विजेट आपके ब्लॉग पर

Saturday, July 16, 2016

रूसी उपन्यास "आझकल के हीरो" ; भाग-1 ; बेला - अध्याय-8



भाग-1
1. बेला - अध्याय-8

"सब कुछ बेहतर लगी हइ !" आग बिजुन बइठके हम कहलिअइ, "अब अपने हमरा बेला के बारे अपन कहानी पूरा कहथिन; हमरा अकीन हइ, कि कहानी हिएँ खतम नयँ होलइ ।"
"लेकिन अपने के एतना अकीन कइसे हइ ?" स्टाफ-कप्तान हमरा जवाब देलथिन, आँख मारते धूर्त मुसकान के साथ ।
"ई कारण से, कि सामान्य रूप से ई तरह घटना के अंत नयँ होवऽ हइ - जे असाधारण ढंग से शुरू होलइ, ऊ ओहे ढंग से समाप्त भी होवे के चाही ।"
"वास्तव में अपने अंदाज लगा लेलथिन ..."
"हमरा ई बात के खुशी हइ ।"
"अपने लगी खुश होना तो ठीक हइ, लेकिन सच में हमरा ई बात के आद आवे से तकलीफ होवऽ हइ । निम्मन हलइ ई लड़की बेला ! हमरा आखिरकार ओकरा से अइसन लगाव हो गेलइ, जइसे ऊ हम्मर बेटी होवे, आउ ऊ हमरा मानऽ हलइ ।"

हमरा अपने के बतावे के चाही, कि हमरा कोय परिवार नयँ - बारह साल से हमरा माता-पिता के कोय समाचार नयँ, आउ शादी करे के विचार हमरा पहिले आल नयँ - अभी तो, अपने समझवे करऽ हथिन, शादी करना शोभा नयँ देतइ; आउ हमरा तो खुशी हलइ, कि कोय तो दुलार करे खातिर मिल्लल । ऊ हमन्हीं लगी गीत गावइ चाहे लेज़गिनका नृत्य करइ ... आउ कइसन नृत्य करऽ हलइ ! हम प्रांतीय रईसजादी सब के देखलिए ह, आउ एक तुरी तो, जी, हम मास्को में एगो अभिजात वर्ग के (noblemen’s) क्लब में गेलिए हल, कोय बीस साल पहिले - लेकिन ओकर तुलना में काहाँ ! बिलकुल नयँ ! ... ग्रिगोरी अलिक्सांद्रविच ओकरा गुड़िया नियन वस्त्र से सजावऽ हलइ, ओकर निम्मन से देख-भाल करऽ हलइ, दुलारऽ हलइ; आउ ऊ हमन्हीं हीं एतना सुधर गेलइ, कि चमत्कार लगइ; चेहरा आउ हाथ से धूप-ताम्रता (sunburn, tan) गायब हो गेलइ, गाल पर लाली छा गेलइ ...केतना खुश रहऽ हलइ, आउ हमेशे ऊ शरारती लड़की हमर मजाक उड़इते रहऽ हलइ ... भगमान ओकरा माफ करे ! ...

"आउ की होलइ, जब अपने ओकरा बाप के मौत के बारे सूचित कइलथिन ?"
"हमन्हीं लम्मा समय तक ई बात के ओकरा से छिपइलिअइ, जब तक कि ऊ अपन परिस्थिति के अभ्यस्त नयँ हो गेलइ; आउ जब बतइलिअइ, त ऊ दू दिन तक विलाप कइलकइ, लेकिन फेर भूल गेलइ ।"

