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Thursday, May 19, 2016

मगही दूरा-दलान - दिसंबर 2015 में प्रकाशित लेख



मगही
[13] दूरा-दलान
सुमंत (मगही लेखक)
सच कहिओ तऽ ई घड़ी छोटका से लेके बड़का किसान सभे के उहे हालत होएल हे, जउन हालत बिहार विधानसभा चुनाव घड़ी छोटका से लेके बड़का नेता के होएल हल । गोड़ में एक्को पहर चैन नऽ । धनकटनी के साथे-साथे रब्बी के बुनाई भी सगरो चल रहल हे । मजूर के अइसन टाना-टानी चल रहलो ह कि का कहिओे । लोग कहऽ हथन कि देश के कउनो राज्य में चल जा, कोई अप्पन भेंटाथन कि नऽ बिहारी मजूर जरूर से जरूर भेंटा जैतन । सुन के माथा ठनकऽ हे-गोदी में लइका आउ नगर में ढिंढोरा । अप्पन राज्य बिहार जनसंख्या के हिसाब से देश में नम्बर तीन पर हे । आउ जनसंख्या के हिसाब से हिंआ मजूर के कउनो कमी नऽ होवे के चाहऽ हल, बाकि मजूर न मिले से खेती करेवालन के ई अगहन के कनकनी में भी पसेना छूट रहल हे । हालत तो ई होएल हे कि सांझ पहर किसान सभे के मजूर ही जाके आरजू-मिनती तक करे पड़ रहल हे । एतने नऽ मजबुरी में किसान लोग मजूर से डिहवार-गोरैया नियन तपौन ढारे के बात तक कह रहलन हे । इ बच्छर भर कोई तरह से तपौन ढार-ढूर के काम तो चल जाएत, बाकि आगे बच्छर से इ पर ब्रेक लग जाएत । काहे से कि अप्पन बिहार में 01 अप्रैल 2016 से शराबबंदी कानून लागू होवेवाला हे । जउन इ कानून लागू हो गेल तऽ आगे साल से तपौन भेंटात कहां से ? अब तपौनो गछला के बादो मजूर भोरे केकर खेत में जैतन इ बात के कउनो गारण्टी नऽ हे । बड़ी मोस्किल हो गेलक हे-खेती-बारी करना आउ कराना । गांव-देहात से हल-बैल तो जइसे उपह गेल, कमोबेसी सभे खेत ट्रैक्टर इया पावर टेलर से जोता रहल हे । धान रोपाई आउ धान कटाई के भी मशीन तो निकलल हे, बाकि खेत के जोत कम होवे से गांव तक एकर पहुंच नऽ हो रहलक हे, जेकरा चलते आझो धान रोपाई आउ धान कटाई घड़ी मजूर के जरूरत पड़ऽ हे । खास करके अगहन महीना में मजूर के टाना-टानी बेसी होवऽ हे । समय पर मजूर न मिलला से खेती के काम पछूआ जाहे, जेकरा चलते पूंजी-पगहा लगला के बादो पैदा कम होवऽ हे । कहउत हे-समय से पहिले चेत किसान । अब किसान के चेतला से का होवत, जब मजूरे के टाना-टानी हे तऽ किसान बेचारा करहीं का सकऽ हथन । दिन पर दिन मजूर के समस्या सूरसा के मुंह लेखा बढ़ल जा रहल हे । गांव के अगल-बगल ईंटा भट्ठा खुलला से किसान सभे के परेशानी आउरो बढ़ रहल हे । बेसी करके नौजवान मजूर खेती में काम न करके ईंटा भट्ठा पर कमाएल चाहऽ हथन, जहां नगद नारायण भेंटा हे । बिहार में निमन खेती लेल जरूरी हे कि बिहार से मजूर के पलायन रोकल जाए आउ नऽ तो मजूर बिना, पूंजी-पगहा के रहते केतने खेत परित रह जाएत । आउ खेत परित रहे के मतलब हे-पैदा में कमी । पैदा बेसी से बेसी होवे, एकरा लेल निमन बीज, निमन खाद, पटवन के निमन साधन के साथे सबला जरूरी हे-मजूर । मजूर के बिना खेती भला कइसे कैल जाएत । जइसे राजनीति बिना नेता के नऽ करल जा सकऽ हे, ओइसहीं खेती बिना मजूर के नऽ करल जा सकऽ हे । अभी एतने.... ।
