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Monday, July 28, 2014

2.06 अकवाली अदमी



मूल रूसी - अन्तोन चेखव (1860-1904)                 मगही अनुवाद - नारायण प्रसाद

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              इवान अलिक्स्येविच शादी के तुरते बाद रेलगाड़ी धरके अपन घरवली के साथ पितिरबुर्ग लगी रवाना होवऽ हका । एगो टीसन पे उतरके ब्रांडी पीए के चक्कर में गाड़ी के अंतिम सीटी सुनके हड़बड़ में उलटा तरफ जाय वला गाड़ी पकड़ ले हका आउ ई तरह ऊ मास्को जाय वला गाड़ी में जा रहला ह, त उनखर घरवली पितिरबुर्ग जाय वला गाड़ी में । आगे की होवऽ हइ, ई जाने लगी पढ़ल जाय मशहूर रूसी कहानीकार चेखव के ई हास्य कहानी - "अकवाली अदमी" ।
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निकोलाएव्स्की (पितिरबुर्ग-मास्को) रेलवे लाइन पर के बोलोगोय टीसन से पसिंजर गाड़ी अभी-अभी खुल रहले ह । दूसरा दर्जा के डिब्बा में, जे धूम्रपान करे वलन खातिर हकइ, गोधूलि वेला जइसन छाल धुँधलाहट में पाँच पसिंजर झुक्कब करऽ हका । ओकन्हीं अबकहीं भोजन करते गेला ह, आउ अब सोफ़ा के पीठ तरफ अड़के सुत्ते के कोशिश कर रहला ह । सगरो सन्नाटा छाल हइ ।

दरवाजा खुल्लऽ हइ, आउ डिब्बा में घुस्सऽ हकइ एगो उँचगर, लाठी नियन एकदम सीधगर व्यक्ति, लाल-भूरा रंग के टोप आउ भड़कीला ओवरकोट में, बिलकुल थियेटर के स्टेज पर वला, चाहे जूल वेर्न [1] के संवाददाता के आद देलावे वला । ई व्यक्ति डिब्बा के ठीक बीच में खड़ी रहऽ हइ, जोर-जोर से साँस ले हइ आउ देर तक सोफ़ा तरफ घूरऽ हइ ।

"नयँ, ई तो ऊ नयँ हइ !" ऊ बड़बड़ा हइ, "ई तो शैताने के मालूम ! केतना अपमानजनक हइ ! नयँ, ऊ नयँ हकइ !"

पसिंजर सब के बीच एगो ऊ व्यक्ति के ध्यान से देखऽ हइ आउ खुशी से चीख पड़ऽ हइ - "इवान अलिक्स्येविच ! कइसे भूल पड़लऽ ? ई तूहीं हकऽ ?"
लठिया नियर सीधा इवान अलिक्स्येविच अचरज में पड़ जा हका, ऊ पसिंजर (यात्री) तरफ जड़ भाव से घूरऽ हका, आउ ओकरा पछान लेला पर खुशी से हाथ उपरे करऽ हका ।

"ओह ! प्योत्र पित्रोविच !", ऊ बोलऽ हका, "केतना शरद् ऋतु, केतना ग्रीष्म ऋतु गुजर गेल ! आउ हमरा ई पते नयँ चलल, कि तूँ एहे गाड़ी में सफर कर रहलऽ ह ।"
"कइसन हकऽ ? ठीक-ठाक ?"
"हमरा तो कुछ नयँ होल ह, खाली ई बात हके यार कि अपन डिब्बा भुला गेलूँ हँ आउ कोय तरह से अब ढूँढ़ नयँ पावऽ हूँ । केतना मूरख हकूँ हम ! हमर कोय पिटाय काहे नयँ करऽ हके !"
एकदम सीधगर-टठगर इवान अलिक्स्येविच एन्ने-ओन्ने टग्गऽ हका आउ 'ही ! ही !' करके खिखिया हका ।

"अइसन घटना होते रहऽ हइ !" ऊ बात जारी रखलका, "दोसर तुरी घंटी बजे के बाद हम ब्रांडी पिए खातिर बहरसी होलूँ । हम वस्तुतः पीइयो लेलूँ । त सोचऽ हूँ, अगला टीसन तो बहुत दूर हके, फेर काहे नयँ दोसरो गिलास पी लेल जाय । जब हम सोच रहलूँ हल आउ पी रहलूँ हल, कि तेसर घंटी बज्जल ... हम तो पागल नियन दौड़के पहिला मिल्लल डिब्बा में उछलके चढ़ गेलूँ । हम तो मूरख हकूँ ! हम तो मुर्गी के बेटा हकूँ !"
"लेकिन तूँ तो बहुत खुशी के मूड में लगऽ हकऽ !" प्योत्र पित्रोविच बोलऽ हका ।
"आवऽ, बइठऽ तो जरी ! जगह हइए हको, आउ स्वागत हको !"
"नयँ, नयँ ... हम अपन डिब्बा खोजे लगी जा रहलियो ह ! अलविदा !"
"अन्हरवा में कहीं प्लैटफारम से गिर-उर नयँ जा । बइठ जा, आउ जब टीसन अइतो, त अपन डिब्बा खोज लिहऽ । बइठऽ !"

इवान अलिक्स्येविच उच्छ्वास ले हका आउ हिचकिचइते प्योत्र पित्रोविच के सामने बइठ जा हका । लगऽ हइ, ऊ उत्तेजित हका आउ अइसे हरक्कत कर रहला ह, मानूँ ऊ काँटा पर बइठल हका ।
"काहाँ जइबऽ ?" प्योत्र पित्रोविच पुच्छऽ हका ।
"हम ? अन्तरिक्ष में । हमर दिमाग में अइसन खलबली मच्चल हके कि हमरा खुद्दे पता नयँ चलऽ हके कि हम काहाँ जा रहलूँ हँ । हमरा किस्मत जाहाँ ले जात हुएँ जाम । हा ... हा ... यार हमर, कभी अकवाली मूरख लोग के देखलऽ ह ? नयँ ? त देख ल ! तोहर सामने में हकियो - नश्वर लोग में से सबसे खुश ! हाँ ! की, हमर चेहरवा से देखाय नयँ दे हको ?"
"हाँ, देखाय दे हको न, कि तूँ ओइसन जरी ... ।"
"शायद हमर चेहरवा अभी बेहद उल्लू नियन लगऽ हइ ! आह, दुख के बात हके कि हमरा पास अइना नयँ हके, ई बन्नर नियन अपन मुँह के जरी देखतूँ हल ! हमरा लगऽ हको यार कि हम बिलकुल उल्लू होल जा हूँ । अपन कीर ! हा-हा ... तूँ कल्पनो कर सकऽ हकहो कि हम हनीमून पर जा रहलियो ह ! की, हम मुर्गी के बेटा नयँ हकिअइ ?"
"तूँ ? वास्तव में शादी कर लेलऽ ?"
"आझे प्यारे ! शादी कइलियो आउ सीधे रेलगाड़ी में घुस गेलियो ।"

