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Sunday, May 29, 2016

रूसी उपन्यास "कालापानी" ; भाग-2; अध्याय-8: साथी



कालापानी
(साइबेरिया में जेल के जिनगी)

भाग-2; अध्याय-8: साथी (comrades)  

हम, वस्तुतः, सबसे जादे आकर्षित होलिअइ अपन बिरादरी तरफ, मतलब "उच्चकुलीन" तरफ, खास करके शुरुआती दौर में । लेकिन तीन पूर्व रूसी उच्चकुलीन में से, जे हमन्हीं के जेल में हलइ (अकीम अकीमिच, जासूस आ-व आउ ऊ, जेकरा पितृहन्ता मानल जा हलइ), हम खाली अकीम अकीमिच के साथ मिल्लऽ-जुल्लऽ हलिअइ आउ बात करऽ हलिअइ । हम स्वीकार करऽ हिअइ, कि हम अकीम अकीमिच के पास जा हलिअइ, अइसन कहल जाय, निराशा के चलते, सबसे उबाहट वला क्षण में आउ जब ओकरा छोड़के आउ कोय नयँ हलइ जेकरा भिर हमरा जाय के प्रत्याशा हलइ । पिछलौका अध्याय में, हम अपन सब लोग के वर्गीकरण करे के प्रयास कइलिअइ, लेकिन अभी, जइसीं अकीम अकीमिच के आद अइलइ, त सोचऽ हिअइ, कि एक आउ  वर्ग जोड़ल जा सकऽ हइ । सच हइ, कि ई वर्ग के ओहे एकमात्र प्रतिनिधि हलइ । ई वर्ग - बिलकुल भावशून्य कैदी लोग के हइ । बिलकुल भावशून्य, मतलब अइसन लोग, जेकरा लगी स्वतंत्र रहके जीना, चाहे जेल में जीना - दुन्नु एक समान हइ; हमन्हीं हीं, जाहिर हइ, न अइसन हलइ आउ न हो सकऽ हलइ, लेकिन अकीम अकीमिच, लगऽ हइ, एगो अपवाद हलइ । ऊ जेल में अइसे खुद के स्थापित कर लेलके हल, मानूँ सारी जिनगी ओकरे में रहतइ - सब कुछ ओकर चारो तरफ, गद्दा से शुरू करके, तकिया, बरतन सब एतना व्यवस्थित, एतना स्थिरता से, एतना दीर्घकाल तक लगी सज्जल हलइ । रात गुजारे भर के, थोड़े समय के बात के ओकरा में लेशमात्र नयँ देखाय दे हलइ । ओकरा जेल में अभियो कइएक साल गुजारे के हलइ, लेकिन मोसकिल से, कभी-कभार जेल से मुक्ति के बात सोचऽ होतइ । लेकिन अगर ऊ असलियत से समझौता कर लेलके हल, त जाहिर हइ, दिल से नयँ, बल्कि वस्तुतः अधीनता के वश, जे ओकरा लगी बस एक्के बात हलइ । ऊ दयालु व्यक्ति हलइ आउ शुरू-शुरू में हमरा सलाह आउ कुछ सेवा से मदत कइलके हल; लेकिन, खेद के साथ कहे पड़ऽ हइ, कि कभी-कभी अनजाने में हमरा, खास करके शुरुआती दौर में, अद्वितीय उदासी में डाल दे हलइ, आउ ओकरा बिना पहिलहीं से हमर उदासीन स्थिति रहऽ हलइ ओकरा आउ बढ़ा दे हलइ । तइयो हम विषाद के चलते ओकरा साथ बात करऽ हलिअइ । हम बल्कि कइसनो जीवंत शब्द लगी तरस जइअइ, बल्कि ई कटु काहे नयँ होवइ, बल्कि असहनीय, कइसनो प्रकार के द्वेष काहे नयँ होवइ - हमन्हीं कम से कम अपन-अपन भाग्य पर साथे-साथ गोस्सा कर सकऽ हलिअइ; लेकिन ऊ चुप रहइ, लालटेन के गोंद से चिपकइते रहइ, चाहे सुनावइ, कि कइसे फलना-फलना साल में ओकन्हीं हीं निरीक्षण (मुआइना) होले हल, आउ डिविजन के कमांडर केऽ हलइ, आउ ओकर पहिला नाम आउ पैतृक नाम की हलइ, आउ ऊ निरीक्षण से खुश होले हल कि नयँ, आउ कइसे राइफलधारी लोग के सिग्नल बदल देल गेले हल इत्यादि । आउ सब कुछ एतना शांत, एतना औपचारिकतापूर्ण स्वर में, मानूँ बून-बून पानी टपकऽ हलइ । ऊ लगभग बिलकुल जोश में भी नयँ अइलइ, जब हमरा बतइलकइ, कि काकेशिया में कोय काम के मामले में भाग लेवे खातिर ओकरा तलवार पर सेंट ऐन (Saint Anne on the sword) के पुरस्कार [1] मिलले हल । खाली ओकर स्वर अइसन पल में कइसूँ असामान्य रूप से गौरवपूर्ण आउ गंभीर हो गेलइ; ऊ एकरा जरी निच्चे कर लेलकइ, हियाँ तक कि कोय रहस्यमयता के हद तक, जब ऊ "सेंट ऐन" शब्द बोललइ, आउ एकर कोय तीन मिनट बाद ऊ कइसूँ खास करके चुप आउ गंभीर रहलइ ... ई पहिलौका साल में, हमरा मूर्खतापूर्ण क्षण हलइ, जब हम (आउ हमेशे कइसूँ अचानक) अकीम अकीमिच से नफरत करे लगलिअइ, नयँ मालूम काहे लगी, आउ चुपचाप अपन किस्मत के कोसऽ हलिअइ ई वजह से, कि ऊ हमरा ओकरा साथ पटरा के बिछौना पर हमर सिर के सामने ओकर सिर करके रख देलक । सामान्यतः एक घंटा बाद हम ई बात लगी खुद के धिक्कारऽ हलिअइ । लेकिन अइसन खाली पहिलौका साल में होलइ; बाद में हम अपन आत्मा में अकीम अकीमिच से बिलकुल समझौता कर लेलिअइ आउ हम अपन पहिलौका बेवकूफी पर लज्जित होलिअइ । बाहर-बाहर, जइसन कि हमरा आद पड़ऽ हइ, हमन्हीं बीच कोय झगड़ा नयँ होलइ ।

