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Thursday, February 12, 2015

अपराध आउ दंड - भाग – 2 ; अध्याय – 6



अपराध आउ दंड

भाग – 2

अध्याय – 6

लेकिन जइसीं ऊ (नस्तास्या) बहरसी गेलइ, कि ऊ उठ खड़ी होलइ, दरवाजा के सिटकिनी लगइलकइ, सँझिया के रज़ुमिख़िन द्वारा लावल बंडल के खोललकइ, जेकरा ऊ फेर से बान्ह देलके हल, आउ पोशाक पेन्हे लगलइ । अजीब बात हलइ - लगलइ कि ऊ तुरते बिलकुल शांत हो गेले ह; पहिले नियन न अब कोय अधकपारी सरसाम हलइ, आउ न आतंक भरल भय, जइसन कि लगातार हाल में ओकरा हलइ । ई एक प्रकार के विचित्र, अचानक पैदा हो जाय वला शांति के पहिला क्षण हलइ । ओकर चाल नप्पल-तुलल आउ स्पष्ट हलइ; ओकरा में पक्का इरादा के झलक हलइ । "आझे, आझे ! ...", ऊ अपने आपके बड़बड़इलइ । ओकरा ई समझ में आ रहले हल, कि ऊ अभियो कमजोर हइ, लेकिन अत्यधिक शक्तिशाली भावुकता के तनाव, जे शांति तक पहुँच गेले हल, आउ अटल विचार तक, ऊ ओकरा शक्ति आउ आत्म-विश्वास दे रहले हल; बल्कि ओकरा ई भरोसा हलइ, कि ऊ सड़क पर नयँ गिर जइतइ । पूरा तरह से पोशाक पेन्हके, सब कुछ नयका में, ऊ पइसा पर नजर डललकइ, जे टेबुल पर पड़ल हलइ, थोड़े देर तक सोचते रहलइ आउ फेर ओकरा जेभी में रख लेलकइ । पचीस रूबल हलइ । ऊ सब्भे पाँच कोपेक के तामा के सिक्को ले लेलकइ, जे रज़ुमिख़िन के दस रूबल में से पोशाक खरीदला के बाद रेजकी बच गेले हल । तब ऊ धीरे से सिटकिनी खोललकइ, कमरा से बाहर निकसलइ, ज़ीना पर से निच्चे उतरलइ आउ भनसा घर के पूरा खुल्लल दरवाजा से अन्दर हुलकलइ - नस्तास्या ओकरा तरफ पीठ करके खड़ी हलइ, आउ झुकके मकान-मालकिन के समोवार में आग सुलगा रहले हल । ओकरा कुच्छो सुनाय नयँ देलकइ । केऽ कल्पना कर सकले हल, कि ऊ बाहर निकस जइतइ ? एक मिनट के बाद ऊ सड़क पर पहुँच गेलइ ।

आठ बजले हल, सूरज डूब रहले हल । पहिलहीं जइसन उमस हलइ; लेकिन ऊ ई बदबूदार, धूरी-गरदा भरल, शहर के प्रदूषित हवा के, उपरदम होल नियन, साँस से घिंच्चे लगलइ । ओकर माथा में थोड़े चक्कर आवे लगलइ; एक प्रकार के पाशविक ऊर्जा अचानक ओकर सूजल आँख में आउ ओकर क्षीण हलका पीयर चेहरा पर चमके लगलइ । ओकरा ई बात के बोध नयँ हलइ, आउ न एकरा बारे सोचवो करऽ हलइ, कि ओकरा काहाँ जाय के हइ; ओकरा खाली एतने मालूम हलइ - "कि सब काम आझे निपटा लेवे के चाही, एक्के तुरी में, अभिये; नयँ तो ऊ घर वापिस नयँ आवे वला, काहेकि ऊ अइसे जिनगी गुजारते रहे ल नयँ चाहऽ हइ ।" काम कइसे पूरा करे के? कउची से करे के ? एकरा बारे तो ओकरा कोय कल्पनो नयँ हलइ, आउ सोचहूँ ल नयँ चाहऽ हलइ । ऊ सोच-विचार के दूर रखले हलइ - विचार से ओकरा कष्ट होवऽ हलइ । ऊ खाली अनुभव करऽ हलइ आउ जानऽ हलइ, कि की चाही, कि सब कुछ बदल जाय के चाही, अइसे चाहे ओइसे, "येन केन प्रकारेण", ऊ हताश, अडिग आत्म-विश्वास आउ दृढ़ निश्चय के साथ दोहरइलकइ ।

अपन पुरनका आदत के अनुसार, ऊ हमेशे नियन अपन पहिलौका सैर-सपाटा के रस्ता से सीधे पुआल-मंडी तरफ रवाना होलइ । पुआल-मंडी के पहिले, पक्की सड़क पर, एक छोट-मोट किराना दुकान के सामने, एगो नौजवान, कार केश वला, ऑर्गन-वादक खड़ी हलइ आउ एगो कोय भावुक प्रेमगीत के धुन बजा रहले हल । सड़क के बगल के फुटपाथ पर ओकर आगू मुँहें खड़ी एगो लड़की साथ में हलइ, करीब पनरह साल के, ठकुराइन जइसन पोशाक धारण कइले, क्रिनोलीन (साया), ओढ़नी, दस्ताना आउ पुआल के टोप में, जेकरा में लाल रंग के पंख लगल हलइ; ई सब कुछ पुराना आउ  फट्टल-चिट्टल हलइ । गली वला गायक के अवाज में, कम्पित, लेकिन काफी मनोहर आउ जोरदार अवाज में ऊ प्रेमगीत गा रहले हल, दोकान से दू कोपेक मिल्ले के आशा में । रस्कोलनिकोव दू-तीन गो श्रोता के साथ बगल में रुक गेलइ, थोड़े देर गीत सुनलकइ, पाँच कोपेक के सिक्का निकसलकइ आउ लड़किया के हाथ में रख देलकइ । ऊ उच्चतम भावनात्मक आउ सर्वोच्च सुर पर पहुँचके अचानक गीत बन कर देलकइ, चाकू से काटल नियन, ऑर्गन-वादक से तीक्ष्ण स्वर में चिल्लइलइ - "बस, काफी हो गेलइ !", आउ दुन्नु अगला दोकान तरफ बढ़ गेते गेलइ ।

"अपने के गली के गाना पसीन पड़ऽ हइ?" रस्कोलनिकोव अचानक एगो वइसगर राहगीर के संबोधित कइलकइ, जे ओकरा साथ बैरल-ऑर्गन के पास खड़ी हलइ आउ मटरगस्ती करेवला नियन लग रहले हल । ऊ अजीब तरह से ओकरा तरफ देखलकइ आउ अचंभित हो गेलइ ।

"हमरा तो पसीन हके", रस्कोलनिकोव बात जारी रखलकइ, लेकिन देखे में अइसे लग रहले हल, मानूँ ऊ गली वला गीत के बात नयँ कर रहले हल, "हमरा अच्छा लगऽ हके, जब कोय बैरल-ऑर्गन पर ठंढगर, अन्हरिया आउ भींगल-भींगल शाम में गावऽ हइ, पक्का भींगल-भींगल शाम, जब राहगीर सब के चेहरा हलका हरियर आउ बेमरियाहा रहे; अथवा, आउ अच्छा, जब ठंढा-ठंढा बरफ गिर रहल होवे, बिलकुल सीधे, बिन हावा-बतास के, समझऽ हथिन न ? आउ ओकरा बीच से गैस बत्ती चमक रहल होवे ..."

"हमरा मालूम नयँ, महोदय ... माफ करथिन ...", रस्कोलनिकोव के प्रश्न से, आउ ओकर विचित्र सूरत से डरके, ऊ सज्जन बड़बड़इला, आउ सड़क पार करके दोसर तरफ चल गेला ।

रस्कोलनिकोव सीधे चलते रहलइ आउ पुआल-मंडी के ऊ मोड़ पर पहुँच गेलइ, जाहाँ फेरीवाला आउ ओकर घरवली अपन धंधा करऽ हलइ, जे ऊ दिन लिज़ावेता के साथ बातचीत कर रहले हल; लेकिन अभी ओकन्हीं नयँ हलइ । ऊ जगह पछानके ऊ रुक गेलइ, चारो तरफ नजर दौड़इलकइ आउ एगो नौजवान के संबोधित कइलकइ, जे लाल कमीज पेन्हले, एगो आटा-मिल (चक्की) के प्रवेशद्वार के पास जम्हाई ले रहले हल ।

"ऊ फेरीवाला हियाँ मोड़ पर, औरत के साथ, मतलब अपन घरवली के साथ, धंधा करऽ हइ न ?"
"कइएक लोग धंधा करऽ हइ", ऊ छोकरा जवाब देलकइ, रस्कोलनिकोव के अभिमानपूर्वक उपरे-निच्चे देखते ।
"ओकर की नाम हइ ?"
"नामकरण के बखत जे नाम देल गेले हल, ओहे ।"
"तूहूँ ज़रायस्क से हकऽ न ? कउन प्रान्त ?"
छोकरा फेर से रस्कोलनिकोव तरफ देखलकइ ।

"ऊ हमर प्रान्त नयँ हइ, सरकार (Your Excellency), बल्कि जिला हइ, आउ जिला तो हमर भाय अइते-जइते रहऽ हलइ, आ हम तो घरे पर बइठल रहलिअइ, ओहे से हमरा नयँ मालूम हइ, सरकार ... त हमरा माफ करथिन, सरकार, बड़ी मेहरबानी होतइ ।"

"हुआँ उपरे भोजनालय हइ ?"
"ई कलाली हइ, आउ बिलियर्ड खेले के कमरो हइ; आउ राजकुमारी सबन भी रहऽ हका ... ओ-ला-ला !"
   
