलन हल ।)    (गमेंगा॰27.24)
44    उकटा-पउँची (बदरु अपन गलिये के साथी-संगी के साथ सियाना होल हल । ओकर अलगे दुनिया हल । सकेरे आउ सँझउकी सभे छान से धूआँ निकलऽ हल लेकिन दरोजा के बाहर गली में गारी-गुपता, उकटा-पउँची तो रोजिना के हिस्सा हल । लेकिन गली के झगड़ा हवेली जइसन थाना-कचहरी नइ जा हल ।)    (गमेंगा॰12.13)
45    उकी (कॉलेज से रिटायर करे के मतलब थोड़े हे कि काम के गियान कम जाहे ! तोहरे साथ बाल-बुतरुन भी बन्हल-छेकाल रहत । उकी, एगो मास्टर कइलियो हे तो अढ़ाय सो रुपइया महिना लेवो करऽ हको आउ महीना में एक अठवारा नदारत ।; रेलगाड़ी जब टिसन से खुलल तो गाड़ी आगे आउ उनकर मन पाछुए भाग रहल हल । नौकरी के शुरुआती दिन से लेके रिटायर होवे तक के फोटू झकझकाय लगल । झा जी के ठहाका, चौधरी जी के छेड़छाड़ आउ नेयाज साहेब के लतीफा तो हरदम्मे ताजा रहऽ हल । उकी, बिदाई-समारोह के दिन भी नेयाज साहेब के लतीफा सबके भाषण पर भारी हल ।)    (गमेंगा॰51.5; 52.29)
46    उघार (= खुला, बेपर्दा) (कहीं लंगोटी में भी आदमी झँपाल हे आउ कहीं सोलहो सिंगार में भी उघार नजर आवऽ हे ।)    (गमेंगा॰x.26)
47    उछला-कुद्दी (दिमाग के धउगा-धउगी, उछला-कुद्दी के शान्त करइ लेल उनकर धियान बक्सा में रखल बोतल-गिलास पर रह-रह के चल जा हल ।)    (गमेंगा॰29.27)
48    उटंग (= छोटा, ऊपर उठा या टंगा हुआ) ('नइका तराजू' दहेज के विरुद्ध नारी-विद्रोह के एगो अइसन तराजू बनके रह गेल हे, जेह पर परम्परापोषित मतलबी समाज सुनीता के सामने उटंग हो जाहे ।)    (गमेंगा॰vii.14)
49    उधियाना (पुश्तैनी मकान बेचके शहरे में मकान बना लेलन । कविता-कहानी लिखेवला मदन जी अपन घर-बाट के ठाट देखइलन तो केतना के आँख उधिया गेल । एहे अफरा-तफरी में दूगो किताबो छपवइलन ।)    (गमेंगा॰41.3)
50    उपरकी (बाहर पढ़े-लिखे वलन लड़का-लड़की के लिवास, बातचीत, हो-हुड़दंग आउ छेड़ा-छाड़ी तो फाटक आउ हवेली के उपरकी रोबदाब के मोलायम अनुवाद लगऽ हल । बदरु अपन गाँव के ई नक्शा तो सोचियो नइ सकऽ हल ।)    (गमेंगा॰12.6)
51    उपराना (नया साल के मोबारकवादी आउ खैर-सलाह तो बदली होला पर भी देते रहऽ हलन । बिदाई या सम्मान समारोह में उनका खाली रहे के चाही, एकाध फोटू उपराइये ले हलन । उनकर बइठका तो एगो तस्वीर-घर हो गेल हल ।)    (गमेंगा॰4.14)
52    उमरदराज (राजो बाबू लटफरेम पर चाय के दोकान में चल गेला । चाय पीअइत एगो उमरदराज बुढ़िया पर नजर पड़ गेल, सधुआइन हो गेल हल । ओकरा देखते उनका अपन फूआ के याद आ गेल । बेचारी बियाह के तुरते बाद मसोमात हो गेल हल ।)    (गमेंगा॰53.28)
53    उमेद (= उम्मीद) (ओकरा उमेद हे कि सउँसे परिवार लेल नेउता आबत । लेकिन अपन आउ उनकर परिवार के देखके ओकर मन कइसन तो हो जाहे । फिन ढाढ़स बान्हके सोचऽ हे कि अइसन परिवार में अइला-गेला पर परिवार के संस्कार बदलत । ई लेल अइसन मौका पर चुकाय नइ होवे के चाही ।; एहे चलते तो ऊ बड़गो रोजगरिया के सामने भी अपन देहाती रोब-रुतबा के ऊँचा उठइले रहल । लेकिन चड्ढा साहेब से ओकरा अइसन उमेद नइ हल । ऊ त अपन घरवइया जइसन नजीक हलन ।)    (गमेंगा॰10.13, 26)
54    ऊँचगर (~ अवाज; ~ ओहदा) (अपन ओहदा से ऊँचगर अवाज लगावे के उनकर आदत हो गेल हल । सुनवइया भी खूब रस लेके सुनऽ हलन ।; पढ़े आउ खेले में उनकर दुन्नू लड़कन जोरदार हल । लाल बाबू मनेमन मलपूआ छानते रहऽ हलन । उनका भरोसा हल कि दुन्नू लड़का ऊँचगरे ओहदा पर जात आउ तब उनकर हाथ हरदम ओदगरे रहत । भला, एगो बेटी निबाहना कौन मोसकिल होत ?; मोहन के दुन्नू भाय बलेसर-चनेसर पुश्तैनी जर-जमीन आउ जायदाद के दाव पर लगाके मोहन के ऊँचगर से ऊँचगर पढ़ाय करावे ले कसमे खा लेलक हे ।)    (गमेंगा॰4.16; 22.24; 36.13)
55    एकदम्मे (= बिलकुल) (उनकर होवे वला समधी एकदम्मे रोजगरिये हल । पढ़ल-लिखल घर में रिश्ता के पहिल संजोग बइठ रहल हल, से गुनी बेचारा ऊ तो रामसेवक बाबू के बाते सुनते रहऽ हल ।; कम आमदनी आउ बड़गो शहर लाल बाबू के दुन्नू बेटन के तबाह कइले हल । अपन भागम-भाग में ऊ तो माइयो-बाप के भुला देलक हल आउ बहिन सुनीता के नौकरी जानके तो एकदम्मे निहचित हो गेल हल ।; सुनील के ससुरारवला ओकरा टिसनी पकड़ा देलकन । महल्ला के बाल-बुतरू के साथे-साथ घरो के लड़कन के पढ़ावे लगल । सबेरे से रात तलुक घरे-घरे जाके पढ़इते-पढ़इते एकदम्मे चूर हो जा हल ।; पहिले पंघत में प्रसाद साहेब अपन लड़कन के बइठा देलका । गउआँ अपन लोटा लेले आ जुमलन हल । पत्तल बिछल । पूड़ी, तियन, साग आउ अंत में दही-भूरा । लड़कन लेल तो एकदम्मे अजुबा लग रहल हल ।)    (गमेंगा॰7.5; 22.16; 23.9; 29.7)
56    एकल्ले (= अकेले ही) (अपन घरवली के देहाती समझके नरायन बाबू जिनगी के बड़गो जोड़-घटाव में एकल्ले हिसाब करऽ हलन ।; जहाँ भी नौकरी पर रहऽ हलन, ऊ कोठी के नाज-नक्सा के सरोसमान पठइते रहऽ हलन । ई सुनसान दिन के बातो नइ सोचलन हल । लेकिन ई कोठी के भाग अइसन हल कि एकरा ठीकेदार आउ इंजीनियर के देख-रेख में बनवावल गेल आउ रहे के समय में एकल्ले लाल साहेब रहलन ।)    (गमेंगा॰2.7; 19.11)
57    एका (= एकाध) (~ फक्का) (एगो थरिया में फरही आउ ढेलवा गुड़ आल । प्रसाद साहेब तो भोज के इंतजाम देखे बहरा गेलन आउ लड़कन के हाथ थरिया दने बढ़िये नइ रहऽ हल । फूआ के कहला पर एका फक्का उठइलक लेकिन गुड़ उठाके फेर थरिये में रख देलक ।)    (गमेंगा॰28.24)
58    एक्को (= एक भी) (बंबई के बान्द्रा से बिहारशरीफ के नक्शा नजर तर नाचे लगल । हवाई जहाज से पटना उतरइत प्रसाद साहेब पहिले सराध में शरीक होवइ के बात सोचलन । लेकिन लड़कन के जिद के सामने उनकर एक्को नइ चलल आउ बिहारशरीफ में एक दिन टिकके पावापुरी, नालन्दा आउ राजगीर देखे के बात तय हो गेल ।; मोहन के नाम निमन कॉलेज में लिखा गेल । ओकर भाय-भोजाय सोचऽ हल कि घर में एक्को के आगू निकले से घर के बाल-बुतरुन के जिनगी में इंजोर आ जात ।)    (गमेंगा॰27.10; 36.6)
59    एज्जइ (= एज्जे; इसी जगह) (रिक्शा अब शहर के नामी-गिरामी होटल तर जा जुमल । रिक्शावला जाने हे कि दुन्नू आदमी एज्जइ चाय-पान करऽ हथ । ऊ बिना पुछले रोक देलक ।)    (गमेंगा॰35.22)
60    एज्जा (= इस जगह, यहाँ) (रिक्शा रोकके राम बाबू पान खाय लगलन तो सौकत फेर पुछलक - एहो पान-गुमटी तो कमाले साहेब के दरोजा पर लगल हे । तहिया एज्जा तक तो उनकर दरोजे हल । भला, दरबार जइसन घर, नौकर-चाकर, लौंड़ी-नफ्फर ! तहिया केतना रजगज हल !)    (गमेंगा॰34.30)
61    एतबड़ (घटना के भी अजब-अजब मौसम हे ई देश में - भ्रष्टाचार आउ बेभिचार के स्थायी मौसम, अपहरण-रहजानी के मौसम, राजनैतिक गँठजोड़ आउ विघटन के अवसरवादी मौसम के साथ आतंकवादी मौसम । फेर भी एतबड़ गो देश खातिर ई मौसम छोट पड़ रहल हे ।)    (गमेंगा॰xii.27)
62    एत्तेक (घटना के भी अजब-अजब मौसम हे ई देश में - भ्रष्टाचार आउ बेभिचार के स्थायी मौसम, अपहरण-रहजानी के मौसम, राजनैतिक गँठजोड़ आउ विघटन के अवसरवादी मौसम के साथ आतंकवादी मौसम । फेर भी एतबड़ गो देश खातिर ई मौसम छोट पड़ रहल हे । एत्तेक सब मौसम के बहार आउ उपयोगितावादी तूफान में देश के भाग्यविधाता आँख पर पट्टी आउ कान में रुइया के फाहा रखके काम चला रहलन हे ।)    (गमेंगा॰xii.28)
63    एन्ने-ओन्ने (अइसे तो आज भोरहीं से मदन जी चंगलाल हलन लेकिन पछली से उनकर नजर घड़ी पर चल जा हल । चरबज्जी गाड़ी के समय उनका मालूम हे । साइत आज कुछ लेट रहे - अइसन सोचके एगो लमहर साँस खींचइत तनि एन्ने-ओन्ने हिआवे लगऽ हथ ।)    (गमेंगा॰39.4)
64    ओज्जइ (= उसी जगह; वहीं) (अंग-अंग के दरद 'खुंडी-खुंडी आदमी' के मुज्जू भाय से जादे के जानऽ हे, जेकर एक भाय पच्छिम त एक भाय पूरब चल गेल । पूरब वला तो तब लउटल जब ओहो पच्छिम से कटे के चोट से मर्माहत भेल, मुदा पच्छिम वला त 'मोजाहिर' होवे के गुनाह में ओज्जइ स्वाहा भे गेल आउ एगो लिफाफा के जनाजा में बंद भे के अप्पन पुरखइन के कबुरगाह में मुज्जू भाय के नोह से कोड़ल कबुर में दफन होवऽ हे ।)    (गमेंगा॰vi.33)
65    ओढ़ल ('ओढ़ल जिनगी के जखम' तब आउ टभकऽ हे जब बाप अपन बेटी के सुख के जगह पर धुइयाँ के समाचार सुनऽ हे ।)    (गमेंगा॰vii.14)
66    ओदगर (पढ़े आउ खेले में उनकर दुन्नू लड़कन जोरदार हल । लाल बाबू मनेमन मलपूआ छानते रहऽ हलन । उनका भरोसा हल कि दुन्नू लड़का ऊँचगरे ओहदा पर जात आउ तब उनकर हाथ हरदम ओदगरे रहत । भला, एगो बेटी निबाहना कौन मोसकिल होत ?)    (गमेंगा॰22.25)
67    ओन्नय (= ओधरे; उधर ही) (बदरु अपन घरे दने के धूप-छाँह में होश सम्हारलक । तनि बड़गो होला पर बाप ओकर माथा पर तरकारी के डलिया धर देलक । फेर की, ऊ तरकारी के नाम लेते-लेते फाटक आउ हवेली दने सोझिया जा हल । अब कउनो रोक-टोक नइ रह गेल हल । फाटक आउ हवेली के चस्का में बदरु हरदम ओन्नय सोझिया जाय ।)    (गमेंगा॰12.2)
68    ओरियाना (जइसे-जइसे रिटायर होवे के दिन नजीक आवे लगल, राजो बाबू अपन सर-समान तहियावे लगलन हल । धीरे-धीरे करके सब समान राँची भेज देलका । एक्के बेर ट्रक पर समान लदनइ उनका ठीक नइ लगऽ हल । आस्ते-आस्ते ऊ सब समान ओरियाय देलन हलन ।)    (गमेंगा॰53.19)
69    ओलहन-परतर (कहीं तेसर महिना में कविता लौट के नइहरा आल तो सास-ससुर आउ परिवार सब के ओलहन-परतर से माय-बाप के अवगत करा देलक ।)    (गमेंगा॰42.7)
70    ओहे (= वही) (रोजी-रोजगार के भाग-दौड़ में घर बड़ी आगू निकल गेल, अंगना-ओसरा से देवाल तक चकचका गेल, लेकिन अपन बूढ़ माय-बाप के साथे-साथ बुतरून के सोभाव में कोय तफड़का नइ पड़ल । बुतरून के पढ़े लेल ओहे पुरनका इस्कूल आउ खेले-धूपे ले ओहे गली के धूरी-झिकटी, जेकरा से ओकर नया-नया कपड़ा भी पुराने लगऽ हे ।)    (गमेंगा॰9.7, 8)
71    औने-पौने (ओकर लंगोटिया यार किसना गाँव छोड़के शहर में पान-बीड़ी के दोकान खोल देलक हल । दोकान खुब्बे चलऽ हल । किसना सब बेकत संगे केतना अराम से रहे हे । बदरु अपन मन के बात किसना से कहलक । ओकरा गाँव में बेचहीं के की हल ? जे हल ओकरा औने-पौने में बेचके शहर सोझिया गेल ।; भाय लोग के जबरदस्ती विदा होवे घड़ी पुस्तइनी जायदाद औने-पौने में बेचके सोना-चानी, रुपया-पइसा दे दे के विदा कइलन हल ।; लाल साहेब टुकुर-टुकुर ताक रहलन हल । उनकर बेटा कोठी के अउरो समान औने-पौने में दहा रहल हल ।)    (गमेंगा॰13.14; 17.3; 20.17)
72    कइसउँ (दिन तो कइसउँ कट गेल आउ रात में पानी आउ बिजली गोल । सउँसे शहर अन्हारे ओढ़ले हल । बुतरुन सब छज्जा पर निकसके देख रहल हल कि अपन शहर के सामने तो ई एगो अउरे हिन्दुस्तान हे ।)    (गमेंगा॰27.17)
73    कउनो ( आज जब मगही कहानी के इतिहास, विकास आउ विस्तार पर बहस के बात कइल जाय तब ई कहनइ, कउनो ओछ बात नइ मानल जात कि अदीप के कहानी एगो आउ परिभाषा के तलाश में हे ।; 'बिखरइत गुलपासा' से 'गमला में गाछ' तक के जतरा में अदीप के कहानी एक नया तेवर लेके आल । कहानी खाली आम आदमी के हिस्सा बनके रह जाय, एकरा से आम जीवन के संवेदना जरूर सहलावल जात । लेकिन अइसन कहनइ आउ होनइ में कउनो न कउनो लीक के धमक आवे हे ।)    (गमेंगा॰viii.3; ix.17)
74    कखनउँ (अपन लड़कन साथ बदरु दोकान में एतना ने रम गेल कि कखनउँ मोहलत नइ । भोर से साँझ तलुक ऊ भीड़ में बझल रहऽ हल ।; अइसन बात सुनके बदरु दुन्नू परानी के होशे उड़ गेल । रात भर छो-पाँच करते रहल । कखनउँ नीन नइ आल ।)    (गमेंगा॰13.18; 14.23)
75    कखनउँ-कखनउँ (= कखनो-कखनो) (महेश के मालूम हे कि मेम साहेब के बाप पुलिस या फौज में बड़गो अफसर हथ । महेश मनेमन गारी के जवाब भी देवे करऽ हल । माय-बाप के देखा-देखी लड़कनो कखनउँ-कखनउँ गरिये से बोलवऽ हल । कोठी पर के अउरो सुख-सुविधा के तरह गरियो ओकर जिनगी के हिस्सा बन गेल हल ।)    (गमेंगा॰57.18)
76    कखनऊँ (= कखनों; कभी भी) (कैलास अपन गाँव के इयार-दोस लेल जान बिछइले रहऽ हल । बर-बीमारी में तो हाथ खोल दे हल । तर-तेहवार खूब जोश-खरोश से मना के समूचे गाँव के चौंधिया दे हल । इयार-मीत, हित-कुटुम्ब से दलान भरल रहऽ हल आउ चुल्हा कखनऊँ ठंढइवे नइ करऽ हल ।)    (गमेंगा॰8.23)
77    कखनो (= कभी) (नरायन बाबू तो देख रहलन हल कि बेटा-बहू के जोरु-मरदवला अपनो जिनगी दरकले नजर आवे हे । ऊ तो भगवान के किरपा हल कि दूगो लड़कन होल, जेकरा पोसे-पाले के जिम्मा दादे-दादी के हल । लड़कन जब इस्कूल से आवऽ हल त कखनो माय के हिस्सा में पड़ऽ हल त कखनो बाप के हिस्सा में । लड़कन के माय-बाप के साथ जउरे मिले के संजोग बड़ी कम्मे मिलऽ हल ।)    (गमेंगा॰3.6)