बधाई देना चालू होवऽ हइ आउ साथे-साथ सामान्य प्रश्नावली ।
"अरे, तूँ ...", प्योत्र पित्रोविच हँस्सऽ हका । "ओहे से छैला बनके अइलऽ ह !"
"हाँ जी ... आउ पूरा-पूरा तड़क-भड़क खातिर हम इत्र भी छिड़क लेलूँ हँ । आपादमस्तक हम आडम्बर में डुब्बल हकूँ ! कोय फिकर नयँ, कोय सोच-विचार नयँ, खाली कुछ अइसन-ओइसन संवेदना ... शैताने के मालूम कि ओकरा की नाम देल जाय ... परमानंद ? जीवन में कभियो हम अइसन शानदार अनुभव नयँ कइलूँ !"

इवान अलिक्स्येविच अपन आँख मून ले हका आउ सिर हिलावऽ हका ।
ऊ बोलऽ हका - "हम बहुत खुश हकूँ ! तूँ खुद ही निर्णय करऽ । हम अभिये अपन डिब्बा में जाम । हुआँ सोफ़ा पर खिड़की के पास एगो जीव बइठल हकइ, जेकरा बारे अइसन कहल जा सकऽ हइ कि ऊ हमरा पर सब कुछ निछावर कइले हकइ । अइसन सुनहरा केश वली, छोटगर नाक वली, छोटगर अँगुरी वली, ... हमर प्यारी ! हमर फरिश्ता ! हमर गुड़िया ! हमर दिल के चोरनी ! आउ ओकर छोगर-छोटगर पैर ! हे भगमान ! छोटगर पैर अइसनका बिलकुल नयँ, जइसन कि हमन्हीं के गोड़ हकइ, बल्कि बिलकुल छोटगर, परी के पैर नियन, ... लाक्षणिक (अन्योक्तिपरक) ! एकरा हम उठाके खाइयो जा सकऽ ही, अइसन छोटका पैर ! ए, लेकिन तोरा कुच्छो समझ में नयँ आवऽ हको ! तूँ तो भौतिकवादी हकऽ, तुरते विश्लेषण करे लगऽ ह, ई आउ ऊ ! तूँ तो भावनाहीन ब्रह्मचारी हकऽ, आउ कुछ नयँ ! जब शादी करबऽ, त हमर आद अइतो ! बोलबऽ - अरे, इवान अलिक्स्येविच अभी काहाँ हका ? हाँ जी, अब हम अपन डिब्बा में जा रहलियो ह । हुआँ हमरा कोय बेसब्री से इंतजार करब करऽ हके ... कि हम कब हाजिर होम । हमर स्वागत कइल जात मुसकान से । हम ओकर बगल में बइठ जाम आउ दू अँगुरी से ओकर ठुड्डी उपरे तरफ उठाम ..."

इवान अलिक्स्येविच सिर हिलावऽ हका आउ खुशी से हँस्से लगऽ हका ।
"फेर हम अपन सिर ओकर कन्हा पर रक्खम आउ अपन बाँह ओकर कमर के चारो तरफ । सगरो सन्नाटा, जइसन कि मालूम हको, ... कवि के गोधूलिवेला । अइसन पल में हम समुच्चे संसार के आलिंगन करम । प्योत्र पित्रोविच, हमरा तोरा आलिंगन करे के अनुमति द !"
"कृपा करऽ ।"

दुन्नु दोस्त एरस्पर आलिंगन करऽ हका आउ यात्रीगण हँस्सऽ हका, आउ भाग्यशाली दुलहा बात के आगे जारी रक्खऽ हका - "आउ बड़गर मूर्खता खातिर, या जइसन कि उपन्यास में कहल जा हइ, बड़गर मरीचिका खातिर, उपाहार-कक्ष (बुफे) जाल जा हइ आउ दु-तीन गिलास चढ़ा लेवल जा हइ । आउ तभिये सिर में, चाहे पेट में कुछ होवे लगऽ हकइ, जेकर उल्लेख कोय परी-कथा में भी नयँ मिल्लऽ हइ । हम बहुत छोटा हैसियत के अदमी हकूँ, अकिंचन, लेकिन हमरा लगऽ हके कि हमर कोय सीमा नयँ हके ... हम समुच्चे संसार के आलिंगन कर रहलूँ हँ !"

यात्रीगण नशा में धुत्त अकवाली दुलहा के देखके, ओकर खुशी देखके, प्रभावित हो जा हका आउ उनका झुकनी नयँ बरऽ हकइ । एक श्रोता इवान अलिक्स्येविच के स्थान में अब पाँच गो हो चुकला ह । ऊ सूई नियन गतिमान हका, छिटकऽ हका, हाथ से इशारा करऽ हका, बिना रुकले बड़बड़ा हका । ऊ हँस्सऽ हका आउ ओकरे साथ बाकी सब्भे हँस्सऽ हका ।
"भद्र लोग, कम से कम सोचे के चाही ! ई सब विश्लेषण के गोली मारऽ ... पिए के मन करो त पिए के, फेर एकरा में दर्शन बघारे के आवश्यकता नयँ, कि ई अच्छा हइ कि खराब ... ई सब दर्शन आउ मनोविज्ञान के गोली मारऽ !"

डिब्बा से होके कंडक्टर गुजरलइ ।
दुलहा ओकरा संबोधित करके बोलऽ हका - "अजी सुनथिन । डिब्बा नम्बर 209 से गुजरथिन त ओकरा में एगो धूसर टोप में एगो महिला से भेंट होतइ, जिनका पास एगो उज्जर चिरइँ हकइ, त उनका से कहथिन कि हम, उनकर दुलहा, हियाँ हकिअइ !"
"जी, सुनब करऽ हिअइ । लेकिन ई गाड़ी में 209 नम्बर के कोय डिब्बा नयँ हकइ । हाँ, 219 हकइ !"
"219? कोय बात नयँ ! त अइसहीं बताथिन जरी ऊ महिला के - तोहर पति बिलकुल ठीक-ठाक हथुन !"
इवान अलिक्स्येविच अचानक अपन सिर पकड़ ले हका आउ कराहऽ हका - "पति ... महिला ... की बहुत दिन हो गेलइ ? पति ... हा-हा ... तोरा कोड़ा से पिट्टे के चाही, आ तूँ - पति ! आह, मूरख कहीं के ! लेकिन ऊ ! कल तक ऊ एगो छोट्टे गो लड़की हलइ ... एगो पिल्लू ... बिलकुल अविश्वसनीय हकइ !"