लगभग चार महिन्ना सब कुछ अइसन चललइ जेकरा से आउ कुछ बेहतर नयँ हो सकऽ हलइ । ग्रिगोरी अलिक्सांद्रविच, जइसन कि हम पहिलहीं उल्लेख कर चुकलिए ह, जोश-खरोश के साथ शिकार पर जाना पसीन करऽ हलइ - ओकरा कोय अज्ञात शक्ति जंगल में सूअर चाहे बकरा के तरफ घींचके ले जाय - आउ हियाँ मोसकिल से किला के परकोटा के बाहर जा हलइ । लेकिन, अइकी, हम देखऽ हिअइ, कि ऊ फेर से चिंतित रहे लगलइ, अपन हाथ के पीछू तरफ मोड़ले कमरा में शतपथ (चहलकदमी) करते रहइ; फेर एक तुरी, केकरो बिन कुछ बतइले, बन्हूक लेके निशानेबाजी लगी रवाना हो गेलइ - आउ पूरे सुबह गायब रहलइ; अइसन एक तुरी आउ दोसरा तुरी होलइ, फेर अकसर आउ अकसर होवे लगलइ ... "ई तो निम्मन बात नयँ हइ", हम सोचलिअइ, "पक्का ओकन्हीं बीच से कार बिलाय गुजर के गेलइ !" (अर्थात् दुन्नु के बीच कुछ तो गड़बड़ हो गेलइ ।)
एक दिन सुबह में हम ओकन्हीं हीं भेंट दे हिअइ - जइसे अभी हमर आँख के सामने हो रहल ह - बेला कार रेशमी बिश्मेत (beshmet) में बिछौना पर बैठल हलइ, चेहरा पीयर, अइसन उदास, कि हम डर गेलिअइ ।
"आउ पिचोरिन काहाँ हइ ?" हम पुछलिअइ ।
"शिकार पर ।"
"आझ गेलइ ?"
ऊ चुप रहलइ, मानूँ ओकरा कुछ बताना मोसकिल हो रहले हल ।
"नयँ, कल्हिंएँ", मोसकिल से उच्छ्वास लेके आखिरकार ऊ बोललइ ।
"ओकरा साथ कहीं कुछ होलइ तो नयँ ?"
"हम कल्हे समुच्चे दिन सोचते रहलिअइ", आँख में भरल लोर के साथ, "कइएक तरह के विपत्ति के कल्पना कइलिअइ - कभी हमरा लगइ, कि उनका जंगली सूअर घायल कर देलके होत, त कभी लगइ कि चेचेन (चेचन्या वासी) उठाके पहाड़ पर लेके गेलइ ... आउ अभी हमरा लगऽ हइ, कि ऊ हमरा अब प्यार नयँ करऽ हका ।"
"सच, प्यारी, तूँ आउ कुछ बत्तर नयँ सोच सकलँऽ होत !"

ऊ रो पड़लइ, फेर गौरव के साथ सिर उपरे कइलकइ, आँसू पोंछलकइ आउ बात जारी रखलकइ –
"अगर ऊ हमरा प्यार नयँ करऽ हका, त उनका हमरा घर भेजवावे से केऽ रोकऽ हइ ? हम उनका पर कोय दबाव नयँ दे रहलिए ह । अगर अइसीं चलते रहलइ, त हम खुद चल जइबइ - हम उनकर गुलाम नयँ हिअइ - हम एगो राजा के बेटी हिअइ ! ..."
हम ओकरा सांत्वना देवे लगलिअइ ।
"सुन बेला, वस्तुतः तोर साया (पेटीकोट) में सीयल जइसन ओकरा हमेशे तोरा साथ बइठल रहना असंभव हउ - ऊ नौजवान अदमी हइ, आउ जंगली जानवर के पीछू पड़ना ओकरा निम्मन लगऽ हइ - जइतइ, आउ अइवो करतइ; आउ अगर तूँ दुखी होमहीं, त जल्दीए ओकरा उबाऽ देमहीं ।"
"सच हइ, सच हइ !" ऊ उत्तर देलकइ, "हम प्रसन्न रहबइ ।"
आउ हँसते-हँसते ऊ तंबूर पकड़ल लेलकइ, गावे लगलइ, हमरा भिर नच्चे आउ उछले-कुद्दे लगलइ; खाली ई जारी नयँ रहलइ; ऊ फेर बिछौना पर पड़ गेलइ आउ हाथ से अपन चेहरा छिपा लेलकइ ।

हम ओकरा साथ की कर सकऽ हलिअइ ? हमरा तो, जानवे करऽ हथिन, कभियो औरत सब से कुछ लेना-देना नयँ हलइ - सोचलिअइ, सोचलिअइ, कइसे ओकरा शांत करिअइ, लेकिन कुछ नयँ सुझलइ; कुछ समय हमन्हीं दुन्नु चुप रहलिअइ ... सबसे अप्रिय परिस्थिति हलइ, जी !