78    कखनो-कखनो (होटल के बेयरा ठंढा-गरम परस रहल हल । देर में साहेब आउ मेम साहेब के हिगराल मेहमान गोठना गेलन आउ उनकर अवाज लड़खड़ाय लगल । उनका सहियारना भी एगो अजबे काम हल । भीड़ में कखनो-कखनो मेम साहेब आउ साहेब भी देखाय पड़ जा हलन ।)    (गमेंगा॰58.15)
79    कजा (~ करना = मरना) (कोय-कोय तो कह रहल हल कि अपनो फूफा के मरला पर भी नोह-नखुरी नइ करइलक हे । एतने में प्रसाद साहेब अइलन । भंडार में उनका हेले से मना कर देल गेल, काहे कि उनको नोह-नखुरी नइ होल हल । भोज के पंघत बइठते-बइठते तो सउँसे गाँव में चरचा होल कि बम्बेवली के भाय-भतीजा अइसन कि अपनो अदमी के कजा करला पर नोह-नखुरी नइ कइलक, छुत्तक नइ लेलक ... काहे नइ लेलक !)    (गमेंगा॰28.30)
80    कड़रगर (बेटा लेल लड़की चुनना सिन्हा साहेब के कड़रगर काम लग रहल हल । रंजन के बिआह पर ढेर-ढेर देर तलुक परिवार में बहस होते रहल हल आउ फेर लड़की के तस्वीर रंजन के पता पर भेज देवल जा हल, लेकिन लड़का दने से कुछ भी पहल नइ होवऽ हल ।)    (गमेंगा॰45.15)
81    कतरल (जब आदमी समाज से बिखर के अपन छाती पर हाथ रखे लगल तब ओकरा अइसन बुझाल कि ऊ भीतर से मसुआइल हे, खुंडी-खुंडी हे आउ कतरल हे कत्तेक जगह से । आदमी के समेटल आदमीयत के देवाल दरकल हे, धोखड़ल हे ।)    (गमेंगा॰viii.25)
82    कत्तेक (= कत्ते; कितना) (जब आदमी समाज से बिखर के अपन छाती पर हाथ रखे लगल तब ओकरा अइसन बुझाल कि ऊ भीतर से मसुआइल हे, खुंडी-खुंडी हे आउ कतरल हे कत्तेक जगह से । आदमी के समेटल आदमीयत के देवाल दरकल हे, धोखड़ल हे ।; कथानक, चरित, संवेदना, समय आउ विचार के साथे-साथ समाजगत दबाव से कहानी के कत्तेक जगह संघर्ष के सामना करे पड़ऽ हे ।; चड्ढा साहेब के सफल दाम्पत्य जीवन के समारोह हे । केतना नजीकी इयारी हे । कत्तेक बेरा उनकर परिवार समेते होटल में पाटी देलक हल ।; अपन नउका बनल दिल्ली वली कोठी में सिन्हा साहेब नींद से लड़ रहलन हल । उनकर घरवली के तो नींदिये अलोप गेल हल । कत्तेक बेर ठमक-ठमक के सिन्हा साहेब के कमरा में अइली, लेकिन कुछ कहे के साहस न हो रहल हल ।)    (गमेंगा॰viii.25; x.34; 10.12; 43.2)
83    कन्ने (सुनीता घबड़ाल नइ, कहे लगल - लेन-देन आउ दहेज के सवाल कन्ने से उठे के चाही ? तनी बतावऽ तो ! तोहर बेटा के 'बंधुआ मजूर' के नौकरी हे । हम मोटगर आमदनी के नौकरी करऽ ही । भला, हम तोहर बोझ बनम । हमरा तो तोहर बेटा आउ परिवार के बोझ उठावे पड़त ।)    (गमेंगा॰24.24)
84    कबुर (= कब्र) (अंग-अंग के दरद 'खुंडी-खुंडी आदमी' के मुज्जू भाय से जादे के जानऽ हे, जेकर एक भाय पच्छिम त एक भाय पूरब चल गेल । पूरब वला तो तब लउटल जब ओहो पच्छिम से कटे के चोट से मर्माहत भेल, मुदा पच्छिम वला त 'मोजाहिर' होवे के गुनाह में ओज्जइ स्वाहा भे गेल आउ एगो लिफाफा के जनाजा में बंद भे के अप्पन पुरखइन के कबुरगाह में मुज्जू भाय के नोह से कोड़ल कबुर में दफन होवऽ हे ।)    (गमेंगा॰vii.1)
85    कबुरगाह (= कब्रगाह) (अंग-अंग के दरद 'खुंडी-खुंडी आदमी' के मुज्जू भाय से जादे के जानऽ हे, जेकर एक भाय पच्छिम त एक भाय पूरब चल गेल । पूरब वला तो तब लउटल जब ओहो पच्छिम से कटे के चोट से मर्माहत भेल, मुदा पच्छिम वला त 'मोजाहिर' होवे के गुनाह में ओज्जइ स्वाहा भे गेल आउ एगो लिफाफा के जनाजा में बंद भे के अप्पन पुरखइन के कबुरगाह में मुज्जू भाय के नोह से कोड़ल कबुर में दफन होवऽ हे ।)    (गमेंगा॰vi.34)
86    कमर-खोसनी (गेंठ जोड़ के दुन्नू परानी पूजा पर बइठलन हल । घरवाली के कमर-खोसनी में सउँसे घर आउ आलमारी के ताला के कुंजी के गुच्छा तो देखतहीं बनऽ हल । घर में एगो अलगे पूजाघर बनउलन हल ।; आमदनी के कमी आउ बढ़ल खरचा के दबाव के चलते अब लड़कन घर के कमरा-कोठरी के उपयोग के बात सोचे लगल । अमर जी के घरवली के कमर-खोसनी तो पहिलहीं छितरा गेल हल । अब दुन्नू परानी एक्के कोठरी में समटा गेलन ।; उनकर सउँसे सपना एक्के धक्का में धराशायी हो गेल । अमर जी बुढ़ारी के भय से फिनु चुप्पी साधले रह गेलन आउ घरहेली घड़ी घरवली के कमर में खोंसल कमर-खोसनी के कुंजी के गुच्छा याद करके थरथराय लगलन ।)    (गमेंगा॰30.7; 31.25; 32.17)
87    कम्पोटर (= कम्पाउंडर) (जब लड़कन पहाड़ पर वला इस्कूल में पढ़े लगल त ओकरा लावे-पहुँचावे के काम कम्पोटरे करे लगल । नरायन बाबू के एकरा से तकलीफ होवऽ हल ।; अनिल दुनिया भर के जाँच-पड़ताल करवा देलक हल । भेलउर के नामी-गिरामी डाक्टर के नाम ढेरोढेर चिट्ठी-पतरी लाके धर देलक हल । साथे जाय लेल एगो कम्पोटर के तइयार कर देवल गेल हल ।)    (गमेंगा॰3.10, 23)
88    कम्मे (= कम ही) (नरायन बाबू तो देख रहलन हल कि बेटा-बहू के जोरु-मरदवला अपनो जिनगी दरकले नजर आवे हे । ऊ तो भगवान के किरपा हल कि दूगो लड़कन होल, जेकरा पोसे-पाले के जिम्मा दादे-दादी के हल । लड़कन जब इस्कूल से आवऽ हल त कखनो माय के हिस्सा में पड़ऽ हल त कखनो बाप के हिस्सा में । लड़कन के माय-बाप के साथ जउरे मिले के संजोग बड़ी कम्मे मिलऽ हल ।)    (गमेंगा॰3.6)
89    कर-किताब (शहर में कौनो उत्सव रहे या कौनो संस्था के काम या खेल के मैदान - दुन्नू लड़कन अपन अफरा-तफरी में पहुँच जाय । ई चमक-दमक के धक्का से कर-किताब दूरे फेकाल रहऽ हल । परीक्षा के समय में किताब के गरदा-धूरी साफ होवऽ हल ।)    (गमेंगा॰23.1)
90    कर-कुटुम्ब (आज फेर भोरहीं से ओहे ताम-झाम । कर-कुटुम्ब लेल पूरा बन्दोबस्त । बात में भी गंभीर भाव । लेन-देन के बात से बइठका गूँज रहल हल । लड़का के बाप अपन बेटा लेल मनेमन नक्शा गढ़ रहल हे ।)    (गमेंगा॰24.14)
91    करखाना (गाँव के करखाना के बनल समान कइसे महानगर में जाहे, कइसे खरीद-बिक्री कइल जाहे - एकर कहानी कहते-कहते ऊ कभी न अघाल ।; कैलास के तसर वला काम में तस्कर जइसन फल-फूल लगऽ हल । ओकर करखाना में बनल तसर के बड़ी खपत हे, हरदम माँग बनल रहऽ हे ।)    (गमेंगा॰8.9, 14)
92    कहनइ (आज जब मगही कहानी के इतिहास, विकास आउ विस्तार पर बहस के बात कइल जाय तब ई कहनइ, कउनो ओछ बात नइ मानल जात कि अदीप के कहानी एगो आउ परिभाषा के तलाश में हे ।; 'बिखरइत गुलपासा' से 'गमला में गाछ' तक के जतरा में अदीप के कहानी एक नया तेवर लेके आल । कहानी खाली आम आदमी के हिस्सा बनके रह जाय, एकरा से आम जीवन के संवेदना जरूर सहलावल जात । लेकिन अइसन कहनइ आउ होनइ में कउनो न कउनो लीक के धमक आवे हे ।)    (गमेंगा॰viii.3; ix.17)
93    कहल-बदल (आज ही घरनी के बेर-बेर हिदायत दे रहलन हल - "देखऽ सरितामाय । आज ही के समय हे । पंडी जी के कहल-बदल हे । सँझउकी आ जइतन । सगुन के दिन हे । कुटुम्ब के अइतहीं नास्ता-पानी हो जाय के चाही आउ लगले सरिता के देख लेतन । सब कुछ तनि ठीक-ठाक से होवे के चाही ।")    (गमेंगा॰39.9)
94    कातिब (= लिखनेवाला, लेखक; लिपिक) (नरेश बाबू तो कच्चे उमर से कचहरिये में केंचुल बदले लगलन हल । मोखतार साहेब के मरतहीं नरेश बाबू कातिब के काम करे लगलन हल ।)    (गमेंगा॰26.14)
95    किरपा (= कृपा) (अनिल अपन क्लिनिक से समय निकालके रोज घरवली के क्लिनिक में बइठऽ हल । भगवान के किरपा से दुन्नू परानी के मरीज के कमी नइ हल ।; नरायन बाबू तो देख रहलन हल कि बेटा-बहू के जोरु-मरदवला अपनो जिनगी दरकले नजर आवे हे । ऊ तो भगवान के किरपा हल कि दूगो लड़कन होल, जेकरा पोसे-पाले के जिम्मा दादे-दादी के हल ।)    (गमेंगा॰2.19; 3.4)
96    किरिया-करम (नरेश बाबू के मउगत के खबर प्रसाद साहेब के ठोरे पर रह गेल । ऊ सउँसे बोझ अपने मन पर लादले किरिया-करम के आखिर दिन ले जोड़-घटाव करे लगलन ।)    (गमेंगा॰26.30)
97    किस्सागोई (अदीप कहानी लिखऽ हथ कम, कहानी कहऽ हथ जादे । एहे इनकर अपन टेकनिक हे, जेकरा 'किस्सागोई' कहल जा सकऽ हे ।)    (गमेंगा॰xi.13)
98    कीनना (= खरीदना) (बेटी के बियाह एगो इंजीनियर लड़का के साथ कर देलन हल । लड़की जे घर से विदा होल त बड़ी मोसकिले से नइहर दने ताकऽ हल - काहे कि  ऊ बड़गो शहर के नक्शा में अइसन ने बँधल कि नइहर के लोग-बाग के अब पछानलो मोसकिल होवऽ हल । लोग-बाग एकरा जानऽ हल कि ऊ अपन बेटी के केतना पढ़इलन हल, लेकिन खेत-पथारी के दाँव पर लगा के ऊ इंजीनियर लड़का कीनिए लेलन हल ।)    (गमेंगा॰1.14)
99    कुटुम (= कुटुम्ब) (घड़ी तो रुके के नामे नइ ले रहल हल । कुटुम अभी तक पहुँचवे नइ कइला हल ।; ऊ सड़क पर आके दूर तलुक हिअइलन । चार-पाँच आदमी के अइते देखलन तो चिन्हते देर नइ लगल । उनका अइसन लगे लगल जइसे कुटुम सब के गोड़ उनकर छाती पर रखा रहल हे ।)    (गमेंगा॰40.13; 42.27)
100    कूढ़न (= कुढ़न) (बेटा-बेटी के संबंध में जे तफरका मानल जाहे, अमर बाबू ओकरा गलत कहे लगला । बेटी जलमते त घर के रंगे उड़ जाहे, लेकिन बेटा तो दिन-रात घर के कूढ़न बनल रहे हे ।)    (गमेंगा॰30.27)
101    केतनउँ (बेटा रतन केतनउँ कहलक लेकिन सब बेअसर हो गेल । पुतोह तो अपन काम छोड़के नइ आ सकली, बाल-बुतरुन के देख-भाल में रह गेली । दुन्नू के एक्के समय छुट्टी लेनइ ठीक नइ हे ।)    (गमेंगा॰52.16)
102    कोंचना (= ठूँसना) (पैसा के पौधा जेत्तक बड़गो होते जा रहल हे, जीवन-संबंध के कोमल लुहगर टूसा ओतने मरुआइल नजर आ रहल हे । उपयोगितावादी संबंध एगो त्रासदी पैदा करऽ हे, जे कहानीकार के कोंचऽ हे, खुनसावऽ हे आउ घायल करऽ हे ।)    (गमेंगा॰x.18)
103    कोआटर (= क्वाटर, क्वार्टर) (आखिर हिला-हुज्जत करते-करते राजो बाबू अपन गाँव के रस्ता धरिये लेलन । डॉक्टर बेटा केतना समझइलक कि चलऽ तों हमरे साथ सरकारी कोआटर में रहिहऽ । बाल-बुतरुन के साथ तोहर मन बहलते रहतो ।)    (गमेंगा॰51.3)
104    कोठा-कोठी (मुजफ्फर मियाँ अपन आगू-पाछू ढेरोढेर नाम सुनइत-सुनइत अब सउँसे इलाका में मुज्जु भाय बनल के रह गेलन हल । जमींदारी घड़ी मुजफ्फर बाबू, फिनु खान साहेब आउ मुजफ्फर साहेब तो लमहर घड़ी तलुक बनल रहलन । शहर में कोठा-कोठी तो ढेर हल लेकिन लाल हवेली तो सउँसे इलाका में अकेलुए हल ।)    (गमेंगा॰15.4)
105    कोड़ल (अंग-अंग के दरद 'खुंडी-खुंडी आदमी' के मुज्जू भाय से जादे के जानऽ हे, जेकर एक भाय पच्छिम त एक भाय पूरब चल गेल । पूरब वला तो तब लउटल जब ओहो पच्छिम से कटे के चोट से मर्माहत भेल, मुदा पच्छिम वला त 'मोजाहिर' होवे के गुनाह में ओज्जइ स्वाहा भे गेल आउ एगो लिफाफा के जनाजा में बंद भे के अप्पन पुरखइन के कबुरगाह में मुज्जू भाय के नोह से कोड़ल कबुर में दफन होवऽ हे ।)    (गमेंगा॰vii.1)
106    कोरे-कोर (~ खिलाना) (कहानीकार जब पाठक के सामने कहानी परोस दे हे, तो वहाँ एक अनमनापन उभरऽ हे, लेकिन जब अइसन एहसास हो कि कहानीकार कोरे-कोर खिला रहल हे, बाते-बात सुनाके बतिया रहल हे तब वहाँ कहानी, कहानीकार आउ पाठक के बीच के अंतराल मिट जाहे ।)    (गमेंगा॰xi.17)
107    कोवाटर (= क्वाटर, quarter) (कोठी बेचइ के बात भाय से विदेशे में तय हो गेल हल । बाबूजी लेल बड़गो शहर में एगो कोवाटर भी कीनल गेल हल । लाल साहेब के समझावल गेल कि बुढ़ापा में बड़गो शहर ठीक हे ।)    (गमेंगा॰20.11)
108    खान-पियन (तहिया साहेब के शादी के सालगिरह हल । कोठी तो देवाली जइसन सजवल गेल हल । खान-पियन के तैयारी खातिर कउनो बड़गो होटल से आदमी आल हल । बेर-बेर महेश के किसिम-किसिम के हिदायद देवल जा रहल हल ।)    (गमेंगा॰58.2)
109    खुंडी-खुंडी (= खंड-खंड, टुकड़ा-टुकड़ा) (आजादी मिले के मिलल बाकि अंग काटके कीमत चुकता करके, जेकर परिणाम भेल पाकिस्तान । अंग-अंग के दरद 'खुंडी-खुंडी आदमी' के मुज्जू भाय से जादे के जानऽ हे, जेकर एक भाय पच्छिम त एक भाय पूरब चल गेल ।; नातेदारी के नाम आउ रिश्तेदारी के घाव तो सबके समझ में आ रहल हे । आदमी केतना जगह से खुंडी-खुंडी होके छितरा गेल कि ओकरा अपनो चेहरा अजनबी के एहसास दे रहल हे ।; जब आदमी समाज से बिखर के अपन छाती पर हाथ रखे लगल तब ओकरा अइसन बुझाल कि ऊ भीतर से मसुआइल हे, खुंडी-खुंडी हे आउ कतरल हे कत्तेक जगह से ।)    (गमेंगा॰vi.27; viii.16, 24)
110    खुनसाना (= क्रोधित करना; नाराज करना) (पैसा के पौधा जेत्तक बड़गो होते जा रहल हे, जीवन-संबंध के कोमल लुहगर टूसा ओतने मरुआइल नजर आ रहल हे । उपयोगितावादी संबंध एगो त्रासदी पैदा करऽ हे, जे कहानीकार के कोंचऽ हे, खुनसावऽ हे आउ घायल करऽ हे ।)    (गमेंगा॰x.18)