"हमन्हीं के जमाना में कोय अकवाली अदमी के देखना अचरज के बात हइ ।", एक यात्री बोलऽ हइ, "शायद जल्दीए उज्जर हाथियो देखबऽ ।"
"हाँ, लेकिन दोष केक्कर हकइ ?", इवान अलिक्स्येविच बोलऽ हका, अपन लमछड़ गोड़ के पसारते, जेकर अंगूठा जरी नोकदार हलइ । "अगर खुश नयँ हकऽ, त खुद्दे दोषी हकऽ ! हाँ जी, आ तूँ कइसन सोच रहलऽ हल ? अदमी अपन खुशी/ भाग्य के खुद निर्माता हइ । अगर चाहऽ ह, त खुश होबऽ, लेकिन तूँ चाहवे नयँ करऽ ह । तूँ जिद करके खुशी से खुद मुख मोड़ ले हकऽ !"
"हाँ ! कइसे ?"
"बिलकुल साफ हकइ ! ... ई प्रकृति के नियम हइ कि व्यक्ति अपन विशिष्ट अवस्था में प्यार करे लगऽ हइ । ई अवस्था आल कि पूरा दिल से प्यार करे के चाही । लेकिन तूँ प्रकृति के कहना सुन्ने वला नयँ, हमेशे कुछ न कुछ खातिर इंतज़ार करते रहबऽ । आउ आगे ... नियम के अनुसार एगो सामान्य व्यक्ति के विवाह करे के चाही ... बिना विवाह के सुख नयँ । आउ जब शुभ घड़ी आ गेल, त विवाह कर ल, देरी करे के नयँ ... लेकिन तूँ विवाह नयँ करबऽ, कुछ न कुछ खातिर इंतज़ार करते रहबऽ ! आउ फेर धर्मग्रंथ में लिक्खल हइ, कि सुरा व्यक्ति के दिल के खुश कर दे हइ [2] ... । अगर तोहरा अच्छा लगऽ हको, आउ, आउ बेहतर होवे के इच्छा हको, त बुफे में जा आउ पी ल । मुख्य बात ई हइ कि ई बात पर ध्यान दे रहलऽ ह कि नयँ, कि जादे दिमाग नयँ लगावऽ ह, जादे दर्शन नयँ बघारऽ ह, बल्कि परम्परा के निर्बाह करऽ ह ! परम्परा के निर्बाह एगो बड़गो बात हइ !"

"तोहरा कहना हइ कि व्यक्ति अपन खुशी/ भाग्य के स्वयं निर्माता हइ । ऊ कइसन निर्माता हकइ, जब कि एगो पर्याप्त दाँत के दरद के चलते, चाहे दुष्ट सास के चलते, ओकर सब्भे खुशी गायब हो जा हइ ? सब कुछ संयोग पर निर्भर हइ । अगर हमन्हीं के साथ अभी कुकुयेवका रेल-दुर्घटना [3] घट जाय, त तूँ दोसरे राग काढ़बऽ ..."

"बकवास !" दुलहा (नव-विवाहित) विरोध करऽ हका । "दुर्घटना बरस में एकाध तुरी होवऽ हइ । हम संयोग के घटना से नयँ डरऽ हूँ, काहे कि अइसन घटना के बहाना के रूप में नयँ लेल जा सकऽ हइ । संयोग के घटना विरले होवऽ हइ ! ओकरा गोली मारऽ ! आउ अइसन घटना के बारे हम कुछ बोलहूँ ल नयँ चाहऽ हूँ ! हूँ, लगऽ हइ कि कोय हाल्ट (छोट्टे गो टीसन) आ रहले ह ।"

"तूँ अभी काहाँ जा रहलऽ ह ?" प्योत्र पित्रोविच पुच्छऽ हका । "मास्को, कि आउ कहीं ओकरा से दक्खिन तरफ ?"
"नमस्ते ! हम उत्तर तरफ जाय वला अदमी, त फेर आउ कहीं दक्खिन कइसे चल जाम ?"
"लेकिन मास्को तो उत्तर तरफ नयँ हइ ।"
"हमरा मालूम हकइ, लेकिन हम तो अभी पितिरबुर्ग जा रहलूँ हँ !" इवान अलिक्स्येविच बोलऽ हका ।
"हमन्हीं तो मास्को जा रहलूँ हँ, धन्न भाग !"
"मास्को कइसे ?" नव-विवाहित अचरज में बोलऽ हका ।
"गजब ... तूँ काहाँ के टिकस लेलऽ ह ?"
"पितिरबुर्ग के ।"
"तब तो हम तोरा अभिनन्दन दे हियो । तूँ तो ऊ गाड़ी में नयँ चढ़लऽ ह ।"

आधा मिनट लगी सन्नाटा छा जा हइ । नव-विवाहित उठ जा हका आउ अपन हमसफर सब के शून्य दृष्टि से देखऽ हका

"हाँ, हाँ", प्योत्र पित्रोविच समझावऽ हका, "बोलोगोय टीसन में तूँ ऊ गाड़ी में नयँ चढ़लऽ ... लगऽ हको कि ब्रांडी चढ़इला पर उलटा तरफ जाय वला गाड़ी (डाउन-ट्रेन) में चढ़ गेलऽ ।

इवान अलिक्स्येविच के चेहरा पीयर पड़ जा हइ, ऊ अपन सिर पकड़ ले हका  आउ डिब्बा में शतपथ करे लगऽ हका । "ओह, हम मूरख हकूँ !" ऊ रोष में बोलऽ हका । "ओह, हम बनमास (बदमाश) हकूँ, हमरा तो शैतान खा जाय ! हूँ, अब हम की करम ? हमर घरवली तो ऊ ट्रेन में हके ! ऊ अकेल्ले हके हुआँ, हमर इंतज़ार में, हमर फिकिर में घुल रहल ह ! ओह, हम तो विदूषक बन गेलूँ हँ !"

नव-विवाहित सोफ़ा पर पड़ जा हका आउ अपन देहिया के सिकोड़ ले हका, मानूँ उनकर कष्टकारक घाव के कोय कुरेद देलक होवे ।
"हम कइसन अभागल अदमी हकूँ !" ऊ दुखी मन से बोलऽ हका, "अब हम की करम ? की ?"
"धीरज रक्खऽ, धीरज रक्खऽ !" यात्री सब ओकरा ढाढ़स बँधावऽ हका । "कोय बात नयँ ... अपन घरवली के तार भेजऽ आउ बीच रस्ता में एक्सप्रेस गाड़ी में बइठे के कोशिश करऽ । ऊ तरह से तूँ उनखा जा पकड़बऽ ।"
"एक्सप्रेस गाड़ी !" नव-विवाहित, अपन खुशी/ भाग्य के निर्माता, कनते-कनते बोलऽ हका । "आउ एक्सप्रेस गाड़ी के टिकस लगी हम पइसा काहाँ से लाम ? हमर कुल्ले पइसा तो हमर घरवली के पास हके !"