आखिरकार हम ओकरा कहलिअइ - "अगर चाहीं, त परकोटा पर टहले लगी चलल जाय ? मौसम सुहाना हइ !" ई घटना सितंबर के हलइ; आउ दिन वास्तव में बहुत विलक्षण हलइ, रौदा हलइ लेकिन झरक बिलकुल नयँ; सब्भे पर्वत देखाय दे हलइ, मानूँ सामने कश्तरी पर रक्खल होवे । हमन्हीं बहरसी अइलिअइ, किला के परकोटा पर आगू-पीछू चहलकदमी करे लगलिअइ, चुपचाप; आखिरकार ऊ तृणभूमि (turf) पर बैठ गेलइ, आउ हम ओकर बगली में बैठ गेलिअइ । सचमुच, ऊ सब आद करना हास्यजनक हइ, हम ओकर पीछू-पीछू दौड़ऽ हलिअइ, बिलकुल कोय धाय (दाई) नियन ।

हमन्हीं के किला उँचगर जगह पर हलइ, आउ परकोटा पर से दृश्य (view) शानदार हलइ; एक दने चौड़गर मैदान हलइ, कुछ दर्रा से ऊबड़-खाबड़, आउ जंगल से एकर अंत होवऽ हलइ, जे पर्वतमाला तक फैलल हलइ; कहीं-कहीं ई मैदान में आउल सब धुआँऽ रहले हल, घोड़वन के झुंड एन्ने-ओन्ने घुम रहले हल; दोसरा दने - एगो छोटगर नद्दी बह रहले हल, आउ ओकरा से सट्टल हलइ घनगर झाड़ी, जे ढँकले हलइ पथरीला टीला सबके, जे काकेशिया के मुख्य पर्वत शृंखला के जोड़ऽ हलइ । हमन्हीं किला के किनारा पर बैठल हलिअइ, ओहे से दुन्नु दने सब कुछ देख सकऽ हलिअइ । अइकी देखऽ हिअइ - जंगल से कोय तो एगो धूसर घोड़ा पर निकसऽ हइ, लगातार नगीच आउ नगीच आब करऽ हइ, आउ आखिरकार, नद्दी के ऊ छोर पर रुक गेलइ, हमन्हीं से करीब सो साझिन (200 मीटर) के दूरी पर, आउ एगो पागल नियन अपन घोड़वा के नचावे लगलइ । कइसन विचित्र बात हइ ! ...
"देखहीं तो, बेला", हम कहलिअइ, "तोर तरुण आँख हउ, ई कइसन जिगित (Dzhigit) हइ - केक्कर मनोरंजन करे लगी ई अइले ह ? ..."
ऊ ध्यान से देखलकइ आउ अचरज से बोललइ - "ई तो काज़बिच हइ ! ..."
"अरे, ऊ डाकू ! हँस्से लगी अइले ह की हमन्हीं पर ?" ध्यान से देखऽ हिअइ, पक्का काज़बिचे हइ - ओकर सामर चेहरा, फट्टल-चिट्टल बस्तर, आउ हमेशे नियन गंदा ।
"ई तो हमर पिताजी के घोड़वा हइ", हमर हथवा पकड़के बेला कहलकइ; ऊ पत्ता नियन थरथरा रहले हल, आउ ओकर आँख चमक रहले हल । "अहा !", हम सोचलिअइ, "आउ तोरो नस में, प्यारी, डाकू के खून मौन नयँ हउ !"
"जरी एद्धिर तो आव", हम संतरी के कहलिअइ, "जरी राइफल के निशाना लगाव आउ हमरा लगी ऊ नौजवान के घोड़वा पर से निच्चे उतार दे - चानी के एगो रूबल मिलतउ ।"
"जी, महामहिम; खाली ऊ एक जगुन स्थिर नयँ रहऽ हइ ..."
"त ओकरा कहीं (कि ऊ स्थिर रहइ) !" हँसते हम कहलिअइ ...
"ए, प्यारे !" ओकरा दने हाथ लहरइते संतरी चिल्लइलइ, "जरी रुक, काहे लगी तूँ नट्टू (लट्टू) नियन नच रहलहीं हँ ?"