रस्कोलनिकोव चौक पार कइलकइ । हुआँ, कोना पर, लोग के बड़गो भीड़ जम्मल हलइ, किसान सब के । ऊ रस्ता बनइते घनगर भीड़ में घुस गेलइ, लोग के चेहरा देखते । ओकरा कोय कारणवश सब्भे से बात करे के मन कर रहले हल। लेकिन किसान सब ओकरा पर कोय ध्यान नयँ देते गेलइ, आउ ओकन्हीं सब्भे आपस में टोली बनाके हो-हल्ला कर रहले हल । ऊ थोड़े देरी ठहरलइ, सोचते रहलइ आउ फेर दहिना तरफ के फुटपाथ पर चल पड़लइ, वे॰ के दिशा में । चौक पार कर लेला के बाद, ऊ एगो गल्ली में घुस गेलइ ...
ऊ पहिलहूँ ई छोटका गल्ली से होके गुजरले हल, जे केहुनी (elbow) मोड़ बनइते चौक से सदोवाया रोड तक चल गेले हल । हाल में जब कभी ऊ बोर हो जा हलइ, ओकरा ई सब इलाका में घुम्मे-फिरे के मन करऽ हलइ,  ताकि "ओकरा आउ जादे बोरियत अनुभव होवे" । अभी तो बिन कोय चीज के बारे सोचते ऊ हियाँ घुसलइ । हियाँ एगो बड़का गो इमारत हकइ, जे पूरा के पूरा कलाली आउ भिन्न-भिन्न प्रकार के खाय-पीये वला संस्थान के किराया पर देल हकइ; ई सब से मिनट-मिनट औरतियन बाहर भाग-दौड़ करते रहऽ हलइ, ओहे कपड़ा में, जेकरा पेन्हके 'पड़ोस में' चलते-फिरते रहऽ हलइ - नंगे सिर आउ खाली पोशाक में । दू-तीन जगह पर ओकन्हीं टोली में फुटपाथ पर भीड़ जमइले हलइ, खास करके निचला मंजिल के ज़ीना के पास, जाहाँ से दू सीढ़ी निच्चे उतरके भिन्न-भिन्न प्रकार के बहुत मौज-मस्ती करे वला रंगीन अड्डा में जाल जा सकऽ हलइ । ओकरा में से एगो में, ई क्षण, ढमढम आउ शोर-गुल पूरे रोड पर सुनाय देवे लायक चल रहले हल, गिटार के झनकार, गीत के धुन, आउ बहुत मौज-मस्ती हलइ । औरतियन के बड़गर जमात प्रवेशद्वार भिर भीड़ लगइले हलइ; कुछ लोग सिड़हियन पर बइठल हलइ, आउ कुछ दोसर सबन फुटपाथ पर, तेसर जमात खड़ी-खड़ी बतिया रहले हल। बगल में, रोड पर, एगो पीके धुत्त सैनिक सिगरेट के साथ, जोर-जोर से गरिअइते एन्ने-ओन्ने घूम रहले हल, आउ लगऽ हलइ, कि कधरो अन्दर घुस्से लगी चाह रहले हल, लेकिन ई भूल गेले हल कि कद्धिर । एगो गुदड़ी पेन्हले अदमी दोसर गुदड़िया के साथ गारा-गारी कर रहले हल, आउ एगो पीके मरल नियन सड़क के आर-पार दिशा में पड़ल हलइ । रस्कोलनिकोव औरतियन के एगो बड़गर झुंड के पास ठहर गेलइ । ओकन्हीं भर्राल अवाज में बतिया रहले हल; सब्भे सूती पोशाक में हलइ, बकरी के खाल के बश्माक (जुत्ती) पेन्हले आउ नंगे सिर । कुछ चालीस बरस के उपरे के हलइ, लेकिन कुछ सतरह से जादे के नयँ हलइ; लगभग सब्भे के आँख करिया कइल हलइ ।

कोय कारण से ऊ, हुआँ, निचला मंजिल पर के गीत आउ ई सब ढमढम आउ शोरगुल में मगन हो गेलइ ... हुआँ से सुनाय देब करऽ हलइ, कि खिखियाहट आउ चीख के बीच, प्रफुल्ल गीत के महीन पुरुषस्वर (thin falsetto) आउ गिटार के धुन पर कोय तो एड़ी से ताल देते मस्ती में नृत्य कर रहले ह । ऊ बड़ी ध्यान से, उदास मन से आउ विचारमग्न होके सुन रहले हल, आउ प्रवेशद्वार भिर झुकके आउ उत्सुकतापूर्वक फुटपाथ से ड्योढ़ी के अन्दर हुलक रहले हल।

तूँ मोर सुन्दर सिपहिया
तूँ हमरा नयँ मारऽ बेवजहिया
- गावे वला के महीन अवाज छलक रहले हल ।

रस्कोलनिकोव अच्छा से सुन्ने लगी बेताब हलइ, कि की गावल जा रहले ह, मानूँ ओकरा खाली एकरे से मतलब हलइ ।
"अन्दर जाऊँ कि नयँ ?" ऊ थोड़े देरी सोचलकइ । "पीके धुत्त होल खिखिया रहले ह ! आ की होत, अगर हमहूँ निसा में धुत्त हो जाऊँ ?"
 "अन्दर नयँ अइथिन, प्यारे मालिक ?" ओतना औरतियन में से एगो पुछलकइ, यथेष्ट ठनकदार अवाज में, आउ भर्राल अवाज में बिलकुल नयँ । ऊ नौजवान हलइ आउ सूरत-शकल से खराबो नयँ हलइ - समुच्चे मंडली में अकेल्ले ।
"अरे, केतना सुत्थर हकइ !" ऊ जवाब देलकइ, सीधे खड़ी होके आउ ओकरा तरफ देखके ।
ऊ मुसकइलइ; तारीफ ओकरा बहुत अच्छा लगलइ ।
"अपनहूँ तो बहुत सुन्दर हथिन", ऊ बोललइ ।
"केतना दुब्बर-पातर हथिन !" दोसर औरत मंद्र (bass) स्वर में टिप्पणी कइलकइ, "कहीं सीधे अस्पताल से मुक्ति मिलला के बाद तो नयँ अइलथिन हँ ?"
"लगऽ हइ कि सेनापति सब के बेटियन हकइ, आउ सब के सब नकचिपटी !" अचानक अभी आल एगो किसान, निसा में धुत्त, बिन बोताम लगइले कोट में, आउ शरारत भरल मुसकाहट के साथ, बीच में बोल उठलइ ।
"अरे, कइसन मौज-मस्ती !"
"अन्दर आ जा, अगर आवे के मन हको !"
"जरूर ! हमर जान !"

आउ ऊ सीढ़ी पर से कलाबाजी खइते निच्चे उतर गेलइ ।
रस्कोलनिकोव आगू बढ़ गेलइ ।

"सुनथिन, मालिक !" लड़किया ओकर पीछू से चिल्लइलइ ।
"की बात हइ ?"
ऊ संकोच में पड़ गेलइ ।
"प्यारे मालिक, हमरा अपने के साथ तो हमेशे समय गुजारे में खुशी होतइ, लेकिन अभी तो अपने के बारे अपन मन पक्का करे के साहस नयँ कर पावऽ हिअइ । प्यारे प्रेमी, किरपा करके छो कोपेक पीये लगी तो दे देथिन !"

रस्कोलनिकोव निकसलकइ, जेतना एक तुरी में ओकर हाथ में अइलइ - पँच-पँच कोपेक के तीन सिक्का हलइ ।
"आहा, केतना अच्छा मालिक हका !"
"तोर नाम की हउ ?"
"दुक्लिदा कहके पूछ लेथिन ।"
"अरे, ई कइसन बात होलइ", अचानक झुंड में से एक औरत दुक्लिदा तरफ सिर हिलइते टिप्पणी कइलकइ, "ई तो हमरो समझ में नयँ आवऽ हके, कि अइसे कइसे माँग कर देलहीं ! हमरा तो, लगऽ हके, कि अइसन बात पुच्छे में तो हम शरम से गड़ जइतूँ हल ...।" रस्कोलनिकोव कौतूहल से ऊ बोले वली औरतिया तरफ देखलकइ । ई चेहरा पर चेचक के दाग वली एगो लगभग तीस साल के युवती हलइ, चेहरा पर पूरा नील पड़ल, उपरौका होंठ सुज्जल । ऊ शांत भाव से आउ गंभीरतापूर्वक बोललइ आउ आलोचना कइलकइ ।

"काहाँ ई", आगू जइते रस्कोलनिकोव सोच रहले हल, "काहाँ ई हम पढ़लूँ हल, कि एगो मौत के सजा सुनावल अदमी, मौत के एक घंटा पहिले, बोलऽ हइ चाहे सोचऽ हइ, कि अगर ओकरा कहीं अइसन उँचगर जगह पर रहे पड़इ, खड़ा चट्टान (cliff) पर, आउ अइसन सँकरा चबूतरा पर, कि जेकरा पर खाली दू गोड़ रक्खे भर जगह होवे - आउ चारो तरफ रहइ अथाह खाई, समुद्र, घुप्प अन्हेरा, अनंत एकाकीपन आउ अनंत आँधी - आउ अइसीं रहे पड़इ, आउ अर्शीन भर लम्मा-चौड़ा जगह में रहे पड़इ, पूरे जिनगी, हजारो साल, अनंत काल तक - तइयो अभिये मर जाय के अपेक्षा, बेहतर होतइ ई तरह से जीना ! खाली जीना, जीना आउ जीना ! कइसे नयँ जीना - खाली जीना ! [1] ... ई केतना सच हइ ! हे भगमान, कइसन सच्चाई हइ ! मानव नीच जीव हइ ! आउ नीच ऊ हइ, जे एकरा लगी ओकरा नीच कहऽ हइ", ऊ एक मिनट के बाद ई बात जोड़लकइ ।

ऊ दोसर सड़क पर निकस पड़लइ - "ओह ! ‘बिल्लौर महल’ (क्रिस्टल पैलेस) ! हाल में रज़ुमिख़िन ‘बिल्लौर महल’ के बात कर रहला हल । खाली, अरे देखऽ तो, हम की करे ल चाहऽ हलूँ ? अरे हाँ, पढ़े लगी ! ... ज़ोसिमोव बोल रहला हल, कि अखबार में पढ़लका हल ..."

"अखबार हकइ ?" ऊ पुछलकइ, एगो अच्छा बड़गर आउ साफ-सुथरा शराबखाना में जाके, जेकरा में कइएक कमरा हलइ, लेकिन जादेतर खाली हलइ । दू-तीन गाहक चाय पी रहले हल, आउ एगो दूर वला कमरा में चार लोग के एगो मंडली बइठल हलइ, आउ शैम्पेन पी रहले हल । रस्कोलनिकोव के लगलइ, कि ओकन्हीं में से एगो ज़म्योतोव हकइ । लेकिन, दूर से निम्मन से देखाय नयँ देब करऽ हलइ । "आ होवे करतइ, त की होतइ !" ऊ सोचलकइ ।

"वोदका लेथिन, सर ?" बैरा पुछलकइ ।
"चाय लेके आव । हाँ, आउ हमरा लगी अखबार लेके आव, पुरनका, एहे लगातार पिछला पाँच दिन के, आउ तोरा हम वोदका भर बख्शीश (tip) दे देबउ ।"
"जी सर । अइकी आझ वला हकइ, सर । आउ वोदका लेथिन, सर ?"