यात्री सब हँसते आउ आपस में फुसफुसइते चंदा तसील के ऊ अकवाली अदमी के पइसा दे देते जा हका ।

प्रथम प्रकाशित 1886


नोटः

[1] जूल वेर्न - सन्दर्भ हकइ - फ्रेंच लेखक जूल वेर्न [Jules Gabriel Verne (8 फरवरी 1828 – 24 मार्च 1905)] के साहसिक उपन्यास "रहस्यमय द्वीप" (L'Île mystérieuse - The Mysterious Island) के एगो पत्रकार पात्र Gedéon Spilett के बारे में । ई उपन्यास सन् 1872 में लिक्खल गेले हल आउ सर्वप्रथम सन् 1874 में प्रकाशित होले हल । एकर अनुवाद अंग्रेजी (1875), रूसी (1875), मराठी (1992) आदि में  कइल गेले ह ।

[2] सुरा व्यक्ति के दिल के खुश कर दे हइ - The Book of Psalms (भजनसंहिता) - King James Version (104.15).

[3] कुकुयेवका रेल-दुर्घटना - 29/30 जून 1882 के रात्रि में मास्को से दक्खिन तूला आउ ओरेल शहर के बीच कुकुयेवका गाँव के पास रेल-दुर्घटना, जेकरा में 100 से जादे लोग के मौत हो गेले हल आउ कइएगो घायल हो गेले हल
 

Friday, July 18, 2014

18. असली पकिटमार

असली पकिटमार

मूल जर्मन शीर्षक – Der Taschendieb (देअर टाशेनडीब)             मगही अनुवाद - नारायण प्रसाद

एगो बेपारी एक तुरी यात्रा पर गेलइ । ऊ एगो छोट्टे गो शहर में ठहर गेलइ, काहे कि ऊ अपन दोस्त से भेंट करे लगी चाहऽ हलइ । एगो होटल में एगो रूम किराया पर लेलकइ आउ फेर अपन दोस्त के फ्लैट पर गेलइ।

दुन्नु दोस्त एक साथ बैठके देर तक गपशप करते गेला । देर रात के बेपारी अपन होटल वापिस चललइ । शहर के गलियन में बहुत अन्हेरा हलइ आउ बहुत कठिनाई से ऊ अपन रस्ता देख पावऽ हलइ । गलिया में कोय नयँ हलइ । अचानक ओकरा पैर के आहट सुनाय देलकइ । एगो अदमी बगल के गली के कोनमा भिर से तेजी से अइलइ आउ दुन्नु टकरा गेते गेलइ । ऊ अदमिया माफी मँगलकइ आउ तेजी से आगे बढ़ गेलइ । बेपरिया रुक गेलइ । "अभी की समय होब करऽ होतइ ?" ऊ सोचलकइ आउ अपन घड़ी देखे ल चहलकइ । ऊ अपन जैकेट के पाकिट में खोजलक, लेकिन ओकरा घड़िया नयँ मिल्लल । ओकर सब्भे पाकिट खाली हलइ। तेजी से ऊ धउगके ऊ अदमिया तरफ गेल, ओकरा कोटवा पकड़के रोकलक आउ चिल्लाल, "जल्दी से घड़िया दे !" ऊ अदमिया बहुत डर गेलइ, काहे कि बेपरिया के अवाज में बहुत गोस्सा हलइ । ऊ घड़िया दे देलकइ, आउ बेपरिया संतुष्ट होके चल गेलइ । ऊ तुरते होटल में अपन रूम में पहुँचल आउ बत्ती जलइलक । तब ओकरा बिछावन के बगल के टेबुल पर घड़ी पर नजर पड़ल । ऊ अपन हाथ पाकिट में घुसइलक आउ ऊ अदमिया के घड़िया देखलक ! "हे भगमान !”, बेपरिया बोललइ, "वास्तव में हमहीं पकिटमार  हकिअइ, ऊ अदमिया नयँ!”

रतिया के बेपरिया के ठीक से नीन नयँ अइलइ । बिहान होला पर ऊ घड़िया लेके पुलिस के पास अइलइ । जल्दीए घड़िया के मालिक के ढूँढ़ लेवल गेलइ आउ ओकरा घड़िया वापिस दे देवल गेलइ ।


Tuesday, July 15, 2014

2.05 बाजी



मूल रूसी - अन्तोन चेखव (1860-1904)           मगही अनुवाद - नारायण प्रसाद

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मृत्यु दंड आउ आजीवन कारावास में कउन जादे कष्टदायक हइ, ई बात के फैसला करे खातिर दूगो व्यक्ति के बीच बाजी लगलइ । केऽ जितलइ ? जाने लगी पढ़ल जाय मशहूर रूसी कहानीकार चेखव के ई श्रेष्ठ कहानी "बाजी" (Пари) ...
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1

शरत्काल के अन्हरिया रात हलइ । वृद्ध महाजन (साहूकार) अपन अध्ययन-कक्ष में एक कोना से दोसर कोना में शतपथ कर (चक्कर मार) रहल हल । ओकरा आद आ रहल हल कि कइसे पनरह साल पहिले शरत्काल में ऊ एगो पार्टी देलक हल । ई पार्टी में कइएक गो बुद्धिमान लोग जुटला हल आउ रोचक चर्चा में तल्लीन हला । आउ सब विषय के अतिरिक्त ओकन्हीं मृत्यु दंड के बारे भी बात कर रहला हल । ऊ सब अतिथिगण, जेकरा में कइएक गो विद्वान आउ पत्रकार हलथिन, अधिकतर के विचार मृत्यु दंड के बारे नकारात्मक हलइ (अर्थात् मृत्यु दंड के अनुमोदन नयँ करऽ हलथिन) । दंड के ई विधान ओकन्हीं के पुराना आउ ख्रिस्ती प्रशासन हेतु अनुपयुक्त आउ अनैतिक लगऽ हलइ । ओकन्हीं में से कुछ लोग के विचार में, मृत्यु दंड के सर्वत्र आजीवन कारावास में परिवर्तित कर देवे के चाही ।

मालिक-साहूकार बोललइ हम तोहन्हीं सब से सहमत नयँ । हमरा न तो मृत्यु दंड के अनुभव हके, न आजीवन कारावास के । लेकिन अगर कोय पहिलहीं निर्णय कर सकऽ हइ, त हमर विचार में आजीवन कारावास के अपेक्षा मृत्यु दंड अधिक नैतिक आउ अधिक मानवोचित लगऽ हइ । मृत्यु दंड तुरते मार दे हइ, जबकि आजीवन कारावास धीरे-धीरे । कउन जल्लाद अधिक मानवीय हकइ ? की ऊ, जे तोरा कुछ मिनट में जान ले ले हको, कि ऊ, जे तोर जिनगी लगातार कइएक साल में घींचऽ हको ?”