111    खुब्बे (= खूब + '-ए' प्रत्यय) (ओकर लंगोटिया यार किसना गाँव छोड़के शहर में पान-बीड़ी के दोकान खोल देलक हल । दोकान खुब्बे चलऽ हल । किसना सब बेकत संगे केतना अराम से रहे हे । बदरु अपन मन के बात किसना से कहलक । ओकरा गाँव में बेचहीं के की हल ? जे हल ओकरा औने-पौने में बेचके शहर सोझिया गेल ।; लाल साहेब अपन समय के बात सोचऽ हलन । अपन यार-दोस्त आउ नाता-गोता के दुख-सुख में केतना अपनउती देखावऽ हलन । कमजोर के ऊ खुब्बे सहयोग दे हलन ।)    (गमेंगा॰13.12; 19.22)
112    खेत-खन्हा (= खेत-खन्धा) (राजो जी जइसे-जइसे गाँव के गली-गली से भीतर तलुक गेला ओइसे-ओइसे उनका लगे लगल कि गाँव से खेत-खन्हा तक दरकल हे, हिगरे-हिगर हिगराल हे ।)    (गमेंगा॰55.6)
113    खेत-पथारी (लड़की जे घर से विदा होल त बड़ी मोसकिले से नइहर दने ताकऽ हल - काहे कि  ऊ बड़गो शहर के नक्शा में अइसन ने बँधल कि नइहर के लोग-बाग के अब पछानलो मोसकिल होवऽ हल । लोग-बाग एकरा जानऽ हल कि ऊ अपन बेटी के केतना पढ़इलन हल, लेकिन खेत-पथारी के दाँव पर लगा के ऊ इंजीनियर लड़का कीनिए लेलन हल ।)    (गमेंगा॰1.13)
114    खेलाड़ी (= खिलाड़ी) (मंजल ~) (ऊ तो अपने सादी-बियाह के मंजल खेलाड़ी हलन । लेकिन डाक्टर लड़का अपन बाप के बनिअउटी विचार से ऊब गेल हल ।)    (गमेंगा॰6.12)
115    खैर-सलाह (तनिको सन परिचय होलो कि उनकर नाम टाँक ले हलन । चिट्ठी-चपाती के काम विभाग वला काम के किनारे करके भी करते रहऽ हलन । नया साल के मोबारकवादी आउ खैर-सलाह तो बदली होला पर भी देते रहऽ हलन ।)    (गमेंगा॰4.12)
116    खोज-खबर (लाल साहेब अपन कोठी देखके एगो अजीब संतोख के साँस ले हलन । बेटा-बेटी तो विदेशी होइये गेल हल । अपन निशानी के रूप में हल तो खाली ई बड़गर कोठी, जेकरा में रिटायर जिनगी के दिन गिन रहलन हल । ... रिटायर होला पर उनकर खोज-खबर लेवेवला के अकाल पड़ गेल हल ।)    (गमेंगा॰18.6)
117    खोजा-खोजी (नौकरी लेल मोहन हाथ-गोड़ चला-चला के अब थक रहल हल । ऊ अब अपन जिनगी के जुगाड़ लेल टिसनी के बात सोचे लगल । हिन्दी में टिसनी पढ़वइया तो विरले भेटऽ हे । लड़कन के अंगरेजी पढ़ावे लेल अभियो आपाधापी हे । ढेरो खोजा-खोजी पर कुछ घर में टिसनी के जुगाड़ बइठल, लेकिन दोसरो विषय के अध्ययन मोहन लेल जरूरी हो गेल ।)    (गमेंगा॰38.2)
118    गंजन (अब तो कराँची से कलीम के चिट्ठी भी दिल के दहलावे लगल हल । रोज-रोज दंगा-फसाद । अपन मुलुक छोड़ला पर गंजन सामने आवे लगल । मुज्जू भाय तो तहियो समझइलन हल कि हियाँ अइसन चैन कउनो देश में नइ भेंटत ।)    (गमेंगा॰17.12)
119    गते-गते (= धीरे-धीरे) (गते-गते गमलक कि मोहल्ला भी हिगराले हे । जउरे ईद-बकरीद आउ अफतारी करे वला हाजी के ऊ दुरिए से देख सकऽ हल ।)    (गमेंगा॰13.20)
120    गर-गलबात (बदरु सोचऽ हल कि गाँव में साग-भाजी से ऊ सउँसे घर के जोड़ले हल लेकिन नगर के नोट तो ओकर बेटन के बेगरा रहल हे । पुतहुन के आपसी गर-गलबात के सवाले नइ हल । हिस्सा-बखरा तक आके बात रुकऽ हल ।)    (गमेंगा॰14.8)
121    गरदा-धूरी (शहर में कौनो उत्सव रहे या कौनो संस्था के काम या खेल के मैदान - दुन्नू लड़कन अपन अफरा-तफरी में पहुँच जाय । ई चमक-दमक के धक्का से कर-किताब दूरे फेकाल रहऽ हल । परीक्षा के समय में किताब के गरदा-धूरी साफ होवऽ हल ।)    (गमेंगा॰23.2)
122    गरमाना (= अ॰क्रि॰ गरम होना; स॰क्रि॰ गरम करना) (बड़ी सोच-समझ के इसकीरीम बेचे के रोजगार थमा देलक । लेकिन ई रोजगार तो गरमिए में गरमा हल आउ जाड़ा-बरसात में घर के हालात इसकीरीमो से जादे ठंढा हो जा हल ।)    (गमेंगा॰13.7)
123    गरमाल (आज सँझिये से घर गरमाल हल । गोतनिन केतना आँच दे रहली हल । दुन्नू भाइयो ई आग में कूद पड़ल ।)    (गमेंगा॰14.10)
124    गरमाल-ठंढाल (~ कहानी) (उनका सौकत मियाँ, तारकेसर आउ कपिलदेव से अजीब उलझन होवऽ हे । ई सब जब भी आवऽ हथ तो मामू से भगिना तक के सवाल राम बाबू से करऽ हथ । शहर के ढेरोढेर परिवार के बाप-बेटा, माय-बेटी से गोतनी-सैतिन के गरमाल-ठंढाल कहानी तो उनकर ठोरे पर रहऽ हे ।)    (गमेंगा॰34.5)
125    गरान (नौकरी की हल, बस भोरउकी से लेके साँझ तक मालिक-मलकीनी के आवाज पर नाचते रहऽ हल । भोरउकी चाय से लेके रात के रसोय तक के भार ओकरे पर हल । फेर लुग्गा-फट्टा सब ओकरे जिम्मे हल । जन्नी के कपड़ा साफ करे में ओकरा शरम लगऽ हल आउ मन तो गरान से भर जा हल ।)    (गमेंगा॰56.9)
126    गाँव-गोरइया (जसन के रंगत से आसपास के लोग चौंधिया गेलन । फेर गाँव आके भी एगो भोज भेल । पूजा-पाहुर कइलक । गाँव-गोरइया से लेके डाकबाबा आउ डिहवाल के चढ़ावा चढ़ल । भगत से फुलधरिया तक अघा गेल ।)    (गमेंगा॰9.16)
127    गाड़ी-छागर (जइसहीं अनिल डाक्टर होल त ढेरो-ढेर कुटुम्ब ओकर बरतुहारी लेल आवे लगला । नरायन बाबू मनेमन तय कइले हलन कि अनिल के बियाह डाक्टरे लड़की से करतन । अइसन बात सोचके उनकर मन में एगो अजबे ताजगी आ जा हल । गाड़ी-छागर से बड़गो मकान के नक्शा ऊ मनेमन बनइले हलन ।)    (गमेंगा॰2.5)
128    गाम (= गाँव) (एहे मानसिकता के दोसर कहानी 'बाँट-बखरा' में भी गाँव से शहर के यात्रा हे । संयुक्त परिवार लेल गाँव यूरिया हे त शहर तेजाब । बदरू अपन दुन्नू बेटन के सम्वेदनहीनता से खिन्न फेनो गामे के रुख लेहे ।; घर जायवला टीसन पर उतरके बजार में हेलला कि उनका गाँव के आदमी मिले लगल । हाल-चाल आउ पूछताछ में ऊ सबसे कहथ कि अब हम गामे में रहम । रिटायर जिनगी अब गामे के नाम रहत । कुछ तो सुनके हँस दे आउ कहे - "की राजो भइया, गाम में मन लगतो ? गाम छोड़ला एत्तेक दिन हो गेलो । अब बुढ़ारी में की रहभो ?")    (गमेंगा॰vi.23; 54.5, 6, 7)
129    गारी-गुपता (बदरु अपन गलिये के साथी-संगी के साथ सियाना होल हल । ओकर अलगे दुनिया हल । सकेरे आउ सँझउकी सभे छान से धूआँ निकलऽ हल लेकिन दरोजा के बाहर गली में गारी-गुपता, उकटा-पउँची तो रोजिना के हिस्सा हल । लेकिन गली के झगड़ा हवेली जइसन थाना-कचहरी नइ जा हल ।)    (गमेंगा॰12.13)
130    गियारी (होली तो अब बदरु के गियारिये में बझल रह जाहे । ओकर घरवली के मन जितिया-नाच देखे ले ललचऽ हल ।; समय जइते की देर लगऽ हे ? सक्सेना साहेब के घर भी गुंजार करे लगल । उनका दुन्नू परानी खातिर अब मिठगर दिनचर्या हो गेल हल । उनकर घरवली तो दुनिया भर के तर-ताबीज से पोता-पोती के हाथ आउ गियारी भर देलकी हल ।)    (गमेंगा॰13.24; 49.12)
131    गीत-नाध (बदरु समझऽ हल कि हम गरीबन के जिनगी में गीत-नाध तो कभी-कभी आवऽ हे । लेकिन जब भी आवऽ हे तो सराबोर कर देहे ।)    (गमेंगा॰12.25)
132    गुनी (= के कारण) (से ~ = उस कारण) (उनकर होवे वला समधी एकदम्मे रोजगरिये हल । पढ़ल-लिखल घर में रिश्ता के पहिल संजोग बइठ रहल हल, से गुनी बेचारा ऊ तो रामसेवक बाबू के बाते सुनते रहऽ हल ।)    (गमेंगा॰7.6)
133    गुम्मी (जब आदमी समाज से बिखर के अपन छाती पर हाथ रखे लगल तब ओकरा अइसन बुझाल कि ऊ भीतर से मसुआइल हे, खुंडी-खुंडी हे आउ कतरल हे कत्तेक जगह से । आदमी के समेटल आदमीयत के देवाल दरकल हे, धोखड़ल हे । ई दरकनइ से बनल दरार से देखला पर ओकर भीतर के गुम्मी भी गुनगुनाइत नजर आ रहल हे ।)    (गमेंगा॰viii.28)
134    गेनरा (बम्बेवली के भाय-भतीजा के नाम सुनके टोला-टाटी के जन्नी-मरद आउ बुतरुन से घर भर गेल । टुट्टल खटिया पर बिछल पुरान गेनरा पर बम्बेवली के भाय-भतीजन बइठल हलन ।)    (गमेंगा॰28.20)
135    गोंग (= गूँगा) (उनका मालूम हो गेल हल कि बैंकवला सोलह हजार महिना देत आउ परिवार रहेवला मकान के किराया बस डेढ़े हजार हे । मकान किराया देके भी भायलोग के हाथ में मोटगर हिस्सा आ जात । लड़कन के अफसोस तो एकरा से हो रहल हल कि ई बात उनकर मगज में पहिले काहे नइ आल । लड़कन के फैसला से अमरजी एकदम्मे गोंग हो गेलन हल ।)    (गमेंगा॰32.23)
136    गोठनाना (सँझिये से लोग-बाग गोठनाय लगल । कुछेक देर में कोठी आउ लउन खचाखच भीड़ से भर गेल ।; होटल के बेयरा ठंढा-गरम परस रहल हल । देर में साहेब आउ मेम साहेब के हिगराल मेहमान गोठना गेलन आउ उनकर अवाज लड़खड़ाय लगल ।)    (गमेंगा॰58.13)
137    गोड़ (= पैर) (~ भारी होना) (दरद आउ टीस जे गाँव में हे ऊ शहरो में हे । गाँव के सिमाना में शहर सेंध मार रहल हे, तो शहर के बेलस माटी पर गाँव के गोड़ भी धरा रहल हे । एकरा एक तरह से संक्रान्ति कहल जा सकऽ हे । एकर पछान के जरूरत हे । आदमी अपनो शहर में हेरा जाहे ।; महेश कत्तेक दिन से छुट्टी माँग रहल हल, मुदा ई साले-गिरह के चलते नइ मिलल । ओकर घरवली के गोड़ भारी हल । महेश देर-सबेर लेल पास-पड़ोस के समद देलक हल । ढेर रात के बाद जब जशन खतम होल तब महेश हाँहें-फाँफे घर दने धउग गेल ।)    (गमेंगा॰ix.25; 58.19)
138    गोड़-लगाय (लड़की अंगरेजी इस्कूल के पढ़ल हल । गाँव के घर में ऊ दू-चारे दिन में कुम्हलाय लगल । गोतनी आउ लड़कन से भर मुँह बोलियो नइ सकल आउ सास-ससुर से मुलकात तो गोड़-लगाइये तक रहल । मोहन अपन माय-बाप, भाय-भोजाय के कुरबानी के बात घरवली से कहते-कहते थक गेल हल, लेकिन बेअसर रहल ।)    (गमेंगा॰37.15)
139    गोतनी (बदरु के लड़कन के निकाह-बियाह होतहीं घर के नक्शा बदल गेल आउ कुच्छे बच्छर में अँगना गूँजे लगल । गोतनी में मुँह-फुलउअल आउ ठोनाबादी होतहीं रहऽ हल । कखनऊँ-कखनऊँ भाइयो में झगड़ा हो जा हल ।; लड़की अंगरेजी इस्कूल के पढ़ल हल । गाँव के घर में ऊ दू-चारे दिन में कुम्हलाय लगल । गोतनी आउ लड़कन से भर मुँह बोलियो नइ सकल आउ सास-ससुर से मुलकात तो गोड़-लगाइये तक रहल । मोहन अपन माय-बाप, भाय-भोजाय के कुरबानी के बात घरवली से कहते-कहते थक गेल हल, लेकिन बेअसर रहल ।)    (गमेंगा॰14.2; 37.14)
140    गोतनी-सैतिन (उनका सौकत मियाँ, तारकेसर आउ कपिलदेव से अजीब उलझन होवऽ हे । ई सब जब भी आवऽ हथ तो मामू से भगिना तक के सवाल राम बाबू से करऽ हथ । शहर के ढेरोढेर परिवार के बाप-बेटा, माय-बेटी से गोतनी-सैतिन के गरमाल-ठंढाल कहानी तो उनकर ठोरे पर रहऽ हे ।)    (गमेंगा॰34.5)
141    गो-महादेव (= गौ-महादे; बहुत सीधा-सादा) (आज जब रिटायर होके ऊ घर जा रहलन हल तब उनका कॉलेज के पहिलका दिन हाजिर हो रहल हे । कमेटी के समय हल । मंत्री रामजी बाबू एकदम्मे गो-महादेव !)    (गमेंगा॰53.11)
142    गोरनार (भोज के दिन प्रसाद बाबू हपन बुतरुन के साथ बड़कागाम पहुछलन । घर पहुँचते के साथ शारदा दीदी के पास गेला आउ गोड़ छुलका । दीदी तो नालन्दा के मूरुत जइसन टुट्टल-फुट्टल गुमसुम हली । गोरनार देह पर उज्जर-उज्जर कपड़ा साटले हली ।)    (गमेंगा॰28.14)
143    घर-दुआर (बड़ी लकधक से तैयारी हो रहल हे । घर-दुआर साफ करा देल गेल हे । बइठका में कुरसी, सोफा आउ अनेगन समान सजा देल गेल हे ।)    (गमेंगा॰21.3)
144    घरनी (= घरवाली, पत्नी) (हम आभार कबूलऽ ही अपन घरनी चन्द्रकान्ता आउ शालिग्राम भारती, आकाशवाणी, पटना के, जे हमरा कभी बासी होवे नइ देलक ।; घर में बाल-बुतरु के साथे उनकर घरनी भी टी॰वी॰ पर क्रिकेट मैच देखे में मशगूल हली । उमंग से सउँसे परिवार चिल्ला-चिल्ली कर रहल हल।)    (गमेंगा॰xiii.29; 25.1)
145    घरवइया (एहे चलते तो ऊ बड़गो रोजगरिया के सामने भी अपन देहाती रोब-रुतबा के ऊँचा उठइले रहल । लेकिन चड्ढा साहेब से ओकरा अइसन उमेद नइ हल । ऊ त अपन घरवइया जइसन नजीक हलन ।)    (गमेंगा॰10.26)
146    घरवली (= पत्नी) (नरायन बाबू आउ उनकर घरोवली के अब कामे की रह गेल हल । मास्टरी से रिटायर कइला त ढेरो दिन हो गेल हल । भगवान तो उनकर सब मनसूबा पूरा कर देलन हल ।; आमदनी के कमी आउ बढ़ल खरचा के दबाव के चलते अब लड़कन घर के कमरा-कोठरी के उपयोग के बात सोचे लगल । अमर जी के घरवली के कमर-खोसनी तो पहिलहीं छितरा गेल हल । अब दुन्नू परानी एक्के कोठरी में समटा गेलन ।)    (गमेंगा॰1.6; 31.24)
147    घरहेली (= गृह-प्रवेश) (नवका बनल कोठी में तो अजबे गहमा-गहमी हल । सउँसे घर के जानदार ढंग से सजावल गेल हल । इयार-दोस आउ रिश्तेदार के झुंड तो देखतहीं बनऽ हल । गावे-बजावे खातिर नामी-गिरामी कलाकार के बोलावल गेल हल । घरहेली की हल - जे लोग अमर जी के बरात गेलन हल उनका तो लग रहल हल कि अमर जी आउ घरवाली मड़वे तर बइठल हका ।; उनकर सउँसे सपना एक्के धक्का में धराशायी हो गेल । अमर जी बुढ़ारी के भय से फिनु चुप्पी साधले रह गेलन आउ घरहेली घड़ी घरवली के कमर में खोंसल कमर-खोसनी के कुंजी के गुच्छा याद करके थरथराय लगलन ।)    (गमेंगा॰30.4; 32.16)