ई तीन रूसी लोग के अतिरिक्त, दोसर लोग हमर समय में हमन्हीं हीं आठ लोग हलइ । ओकन्हीं में से कुछ लोग के साथ हम घनिष्ठता बरतलिअइ आउ खुशी के साथ भी, लेकिन सब के साथ नयँ । ओकन्हीं में से सबसे निम्मन लोग एक प्रकार से बेमरियाहा, विशेष आउ हद दर्जा के असहिष्णु हलइ । ओकन्हीं में से दू लोग के साथ बाद में हम बस बाते करे लगी छोड़ देलिअइ । ओकन्हीं में से शिक्षित खाली तीन लोग हलइ - बे-स्की [2], एम-की आउ बुढ़उ झे-की [3], जे पहिले कहीं पर गणित के प्रोफेसर हलइ - बुढ़उ दयालु, निम्मन, बड़गो सनकी, आउ शिक्षा के बावजूद, लगऽ हइ, अत्यंत संकीर्ण विचार के व्यक्ति हलइ । एम-की आउ बे-की बिलकुल दोसरे प्रकार के हलइ। एम-की के साथ हम पहिलौके तुरी से निम्मन से हिल-मिल गेलिअइ; कभियो ओकरा साथ लड़ाय-झगड़ा नयँ होलइ, हम ओकरा आदर करऽ हलिअइ, लेकिन ओकरा हम कभियो प्यार नयँ कर पइलिअइ, ओकरा से कभियो लगाव नयँ हो पइलइ । ई बहुत अविश्वासी आउ क्रूर व्यक्ति हलइ, लेकिन आश्चर्जनक ढंग से निम्मन से ओकरा खुद के नियंत्रित करे के क्षमता हलइ । लेकिन एहे ओक्कर बहुत बड़गर क्षमता हमरा पसीन नयँ पड़लइ - कइसूँ लगऽ हलइ, कि ऊ कभियो अपन दिल के केकरो सामने नयँ खोलतइ । लेकिन, शायद, हमरे गलतफहमी हलइ । ई एगो दृढ़संकल्प व्यक्ति हलइ आउ उच्च दर्जा के उदार हलइ । ओकर अत्यधिक, कुछ कपटी आचरण में दक्षता भी, आउ लोग के साथ व्यवहार में सावधानी, ओकर गुप्त आउ गहरा संशयवाद (scepticism) दर्शावऽ हलइ । आउ तइयो ई आत्मा ठीक ई द्विविधता (duality) से पीड़ित हलइ -  संशयवाद आउ कुछ अपन विशेष विचारधारा आउ आशा में गंभीर, बिलकुल अडिग विश्वास । लेकिन अपन संपूर्ण सांसारिक दक्षता के बावजूद, ओकरा बे-की आउ अपन दोस्त ते-स्की के साथ जानी दुश्मनी हलइ । बे-की रोगियाहा हलइ, कुछ-कुछ तपेदिक के प्रवृत्ति वला, चिड़चिड़ा आउ अधीर (nervous), लेकिन असल में बहुत दयालु आउ विशालहृदय भी । ओकर चिड़चिड़ापन कभी-कभी अत्यंत असहनीयता आउ सनक तक पहुँच जा हलइ । हम ओकर चरित्र के बरदास नयँ कर पइलिअइ आउ बाद में हम बे-की से अलगे हो गेलिअइ, हलाँकि हम कभियो ओकरा प्यार करे लगी बन नयँ कइलिअइ; आउ एम-स्की के साथ झगड़ा नयँ कइलिअइ, लेकिन ओकरा कभी नयँ पसीन कइलिअइ । बे-की के साथ अलगे होते, अइसन होलइ, कि हमरा तुरतम्मे ते-स्की के साथ भी अलगे हो जाय के चाही हल, ओहे नवयुवक के साथ, जेकर उल्लेख हम पिछला अध्याय में कर चुकलिए ह, शिकायत के चर्चा के बखत । ई बात लगी हमरा बड़गो खेद हलइ । ते-स्की हलाँकि अनपढ़ भी हलइ, लेकिन दयालु, साहसी, निम्मन नवयुवक, अगर एक शब्द में कहल जाय । बात ई हलइ, कि ऊ बे-की के एतना प्यार आउ एतना आदर करऽ हलइ, ओकरा लगी एतना श्रद्धा हलइ, कि जे कोय जरिक्को मनी बे-की से मतभेद रक्खऽ हलइ, ओकरा तुरतम्मे लगभग अपन दुश्मन माने लगऽ हलइ । बाद में ऊ एम-स्की के साथ, लगऽ हइ, बे-की के चलते अलगे हो गेलइ, हलाँकि लम्मा समय तक ऊ हिम्मत नयँ हारलइ । लेकिन, ओकन्हीं सब्भे नैतिक रूप से बेमरियाहा हलइ, पित्तल (bilious), चिड़चिड़ा, अविश्वासी । ई समझल जा सकऽ हलइ - ओकन्हीं लगी ई कष्टकारी हलइ, हमन्हीं के अपेक्षा बहुत जादे कष्टकारी । ओकन्हीं अपन मातृभूमि से दूर हलइ । ओकन्हीं में से कुछ लोग के लम्मा अवधि लगी भेजल गेले हल, दस साल, बारह साल खातिर, आउ मुख्य बात हलइ, कि ओकन्हीं अपन चारो तरफ के लोग के दृढ़ पूर्वाग्रह के साथ देखऽ हलइ, कातोर्गा कैदी लोग में बस खाली वहशीपन देखऽ हलइ आउ ओकन्हीं में एक्को निम्मन विशेषता, कुच्छो मानवीय गुण नयँ देख पावऽ हलइ आउ देखहूँ लगी नयँ चाहऽ हलइ, आउ जे समझल भी जा सकऽ हलइ - ओकन्हीं में ई दुर्भाग्यपूर्ण दृष्टिकोण परिस्थिति आउ भाग्य के बल पर थोपल गेले हल । बात साफ हलइ, कि उदासी जेल में ओकन्हीं लगी दमघोंटू हलइ । चेर्केस, तातार, इसाय फ़ोमिच के साथ ओकन्हीं प्रेमपूर्ण आउ मित्रतापूर्ण व्यवहार करऽ हलइ, लेकिन बाकी सब कैदी के साथ घृणापूर्वक मुँह फेर ले हलइ, कतराऽ हलइ ।
खाली स्तारोदुब्ये बस्ती के एक प्राचीन आस्था वला ओकन्हीं के पूरा आदर के पात्र बन गेले हल । लेकिन ई ध्यातव्य हइ, कि हमरा जेल में रहे के संपूर्ण अवधि के दौरान, कउनो कातोर्गा कैदी ओकन्हीं के कभी ताना नयँ मालकइ - न तो जन्म, न तो धार्मिक आस्था, न तो विचारधारा के मामले में, जे हमन्हीं के सामान्य जनता के बीच विदेशी लोग के संबंध में देखल जा हइ, खास करके जर्मन के संबंध में, हलाँकि बहुत विरले । लेकिन, जर्मन लोग पर खाली हँस्सऽ हइ; रूसी सामान्य लोग खातिर जर्मन एगो अत्यंत हास्यजनक पात्र होवऽ हइ । हमन्हीं हीं के कैदी सब विदेशी लोग के आदर से भी पेश आवऽ हलइ, हमन्हीं रूसी लोग के अपेक्षा बहुत अधिक, आउ ओकन्हीं के बिलकुल नयँ स्पर्श करऽ हलइ । लेकिन ओकन्हीं, लगऽ हइ, कभियो ई बात के नोटिस करे लगी आउ ध्यान देवे लगी नयँ चाहऽ हलइ । हम ते-स्की के बारे बात करे लगलिअइ । ई ऊ हलइ, जे ओकन्हीं के जब पहिलौका निर्वासन के स्थान से हमन्हीं के किला में स्थानान्तरित कइल जा रहले हल, त बे-की के अपन बाँह में रखके ओकरा लगभग पूरा रस्ता के यात्रा के दौरान ढोके लइलके हल, जबकि ऊ स्वास्थ्य आउ शरीरगठन से निर्बल होल आधे दिन में थकके चूर हो गेले हल । ओकन्हीं के पहिले उ-गोर्स्क [4] भेजल गेले हल । ओकन्हीं बतइलकइ, हुआँ ओकन्हीं लगी निम्मन हलइ, मतलब हमन्हीं के किला के अपेक्षा बहुत बेहतर । लेकिन ओकन्हीं दोसरा शहर के निर्वासित लोग के साथ कइसनो प्रकार के  पत्राचार - लेकिन बिलकुल निर्दोष - शुरू कइलके हल, आउ एकरा चलते तीनों के हमन्हीं के किला में स्थानांतरित करना जरूरी समझल गेलइ, जाहाँ हमन्हीं के उच्च प्राधिकारी के आउ निकटतर दृष्टि में हलइ । ओकन्हीं के तेसरा साथी झे-की हलइ । ओकन्हीं के आगमन के पहिले एम-की जेल में अकेल्ले हलइ । ओकरा अपन निर्वासन के पहिला साल में केतना बोरियत झेले पड़ले होत!  

ई झे-की ओहे हमेशे भगमान के प्रार्थना करे वला बुढ़उ हलइ, जेकरा बारे हम पहिलहीं उल्लेख कर चुकलिए ह । सब्भे हमन्हीं के राजनीतिक अपराधी नवयुवक लोग हलइ, कुछ लोग तो बहुत कम उमर के; खाली झे-की पचास के उपरे के हलइ । ई अदमी वस्तुतः ईमानदार हलइ, लेकिन कुछ विचित्र । ओकर साथी, बे-की आउ ते-की, ओकरा बहुत पसीन नयँ करऽ हलइ, ओकरा से बोलवो नयँ करऽ हलइ, ई कहके कि ऊ जिद्दी आउ झगड़ालू हइ ।
हमरा मालूम नयँ, कि ओकन्हीं ई मामले में केतना सही हलइ । जेल में, जइसन कि कइसनो अइसन जगह में, जाहाँ लोग एक समूह में अपन इच्छा के अनुसार नयँ जामा होते जा हइ, बल्कि जबरदस्ती, त हमरा लगऽ हइ, कि जादे संभावना हइ कि जल्दीए आपस में लड़ाय-झगड़ा करे लगतइ आउ नफरत करे लगतइ, बनिस्बत अजाद रहे के हालत में । कइएक परिस्थिति ई बात में योगदान करऽ हइ । लेकिन, वास्तव में काफी नासमझ आउ, शायद, अप्रिय हलइ । सब्भे बाकी ओकर साथी के भी ओकरा साथ अनबन रहऽ हलइ । हमरा ओकरा साथ हलाँकि  कभियो झगड़ा नयँ होवऽ हलइ, लेकिन हमरा विशेष रूप से ओकरा साथ घनिष्ठता नयँ हलइ । अपन विषय, गणित, ऊ, लगऽ हइ, जानऽ हलइ । हमरा आद पड़ऽ हइ, ऊ अपन आधा-रूसी भाषा में हमेशे हमरा एक प्रकार के विशेष, अपन आविष्कृत खगोलीय प्रणाली (astronomical system) के समझइते रहऽ हलइ । हमरा लोग बतइते गेलइ, कि ऊ एकरा कभी तो प्रकाशित कइलके हल, लेकिन वैज्ञानिक जगत् में खाली उपहास होलइ। हमरा लगऽ हइ, कि ऊ बुद्धि से जरी आघातित (सनकी) हलइ । दिनो भर ऊ अपन टेहुना पर भगमान के प्रार्थना करते रहऽ हलइ, जेकरा से ओकरा जेल से सामान्य रूप से आदर प्राप्त होलइ आउ अइसन ओकरा ठीक मृत्यु पर्यंत रहलइ । एगो गंभीर बेमारी के बाद हमन्हीं के अस्पताल में, हमर आँख के सामने, ओकर मृत्यु होलइ। लेकिन, ऊ हमन्हीं के मेजर के साथ घटना के बाद जेल में ठीक अपन पहिलहीं कदम के साथ कातोर्गा कैदी लोग के आदर प्राप्त कर लेलकइ । उ-गोर्स्क से हमन्हीं के किला तक के रस्ता में ओकन्हीं के हजामत नयँ कइल गेले हल, आउ ओकन्हीं के दाढ़ी बढ़ गेले हल, ओहे से जब ओकन्हीं के सीधे मेजर के पास लावल गेलइ, त अधीनता के अइसन उल्लंघन से ऊ क्रोधावेश में आ गेलइ, जेकरा में लेकिन ओकन्हीं के कोय दोष नयँ हलइ ।

"ओकन्हीं कइसन तर्रह बनइले हइ !" ऊ गरजलइ । "ई तो अवारा, डाकू लगऽ हइ !"
झे-की, जबकि ऊ अभियो रूसी बहुत कम जानऽ हलइ आउ सोचलकइ, कि ओकन्हीं के पुच्छल जा रहले ह - "ओकन्हीं केऽ हइ ? अवारा, कि डाकू ?" आउ उत्तर देलकइ - "हमन्हीं अवारा नयँ हिअइ, बल्कि राजनीतिक अपराधी ।"
"कीऽ-ऽ-ऽ ! तूँ टर-टर करऽ हीं ? टर-टर !" मेजर गुर्रइलइ । "चल कोर-द-गार्द ! सो कोड़ा, अभिए, एहे क्षण !"