प्रकाशित, प्रभात खबर-08-12-2015

मगही
[14] दूरा-दलान
सुमंत (मगही लेखक)
अब कहेवालन के तो मुंह न रोकल जा सकऽ हे कि तीनों मौसम जाड़ा-गरमी-बरसात में सबला निमन जाड़ा के मौसम होवऽ हे । ई मौसम में बर-बेमारी के बेसी डर न रहऽ हे । पेट से थोड़-बहुत बेसी भी खा लऽ, तब चलऽ हे । जाड़े में खरिहान आउ खेत दुनों गजगजा हे । खेत से धान कटा के खरिहाना में इया तो गंजा जा हे आउ न तो बोझा के छल्ली लग जा हे । खेत में रबी लहरा मारे लगऽ हे । चौमास खेत में बूट-मटर-मसूरी-अरहर के साथे सरसो अप्पन जवानी पर इतराय लगऽ हे आउ रगन-बिरगन के फूल लगला के बाद तो अइसन बुझा हे कि सचो में स्वर्ग धरती पर उतर गेलक हे । सरसो के पीअर-पीअर फूल मन के मोह लेवऽ हे । बुझा हे धरती मईया पीअर चुनरी ओढ लेलन । परेमी के मन सरसो के पीअर फूल देख के आग लेखा धधके लगऽ हे । फूलवारी फूल से लदा जा हे । माने जाड़ा के मौसम गरमी आउ बरसात के मौसम से लाख दरजा निमन होवऽ हे । जाड़ा के बड़गर रात । जिनकरा भीर गरम कम्बल-नेहाली रहऽ हे, लोंघड़ा-पोंघड़ा के भर दम सुतऽ हथ । दिन में कनकनी बेसी रहला पर कोर्ट-स्वेटर चढा के बहरा हथ । अमीर-गरीब के असली पहचान जाड़ा करा देवऽ हे । जिनकरा भीर जाड़ा से बचे के उपाय हे, उनकरा लेल जाड़ा के मौसम सबला बेस हे, इ बात हमहूं मानऽ ही । बाकि गरीब लेल जाड़ा के कनकनी सौतीन से कम नऽ होवऽ हे । गरीब मजूर-किसान के जाड़ा कइसे कटऽ हे-उ तो खाली उहे जानऽ हथ । काहे से कि जेकर गोड़ में फट्टे बेयार, उहे जाने दरद के हाल । अप्पन देश भारत आउ अप्पन राज्य बिहार आझो मजूर-किसान के हे । जाड़ा में गरीब मजूर-किसान के रात आउ दिन कइसे कटऽ हे, ऊपरेवाला जानथन । गरीब रात के पोरा में घुंसिया के कनकनी के मात देवऽ हथन, तऽ बूढा-बूढी बोरसी के आग सेंकइत कोई तरह से रात काटऽ हथन । सांझ-सबरे पोरा-पतई के लहरी लगा के जाड़ा से ठिठुरित देह के गरम करऽ हथ । गांव-देहात में आझो नन्हकन लइकन के फट्टल-पुरान कपड़ा के गाती बांध देवल जा हे, जेकरा से लइकन-बुतरू के ठंढा न लगे । माने भर जाड़ा गरीब के आत्मा तड़प के रह जा हे । गांव से बेसी शहर में रहेवालन गरीब के जाड़ा बेसी सतावऽ हे । जिकरा अप्पन छत न, उनकर जाड़ा भगवान भरोसे कटऽ हे । गांव में  जाड़ा रहे कि पाला, दिन रहे कि रात किसान-मजूर के खेती-बारी के काम देखहीं पड़ऽ हे । रात घड़ी खरिहान के अगोरी, गेहूंम के पटौनी घर में तो घुंस के नऽ करल जा सकऽ हे । एकरा लेल अब जाड़ा गिरे कि पाला घर से बहराय तो पड़बे करऽ हे । इनकर जाड़ा के रात कइसे कटऽ हे, एकर जिकीर मुंशी प्रेमचंद अप्पन हिन्दी कहानी पूस की रात में बड़ी निमन से करलन हे । सचो में करेजा काढेवाला कनकनी से लड़े के आमदा तो मजूर-किसान जरूर रखऽ हथ, बाकि उनकर दिल के दरद कोई कहां जान पावऽ हथन ? अइसन में चल-चलंती एक बेर फिन से कहम कि गरीब लेल जाड़ा के कनकनी सौतीन से कम नऽ होवऽ हे ।