पुरनका अखबार आउ चाह आ गेलइ । रस्कोलनिकोव बइठ गेलइ आउ खोजे लगलइ -
"इज़लेर - इज़लेर - आत्सतेक - आत्सतेक - इज़लेर - बरतोला - मस्सिमो - आत्सतेक - इज़लेर ... छीः, भाड़ में जाय ! ओ, ई छोटगर-छोटगर खबर - एगो औरत ज़ीना से लुढ़क गेलइ - एगो बेपारी पी-पीके मर गेलइ - पेस्की में आग लग गेलइ - पितिरबुर्ग के कोय मोहल्ला में आग लग गेलइ - आउ ई पितिरबुर्ग के कोय दोसर मोहल्ला में आग लग गेलइ - आउ फेर पितिरबुर्ग के कोय तेसर मोहल्ला में आग लग गेलइ - इज़लेर - इज़लेर - इज़लेर - इज़लेर - मस्सिमो ... आ ई रहलइ ...[2]"

आखिरकार ऊ जे कुछ चाहऽ हलइ, ऊ मिल गेलइ, आउ पढ़े लगलइ; लाइन सब ओकर आँख में नाचे लगलइ, लेकिन तइयो ऊ सब्भे ‘खबर’ पूरा पढ़ गेलइ आउ बड़ी उत्कंठा से अगला अंक में बाद वला समाचार ढूँढ़े लगलइ। पन्ना उलटते बखत ओकर हाथ आक्षेपग्रस्त (convulsive) अधीरता से काँप रहले हल । अचानक कोय तो ओकर टेबुल के पास बगल में बइठ गेलइ । ऊ नजर डललकइ - ज़म्योतोव हलइ, ओहे ज़म्योतोव आउ ओहे हुलिया में, अँगूठी, घड़ी के चेन, घुंघराला कार आउ तेल चुपड़ल बाल में बीच में मांग निकसल, फैशनदार वास्कट, थोड़े सन पुराना जैकेट आउ पुराना छालटी (linen) में । ऊ खुश नजर आ रहले हल, कम से कम बहुत खुशी से आउ नेकदिली से मुसका रहले हल । ओकर सामर चेहरा शैम्पेन पीये के चलते थोड़े सन तमतमाल हलइ ।

"अरे ! तूँ हियाँ हकऽ ?" ऊ ताज्जुब से बात शुरू कइलकइ आउ अइसन तान (tone) में, जइसे ऊ कोय जमाना से ओकरा साथ परिचित होवे, "आउ कल्हूएँ रज़ुमिख़िन हमरा से बतिया रहला हल, कि तूँ बेहोश हलहो । ई तो विचित्र बात हइ ! आ हम तो तोरा हीं गेलियो हल ..."

रस्कोलनिकोव जानऽ हलइ, कि ऊ ओकरा पास अइतइ । ऊ अखबार अलगे रख देलकइ आउ ज़म्योतोव तरफ मुड़लइ । ओकर होंठ पर व्यंग्यपूर्ण मुसकाहट हलइ, आउ ई मुसकाहट में नया तरह के चिड़चिड़ाहट भरल अधीरता के झलक हलइ ।

"ई हम जानऽ हिअइ, कि तूँ अइलऽ हल", ऊ जवाब देलकइ, "सुनवो कइलियो हल, जी । तूँ हमर पेताबा ढूँढ़लऽ हल ... आउ जानऽ हो, रज़ुमिख़िन तोहरा पर तो लट्टू हो गेलो ह, बोलऽ हको, कि तूँ ओकरा साथे लविज़ा इवानोव्ना के हियाँ जइते रहऽ हो, ओहे जेकरा बारे ऊ बखत प्रयास कइलहो हल, लेफ्टेनेंट पोरोख़ के तरफ इस्तारा कइलहो हल, आउ उनका कुच्छो समझ में नयँ अइले हल, आद हको ? लगऽ हइ, ऊ कइसे नयँ समझलका - बात तो बिलकुल साफ हइ ... हइ न ?"

"आउ ऊ कइसन हुल्लड़बाज हइ !"
"पोरोख़ की ?"
"नयँ, तोर दोस्त, रज़ुमिख़िन ..."
"आउ तोहर जिनगी तो बहुत सुन्दर हको, मिस्टर ज़म्योतोव; सबसे मनोहर जगह सब में कर-मुक्त (टैक्स-फ्री) प्रवेश ! ई केऽ तोहरा लगी अभी शैम्पेन ढार रहलो हल ?"
"आ ई हमन्हीं सब ... पी रहलिए हल ... आउ ढार रहले हल ?!"
"मानदेय (honorarium) ! तोहर तो पाँचो अँगुरी घी में हको !" रस्कोलनिकोव हँस पड़लइ । "कोय बात नयँ, यार, कोय बात नयँ !" ऊ ज़म्योतोव के कन्हा थपथपाके बोललइ, "हम ई बात द्वेष के चलते नयँ कह रहलियो ह, 'आ सब कुछ प्यार से, मजाक में' बोल रहलियो ह, बिलकुल जइसे कि तोहर मजूर कहलको हल, जब ऊ मित्का के ठोक रहले हल, एहे ऊ बुढ़िया के केस में ।"

"लेकिन तोहरा ई बात कइसे मालूम ?"
"शायद हम तोहरो से जादे जानऽ हियो ।"
"तूँ तो अजीब लग रहलऽ ह ... वास्तव में तूँ अभियो बेमार हकऽ । बेकार में बाहर निकसलऽ ..."
"आ हम तोहरा अजीब लगऽ हकियो ?"
"हाँ । की बात हको, तूँ अखबार पड़ रहलऽ ह ?"
"हाँ, अखबार ।"
"आगजनी के बारे बहुत कुछ लिखते जा हका ..."

"नयँ, हम आगजनी के समाचार नयँ पढ़ रहलूँ हँ ।" हियाँ ऊ रहस्यमय ढंग से ज़म्योतोव तरफ देखलकइ; उपहासपूर्ण मुसकान फेर से ओकर होंठ के विकृत कर देलकइ । "नयँ, हम आगजनी के समाचार नयँ पढ़ रहलूँ हँ", ज़म्योतोव तरफ आँख मारते ऊ बात जारी रखलकइ । "आ ई बात कबूल कर ल, प्रिय नौजवान, कि तोरा ई बात जाने के बड़ी मन कर रहलो ह, कि हम की पढ़ रहलिए हल ?"
"हमरा बिलकुल अइसन इरादा नयँ हके; हम अइसीं पूछ लेलियो । की हम कुछ पूछ नयँ सकऽ हिअइ ? तूँ ई सब की ..."
"सुनऽ, तूँ पढ़ल-लिखल व्यक्ति हकऽ, साहित्यकार, हइ न ?"
"हम जिमनैसियम (हाई स्कूल) से छट्ठा क्लास कइल हिअइ", ज़म्योतोव कुछ शान के साथ जवाब देलकइ ।

"छट्ठा क्लास ! वाह, हमर छोटका गरवैया ! केश में मांग, आउ अँगुरी में अंगूठी - धनमान अदमी ! वाह ! कइसन बाँका लड़का !" हियाँ पर रस्कोलनिकोव सीधे ज़म्योतोव के चेहरा के सामने जोरदार ठहाका लगइलकइ । ऊ एक झटका में पीछू तरफ हटलइ, ई बात से नयँ कि ओकरा ई बात खराब लगले हल, बल्कि ओकरा बड़ी अचरज होले हल ।
"छीः, कइसन अजीब अदमी हकऽ !" ज़म्योतोव बड़ी गंभीरतापूर्वक दोहरइलकइ । "हमरा लगऽ हको, कि तूँ अभियो सरसामी हालत में हकऽ ।"
"हम सरसामी हालत में हकिअइ ? बकवास, छोटे गरवैये ! ... मतलब हम अजीब हिअइ ? खैर, तूँ हमरा खातिर उत्सुक हकऽ, हइ न ? उत्सुक ?"
"हाँ, उत्सुक ।"

"त हम बतइयो, कि हम कउन चीज के बारे पढ़ रहलिए हल, की ढूँढ़ रहलिए हल ? देखहो, केतना अंक हम निकासे लगी कहलिए हल ! कुछ शक्का हो रहलो ह की ?"
"ठीक हको, बतावऽ ।"
"तोर कान तो खड़ा हको न ?"
"एकरा में कान खड़ा होवे के की बात हकइ ?"
"बाद में बतइबो, कान खड़ा होवे के बात, आ अभी, हमर यार, हम ई तोहरा एलान करऽ हियो ... नयँ, ई कहना बेहतर होतइ - 'हम कबूल करऽ हियो' ... नयँ, ई ऊ बात नयँ हइ - 'हम ई बयान दे हियो, आ तूँ नोट कर लऽ' - हाँ, बिलकुल एहे ! मतलब हम बयान दे हियो, कि हम पढ़ रहलूँ हल, हमरा दिलचस्पी हले ... हम ढूँढ़ रहलूँ हल ... खोज रहलूँ हल ...", रस्कोलनिकोव आँख मिचकइलकइ आउ रुक गेलइ – "हम ढूँढ़ रहलूँ हल - आउ एहे लगी हियाँ अइलूँ हल - सरकारी किरानी के बुढ़िया घरवली के हत्या के बारे", आखिरकार ऊ बोललइ, लगभग फुसफुसाहट के साथ, अपन चेहरा ज़म्योतोव के चेहरा के अत्यधिक नगीच लाके । ज़म्योतोव ओकरा सीधे एकटक देख रहले हल, बिन हिलले-डुलले आउ बिन अपन चेहरा ओकर चेहरा से दूर कइले । सबसे जादे अजीब ज़म्योतोव के बाद में ई लगलइ, कि मिनट भर तक ओकन्हीं के चुप्पी बरकरार रहलइ आउ मिनटो भर तक एक दोसरा के देखते रहलइ ।

"त एकरा से की, कि तूँ पढ़ रहलऽ हल ?" अचानक भौंचक्का होके आउ अधीरता से ऊ चिल्लइलइ । "एकरा से हमरा की लेना-देना ! आखिर एकरा में की हइ ?"
"ई बिलकुल ओहे बुढ़िया हकइ", रस्कोलनिकोव बात जारी रखलकइ, ओइसीं फुसफुसाहट के साथ आउ ज़म्योतोव के विस्मय से बिन कोय हरकत कइले, "बिलकुल ओहे, जेकरा बारे, आद करहो, जब दफ्तर में तूँ बात कर रहलहो हल, आ हम बेहोश होके गिर गेलिए हल । की, अब समझ में अइलो ?"
"हाँ, त एकरा में की बात हइ ? 'समझ में अइलो' कहे के की मतलब ? ...", ज़म्योतोव लगभग परेशान होके बोललइ ।

रस्कोलनिकोव के अचल आउ गंभीर चेहरा एक पल में बदल गेलइ, आउ अचानक ऊ फेर से सशक्त ठहाका लगावे लगलइ, जइसन कि थोड़े देर पहिले, मानूँ अपने आप के ऊ नियंत्रित नयँ कर पा रहले हल । आउ एक पल में अत्यधिक स्पष्टता के साथ ओकरा हाल के अनुभव के एगो क्षण आद पड़ गेलइ, जब ऊ दरवाजा के पीछू में खड़ी हलइ, कुल्हाड़ी लेले, सिटकिनी उपरे-निच्चे उछल रहले हल, दरवाजा के पीछू से ओकन्हीं गरियाब करऽ हलइ आउ दरवाजा ढकढकाब करऽ हलइ, आउ ओकरा अचानक मन कइलकइ, कि ओकन्हीं पर चिल्लाय, गरियावइ, अपन जीभ ओकन्हीं के सामने बाहर निकासके देखाबइ, ओकन्हीं के चिढ़ाबइ, हँस्सइ, खिखियाय, खिखियाय, ठहाका मारइ !