बुढ़उ के दंड देल गेलइ । ऊ बिन कोय विरोध के कोड़ा खाय लगी पड़ गेलइ, अपन हाथ में दत्ती काट लेलकइ आउ बिन जरिक्को कोय चीख या कराह के, बिन हिलले-डुलले, दंड बरदास कर लेलकइ । बे-की आउ ते-की एहे दौरान जेल में प्रवेश कर चुकले हल, जाहाँ परी एम-की ओकन्हीं के पहिलहीं से गेट बिजुन इंतजार करब करऽ हलइ आउ सीधे ओकन्हीं के गरदन से लिपट गेलइ, हलाँकि ओकन्हीं के कभियो नयँ देखलके हल । मेजर के स्वागत से क्षुब्ध होके ओकन्हीं ओकरा झे-की के बारे सब कुछ बतइलकइ । आद पड़ऽ हइ, कि कइसे एम-की हमरा एकरा बारे बतइलकइ - "हम अपन आपा खो देलिए हल", ऊ बोलले हल, "हमरा समझ में नयँ आ रहले हल, कि हमरा साथ की हो रहले ह, आउ हम कँप रहलिए हल, मानूँ बोखार में हलिअइ । हम झे-की खातिर गेट पर इंतजार करब करऽ हलिअइ । ओकरा सीधे कोर-द-गार्द से आवे के हलइ,  जाहाँ ओकरा दंड देल जा रहले हल । अचानक छोटका दरवाजा खुललइ - झे-की, बिन केकरो दने देखले, पीयर चेहरा आउ पीयर होंठ के साथ, प्रांगण में जामा होल कैदी लोग के बीच से होके गुजरलइ, जेकन्हीं के मालूम हलइ कि एगो उच्चकुलीन के दंड देल जा रहले ह [5], आउ बैरक में प्रवेश कइलकइ, सीधे अपन जगह तरफ, आउ बिन एक्को शब्द बोलले, टेहुना के बल बइठ गेलइ आउ भगमान के प्रार्थना करे लगलइ । कैदी लोग हक्का-बक्का आउ द्रवीभूत भी हो गेलइ । "जइसीं हम उज्जर केश वला ई बुढ़उ के देखलिअइ", एम-की बोललइ, "जे अपन मातृभूमि में अपन घरवली, बाल-बुतरू के छोड़के अइले हल, जइसीं हम ओकरा टेहुना के बल बइठल देखलिअइ, शर्मनाक ढंग से दंडित होल आउ प्रार्थना करते - हम बैरक सब के पिछुआनी में दौड़ल गेलिअइ आउ पूरे दू घंटा मानूँ स्मृतिहीन रहलिअइ; हम अपन आपा खो देलिए हल ..." कैदी लोग ई समय से झे-की के बहुत आदर करे लगलइ आउ ओकरा साथ हमेशे आदर से व्यवहार करऽ हलइ । ओकन्हीं के खास करके ई बात पसीन पड़लइ, कि कोड़ा के मार से ऊ चीखलइ नयँ ।

लेकिन पूरा सच बतावे के जरूरत हइ - ई उदाहरण से साइबेरिया में उच्चकुलीन के निर्वासित लोग के साथ प्राधिकारी के व्यवहार के बारे कुच्छो निर्णय नयँ कइल जा सकऽ हइ, चाहे ऊ निर्वासित लोग कउनो रहइ, रूसी चाहे पोलिस्तानी । ई उदाहरण खाली ई दर्शावऽ हइ, कि खराब अदमी से पाला पड़ सकऽ हइ, आउ वस्तुतः, अगर ई खराब अदमी कहीं स्वतंत्र वरिष्ठ कमांडर होवइ, त निर्वासित के भाग्य, अइसन हालत में जब ई खराब कमांडर ओकरा खास करके नफरत करइ, बहुत अनिश्चित हो सकऽ हइ । लेकिन ई स्वीकार नयँ करना असंभव हइ, कि साइबेरिया में सबसे उच्च प्राधिकारी, जेकरा पर बाकी सब्भे कमांडर के तान (टोन) आउ मूड निर्भर हइ, उच्चकुलीन निर्वासित लोग के संबंध में पक्षपात करऽ हइ आउ दोसरो कुछ स्थिति में दोसर कैदी लोग, अर्थात् सर्व सामान्य में से आवल कैदी लोग, के अपेक्षा ओकन्हीं के रियायत देवे के प्रयास करऽ हइ । एकर कारण स्पष्ट हइ - ई उच्च प्राधिकारी, पहिला, खुद्दे उच्चकुलीन होवऽ हइ; दोसरा, पहिलहूँ अइसन होले ह, कि उच्चकुलीन में से कुछ लोग कोड़ा खाय लगी पड़लइ नयँ आउ दंड देवे वला पर टूट पड़लइ, जेकरा चलते भयावह स्थिति पैदा हो गेलइ; तेसरा, आउ हमरो लगऽ हइ, ई मुख्य हइ, बहुत पहिलहीं से, करीब पैंतीस साल पहिले, साइबेरिया में अचानक, एक्के तुरी, उच्चकुलीन निर्वासित लोग के बड़गो समूह अइलइ, आउ एहे निर्वासित लोग तीस साल के दौरान पूरे साइबेरिया में खुद के स्थापित करे आउ सिद्ध करे में सफल हो गेते गेलइ, कि हमन्हीं के समय में प्राधिकारी प्राचीन काल से ही, विरासत में प्राप्त आदत से, खामखाह कुछ वर्ग के उच्चकुलीन-अपराधी सब के, बाकी सब लोग के अपेक्षा, दोसर नजर से देखऽ हलइ [6] । उच्च प्राधिकारी के पदचिह्न पे चलके निचलौको कमांडर लोग ओइसने नजर से देखे के अभ्यस्त हो जा हलइ, जाहिर हइ, अइसन दृष्टिकोण आउ तान उपरहीं से ग्रहण करके, ओकर आज्ञापालन करके, ओकर अधीन होके । लेकिन, ई निचलौका कमांडर लोग में से कइएक मामला के मूर्खतापूर्ण दृष्टि से देखऽ हलइ, निजी रूप से उपरौका औडर के आलोचना करऽ हलइ आउ बहुत बहुत खुश होते हल, अगर अप्पन ढंग से औडर देवे में ओकरा कोय बीच में अड़ंगा नयँ लगावल जइते हल । लेकिन ओकन्हीं के अइसन पूरा-पूरा अनुमति नयँ देल जा हलइ । हमरा अइसन सोचे के दृढ़ आधार हइ, आउ अइकी ई कारण हइ । कातोर्गा के दोसर श्रेणी, जेकरा में हम खुद हलिअइ, आउ जे मिलिट्री प्राधिकारी के अधीन किला में के कैदी हलइ, अपेक्षाकृत बाकी दुन्नु श्रेणी से अधिक कठोर हलइ, मतलब तेसरा (फैक्ट्री में) आउ पहिला (खदान में) से । ई कठोर हलइ खाली उच्चकुलीन लगी नयँ, बल्कि सब्भे कैदी लगी ठीक ई कारण से, कि प्राधिकारी आउ ई वर्ग के संरचना - दुन्नु मिलिट्री हलइ, रूस में अनुशासनात्मक (दंडात्मक) कंपनी से बहुत मिलता-जुलता । मिलिट्री प्राधिकारी आउ अधिक कठोर होवऽ हइ, नियम अधिक कड़ा होवऽ हइ, (कैदी) हमेशे सिक्कड़ (चेन) में होवऽ हइ, हमेशे मार्गरक्षी (convoy) के अधीन, हमेशे तालाबंदी में - आउ पहिलौका दू वर्ग में अइसन कठोरता नयँ होवऽ हइ । अइसन तो कम से कम बोलऽ हलइ हमन्हीं के सब कैदी, आउ ओकन्हीं बीच कुछ लोग काम के जानकार हलइ । ओकन्हीं सब खुशी से पहिला वर्ग में चल जइते हल, जे कानून के मोताबिक सबसे कठोर हइ, आउ ओकन्हीं एकरा बारे कइएक तुरी सपनइवो कइलइ । रूस में दंडात्मक कंपनी के बारे हमन्हीं के कैदी, जे हुआँ रहले हल, भय के साथ बोलऽ हलइ आउ विश्वास देलइलकइ, कि पूरे रूस में आउ अधिक कष्टदायक जगह नयँ हइ, जइसन रूसी किला में दंडात्मक कंपनी हइ, आउ साइबेरिया हुआँ के जिनगी के तुलना में स्वर्ग हइ । परिणामस्वरूप, अगर अइसन कठोर दशा में, जइसन कि हमन्हीं के जेल में हलइ, मिलिट्री प्राधिकारी के उपस्थिति में, गवर्नर-जेनरल के आँख के सामने, आउ आखिरकार, ओइसन घटना के ध्यान में रखते (जे कभी-कभार होवऽ हलइ), कि कुछ बाहरी, लेकिन अर्द्ध-सरकारी लोग, सेवा के दौरान दुर्भाव चाहे ईर्ष्या के चलते, गुप्त रूप से जाहाँ चाही हुआँ रिपोर्ट करे लगी तैयार हो जा हलइ, कि फलना-फलना वर्ग के अपराधी लोग के साथ फलना-फलना निष्ठाहीन कमांडर रियायत बरतऽ हइ - अगर अइसन जगह में, हमरा कहना हइ, बाकी कैदी लोग के अपेक्षा उच्चकुलीन-अपराधी के दोसर नजर से देखल जा हलइ, त पहिला आउ तेसरा वर्ग में ओकन्हीं के साथ आउ कहीं अधिक रियायत बरतल जा होतइ । फलस्वरूप, ऊ जगह में जाहाँ हम हलिअइ, हमरा लगऽ हइ, कि ई संबंध में आउ समुच्चे साइबेरिया के बारे हम अपन मंतव्य प्रस्तुत कर सकऽ हिअइ । सब अफवाह आउ कहानी, जे ई मामले में पहिला आउ दूसरा वर्ग के कैदी से हमरा भिर पहुँचऽ हलइ, हमर निष्कर्ष के पुष्टि करऽ हलइ । वास्तव में, हमन्हीं उच्चकुलीन लोग के मामले में, हमन्हीं के जेल में प्राधिकारी अधिक ध्यान दे हलइ आउ अधिक सावधानी बरतऽ हलइ । काम आउ जीवन शैली के मामले में निश्चित तौर पे (decidedly) कोय रियायत नयँ कइल जा हलइ - ओहे काम, ओहे बेड़ी, ओहे ताला - एक शब्द में, सब कुछ ओहे, जे सब्भे कैदी लगी होवऽ हलइ । आउ ई कठोरता के हलका करना असंभव हलइ । हम जानऽ हिअइ, कि ई शहर में हाल के अतीत दीर्घकाल में [7] एतना सारा मुखबिर (informers, spies) हलइ, एतना सारा साजिश (षड्यंत्र) हलइ, एतना सारा एक दोसरा लगी गड्ढा खोदे वला हलइ, कि प्राधिकारी गुप्त दोषारोपण से स्वाभाविक रूप से भयभीत रहऽ हलइ । आउ ऊ बखत अइसन रिपोर्ट से जादे आउ कउची भयानक हो सकऽ हलइ, कि कोय विशेष वर्ग के अपराधी के मामले में रियायत बरतल जा हइ ! ई तरह, हरेक (प्राधिकारी चाहे कैदी) कुछ आशंकित रहऽ हलइ (कि कुच्छो हो सकऽ हइ), आउ हमन्हीं, बाकी सब कैदिए नियन, रहऽ हलिअइ, लेकिन शारीरिक दंड के संबंध में कुछ अपवाद हलइ । सच हइ, हमन्हिंयों के अत्यंत असानी से कोड़ा लगावल जा सकऽ हलइ, अगर हमन्हीं एकर लायक होतिए हल, मतलब कोय मामला में अतिक्रमण करतिए हल । ई शारीरिक दंड के मामले में सेवा के कर्तव्य (duty of service) आउ समानता के माँग हलइ । लेकिन अइसीं, बेफुसटंग के, बेपरवाही से हमन्हीं के कोड़ा के फटका नयँ देल जा सकऽ हलइ, जबकि सर्वसामान्य कैदी लोग के साथ अइसन बेपरवाही वला बर्ताव, जाहिर हइ, होवऽ हलइ, खास करके कुछ निचला रैंक के कमांडर आउ उत्साही लोग के अधीन, हरेक सुविधाजनक अवसर पर औडर देवे आउ अपन धाक के अहसास देलावे खातिर । हमन्हीं के ई मालूम हलइ, कि कमांडर, बुढ़उ झे-की के साथ होल घटना के बारे जान गेला के बाद, मेजर पर बहुत गोस्सा होलइ आउ ओकरा चेतावनी देलकइ, कि भविष्य में  ओकरा अपन हाथ के काबू में रक्खे के चाही । अइसन बात हमरा सब कोय बतइलकइ । हमन्हिंयों हीं लोग जानऽ हलइ, कि खुद गवर्नर-जेनरल, जे हमन्हीं के मेजर पर विश्वास करऽ हलथिन आउ आंशिक रूप से ओकरा एगो कार्यवाहक (executive) आउ कोय क्षमता वला व्यक्ति के रूप में मानऽ हलथिन, अइसन कहानी जानके, ओहो ओकरा पर क्रोधित हो गेलथिन । आउ मेजर ई बात के ध्यान में रखलकइ । ऊ केतना चाहते हल, मसलन, एम-की के अपन गिरफ्त में लेवे लगी, जेकरा से आ-व के बारे चुगलखोरी के चलते नफरत करऽ हलइ, लेकिन ऊ ओकरा कइसूँ फटका नयँ लगा पइलकइ, हलाँकि बहाना ढूँढ़ऽ हलइ, ओकरा परेशान करऽ हलइ आउ ओकर पीछू पड़ल हलइ । झे-की के घटना समुच्चे शहर के मालूम पड़ गेलइ, आउ सामान्य विचार मेजर के विरुद्ध हलइ; कइएक लोग ओकरा फटकरलकइ, कुछ लोग तो अप्रिय शब्द के साथ भी । अभी हमरा मेजर के साथ पहिला मोलकात के बात आद पड़ऽ हइ । हमन्हीं के, मतलब हमरा आउ एगो दोसर उच्चकुलीन निर्वासित के, जेकर साथे-साथ हम जेल में अइलिए हल, लोग तोबोल्स्क में हीं ई अदमी के अप्रिय स्वभाव के बारे कहानी के साथ भयभीत कर देते गेले हल । ऊ बखत हुआँ पुरनकन पचीस बरिस निर्वासित जिनगी गुजार चुकल उच्चकुलीन लोग में से, जे हमन्हीं साथ गहरा सहानुभूति के साथ मिलते गेलइ आउ जे हमन्हीं के साथ लगातार संपर्क बनइले रखलकइ, जब हमन्हीं पारगमन (transit) जेल में हलिअइ, त हमन्हीं के भावी कमांडर से सचेत कइलकइ आउ ऊ सब कुछ करे के वचन देलकइ, जे ओकन्हीं परिचित लोग के माध्यम से कर सकऽ हलइ, ताकि हमन्हीं के ओकर अत्याचार से बचावल जा सकइ । वस्तुतः, रूस से आ रहल आउ ऊ बखत अपन पिता के साथ ठहरल, गवर्नर जेनरल के तीन बेटी, ओकन्हीं के हियाँ से पत्र प्राप्त कइलकइ, आउ लगऽ हइ, हमन्हीं के पक्ष में उनका साथ बात कइलकइ । लेकिन ऊ की कर सकऽ हलथिन ? ऊ खाली मेजर के कहलथिन, कि ओकरा जरी आउ सवधानी बरते के चाही । दुपहर के तेसरा घंटा में (अर्थात् दू आउ तीन बजे के बीच), मतलब हम आउ हमर साथी, ई शहर पहुँचते गेलिअइ, आउ मार्गरक्षी लोग (convoys) हमन्हीं के सीधे हमन्हीं के बादशाह (अर्थात् मेजर) के पास ले गेते गेलइ । हमन्हीं बइठका में ओकर इंतजार कइलिअइ । एहे दौरान जेल के सर्जेंट के बोलावल जा चुकले हल । जइसीं ऊ अइलइ, मेजर भी बहरसी अइलइ । ओकर किरमिजी (purple), कटहा भरल (मुँहासेदार) आउ गुस्सैल चेहरा हमन्हीं के दिमाग पर अत्यंत विषादमय छाप छोड़लकइ - मानूँ जाल में फँस गेल बेचारी मक्खी पर मकड़ा टूट पड़लइ ।