148    घेरा-घेरी (रंजन के अमेरिका जइतहीं बर-बरतुहारी से घर गरमाय लगल । सामाजिक घेरा-घेरी से सिन्हा साहेब के ऊब बरे लगल ।)    (गमेंगा॰45.8)
149    घोंघर (~ काटना) (लड़कन के सुत्तय के इंतजार करते-करते अपने घोंघर काटे लगलन ।)    (गमेंगा॰29.30)
150    घौर (= घौद) (की मजाल कि कोय तनिक अईंठ के चले उनका सामने । लेकिन आज तो सब कुछ उजड़ गेल हे । बच रहल हे खाली दूगो नरियर के पेड़ । चरचा करते-करते राम बाबू आउ सौकत देखलन कि नरियर के पेड़ घौरे-घौर फरल हे । ऊ दुन्नू घौर के देखइत एक दोसरा दने ताके लगलन आउ फेर चाय के पियाली में डूब गेलन ।)    (गमेंगा॰35.30, 31)
151    चंगलाल (अइसे तो आज भोरहीं से मदन जी चंगलाल हलन लेकिन पछली से उनकर नजर घड़ी पर चल जा हल । चरबज्जी गाड़ी के समय उनका मालूम हे ।)    (गमेंगा॰39.1)
152    चउन-भउन (अइसे तो आज भोरहीं से मदन जी चंगलाल हलन लेकिन पछली से उनकर नजर घड़ी पर चल जा हल । ... दरोजा पर कुरसी लगल हे लेकिन बइठे के मन नइ । एक गोड़ भीतर आउ एक बाहर करले हथ । चउन-भउन हो रहलन हल । बीच-बीच में घर के भीतर तलुक हो आवऽ हथ ।)    (गमेंगा॰39.6)
153    चपोतल (शादी हो गेल । कविता के विदागरी के समय समधी आउ लड़का के रुख बदल गेल हल । लेकिन लाजे-लिहाजे सब चपोतल रहल । कुछेक दिन बाद कविता के खत में टी॰वी॰ आउ फ्रीज के नक्शा आवे लगल ।)    (गमेंगा॰41.23)
154    चरबज्जी (~ गाड़ी) (अइसे तो आज भोरहीं से मदन जी चंगलाल हलन लेकिन पछली से उनकर नजर घड़ी पर चल जा हल । चरबज्जी गाड़ी के समय उनका मालूम हे । साइत आज कुछ लेट रहे - अइसन सोचके एगो लमहर साँस खींचइत तनि एन्ने-ओन्ने हिआवे लगऽ हथ ।)    (गमेंगा॰39.2)
155    चाह-नास्ता (शहर तो गाँव से जादे हिगराल नजर आल । बड़ी सोच-विचार के बदरु दायरा महल्ला में इमामवाड़ा के बगले में दोकान खोललक आउ चाह-नास्ता के काम शुरू कइलक ।)    (गमेंगा॰13.17)
156    चिट्ठी-चपाती (ई काम में चार चाँद लगावे के राज तो उनकर डायरी हल, जेकरा में ढेरोढेर नाम-ठेकान लिखलन हल । तनिको सन परिचय होलो कि उनकर नाम टाँक ले हलन । चिट्ठी-चपाती के काम विभाग वला काम के किनारे करके भी करते रहऽ हलन ।; नामी-गिरामी आदमी के चिट्ठी-चपाती जोगइले रहऽ हलन आउ आल-गेल आदमी के देखावे में कउनो चूक नइ करऽ हलन ।)    (गमेंगा॰4.10, 15)
157    चिन्हना (ऊ सड़क पर आके दूर तलुक हिअइलन । चार-पाँच आदमी के अइते देखलन तो चिन्हते देर नइ लगल । उनका अइसन लगे लगल जइसे कुटुम सब के गोड़ उनकर छाती पर रखा रहल हे ।)    (गमेंगा॰42.26)
158    चिन्हारो (लड़कावला तो मदन जी के नाज-नखड़ा, तड़क-भड़क से गुमसुम हो गेलन हल । ऊ मनसूबा बाँधले हलन कि बिना माँगले एतना मिलत कि लाम कइसे ? फेर बिना मावगले मिलवे करत तो चिन्हारो होना भी ठीक नइ । लेकिन विदागरी घड़ी सब मनसूबा पर पानी फिर गेल ।)    (गमेंगा॰42.4)
159    चिल्ला-चिल्ली (घर में बाल-बुतरु के साथे उनकर घरनी भी टी॰वी॰ पर क्रिकेट मैच देखे में मशगूल हली । उमंग से सउँसे परिवार चिल्ला-चिल्ली कर रहल हल ।)    (गमेंगा॰26.2)
160    चुकाय (= चूक) (ओकरा उमेद हे कि सउँसे परिवार लेल नेउता आबत । लेकिन अपन आउ उनकर परिवार के देखके ओकर मन कइसन तो हो जाहे । फिन ढाढ़स बान्हके सोचऽ हे कि अइसन परिवार में अइला-गेला पर परिवार के संस्कार बदलत । ई लेल अइसन मौका पर चुकाय नइ होवे के चाही ।)    (गमेंगा॰10.17)
161    चुभकी (बाग-बगइचा, आम-अमरुद आउ लीची-कटहर के सवाद तो आझो उनकर मुँह पनिया दे हे । उनका एक-एक चीज याद हे । मंगरुआ, बिनेसरा आउ मोहन के साथ नदी में चुभकी आउ बगइचा के नुक्काचोरी के कहानी तो पढ़ावे खनी भी उदाहरण में ठोकिये दे हलन ।)    (गमेंगा॰52.8)
162    चौकठा (= चौकठ) (अपन घर के अइसन हालत देखला पर कैलास, रस्तोगी साहेब, जैन साहेब, चड्ढा साहेब आउ अग्रवाल साहेब के कोठी आउ उनकर बाल-बच्चा के याद करे लगऽ हल । नावा कोठी के चौकठा पर उनकर परिवार के कउनो आदमी फिट नइ बइठऽ हल ।)    (गमेंगा॰9.31)
163    छँहुरी (नरायन बाबू पइसा, दुनिया के सुविधा आउ विलासिता के समान के मरम अब समझ गेलन हल कि बापो-बेटा के बीच में पइसा के झमेटगर पेड़ के छँहुरी में केतना रउद हे ।)    (गमेंगा॰3.18)
164    छइते (= के रहते या होते) (रोजी-रोजगार तो चलिए रहल हल लेकिन ओकर जिंदादिली के कारण खाली पइसे हल । की मजाल कि कैलास के छइते कउनो इयार-दोस्त के अपन धोकड़ी छूए पड़े ।)    (गमेंगा॰10.7)
165    छउँरापुता (होली तो अब बदरु के गियारिये में बझल रह जाहे । ओकर घरवली के मन जितिया-नाच देखे ले ललचऽ हल । होली के याद अइते तो बुढ़ारियो में मन-मिजाज बदले लगऽ हल । छउँरापुता केतना तंग करऽ हल ! हुरदंग ! अपनो घर रंगा जा हल ।)    (गमेंगा॰13.26)
166    छछनल (कहानी दरोजा पर के रहे या देवाल पर लगल बड़गो तख्ती के, भीतर के ठहरल हावा के रहे या अंगना में जमकल पानी के - सब में आदमी के छछनल परान आउ हकासल कंठ नजर आवत ।)    (गमेंगा॰ix.4)
167    छट्ठी-एतवार (कैलास बइठल-बइठल अपन गाँव के भोज-भइबी के याद करे लगल । पूजा से छट्ठी-एतवार सब मिलजुल के मनावऽ हे । पठरु पड़े, देवास लगे तो की मजाल कि टोला-टाटी के आदमी नइ आवे । अइसन संस्कार ओकरा गामे से मिलल हल ।)    (गमेंगा॰10.22)
168    छहुँरी (कैलास के तसर वला काम में तस्कर जइसन फल-फूल लगऽ हल । ओकर करखाना में बनल तसर के बड़ी खपत हे, हरदम माँग बनल रहऽ हे । देखते-देखते पइसा के पौधा एतना ने झमेटगर हो गेल कि सउँसे इलाका के बड़गो-बड़गो आदमी कैलास के छहुँरी में आवे लगल ।)    (गमेंगा॰8.17)
169    छान-छप्पर (माय-बाप तो दुन्नू के बात सुन-सुन के दम साधले टुकुर-टुकुर आसमाने हिअइते रहऽ हथ । अब तो बोले-बतिआय के नाम पर रात-दिन खाँसते रहऽ हथ । ऊ तो सोच रहलन हल कि बलेसरे-चनेसरे के साथ मोहनो खप जाय तो घर के छान-छप्पर बचल रह जात ।)    (गमेंगा॰36.17)
170    छाव (लेकिन देर रात जब ऊ अपन कोठी पर आवऽ हल तो परिवार के एक-एक आदमी के हुलिया आउ बात देख-सुनके ओकर सब निसा फट जा हल । घरनी अपन मगहियापन के छाव छोड़वे नइ करऽ हली । माय-बाप भी गाँव के याद में भुलाल रहऽ हलन ।)    (गमेंगा॰9.26)
171    छितराल (लंगो-तंगो आउ छितराल आदमी के पूरा-पूरा देखाय पड़े के लड़ाइये तो आज के आदमी के मजबूरी हे ।; सिन्हा साहेब तस्वीर के बेर-बेर देखलन आउ फेर ओकरा अपन घरवली के हाथ में देवे ले बढ़इलन कि उनकर घरवली के हाथ से तस्वीर छूट के गोदी में गिर गेल । सिन्हा साहेब छत पर छितराल गमला के गाछ में पानी देवे लगलन ।)    (गमेंगा॰xii.7; 46.30)
172    छुत्तक (= छुतका; सूतक) (कोय-कोय तो कह रहल हल कि अपनो फूफा के मरला पर भी नोह-नखुरी नइ करइलक हे । एतने में प्रसाद साहेब अइलन । भंडार में उनका हेले से मना कर देल गेल, काहे कि उनको नोह-नखुरी नइ होल हल । भोज के पंघत बइठते-बइठते तो सउँसे गाँव में चरचा होल कि बम्बेवली के भाय-भतीजा अइसन कि अपनो अदमी के कजा करला पर नोह-नखुरी नइ कइलक, छुत्तक नइ लेलक ... काहे नइ लेलक !)    (गमेंगा॰28.31)
173    छेड़ा-छाड़ी (बाहर पढ़े-लिखे वलन लड़का-लड़की के लिवास, बातचीत, हो-हुड़दंग आउ छेड़ा-छाड़ी तो फाटक आउ हवेली के उपरकी रोबदाब के मोलायम अनुवाद लगऽ हल । बदरु अपन गाँव के ई नक्शा तो सोचियो नइ सकऽ हल ।)    (गमेंगा॰12.6)
174    छोटका (~ भाय) (नौकरी के धउगा-धउगी के साथ मोहन के जिनगी में एक आउरो रिजल्ट हो गेल । खबर मिलते के साथ चनेसर-बलेसर के लड़कन मिठाय, कपड़ा-लत्ता लेले अपन छोटका भाय के देखे ले पहुँचल । एक-दू रोज अनजान नियन टिकल आउ तेसर दिन चाचा से विदा लेके लौट गेल ।)    (गमेंगा॰37.27)
175    छोटकी (~ बेटी) (उनकर छोटकी बेटी तो भाय के अमेरिका जाय के फैसला से एतना नितराय लगल हल कि लोग-बाग के लग रहल हल कि भाय से पहिले ओकरे जाय के हे ।; रंजन भीड़ से निकल के बाहर आ गेल । उत्साह से अगुआनी कइल गेल । छोटकी बहिन तो भाय में एकदम्मे लिपट गेल ।)    (गमेंगा॰43.15; 45.30)
176    छोटगर (ई सबके सब परदेसी अइसन हो गेलन हे । लेकिन हाँ, उनका में अभियो अपन शहर से जिला-जेवार तक के इतिहास आउ कभी अपन राज के नक्शा लेके ढेरोढेर चरचा करऽ हथ । बड़गर शहर में रहला के बाद भी ऊ सब में अपन छोटगर शहर के मोह बचल हे ।; जब लड़कन छोटगर हल तो भोरउकी चाय के साथ उनकर पारिवारिक जिनगी शुरू होवऽ हल । उनकर घरवली तो चाय के चस्का अपन नइहरे से लइलकी हल ।; दशहरा-पूजा के अवसर पर उनकर दुन्नू लड़कन पहाड़ आउ समुन्नर के जतरा पर निकललन हल । सक्सेना साहेब अइसने अवसर के तलाश में हलन । ऊ ग्राहक बोलाके अपन कोठी के बेच देलन आउ लगले एगो कम कीमतवला छोटगर मकान कीन लेलन ।)    (गमेंगा॰35.8; 47.8; 50.16)
177    छोट-बड़ (घर के सभे लोग भोरउकी चाय ले उनका तर जुमिए जा हलन । तखने दिन भर ले छोट-बड़ बात पर चरचा हो जा हल ।)    (गमेंगा॰48.5)
178    छोट-मोट (शारदा दीदी, मेहमान नरेश बाबू आउ उनकर बाबूजी मोखतार साहेब - तहियो एहे छोट-मोट परिवार हल । मोखतार साहेब के खुब्बे चलती हल । हाकिम-हुकुम आउ नामी-गिरामी लोग-बाग से बइठका रजगजाल रहऽ हल । रात-रात भर चौपाल ।)    (गमेंगा॰26.10)
179    छो-पाँच (ढेर रात गेला तक कैलास ओइसहीं छो-पाँच करते रहल । आखिर अपन गाँववला नौकर के बोलइलक आउ टेबुल साफ करे ले कहलक ।; अइसन बात सुनके बदरु दुन्नू परानी के होशे उड़ गेल । रात भर छो-पाँच करते रहल । कखनउँ नीन नइ आल ।)    (गमेंगा॰10.27; 14.23)
180    जउरे (= साथ-साथ, इकट्ठा) (नरायन बाबू तो देख रहलन हल कि बेटा-बहू के जोरु-मरदवला अपनो जिनगी दरकले नजर आवे हे । ऊ तो भगवान के किरपा हल कि दूगो लड़कन होल, जेकरा पोसे-पाले के जिम्मा दादे-दादी के हल । लड़कन जब इस्कूल से आवऽ हल त कखनो माय के हिस्सा में पड़ऽ हल त कखनो बाप के हिस्सा में । लड़कन के माय-बाप के साथ जउरे मिले के संजोग बड़ी कम्मे मिलऽ हल ।; क्लब, साहित आउ इयार-दोस जउरे कहकहा के रात तो उनकर सेहत के राज हल, लेकिन उनकर इहे सब आदत पर पुतहुन तो अइते के साथ अइँठ-जोंठ करे लगली हल ।)    (गमेंगा॰3.6; 49.6)
181    जगह-जमीन (आखिर उनकर बोल फूटल - "तो हम्मर हिस्सा-बखरा नइ हइ की ? एतना जगह-जमीन खरीदल गेल, ओकरा में भी तो हम्मर हिस्सा हइये ने हे ।")    (गमेंगा॰55.13)
182    जड़-जमीन (= जर-जमीन) ('रंजन के भारत लौटे के बात पर' सिन्हा साहेब बात काट रहलन हल । उनकर अपन इच्छा हल कि रंजन जड़-जमीन से जुड़ल रहे । जानल-पछानल घर में शादी होवइ से शान्ति के सपना सजावऽ हलन ।)    (गमेंगा॰45.12)
183    जनइ (= जाना, जाने की क्रिया) (गाँव वीरान भेल जा रहल हे आउ शहर फैल रहल हे । गाँव से शहर के जनइ मरीचिका के पीछू हरिन के दौड़ भे गेल हे ।)    (गमेंगा॰vi.15)
184    जन्नी (= औरत; पत्नी) (नौकरी की हल, बस भोरउकी से लेके साँझ तक मालिक-मलकीनी के आवाज पर नाचते रहऽ हल । भोरउकी चाय से लेके रात के रसोय तक के भार ओकरे पर हल । फेर लुग्गा-फट्टा सब ओकरे जिम्मे हल । जन्नी के कपड़ा साफ करे में ओकरा शरम लगऽ हल आउ मन तो गरान से भर जा हल ।)    (गमेंगा॰56.8)
185    जन्नी-मरद (बम्बेवली के भाय-भतीजा के नाम सुनके टोला-टाटी के जन्नी-मरद आउ बुतरुन से घर भर गेल । टुट्टल खटिया पर बिछल पुरान गेनरा पर बम्बेवली के भाय-भतीजन बइठल हलन ।)    (गमेंगा॰28.19)
186    जमकल (~ पानी) (कहानी दरोजा पर के रहे या देवाल पर लगल बड़गो तख्ती के, भीतर के ठहरल हावा के रहे या अंगना में जमकल पानी के - सब में आदमी के छछनल परान आउ हकासल कंठ नजर आवत ।)    (गमेंगा॰ix.3)
187    जमीन-जड़ (उनका तो जमीन-जड़ के मोह सतइले हल लेकिन अपनो देश में शादी-बियाह ले बदलल हवा-पानी के देख रहलन हल आउ उनकर लड़का तो विदेशी हवा में साँस ले रहल हल ।)    (गमेंगा॰45.20)
188    जर-जमीन (मुज्जू भाय बड़ी होशियारी से जर-जमीन के संजोगले हलन ।; मोहन के दुन्नू भाय बलेसर-चनेसर पुश्तैनी जर-जमीन आउ जायदाद के दाव पर लगाके मोहन के ऊँचगर से ऊँचगर पढ़ाय करावे ले कसमे खा लेलक हे ।)    (गमेंगा॰17.1; 36.12)
189    जलमउती (= जन्म) (कहानी तो कहानी हे, ई जलमउती हे आउ सिरजनहार के हाथ खाली सिरजन होवऽ हे, ऊ आम आउ खास दुन्नू बनावऽ हे ।; शादी-बियाह के साथे बेटा-बेटी विदेश के नागरिक हो गेल हल । लड़कन लेल अपन जलमउती देश के माने बाबूजी के बचल जिनगी के कुच्छेक दिन भर रह गेल हल ।)    (गमेंगा॰ix.18; 18.22)