"तूँ या तो पगला गेलऽ ह, या ...", ज़म्योतोव बोललइ, आउ रुक गेलइ, मानूँ अचानक ओकर दिमाग में कौंधल विचार से ऊ अचानक प्रभावित हो गेलइ ।
"या ? की 'या' ? अच्छऽ, की ? अच्छऽ, बतावऽ तो !"
"कुछ नयँ !", ज़म्योतोव गोसाल जवाब देलकइ, "सब कुछ बकवास !"

दुन्नु चुप रहलइ । अपन आकस्मिक ठहाका के दौरा के स्फोट के बाद अचानक रस्कोलनिकोव विचारमग्न आउ उदास हो गेलइ । ऊ अपन केहुनी टेबुल पर रखके अपन सिर के हाथ पर टिका देलकइ । लगऽ हलइ, कि ऊ ज़म्योतोव के बारे बिलकुल भूल गेलइ । काफी देर तक शांति छाल रहलइ ।

"तूँ चाह काहे नयँ पी रहलऽ ह ? सेराऽ जइतो ।" ज़म्योतोव कहलकइ ।
"अयँ ? की ? चाह ? ... अरे, हाँ ...", रस्कोलनिकोव गिलास से एक चुस्की लेलकइ, पावरोटी के एक टुकड़ा मुँह में डललकइ आउ अचानक, ज़म्योतोव तरफ देखके, लगलइ, कि ओकरा सब कुछ आद पड़ गेलइ आउ मानूँ खुद के सँभाल लेलकइ - ओकर चेहरा ओहे क्षण पहिलौका उपहासात्मक भाव में आ गेलइ । ऊ चाह पीते रहलइ।
"हाल में अइसन कइएक जालसाजी के घटना घटले ह", ज़म्योतोव कहलकइ । "अइकी हाले एगो आउ घटना हम 'मस्कोव्सकिए वेदोमोस्ती' [3] में पढ़लिए हल, कि मास्को में नकली नोट बनावे वला के पूरा गिरोह धरइलइ । पूरा एगो संगठन हलइ । जाली बैंक नोट छापऽ हलइ ।
"ओ, ई तो बहुत पहिले के बात हइ ! हम तो एक महिन्ना पहिलहीं पढ़लिए हल ।" रस्कोलनिकोव शांत भाव से जवाब देलकइ । "मतलब, तोहर नजर में एकन्हीं जालसाज हकइ ?" व्यंग्यपूर्वक मुसकइते ऊ बात जोड़लकइ ।

"त कइसे एकन्हीं जालसाज नयँ हइ ?"

"एकन्हीं ? एकन्हीं तो बुतरू हइ, अनुभवहीन सीधा-सादा ! पूरा आधा सैकड़ा लोग ई काम खातिर एक साथ आवऽ हइ ! की ई संभव हकइ ? हियाँ तो तीनो गो जादे होतइ, आउ तइयो तब, जब खुद के अपेक्षा एक दोसरा पर जादे भरोसा होवे ! नयँ तो, अगर एक्को गो पी-पाके उगल देइ, त सब गुड़ गोबर ! बुद्धू कहीं के ! बिन भरोसा वला लोग के बैंक में नोट भँजावे लगी लगावऽ हका - अइसन काम पहिलौके भेंट में मिल्लल अदमी पर विश्वास करके सौंपल जा हइ ? अच्छऽ, मान लेल जाय, कि ई बुद्धू सब के सफलता भी मिल गेलइ, मान लेल जाय, कि हरेक कोय दस लाख भँजा लेलकइ, अच्छऽ, लेकिन बाद में ? बाकी सारी जिनगी ? हरेक कोय दोसरा पर अपन सारी जिनगी निर्भर रहतइ ! अइसन जिनगी से बेहतर तो फाँसी लगा लेना बेहतर होतइ ! लेकिन ओकन्हीं भँजाइयो तो नयँ सकलइ - ओकन्हीं में से एगो बैंक में भँजावे लगलइ, ओकरा पाँच हजार मिललइ, आउ ओकर हाथ काँप रहले हल । चार हजार तक तो गिन लेलकइ, लेकिन पचमा बिन गिनलहीं ले लेलकइ, विश्वास पर, ओकरा जेभी में खाली रखके तेजी से भाग जाय के जल्दी हलइ । त अपन अइसन करनी से ऊ शक्का पैदा कर देलकइ । आउ एक बेवकूफ के चलते सब कुछ धराशायी हो गेलइ ! की अइसन हो सकऽ हइ?" [4]

"कि ओकर हाथ काँप रहले हल ?", ज़म्योतोव ऊ बात के पकड़के बोललइ, "नयँ, अइसन हो सकऽ हइ, जी । नयँ, हमरा एकरा बारे पक्का विश्वास हइ, कि अइसन हो सकऽ हइ । कभी-कभी कोय नहिंयों बरदास कर पावऽ हइ ।"
"अइसन बात के ?"

"अच्छऽ, त तूँ बतावऽ, तूँ बरदास कर लेतहो हल ? नयँ, हम तो नयँ बरदास कर पइतिए हल ! सो रूबल के पुरस्कार खातिर अइसन कष्ट करे जाना ! नकली नोट लेके जाना - आउ काहाँ ? - बैंक में, जाहाँ अइसन काम पर ओकन्हीं कुत्तो के चबा जइता - नयँ, हम तो सकपका जइतूँ हल । आ तूँ नयँ सकपकइबहो ?"

रस्कोलनिकोव के बहुत मन कइलकइ कि ऊ फेर से "जीभ निकासके चिढ़ाबइ" । सिहरन के लहर पल भर ओकर पीठ पर से दौड़ गेलइ ।
"हम तो ओइसे नयँ करतिए हल", ऊ जरी दूर से शुरू कइलकइ । "हम होतिए हल त अइकी अइसे भँजइतिए हल - पहिला हजार हम दुन्नु तरफ से एहे कोय चार तुरी गिनतिए हल, हरेक नोट के अच्छा से चेक करते, आउ तब दोसरा हजार लेतिए हल; ओकरा गिन्ने लगतिए हल, आधा तक गिनतिए हल, आउ कोय पचास रूबल के नोट बाहर निकसतिए हल, आउ रोशनी में ले जइतिए हल, एकरा उलटके फेर से रोशनी तरफ चेक करतिए हल - कि कहीं नकली तो नयँ हके ? 'बुरा नयँ मानथिन', हम कहतिए हल, 'हमर एगो महिला रिश्तेदार हाले में पचीस रूबल अइसीं गमा देलका'; आउ हम पूरा खिस्सा सुना देतिए हल । आउ जइसीं तेसरा हजार के गड्डी गिन्ने ल शुरू करतिए हल - 'नयँ, माफ करथिन - हम, लगऽ हइ, ऊ दोसरा हजार के गड्डी में, सतमा सो के गिन्ने में गलती कइलिअइ, हमरा शक्का हइ', आउ हम तेसरा गड्डी छोड़ देतिए हल, आउ फेर से दोसरा गड्डी - आउ अइसीं सब्भे पाँच गड्डी गिनतिए हल । आउ जइसीं गिनती खतम कर लेतिए हल, पचमा आउ दोसरा गड्डी से एक-एक नोट निकास लेतिए हल, आउ फेर से रोशनी में चेक करतिए हल आउ फेर शंका भरल अवाज में कहतिए हल, 'किरपा करके एकरा बदलके दे देथिन', - आउ क्लर्क तब तक हमरा से एतना परेशान हो जइते हल, कि ओकरा हमरा से छुटकारा कइसे मिल्ले, ओकरा ई सूझते हल नयँ ! आखिरकार सब कुछ खतम करतिए हल, चल पड़तिए हल, दरवाजा खोलतिए हल - लेकिन नयँ, माफ करऽ, फेर वापिस जइतिए हल, कोय चीज के बारे पुच्छे खातिर, कोय बात के समझावे खातिर कहे लगी - त अइसे हम करतिए हल !"

"ऊँह, कइसन तूँ अजीब बात कर रहलऽ ह !" हँसके ज़म्योतोव कहलकइ । "खाली ई सब बोले लगी ठीक हको, लेकिन करे बखत पक्का ढनमना जइतऽ हल । हिएँ पर, हम तोरा बतावऽ हियो, हमर विचार में, खाली हमहीं तूँ नयँ, बल्कि अनुभवी, दुःसाहसी (डीड़) अदमी भी अपना पर भरोसा के गारंटी नयँ दे सकऽ हइ । दूर जाय के की जरूरत हइ - अइकी उदाहरण (मिसाल) हको - हमर इलाका में बुढ़िया के हत्या कर देल गेलइ । ई तो, लगऽ हइ, एगो बड़गो डीड़ अदमी के काम हइ, दिन-दहाड़े सब खतरा मोल लेलकइ, खाली चमत्कार से बच गेलइ - लेकिन ओकर हाथ तो कँपिए रहले हल - ओ ठीक से चोरी नयँ कर पइलकइ, ओकरा से बरदास नयँ होलइ; वास्तव में ई तो बिलकुल साफ हइ ..."    

रस्कोलनिकोव के मानूँ ई बात लग गेलइ ।
"साफ हइ ! त पकड़िए ल न ओकरा, चलऽ, अभिए !" ऊ चिल्ला उठलइ, पैशाचिक आनंद से (gloatingly) ज़म्योतोव के उत्तेजित करते ।
"एकरा में की हइ, पकड़ लेते जइता ।"
"केऽ ? तोहन्हीं ? तोहन्हीं पकड़ लेबहो ? उछलते-कूदते थक जइबऽ ! तोहन्हीं लगी एहे मुख्य बात हको - ऊ अदमी खरच कर रहले ह, कि नयँ ? पहिले तो ओकरा पास पइसा नयँ हलइ, आउ अब खरचा करे लगलइ - त फेर ऊ कइसे नयँ हो सकऽ हइ ? मतलब ई बात में तोहन्हीं के, अइकी एतने गो बुतरू, गुमराह कर सकऽ हको, अगर ऊ चाहइ तो !"

"असलियत तो एहे हइ, कि ओकन्हीं ओइसीं करते जा हइ", ज़म्योतोव जवाब देलकइ, "कतल तो कर दे हइ चलाँकी से, अपन जिनगी के जोखिम में डाल दे हइ, आउ फेर तुरते कलाली के रस्ता देख ले हइ । सब कोय तोरे नियन चलाँक नयँ होवऽ हइ । तूँ तो, जाहिर हइ, कलाली नयँ जइबहो ?"