काज़बिच वास्तव में रुक गेलइ आउ ध्यान से सुन्ने लगलइ - शायद, सोचलकइ, कि ओकरा साथ वार्तालाप कइल जइतइ - बिलकुल नयँ ! ... हमर ग्रिनेडियर निशाना लगइलकइ ... धाँय ! ... निशाना चूक गेलइ - जइसीं बारूद नली में कौंधलइ, काज़बिच घोड़वा के एड़ लगइलकइ, जे उछलके एक दने हो गेलइ । ऊ रकाब पर खड़ी हो गेलइ, कुछ तो अपन भाषा में चिल्लइलइ, चाभुक से धमकी के संकेत कइलकइ - आउ गायब हो गेलइ ।
"तोरा लाज नयँ बरऽ हउ !" हम संतरी के कहलिअइ ।
"महामहिम ! ऊ मरे लगी गेलइ", ऊ जवाब देलकइ, "अइसन अभिशप्त लोग तुरते नयँ मरतइ ।"

करीब पनरह मिनट के बाद पिचोरिन शिकार से वापिस अइलइ; बेला ओकर गला से लिपट गेलइ, आउ एक्को शिकायत नयँ, लमगर अनुपस्थिति लगी कुच्छो बात नयँ सुनइलकइ ... हमहूँ ओकरा पर नराज हो गेलिअइ । "माफ करऽ", हम बोललिअइ, "अइकी अबकहीं हियाँ नदी के ऊ पार काज़बिच अइले हल, आउ हमन्हीं ओकरा पर फायर कइलिअइ; ओकरा तोरा साथ अचानक मिल जाय में समय लगतो की ? ई पहाड़ी लोग प्रतिशोधी (vindictive) होवऽ हइ – तूँ सोचऽ हो, कि ओकरा शक्का नयँ हइ, कि तूँ आंशिक रूप से अज़मात के सहायता कइलहो ? हम बाजी के साथ कह सकऽ हियो, कि आझ ऊ बेला के पछान लेलकइ । हम जानऽ हिअइ, कि एक साल पहिले ऊ बेला के पागलपन के हद तक पसीन कइलके हल - ऊ हमरा से खुद बोलले हल - आउ अगर ओकरा कालिम जुटावे के कइसूँ आशा रहते हल, त पक्का ऊ बेला के हाथ माँगते हल ..." हियाँ परी पिचोरिन विचारमग्न हो गेलइ । "हाँ", ऊ उत्तर देलकइ, "आउ जादे सवधान रहे के चाही ... बेला, आझे से तोरा परकोटा पर घुम्मे के नयँ चाही ।"

शाम के हम ओकरा साथ लमगर बातचीत कइलिअइ - हमरा खेद हलइ, कि ई बेचारी लड़की के प्रति ओकर व्यवहार बदल गेले हल; एकरा अलावे, ऊ आधा दिन शिकार पर बितावऽ हलइ, ओकर व्यवहार भावशून्य हो गेले हल, ऊ ओकरा विरले दुलारऽ हलइ, आउ स्पष्ट रूप से बेला दुबराय लगलइ, ओकर चेहरा तन गेलइ, बड़गर-बड़गर आँख के चमक धुँधला पड़ गेलइ । जब कभी पुछिअइ - "की बात पर तूँ उच्छ्वास ले हीं, बेला ? तूँ उदास हकँऽ ?" - "नयँ !" - "तोरा कुछ चाही ?" - "नयँ !" - "तोरा रिश्तेदार सब के आद आवऽ हउ ?" - "हमरा कोय रिश्तेदार नयँ हके ।" कभी-कभी तो दिन भर में, खाली "हाँ" आउ "नयँ" के सिवा, ओकरा हीं से आउ कुछ नयँ मिल्लइ । त अइकी एकरे बारे हम पिचोरिन से बात करे लगलिअइ ।


अनूदित साहित्य             सूची            पिछला                     अगला

No comments: