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Friday, July 04, 2014

2.03 हम्मर कीऽ अपराध ?



मूल तमिल - आर॰ विलिनाथन्            उड़िया अनुवाद - पौरुष (मार्च 1981)       
उड़िया से मगही अनुवाद - नारायण प्रसाद

हमरा से कीऽ गलती होलइ ?  हमरा नौकरी से काहे ससपिन (सस्पेंड) कइल गेलइ ? बड़ी सोच-विचार कइलो पर हम एकर कारण ढूँढ़ न पइलूँ । अगर अपने जान पाथिन त हमरा बतइथिन । जरी स सोचथिन ।

हम झूठ काहे ल कहिअइ ? चाह तइयार करते बखत जइसे ई कागज के टुकड़ा जल रहले ह, ठीक ओइसहीं ऊ दिन हमर दिल जले लगल हल ।

साधारणतः हम रद्दी लिफाफा जलाके चाह तइयार करऽ हूँ । लेकिन ई दफ्तर में एक अफवाह उड़ गेल ह कि हम चिट्ठी जलाके चाह तइयार करऽ हियइ । हम तो बारंबार कहऽ हूँ कि ई अभियोग गलत हइ । लेकिन दोसर के नजर में ई सही हइ ।

फिर अपने पूरा के पूरा घटने सुन लेथिन । अपने असली बात जान पइथिन ।

न जानूँ ऊ कखने अइता - ई तरह के उद्वेग भरल मन लेके शायद प्रेमिका प्रेमी के बाट जोह रहल ह । एतने में प्रेमिका लगी चिट्ठी आवऽ हइ - नाया सपना भरल संदेश लेके । नौकरी से संबंधित दौरा पर गेल विरहविदग्ध पति शायद नाया शहर के कोय होटल के कोय कोठरी से चिट्ठी लिक्खऽ हइ अपन प्राणप्रिया घरवली के पास । मइया के खर्चा लगी रुपइया भेजे वला बेटा के प्यार भरल चिट्ठी आवऽ हइ । कन्या चिट्ठी दे हइ मइया के हानि-लाभ जाने ल । पदोन्नति लगी बेअग्गर कर्मचारी चिट्ठी भेजऽ हइ अपन जानल-पहचानल कोय ऊपर वला हाकिम के पास । ई सब बात के अलावे नजदीकी रिश्तेदार के मिरतु के समाद लेले आवऽ हइ कोय दुःखदायक पत्र । ई सब्भे तरह के चिट्ठी-पत्र के बाँटे के काम में लगल हकूँ हम । हम एगो डाकिया हकूँ । हमर नाम दामोदर हके । हम अपन काम में लगल हकूँ, फल के आशा नञ् करऽ हूँ । हम जानऽ हूँ - कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।

छोट्टे-छोट्टे बुतरू सब के खुश करे खातिर हम जे कुछ कइलिए ह, की ऊ गलत हइ ? हमर समझ में ई सही हइ । लेकिन बाकी लोग के नजर में ई गलत हइ । बियाह के बहुत दिन के बादो कोय संतान नञ् होवे के कारण हम दोसर लोग के बुतरू के देखके खुश हो जा हलूँ । ऊ सब के ठोर पर हँस्सी लावे लगी हम जे कुछ करऽ हलूँ, ऊ लोग-बाग के आँख के काँटा काहे बन गेल, ई हमर समझ में नञ् आल । हम करवो करऽ हलूँ की ? रस्ता पर कइएक रद्दी लिफाफा पड़ल रहऽ हकइ । हम ओकरा जामा करके लावऽ हलूँ आउ सिद्धिरस्तुनञ् जाने वला बुतरू के देखके ओकर हाथ में एगो लिफाफा धरा दे हलूँ । कहऽ हलूँ - ले, तोर मामूँ एगो चिट्ठी भेजलथुन ह । आउ कोय बुतरू के हाथ में लिफाफा पकड़इते कहऽ हलूँ - ले, तोर नाना ई सुन्दर चिट्ठी भेजलथुन ह । बुतरू आनन्दविभोर हो जा हल । ओकन्हीं के आनन्दित देखके हमहूँ पुलकित हो उठऽ हलूँ ।