रस्कोलनिकोव त्योरी चढ़ाके एकटक ज़म्योतोव तरफ देखे लगलइ ।
"लगऽ हको, कि तोहरा ई विषय में मजा आ रहलो ह आउ ई जाने के मन कर रहलो ह, कि एहो मामला में हम कउची करतिए हल ?" ऊ कुछ नराज होके बोललइ ।
"हाँ, मन तो करऽ हइ", दृढ़ता आउ गंभीरतापूर्वक ऊ जवाब देलकइ । कुछ तो ऊ बहुत गंभीरतापूर्वक बोले आउ देखे लगलइ ।
"बहुत ?"
"हाँ, बहुत ।"

"ठीक हको, त सुन्नऽ । अइकी हम अइसे करतिए हल", रस्कोलनिकोव शुरू कइलकइ, फेर से अचानक अपन चेहरा के ज़म्योतोव के चेहरा के बहुत पास में रखते, फेर से ओकरा एकटक देखते आउ फेर से फुसफुसाके बात करते, अइसे कि ओहो अबरी चकित हो गेलइ । "हम तो कुछ अइसे करतिए हल - हम तो पइसा आउ समान लेतिए हल, आउ जइसीं हम हुआँ से निकसतिए हल, तुरते, कहूँ बिन रुकले, कहीं अइसन जगह चल जइतिए हल, जाहाँ सूनसान जगह आउ खाली छरदेवारी होते हल, आउ लगभग दोसर कोय नयँ - कउनो रसोई-उद्यान (kitchen-garden) चाहे अइसने कोय जगह । हुआँ पहिलहीं से ई प्रांगण में कोय अइसन पत्थल देखके रखतिए हल, जे एहे कोय एक चाहे डेढ़ पूद [5] भारी होते हल, कोय कोना में, छरदेवारी के पास, जे शायद घर बन्ने के समय से पड़ल होते हल; ई पत्थल के उठइतिए हल - ओकर निच्चे जरूर एगो गड्ढा रहते हल - आउ ई गड्ढा में हम सब्भे समान आउ पइसा के डाल देतिए हल । डाल देतिए हल आउ पथलवा के ओकरा पर रख देतिए हल, ओइसीं जइसे पहिले पड़ल हलइ, गोड़वा से दबा देतिए हल, आउ सीधे चल देतिए हल । आउ एक साल, चाहे दू साल नयँ लेतिए हल, चाहे तीनो साल तक नयँ छूतिए हल - फेर, तूँ ढूँढ़ते रहऽ! हलइ, लेकिन बिलकुल निकस गेलइ !"

"तूँ पागल हकऽ", ज़म्योतोव भी कोय कारणवश लगभग फुसफुसाहट में बोललइ आउ कोय कारणवश अचानक रस्कोलनिकोव से दूर हट गेलइ । ओकर (रस्कोलनिकोव के) आँख चमके लगलइ; ओकर चेहरा बेहद पीयर पड़ गेलइ; ओकर उपरौका होंठ फड़कलइ आउ कँप्पे लगलइ । ऊ जेतना संभव हलइ ओतना ज़म्योतोव के नगीच झुकलइ आउ कोय बिन शब्द निकासले अपन होंठ में हलचल करे लगलइ; अइसन कोय आधा मिनट तक चललइ; ऊ जानऽ हलइ, कि ऊ की कर रहले ह, ऊ अपना के नियंत्रित (कंट्रोल) नयँ कर सकलइ । भयंकर शब्द, ठीक दरवाजा के सिटकिनी नियन, ओकर होंठ पर उछल रहले हल - लगइ कि अइकी अब फूट पड़तइ; अइकी अब निकस पड़तइ, अइकी अब बोल पड़तइ!

"आउ अगर ई बुढ़िया आउ लिज़ावेता के हमहीं हत्या कइलिए होत तऽ ?" अचानक ऊ बोल पड़लइ आउ ओकरा बोध हो गेलइ कि ऊ की कइलकइ ।
ज़म्योतोव अँखिया फाड़के ओकरा तरफ देखलकइ आउ ओकर चेहरा मेजपोश (table-cloth) जइसन सफेद हो गेलइ । ओकर चेहरा पर एगो विकृत मुसकाहट उभर अइलइ ।
"लेकिन की ई वास्तव में संभव हइ ?" ऊ मोसकिल से सुनाय पड़े वला अवाज में बोललइ ।
रस्कोलनिकोव ओकरा तरफ द्वेषपूर्ण दृष्टि से देखलकइ ।
"ई कबूल कर ल, कि तूँ विश्वास कर लेलऽ हल ! हइ न ? बिलकुल सच हइ न ?"
"बिलकुल नयँ ! अब तो पहिले कभी जेतना भी नयँ विश्वास हको !" ज़म्योतोव जल्दी में बोल गेलइ ।
"आखिरकार पकड़ाइए गेलऽ ! त छोटका गरवैया पकड़ाइए गेल ! मतलब, पहिले तो विश्वास करऽ हलहो, जे अब 'पहिले कभी जेतना भी नयँ विश्वास करऽ हकहो' ?"
"नयँ, बिलकुल नयँ !" ज़म्योतोव चिल्लइलइ, देखे में घबराल नियन लग रहले हल । "की तूँ एहे बात पर लावे खातिर हमरा डेराब करऽ हलऽ ?"
"त तोरा विश्वास नयँ हको ? आ हमर गैरहाजिरी में कउची बोल रहलहो हल, जब हम ऊ बखत थाना से निकसलिअइ? आ काहे हमरा लेफ्टेनेंट पोरोख़ हमरा मूर्छित हो गेला के बाद पूछताछ कर रहला हल ? ए, सुन", ऊ बैरा के हँकइलकइ, उठके आउ अपन टोपी लेके, "हमर केतना बिल होलइ ?"
"कुल मिलाके तीस कोपेक, सर", दौड़ल आके ऊ जवाब देलकइ ।

"आ ई तोरा लगी आउ बीस कोपेक वोदका खातिर । देखऽ, केतना पइसा हइ !" ऊ अपन कँपते हाथ में नोट के ज़म्योतोव तरफ बढ़इलकइ । "लाल, नीला रंग के पचीस रूबल । काहाँ से ? आ काहाँ से नयका पोशाक अइलइ? आ तूँ तो जनवे करऽ हो, कि हमरा पास एगो कोपेक तक नयँ हलइ ! हम दावा के साथ कह सकऽ हियो, कि तूँ तो मकान-मालकिन से पूछताछ कर चुकलहो ह ... खैर, काफी हो गेलो ! आसे कोज़े ! [6] द स्विदानिया (फेर भेंट होतइ) ... बहुत खुशी के साथ ! ..."

ऊ बाहर निकस गेलइ, एक प्रकार के तीव्र उन्माद के संवेदना के साथ बिलकुल कँपते, जेकरा में असह्य आनन्द के कुछ अंश भी हलइ - लेकिन उदास, बेहद थक्कल-माँदल । ओकर चेहरा विकृत हलइ, जइसे कोय तरह के दौरा के बाद । थकावट ओकर तेजी से बढ़ते जा रहले हल । कोय पहिला कंपन, चिड़चिड़ाहट पैदा करे वला कोय पहिला संवेदना के साथ ओकर सब्भे शक्ति उत्तेजित आउ फेर अचानक पुनर्जीवित हो जा हलइ, आ ओइसीं  तेजी से क्षीण हो जा हलइ, जब संवेदना कमजोर पड़ जा हलइ । आ ज़म्योतोव, अकेल्ले रह गेला पर, सोच में डुब्बल, ओहे जगहिया पर बहुत देरी तक बइठल रह गेलइ । रस्कोलनिकोव अनजाने में अपन सब्भे विचार के एक निश्चित बिन्दु पर मोड़ लेलके हल आउ आखिरकार अपन इरादा पक्का कर लेलके हल ।

"इल्या पित्रोविच तो उल्लू के पट्ठा हइ !" आखिरकार ऊ फैसला कइलकइ ।

रस्कोलनिकोव जइसीं रोड तरफ के दरवाजा खोललकइ, ओइसीं अचानक ठीक ड्योढ़ी पर अन्दर घुस रहल रज़ुमिख़िन से टकरा गेलइ । दुन्नु एक डेग पहिलहूँ तक एक दोसरा के नयँ देखते गेल हल, ओहे से दुन्नु लगभग मथवे से टकरा गेलइ। थोड़े देरी तक तो ओकन्हीं एक दोसरा के नजर से भाँपते रहलइ । रज़ुमिख़िन तो बेहद चकित हो गेलइ, लेकिन अचानक गोस्सा, असली गोस्सा, ओकर आँख में भयंकर रूप से चमके लगलइ ।

"त अइकी तूँ काहाँ हकऽ !" ऊ गला फाड़के चिल्लइलइ । "अपन रोग-शय्या से भाग निकसल ! आउ हम ओकरा सोफो के निच्चे ढूँढ़ रहलूँ हल !  अटारी पर भी गेते गेलिअइ ! नस्तास्या के तोरा चलते मारते-मारते छोड़लिअइ ... आ ऊ हकइ अइकी काहाँ ! एकर की मतलब हकइ ? सब कुछ सच बतावऽ ! कबूल कर लऽ ! सुनलऽ ?"

"आ एक्कर मतलब हइ, कि हम तोहन्हीं सब से आजिज आ गेलियो ह, आउ हम अकल्ले रहे लगी चाहऽ हूँ", रस्कोलनिकोव शांतिपूर्वक बोललइ ।
"अकेल्ले ? जबकि तूँ अभियो चल-फिर नयँ सकऽ ह, जबकि तोर चेहरा छालटी (linen) नियन उज्जर होल हको, आउ साँस फुल्लऽ हको ! घनचक्कर ! ... तू ई 'बिल्लौर महल' (क्रिस्टल पैलेस) में की कर रहलऽ हल ? जल्दी से कबूल कर लऽ!"
  
"हमरा जाय द !" रस्कोलनिकोव बोललइ आउ सामने से गुजर जाय ल चहलकइ । ई बात से रज़ुमिख़िन अपन आपा खो देलकइ - ऊ कसके ओकर कन्हा धर लेलकइ ।

"हमरा जाय द ? तोरा ई हिम्मत, कि हमरा से कहऽ ह - 'हमरा जाय द' ? आ तूँ जानऽ ह, कि अभी हम तोरा साथ की करबो ? बँहियाँ में समेट लेबो, एगो मोटरी में बान्ह लेबो आउ कँखिया तर दाबके घर ले जइबो, आउ ताला लगाके अन्दर बन कर देबो !"

"सुनऽ, रज़ुमिख़िन", रस्कोलनिकोव धीरे से आउ स्पष्टतया बिलकुल शांति से कहे लगलइ, "तोरा की ई बात समझ में नयँ आवऽ हको, कि हमरा तोहर मेहरबानी नयँ चाही ? आउ ई सब उपकार अइसन अदमी पर करे से की फयदा, जे ... ई बात लगी थुक्कऽ हइ ? आउ आखिर, ऊ सब खातिर जे ओकरा सहन करना बड़ी भारी लगऽ हइ ? अच्छऽ, ई बतावऽ कि हमरा बेमारी के शुरुआत में हमरा काहे लगी खोजलऽ ? हमरा, शायद, मर जाय में खुशी मिल्लत हल ? अच्छऽ, त की तोरा आझ हम काफी नयँ बतइलियो हल, कि तूँ हमरा सताब करऽ ह, कि तूँ हमरा ... बोर कर देलऽ ह ! वास्तव में तोर इच्छा हको लोग के सतावे के ! हम तोरा विश्वास देलावऽ हियो, कि ई सब हमरा स्वास्थ्यलाभ (recovery) में गम्भीर बाधा डालऽ हको, काहेकि हमरा लगातार चिड़चिड़ा बनइले रहऽ हको । वस्तुतः आझ ज़ोसिमोव ओहे से दूर हट गेलइ, ताकि हमरा चिड़चिड़ाहट नयँ होवे ! तूहूँ, भगमान खातिर, हमरा अकेल्ले छोड़ द ! आउ आखिरकार तोहरा की अधिकार हको कि हमरा जबरदस्ती रोकके रखहो? की वास्तव में तूँ नयँ देखऽ हो, कि हम अभी बिलकुल अपन होश-हवास में बात कर रहलियो ह ? कइसे, कइसे, हमरा बतावऽ, तोरा हम आखिरकार समझइयो, कि तूँ हमरा पीछे नयँ पड़ऽ आउ हमरा पर मेहरबानी नयँ करऽ? चाहे हम कृतघ्न होवूँ, चाहे हम कमीना रहूँ, खाली तोहन्हीं सब, भगमान खातिर, हमरा हमर हाल पर छोड़ द, अकेल्ले छोड़ द! छोड़ द !"