अतिथि लोग के बीच एक व्यक्ति टिप्पणी कइलकइ - "दुनहूँ समाने रूप से अनैतिक हकइ, काहे कि दुनहूँ के एक्के उद्देश्य होवऽ हइ - जिनगी लेना । राज्य भगवान नयँ हकइ । ओकरा अइसन कुच्छो लेवे के अधिकार नयँ हइ, जेकरा खुद चाहलो पर वापिस नयँ कर सके ।"

अतिथि लोग में एगो वकील हलइ, एगो कोय पचीस बरस के नवयुवक । जब ओकर विचार पुच्छल गेलइ, त ऊ बोललइ - "मृत्यु दंड आउ आजीवन कारावास दुनहूँ समान रूप से अनैतिक हकइ, लेकिन अगर हमरा ई दुन्नु में से एगो के चयन करे के विकल्प देल जइतइ, त हम निश्चय ही दोसरका के चुनबइ । बिलकुल नयँ जीवित रहे के अपेक्षा कइसूँ जीवित रहना बेहतर हकइ ।"

एगो सजीव चर्चा चालू हो गेलइ । ऊ बखत जरी कम उमर के आउ तुनुकमिजाज (चिड़चिड़ा) साहूकार अचानक अपन आपा खो देलकइ, टेबुल पर मुक्का के प्रहार कइलकइ आउ नवयुवक वकील तरफ सम्बोधित करते चिल्ला उठलइ - "झूठ ! बीस लाख के हम बाजी लगावऽ हियो कि तूँ पाँचो बरस जेल के अन्दर नयँ रह पइबऽ ।"

तब ओकरा वकील जवाब देलकइ - "अगर ई बात पर तूँ गम्भीर हकऽ, त हम बाजी लगावऽ हियो कि पाँच बरस नयँ, बल्कि पनरह बरस जेल में गुजार सकऽ ही ।"
साहूकार चिल्लइलइ - "पनरह बरस ? ठीक हको ! भद्र लोग, हम बीस लाख के बाजी लगा रहलिए ह !"
"सहमत ! तूँ बीस लाख लगावऽ, आउ हम अपन अजादी के !" वकील बोललइ ।

आउ ई अविवेचित मूर्खतापूर्ण बाजी तो वास्तव में लग गेलइ ! ऊ बखत तो ऊ गुस्ताख आउ चंचल साहूकार के केतना करोड़ अपन पास हके एकर अन्दाज नयँ हलइ, ऊ बाजी से आनन्दातिरेक में पगला गेलइ । रात्रिभोज के बखत ऊ वकील के व्यंग्यपूर्वक बोललइ अभियो चेत जा, नवयुवक, जब तक कि जादे देर नयँ होलो ह । हमरा लगी बीस लाख के कुछ महत्त्व नयँ, लेकिन तूँ अपन जिनगी के बेहतरीन तीन-चार बरस खो देबऽ । हम तीन-चार बरस बोल रहलियो ह, काहे कि एकरा से जादे तूँ जेल के जिनगी सहन नयँ कर पइबऽ । एहो बात मत भूलिहऽ, ए अभागल युवक, कि स्वयं स्वीकृत कारावास बाध्यकर कारावास के अपेक्षा जादे कष्टकर होवऽ हइ । ई विचार कि तोरा ई अधिकार हको कि कउनो पल तूँ अजाद होके जेल से निकल सकऽ ह, जेल के कोठरी तोरा अपन समुच्चे अस्तित्व के विषाक्त कर देतो । हमरा तोरा पर तरस आवऽ हको !

आउ अब साहूकार एक कोना से दोसर कोना डेग मारते ई सब बात आद कइलक आउ खुद से सवाल करे लगल - "ई बाजी से की फयदा ? ई बात के की उपयोग कि वकील अपन जिनगी के पनरह बरस खोवऽ हइ, चाहे हम दू लाख फेंक दे हूँ ? की एकरा से लोग के विश्वास हो जइतइ कि मृत्यु दंड आजीवन कारावास से बदतर चाहे बेहतर हकइ ? बिलकुल नयँ । ई सब बकवास आउ बेमतलब के चीज हइ । जहाँ तक हम्मर बात हकइ त ई एगो अघाल व्यक्ति के एगो सनक हलइ, आउ वकील के मामले में खाली पइसा के लोभ ... ।"

आउ आगे ओकरा आद आल कि ऊ शाम के पार्टी के बाद की होलइ । ई निर्णय कइल गेलइ कि वकील अपन कारावास के जिनगी साहूकार के एगो ऊ बहिर्गृह (out-house) में सख्त निगरानी में काटतइ, जे साहूकार के बाग में बनावल हकइ । ई बात में सहमति होलइ कि पनरह बरस के दौरान ऊ बहिर्गृह के दहलीज नयँ पार करतइ, कउनो जीवित अदमी से भेंट नयँ करतइ, कउनो मानव जाति के अवाज नयँ सुनतइ आउ कउनो चिट्ठी चाहे अखबार नयँ पा सकतइ । ओकरा ई बात के अनुमति देल गेलइ कि ऊ संगीत के कोय वाद्ययंत्र रख सकऽ हइ, किताब पढ़ सकऽ हइ, चिट्ठी लिख सकऽ हइ, आउ सिगरेट पी सकऽ हइ ।

शर्त के मुताबिक ऊ बाहरी दुनिया से खाली चुपचाप सम्पर्क कर सकऽ हलइ - एगो छोट्टे गो खिड़की से होके, जे खास एहे उद्देश्य से बनावल गेले हल । सब कुछ जेकर जरूरत पड़े - किताब, संगीत, शराब, इत्यादि - केतनो मात्रा में ऊ एगो पर्ची में लिखके खाली ऊ खिड़किए से होके मँगा सकऽ हलइ । समझौता में छोटगर से छोटगर ऊ सब चीज के विस्तृत विवरण के प्रावधान कइल गेले हल, जेकरा से ओकरा सख्त अकेलापन के जिनगी गुजारे के हलइ, आउ ई वकील के ठीक पनरह बरस तक रहे खातिर बाध्य कइलके हल - 14 नवम्बर 1870 के 12 बजे से लेके 14 नवम्बर 1885 के 12 बजे तक  निश्चित अवधि के पहिले वकील के तरफ से शर्त के तोड़े के एगो छोटगर से छोटगर कोशिश भी, चाहे ई दुइयो मिनट खातिर काहे नयँ रहे, साहूकार द्वारा वकील के बीस लाख के भुगतान के बाध्यता से मुक्ति देला देतइ ।

कारावास के पहिला बरस में वकील, जइसन कि ओकर छोटगर-छोटगर नोट से निष्कर्ष निकालल जा सकऽ हलइ, एकान्त जीवन आउ बोरियत से बहुत कष्ट झेललकइ । ओकर बहिर्गृह से दिन-रात लगातार पियानो के अवाज सुनाय दे हलइ । ओकरा शराब आउ सिगरेट नयँ चाही हल । ऊ लिखलके हल, "शराब इच्छा के जगावऽ हइ, आउ इच्छा एगो कैदी के पहिला दुश्मन हकइ । एकरा अलावे अकेल्ले निम्मन शराब पिए से आउ जादे बोरियत की हो सकऽ हइ, जबकि केकरो पर नजर तक नयँ पड़े । आउ सिगरेट तो ओकर बन कोठरी के हावा खराब करे वला होतइ ।

पहिला साल वकील के पास मुख्यतः साधारण विषय के पुस्तक भेजल गेलइ - क्लिष्ट प्रेम कथावस्तु के उपन्यास, अपराध आउ कल्पना से संबंधित कहानी, प्रहसन आदि । दोसरा साल बहिर्गृह में पियानो के संगीत सुनाय नयँ पड़लइ आउ वकील अपन नोट में खाली श्रेष्ठ साहित्य के माँग कइलकइ ।

पचमा साल संगीत फेर से सुनाय देलकइ आउ कैदी शराब के माँग कइलकइ । जे लोग ओकरा खिड़की से निरीक्षण कइलका, ऊ लोग बतइलका कि ऊ पूरे साल खाली खा हल, पीयऽ हल, आउ बिछौना पर पड़ल रहऽ हल । ऊ अकसर जम्हाई ले हल आउ गोस्सा में खुद से बात करते रहऽ हल । ऊ किताब नयँ पढ़ऽ हल । कभी-कभार ऊ रात में लिक्खे लगी बइठ जा हल, बहुत देरी तक लिखते रहऽ हल आउ सब्भे लिक्खल-उक्खल कागज के सुबहे फाड़-फूड़ दे हल । कइएक तुरी ओकरा कनते सुन्नल गेलइ ।

छट्ठा साल के दोसरा अर्धवर्ष में कैदी उत्साहपूर्वक भाषा, दर्शन, आउ इतिहास के अध्ययन कइलकइ । ई सब विषय के अध्ययन में ऊ एतना लगन से पिल पड़लइ कि साहूकार मोसकिल से ओकरा लगी किताब जुटा पावऽ हलइ । ओकर माँग के मोताबिक कोय छो सो ग्रन्थ के औडर देवे पड़लइ । ओकर अध्ययन के उत्साह के दौरान अन्य बात के अतिरिक्त कैदी के यहाँ से साहूकार के अइसन खत मिललइ - "प्रिय जेलर साहब ! ई पंक्तियन के हम छो भाषा में लिख रहलियो ह । एकरा विशेषज्ञ लोग के देखावल जाय । उनकन्हीं के पढ़े देल जाय । अगर उनकन्हीं कोय गलती नयँ ढूँढ़ पावऽ हथिन, त हमर निवेदन हइ कि बाग में बन्हूक से एक तुरी फायर कइल जाय । ई फायर से हम समझम कि हमर परिश्रम बेकार नयँ गेल । सब्भे युग आउ देश के प्रतिभाशाली लोग भिन्न-भिन्न भाषा में बोलते जा हका, लेकिन ऊ सब्भे में एक्के ज्वाला प्रज्वलित होवऽ हइ । काश, तूँ जान पइतऽ हल कि हमर आत्मा कइसन स्वर्गीय आनन्द के अनुभव कर रहल ह, कि हमरा ऊ सब समझ में आवऽ हके !"

कैदी के इच्छा के पूर्ति कर देल गेलइ । साहूकार बाग में दू तुरी फायर करे के औडर देलकइ । बाद में दसमा साल के अन्त में वकील टेबुल के सामने बिना हिलले-डुलले बइठल रहऽ हलइ आउ खाली बाइबिल (न्यू टेस्टामेंट) पढ़ऽ हलइ । साहूकार के विचित्र प्रतीत होलइ कि जे अदमी चार साल में छो सो पाण्डित्यपूर्ण ग्रन्थ के अध्ययन कइलकइ, ऊ अब सालो भर असानी से समझे जाय वला आउ जे मोटगर भी नयँ हलइ, अइसन एक्के गो पुस्तक पढ़े में समय गुजार देलकइ । फेर बाइबिल के जगह पे धर्मशास्त्र के इतिहास आउ धर्मविज्ञान (थियोलॉजी) के पुस्तक देल गेलइ ।

कारावास के अन्तिम दू बरस कैदी विलक्षण रूप से बहुत अधिक पढ़ाय कइलकइ, बिना कउनो प्रकार के चयन कइले । कभी ऊ प्राकृतिक विज्ञान पढ़े, त कभी बायरोन चाहे शेक्सपियर के रचना के माँग करे । ओकरा हीं से अइसनो पर्ची आवइ, जेकरा में ऊ एके तुरी रसायनशास्त्र, चिकित्साशास्त्र के पाठ्यपुस्तक, उपन्यास, कउनो दर्शनशास्त्र, चाहे धर्मविज्ञान (थियोलॉजी) संबंधी पुस्तक भेजे के निवेदन करे । ओकर अध्ययन कुछ ई प्रकार के रहे मानूँ ऊ जहाज के मलबा पर पइर रहल ह, आउ अपन जिनगी बचावे खातिर कभी एक टुकड़ा पर चढ़े के कोशिश कर रहल ह, त कभी दोसरा पर !