"तोर नाम की हउ ?" ऊ हमर साथी के पुछलकइ । ऊ तेजी से, तीक्ष्ण रूप से, रुक-रुकके बोलऽ हलइ, आउ स्पष्टतः, हमन्हीं पर अपन प्रभाव डाले लगी चाहऽ हलइ ।
"फलना-फलना ।"
"आउ तोर ?" ऊ बात जारी रखलकइ, हमरा दने मुड़के आउ अपन चश्मा से हमरा दने तकते ।
"फलना-फलना ।"
"सर्जेंट ! अभी तुरते ओकन्हीं के जेल में; कोर-द-गार्द (गार्ड-हाउस) में असैनिक ढंग के हजामत, बिन कोय देरी के, आधा सिर में; बेड़ी बिहाने फेर से बदलाय के चाही । ई कइसन ओवरकोट हइ ? काहाँ से ओकन्हीं के मिललइ ?" अचानक ऊ पुछलकइ, हमन्हीं के, पीठ पर पीयर वृत्त के साथ धूसर कोट पर ध्यान गड़इते, जे हमन्हीं के तोबोल्स्क में देल गेले हल, आउ जेकरा में हमन्हीं ओकर शांत मुखाकृति के सामने उपस्थित होलिए हल ।
"ई नयका वरदी हइ ! ई, शायद, कइसनो नयका वरदी ... अभियो प्लान कइल जा रहले ह ... पितिरबुर्ग से ...", ऊ बोललइ, हमन्हीं के (देहिया के) बारी-बारी से घुमइते 
"ओकन्हीं साथ कुच्छो नयँ हइ ?" ऊ अचानक हमन्हीं के सशस्त्र मार्गरक्षी (convoy gendarme) के पुछलकइ ।
"ओकन्हीं के अप्पन पोशाक हइ, महोदय", सशस्त्र सैनिक (gendarme) उत्तर देलकइ, कइसूँ पल भर में ध्यानिष्ठ खड़ी होके, कुछ चौंकके भी । ओकरा सब कोय जानऽ हलइ, सब कोय ओकरा बारे सुनलके हल, सब कोय ओकरा से डरऽ हलइ ।
"सब ओकन्हीं हीं से उतारके ले जो । ओकन्हीं के खाली एक्के कपड़ा रहे दे, आउ ओहो अगर उज्जर होवइ, लेकिन अगर रंगीन रहइ, त उतार ले । बाकी सब कुछ नीलामी में बेच देल जाय । प्राप्त पइसा के सामान्य आमदनी के रूप में नोट कर लेल जाय । कैदी के व्यक्तिगत कोय संपत्ति नयँ होवऽ हइ", ऊ बात जारी रखलकइ, हमन्हीं तरफ सख्ती से देखते । "देखते जो, अपन चाल-चलन ठीक रखिहँऽ ! ताकि हमरा तोहन्हीं के बारे कोय शिकायत नयँ सुन्ने लगी मिल्ले ! नयँ तो ... शारी-रिक दं-ड ! जरिक्को सनी गलती लगी - चा-चा-चा-बु-क ! ..."