ऊ शांत भाव से शुरू करऽ हलइ, पहिलहीं से ऊ सब्भे जहर पर खुशी मनइते, जे कुछ ऊ उगले खातिर खुद के तैयार करऽ हलइ, लेकिन समाप्त करऽ हलइ गोस्सा में आउ हाँफते-फाँफते, जइसे कि हाल में लूझिन के साथ होले हल ।
रज़ुमिख़िन थोड़े देरी ठहरलइ, सोचलकइ आउ अपन हाथ छोड़ देलकइ ।

"भाड़ में जो !" ऊ शांत भाव से आउ लगभग विचारमग्न होके बोललइ । "ठहर !" ऊ अचानक गरजके बोललइ, जब रस्कोलनिकोव जाय लगलइ, "हमर बात सुन । हम एलान करके तोरा कहऽ हिअउ, कि तोहन्हीं सब के सब बातूनी आउ डींग हाँके वला हकँऽ ! तोहन्हीं के थोड़हूँ सन तकलीफ आवऽ हउ, त एतना जादे सोचते जा हँ, जइसे कि मुर्गी अंडा पर बइठऽ हइ ! आउ एकरो में दोसर लेखक सबसे चोरी करते जा हँ । तोहन्हीं में अपन स्वतंत्र जीवन के कोय नाम-निशान नयँ हकउ ! तोहन्हीं सब मोम के बन्नल हकँऽ, आउ तोहन्हीं के नाड़ी में खून के बदले मट्ठा बहऽ हउ ! तोहन्हीं में से केकरो पर हमरा विश्वास नयँ हउ ! सब्भे परिस्थिति में तोहन्हीं के पहिला काम ई होवऽ हउ, कि भरसक इंसान नियन नयँ रह जायँ ! ठ-ह-र !" ऊ दोगना गोस्सा में चिल्लइलइ, ई देखके, कि रस्कोलनिकोव फेर से निकल जाय के फेर में हकइ, "आखिर तक हमर बात सुन ले ! तोरा मालूम हउ, हमरा हीं आझ घरहेली के अवसर पर लोग आवे वला हका, शायद अब तक पहुँचियो गेला होत, लेकिन हम हुआँ मेहमान के अगवानी लगी अपन चाचा के रख छोड़लूँ हँ - आउ हम दौड़ल अभी हियाँ अइलूँ । अगर तूँ बेवकूफ नयँ होतँऽ, सरासर बेवकूफ नयँ होतँऽ, निरा बुद्धू नयँ होतँऽ, विदेशी के अनुवाद नयँ होतँऽ ... देख रोद्या, हम मानऽ हिअउ कि तूँ बुद्धिमान हकँऽ, लेकिन तूँ बेवकूफ हकँऽ ! - अगर तूँ बेवकूफ नयँ होतँऽ हल, त तूँ अच्छा मन से आझ हमरा हीं अइतँऽ हल, शाम गुजारे खातिर, आउ न कि खाली-पीली (बेकार में) अपन बूट घिसतँऽ हल । आउ चूँकि तूँ बाहर निकसिए गेलँऽ, त की कइल जा सकऽ हउ ! हम तोरा खातिर गद्देदार अराम-कुरसी लुढ़काके अन्दर ला सकऽ हिअउ, मकान-मालिक के पास हकइ ... चाय, लोग के साथ ... लेकिन नयँ - तोरा सोफा पर लेटा दे सकऽ हिअउ - कइसूँ तूँ हमन्हीं साथ पड़ल रहमँऽ ... आउ ज़ोसिमोव रहतउ । अइमँऽ न?"

"नयँ ।"
"ब-क-वा-स !", अधीर होके रज़ुमिख़िन चिल्लइलइ । "तूँ कइसे जानऽ हँ ? तूँ अपना तरफ से जवाब नयँ दे सकऽ हँ ! तोरा एकरा बारे कुछ नयँ समझ में आवऽ हउ ... हजारो तुरी हम अइसीं लोग से लड़-झगड़ के अलगे होवऽ हलूँ आउ फेर से वापिस दौड़के आ जा हलूँ ... जब शरम आवऽ हइ - त फेर से ऊ अदमी के पास वापिस आवऽ हइ ! त आद रखिहँऽ, पोचिनकोव के घर, तेसरा मंजिला ..."

"आउ ओइसीं, तूहूँ मिस्टर रज़ुमिख़िन, खुद्दे केकरो से पिटाय लगी तैयार रहहो, खुशी से ओकन्हीं पर मेहरबानी करे खातिर ।"
"केकरा ? हमरा ! खाली अइसन विचारे पर हम नकिया दरर देबइ ! पोचिनकोव के घर, नंबर सनतालीस, सरकारी किरानी बाबुश्किन के फ्लैट में ..."         
"हम नयँ अइबउ, रज़ुमिख़िन", रस्कोलनिकोव मुड़लइ आउ सीधे चल पड़लइ ।
"हम बाजी लगावऽ हिअउ कि तूँ अइमँऽ !" रज़ुमिख़िन ओकर पीछू चिल्लइलइ । "नयँ तो तूँ ... नयँ तो तोरा हम जाने लगी नयँ चाहऽ हूँ ! ठहर, अरे ! ज़म्योतोव हुआँ (कलाली में) हकइ ?"
"हकइ ।"
"देखलहीं हल ?"
"देखलिए हल ।"
"आउ बात कइलहीं हल ?"
"बात कइलिए हल ।"
"कउची के बारे ? अच्छऽ, भाड़ में जो, ठीक हउ, मत बता । पोचिनकोव के घर, सनतालीस, बाबुश्किन के फ्लैट, आद रखिहँऽ !"

रस्कोलनिकोव सदोवाया रोड तक पहुँचलइ आउ कोना पर मुड़ गेलइ । रज़ुमिख़िन विचारमग्न होल पीछू से ओकरा देखते रहलइ । आखिरकार, हाथ हिलाके, कलाली में घुस गेलइ, लेकिन ज़ीना के बीच में रुक गेलइ ।

"भाड़ में जाय !" लगभग उँचगर अवाज में ऊ अपने आपके बोलते रहलइ, "समझदारी के बात करऽ हइ, लेकिन मानूँ ... हूँ, हमहूँ बेवकूफ हकूँ ! की पागल लोग समझदारी के बात नयँ करऽ हइ ? आउ ज़ोसिमोव तो, हमरा अइसन लगलइ, एहे चलते डरऽ हइ !" ऊ अँगुरी से अपन सिर थपथपइलकइ । "लेकिन की होतइ, अगर ... लेकिन अभी ओकरा अकेल्ले कइसे छोड़ देल जाय ? हो सकऽ हइ, कि कहीं ऊ डूबके मर जाय ... अरे, हम तो मौका खो देलूँ ! अइसन नयँ करे के चाही हल !" आउ ऊ पीछू तरफ दौड़ पड़लइ, रस्कोलनिकोव के पकड़े खातिर, लेकिन ओकर कोय पता नयँ हलइ । ऊ थूक देलकइ आउ तेजी से डेग भरते वापिस ‘बिल्लौर महल’ चल अइलइ, ज़म्योतोव के जल्दी से जल्दी पुच्छे लगी ।

रस्कोलनिकोव सीधे --- पुल तरफ बढ़लइ, एकर बीच में ठहर गेलइ, जंगला (रेलिंग) पर दुन्नु केहुनी टिका देलकइ आउ दूर तरफ घूरे लगलइ । रज़ुमिख़िन से बिदा होला के बाद ऊ एतना कमजोर हो गेले हल, कि ऊ मोसकिल से हियाँ पहुँच पइलइ । ओकरा कहीं पर बइठ जाय के आउ लेट जाय के मन कइलकइ, रोड पर । पानी के उपरे झुकके, ऊ यंत्रवत् देख रहले हल - सूर्यास्त के अंतिम गुलाबी आभा के; गहरा रहल गोधूलिवेला के अन्हेरा में घरवन के कतार के; बामा किनारे तरफ कहीं के अटारी पर के दूर के एगो खिड़की के, जेकरा पर सूरज के अन्तिम किरण एक क्षण पड़ला से अइसे चमक रहले हल, जइसे कि एकरा में आग लगल होवे; कार पड़ रहल नहर के पानी के, आउ लग रहले हल, कि बड़ी ध्यान से ऊ ई पानी तरफ देख रहले हल । आखिरकार ओकर आँख में एक तरह के लाल-लाल वृत्त चक्कर मारे लगलइ, घरवन चलते नजर आवे लगलइ, राहगीर, बाँध, घोड़ा-गाड़ी - ई सब्भे ओकर चारो तरफ घुम्मे आउ नच्चे लगलइ । अचानक ऊ चौंक पड़लइ, एगो भयंकर आउ कुरूप दृश्य से शायद फेर से मूर्छित होवे से बच गेलइ । ऊ महसूस कइलकइ, कि कोय तो ओकर बगल में खड़ी हकइ, दहिना तरफ, पास में; ऊ ओद्धिर नजर डललकइ - आउ एगो औरत के देखलकइ, उँचगर, सिर पर ओढ़नी, पीयर, लमगर, मुरझाल चेहरा आउ ललुहन धँस्सल आँख वली । ऊ (औरत) ओकरा तरफ सीधे देखलकइ, लेकिन, साफ तौर पर ऊ कुछ नयँ देख रहले हल आउ केकरो नयँ पछानब करऽ हलइ । अचानक ऊ अपन दहिना हाथ के जंगला पर टिकइलकइ, अपन दहिना गोड़ उठइलकइ आउ एकरा घुमाके जंगला पर से पीछू ले गेलइ, आउ फेर बामा गोड़ के, आउ नहर में छलाँग लगा देलकइ । गंदला पानी बँट गेलइ, आउ अपन शिकार के एक पल में निंगल गेलइ , लेकिन एक मिनट के बाद डुबलका औरतिया उतराय लगलइ, आउ धारा में ओकर देह धीरे से निच्चे तरफ जाय लगलइ, ओकर सिर आउ गोड़ पानी के निच्चे हलइ, पीठिया उपरे तरफ, आउ स्कर्ट एक तरफ सरकल आउ पनिया के उपरे फूकना (बैलून) नियन फुल्लल हलइ ।