190    जलमल (हिन्दी-उर्दू में हाथ से लिख-लिख के हैंडविल रातोरात बँटावऽ हलन । गुलामी जइसन हरफ तो उनका गारी मालूम पड़ऽ हल । ऊ कहऽ हलन कि आदमी आजादे जलमल हे । गुलामी आदमी आउ आदमी के मुँह पर तमाचा हे । उनकर सउँसे शहर आजादी के आग में झोंकाल हल ।; लाल बाबू बइठका में टँगल बाबूजी के फोटू निहारे लगलन । समय केतना तेजी से भागल, सोचवो नइ कइलन हल कि एतना जल्दी उनका नौकरी से मोहलत मिल जात । कलहीं के जलमल बेटी इस्कूल-कौलेज के सीमा नापते-नापते अपन गोड़ पर खड़ी हो गेल ।)    (गमेंगा॰15.15; 22.11)
191    जसन (= जश्न, जलसा) (एक दिन कैलास महानगर के इयार-दोस्त के सहजोग से कलकत्ता के साल्ट लेक में एगो बड़गो कोठी कीन लेलक । कोठी किनतहीं बड़ी धूमधाम से एगो जसन मनावल गेल । जसन की हल - राजसी ठाट-बाट के नक्शा उजागर करऽ हल । जसन के रंगत से आसपास के लोग चौंधिया गेलन ।)    (गमेंगा॰9.14, 15)
192    जान-पछान (गया सिंह रिक्शावला भी जाने-पछान के हे । ओहो कत्तेक भूलल बात बता के कुछ नया भी जोड़ दे हे ।; कहानी-कविता आउ गीतो-गजल लिखे लगलन । चार गो बड़ा आदमी से जान-पछान हइये हल । समुच्चे शहर में जहाँ कहीं सभा-गोष्ठी होवे तब उनका नेउता जरूर पड़ऽ हल ।)    (गमेंगा॰34.17; 40.21)
193    जाहिल (~ जमात) (कहीं-कहीं लड़की के उँचगर शिक्षा आउ नौकरी के सवाल पर अइसन बात सुने पड़ऽ हल कि उनकर तो होशे उड़ जा हल । जाहिल जमात में लड़की के उँचगर शिक्षा आउ कामकाजी होना भी केतना बेजा समझल जाहे । सगरो नारी-आन्दोलन फैलल हे ।)    (गमेंगा॰24.5)
194    जितिया (लखना के मरसिया सुनते बनऽ हे । ओहे सब के साथे-साथ बदरु मियाँ भी बड़ी रंग से उम्दा होली गावऽ हे । जितिया में एक तुरिया तो साड़ी पेन्ह के नाचलक भी ।)    (गमेंगा॰12.20)
195    जिम्मे (नौकरी की हल, बस भोरउकी से लेके साँझ तक मालिक-मलकीनी के आवाज पर नाचते रहऽ हल । भोरउकी चाय से लेके रात के रसोय तक के भार ओकरे पर हल । फेर लुग्गा-फट्टा सब ओकरे जिम्मे हल । जन्नी के कपड़ा साफ करे में ओकरा शरम लगऽ हल आउ मन तो गरान से भर जा हल ।)    (गमेंगा॰56.8)
196    जिला-जेवार ( ई सबके सब परदेसी अइसन हो गेलन हे । लेकिन हाँ, उनका में अभियो अपन शहर से जिला-जेवार तक के इतिहास आउ कभी अपन राज के नक्शा लेके ढेरोढेर चरचा करऽ हथ । बड़गर शहर में रहला के बाद भी ऊ सब में अपन छोटगर शहर के मोह बचल हे ।)    (गमेंगा॰35.6)
197    जुग-जमाना (ई कहानी सेंगरन में आज के जुग-जमाना में परिवार से समाज के बीच आपसी रिश्ता आउ संबंध में जे बदलाव आउ बिखराव हमर आँख के सामने झलक रहल हे, ओकर चित्र साफगोई के साथ उभारे के जे सजग कोसिस कइल गेल हे, ऊ दिल आउ दिमाग के झकझोर देहे ।)    (गमेंगा॰iv.5)
198    जेत्तक (= जेत्ता, जेतना; जितना) (गाँव गिर रहल हे, जेकर ढेला-ढक्कर पर नइका पौधा पाँख फैला रहल हे । ऊ पाँख चाहे जेतना सोहनगर लगे, लेकिन ओकरा सहारा देवे लेल जे बेयार सामने आ रहल हे ओकरा से पौधा के फल-फूल आउ हरियरी पर जानलेवा हमला मानल जाय । दरोजा पर देखावा के जेतना भी समान रहे, देवाल पर जेत्तक बड़ो तख्ती लगल रहे - भीतर तो एकदम उदास हे आउ सुक्खल रिश्ता पर घाव बजबजा रहल हे ।; पैसा के पौधा जेत्तक बड़गो होते जा रहल हे, जीवन-संबंध के कोमल लुहगर टूसा ओतने मरुआइल नजर आ रहल हे ।)    (गमेंगा॰viii.12; x.14)
199    जेत्तेक (= जितना ही) (मशीन जइसन काम करे में ओकरा जेत्तेक दिक्कत होवे, लेकिन बड़गो आदमी के साथ रहे से सुख-सुविधा भी मिलवे करऽ हल । जाड़ा में हाथ सेंके के हीटर, खाना बनावे के गैस-चुल्हा आउ कपड़ा साफ करेवली मशीन से ओकरा रोज साबका पड़ऽ हल । मालिक-मलकीनी के बाहर रहला पर महेश नहाय से लेके सोफा पर बइठे के भी अनुभव करऽ हल ।)    (गमेंगा॰56.11)
200    जेभी (= जेब) (सिगरेट के धुआँ आज मसान के धूआँ लगल जेकरा में कविता छटपटा रहली हे । मदन जी सिगरेट फेक देलन । नजर मकान पर फेंकलन तो लगल कि एक-एक अईटा से कविता बोल रहल हे - बाबू जी, सरिता के बियाह हमरा अइसन नइ करिहऽ । उनकर हाथ जेभी में चल गेल । सिगरेट तो खतम हो गेल हल ।)    (गमेंगा॰42.24)
201    जेह (= जे; जो) ('नइका तराजू' दहेज के विरुद्ध नारी-विद्रोह के एगो अइसन तराजू बनके रह गेल हे, जेह पर परम्परापोषित मतलबी समाज सुनीता के सामने उटंग हो जाहे ।)    (गमेंगा॰vii.12)
202    जेहमा (= जेकरा में; जिसमें) (कुल मिलाके 'गमला में गाछ' कहानी सेंगरन, मध्य, उच्च, कस्बाई आउ महानगरीय जीवन के प्रामाणिक दस्तावेजी एलबम बन गेल हे, जेहमा समाज के छवि साफ-साफ देखल-परखल जा सकऽ हे ।)    (गमेंगा॰vii.28)
203    झँपाल (कहीं लंगोटी में भी आदमी झँपाल हे आउ कहीं सोलहो सिंगार में भी उघार नजर आवऽ हे ।)    (गमेंगा॰x.25)
204    झकझकाना (रेलगाड़ी जब टिसन से खुलल तो गाड़ी आगे आउ उनकर मन पाछुए भाग रहल हल । नौकरी के शुरुआती दिन से लेके रिटायर होवे तक के फोटू झकझकाय लगल ।)    (गमेंगा॰52.28)
205    झमाना (किरायावला मकान में जाय ले घर के समान लॉरी में लदे लगल । कुछ समान रिक्शो में जाय के हल । लड़कन आउ उनकर घरवली रिक्शा के पाछू-पाछू चल रहलन हल । उनकर घरवली अचानक झमाके सड़क पर गिर गेली ।)    (गमेंगा॰32.26)
206    झमेटगर (= झमठगर) (नरायन बाबू पइसा, दुनिया के सुविधा आउ विलासिता के समान के मरम अब समझ गेलन हल कि बापो-बेटा के बीच में पइसा के झमेटगर पेड़ के छँहुरी में केतना रउद हे ।; कैलास के तसर वला काम में तस्कर जइसन फल-फूल लगऽ हल । ओकर करखाना में बनल तसर के बड़ी खपत हे, हरदम माँग बनल रहऽ हे । देखते-देखते पइसा के पौधा एतना ने झमेटगर हो गेल कि सउँसे इलाका के बड़गो-बड़गो आदमी कैलास के छहुँरी में आवे लगल ।)    (गमेंगा॰3.17; 8.16)
207    झोंकाल (हिन्दी-उर्दू में हाथ से लिख-लिख के हैंडविल रातोरात बँटावऽ हलन । गुलामी जइसन हरफ तो उनका गारी मालूम पड़ऽ हल । ऊ कहऽ हलन कि आदमी आजादे जलमल हे । गुलामी आदमी आउ आदमी के मुँह पर तमाचा हे । उनकर सउँसे शहर आजादी के आग में झोंकाल हल ।)    (गमेंगा॰15.16)
208    टँगल (लाल बाबू बइठका में टँगल बाबूजी के फोटू निहारे लगलन । समय केतना तेजी से भागल, सोचवो नइ कइलन हल कि एतना जल्दी उनका नौकरी से मोहलत मिल जात । कलहीं के जलमल बेटी इस्कूल-कौलेज के सीमा नापते-नापते अपन गोड़ पर खड़ी हो गेल ।)    (गमेंगा॰22.9)
209    टभकना ('ओढ़ल जिनगी के जखम' तब आउ टभकऽ हे जब बाप अपन बेटी के सुख के जगह पर धुइयाँ के समाचार सुनऽ हे ।)    (गमेंगा॰vii.15)
210    टर-टिसनी (टर-टिसनी के बासी पइसा आउ घरवलन के बेहवार ओकरा एगो इस्कूल खोले लेल मजबूर कर देलक । इस्कूल के सइनबोड चढ़ गेल । मोटगर अच्छर में लिखइलक - "शिक्षा का माध्यम अंगरेजी, हम सुनहले भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं । प्रतियोगिताओं में सफलता की गारंटी ।")    (गमेंगा॰38.6)
211    टिसनी (= ट्यूशन) (सुनील अपन ससुरार वला के बोलहटा पर कलकत्ता चल गेल अउ अनिल कानपुर । सुनील के ससुरारवला ओकरा टिसनी पकड़ा देलकन । महल्ला के बाल-बुतरू के साथे-साथ घरो के लड़कन के पढ़ावे लगल ।; मोहन लेल ससुरार बसिया रहल हल । घरवली भी भर मुँह बोले में हिचके लगली । मोहन हिन्दी माध्यम के हल तो घरवली अंगरेजी माध्यम के । नौकरी लेल मोहन हाथ-गोड़ चला-चला के अब थक रहल हल । ऊ अब अपन जिनगी के जुगाड़ लेल टिसनी के बात सोचे लगल । हिन्दी में टिसनी पढ़वइया तो विरले भेटऽ हे । लड़कन के अंगरेजी पढ़ावे लेल अभियो आपाधापी हे । ढेरो खोजा-खोजी पर कुछ घर में टिसनी के जुगाड़ बइठल, लेकिन दोसरो विषय के अध्ययन मोहन लेल जरूरी हो गेल ।)    (गमेंगा॰23.7; 37.32; 38.1, 2)
212    टीसन (गाड़ी टीसन पर रुकल । अभी उनका ढेर दूर जाय के हल । उनका चाय के तलब होल ।; घर जायवला टीसन पर उतरके बजार में हेलला कि उनका गाँव के आदमी मिले लगल । हाल-चाल आउ पूछताछ में ऊ सबसे कहथ कि अब हम गामे में रहम ।; एक दिन भोरे राजो जी फूआ आउ जंग लगल उनकर टीन वला बक्सा आउ अपन अटैची लेले टमटम पर सवार होके टीसन दने चल देलन ।)    (गमेंगा॰53.22; 54.3; 55.28)
213    टुटनइ (सेंगरन के कहानी 'हकासल कंठ' के नरायन बाबू के संजोगल सपना पइसा के घनघोर बरसात में बह जाहे आउ उनकर कंठ हकासल के हकासले रह जाहे । 'संजोगल सपना' के रामसेवक बाबू भी हथ । उनको एगो सपना हल, मतलबी के सपना, जेकरो टुटनइ देखल जा सकऽ हे ।)    (गमेंगा॰vi.12)
214    टुट्टल (जब देस में जादी के अन्धड़ आल तो हवेली आउ फाटक के अईंटा छितरा गेल, खाली रह गेल बदरु मियाँ जइसन टुट्टल छान-छप्पर ।)    (गमेंगा॰13.2)
215    टुट्टल-फुट्टल (भोज के दिन प्रसाद बाबू हपन बुतरुन के साथ बड़कागाम पहुछलन । घर पहुँचते के साथ शारदा दीदी के पास गेला आउ गोड़ छुलका । दीदी तो नालन्दा के मूरुत जइसन टुट्टल-फुट्टल गुमसुम हली ।)    (गमेंगा॰28.14)
216    टूसा (पैसा के पौधा जेत्तक बड़गो होते जा रहल हे, जीवन-संबंध के कोमल लुहगर टूसा ओतने मरुआइल नजर आ रहल हे ।)    (गमेंगा॰x.16)
217    टेपरिकाडर (किसिम-किसिम के फोटू घर में आ गेल, जेकरा ढेरोढेर देर तलुक हिअइला पर भी कोय माने नइ निकलऽ हल । टेपरिकाडर पर के गाना तो उनकर समझ के बाहरे हल । नवका संगीत के सामने पूजा के शंख के आवाज दबे लगल । हवन-हुमाद के सुगंध तो इतर के फुचकारी के सामने गंधहीन होइये रहल हल ।)    (गमेंगा॰31.19)
218    टोला-टाटी (कैलास बइठल-बइठल अपन गाँव के भोज-भइबी के याद करे लगल । पूजा से छट्ठी-एतवार सब मिलजुल के मनावऽ हे । पठरु पड़े, देवास लगे तो की मजाल कि टोला-टाटी के आदमी नइ आवे । अइसन संस्कार ओकरा गामे से मिलल हल ।; बम्बेवली के भाय-भतीजा के नाम सुनके टोला-टाटी के जन्नी-मरद आउ बुतरुन से घर भर गेल । टुट्टल खटिया पर बिछल पुरान गेनरा पर बम्बेवली के भाय-भतीजन बइठल हलन ।; घर पहुँचते के साथ ओकर होश-हवास हवा हो गेल हल । ओकर घरवली के टोला-टाटी वलन मिलके अस्पताल ले गेलन हल । महेश तेजी से अस्पताल पहुँचल ।)    (गमेंगा॰10.23; 28.19; 58.25)
219    टोला-महल्ला (= टोला-मोहल्ला) (दुआर पर जब बरात लगल हल तो टोला-महल्ला के आँख टँगले रह गेल । मारे गाजा-बाजा आउ मोटरगाड़ी से अइसन बरात तो महल्ला लेल एकदम नावा हल । शादी के महिनो-महिना बाद चरचा के विषय बनल रहल ।)    (गमेंगा॰41.17)
220    टोला-मोहल्ला (= टोला-महल्ला) (घर में चहल-पहल बढ़ल हल । टोला-मोहल्ला के एक-दू आदमी आके अपन घर नियन काम-धाम कर रहलन हल ।)    (गमेंगा॰40.6)
221    ठंढगर (साहेब के कोठी के सब सुख-सुविधा अब महेश के जिनगी के हिस्सा हो गेल हल । जाड़ा तो कउनो सूरत से कट जा हल, मुदा गरमी तो अब बरदासे नइ होवऽ हल । कहाँ साहेब के घर पर के फ्रीज के पानी, पंखा आउ लूक चले वला दिन में भी ठंढगर भित्तर ।)    (गमेंगा॰57.10)
222    ठहरल (कहानी दरोजा पर के रहे या देवाल पर लगल बड़गो तख्ती के, भीतर के ठहरल हावा के रहे या अंगना में जमकल पानी के - सब में आदमी के छछनल परान आउ हकासल कंठ नजर आवत ।; रामसेवक बाबू के सोभाव से लोगबाग परिचित हथ । जब कउनो उहापोह के समय आवे हे तब ऊ कूआँ के निरार पर बइठ के ओकर ठहरल पानी के देर-देर तक हिअइते रहऽ हथ ।)    (गमेंगा॰ix.2; 4.3)
223    ठोनाबादी (बदरु के लड़कन के निकाह-बियाह होतहीं घर के नक्शा बदल गेल आउ कुच्छे बच्छर में अँगना गूँजे लगल । गोतनी में मुँह-फुलउअल आउ ठोनाबादी होतहीं रहऽ हल । कखनऊँ-कखनऊँ भाइयो में झगड़ा हो जा हल ।; तब भी राजो जी के मन गाँव में लगिये रहल हल । एकरा सवाद के फेर कहऽ या उनकर प्रकृति । एक दिन भतिज-पुतोह आउ उनकर भोजाय में ठोनाबादी होल । बात बढ़ते गेल आउ फेर तो भाय, फूआ आउ राजो जी भी लपटा गेला ।)    (गमेंगा॰14.3; 55.9)
224    ठोर (= होंठ) (कैलास लेल कलकत्ता अब अनुभुआर अइसन नइ लगे हे । ओकर पुस्तइनी रोजगार के जड़ तो गामे में हे, लेकिन खरीदार महानगरे में हे । ओकर बढ़ंती देखके तो गाँववला के भी सक-सुभा होवऽ हे । लोग समझऽ हथ कि एतना पइसा जोड़े भर तो कैलास पढ़लो नइ हे । अब लाख-लीख के बात तो ओकर ठोरे पर रहऽ हे ।; नरेश बाबू के मउगत के खबर प्रसाद साहेब के ठोरे पर रह गेल । ऊ सउँसे बोझ अपने मन पर लादले किरिया-करम के आखिर दिन ले जोड़-घटाव करे लगलन ।)    (गमेंगा॰8.4; 26.29)
225    डाकपीन (= डाकिया) (आज देर तलुक इमामबाड़ा के चबूतरा पर बइठ के आकाश दने ताक रहलन हल कि डाकपीन उनकर हाथ में खत थमा देलक ।)    (गमेंगा॰17.22)