ई समुच्चे शाम, हम, अभ्यस्त नयँ रहे के कारण अइसन स्वागत से लगभग बेमार रहलूँ । लेकिन, दिमाग पर के छाप ई बात से प्रबल हो गेलइ, जे कुछ हम जेल में देखलिअइ; लेकिन हम अपन जेल में प्रवेश के बारे पहिलहीं बता चुकलिए ह । हम अभिए उल्लेख कइलिअइ, कि हमन्हीं लगी (प्राधिकारी) कोय रियायत नयँ बरतऽ हलइ आउ न अइसन करे के साहस करऽ हलइ, काम के मामले में दोसर कैदी लोग के सामने कइसनो काम के भार हलका नयँ करऽ हलइ । लेकिन एक तुरी तइयो करे के कोशिश कइल गेलइ - हम आउ बे-की पूरे तीन महिन्ना तक लिपिक (क्लर्क) के रूप में काम करे लगी इंजीनियरी कार्यालय गेलिअइ । लेकिन ई गुप्त रूप से कइल गेलइ, आउ अइसन इंजीनियरी प्राधिकारी द्वारा कइल गेलइ । मतलब, दोसर सब कोय, शायद, जेकरा जरूरत हलइ, जानऽ हलइ, लेकिन अइसन देखावा करऽ हलइ, कि नयँ जानऽ हइ । ई कमांडर गे-कोव के अधीन होलइ । लेफ्टेनेंट कर्नल गे-कोव हमन्हीं पर जइसे असमान से टूट पड़लइ, हमन्हीं साथ बहुत कम समय बितइलकइ - अगर हम गलत नयँ हिअइ, त छो महिन्ना से जादे नयँ, हियाँ तक कि ओकरा से कमहीं - आउ रूस चल गेलइ, सब्भे कैदी पर असाधारण छाप छोड़के । अइसन बात नयँ हलइ, कि कैदी लोग ओकरा खाली पसीन करऽ हलइ, बल्कि ओकर पूजा करऽ हलइ, अगर खाली अइसन शब्द के प्रयोग कइल जा सकऽ हइ । कइसे ऊ अइसन कइलकइ, मालूम नयँ, लेकिन ऊ शुरुए से ओकन्हीं के मन पर काबू पा लेलके हल । "पिता, पिता ! पिता के आवश्यकता नयँ हइ ! (अर्थात् ऊ एगो सगा पिता से बढ़के हका !)", कैदी लोग हर बखत बोलऽ हलइ, जब तक ऊ इंजीनियरी विभाग के व्यवस्था देखलकइ । शायद ऊ भयंकर पियक्कड़ हलइ । छोटगर कद के, डीड़, स्वयं-आश्वस्त दृष्टि के साथ । लेकिन एकर साथ-साथ ऊ कैदी लोग के साथ प्यार से पेश आवऽ हलइ, लगभग कोमलता के हद तक, वास्तव में अक्षरशः एगो पिता नियन ओकन्हीं के प्यार करऽ हलइ । काहे ऊ कैदी लोग के एतना प्यार करऽ हलइ - हम बता नयँ सकऽ हिअइ, लेकिन ऊ कैदी के अइसे नयँ देख सकऽ हलइ, कि ओकरा स्नेह भरल, प्रमुदित शब्द नयँ बोलइ, ओकरा साथ हँस नयँ सकइ, ओकरा साथ मजाक नयँ करइ, आउ मुख्य बात - एकरा में कइसनो लेशमात्र भी आदेशात्मक नयँ हलइ, कुच्छो असमानता, चाहे शुद्ध आदेशात्मक प्यार नयँ दर्शावऽ हलइ । ई हलइ अप्पन साथी (कामरेड), उच्चतम श्रेणी के अप्पन व्यक्ति । लेकिन, ओकर ई सब नैसर्गिक लोकतंत्रवाद (democratism) के बावजूद, कैदी लोग एक्को तुरी ओकरा सामने कइसनो प्रकार के बेइज्जती, बदतमीजी के हरक्कत नयँ कइलकइ । एकर विपरीत, कैदी के पूरा चेहरा खिल उठऽ हलइ, जब ओकरा कमांडर से भेंट होवऽ हलइ, आउ टोपी उतारके, ऊ मुसकइते देखते रहऽ हलइ, जब ऊ ओकरा भिर आवऽ हलइ । आउ अगर ऊ बोले लगइ - त लगइ जइसे रूबल भेंट कर रहले ह । अइसन लोकप्रिय लोग होवऽ हइ । ऊ देखे में नवयुवक हलइ, एकदम सीधे आउ शानदार ढंग से चल्लऽ हलइ । "उकाब (eagle) !" ओकरा बारे कैदी लोग बोलइ । ऊ ओकन्हीं लगी, वस्तुतः, कुच्छो हलका नयँ कर सकऽ हलइ; ऊ खाली इंजीनियरी काम के प्रभारी हलइ, जे सब्भे दोसर कमांडर के अधीन भी अपन हमेशे के, एक तुरी स्थापित कानूनी तौर पर चल्लऽ हलइ । खाली ऊ कुछ करइ, त संयोगवश पार्टी से काम के बखत भेंट होला पर, ई देखके, कि काम खतम हो चुकले ह, बेफुसटंग के फालतू समय तक रोकके नयँ रक्खइ आउ ढोल बज्जे के पहिलहीं छोड़ देइ । कैदी पर ओकर विश्वास, छोटगर-मोटगर अत्यौपचारिकता आउ चिड़चिड़ापन के अभाव, कार्यालयीन संबंध में अन्य अपमानकारी व्यवहार के बिलकुल अभाव, (कैदी लोग द्वारा) पसीन कइल जा हलइ । अगर कहीं ओकर हजार रूबल खो जइते हल - त हम सोचऽ हिअइ, हमन्हीं के बीच सबसे पहिला (बड़गर) चोर के अगर ऊ मिल जइते हल, त ऊ ओकरा वापिस कर देते हल । हाँ, हमरा पक्का विश्वास हइ, कि अइसीं होते हल । कइसन गंभीर सहानुभूति के साथ कैदी लोग के मालूम पड़लइ, कि ओकन्हीं के उकाब-कमांडर अपन जिनगी के दाँव पर लगाके हमन्हीं के घृणास्पद मेजर के साथ लड़ले हल । ई घटना ओकर आगमन के पहिलौके महिन्ना में होलइ । हमन्हीं के मेजर कभी तो ओकरा साथ सरकारी सेवा में सहकर्मी रहले हल । ओकन्हीं लम्मा वियोग के बाद मिलले हल आउ साथे-साथ रंगरेली मनावे लगलइ । लेकिन अचानक ओकन्हीं बीच संबंध टूट गेलइ । ओकन्हीं झगड़ा कइलकइ, आउ गे-कोव ओकर जानी दुश्मन हो गेलइ । एहो सुनाय दे हलइ, कि ओकन्हीं ई घटना पर भी लड़लइ, जे हमन्हीं के मेजर के साथ हो सकऽ हलइ - ऊ अकसर लड़ऽ हलइ । जब कैदी लोग ई बात सुनलकइ, त ओकन्हीं के खुशी के ठेकाना नयँ रहलइ। "अठअँक्खा के अइसन अदमी से पटतइ ! ऊ उकाब हइ, आउ हमन्हीं के ...", आउ हियाँ परी अइसन शब्द जोड़ल जा हलइ, जे प्रकाशित करे के लायक नयँ हइ । हमन्हीं के भयंकर रूप से ई जाने के उत्सुकता रहऽ हलइ, कि ओकन्हीं में से केऽ केकरा पिटलकइ । अगर ओकन्हीं के लड़ाय के अफवाह झूठ निकसऽ हलइ (जे, शायद, सही हलइ), त लगऽ हइ, हमन्हीं के कैदी लोग बहुत दुखी हो जइते हल । "नयँ, कमांडर पक्का जीतले होत", ओकन्हीं बोलइ, "ऊ छोटगर हइ, लेकिन निडर हइ, आउ ऊ, सुन्नल जा हइ, कि ओकर डर से बिछौना के निच्चे दबक गेलइ।" लेकिन जल्दीए गे-कोव छोड़के चल गेलइ, आउ कैदी लोग फेर से खिन्न हो गेलइ । इंजीनियर कमांडर हमन्हीं हीं, सच में, सब्भे निम्मन हलइ - हमर समय में तीन या चार लोग बदली होके अइते गेलइ; "लेकिन कभियो हमन्हीं के ओकरा नियन मिल्ले वला नयँ", कैदी लोग बोलइ, "उकाब हलइ, उकाब आउ संरक्षक (patron) ।" ई गे-कोव हमन्हीं सब्भे उच्चकुलीन लोग के मानऽ हलइ, आउ अंतिम दौर में हमरा आउ बे-की के कभी-कभी दफ्तर आवे लगी कहऽ हलइ । ओकर प्रस्थान के बाद ई एगो नियमित तौर पर स्थापित हो गेलइ । इंजीनियर लोग में से अइसन लोग हलइ (ओकन्हीं में से विशेष करके एगो), जे हमन्हीं के साथ बहुत सहानुभूति रक्खऽ हलइ । हमन्हीं आवऽ-जा हलिअइ, कागज के नकल करऽ हलिअइ, हमन्हीं के लिखावट भी सुधरे लगलइ, जब अचानक उच्च अधिकारी से औडर अइलिअइ कि हमन्हीं के पहिलौका काम पर अविलंब भेज देल जाय के चाही - कोय तो रिपोर्ट (चुगली) करे में सफल हो गेले हल ! लेकिन, ई निमने हलइ - हमन्हीं दुन्नु दफ्तर से बहुत बोर हो गेलिए हल । ओकर बाद हम आउ बे-की लगभग दू साल तक जौरे एक्के तरह के काम लगी गेलिअइ, सबसे जादे अकसर कारखाना में । हमन्हीं साथ-साथ गप मारऽ हलिअइ; अपन आशा, विचारधारा के बारे चर्चा करऽ हलिअइ । ऊ एगो निम्मन अदमी हलइ; लेकिन ओकर विचारधारा कभी-कभी बहुत विचित्र, अपवादात्मक होवऽ हलइ । अकसर कुछ वर्ग के बहुत बुद्धिमान लोग में कभी-कभी बिलकुल विरोधाभासी विचारधारा स्थापित हो जा हइ । लेकिन एकरा लगी ओकन्हीं एतना कुछ कष्ट झेललके ह, एतना बड़गो कीमत चुकइलके ह, कि ओकरा से खुद के अलग करना बहुत दर्दनाक हो जइतइ, लगभग असंभव । बे-की हरेक आपत्ति (एतराज) के कष्ट के साथ सुन्नऽ हलइ आउ कटुता के साथ हमरा उत्तर दे हलइ । लेकिन, कइएक बात में, शायद, ऊ हमरा अपेक्षा जादहीं सही हलइ, हमरा मालूम नयँ; लेकिन हमन्हीं आखिरकार अलगे हो गेते गेलिअइ, आउ ई हमरा लगी बहुत कष्टदायी हलइ - हमन्हीं बहुत कुछ साथ-साथ साझा करऽ हलिअइ ।