"औरत डुबलइ ! औरत डुबलइ !" दसो अवाज के चीख सुनाय देलकइ; लोग दौड़के अइते गेलइ, दुन्नु बाँध पर दर्शक भर गेलइ, पुल पर रस्कोलनिकोव के चारो तरफ लोग के भीड़ लग गेलइ, ओकरा पीछू से ढकेलते आउ दबइते ।

"हे भगमान, ई तो हमर अफ्रोसिन्यूश्का हके !" कहीं पास में एगो औरत के दुख भरल चीख सुनाय देलकइ । "हे भगमान, बचावऽ ! बाप रे ! ओकरा निकासऽ !"
"नाय ! नाय !" भीड़ में से लोग के चीख सुनाय देलकइ ।
लेकिन अब नाय के जरूरत नयँ हलइ - एगो सिपाही (पुलिसमैन) नहर के निच्चे तरफ वला सीढ़ी से दौड़ल उतरलइ, अपन ओवरकोट आउ बूट उतार लेलकइ, आउ पानी में कूद पड़लइ । बड़गर काम नयँ हलइ - डुब्बल औरतिया पानी के बहाव में दहाल-दहाल सीढ़ी से दुइए डेग पर आ गेले हल, ऊ अपन दहिना हाथ से ओकरा ओकर पोशाक के सहारे धर लेलकइ, बामा से ऊ पोल के पकड़ लेलकइ, जेकरा ओकर साथी ओकरा तरफ बढ़इले हलइ, आउ तुरते डुबलका औरतिया बाहर निकास लेल गेलइ । ओकरा सीढ़ी पर के ग्रैनाइट फर्श पर पाड़ देल गेलइ । ओकरा जल्दीए होश आ गेलइ, उठके बइठ गेलइ आउ छिंक्के आउ खाँसे लगलइ, बेमतलब के हाथ से अपन गीला कपड़ा के झारते । ऊ कुछ नयँ बोललइ ।

"बहुत जादे पी लेलके ह, बाबू सब, बहुत जादे", ओहे औरत के विलाप भरल अवाज सुनाय देलकइ, जे अब तक अफ्रोसिन्यूश्का के बगल में पहुँच चुकले हल, "हाले में फँसियो लगावे ल चहलकइ, फंदा से ओकरा निकास लेवल गेलइ । अभी हम दोकान चल गेलिए हल, एगो लड़की के ओकरा पर नजर रक्खे लगी छोड़लिए हल - आउ अइकी अइसन गंजन कर लेलकइ ! दोकान दे हइ, बाबू, हमन्हीं नियन, हमन्हीं पासे-पास रहऽ हिअइ, कोनमा भिर से दोसरा घर, अउकी ओज्जा ..."

भीड़ छँट गेलइ, पुलिस वलन डुबलका औरतिया भिर अभियो दौड़ा-दौड़ी करिए रहले हल, कोय तो थाना के बारे कुछ चिल्लइलइ ... रस्कोलनिकोव विरक्ति आउ उदासीनता के विचित्र भावना से देखते रहलइ । ओकरा घृणा अनुभव हो रहले हल । "नयँ, ई सब घिनौना हइ ... पानी ... कोय फयदा नयँ", ऊ अपने आप बड़बड़इलइ। "कुछ नयँ होतइ", ऊ बड़बड़ाना जारी रखलकइ, "इंतजार करे से कोय फयदा नयँ । ई की हइ, थाना ... आ ज़म्योतोव थनमा में काहे नयँ हइ ? थाना तो नो बजे के बाद तक खुल्ला रहऽ हइ ..." ऊ अपन पीठिया रेलिंग तरफ मोड़लकइ आउ अपन चारो तरफ नजर फेरलकइ ।

"त एकरा से की ! आउ शायद !" ऊ दृढ़ता के साथ बोललइ, ऊ पुलवा भिर से चल पड़लइ आउ ऊ तरफ रवाना होलइ, जाहाँ पर थाना हलइ । ओकर दिल खाली-खाली आउ उदासीन लग रहले हल । ऊ कुछ सोचे ल नयँ चाह रहले हल । ओकर अवसाद (depression) भी दूर हो गेले हल, हाल के ओकर ऊ ऊर्जा के नाम-निशान नयँ रह गेले हल, जब ऊ घर से ई पक्का इरादा करके निकसले हल, कि "सब कुछ खतम कर देना हके !" ओकर जगह पूरा उदासीनता ले लेलके हल ।

"एकरा से की, ई तो निकास हइ !" ऊ सोचलकइ, शांत मन से आउ धीरे-धीरे नहर के बाँध के किनारे-किनारे चलते-चलते । "कइसूँ हम एकरा खतम कर देम, काहेकि हम एहे चाहऽ हूँ ... लेकिन कोय उपाय हइ की ? लेकिन सब कुछ बराबर हइ ! एक अर्शीन लम्मा-चौला जगह होतइ, आह ! कइसन, लेकिन, अन्त! की वास्तव में ई अन्त हो सकऽ हइ ? ओकन्हीं के हम बतावूँ, कि नयँ बतावूँ ? धत् ... भाड़ में जाय ! हम थकलो हकूँ - काश, हमरा जल्दी से जल्दी कहीं तो पड़ जाय, चाहे बइठ जाय के जगह मिल जाय ! सबसे जादे लाज के बात तो ई हके, कि ई बहुत नादानी के बात हके। तइयो हम एकरा पर थुक्कऽ हूँ । छीः, कइसन-कइसन बेवकूफी वला बात दिमाग में आवऽ हइ ..."

थाना तक पहुँचे लगी ओकरा सीधे जाय के हलइ आउ दोसरा मोड़ पर बामा तरफ मुड़े के - ऊ हुआँ दू डेग पर हलइ । लेकिन ऊ पहिला मोड़ पहुँचला पर ऊ रुक गेलइ, थोड़े देरी सोचते रहलइ, बगल के गल्ली में मुड़ गेलइ आउ चक्कर मारके लम्मा रस्ता से गेलइ, दू रोड पार करके - शायद बिन कोय उद्देश्य के, आ शायद एक मिनट समय आगे बढ़ा देवे खातिर आउ ई तरह से कुछ समय अइसीं गुजार देवे खातिर । ऊ जमीन तरफ नजर कइले आगे चलते रहलइ । अचानक ओकरा लगलइ, जइसे ओकर कान में कोय फुसफुसाके कहलकइ । ऊ सिर उठइलकइ आउ देखलकइ, कि ऊ ओहे घर के पास खड़ी हइ, ठीक गेट भिर । ऊ साँझ से ऊ हियाँ नयँ अइले हल आउ पास से नयँ गुजरले हल । कोय दुर्निवार आउ अनिर्वचनीय (irresistible and inexplicable) इच्छा ओकरा घींचले जा रहले हल । ऊ घरवा में घुस गेलइ, पूरा प्रवेशमार्ग (gateway) पार कइलकइ, फेर दहिना तरफ के पहिला प्रवेशद्वार पर अइलइ आउ जानल-पछानल ज़ीना से उपरे चढ़े लगलइ, चौठा मंजिला तक । सँकरा आउ लगभग खड़ा ज़ीना पर बहुत अन्हेरा हलइ । ऊ हरेक चबूतरा (landing) पर रुक जाय आउ उत्सुकतापूर्वक चारो तरफ देखइ । पहिला मंजिला के चबूतरा पर के खिड़की के चौखटा निकास देवल गेले हल। "अइसन तो तखने नयँ हलइ", ऊ सोचलकइ । एहे तो दोसरा मंजिला पर के फ्लैट हलइ, जाहाँ निकोलाश्का आउ मित्का काम कर रहले हल - "फ्लैट बन कर देल गेले ह; आउ दरवजवा के फेर से पेंट कइल गेले ह; मतलब, ई किराया पर देल जाय वला हइ ।" आउ अइकी तेसरा मंजिला ... आउ चौठा ... "हियाँ !" ऊ सकपका गेलइ - ई फ्लैट के दरवाजा पूरा खुल्ला हलइ, हुआँ लोग हलइ, अवाज सुनाय देब करऽ हलइ; ऊ एकर प्रत्याशा बिलकुल नयँ कइलके हल । थोड़े सन हिचकिचइते, ऊ अन्तिम कुछ सीढ़ी चढ़लइ आउ फ्लैट के अन्दर चल गेलइ।

एकरो नया तरह से सुसज्जित कइल जा रहले हल; एकरा में मजदूर सब हलइ; एकरा से मानूँ ऊ अचरज में पड़ गेलइ । नयँ मालूम काहे ऊ अइसन कल्पना कर रहले हल, कि ओकरा सब कुछ ठीक ओइसीं देखे लगी मिलतइ, जइसन तखने छोड़लके हल, आउ शायद लशवो ओहे जगह पे फर्श पर पड़ल होतइ । लेकिन अभी - खाली-खाली देवाल, कोय फर्नीचर नयँ; ई एक तरह से विचित्र लग रहले हल ! ऊ चलके खिड़की भिर अइलइ आउ ओकर तल (sill) पर बइठ गेलइ । कुल्लम दू मजदूर हलइ, दुन्नु नौजवान छोकरा, एगो थोड़े बड़गर, आउ दोसरा बहुत छोटगर । ओकन्हीं देवाल पर, पहिलौका पियरका आउ फट्टल-चिट्टल कागज के जगह पे, उज्जर रंग के आउ बैंगनी फूल वला नयका कागज चिपका रहले हल । रस्कोलनिकोव के, नयँ मालूम काहे, बिलकुल नयँ पसीन पड़लइ; ऊ ई देवाल के नयका कागज के द्वेषपूर्ण ढंग से देखलकइ, मानूँ ओकरा अफसोस हो रहल होवे, कि काहे सब कुछ अइसे बदल देल गेलइ ।

जाहिर हइ कि मजदूर सब देर तक काम करते रहले हल आउ अब जल्दीबाजी में कागज लपेट रहले हल आउ घर जाय के तैयारी कर रहले हल । रस्कोलनिकोव के हुआँ आवे पर ओकन्हीं कोय ध्यान नयँ देलकइ । ओकन्हीं कोय चीज के बारे बतिया रहले हल । रस्कोलनिकोव अपन हाथ से क्रॉस कइलकइ आउ ध्यान से सुन्ने लगलइ ।

"ऊ हमरा पास सुबहे आवऽ हइ", बड़का छोटका के कहऽ हइ, "बहुत सबेरे, पूरा बन-ठन के । 'ई तूँ की कर रहलहऽ हँ', हम कहऽ हिअइ, 'हमरा सामने, लेमू-सेव के खेल खेल रहलऽ हँ ?' - 'हम चाहऽ हियो, तित वसिल्येविच', ऊ बोलऽ हइ, 'कि अब से तोर पूरा के पूरा इच्छा के अनुसार चलियो' । त ई बात हइ ! आउ बनल-ठनल कइसन – फैशन पत्रिका, बिलकुल फैशन पत्रिका नियन !'