पराया बुतरू के हमरा अइसे खुश करते देखके भगमान के शायद दया लग गेलइ । ओहे से हमर घर में जलम होल एगो बच्ची के ।

बाकी बुतरुअन साथ हम जइसन खेल खेलऽ हलूँ, अपन बेटियो के साथ ओइसने खेल खेले लगलूँ । एक दिन ओकरा बोलाके कहलूँ - ले, तोर चिट्ठी अइलो ह ।
- चिट्ठी ? हमरा चिट्ठी भेजलकइ केऽ ?” तोतराल अवाज में ऊ बोलल ।
- तोर दुलहवा ।
- सच ?” ऊ हँस पड़ल ।
एहे तरह से चल रहल हल हमर जीवन प्रवाह । एक दिन हमर बेटी हमर हाथ में एगो चिट्ठी देके बोललक - ई चिट्ठी के डाक में डाल दिहऽ ।
- केकरा चिट्ठी भेज रहलहीं ह ?” हम पुछलूँ ।
- अपन दुलहवा हीं । ऊ जवाब देलक ।
हम दुनू बेकत ई बात सुनके मारे हँसी के बेदम हो गलूँ ।

बेटी बड़ होवे लगल । ओकरा इस्कूल जाय के समय आ गेल । हम सोचलूँ कि बिद्दा तो हमर भाग में नञ् हल, बाकि अपन बेटी के एकरा से वंचित काहे करूँ ।  कम-से-कम बी॰ ए॰ तक ओकरा जरूर पढ़ाम ।

ऊ दिन हम दफ्तर से छुट्टी लेके घर बइठल हलूँ । एगो चिट्ठी आल हमर बेटी लता के नाम । लता ऊ बखत कौलेज जा हल । चिट्ठी पाके हम सोचलूँ, ओकरा पास चिट्ठी केऽ लिखलक होत ? जरूर ओकर कोय सहेली लिखलक होत । ई सोचते-सोचते हम चिट्ठी खोल डाललूँ । चिट्ठी पढ़े पर हमर सर चकरा गेल ।

कौलेज में आजकल कीऽ पढ़ावऽ हका ? खाली प्रेम से संबंधित गवेषणा चल रहले ह कीऽ हुआँ ? मोहन नाम के कोय युवक ई चिट्ठी भेजलक हल । ई हल एगो प्रेमपत्र ।

पहले तो चिट्ठी पढ़ला पर हमर सर गरम हो गेल । लेकिन बाद में हम शांतभाव से सोचे लगलूँ । सोचलूँ कि एकरा में गोस्सा करे के कीऽ बात हइ ? आजकल युवक-युवती अपन भाग के फैसला खुद्दे करे के प्रयास करऽ हइ । एकरा में हमरा माँ-बाप के हैसियत से तो ऊ सब के सहायता करना उचित हकइ । बेकार के अड़ँगा लगावे से कीऽ लाभ ? अगर ई युवक अच्छा होवे त हमरा ओकन्हीं के आगे बढ़े में मदत करे के  चाही ।