प्रकाशित, प्रभात खबर-15-12-2015

मगही
[15] दूरा दलान
सुमंत (मगही लेखक)
हमरा इ बात कहे में कउनो हरज न बुझा रहल हे कि आज कोचिंग के लाइलाज बेमारी शहर से राह चलइत गांव तक पहुंच गेलक हे । केतने जगह पर तो हाल इ हो गेलक हे कि इस्कूल से बेसी लइकन कोचिंग में पढ़ाई कर रहलन हे । पहिले कोचिंग के बेमारी कॉलेजिया लइकन के धरलक, बाकि आज देखा-देखी में सभे के इ बेमारी धरले जा रहल हे । अब तो पहिला-दूसरा में पढेवाला लइकन के भी उनकर माय-बाप कोचिंग खेदे लगलन हे । आज के जुग-जमाना में पढ़ाई बड़ जरूरी हे, इ बात दुनिया-जहान मानऽ हे । बाकि एकर मतलब इ नऽ हे कि पढ़ाई लेल कोचिंग बड़ जरूरी हे । बिना कोचिंग के लइकन पढ़ाई नऽ कर सकऽ हथन, इ बात नऽ हे । बाकि देखा-देखी के बेमारी अइसन हे कि एकरा बिना रहलो कहां जा हे ? इ कनकनी में भी भोरे-भोरे नन्हका से लेके बड़कन लइका-लइकी कोचिंग करइत, आवइत-जाइत भेंटा जा हथ । शहर तो शहर दूर-दराज के गांव में भी इ नजारा देखे ला मिलऽ हे । कोचिंग में लइकन तरा-ऊपरी । ढेर कोचिंग में तो मास्टरजी माइक से पढावऽ हथन । अब कोचिंग में पढेवाला लइका के समझ में आवे तो समझ में नऽ आवे तो उनकर माय-बाप के पइसा तो ढिला करहीं पड़ऽ हे । बहुत पहिले सिविल सेवा, लोक सेवा, मेडिकल, इन्जिनियरिंग के तइयारी लेल बड़े-बड़े शहर में अंगुरी पर गिनल-गोथल कोचिंग संस्थान होवऽ हल, जहां सबके जाना बस के बात नऽ हल । अब तो हालत इ हो गेलक हे कि कउन चीज लेल कोचिंग कहां नऽ खुलल हे ? खाली पास में पइसा रहे के चाही । हम कउनो कोचिंग के नाम लेके केकरो से दर-दुश्मनी मोल न लेवल चाहऽ ही, बाकी एगो बात जरूर कहल चाहऽ ही । मैट्रिक परीक्षा पास करइते जिनकरा भीर पइसा हे, उनकर गार्जियन से लेके लइका-लइकी के कोटा के बेमारी सतावे लगऽ हे । ढेर तो बिना कॉलेज के पढ़ाई करले राजस्थान के कोटा जाके इन्जिनियरिंग आउ मेडिकल के तैयारी लेल कमर कस के भीड़ जा हथन । ओकर परिणाम अइसनो होवऽ हे कि कोचिंग के पढ़ाई से प्रतियोगिता परीक्षा में तो लइका सफल हो जाहे, बाकि इन्टर के परीक्षा में लटक जाहे । इ हम कउनो मनगढ़ंत बात न कर रहली हे, केतने के साथे अइसन घटना घट चुकल हे । अब तो कोचिंग के बेमारी कपार से लेके गोड़ तक धर लेलक हे । इ जंजाल से निकल पाना मोस्किल लगऽ हे । कोचिंग के इ बेमारी से इस्कूल-कॉलेज के पढ़ाई दिन पर दिन चौपट हो रहल हे । जउन इस्कूल-कॉलेज में लइकने नऽ रहतन तऽ मास्टरजी बेंच-कुरसी के तो नऽ पढौतन । अब कोचिंग जरूरी हे कि नऽ, हम इ बहस में नऽ पड़ के एतने बात कहल चाहऽ ही कि कोचिंग के पढ़ाई से बेसी जरूरी हे इस्कूल के पढ़ाई । चलते-चलते गार्जियन सभे से हम्मर एतने निहोरा हे कि तू पहले अप्पन बेटा-बेटी के इस्कूल-कॉलेज भेजऽ, ओकर बादे जरूरत मोताबिक कोचिंग धरावऽ । हम्मर इ बात निमन लगे तब मानऽ आउ नऽ तऽ जउन मन करे उहे करऽ । हमरा तरफ से कउनो जोर-जुलूम के बात नऽ हे । अभी एतने.... 