2

वृद्ध-साहूकार ई सब आद कइलक आउ सोचलक - "बिहान 12 बजे ओकरा अजादी मिल जइतइ । आउ समझौता के मोताबिक हमरा ओकरा बीस लाख के भुगतान करे के चाही । अगर हम ओकरा भुगतान करऽ ही, त हम कहीं के नयँ रहम - हमेशे लगी बरबाद हो जाम ... ।"

पनरह साल पहिले ओकरा ई भान नयँ हल कि ओकरा पास केतना करोड़ रुपया हइ, आउ अब अपने आप के सवाल करे में डरऽ हलइ कि ओकरा पास जादे की हइ - पइसा कि करजा ? शेयर-दलाली वला जुआ, जोखिम भरल सट्टेबाजी, आउ उतावलापन, जेकरा से ऊ बुढ़ापो में छुटकारा नयँ पा सकल - ई सब से धीरे-धीरे ओकर व्यापार पर बुरा असर पड़े लगल, आउ भयहीन, आत्मविश्वास, अभिमानी धनसेठ एगो सधारन साहूकार बनके रह गेल, जे मार्केट के हरेक उतार-चढ़ाव से काँपे लगऽ हल ।

"ई अभिशप्त (cursed) बाजी !", निराशा में अपन सिर पकड़ले बुढ़उ बड़बड़ाल, "ई अदमी मरल काहे नयँ ? ओकर उमर अभी चालसे साल हकइ । ऊ हमरा से एक-एक पइसा ले लेत, बियाह करत, जिनगी में मौज करत, शेयर-दलाली करत, आउ हम एगो भिखारी नियन डाह से देखते रहम आउ रोज दिन ओकरा से एक्के बात सुन्नम - 'हम अपन खुशहाल जिनगी खातिर तोहर कृतज्ञ हकियो, हम तोरा मदत करे ल चाहऽ ही, मदत करे द !' नयँ, ई बहुत जादे हो गेल ! दिवालियापन आउ बदनामी से बच्चे के एक्के उपाय हके - ई अदमी के मौत !"

घड़ी तीन घंटा बजइलकइ । साहूकार सुन रहले हल । घर में सब कोय सुत्तल हलइ, आउ खाली सुनाय दे रहले हल खिड़की के पीछे बरफ से ढँकल पेड़ सब के सरसराहट । ऊ बिना कोय अवाज कइले कपाट से ऊ दरवाजा के कुंजी निकासलक, जेकरा पनरह साल तक खोलल नयँ गेले हल । ऊ कपड़ा पेन्हलक आउ घर से बहरसी निकलल ।

बाग में अन्हेरा आउ ठंढी हलइ । बारिश हो रहले हल । समुच्चे बाग में तेज ठंढा हावा चल रहले हल, जे गाछ-बिरिछ के शांति नयँ देब करऽ हलइ । ध्यान से नजर डाललो पर साहूकार के न तो जमीन देखाय दे हल, न उज्जर मूर्ति, न बहिर्गृह, आउ न तो कोय गाछ-बिरिछ । ऊ जगहा पे अइला पर, जाहाँ बहिर्गृह हलइ, ऊ पहरेदार के दू तुरी हँकइलक । कोय जवाब नयँ आल । शायद पहरेदार खराब मौसम के चलते कहीं आश्रय ले लेलक हल आउ खयँ तो भनसा भित्तर, खयँ उष्णगृह (hothouse, greenhouse) में सुत्तल हल ।

बुढ़उ सोचलक, "अगर हमरा अपन इरादा के पूरा करे के हिम्मत होत, त लोग के सबसे पहिले शंका जइतइ ऊ पहरेदार पर ।"

अन्हरवे में ऊ टोके सीढ़ी आउ दरवाजा तक पहुँचल आउ बहिर्गृह के डेउढ़ी में घुस्सल, फेर टोते-टाते एगो सँकरा गलियारा में पहुँचल आउ सलाय से निकालके एगो काँटी जलइलक । हुआँ कोय नयँ हल । केकरो खटिया पड़ल हलइ बिना कोय बिछौना के, आउ कोनमा में एगो लोहा के स्टोव हलइ । ऊ दरवाजा के सील सही-सलामत हलइ, जेकरा से कैदी के कोठरी में जाल जा हलइ ।

जब सलाय के काँटी (तिल्ली) बुता गेलइ, त बुढ़उ चिंता में कँपते, छोटकुन्ना खिड़की से अन्दर तरफ हुलकलइ । कैदी के भित्तर में एगो मोमबत्ती धीमे जल रहले हल । खुद कैदी टेबुल के पास बइठल हलइ । खाली ओकर पीठ, मथवा पर के बाल आउ दुन्नु हाथ देखाय देब करऽ हलइ । टेबुल, दु गो कुरसी आउ टेबुल के पास के दरी पर खुल्लल किताब सब बिखरल पड़ल हलइ ।

पाँच मिनट गुजर गेलइ, आउ कैदी जरिक्को हिल-डुल नयँ कइलकइ । पनरह साल के कैद ओकरा गतिहीन अवस्था में बइठे ल सिखा देलके हल । साहूकार खिड़की पर अँगुरी से ठकठकइलकइ, लेकिन कैदी ई ठकठक के अवाज के कउनो प्रकार से गति करके जवाब नयँ देलकइ । तब साहूकार सवधानी से दरवाजा के सील तोड़के ताला में कुंजी घुसइलकइ ।  जंगियाल ताला एगो अवाज के साथ खुल गेलइ, आउ दरवाजा चरचरइते खुललइ । साहूकार आशा कइले हलइ कि ओकरा तुरते अचरज के चीख आउ डेग बढ़ावे के अवाज सुनाय देत, लेकिन तीन मिनट गुजर गेलइ, आउ दरवाजा के पीछे सब कुछ पहिलहीं जइसन बिलकुल शांति हलइ । ऊ अन्दर घुस्से के फैसला कर लेलकइ ।

टेबुल के पास में एगो अइसन अदमी बइठल हलइ, जे सामान्य लोग से बिलकुल भिन्न हलइ । ई एगो कंकाल हलइ, जेकर देह के चमड़ी हड्डी से चिपकल हलइ, केशिया औरत के नियन बहुत लमगर आउ दढ़िया जटाल हलइ । ओकर चेहरवा पीयर आउ जरी मटमैला हलइ, गलवा में गड्ढा पड़ गेले हल, पीठिया लमगर आउ पतरा हलइ आउ हथवा, जेकर सहारे अपन झोंटेदार सिर के पकड़ले हलइ, एतना नाजुक आउ खराब हलइ, कि ओकरा देखे में डर लगऽ हलइ । सिर के केश जाहाँ-ताहाँ उज्जर हो गेले हल, आउ ओकर बुढ़ाल मरियल चेहरा देखके केकरो ई विश्वास नयँ होते हल कि ऊ अभी चालसे साल के हइ । ऊ सुत्तल हलइ ... । ओकर झुक्कल सिर के सामने टेबुल पर कागज के एगो पन्ना पड़ल हलइ, जेकरा पर सुन्दर अक्षर में कुछ लिक्खल हलइ ।

साहूकार सोचलकइ - "बेचारा ! सुत्तल हकइ आउ शायद सपना में बीस लाख देखब करऽ हइ ! आउ खाली हमरा ई अधमरू अदमी के पकड़के बिछौनमा पर पटक देबे के हइ, तकिया से ओकर गला दबा देवे के, आउ दक्ष से दक्ष व्यक्ति भी हिंसात्मक मौत के कोय लक्षण नयँ पा सकतइ । लेकिन पहिले पढ़ तो लिअइ कि ऊ कीऽ लिखलके ह ।"