एहे दौरान साल-साल कइसूँ एम-की के उदासी आउ विषाद बढ़ते गेलइ । अवसाद (depression) ओकरा पर हावी होवे लगलइ। पहिले, हमर जेल के शुरुआती दौर में, ऊ अधिक अभिव्यक्तिशील (communicative) हलइ, ओकर आत्मा अकसर आउ जादे फूटके बाहर आवऽ हलइ । जब हम जेल अइलिअइ, तब तक ओकरा जेल में रहते तेसरा साल हो चुकले हल । शुरू-शुरू में ई बात में ओकरा बहुत रुचि रहऽ हलइ, जे कुछ दुनियाँ में होले हल आउ जेकरा बारे जेल में बइठल ओकरा कोय बोध नयँ हलइ; हमरा से पूछताछ करऽ हलइ, सुन्नऽ हलइ, अपन भावना प्रकट करऽ हलइ । लेकिन अंतिम तरफ, समय के साथ, ई सब कुछ कइसूँ ओकर अंदर में, दिल में, संकेंद्रित होवे लगलइ । कोयला राख से ढँकाय लगलइ । ओकरा में क्रोध डेउढ़ बढ़ते गेलइ । "Je hais ces brigands" [ज ए से ब्रिगाँ (फ्रेंच) - हमरा ई डाकू सब से नफरत हइ] - ऊ हमरा अकसर दोहरइते रहइ, कैदी लोग तरफ नफरत से देखते, जेकन्हीं के हम आउ अधिक नगीच से जान गेलिए हल, आउ ओकन्हीं के पक्ष में प्रस्तुत कइल हमर तर्क ओकरा पर कोय असर नयँ डललकइ । ओकरा हमर कहल बात कुछ नयँ समझ में आवइ; कभी-कभी, लेकिन, अन्यमनस्कता से सहमत हो जाय; लेकिन दोसरे दिन ऊ फेर से दोहरावइ - "ज ए से ब्रिगाँ"। संयोगवश - हमन्हीं आपस में अकसर फ्रेंच में बात करते जा हलिअइ, आउ ओहे चलते काम पर के एगो सुपरवाइजर, इंजीनियरी सैनिक द्रानिश्निकोव, कोय अनजान आधार पर, हमन्हीं के "डाक्टर" उपनाम से पुकारऽ हलइ । एम-की अनुप्राणित (animated) हो उठऽ हलइ, खाली जब ओकरा अपन माय के आद आ जा हलइ । "ऊ बूढ़ी हइ, ऊ बेमार हइ", ऊ हमरा से बोलऽ हलइ, "ऊ हमरा दुनियाँ में हमरा सबसे जादे मानऽ हइ, आउ हियाँ हमरा मालूम नयँ, कि ऊ जिंदा भी हइ कि नयँ । ओकरा लगी एतना काफी हलइ, जब ऊ जनलकइ, कि हमरा व्यूह से होके दौड़ावल गेलइ (made to run the gauntlet) ..." एम-की उच्चकुलीन नयँ हलइ आउ निर्वासन के पहिले ओकरा शारीरिक दंड मिलले हल । एकरा बारे आद करके, ऊ अपन दाँत पीसके बगल में देखे के कोशिश कइलकइ । हाल में ऊ जादे से जादे अकसर अकेल्ले घुम्मे लगलइ । एक तुरी सुबहे, एगारह आउ बारह बजे के बीच, कमाण्डेंट के हियाँ से बोलावा अइलइ । कमाण्डेंट  बहरसी  निकसके प्रसन्न मुसकाहट के साथ ओकरा दने अइलइ ।

"अच्छऽ, एम-की, तूँ आझ सपना में की देखलहीं ?" ऊ ओकरा पुछलकइ ।
"हम तो चौंक गेलिअइ", हमन्हीं भिर वापिस अइला पर एम-की बतइलकइ । "हमरा तो लगलइ जइसे हमर दिल में छूरा भोंक देल गेलइ ।"
"देखलिअइ, कि माय के हियाँ से चिट्ठी मिललइ", ऊ उत्तर देलकइ ।
"बेहतर, बेहतर !" कमाण्डेंट प्रत्युत्तर देलकइ । "तूँ अजाद हकँऽ ! तोर माय निवेदन कइलथुन हल ... निवेदन पर सुनवाई कइल गेलो ह । अइकी उनकर चिट्ठी हकउ, आउ अइकी तोरा बारे औडर हउ । तुरतम्मे जेल से तोरा मुक्ति मिल जइतउ ।"

ऊ हमन्हीं भिर पीयर चेहरा के साथ वापिस अइलइ, समाचार से अभियो ऊ पूरा होश (सामान्य स्थिति) में  नयँ आ पइले हल । हमन्हीं ओकरा बधाई देते गेलिअइ । ऊ अपन काँपते, ठंढाल हाथ से हमन्हीं के हाथ दबइलकइ । कइएक कैदी भी ओकरा बधाई देलकइ आउ ओकर सौभाग्य पर प्रसन्न होलइ । ऊ आवासन पर मुक्त होलइ आउ हमन्हिंएँ के शहर में रह गेलइ । जल्दीए ओकरा नौकरी मिल गेलइ । शुरू-शुरू में ऊ अकसर हमन्हीं के जेल में आवऽ हलइ, आउ जब कभी संभव होवऽ हलइ, हमन्हीं के तरह-तरह के समाचार दे हलइ । मुख्यतः ओकरा राजनैतिक समाचार बहुत पसीन पड़ऽ हलइ । बाकी के चार लोग में से, मतलब सिवाय एम-की, ते-की, बे-की आउ झे-की के, दूगो अभियो बहुत नौजवान हलइ, छोटगर अवधि पर भेजल, बहुत कम शिक्षित, लेकिन ईमानदार, सीधगर, साफ दिल के । तेसरा, आ-चुकोव्स्की, बहुत सीधा-सादा हलइ आउ ओकरा में कोय खास बात नयँ हलइ, लेकिन चौठा, वइसगर हो चुकल, बे-की, हमन्हीं सब पर एगो खराब छाप छोड़ऽ हलइ । मालूम नयँ, अइसन अपराधी वर्ग में ऊ कइसे फँस गेलइ, आउ खुद्दे ऊ ई बात के इनकार करऽ हलइ । ई एगो रूक्ष, क्षुद्र मध्यवर्गीय आत्मा हलइ, एगो दोकनदार के आदत आउ सिद्धांत वला, जे कोपेक-कोपेक के ठगी करके धनगर बन गेले हल । ऊ बिलकुल अनपढ़ हलइ आउ ओकरा कुच्छो में रुचि नयँ हलइ, सिवाय अपन धंधा के । ऊ घर के पेंटर हलइ, लेकिन निम्मन पेंटर हलइ, उत्तम दर्जा के पेंटर । जल्दीए प्राधिकारी के ओकर क्षमता के बारे पता चल गेलइ, आउ समुच्चा शहर देवाल आउ (अंदर वला) छत (ceilings) के पेंट करावे लगी ओकर माँग करे लगलइ । दू साल में ऊ लगभग सब्भे सरकारी क्वाटर पेंट कर देलकइ । क्वाटर के मालिक लोग व्यक्तिगत रूप से ओकरा भुगतान कइलकइ, आउ ओकर जिनगी से गरीबी दूर हो गेलइ । लेकिन सबसे निम्मन बात ई होलइ, कि ओकर दोसर साथी सब के ओकरा साथ काम पर भेजल जाय लगलइ । ओकरा साथ हमेशे जाय वला तीन गो में से दूगो ओकर पेशा सीख लेलकइ, आउ ओकन्हीं में से एगो, ते-झेव्स्की, ओकरा से खराब पेंट नयँ करऽ हलइ । हमन्हीं के मेजर, जेहो सरकारी क्वाटर में रहऽ हलइ, अपन बारी में बे-की के बोला भेजवइलकइ आउ अपन क्वाटर के सब्भे देवाल आउ छत के पेंट करे के औडर देलकइ । हियाँ बे-की अपन काम उत्तम ढंग से करे के बहुत प्रयास कइलकइ - गवर्नर-जेनरल के हियाँ भी ओतना निम्मन से पेंट नयँ कइल गेले हल । घर लकड़ी के बन्नल हलइ, एकतल्ला, काफी जीर्ण-शीर्ण आउ बहरसी से अत्यंत पपड़ीदार हलइ - अंदर से राजमहल नियन पेंट कइल गेले हल, आउ मेजर हर्षावेश में हलइ ... ऊ अपन हाथ रगड़लकइ आउ बोललइ, कि ऊ अब पक्का शादी करतइ । "अइसन क्वाटर के रहते, बिन शादी कइले नयँ रहल जा सकऽ हइ", ऊ गंभीरतापूर्वक कहलकइ । बे-की के साथ ऊ अधिकाधिक खुश हो रहले हल, आउ ओकरा चलते बाकी लोग के साथ भी, जे ओकरा साथ-साथ काम करऽ हलइ । काम पूरे महिन्ने चललइ । ई महिन्ना में मेजर हमन्हीं के सब लोग के बारे अपन विचार बिलकुल बदल लेलकइ आउ ओकन्हीं के संरक्षण देवे लगलइ । बात हियाँ तक पहुँच गेलइ, कि एक तुरी अचानक जेल से झे-की के ऊ अपना भिर बोला पठइलकइ ।

"झे-की !" ऊ कहलकइ, "हम तोर अपमान कइलियो हल । हम तोरा बेकार में चाबुक लगवइलियो हल, हम ई जानऽ हिअउ । हमरा एकरा लगी पछतावा हउ । ई बात समझ में आवऽ हउ ? हम, हम, हम - पछताऽ हिअउ !"
झे-की जवाब देलकइ, कि ऊ ई बात के समझऽ हइ ।
"तूँ समझऽ हीं, कि हम, हम, तोर चीफ, तोरा बोलइलिअउ ई लगी, कि तोरा से माफी माँगिअउ ! की ई बात के तूँ अनुभव करऽ हीं ? केऽ हीं तूँ हमरा सामने ? एगो कीड़ा ! कीड़ा से भी कम - तूँ एगो कैदी हकहीं ! आउ हम - भगमान के किरपा से * मेजर । मेजर ! समझऽ हीं तूँ ई ?" [* अइसन शाब्दिक अभिव्यक्ति के, हमर समय में खाली हमन्हीं के मेजर ही नयँ, बल्कि कइएक छोटगर कमांडर प्रयोग करऽ हलइ, खास करके जे छोटका रैंक (पद) से प्रोन्नत होल रहऽ हलइ । (मूल रूसी लेखक दस्तयेव्स्की के टिप्पणी)]
झे-की जवाब देलकइ, कि ऊ एहो बात के समझऽ हइ ।
"अच्छऽ, त हम तोरा साथ शांति समझौता करऽ हिअउ । लेकिन तूँ अनुभव करऽ हीं, ई पूरे तरह से अनुभव करऽ हीं, पूरे सम्पूर्णता में ? की तोरा ई समझे आउ अनुभव करे के क्षमता हउ ? बस कल्पना करहीं - हम, हम, मेजर ...", इत्यादि ।
झे-की खुद हमरा ई सब दृश्य के वर्णन कइलकइ । मतलब, ई पियक्कड़, झगड़ालू आउ बेढंगा व्यक्ति में मानवीय भावना भी हलइ । ओकर धारणा आउ विकास पर विचार कइला से अइसन व्यवहार के लगभग विशालहृदयता मानल जा सकऽ हलइ । लेकिन, ओकर पीयल दशा के, शायद, एकरा में बहुत कुछ योगदान हलइ । ओकर सपना साकार नयँ होलइ - ऊ शादी नयँ कर पइलकइ, हलाँकि ऊ बिलकुल मन बना चुकले हल, कि क्वाटर के सजावट के काम खतम हो गेला पर ऊ करतइ । शादी के बदले ऊ मोकदमा के फेर में फँस गेलइ, आउ ओकरा इस्तीफा देवे के औडर मिल गेलइ । हियाँ परी ओकरा सब पुरनका पाप लपेट लेलकइ । पहिले ई शहर में, जइसन कि हमरा आद पड़ऽ हइ, ऊ मेयर हलइ ... ई प्रहार ओकरा पर अचानक पड़लइ । ई समाचार से जेल में बड़गो खुशी के लहर दौड़ गेलइ । ई (कैदी लोग खातिर) एगो छुट्टी के दिन नियन हलइ, विजय के महोत्सव ! लोग के कहना हइ, कि मेजर एगो बूढ़ी नियन बिलख-बिलखके कन्ने, आउ लोर ढरकावे लगलइ । लेकिन कुछ नयँ कइल जा सकऽ हलइ । ऊ सेवा-निवृत्त (रिटायर) होलइ, धूसर रंग के (घोड़ा के) जोड़ा बेच देलकइ, बाद में अपन पूरा संपत्ति आउ गरीबी में पड़ गेलइ । बाद में हमन्हीं के ऊ जीर्ण-शीर्ण सिविल फ्रॉक-कोट आउ कलगी (cockade) सहित छज्जेदार टोपी में देखाय दे हलइ । ऊ नफरत के साथ कैदी लोग के देखऽ हलइ । लेकिन ओकर सब आकर्षण चल गेलइ, जखने ऊ अपन वरदी उतरलकइ । वरदी में ऊ आतंक हलइ, भगमान हलइ । फ्रॉक-कोट में ऊ अचानक बिलकुल कुछ नयँ रहलइ आउ एगो नौकर नियन लगऽ हलइ । अचरज के बात हइ, कि अइसन लोग के वरदी केतना कुछ बना दे हइ ।