प्रकाशित, प्रभात खबर-22-12-2015

मगही
[16] दूरा-दलान
सुमंत (मगही लेखक)
लइकाई में जउन खेल लइकन पहिले खेलऽ हलन, अब कहां ? अब तो सभे कुछ एतने नऽ तेजी से बदल रहल हे कि कुछ थाहे-पता नऽ चलऽ हे । खान-पान, रहन-सहन, पेन्हावा-ओढ़ावा के साथे-साथे खेल भी बदल गेल । अब तो अलहेला से अलहेला लइकन मोबाइल के गेम खेले लगऽ हे । डेगा-डेगी देवे लगल तऽ हाथ में ढांय-ढूसूम करेवाला बंदूक चाही, घर से बहराय लगल तऽ बैट-बॉल...... । पहिले इ सब हल कहां ? हमरा निमन से इयाद हे कि लइकाई में दोसर खेल के साथे घुघुआ माना के खेल खेलऽ हली । दादा-दादी, नाना-नानी, माय-बाबूजी के गोड़ पर चढ़ के इ खेला खेलल जा हल आउ एगो मगहिया गीत गावल जा हल । उ गीत हमरा पूरा-पूरी इयाद तो नऽ हे, बाकि जेतना इयाद हे, ओतना इ कि घुघुआ माना, उपजे धाना...... नया भीती उठऽ हे, पुराना भीती गिरऽ हे । उ घड़ी बात भेजा में नऽ घुंसऽ हल कि इ नया भीती उठऽ हे, पुराना भीती गिरऽ हे-के माने मतलब आखिर का होवऽ हे ? अभीओ कन्फूजन हे । बाकी पुरान साल 2015 अब जाएवाला हे आउ नया साल 2016 एकदम से दुहारी पर खाड़ हे । इ पुराना के जाना आउ नया के आना प्रकृति के नियम हे । जउन जलम ले हथ, उ अजर-अमर नऽ हो जा हथन, मरना जरूरी हे । जइसे दिन-तारीख-साल बदलऽ हे, जइसे देह के पुरान कपड़ा बदलऽ हे, जइसे दिन आउ दुनिया बदलऽ हे-कहूं नया भीती उठऽ हे, पुरान भीती गिरऽ हे के माने मतलब इहे तो नऽ हे । जेतना हमरा बुझा हे, लगऽ तो इहे हे । अपने के दिल के बात हम का जानी बाकि अपन्नहीं सभे के भी इहे लगऽ होएत । अब साल 2015 हमन्नहीं सभे से विदा हो रहल हे, तऽ एकरा लेल बेसी उदास होवे के कउनो बात नऽ हे । काहे से कि एक दन्ने जउन 2015 विदा हो रहल हे, तऽ दोसरा दन्ने नया साल 2016 आ भी तो रहल हे । हमनी के चाही कि पुरान साल 2015 के निके-सुखे विदाई देई, ओहईं नया साल 2016 के स्वागत में कउनो कोर-कसर नऽ छोड़ी । साल 2015 में जउन काम पूरा नऽ हो सकल, ओकरा पूरा करे लेल कम्मर कस के लग जाई । नया साल में कुछ न कुछ नया सोंची । खाली अपना ला नऽ घर-परिवार, देश आउ दुनिया ला । समय हे, जउन रूके के कभीओ नाम नऽ लेवऽ हे । चलते चलल जा हे । हमनी के भी समय के साथे चले के आदत डाले के चाही, तब्बे विकास के चक्का घुमत आउ नऽ तऽ हाथ पर हाथ धरला से काम नऽ चलत । नया साल 2016 आवत आउ 365 दिन बाद इहो पुरान साल बनके चल जाएत । आवऽ हमनी सभे कोई मिलजुल के नया साल के स्वागत करि । स्वागत अइसन कि जेकरा से दोसर कोई के कोई तरह के तकलिफ नऽ होवे । मुरगा-मोसल्लम खा पीके कानफाड़ू आवाज में डीजे बजैला से निमन हे, पहली जनवरी के घर में चद्दर टान के सुतल रहिहऽ । नया साल में दुनिया भर के लोग सुख आउ शान्ति से रहथन, इ बात के कामना मिलजुल के करि जा । अपने सभे मगहिया भाई-बहिन के हमरा तरफ से नया साल 2016 के ओड़िया-खंचिया से बधाई !
प्रकाशित, प्रभात खबर-29-12-2015 

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