साहूकार टेबुल पर से ऊ पन्ना उठा लेलकइ आउ पढ़लकइ - "बिहान 12 बजे दिन में हमरा अजादी मिल जात आउ लोग से हिल्ले-मिल्ले के अधिकार । लेकिन एकरा से पहिले कि हम ई कोठरी छोड़ूँ आउ सूरज के दर्शन करूँ, हम तोहरा कुछ बतावे लगी चाहऽ हूँ । शुद्ध अन्तरात्मा से आ भगमान के सामने, जे हमरा देखब करऽ हका, हम घोषणा करऽ हियो कि हमरा अजादी, जिनगी, आउ ऊ सब कुछ से, जे तोहर कितब्बन में संसार के निम्मन चीज बतावल गेले ह, घृणा हके ।

पनरह साल तक हम ध्यानपूर्वक पार्थिव जीवन के अध्ययन कइलूँ । ई सच हइ कि हम न तो पृथ्वी के देखलूँ, न लोग के, लेकिन तोहर कितब्बन में सुरस मधु के पान कइलूँ, गीत गइलूँ, जंगल में हिरन आउ भयंकर सूअर के शिकार कइलूँ, औरतियन से प्रेम कइलूँ ... । तोर प्रतिभावान कवियन द्वारा रचल बादल जइसे उड़े वली परियन हमरा पास रात में आवऽ हल आउ हमर कनमा में फुसफुसाके विचित्र-विचित्र कथा सुनावऽ हल, जेकरा से हमर मन में मस्ती छा गेल ह । तोहर कितब्बन में हम एलबोरुस आउ मोनब्लान के चोटी पर चढ़लूँ आउ हुआँ से देखलूँ कि सूरज कइसे उदित होवऽ हइ आउ कइसे सँझिया खनी अकाश, समुन्दर आउ पहाड़ के चोटी के सुनहला बना दे हइ । हुआँ से हम देखलूँ कि कइसे बादल के चीर के बिजली हमर उपरे चमकऽ हल । हम देखलूँ हँ - हरियर-हरियर जंगल, खेत, नद्दी, झील, शहर । हम सायरन के गीत सुनलूँ, आउ गरेड़िया के बाँसुरी वादन । हम सुन्दर शैतान के डैना के स्पर्श कइलूँ हँ, जे भगमान के बारे में चर्चा करे खातिर हमरा भिर उड़के आवऽ हल ... । तोहर कितब्बन में हम अगाध पताल में कूदके गेलूँ, चमत्कार कइलूँ, हत्या कइलूँ, कइएक शहर के जला देलूँ, नयका-नयका धरम के प्रचार कइलूँ, कइए गो समुच्चे के समुच्चे राज्य जीत लेलूँ ...

तोहर कितब्बन से हमरा अकलमंदी मिल्लल । सदियन से जे अथक मानवीय विचार रचल गेले ह, ऊ सब हमर खोपड़ी में एगो छोट्टे गो पिंड (लोंदा) के रूप में संकुचित होल हकइ । हम जानऽ हूँ कि हम तोहन्हीं सब्भे से अधिक अकलमंद हकूँ । आउ हमरा तोहर कितब्बन से घृणा हके, संसार के सब सुख-सुविधा आउ बुद्धिमानी से घृणा हके । सब कुछ शून्य, अस्थायी, नाजुक, मायामय आउ मृगतृष्णा जइसन भ्रामक हके । तूँ भले अभिमानी, बुद्धिमान आउ सुन्दर होवऽ, लेकिन मृत्यु तोरा पृथ्वी के सतह से भूमिगत चुहवन नियन मेटा देतो, आउ तोहर पीढ़ी, इतिहास, तोहर प्रतिभावान लोग के अमरता - सब कुछ बरफ नियन जम जइतो, चाहे पृथ्वी के गोला के साथ-साथ जल जइतो ।

तूँ पगला गेलऽ ह आउ गलत रस्ता पर जा रहलऽ ह । झूठ के तूँ सच समझ रहलऽ ह आउ कुरूपता के सुन्दरता । तोरा अचरज होतो, अगर कउनो कारणवश बेंग आउ बिछौती अचानक सेब आउ संतरा के फल के छोड़के पेड़ पर बढ़े लगइ, चाहे गुलाब एगो पसेना से लथपथ घोड़ा नियन गन्ध देवे लगइ । ओइसीं हमरा तोरा पर अचरज हो रहल ह कि तूँ स्वर्ग के बदले में मृत्युलोक लेब करऽ ह । हम तोरा समझे लगी नयँ चाहऽ ही ।

ई वास्तव में साबित करे लगी कि हमरा तोर रहन-सहन से केतना घृणा हको, हम बीस लाख के परित्याग करऽ हियो, जेकरा हम कभी स्वर्ग नियन सुखकारी समझके ओकरा बारे सपना देखऽ हलूँ, आउ जेकरा से अभी हमरा घृणा हके । ऊ पइसा के अधिकार से अपना के वंचित करे खातिर हम नियत काल से पाँच घंटा पहिलहीं निकस के चल जइबो आउ ई तरह से कइल करार के तोड़ देबो ... "

ई सब पढ़के साहूकार पनमा के टेबुल पर रख देलकइ, ऊ विचित्र व्यक्ति के सिर पर चुम्बन लेलकइ, फेर कन्ने लगलइ आउ बहिर्गृह से बहरा गेलइ । आउ कउनो बखत, हियाँ तक कि शेयर-दलालियो में जब भारी घाटा सहे पड़ले हल, ऊ खुद्दे लगी एतना घृणा के अनुभव नयँ कइलके हल, जेतना अभी । घर पर आके ऊ बिछौना पर पड़ गेलइ, लेकिन चिंता आउ आँसू से बहुत देर तक ओकरा नीन नयँ अइलइ ।

अगले दिन पहरेदार सब, जेकर चेहरा पीयर पड़ गेले हल, ओकरा भिर दौड़ल आके सूचना देते गेलइ कि ओकन्हीं ऊ अदमी, जे बहिर्गृह में रह रहले हल, खिड़किया से होके रेंगके बगिया में घुस गेलइ, आउ गेटवा तक चल गेलइ आउ बाद में कहीं छिप गेलइ । साहूकार नौकरवन साथे तुरते बहिर्गृह में गेलइ आउ अपन कैदी के पलायन के बारे निश्चय कइलकइ । फालतू के अफवाह आउ खुसुर-फुसुर से बच्चे खातिर ऊ टेबुल पर के पन्ना उठा लेलकइ, जेकरा में बीस लाख के परित्याग के उल्लेख हलइ, आउ घर वापिस आके एगो अदाह्य (fireproof) कपाट में रखके ताला जड़ देलकइ ।

प्रथम प्रकाशित 1889