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Monday, May 23, 2016

मगही दूरा-दलान - फरवरी 2016 में प्रकाशित लेख



मगही
[21] दूरा-दलान
सुमंत (मगही लेखक)
देश में स्मार्ट सिटी बनावे के जब बात चलल हल तऽ हमनी मगहिया भाई-बहिन के मन में अइसन लगल कि इ बेर अप्पन गयाजी के बेड़ा पार हो जाएत । बिहार में स्मार्ट सिटी जउन एगो से दूगो शहर बनत, तऽ उ दूगो में अप्पन राज्य के राजधानी पटना के बाद अप्पन गयाजी के नाम जरूर से रहत, जेकरा ब्रह्मा जी भी नऽ काट सकलन हे । बाकि अइसन होएल कहां ? मन के सोंचल सपना बालू के भीत्ती लेखा भरभरा के रह गेल । बिहार से स्मार्ट सिटी बनें खातीर दूगो शहर के नाम गेल-उ हल भागलपुर आउ बिहारशरीफ । एतनो पर मन के संतोख होएल कि चलऽ गयाजी न सही कम से कम एगो मगहिया शहर बिहारशरीफ तो स्मार्ट सिटी बनत ? अब जब स्मार्ट सिटी बनावे के सुरसार शुरू भेल तऽ हाय राम! बिहार, उत्तरप्रदेश आउ पं० बंगाल के एक्को शहर के स्मार्ट सिटी में नामें नऽ हे । मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली सहीत दोसर कम बेसी सभे राज्य के शहर स्मार्ट सिटी बनत, अप्पन बिहार कहूं एहू में नऽ पछूआ जाए । अब केन्द्र सरकार के मन में का हे, इ बात कहल बड़ मोस्किल हे । हम तो बिना पार्टी पालटिक्स वाला साहित्य के अदमी हिअ । इ लेल अप्पन बात साहित्य के चहारदिवारी से बाहरे निकल के कहे में डर लगऽ हे । हिन्दी साहित्य के इतिहास में रीतिकाल के नामी-गिरामी कवि बिहारीलाल हलन, जउन बिहारी सतसई में कुलम सात सौ दोहा लिखके हिन्दी साहित्य के बड़कन कवियन में अप्पन गिनती करवैलन । उ राजदरबारी कवि हलन आउ कहल जाहे कि उनकर एक दोहा पर राजा खुश होके सातगो अशरफी दान देवऽ हलन । बिहारीलाल के लिखल एगो दोहा हम अपने सभे के बीच रखल चाहऽ ही-अपने अंग के जानिकै, जोवन-नृपति प्रवीन । स्तन, मन, नैन, नितंब कौ, बड़ इजाफा कीन ॥ मदकल छंद में लिखल इ सिंगार के रचना हे, जेकरा में कवि कहऽ हथन कि यौवन के राजा अप्पन अंग जान के नायिका के स्तन, मन, नैन आउ नितंब में बेसी इजाफा करलन, दोसर अंग के नऽ, काहे से कि देह के दोसर अंग से यौवन नृप के का लेना देना । स्मार्ट सिटी बनावे में भी यौवन राजा नियन केन्द्र सरकार भी भेदभाव कर रहल हे, तऽ इमें बेसी हरज के बात नऽ हे । अब वसंत के ऐला पर सरसो फूलाएत नऽ, आम बउराएत नऽ, बूट-मटर-खेंसाड़ी गदराएत नऽ, गेहूंम खेत में झूमत नऽ, हावा इतराएत नऽ, तऽ इ तो परकीरति के विरूध हो जाएत । इ लेल हम अप्पन मन के इहे बात समझावऽ ही-रह रे जीउ खईंहे घीउ, बाकि समय पर । आज न कल स्मार्ट सिटी अप्पन प्रदेश के भी शहर बनत । अइसे इ बात पर हमरा गुमान हे कि नेम धरम के हिसाब से अप्पन गयाजी देश के दोसर शहर से बेसी स्मार्ट हे, जहां कमोबेस सालोभर देश-दुनिया से घुमताहर आवऽ हथन आउ कपार टेक के सुख-शान्ति के मन में कामना कर हथन । हम्मर गयाजी स्मार्ट सिटी बनें नऽ बनें । अपने कभीओ इहां आथिन, दावा करऽ ही अपने के मन के उ संतोख भेंटाएत, जउन दोसर स्मार्ट सिटी घुमला से नऽ भेंटाएत । निहोरा हे-एक बेर गयाजी आवे के..... ।
प्रकाशित प्रभात खबर-02-02-2016

मगही
[22] दूरा-दलान
सुमंत (मगही लेखक)
आखिर अप्पन समय पर रितुअन के राजा वसंत आ हीं गेलन । मारे डेरा के जाड़ा-पाला अप्पन बोरिया-बिस्तरा समेट लेल । बाग-बगइचा, खेत-बधार जन्ने नजर घुमा के देखऽ वसंत के नजारा साफ लौक जाएत । मोंजर से लदल आम के बगइचा होवे कि पीअर फूल से भरल सरसों के खेत, बूट-मटर-खेंसाड़ी-तीसी के खेत में फूलाएल रगन-विरगन के फूल इया हावा के झोंका के साथे झुमइत अरहर आउ गेहूंम के खेत सभे वसंत के रंग में रंगा गेलन हे । न बेसी जाड़ा आउ न बेसी गरमी के इ वासंती मौसम में अदमी-जन के साथे गोरू-जनावर, चिड़ईं-चुरगुन भी खुशमिजाज हो गेलन हे । अप्पन देश भारत के दुनिया भर के दोसर देश से एगो अलगे पहचान हे । इ पहचान रंग-रूप, पेन्हावा-ओढ़ावा, खान-पीअन, रहन-सहन से लेके आउ कैकन रूप में भेंटा हे । इहे में एगो रूप हे-अप्पन देश परब-त्योहार के देश हे, जहां हर मौसम में मनावे जाएवाला अलगे-अलगे परब-त्योहार हे । वसंत में भी इहां केतने परब मनावल जाहे । बाकि एकर शुरूआत होवऽ हे वसंती पंचमी माने सरस्वती पूजा से । माता सरस्वती विद्या के देवी हथन, जिनकर पूजा खास करके पढ़ाई-लिखाई करेवालन लइका-लइकी धूमधाम से करऽ हथन । कमोबेस सभे शिक्षण संस्थान में सरसवती पूजा मनावल जाहे । एकर अलावे एन्ने कुछ बच्छर से गांव-शहर के हर गल्ली-मुहल्ला में सरस्वती पूजा मनावे के प्रचलन हो गेलक हे । पूजा के नाम पर महीना दिन पहिले से चंदा वसुली के धंधा में न पढ़े-लिखे वाला लइकन लग जा हलन आउ टोला-मोहल्ला के अलावे गाड़ी-छक्कड़ा वालन के चंदा वसुली के नाम पर नाक में दम करके रखले रहऽ हलन । महंगाई के दुहाई देके पांच-दस न सौ-पच्चास तक के रसीद थम्हा दे हलन । न देला पर लाठी-डंटा लेके तैयार । केतने गाड़ी के शीशा फूटऽ हल, तऽ केतने ड्राइवर-खलासी बेमतलब के लाठी-डंटा खा हलन । आउ पूजा के दिन से लेके मूर्ति डूबावे तक खाली काने बहिर नऽ करले रहऽ हलन, परिवार के साथे बाहरे निकलना दूभर कर दे हलन । पूजा विद्या के देवी माता सरस्वती के आउ गाना अइसन जेकरा सुन के मारे शरम के मुड़ी नीचे झुक जा हल । मूर्ति डूबावे के नाम पर डीजे बजा के, भांग-धथूरा खाके, अबीर-गुलाल उड़ावइत एकदम से बिगड़ल लइकन सभे बउराएल कुछो करे पर उतारू हो जा हलन । इ बेर इ बात के मन में खुशी हे कि सरस्वती पूजा से पहिले प्रशासन के तरफ से नकेल कसल जा रहल हे । सरस्वती पूजा मनावे लेल प्रशासन के सहमति जरूरी हे । अइसन न करेवालन पर प्रशासन कारवाई लेल कमर कसले हे । कुछ लोग प्रशासन के इ काड़ा रूख से भीतरे-भीतरे कुंभला रहलन हे, बाकि बेसी करके आदमी-जन के मन में इ बात के खुशी हे कि इ बेर सरस्वती पूजा के नाम पर अश्लीलता न परोसल जाएत । लोग भक्तिभाव से सरस्वती जी के पूजा करतन आउ आम के मोंजर, गुड़, अरवा चाउर से बनल असली प्रसादी ग्रहण करतन । झूठ के देखावा से नेजात भेंटाएत । वसंत पंचमी में सरस्वती पूजा सभे कोई भक्तिभाव से मानाथिन आउ मन के अज्ञानता के दूर करेके वरदान मईया से मांगथिन । वसंत पंचमी में रंग-गुलाल उड़ावऽ, बाकि प्रेम आउ सौहाद्र के......अभी एतने बात ।
प्रकाशित, प्रभात खबर-09 फरवरी 16