226    डाकबाबा (जसन के रंगत से आसपास के लोग चौंधिया गेलन । फेर गाँव आके भी एगो भोज भेल । पूजा-पाहुर कइलक । गाँव-गोरइया से लेके डाकबाबा आउ डिहवाल के चढ़ावा चढ़ल । भगत से फुलधरिया तक अघा गेल ।)    (गमेंगा॰9.17)
227    डिजैन (= डिजाइन, design) (कुच्छे दिन में पइसा-कउड़ी के धमार सामने आवे लगल । हर बेरा नया-नया डिजैन के गाड़ी-जीप दरोजा पर लग जा हल आउ अब तो बड़गो क्लिनिक खोले ले ढेरो जमीन कीनके नयकी कोठी नाध देलन हल ।)    (गमेंगा॰2.21)
228    डिढ़ारी (= डिड़ारी; रेखा, लाइन) (एकरा देखनइ हे तो अदीप के 'बिखरइत गुलपासा' देखल जा सकऽ हे । 'बिखरइत गुलपासा' मगही कहानी साहित के दुआर पर एगो जोरदार धमाका हल । तब लगे लगल हल कि मगही कहानी खिस्सा के परिभाषा से ऊपर आ गेल हे । फेर तो एगो लमहर डिढ़ारी खिंचा गेल ।)    (गमेंगा॰ix.10)
229    डिहवाल (जसन के रंगत से आसपास के लोग चौंधिया गेलन । फेर गाँव आके भी एगो भोज भेल । पूजा-पाहुर कइलक । गाँव-गोरइया से लेके डाकबाबा आउ डिहवाल के चढ़ावा चढ़ल । भगत से फुलधरिया तक अघा गेल ।)    (गमेंगा॰9.17)
230    ढेरकुनी (= बहुत सा) (ई माने में अदीप जी के कहानी संग्रह 'गमला में गाछ' पाठक से सम्वाद स्थापित करइत अपन समय के ढेरकुनी छवि जिंदा कर दे हे, जेकर चेहरा पर लिखल जिनगी के भागम-भाग आउ दुख-दरद के साफ-साफ हरफ में लिखल इतिहास पढ़ल जा सकऽ हे ।)    (गमेंगा॰v.8)
231    ढेरोढेर (अनिल दुनिया भर के जाँच-पड़ताल करवा देलक हल । भेलउर के नामी-गिरामी डाक्टर के नाम ढेरोढेर चिट्ठी-पतरी लाके धर देलक हल । साथे जाय लेल एगो कम्पोटर के तइयार कर देवल गेल हल ।; ई काम में चार चाँद लगावे के राज तो उनकर डायरी हल, जेकरा में ढेरोढेर नाम-ठेकान लिखलन हल । तनिको सन परिचय होलो कि उनकर नाम टाँक ले हलन ।; मुजफ्फर मियाँ अपन आगू-पाछू ढेरोढेर नाम सुनइत-सुनइत अब सउँसे इलाका में मुज्जु भाय बनल के रह गेलन हल । जमींदारी घड़ी मुजफ्फर बाबू, फिनु खान साहेब आउ मुजफ्फर साहेब तो लमहर घड़ी तलुक बनल रहलन ।; बिहारशरीफ आवइवली बस में मिसमाँमीस भीड़ । ... बिहारशरीफ पहुँचके होटल खोजे में देरी नइ लगल । ढेरोढेर होटल के बोड बस अड्डे पर लगल हल ।)    (गमेंगा॰3.23; 4.9; 15.1; 27.16)
232    ढेलवा (~ गुड़) (बम्बेवली के भाय-भतीजा के नाम सुनके टोला-टाटी के जन्नी-मरद आउ बुतरुन से घर भर गेल । टुट्टल खटिया पर बिछल पुरान गेनरा पर बम्बेवली के भाय-भतीजन बइठल हलन । एगो थरिया में फरही आउ ढेलवा गुड़ आल ।)    (गमेंगा॰28.22)
233    ढेला-ढक्कर (गाँव गिर रहल हे, जेकर ढेला-ढक्कर पर नइका पौधा पाँख फैला रहल हे । ऊ पाँख चाहे जेतना सोहनगर लगे, लेकिन ओकरा सहारा देवे लेल जे बेयार सामने आ रहल हे ओकरा से पौधा के फल-फूल आउ हरियरी पर जानलेवा हमला मानल जाय ।)    (गमेंगा॰viii.6)
234    तखनई (= तखनहीं, तखने; उसी क्षण) (भाय लोग अइतहीं एगो फैसला कइलक । एक-एक पखवारा दोकान अपन-अपन हिकमत से चलावल जाय । नफा-नोकसान के भागी चलावेवला होत । तखनई दोसर कहलक - जे दोकान चलावत ऊ घड़ी अब्बा आउ अम्मी के बुतात ओहे देत । दोसर रिक्शा चलावे या ठेला, ओकरा कोय मतलब नइ ।)    (गमेंगा॰14.19)
235    तनखाह (= वेतन, मुसहरा) (मास्टर साहेब बड़का लड़का के नौकरी के जोगाड़ बइठा देलन हल । नौकरी में घुसतहीं मास्टर साहेब परिवार के ऊँच-नीच के बात ओकरा समझावे लगलन हल । घर-परिवार के बोझ-बखरा लड़का के पहिलके तनखाह के साथ कर देलन हल । बेआरल लड़का घर-परिवार के बात की समझत ? अभियो मास्टर साहेब के नौकरी बचल हल, ई लेल घर के बात घरहीं रह जा हल ।)    (गमेंगा॰5.15)
236    तन्नोतराज (फूआ ई जानके खुश होल कि राजो जी अब गामे में रहतन । बेचारी तो भाय-भतीजन आउ उनकर सब के घरवली से एकदम तन्नोतराज हो गेली हल । खाय-पीये के तो कउनो ठेकाने नइ हल । लूगा-फट्टा फींचे के बाते छोड़ द ।)    (गमेंगा॰54.21)
237    तफड़का (जब लड़कन पहाड़ पर वला इस्कूल में पढ़े लगल त ओकरा लावे-पहुँचावे के काम कम्पोटरे करे लगल । नरायन बाबू के एकरा से तकलीफ होवऽ हल । लेकिन अनिल समझावऽ हल कि क्लिनिक छोड़ना ठीक नइ हे, काहे कि क्लिनिक में तफड़का पड़ला से जमे में ढेर दिन लगऽ हे ।; रोजी-रोजगार के भाग-दौड़ में घर बड़ी आगू निकल गेल, अंगना-ओसरा से देवाल तक चकचका गेल, लेकिन अपन बूढ़ माय-बाप के साथे-साथ बुतरून के सोभाव में कोय तफड़का नइ पड़ल ।; घरनी अपन मगहियापन के छाव छोड़वे नइ करऽ हली । माय-बाप भी गाँव के याद में भुलाल रहऽ हलन । खाली बुतरून खातिर कलकतिया फैशन नीमन लगऽ हल, लेकिन बोल-चाल आउ रहन-सहन में नामे मंतर के तफड़का पड़ल हल ।)    (गमेंगा॰3.12; 9.7, 28)
238    तफरका (= तफड़का) (बेटा-बेटी के संबंध में जे तफरका मानल जाहे, अमर बाबू ओकरा गलत कहे लगला । बेटी जलमते त घर के रंगे उड़ जाहे, लेकिन बेटा तो दिन-रात घर के कूढ़न बनल रहे हे ।)    (गमेंगा॰30.25)
239    तय-तमन्ना (रामसेवक बाबू लड़की के बियाह तय करके समझला कि गंगा नहा गेलूँ । सब कुछ तय-तमन्ना होला पर रामसेवक बाबू डाक्टरी पढ़इत अपन बेटा के खबर कइलन हल ।)    (गमेंगा॰5.25)
240    तर-ताबीज (समय जइते की देर लगऽ हे ? सक्सेना साहेब के घर भी गुंजार करे लगल । उनका दुन्नू परानी खातिर अब मिठगर दिनचर्या हो गेल हल । उनकर घरवली तो दुनिया भर के तर-ताबीज से पोता-पोती के हाथ आउ गियारी भर देलकी हल ।)    (गमेंगा॰49.11)
241    तर-तेहवार (कैलास अपन गाँव के इयार-दोस लेल जान बिछइले रहऽ हल । बर-बीमारी में तो हाथ खोल दे हल । तर-तेहवार खूब जोश-खरोश से मना के समूचे गाँव के चौंधिया दे हल ।)    (गमेंगा॰8.21)
242    तराउपरी (गाँव जब शहर में गोड़ रोपऽ हे तब ऊ अपन पछान खातिर लमहर धाप रखऽ हे, जेकरा से लमहर लकीर खिंचा जाय, लेकिन ओकर गोड़ में शहर के बेड़ी पड़ल हे । फेर पुरनकी हवेली तो खाली हवाखोरी के जगह अइसन देखाय पड़ऽ हे आउ नइकी इमारत मुँह बिजका-बिजका के ओकरा चिढ़ावे लगे हे । अदीप ई तराउपरी के तह के छू रहलन हे ।)    (गमेंगा॰ix.34)
243    तराऊपरी (बिहारशरीफ आवइवली बस में मिसमाँमीस भीड़ । बस के भीतर बिछल बेंच । जातरी के तराऊपरी । लड़कन तो भीतर से तिलमिला गेल ।)    (गमेंगा॰27.13)
244    तरेगन (= तरिंगन; तारा) (अपन तंगी के हाल पर एतना ने दुख होल कि सब कविता-कहानी के भीतर तरेगन देखाय पड़े लगल । लड़की तो ससुरार जाहीं लेल तैयार नइ होवऽ हल ।)    (गमेंगा॰42.10)
245    तलुक (= तलक) (भोर से लेके दूपहर हो गेल । साँझ तलुक कोय नइ आल तब कैलास अपन दरोजा पर कुरसी लगाके बैठ गेल ।; अपन लड़कन साथ बदरु दोकान में एतना ने रम गेल कि कखनउँ मोहलत नइ । भोर से साँझ तलुक ऊ भीड़ में बझल रहऽ हल ।; मुजफ्फर मियाँ अपन आगू-पाछू ढेरोढेर नाम सुनइत-सुनइत अब सउँसे इलाका में मुज्जु भाय बनल के रह गेलन हल । जमींदारी घड़ी मुजफ्फर बाबू, फिनु खान साहेब आउ मुजफ्फर साहेब तो लमहर घड़ी तलुक बनल रहलन ।; मुज्जू भाय खानदानी कब्रिस्तान दने रोजे टहले जा हलन । पुरखन के मजार देर तलुक हिअइते रहऽ हलन । फिनु इमामबाड़ा के चबूतरा पर सुस्ताय लगऽ हलन ।)    (गमेंगा॰10.18; 13.18; 15.4; 17.19)
246    तसर (= एक प्रकार का मोटा रेशम) (कैलास के तसर वला काम में तस्कर जइसन फल-फूल लगऽ हल । ओकर करखाना में बनल तसर के बड़ी खपत हे, हरदम माँग बनल रहऽ हे ।)    (गमेंगा॰8.13, 14)
247    तहिया (टेलिग्राम के ऊ बेर-बेर पढ़ रहलन हल । ओहे छोट कागज पर नरेश बाबू के सउँसे जिनगी के नक्शा अलबन जइसन झलके लगल । प्रसाद साहेब तहिया बुतरुए हलन । शारदा दीदी के बियाह केतना लकधक से होल हल । टेलिग्राम के कागज धोकड़ी में रखके ऊ औफिस से निकल गेलन ।; तहिया साहेब के शादी के सालगिरह हल । कोठी तो देवाली जइसन सजवल गेल हल । खान-पियन के तैयारी खातिर कउनो बड़गो होटल से आदमी आल हल । बेर-बेर महेश के किसिम-किसिम के हिदायद देवल जा रहल हल ।)    (गमेंगा॰25.5; 58.1)
248    तहियाना (जइसे-जइसे रिटायर होवे के दिन नजीक आवे लगल, राजो बाबू अपन सर-समान तहियावे लगलन हल । धीरे-धीरे करके सब समान राँची भेज देलका ।)    (गमेंगा॰53.17)
249    तहियो (अब तो कराँची से कलीम के चिट्ठी भी दिल के दहलावे लगल हल । रोज-रोज दंगा-फसाद । अपन मुलुक छोड़ला पर गंजन सामने आवे लगल । मुज्जू भाय तो तहियो समझइलन हल कि हियाँ अइसन चैन कउनो देश में नइ भेंटत ।; शारदा दीदी, मेहमान नरेश बाबू आउ उनकर बाबूजी मोखतार साहेब - तहियो एहे छोट-मोट परिवार हल । मोखतार साहेब के खुब्बे चलती हल । हाकिम-हुकुम आउ नामी-गिरामी लोग-बाग से बइठका रजगजाल रहऽ हल । रात-रात भर चौपाल ।)    (गमेंगा॰17.13; 26.9)
250    तिलक-दहेज (सामाजिक, राजनीतिक चरचा के गरमा-गरमी बहस तो एगो हिस्सा हो जा हल । तिलक-दहेज से शादी-बियाह के रीति-रिवाज के बात उठऽ हल तब लाल साहेब अपन बुतरून के बियाह पर लेल फैसला से संतोख के साँस ले हलन ।; सुनीता अपन बियाह लेल किसिम-किसिम के नाटक देखते ऊब गेल हल । कामकाजी लड़की होला पर भी हरदम ओहे नाटक, ओहे तिलक-दहेज के बात । बेचारी चुप रह जा हल तो खाली बाप-माय के भावना के धियान धरके ।)    (गमेंगा॰18.17; 24.11)
251    तीज-तेहवार (शहर तो ने मालूम केतना जगह से दरकल हे । गाँव में तीज-तेहवार, जितिया-होली से ईद-बकरीद में साथे-साथ रंग खिलऽ हे । शहर में कउनो तेहवार नइ अइलो की भोंपू बज गेलो ।)    (गमेंगा॰13.28)
252    तुरिया (= तुरी; बार) (लखना के मरसिया सुनते बनऽ हे । ओहे सब के साथे-साथ बदरु मियाँ भी बड़ी रंग से उम्दा होली गावऽ हे । जितिया में एक तुरिया तो साड़ी पेन्ह के नाचलक भी ।)    (गमेंगा॰12.20)
253    तेउरी (= तेवर, त्योरी) (बेटन के तेउरी तो उनका बुढ़ारियो में नइ छोड़त । ऊ मनेमन रिटायर के बाद वला पेंसन के पास भी पहुँचे लगलन हल । कौन जाने कि बेटा लोग बुढ़ारी लेल मिलल सरकारी सुविधा के अपन औकाते में जोड़ले रहे ।; आफिस से आके अमर जी कपड़ा-लत्ता बदल बिस्तरा पर लोघड़ा के अखबार पढ़े लगलन । अखबार के खबर कभी-कभी उनका तेउरी बदल दे हल ।)    (गमेंगा॰31.29; 32.8)
254    तेसर (= तीसरा) (आज देर तलुक इमामबाड़ा के चबूतरा पर बइठ के आकाश दने ताक रहलन हल कि डाकपीन उनकर हाथ में खत थमा देलक । दू खत तो उनकर बेटन के हल । तेसर कराँची से कलीम के ।; कहीं तेसर महिना में कविता लौट के नइहरा आल तो सास-ससुर आउ परिवार सब के ओलहन-परतर से माय-बाप के अवगत करा देलक ।)    (गमेंगा॰17.23; 42.6)
255    तेहवार (= त्योहार) (शहर तो ने मालूम केतना जगह से दरकल हे । गाँव में तीज-तेहवार, जितिया-होली से ईद-बकरीद में साथे-साथ रंग खिलऽ हे । शहर में कउनो तेहवार नइ अइलो की भोंपू बज गेलो ।)    (गमेंगा॰13.29)
256    तौला-तौली (बाहर पढ़े-लिखे वलन लड़का-लड़की के लिवास, बातचीत, हो-हुड़दंग आउ छेड़ा-छाड़ी तो फाटक आउ हवेली के उपरकी रोबदाब के मोलायम अनुवाद लगऽ हल । बदरु अपन गाँव के ई नक्शा तो सोचियो नइ सकऽ हल । ऊ फल-तरकारी के तौला-तौली में दाय-माय से बेगम-बीबी आउ लड़का-लड़की के बात जानइ ले छेड़छाड़ करते रहऽ हल ।)    (गमेंगा॰12.8)
257    दने (बँटवारा के बात बदरु मियाँ ले साँप-बिच्छा के जहर जइसन बदहोश करेवाला माने रखऽ हल । लड़कपन में ओकर बाप बड़का फाटक आउ हवेली दने जाय से मना करऽ हल । लेकिन तखने अपन बाप के मनाहट के माने ओकर समझ में अयवे नइ करऽ हल ।)    (गमेंगा॰11.3)
258    दमाद (लाल बाबू के दुन्नू लड़कन के बियाह बिना नौकरियो-धंधा के हो गेल । ससुराल वलन अपन-अपन दमाद के नौकरी के भरोसा दिला के लाल बाबू निहचित करा देलकन हल । सुनील अपन ससुरार वला के बोलहटा पर कलकत्ता चल गेल अउ अनिल कानपुर ।)    (गमेंगा॰23.4)
259    दरकनइ (= दरकना, दरार पैदा होना) (जब आदमी समाज से बिखर के अपन छाती पर हाथ रखे लगल तब ओकरा अइसन बुझाल कि ऊ भीतर से मसुआइल हे, खुंडी-खुंडी हे आउ कतरल हे कत्तेक जगह से । आदमी के समेटल आदमीयत के देवाल दरकल हे, धोखड़ल हे । ई दरकनइ से बनल दरार से देखला पर ओकर भीतर के गुम्मी भी गुनगुनाइत नजर आ रहल हे ।)    (गमेंगा॰viii.27)
260    दरकल (जब आदमी समाज से बिखर के अपन छाती पर हाथ रखे लगल तब ओकरा अइसन बुझाल कि ऊ भीतर से मसुआइल हे, खुंडी-खुंडी हे आउ कतरल हे कत्तेक जगह से । आदमी के समेटल आदमीयत के देवाल दरकल हे, धोखड़ल हे ।; नरायन बाबू तो देख रहलन हल कि बेटा-बहू के जोरु-मरदवला अपनो जिनगी दरकले नजर आवे हे । ऊ तो भगवान के किरपा हल कि दूगो लड़कन होल, जेकरा पोसे-पाले के जिम्मा दादे-दादी के हल ।; शहर तो ने मालूम केतना जगह से दरकल हे । गाँव में तीज-तेहवार, जितिया-होली से ईद-बकरीद में साथे-साथ रंग खिलऽ हे । शहर में कउनो तेहवार नइ अइलो की भोंपू बज गेलो ।)    (गमेंगा॰viii.26; 3.3; 13.28)