हम गुप्त रूप से ई मोहन के बारे में विभिन्न सूत्र से खबर जामा करे लगलूँ । देखलूँ कि ई युवक के चरित्र अच्छा नञ् । प्रेम करना ओकर एगो शौक हइ । ऊ ई तरह कइएक लड़की के प्रेमपत्र दे हइ, अइसन सुने में आल । ई सब कुछ हम अपन बेटी के बता देलूँ । मोहन के विरुद्ध जे कुछ हम सुनलूँ हल, ओकर अच्छा तरह से वर्णन करके लता के सुना देलूँ । लेकिन ई सब कइलो पर मोहन के प्रति लता के सहानुभूति कुच्छो कम नञ् होल, बल्कि ऊ दुनहुँ के बीच घनिष्ठता बढ़ले गेल । वस्तुतः प्रेम अन्धा होवऽ हइ, एकर सबूत हमरा मिल गेल । हम जेतना कड़ा अनुशासन बरतऽ हलूँ, लता ओतने अधिक मोहन से प्रेम करऽ हले । एक दिन सब्भे अनुशासन के पीछे छोड़ के लता मोहन के साथ कोय अनजान जगह में भाग गेल ।
ई तरह के कोय दुर्घटना घटत, एकर आशा हमर घरवली के नञ् हल । लता के चल जाय के दुइये दिन बाद ऊ खाट पकड़ लेलक । हृदय के असीम पीड़ा ऊ सहन न कर पइलक आउ एक सप्ताह के अन्दरे ऊ आँख मून लेलक - हमेशे लगी । ई घटना से हम तो अधमरू हो गेलूँ । तइयो हमर हृदय में एक क्षीण आशा शेष हले - शायद हमर लड़की जीवन के उथल-पुथल में कटु सत्य जान पावत, शायद ऊ फिर जीवन के स्वाभाविक धारा में वापस आ जात ... ...।
हमरा एक तरह के अवाज सुनाय दे हले मानूँ हमर आत्मा कह रहल ह - दामोदर ! ई सब लगी तूँहीं उत्तरदायी हँ । बुतरुअन के झूट्ठो-फुस्सो के चिट्ठी देके तूँहीं ओकन्हीं के मन में वृथा आशा आउ अभिलाषा के सृष्टि कइलऽ हँ । ओकरे तो ई नतीजा हउ । ई तरह के घटना केतना परिवार में घटलो होत, केऽ जानऽ हउ ?
कीऽ करूँ ? हमर तो ई तरह के झूठ चिट्ठी बाँटना एगो आदत बन गेल ह । ओहे से निश्चय कइलूँ कि डाक के नौकरी छोड़ देम । 43 साल के उमर में बहुत मेहनत करके हम मैटिक के परीक्षा देलूँ । पास कइला के बाद ऊपर के हाकिम के कह-सुनके सॉर्टरके नौकरी पा गेलूँ ।
पोस्टल सॉर्टर के रूप में हमर जनकारी बढ़े लगल । जनकारी एतना बढ़ गेल कि कोय लिफाफा के हाथ में लेतहीं हम बता सकऽ हलूँ कि ओकर वज़न केतना होत । एकरा में ठीक-ठाक टिकट लगल हइ कि नञ्, ई हम ओकर वज़न से जान ले हलूँ । खाली एतने नञ्, लिफाफा के अन्दर में कीऽ होत, एकरा बारे में ठीक-ठाक अनुमान लगाना हमरा लगी सम्भव हो गेल ।
आउ एगो महारत हम हासिल कर लेलूँ । लिफ़ाफ़ा के देखतहीं हम भाँप ले हलूँ कि एकरा में प्रेमपत्र होत कि नञ् । हमर ई अनुमान शत-प्रतिशत सही उतरऽ हल । ई तरह के चिट्ठी देखतहीं हमरा अपन बेटी के घटना तरोताज़ा हो जा हल । लता जे तरह से दुर्भाग्य के शिकार होल, बाकी लड़की के साथ अइसन न होवे, एहे हमर आन्तरिक कामना हल । फेनुँ ई तरह के चिट्ठी देखतहीं हम ओकरा अलगे रख दे हलूँ । ओकरा ऊ दिन के डाक में कभीयो नञ् भेजऽ हलूँ ।
अपने सोचऽ होथिन, हमर बेटी के कीऽ होलइ ? वस्तुतः हमरा जेकर आशंका हलइ, ओहे होल । ऊ धूर्त बदमाश छोकरा हमर बेटी के असहाय अवस्था में छोड़ के कहीं भाग गेल । ऊ बखत हमर बेटी दू बुतरू के माय बन चुकल हल । छो बच्छर के लम्बा अवधि के बाद अपन बेटी के बारे में एहे ख़बर हमरा मिलल । हम ख़बर पइतहीं ओकरा ले आवे खातिर ओकर घर गेलूँ ।