"आ ई फैशन पत्रिका की होवऽ हइ, चचा ?" छोटका पुछलकइ । जाहिर हइ, ऊ 'चचा' से सीख रहले हल ।

"आ फैशन पत्रिका  - ई तो भाय रंगीन तस्वीर होवऽ हइ, आउ ई सब हियाँ इलाका के दर्जी सब के हियाँ हरेक सनिच्चर के आवऽ हइ, विदेश से, डाक से, आउ एकरा में ई होवऽ हइ, कि केकरा कइसन पोशाक पेन्हे के चाही, जइसन मरद सब के, बिलकुल ओइसीं औरतियन के । कहे के मतलब, फैशनदार पोशाक सब के तस्वीर । मरद लोग के अधिकतर बिकेशा (फरकोट) में देखावल रहऽ हइ, आउ स्त्री विभाग में तो, भाय, अइसन फैशनदार रहऽ हइ, कि तूँ सब कुछ दे दे, तइयो कमती पड़तउ !"

"आउ कउची-कउची ई पितिरबुर्ग में नयँ हकइ !" उत्साह से छोटका चिल्लइलइ, "माय-बाप के छोड़के, सब कुछ हकइ!"
"ओकरा छोड़के तो, भाय हमर, सब कुछ पावल जा हइ", उपदेशात्मक रूप से बड़का निष्कर्ष निकसलकइ ।

रस्कोलनिकोव उठ खड़ी होलइ आउ दोसरा कमरा में चल गेलइ, जाहाँ पर पहिले सन्दूक आउ दराज वला अनवारी हलइ; बिन फर्नीचर के ई कमरा ओकरा बहुत जरी गो बुझइलइ । देवाल के कागज ओहे हलइ; कोनमा में देवाल पर के कागज पर ऊ जगह के रूपरेखा साफ उभरल हलइ, जाहाँ पर प्रतिमा के फ्रेम (icon-frame) हलइ । ऊ चारो तरफ नजर दौड़इलकइ आउ फेर अपन खिड़की बिजुन वापिस आ गेलइ । बड़का मजुरवा ओकरा तिरछा नजर से देखब करऽ हलइ ।

"तोहरा की चाही, जी ?" ओकरा संबोधित करते ऊ पुछलकइ ।

जवाब देवे के बजाय रस्कोलनिकोव खड़ी हो गेलइ, निकसके ड्योढ़ी में अइलइ, घंटी के रस्सी पकड़के घिंचलकइ । ओहे घंटी, ओहे टिन वला अवाज ! ऊ दोसरा तुरी घिंचलकइ, तेसरा तुरी; ऊ ध्यान से सुनलकइ आउ आद कइलकइ । शुरू-शुरू वला दर्दनाक रूप से भयानक, घिनौना संवेदना बाद में ओकरा लगी अधिकाधिक स्पष्ट आउ सजीव होवे लगलइ, ऊ हरेक चोट पर चौंक जा हलइ, आउ ओकरा लगी अधिकाधिक मजेदार होवे लगलइ ।

"तोरा की चाही ? के हकऽ ?" ओकरा तरफ बहरसी आके ऊ चिल्लइलइ । रस्कोलनिकोव फेर से दरवाजा के अन्दर चल गेलइ ।
"फ्लैट किराया पर चाही", ऊ कहलकइ, "हम देख रहलूँ हँ ।"
"किराया पर फ्लैट रात में नयँ लेल जा हइ; आउ एकर अलावे तोहरा दरबान के साथ आवे के चाही ।"
"फर्श तो साफ कर देल गेले ह; पेंट कइल जइतइ ?" रस्कोलनिकोव बात जारी रखलकइ । "खून तो नयँ हकइ ?"
"कइसन खून ?"
"आ बुढ़िया आउ ओकर बहिनी के तो हत्या कर देल गेले हल । हियाँ पर ढेर सारा खून जामा हो गेले हल ।
"तूँ कइसन अदमी हकऽ ?" मजदूर बेचैनी से जवाब देलकइ ।
"हम ?"
"हाँ ।"
"आ तोरा जाने के मन हउ ? ... थाना चलल जाय, हुएँ बतइबउ ।"
मजुरवन ओकरा अचरज से देखे लगलइ ।
"हमन्हीं के जाय के हके, जी, देर हो गेल ह । चलल जाय, अल्योश्का । ताला लगावे के हकइ ।" बड़का मजूर बोललइ ।
"अच्छऽ, चलल जाय !" रस्कोलनिकोव लापरवाही से उत्तर देलकइ आउ पहिले बहरसी निकसलइ, आउ धीरे-धीरे ज़ीना पर से उतरे लगलइ । "ए, दरबान !" प्रवेशमार्ग से बाहर होते ऊ चिल्लइलइ ।

कइएक लोग सड़क पर से घर के प्रवेशद्वार भिर खड़ी-खड़ी राहगीर सब के घूर रहले हल - दुन्नु दरबान, एगो देहाती औरत, लबादा (गाउन) में एगो बेपारी, कुछ आउ लोग । रस्कोलनिकोव सीधे ओकन्हीं तरफ गेलइ ।

"तोहरा की चाही ?" एक दरबान पुछलकइ ।
"थाना होके अइलऽ ह ?"
"अभिए होके अइलिए ह । तोहरा की चाही ?"
"ओकन्हीं हुआँ पर हका ?"
"हाँ, हथिन ।"
"आउ पुलिस चीफ के सहायक हुआँ हका ?"
"थोड़े समय तक हला । तोहरा की चाही ?"
रस्कोलनिकोव कोय जवाब नयँ देलकइ आउ ओकन्हीं बीच सोचते रहलइ ।
"फलैट देखे लगी अइला हल", पास आके बड़का मजुरवा बोललइ ।
"कइसन फलैट ?"

"जाहाँ हमन्हीं काम करऽ हिअइ । 'खुनमा काहे साफ कर देते गेलहीं ?', ओकरा कहना हइ । 'हियाँ पर तो', बोलऽ हइ, 'हत्या होले हल, आउ हम किराया के फलैट लेवे अइलूँ हँ ।' आउ घंटिया बजवे लगलइ, लगभग तोड़िए देलके हल । 'आ चलल जाय, थाना', बोलऽ हइ, 'हुएँ सब कुछ रिपोट कर देबइ । हमन्हीं के पीछू पड़ गेलइ ।"

दरबान भौंचक्का होके आउ नाक-भौं सिकोड़ते रस्कोलनिकोव तरफ तक्के लगलइ ।
"लेकिन तूँ हऽ केऽ ?" ओकरा पर जरी डपटके चिल्लइलइ ।
"हम हकूँ रोदियोन रोमानोविच रस्कोलनिकोव, पूर्वछात्र, आउ शील के घर में रहऽ हकूँ, हिएँ एगो गल्ली में, हियाँ से थोड़े दूर, फ्लैट नंबर चौदऽ । दरबान के पुच्छऽ ... ऊ हमरा जानऽ हइ ।" रस्कोलनिकोव ई सब बात एक तरह से अलसाल ढंग से आउ विचारमग्न स्थिति में कहलकइ, बिन मुड़ले आउ एकटक अन्हरियाल सड़क तरफ देखते ।

"फलैट में काहे लगी गेलऽ हल ?"
"देखे लगी ।"
"हुआँ की देखे लगी ?"
"एकरा पकड़के थाना काहे नयँ ले जाल जाय ?" अचानक बेपारी बीच में बोललइ आउ चुप हो गेलइ ।
रस्कोलनिकोव ओकर कन्हा के उपरे एगो तिरछा नजर डललकइ, ध्यान से देखलकइ आउ ओइसीं धीमा अवाज में आउ अलसाल ढंग से बोललइ -
"चलल जाय !"
"हाँ, ले चलल जाय !" उत्साहित बेपारी बात पकड़ लेलकइ । "काहे लगी ऊ ई बात पर अड़ल हइ ? ओकर दिमाग में की हइ, अयँ ?"
"ऊ पीयल हइ, कि नयँ पीयल हइ, ई तो भगमाने जानऽ हका ।" मजदूर बोललइ ।
"लेकिन आखिर तोहरा की चाही ?" फेर दरबान चिल्लइलइ, अबरी गंभीरतापूर्वक क्रुद्ध होवे लगले हल, "तूँ अड़ल कउन बात लगी हकऽ ?"
"थाना जाय से डर लगऽ हको ?" व्यंग्यपूर्वक रस्कोलनिकोव ओकरा कहलकइ ।
"डर कउन बात के ? तूँ हियाँ से जा ह काहे नयँ ?"
"बदमाश !" देहाती औरत चिल्लइलइ ।
"ओकरा से बक-झक करे के की जरूरत हकइ ?" दोसरा दरबान बोललइ, एगो बड़गर किसान, बिन बोताम लगल कोट में आउ बेल्ट (चमोटी) में कुंजी के गुच्छा लटकल हलइ ।
"चल, हट ! ... पक्का बदमाश ... चल, निकस !"

आउ, ऊ रस्कोलनिकोव के कन्हा से पकड़के सड़क पर ढकेल देलकइ । ऊ मुँहे भरल गिरहीं वला हलइ, लेकिन गिरलइ नयँ, अपना के सँभाल लेलकइ, चुपचाप सब्भे दर्शक तरफ देखलकइ आउ आगे बढ़ गेलइ ।
"अजीब अदमी हकइ", मजुरवा बोललइ ।
"आझकल अजीब-अजीब लोग नजर आवऽ हइ", औरतिया बोललइ ।
"एकरा कइसूँ थाना ले जाय के चाही हल", बेपारी आगे बोललइ ।
"ओकर मुँह नयँ लगने बेहतर हइ", बड़का दरबान फैसला करते बोललइ । "कइसन बदमाश हइ ! एकरा में ऊ खुद्दे हमन्हीं के शामिल करे ल चाहऽ हइ, ई स्पष्ट हइ, आ एक तुरी शामिल हो जो, कि कभी एकरा से छुटकारा नयँ मिल्ले वला ... हमरा मालूम हइ !"

"त जाल जाय, कि नयँ", रस्कोलनिकोव सोचलकइ, चौराहा पर बीच सड़क में रुकके आउ चारो बगल देखते, मानूँ केकरो तरफ से अंतिम शब्द के इंतजार में हलइ । लेकिन कधरो से कोय जवाब नयँ अइलइ; सब कुछ शांत आउ मुर्दा हलइ, ठीक पत्थल नियन, जेकरा पर ऊ चल रहले हल, ओकरा लगी मुर्दा, खाली ओकरे लगी मुर्दा ... अचानक, दूर में, ओकरा भिर से कोय दू सो डेग पर, रोड के अंत में, गहराल जा रहल अन्हेरा में, ओकरा भीड़, बातचीत, चीख के अहसास होलइ ... भीड़ के बीच में एगो घोड़ागाड़ी खड़ी हलइ ... रोड के बीच में रोशनी टिमटिमा रहले हल । "की बात हइ ?" रस्कोलनिकोव दहिने मुड़लइ आउ भीड़ तरफ चल पड़लइ । ऊ मानूँ हर चीज के पकड़े के कोशिश कर रहले हल आउ ई बात सोचके ऊ रुखाई से मुसकइलइ, काहेकि ऊ थाना के बारे पक्का ठान लेलके हल, आउ निश्चित रूप से जानऽ हलइ, कि अब सब मामला खतम हो जइतइ ।


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