261    दरोजा (गाँव गिर रहल हे, जेकर ढेला-ढक्कर पर नइका पौधा पाँख फैला रहल हे । ऊ पाँख चाहे जेतना सोहनगर लगे, लेकिन ओकरा सहारा देवे लेल जे बेयार सामने आ रहल हे ओकरा से पौधा के फल-फूल आउ हरियरी पर जानलेवा हमला मानल जाय । दरोजा पर देखावा के जेतना भी समान रहे, देवाल पर जेत्तक बड़ो तख्ती लगल रहे - भीतर तो एकदम उदास हे आउ सुक्खल रिश्ता पर घाव बजबजा रहल हे ।; कुच्छे दिन में पइसा-कउड़ी के धमार सामने आवे लगल । हर बेरा नया-नया डिजैन के गाड़ी-जीप दरोजा पर लग जा हल आउ अब तो बड़गो क्लिनिक खोले ले ढेरो जमीन कीनके नयकी कोठी नाध देलन हल ।; भोर से लेके दूपहर हो गेल । साँझ तलुक कोय नइ आल तब कैलास अपन दरोजा पर कुरसी लगाके बैठ गेल ।)    (गमेंगा॰viii.10; 2.22; 10.19)
262    दलान (कैलास अपन गाँव के इयार-दोस लेल जान बिछइले रहऽ हल । बर-बीमारी में तो हाथ खोल दे हल । तर-तेहवार खूब जोश-खरोश से मना के समूचे गाँव के चौंधिया दे हल । इयार-मीत, हित-कुटुम्ब से दलान भरल रहऽ हल आउ चुल्हा कखनऊँ ठंढइवे नइ करऽ हल ।)    (गमेंगा॰8.22)
263    दहकल (~ आग) (घर के आर्थिक लाचारी सुनीता लेल लाभकारिए रहल । पढ़ाय के सिलसिला कहियो नइ रुकल । लाल बाबू सुनील आउ अनिल दने से धियान हटाके बेटी के निमाहे के बात सोच रहलन हल । सुनीता के बियाह लेल हाथ-गोड़ मारऽ हलन लेकिन दहेज के दहकल आग से झौंसा-झौंसा के घरे लौट आवऽ हलन ।)    (गमेंगा॰24.2)
264    दही-भूरा (पहिले पंघत में प्रसाद साहेब अपन लड़कन के बइठा देलका । गउआँ अपन लोटा लेले आ जुमलन हल । पत्तल बिछल । पूड़ी, तियन, साग आउ अंत में दही-भूरा । लड़कन लेल तो एकदम्मे अजुबा लग रहल हल ।)    (गमेंगा॰29.7)
265    दाय-माय (बाहर पढ़े-लिखे वलन लड़का-लड़की के लिवास, बातचीत, हो-हुड़दंग आउ छेड़ा-छाड़ी तो फाटक आउ हवेली के उपरकी रोबदाब के मोलायम अनुवाद लगऽ हल । बदरु अपन गाँव के ई नक्शा तो सोचियो नइ सकऽ हल । ऊ फल-तरकारी के तौला-तौली में दाय-माय से बेगम-बीबी आउ लड़का-लड़की के बात जानइ ले छेड़छाड़ करते रहऽ हल ।)    (गमेंगा॰12.8)
266    दिक्कतदारी (महेश के बड़गो दिक्कतदारी तो ई हल कि नौकरी लगे के पहिले हीं बियाह कर लेलक हल आउ लगले बुतरुओ हो गेल हल । बियाह आउ बुतरु के बाप बने तलुक तो मत पूछऽ, रोजे-रोज ओकरा मुसीबत से मुलकात होते रहऽ हल ।)    (गमेंगा॰56.1)
267    दिनादिनी (उनका मालुम हो गेल कि गाँव ऊ गाँव नइ रहल । हियाँ भी दिनादिनी लूट-पाट, मार-पीट आउ अपहरण हो रहल हे । फसिल जब घर आ जाय तब समझऽ कि तोहर ।)    (गमेंगा॰55.2)
268    दुआर (एकरा देखनइ हे तो अदीप के 'बिखरइत गुलपासा' देखल जा सकऽ हे । 'बिखरइत गुलपासा' मगही कहानी साहित के दुआर पर एगो जोरदार धमाका हल । तब लगे लगल हल कि मगही कहानी खिस्सा के परिभाषा से ऊपर आ गेल हे । फेर तो एगो लमहर डिढ़ारी खिंचा गेल ।)    (गमेंगा॰ix.8)
269    दुबर-पातर (समय निकालके क्लब आउ महिला मंडल में शरीक हो जा हली । उनका लेल कस्बाइ रिश्ता के अब कौनो माने नइ रह गेल हल । अब तो महानगर के भीड़ में अइसन दुबर-पातर नाता-गोता के नस-नबज कहिये ने ठंढा गेल ।)    (गमेंगा॰26.27)
270    देखनइ (अइसन में जे कहल जात ओकरा आम आउ खास में हिगराके देखनइ की संभव हे ?)    (गमेंगा॰x.22)
271    देर-सबेर (महेश कत्तेक दिन से छुट्टी माँग रहल हल, मुदा ई साले-गिरह के चलते नइ मिलल । ओकर घरवली के गोड़ भारी हल । महेश देर-सबेर लेल पास-पड़ोस के समद देलक हल । ढेर रात के बाद जब जशन खतम होल तब महेश हाँहें-फाँफे घर दने धउग गेल ।)    (गमेंगा॰58.19)
272    देवाल (= दीवाल, दीवार) (दरोजा पर देखावा के जेतना भी समान रहे, देवाल पर जेत्तक बड़ो तख्ती लगल रहे - भीतर तो एकदम उदास हे आउ सुक्खल रिश्ता पर घाव बजबजा रहल हे ।; जब आदमी समाज से बिखर के अपन छाती पर हाथ रखे लगल तब ओकरा अइसन बुझाल कि ऊ भीतर से मसुआइल हे, खुंडी-खुंडी हे आउ कतरल हे कत्तेक जगह से । आदमी के समेटल आदमीयत के देवाल दरकल हे, धोखड़ल हे ।; कहानी दरोजा पर के रहे या देवाल पर लगल बड़गो तख्ती के, भीतर के ठहरल हावा के रहे या अंगना में जमकल पानी के - सब में आदमी के छछनल परान आउ हकासल कंठ नजर आवत ।; कविता के ससुरार गेला महिना भर बीतल हल कि अइसन ने खबर आल कि सउँसे घर के देवाल हिले लगल । गैस-चूल्हा के धोखाधड़ी से कविता गुजर गेली हल आउ सराध के चिट्ठी मदन जी के हाथ में आल ।)    (गमेंगा॰viii.10, 26; ix.1; 42.14)
273    देवाली (= दीवाली, दीपावली) (तहिया साहेब के शादी के सालगिरह हल । कोठी तो देवाली जइसन सजवल गेल हल । खान-पियन के तैयारी खातिर कउनो बड़गो होटल से आदमी आल हल । बेर-बेर महेश के किसिम-किसिम के हिदायद देवल जा रहल हल ।)    (गमेंगा॰58.1)
274    देवास (कैलास बइठल-बइठल अपन गाँव के भोज-भइबी के याद करे लगल । पूजा से छट्ठी-एतवार सब मिलजुल के मनावऽ हे । पठरु पड़े, देवास लगे तो की मजाल कि टोला-टाटी के आदमी नइ आवे । अइसन संस्कार ओकरा गामे से मिलल हल ।)    (गमेंगा॰10.22)
275    देह-धच्चर (दारू के प्रभाव से उनकर देह-धच्चर के सब धागा छितरा रहल हल । शारदा दीदी आउ बाल-बुतरुन के भविस तो परिवार के रहन-सहन से झलके लगऽ हल ।)    (गमेंगा॰26.17)
276    दोकान (= दुकान) (क्लिनिक के अगले-बगल दवाखाना, जाँचघर, होटल आउ चाय-पान के दोकान खुल गेल हल ।)    (गमेंगा॰2.29)
277    दोसर (= दूसरा) (हिन्दी में टिसनी पढ़वइया तो विरले भेटऽ हे । लड़कन के अंगरेजी पढ़ावे लेल अभियो आपाधापी हे । ढेरो खोजा-खोजी पर कुछ घर में टिसनी के जुगाड़ बइठल, लेकिन दोसरो विषय के अध्ययन मोहन लेल जरूरी हो गेल ।; जोरदार अंधड़ में राते इस्कूल के सइनबोड जगह-जगह से लटक गेल हल । मोहन इस्कूल के ईमारत पर चढ़के ओकरा ठीक करे लगल । एक हाथ में हथौड़ी आउ दोसर हाथ में काँटी पकड़ले हल । बोड हरदम नीचे लटक जा हल आउ काँटी टेढ़ होके रह जा हल ।)    (गमेंगा॰38.3, 27)
278    दोसरकी (~ बेटी) (अपन बड़की बेटी कविता के शादी में भी एहे तड़क-भड़क काम देलक हल । आज उनकर दोसरकी बेटी के बात हल । रह-रह के उनका सामने कविता के शादी के बात ताजा हो जा हल ।)    (गमेंगा॰41.11)
279    धउगना (= दौड़ना) (महेश कत्तेक दिन से छुट्टी माँग रहल हल, मुदा ई साले-गिरह के चलते नइ मिलल । ओकर घरवली के गोड़ भारी हल । महेश देर-सबेर लेल पास-पड़ोस के समद देलक हल । ढेर रात के बाद जब जशन खतम होल तब महेश हाँहें-फाँफे घर दने धउग गेल ।)    (गमेंगा॰58.21)
280    धउगा-धउगी (= दौड़ा-दौड़ी, दौड़-धूप) (रेल के वातानुकूलित डिब्बा में ओघड़ल प्रसाद साहेब के दिमाग में अजीब-अजीब बात धउगा-धउगी कर रहल हल । मनेमन भगिना के उपयोगिता आउ उपहार के तौला-तौली कर रहलन हल, लेकिन मेम साहेब के धियान अइतहीं एकदम मनझान हो जा हलन ।; मोहन के नाम निमन कॉलेज में लिखा गेल । ओकर भाय-भोजाय सोचऽ हल कि घर में एक्को के आगू निकले से घर के बाल-बुतरुन के जिनगी में इंजोर आ जात । घर के बुतरू सब तो पढ़े के नाम पर इस्कूल में जात । अइसे तो हरदम बगइचा में धउगा-धउगी करते रहऽ हे ।; ससुरार के ताम-झाम में मोहन के मन एकदम्मे नइ लगऽ हल । गीत-गजल के गुनगुनाना भी बंद हो गेल । नौकरी के धउगा-धउगी के साथ मोहन के जिनगी में एक आउरो रिजल्ट हो गेल ।)    (गमेंगा॰29.24; 36.8; 37.25)
281    धकियाना (हलीम तो ढाका से धकियाइये देल गेल हल । देश अइते ओकर जीभ बचल-खुचल पुस्तइनी जायदाद के हिस्सा-बखरा ले लपलपाय लगल ।)    (गमेंगा॰17.6)
282    धकियाल (समय के धक्का से धकियाल आदमी के धाह धीरे-धीरे खतम होल जाहे आउ राम बाबू देखऽ हथ कि मैदान के जगह मकान उग रहल हे आउ शहर के नामी-गिरामी हवेली, महल, चमन आउ कमरा अब मँझोलका होके छोटकन में छितरा रहल हे ।)    (गमेंगा॰34.6)
283    धमक (= गंध) ('बिखरइत गुलपासा' से 'गमला में गाछ' तक के जतरा में अदीप के कहानी एक नया तेवर लेके आल । कहानी खाली आम आदमी के हिस्सा बनके रह जाय, एकरा से आम जीवन के संवेदना जरूर सहलावल जात । लेकिन अइसन कहनइ आउ होनइ में कउनो न कउनो लीक के धमक आवे हे ।)    (गमेंगा॰ix.18)
284    धमार (अनिल अपन क्लिनिक से समय निकालके रोज घरवली के क्लिनिक में बइठऽ हल । भगवान के किरपा से दुन्नू परानी के मरीज के कमी नइ हल । दुन्नू के जिनगी अब आपाधापी के हो गेल हल । कुच्छे दिन में पइसा-कउड़ी के धमार सामने आवे लगल । हर बेरा नया-नया डिजैन के गाड़ी-जीप दरोजा पर लग जा हल आउ अब तो बड़गो क्लिनिक खोले ले ढेरो जमीन कीनके नयकी कोठी नाध देलन हल ।)    (गमेंगा॰2.21)
285    धराना (= रखाना) (दरद आउ टीस जे गाँव में हे ऊ शहरो में हे । गाँव के सिमाना में शहर सेंध मार रहल हे, तो शहर के बेलस माटी पर गाँव के गोड़ भी धरा रहल हे । एकरा एक तरह से संक्रान्ति कहल जा सकऽ हे । एकर पछान के जरूरत हे । आदमी अपनो शहर में हेरा जाहे ।)    (गमेंगा॰ix.25)
286    धाँगना (फुटबॉल के अव्वल खेलाड़ी होवइ के चलते सउँसे शहर के छोट-बड़ मैदान के धाँग गेलन हल ।; ढेरो-ढेर बच्छर तलुक उनका मंसूरी जाय के सिलसिला लगल रहल । मत पूछऽ कि बेटी ले तो सउँसे मंसूरी धाँग के ओकरा ले कपड़ा-जुत्ता कीनऽ हलन ।)    (गमेंगा॰33.5; 44.4)
287    धाप (= चाल, रेंग; एक डेग चलने की दूरी या नाप; जीना (सीढ़ी) की दो सीढ़ियों के बीच की उठान या ढलान) (गाँव जब शहर में गोड़ रोपऽ हे तब ऊ अपन पछान खातिर लमहर धाप रखऽ हे, जेकरा से लमहर लकीर खिंचा जाय, लेकिन ओकर गोड़ में शहर के बेड़ी पड़ल हे । फेर पुरनकी हवेली तो खाली हवाखोरी के जगह अइसन देखाय पड़ऽ हे आउ नइकी इमारत मुँह बिजका-बिजका के ओकरा चिढ़ावे लगे हे ।)    (गमेंगा॰ix.29)
288    धाह (= आग की गरमी) (होली-दशहरा पर मोखतार साहेब गामे पर गोहार जुटावऽ हलन । तखने अपने रंग हल मोखतार साहेब के । उनकर घर से जमींदारिये के धाह निकलऽ हल ।; समय के धक्का से धकियाल आदमी के धाह धीरे-धीरे खतम होल जाहे आउ राम बाबू देखऽ हथ कि मैदान के जगह मकान उग रहल हे आउ शहर के नामी-गिरामी हवेली, महल, चमन आउ कमरा अब मँझोलका होके छोटकन में छितरा रहल हे ।)    (गमेंगा॰27.30; 34.6)
289    धियान (= ध्यान) (सुनीता अपन बियाह लेल किसिम-किसिम के नाटक देखते ऊब गेल हल । कामकाजी लड़की होला पर भी हरदम ओहे नाटक, ओहे तिलक-दहेज के बात । बेचारी चुप रह जा हल तो खाली बाप-माय के भावना के धियान धरके ।)    (गमेंगा॰24.13)
290    धूरी-झिकटी (रोजी-रोजगार के भाग-दौड़ में घर बड़ी आगू निकल गेल, अंगना-ओसरा से देवाल तक चकचका गेल, लेकिन अपन बूढ़ माय-बाप के साथे-साथ बुतरून के सोभाव में कोय तफड़का नइ पड़ल । बुतरून के पढ़े लेल ओहे पुरनका इस्कूल आउ खेले-धूपे ले ओहे गली के धूरी-झिकटी, जेकरा से ओकर नया-नया कपड़ा भी पुराने लगऽ हे ।)    (गमेंगा॰9.8)
291    धोकड़ी (= जेब) (रोजी-रोजगार तो चलिए रहल हल लेकिन ओकर जिंदादिली के कारण खाली पइसे हल । की मजाल कि कैलास के छइते कउनो इयार-दोस्त के अपन धोकड़ी छूए पड़े ।; टेलिग्राम के ऊ बेर-बेर पढ़ रहलन हल । ओहे छोट कागज पर नरेश बाबू के सउँसे जिनगी के नक्शा अलबन जइसन झलके लगल । प्रसाद साहेब तहिया बुतरुए हलन । शारदा दीदी के बियाह केतना लकधक से होल हल । टेलिग्राम के कागज धोकड़ी में रखके ऊ औफिस से निकल गेलन ।)    (गमेंगा॰10.8; 25.7)
292    धोखड़ल (जब आदमी समाज से बिखर के अपन छाती पर हाथ रखे लगल तब ओकरा अइसन बुझाल कि ऊ भीतर से मसुआइल हे, खुंडी-खुंडी हे आउ कतरल हे कत्तेक जगह से । आदमी के समेटल आदमीयत के देवाल दरकल हे, धोखड़ल हे ।)    (गमेंगा॰viii.26)
293    नइ (= नयँ; नहीं) (अपन घरवली के देहाती समझके नरायन बाबू जिनगी के बड़गो जोड़-घटाव में एकल्ले हिसाब करऽ हलन । बेचारी त शरीरो से एकदमे लाचारे हली । कउनो न कउनो रोग-बेमारी लगले रहऽ हल । नरायन बाबू डाक्टर-बैद करे में कउनो कमी नइ करऽ हलन ।; अनिल अपन क्लिनिक से समय निकालके रोज घरवली के क्लिनिक में बइठऽ हल । भगवान के किरपा से दुन्नू परानी के मरीज के कमी नइ हल ।)    (गमेंगा॰2.9, 20)