मगही
[23] दूरा-दलान
सुमंत (मगही लेखक)
प्यार आउ मनुहार के मौसम बसंत के आगमन का भेल सभे कुछ अपने आप बदल गेल । नरम सूरूज गरम हो गेलन, जेकरा से जाड़ा डेराएल अप्पन राह धर लेलक । खेत-बधार में लहलहाइत रबी फसल गेहूँम, जौ, बूट, मटर, सरसो, तीसी, अरहर फरे-फूलाय लगल । आम के बगइचा एकदम से बउराएल महमहाय लगल ।हावा तक बदल गेल । विद्या के देवी माता सरस्वती के परब बसंत पंचमी निके सुखे पार लग गेल । बसंत पंचमी में बैर भाव भूला के का लइका, का बूढ़ आउ का जवान मरद-मेहरारू सभे एक दोसरा के अबीर-गुलाल लगा के एक दोसरा लगे प्यार के इजहार कैलन । इ सिलसिला वैलेंटाइन डे नियल सप्ताह भर नऽ चलत । पूरा माघ, भर फागुन आउ पूरा चैत महीना मस्ती में बीतत । गीत-गौनई, खान-पीअन, आचार-व्यवहार सभे में प्यार के झलक भेंटाएत । प्यार आउ मनुहार के मौसम जउन बसंत पंचमी से शुरू होएल, फागुन में एकदम से जवान हो जाएत, मौका अइसनो आवत, जब भर फागुन बुढवा देवर लागे के गीत गुंजत आउ इ मदमातल चइत महीना तक टनाएत । पच्छिम से आएल परब वैलेंनटाइन डे जउन एकदम से बजारू हे-सप्तार भर में दम तोड़ देवऽ हे । तइयो ढेर शहरी युवा इ परब के पाछे पगलाएल रहऽ हथ । देख-सुन के मन में हंसी आवऽ हे । वैलेंटाइन बाबा के गढल इ प्यार के परब बजारू कइसे हे, एकरा बिना माथा के अदमी भी समझ सकऽ हथन । प्यार के इ परब सप्ताह भर रोजे अप्पन रंग बदलऽ हे । पहिला दिन रोज डे, दोसरा दिन प्रपोज डे, फिन हग डे, चाकलेट डे, टेडिवियार डे, प्रॉमिस डे आउ फिन वैलेंटाइन डे । अब इ सातो दिन में दू-तीन दिन छोड़ के बाकि  के दिन प्यार के नऽ बजार के दिन हे, जेकरा में बिना पोकिट ढिला करले प्यार के इजहार करले नऽ जा सकऽ हे । वैलेंटाइन डे आवे से पहिले बजार सज-धज के तैयार रहऽ हे, तइयो ओतना कहां जेतना बसंत आवे पर प्रकृति सज-धज के तैयार रहऽ हे । अब वैलेंटाइन सप्ताह में इ महंगी के जमाना में गुलाब, चाकलेट, टेडिवियर, वैलेंटाइन डे कार्ड खरीदे में प्रेमी जोड़ी के पसेना छूट जाहे । बजार के खरीदल समान ले-दे के प्यार के गाड़ी केतना दूर खिंचायत इ बात अपने समझे के हे, समझावे के नऽ हे । तइयो युवा सभे के इ बात उनकर भेजा में कउन भरे कि प्यार खरीद-बिक्री करे के चीज नऽ हे । इ प्रकृति के अनमोल उपहार हे । अब उ प्यार चाहे माय-बाबूजी के होवे, चाहे भाई-बहिन के, चाहे पत्नी-पति के, चाहे प्रेमी-प्रेमिका के । प्यार तो पवित्र बंधन के नाम हे, जेकार खरीद-बिक्री बजारू समान ले दे के नऽ करल जा सकऽ हे । बसंत में कोई बनावटीपन नऽ हे । बसंत के आहट पाते प्रकृति अप्पन मादक रंग-रूप बदल लेवऽ हे आउ प्यार के गगरी छलके लगऽ हे । बसंत अभी चढ़ल हे, जेकर असर प्रकृति के कण-कण में होवे लगल हे । बोलता से लेके अनबोलता तक बसंत के वासंती रंग में रंगाएल हथ । रूख-बिरिच्छ पर पुरान पत्ता के जगह कोमल नया पत्ता उग रहलक हे, चिड़ई-चुरगुन मस्ती के गीत गावे में मसगुल हथ, खेत-बधार में लगल फसिल पर जवानी अंगड़ाई ले रहलक हे, अइसन में अदमी, अदमी के बीच प्यार के बीआ नऽ बुनाय, भला इ कइसे हो सकऽ हे । प्यार आउ मनुहार के मौसम बसंत में गिला-शिकवा, बैर-भाव भूला के आवऽ एक-दोसरा से प्यार करऽ । जइसे-जइसे बसंत आगे बढ़त प्यार आउ गहराएत, मन में इहे आशा आउ विश्वास के साथे युवा सभे से हाथ जोड़ के निहोरा एतने कर रहली हे कि बसंत हेऽ प्यार आउ मनुहार के असली मौसम, वैलेंटाइन एकर आगू बजारू आउ झूठ के देखावा हे । चलते-चलते कबीर बाबा के कहल बात-घर की वस्तु धरी नहीं सूझै, बाहर खोजन जासि । पानी बीच मीन प्यासी, मोहि सुनि-सुनि आवत हांसी ।
प्रकाशित, प्रभात खबर-16 फरवरी 2016  

मगही
[24] दूरा-दलान
सुमंत (मगही लेखक)
हम खाली अपना हिआं के बात नऽ कर रहली हे, समूले दुनिया में बेमौसम बदलाव हो रहल हे, जे सभे लेल खतरा के घंटी हेऽ । समय रहते एकरा पर समूले दुनिया के एकजूट होवे के जरूरत हे । इ बेमौसम के बदलाव आवेवाला दिन में समूले धरती के लील सकऽ हे । कहूं बाढ, तऽ कहूं सूखाड़ । कहूं बरफबारी तऽ कहूं देह जरावे वाला गरमी, आज आम हो गेलक हे । अप्पन देश के मौसम, दोसर देश के मौसम से अलगे शुरूमे से रहल हे । अपना हिआं जाड़ा-गरमी-बरसात तीनों फेर फार आवइत रहऽ हे । अभी जउन मौसम हिआं चल रहल हे, इ जाड़ा आउ गरमी के बीच वाला हे, जेकरा में न बेसी ठंढा आउ न बेसी गरमी के एहसास होवऽ हे । एकरा रितुअन के राजा बसंत भी कहल गेल हे । बाकि मौसम में बदलाव के असर बसंत पर भी पड़ल हे । दिन में रउदा उगला पर पसेना छोड़ावे वाला गरमी आउ रात के कम्बल-नेहाली ओढ़े वाला जाड़ा, इ निमन नऽ हे । इ भी बेमौसम बदलाव के असर हे । समूले दुनिया के इ बात के चिन्ता तो हेऽ, बाकि एकरा लेल कोई ठोस उपाय नऽ करल जा रहल हे, उल्टे परकीरति के दिन-रात दोहन हो रहल हे । परकीरति के देल अनमोल उपहार के तहस-नहस करल जा रहल हे । अप्पन स्वार्थ में जंगल-पहाड़ काटल जा रहल हे, नदी के बालू राते-दिने ढोवा रहल हे, पेड़-पौधा कटा रहल हे, अपना के ताकतवर देखावे लेल परमाणु परीक्षण करल जा रहल हे, गाड़ी-छक्कड़ा आठो पहर जहर उगिल रहल हे, धरती के माट्टी में रासायनिक खाद आउ कीटनाशी दवाई देके ओकर ताकत छिनल जा रहल हे, जंगली जीव-जन्तु के बेबजह मारल जा रहल हे आउ का-का । एकरे असर हेऽ कि मौसम दगा दे रहल हे । अदमी इ बात के जान भी रहलन हे, तइयो अप्पन स्वार्थ में इ सब काम कर रहलन हे । नियम-कानून बनऽ हे, बाकि ओकर पालन सख्ती से हो कहां पावऽ हे ? जेकर भोगना आज सभे भोग रहलन हे । एगो बानगी दे रहली हे । अब रोड-पुल-मकान बनावे लेल पहाड़ न टूटत तऽ गट्टी-छर्री आवत कहां से ? बिना बालू के काम चलत कइसे ? बात सही हे, बाकि दोसरा दन्ने इहो बात सोंचे के जरूरत हे कि पहाड़ के काट-काट के खतम करला के बाद पहाड़ बनत कइसे, नदी के बालू ढो-ढो के खत्म कर देला पर नदी में बालू आवत कहां से ? एकर जबाब केकरो भीर नऽ हे । फिन परकीरति कोई नऽ कोई उपाय तो करवे करत । बेमौसम बदलाव ओकरे असर हे । आजकल दुनिया के सबला जब्बड़ देश अमेरिका बरफबारी से हरान-परेशान हे । सड़क-बिजुली-पानी सब पर आफत । नाक में दम करले हे-बरफबारी । जब जब्बड़ के इ हाल हेऽ तऽ अब्बर-दुब्बर के हाल का होएत, इ सोंच के देह के रोआं खाड़ हो जाहे । इ बच्छर निमन बरसात न होवे से दोसरा जगह के साथे-साथे समूले अप्पन मगहिया क्षेत्र में पीए के पानी पर आफत आ सकऽ हे, जेकरा लेल अभीए से उपाय-पतर न करल गेल तऽ मोसिबत खाड़ हो सकऽ हे । बेमौसम बदलाव खतरा के घंटी न बनें, एकरा लेल आवऽ सभे मिलजुल के सोंचऽ-विचारऽ आउ ठोस उपाय करऽ । अभी एतने!
प्रकाशित, प्रभात खबर-23 फरवरी 2016