जानऽ हथिन, बेटी हमरा कीऽ उत्तर देलकइ ? ऊ कहलक - ऊ दिन तोहर बात नञ् मान के हम घर छोड़ के चल अइलूँ हल । आज तोहर बात मान के हम अगर फेर तोहर घर वापस आ जाऊँ, त मान-इज्जत रहत तो ? हमर पति के बुद्धि भ्रष्ट हो गेल ह, त कीऽ हमहुँ बुद्धि भ्रष्ट कर लेउँ ? हम अपने गोड़ पर खड़ा हो के ई दुनहुँ बुतरू के पालम-पोसम । एकरा से हमर पति के कुल-रक्षा होवत । हमर चिन्ता छोड़ऽ ।
हमर बेटी के ई तरह के दुःसाहस दोसर लड़कियन के मन में जागे, अइसन हम कभीयो नञ् चाहऽ हूँ । ओहे से जे चिट्ठी के बारे हमरा सन्देह होवऽ हके, ओकरा बिना पढ़ले कभीयो डाक में नञ् छोड़ऽ हूँ । दोसर के चिट्ठी पढ़ना अच्छा बात नञ् हइ, ई हम मानऽ हूँ । लेकिन खुफिया विभाग के कर्मचारी अइसन चिट्ठी कइसे पढ़ऽ हका ?
हमर आदत से अपने अच्छा तरह से अवगत हो गेलथिन होत । पहले रस्ता में पड़ल लिफ़ाफ़ा, पोसकाड आदि जामा करे के जे बुरा आदत हलइ, ऊ अभी तक गेलइ नञ् । वस्तुतः ई तरह के पोसकाड, लिफ़ाफ़ा आदि हम अभीयो जामा करऽ हूँ आउ चाह तैयार करे में ओकर इस्तेमाल करऽ हूँ । चाह तइयार करे बखत शंकाहा पत्र के खोलके हम पढ़ लेल करऽ हूँ ।
हम तो ई क्षेत्र में काफी महर्रत हासिल कर लेलूँ ह । ओहे से सन्देह के परिसर के अन्दर आवे वला चिट्ठी  के हम कभीयो नञ् छोड़ऽ हूँ । एकर ई मतलब नञ् कि वास्तविक प्रेम के विरुद्ध हम अड़ँगा लगावऽ हूँ । वस्तुतः जाहाँ सच्चा प्रेम रहऽ हइ, हुआँ हम दुनहुँ प्रेमी के विवाहसूत्र में आबद्ध करे के चेष्टा करऽ हूँ । जाहाँ ई तरह के प्रेम के अभाव देखऽ हूँ, हुआँ हम खाली लिफ़ाफ़ा भेज के दुनहुँ प्रेमी के बीच कड़वाहट पैदा करऽ हूँ ताकि ओकन्हीं के बियाह नञ् हो पावे ।
ई तरह से बहुत दिन गुजर गेल । कोय पत्रप्रेषक अपन गन्तव्य स्थान में नञ् पहुँचे के डाक विभाग में शिकायत कइलक हल । ऊ शिकायत के अर्जी पर छानबीन कइल गेलइ । हम आपिस में लिफाफा जलाके चाह बनावऽ हियइ - ई बहुत लोग के सहन नञ् हो पावऽ हलइ । ऊ सब अनुसंधानकारी अफ़सर के हमरा विरुद्ध कह देलकइ ।
बहुत कर्मचारी बतइलकइ कि हमर बेटी के जीवन नष्ट हो गेला के बाद हमर सिर फिर गेले ह । हम मानऽ हियइ, हम दोषी हकियइ । जवाब में हम बहुत सारा चिट्ठी ऊपर के हाकिम के सामने पेश करवइ । ऊ बखत हम मालूम करा देवइ कि जे अफसर हमरा अपराधी साबित कइलका ह, ओकर बेटिये के मिथ्याप्रेम के फन्दा से हम बचइलिये ह । ऊ लड़की सर्वनाश के मुख से रक्षा पा गेले ह । अफ़सर के जब ई बात मालूम होतइ, ऊ बखत ऊ मन ही मन हमरा पर कृतज्ञता प्रकट करतइ ।
अपने पूछ सकऽ हथिन कि हम ऊ लड़की के बचइलिये ह, एकर कीऽ प्रमाण हइ ? अरे बाबू, अपने जानऽ हथिन कि ई मिथ्याप्रेमी केऽ हइ ? जे धूर्त बदमाश हमर बेटी के फँसा के ओकर जिनगी बरबाद कर देलकइ, ओहे फेर ई अफसर के बेटी के अपन फन्दा में फँसावे के कोरसिस कर रहले ह ।

बेचारी अब कीऽ कर रहले होत ? अजी साहब, अब हमर लड़की के केकरो सहानुभूति के जरूरत नञ् । अपने बापे के तरह ओहो डाक विभाग में सॉर्टरके रूप में काम चालू कर देलक ह ।

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