294    नइकी ( गाँव जब शहर में गोड़ रोपऽ हे तब ऊ अपन पछान खातिर लमहर धाप रखऽ हे, जेकरा से लमहर लकीर खिंचा जाय, लेकिन ओकर गोड़ में शहर के बेड़ी पड़ल हे । फेर पुरनकी हवेली तो खाली हवाखोरी के जगह अइसन देखाय पड़ऽ हे आउ नइकी इमारत मुँह बिजका-बिजका के ओकरा चिढ़ावे लगे हे ।)    (गमेंगा॰ix.33)
295    नउका (= नइका, नावा, नाया; नया) (अपन नउका बनल दिल्ली वली कोठी में सिन्हा साहेब नींद से लड़ रहलन हल । उनकर घरवली के तो नींदिये अलोप गेल हल ।; आज जब रिटायर होके ऊ घर जा रहलन हल तब उनका कॉलेज के पहिलका दिन हाजिर हो रहल हे । कमेटी के समय हल । मंत्री रामजी बाबू एकदम्मे गो-महादेव ! केकरो एक बात नइ कहथ, लेकिन उनकर तो अजबे प्रभाव हल । बेचारा बूढ़ा लुज-लुज हो गेलन हे, लेकिन आझो तलुक की नउका आउ की पुरनका - सबके भीतर उनका लेल सरधा हे ।)    (गमेंगा॰43.1; 53.13)
296    नक्कल (~ नाधना) (बेटा-बेटी के संबंध में जे तफरका मानल जाहे, अमर बाबू ओकरा गलत कहे लगला । बेटी जलमते त घर के रंगे उड़ जाहे, लेकिन बेटा तो दिन-रात घर के कूढ़न बनल रहे हे । अमर जी अब रोज अपन भाग आउ किस्मत के कुढ़ते रहे लगलन । इयार-दोस उनकर लड़कन के जे बड़ाय करऽ हलन, अब गुम्मी साध लेलन । अमर बाबू भीतर से लड़ते-लड़ते ऊपर से चुप्पी के नक्कल नाध लेलन । लड़कन के चमक-दमक में कौनो कमी-कोताही नइ हल ।)    (गमेंगा॰31.2)
297    नजकियाना (मास्टर साहेब के नौकरी नजकिया गेल हल । अब किलास के समाज अध्ययन के बात भुला के परिवार अध्ययन के अंधड़ में फँस गेलन हल ।)    (गमेंगा॰5.30)
298    नजर (देखलो ~ नइ सोहाना = देखना भी पसन्द नहीं करना) (नावा कोठी के चौकठा पर उनकर परिवार के कउनो आदमी फिट नइ बइठऽ हल । ई लेल कैलास के मन होटल आउ बाजार में जादे लगऽ हल । तेकरो पर आल-गेल फूफा, मामा, चाचा-चाची तो ओकरा देखलो नजर नइ सोहा हल । लेकिन करे की ? ओकरा सब कुछ सहे पड़ऽ हल ।)    (गमेंगा॰10.2)
299    नजीक (= नजदीक) (एहे चलते तो ऊ बड़गो रोजगरिया के सामने भी अपन देहाती रोब-रुतबा के ऊँचा उठइले रहल । लेकिन चड्ढा साहेब से ओकरा अइसन उमेद नइ हल । ऊ त अपन घरवइया जइसन नजीक हलन ।; उनकर सेवा-टहल लेल बनवरिया नौकर साथ हल । गाड़ी अब नजीक आ गेल हल । उनकर बेटा फ्लैट के कुंजी निकालके अपन हाथ में ले लेलक हल ।)    (गमेंगा॰10.26; 20.24)
300    नजीकी (= नजदीकी) (चड्ढा साहेब के सफल दाम्पत्य जीवन के समारोह हे । केतना नजीकी इयारी हे । कत्तेक बेरा उनकर परिवार समेते होटल में पाटी देलक हल ।)    (गमेंगा॰10.12)
301    नयकी (= नइकी; नई) (कुच्छे दिन में पइसा-कउड़ी के धमार सामने आवे लगल । हर बेरा नया-नया डिजैन के गाड़ी-जीप दरोजा पर लग जा हल आउ अब तो बड़गो क्लिनिक खोले ले ढेरो जमीन कीनके नयकी कोठी नाध देलन हल ।)    (गमेंगा॰2.23)
302    नरियर (= नारियल) (की मजाल कि कोय तनिक अईंठ के चले उनका सामने । लेकिन आज तो सब कुछ उजड़ गेल हे । बच रहल हे खाली दूगो नरियर के पेड़ । चरचा करते-करते राम बाबू आउ सौकत देखलन कि नरियर के पेड़ घौरे-घौर फरल हे । ऊ दुन्नू घौर के देखइत एक दोसर दने ताके लगलन आउ फेर चाय के पियाली में डूब गेलन ।)    (गमेंगा॰35.29, 30)
303    नवका (= नइका, नयका; नया) (नवका बनल कोठी में तो अजबे गहमा-गहमी हल । सउँसे घर के जानदार ढंग से सजावल गेल हल ।; आपा-धापी में घर के कमरा-कोठरी सजे लगल । इयार-दोस आउ नवका रिश्तेदार के आवा-जाही में तेजी आ गेल । पुतहुन के टटका तेवर से अमर जी दुन्नू परानी घबड़ाय लगलन ।; नवका संगीत के सामने पूजा के शंख के आवाज दबे लगल । हवन-हुमाद के सुगंध तो इतर के फुचकारी के सामने गंधहीन होइये रहल हल ।)    (गमेंगा॰30.1; 31.16, 20)
304    नस-नबज (~ ठंढाना) (समय निकालके क्लब आउ महिला मंडल में शरीक हो जा हली । उनका लेल कस्बाइ रिश्ता के अब कौनो माने नइ रह गेल हल । अब तो महानगर के भीड़ में अइसन दुबर-पातर नाता-गोता के नस-नबज कहिये ने ठंढा गेल ।)    (गमेंगा॰26.27)
305    नाज-नखड़ा (लड़कावला तो मदन जी के नाज-नखड़ा, तड़क-भड़क से गुमसुम हो गेलन हल । ऊ मनसूबा बाँधले हलन कि बिना माँगले एतना मिलत कि लाम कइसे ? फेर बिना मावगले मिलवे करत तो चिन्हारो होना भी ठीक नइ । लेकिन विदागरी घड़ी सब मनसूबा पर पानी फिर गेल ।)    (गमेंगा॰42.1)
306    नात-कव्वाली (ओहे सब के साथे-साथ बदरु मियाँ भी बड़ी रंग से उम्दा होली गावऽ हे । जितिया में एक तुरिया तो साड़ी पेन्ह के नाचलक भी । सउँसे बैसाख बगाते में कटऽ हल । दिन भर नात-कव्वाली, गीत-गाना आउ बेमौसमी गीत होतहीं रहऽ हल ।)    (गमेंगा॰12.21)
307    नाता-गोता (लाल साहेब अपन समय के बात सोचऽ हलन । अपन यार-दोस्त आउ नाता-गोता के दुख-सुख में केतना अपनउती देखावऽ हलन । कमजोर के ऊ खुब्बे सहयोग दे हलन । उनका लगे लगल हल कि आर्थिक अंधड़ खाली विदेशी बात नइ रह गेल हे । नाता-गोता से मिलल अनुभव साथे हे । अब तो ऊ सब हुलकीयो नइ मारऽ हथ, कहीं तो भीड़े लगल रहऽ हल ।; समय निकालके क्लब आउ महिला मंडल में शरीक हो जा हली । उनका लेल कस्बाइ रिश्ता के अब कौनो माने नइ रह गेल हल । अब तो महानगर के भीड़ में अइसन दुबर-पातर नाता-गोता के नस-नबज कहिये ने ठंढा गेल ।; सरितामाय उत्साह के साथ 'हाँ' में 'हाँ' कर दे हथ । लड़की आज देख लेल जात । मदन जी लड़का के माय-बाप आउ नाता-गोता से साफ-साफ बात कर लेलन हे । उनका सब के साथ आवे ले एगो अपनो आदमी लगा देलन हे । समय आउ सरेजाम सब पर उनकर नजर दौड़ रहल हे ।)    (गमेंगा॰19.21, 23; 26.27; 40.2)
308    नाम-ठेकान (ई काम में चार चाँद लगावे के राज तो उनकर डायरी हल, जेकरा में ढेरोढेर नाम-ठेकान लिखलन हल । तनिको सन परिचय होलो कि उनकर नाम टाँक ले हलन ।)    (गमेंगा॰4.9)
309    नामी-गिरामी (~ डाक्टर; ~ हस्ती; ~ आदमी) (अनिल दुनिया भर के जाँच-पड़ताल करवा देलक हल । भेलउर के नामी-गिरामी डाक्टर के नाम ढेरोढेर चिट्ठी-पतरी लाके धर देलक हल । साथे जाय लेल एगो कम्पोटर के तइयार कर देवल गेल हल ।; कउनो सभा-सोसाइटी में आगू बइठनइ रामसेवक बाबू के सोभाव हल । नामी-गिरामी हस्ती आउ वजनदार अधिकारी से मेल-जोल बढ़ावे के कला में कमाल के काम करऽ हलन।; नामी-गिरामी आदमी के चिट्ठी-चपाती जोगइले रहऽ हलन आउ आल-गेल आदमी के देखावे में कउनो चूक नइ करऽ हलन ।; शारदा दीदी, मेहमान नरेश बाबू आउ उनकर बाबूजी मोखतार साहेब - तहियो एहे छोट-मोट परिवार हल । मोखतार साहेब के खुब्बे चलती हल । हाकिम-हुकुम आउ नामी-गिरामी लोग-बाग से बइठका रजगजाल रहऽ हल । रात-रात भर चौपाल ।)    (गमेंगा॰3.22; 4.7, 15; 26.11)
310    नावा (= नाया; नया) (अपन घर के अइसन हालत देखला पर कैलास, रस्तोगी साहेब, जैन साहेब, चड्ढा साहेब आउ अग्रवाल साहेब के कोठी आउ उनकर बाल-बच्चा के याद करे लगऽ हल । नावा कोठी के चौकठा पर उनकर परिवार के कउनो आदमी फिट नइ बइठऽ हल ।; दुआर पर जब बरात लगल हल तो टोला-महल्ला के आँख टँगले रह गेल । मारे गाजा-बाजा आउ मोटरगाड़ी से अइसन बरात तो महल्ला लेल एकदम नावा हल । शादी के महिनो-महिना बाद चरचा के विषय बनल रहल ।)    (गमेंगा॰9.31; 41.19)
311    निचिंत (= निश्चिन्त) (नौकरी से फुरसत पाके सक्सेना साहेब अब एकदम्मे निचिंत हो गेलन हल ।)    (गमेंगा॰49.1)
312    निमन (= निम्मन; अच्छा) (मैटिके के परीक्षाफल से मोहन लेल घरवलन के मोह बढ़ गेल हल । भरोसा बढ़ल कि मोहने ई पुश्तैनी कच्चा घर के पक्का इमारत में बदलत । अइसन निमन रिजल्ट तो बलदेव आउ किसोरी के लड़कन लइवो नइ कइलक हल लेकिन ओकर इमारत तो दुरिये से नजर आवऽ हे ।; मोहन के नाम निमन कॉलेज में लिखा गेल । ओकर भाय-भोजाय सोचऽ हल कि घर में एक्को के आगू निकले से घर के बाल-बुतरुन के जिनगी में इंजोर आ जात ।)    (गमेंगा॰36.3, 5)
313    निमाह (सक्सेना साहेब अइसने अवसर के तलाश में हलन । ऊ ग्राहक बोलाके अपन कोठी के बेच देलन आउ लगले एगो कम कीमतवला छोटगर मकान कीन लेलन । दुन्नू परानी के निमाह भर काफी हल, लेकिन अपना ले तो कहकहावला कमरा के तनि ढंग से सजा के ताजगी महसूसे लगलन ।; राजो बाबू लटफरेम पर चाय के दोकान में चल गेला । चाय पीअइत एगो उमरदराज बुढ़िया पर नजर पड़ गेल, सधुआइन हो गेल हल । ओकरा देखते उनका अपन फूआ के याद आ गेल । बेचारी बियाह के तुरते बाद मसोमात हो गेल हल । तहिया से सब दिन नइहरे निमाह होल ।)    (गमेंगा॰50.17; 53.31)
314    निमाहना (= निबाहना) (घर के आर्थिक लाचारी सुनीता लेल लाभकारिए रहल । पढ़ाय के सिलसिला कहियो नइ रुकल । लाल बाबू सुनील आउ अनिल दने से धियान हटाके बेटी के निमाहे के बात सोच रहलन हल । सुनीता के बियाह लेल हाथ-गोड़ मारऽ हलन लेकिन दहेज के दहकल आग से झौंसा-झौंसा के घरे लौट आवऽ हलन ।)    (गमेंगा॰23.30)
315    निम्मन (= अच्छा) (बड़ी तेज रफ्तार से बदलइत अपन कोठी के तेउरी से सक्सेना साहेब मनेमन घबड़ाय लगलन हल । अपन बेटा-पतोह के रोजिन्ना वली बात उनका घरवली से मालूम होइये जा हल । सक्सेना साहेब निम्मन ओहदा से रिटायर होलन हल ।; पुरनका घर छोड़के नया जमीन कीनके एगो निम्मन मकान बनइलक । ढेरो खेत खरीदलक । गामे में शहर के सुविधावला घर हल ।)    (गमेंगा॰47.3; 54.12)
316    निरार (= निरारी; कुएँ का मुँह या व्यास; ललाट) (रामसेवक बाबू के सोभाव से लोगबाग परिचित हथ । जब कउनो उहापोह के समय आवे हे तब ऊ कूआँ के निरार पर बइठ के ओकर ठहरल पानी के देर-देर तक हिअइते रहऽ हथ ।; रामसेवक बाबू रेल के डिब्बा में बइठल सोच रहलन हल कि बेटा से सादी-बियाह के बात कइसे शुरू कइल जात ? सब बात तो तइये कर देलन हल लेकिन जमाना के बदलल त्योरी के बात सोचके उनकर निरार पर वातानुकूलित डिब्बा में भी पसेना आ रहल हल ।)    (गमेंगा॰4.2; 7.19)
317    निसा (= नशा) (लेकिन देर रात जब ऊ अपन कोठी पर आवऽ हल तो परिवार के एक-एक आदमी के हुलिया आउ बात देख-सुनके ओकर सब निसा फट जा हल । घरनी अपन मगहियापन के छाव छोड़वे नइ करऽ हली । माय-बाप भी गाँव के याद में भुलाल रहऽ हलन ।)    (गमेंगा॰9.25)
318    निहचित (कम आमदनी आउ बड़गो शहर लाल बाबू के दुन्नू बेटन के तबाह कइले हल । अपन भागम-भाग में ऊ तो माइयो-बाप के भुला देलक हल आउ बहिन सुनीता के नौकरी जानके तो एकदम्मे निहचित हो गेल हल ।; लाल बाबू के दुन्नू लड़कन के बियाह बिना नौकरियो-धंधा के हो गेल । ससुराल वलन अपन-अपन दमाद के नौकरी के भरोसा दिला के लाल बाबू निहचित करा देलकन हल । सुनील अपन ससुरार वला के बोलहटा पर कलकत्ता चल गेल अउ अनिल कानपुर ।)    (गमेंगा॰22.16; 23.5)
319    निहोरा (ढेरो-ढेर आदमी के निहोरा कइला पर ओकरा ई नौकरी मिलल हल । नौकरी की हल, बस भोरउकी से लेके साँझ तक मालिक-मलकीनी के आवाज पर नाचते रहऽ हल । भोरउकी चाय से लेके रात के रसोय तक के भार ओकरे पर हल ।)    (गमेंगा॰56.4)
320    नीन (अइसन बात सुनके बदरु दुन्नू परानी के होशे उड़ गेल । रात भर छो-पाँच करते रहल । कखनउँ नीन नइ आल ।)    (गमेंगा॰14.23)
321    नुक्काचोरी (= लुकाछिपी) (बाग-बगइचा, आम-अमरुद आउ लीची-कटहर के सवाद तो आझो उनकर मुँह पनिया दे हे । उनका एक-एक चीज याद हे । मंगरुआ, बिनेसरा आउ मोहन के साथ नदी में चुभकी आउ बगइचा के नुक्काचोरी के कहानी तो पढ़ावे खनी भी उदाहरण में ठोकिये दे हलन ।)    (गमेंगा॰52.8)
322    नेउता-पेहानी (लड़कन के डॉक्टर आउ इंजीनियर होते-होते बर-बरतुहारी के भीड़ जूमे लगल । उनकर घरवली तो कउनो नेउता-पेहानी में जा हली तो सुन्नर लड़की आउ निमन परिवार के छानबीन करते रहऽ हली ।)    (गमेंगा॰48.13)
323    नोह (= नख) (अंग-अंग के दरद 'खुंडी-खुंडी आदमी' के मुज्जू भाय से जादे के जानऽ हे, जेकर एक भाय पच्छिम त एक भाय पूरब चल गेल । पूरब वला तो तब लउटल जब ओहो पच्छिम से कटे के चोट से मर्माहत भेल, मुदा पच्छिम वला त 'मोजाहिर' होवे के गुनाह में ओज्जइ स्वाहा भे गेल आउ एगो लिफाफा के जनाजा में बंद भे के अप्पन पुरखइन के कबुरगाह में मुज्जू भाय के नोह से कोड़ल कबुर में दफन होवऽ हे ।)    (गमेंगा॰vii.1)
324    नोह-नखुरी (कोय-कोय तो कह रहल हल कि अपनो फूफा के मरला पर भी नोह-नखुरी नइ करइलक हे । एतने में प्रसाद साहेब अइलन । भंडार में उनका हेले से मना कर देल गेल, काहे कि उनको नोह-नखुरी नइ होल हल । भोज के पंघत बइठते-बइठते तो सउँसे गाँव में चरचा होल कि बम्बेवली के भाय-भतीजा अइसन कि अपनो अदमी के कजा करला पर नोह-नखुरी नइ कइलक, छुत्तक नइ लेलक ... काहे नइ लेलक !)    (गमेंगा॰28.27, 28, 31)
 

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