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Thursday, October 13, 2016

रूसी उपन्यास "आझकल के हीरो" ; भाग-2 ; 2. राजकुमारी मेरी - अध्याय-17



रूसी उपन्यास – “आझकल के हीरो”
भाग-2
2. राजकुमारी मेरी - अध्याय-17

15 जून

कल्हे हियाँ परी आप्फेलबाउम (Apfelbaum) जादूगर अइलइ । रेस्तोराँ के दरवाजा पर एगो लमगर पोस्टर हलइ, जेकरा में अत्यंत आदरणीय जनता के ई बात के सूचित कइल गेले हल कि उपर्युक्त आश्चर्यजनक जादूगर, कलाबाज (acrobat), रसायनज्ञ (chemist) आउ प्रकाशिकीविद् (optician) आझ के तारीख शाम में आठ बजे, उच्च वर्ग के क्लब (दोसर शब्द में, रेस्तोराँ) में शानदार तमाशा प्रस्तुत करे के किरपा करथिन । टिकट के कीमत अढ़ाय रूबल ।

सब लोग ई विचित्र जादूगर के देखे के तैयारी कर रहले ह । बड़की राजकुमारी लिगोव्स्काया भी, ई बात के बावजूद, कि उनकर बेटी बेमार हथिन, अपना लगी टिकट लेलथिन ।

आझ दुपहर के भोजन के बाद वेरा के खिड़की भिर से जा रहलिए हल । ऊ बालकोनी में अकेल्ले बैठल हलइ । हमर गोड़ भिर एगो चिट गिरलइ –
"आझ शाम के नो बजे के बाद बड़का (मुख्य) सीढ़ी से होके हमरा हीं आवऽ । हमर पति पितिगोर्स्क चल गेलथुन हँ आउ बिहाने सुबह में वापिस अइथुन । हमर नौकर-चाकर घर में नयँ रहतो - हम ओकन्हीं सब के टिकट वितरित कर देलिए ह, ओइसीं राजकुमारी के लोग के भी । हम तोर इंतजार करबो । पक्का अइहऽ ।"
"आहा", हम सोचलिअइ, "आखिरकार तो हमरे प्लान के मोताबिक होलइ ।"

आठ बजे हम जादूगर के देखे लगी रवाना होलिअइ । दर्शक लोग नो बजे के थोड़े पहिले जामा हो गेते गेलइ । तमाशा चालू होलइ । कुरसी के पीछू के कतार में हम वेरा आउ राजकुमारी के टहलुआ आउ नौकरानी सब के पछान लेलिअइ । बिन कोय अपवाद के सब कोय हियाँ परी हलइ । ग्रुशनित्स्की लॉर्नेत लेले पहिला कतार में बैठल हलइ । जादूगर हरेक तुरी ओकरे तरफ मुड़लइ, जब कभी ओकरा रूमाल, घड़ी, अँगूठी आदि के जरूरत पड़लइ ।

ग्रुशनित्स्की हमरा कुछ समय से अभिवादन नयँ करऽ हइ, आउ आझ दू तुरी हमरा दने काफी ढिठाई से देखलकइ । ई सब कुछ ओकरा आद अइतइ, जब हमन्हीं के सब कुछ के हिसाब चुकता करे के समय अइतइ ।
दस बज्जे जा रहले हल, जब हम उठलिअइ आउ बहरसी निकस गेलिअइ ।

प्रांगण में घुप्प अन्हेरा हलइ । आसपास के पर्वतीय शिखर पर भारी ठंढा बादर हलइ; खाली कभी-कभार शांत पड़ल हावा रेस्तोराँ के चारो दने के पोप्लर वृक्ष के फुलंगी पर शोर करऽ हलइ । खिड़कियन के पास लोग के भीड़ हलइ । हम पहाड़ पर से उतरलिअइ, आउ गेट दने मुड़के, हम अपन कदम तेज कर देलिअइ । अचानक हमरा महसूस होलइ, कि कोय तो हमर पीछू-पीछू आब करऽ हइ । हम रुक गेलिअइ आउ अपन चारो दने नजर दौड़इलिअइ । अन्हेरा में कुच्छो पछानना असंभव हलइ, तइयो हम सवधानी से घर के चारो तरफ, मानूँ टहल रहलिए ह, अइसन ढंग से एक चक्कर लगइलिअइ । छोटकी राजकुमारी के खिड़की भिर से गुजरते बखत हम फेर से अपन पीछू कदम के आहट सुनलिअइ, आउ एगो अदमी, ओवरकोट लपेटले, हमरा सामने से दौड़ते गुजर गेलइ । ई हमरा आतंकित कर देलक, तइयो हम दबे पाँव सायबान (porch) तक पहुँच गेलूँ आउ अन्हार सीढ़ी पर उपरे दौड़ते चल गेलूँ । दरवाजा खुल्लल; एगो छोटगर हाथ हमर हाथ के धर लेलक ...
"कोय तोरा देखलको तो नयँ ?" फुसफुसाहट में वेरा कहलक, हमरा दने लिपटते ।
"कोय नयँ !"
"अब तो तूँ विश्वास करभो, कि हम तोरा प्यार करऽ हियो ? ओह, बहुत समय तक हम दुविधा में रहलूँ, बहुत समय तक यातना सहलूँ ... लेकिन तूँ हमरा से ऊ सब कुछ करऽ हो, जे चाहऽ हो ।"
ओकर दिल बहुत जोर-जोर से धड़क रहले हल, हाथ बरफ नियन ठंढा हलइ । ईर्ष्या, शिकायत के झिड़की चालू हो गेलइ - ऊ हमरा से चाहऽ हलइ, कि हम ओकरा से सब मामले में गलती स्वीकार कर लिअइ, ई कहते, कि ऊ समर्पण के साथ हमर बेवफाई (विश्वासघात) के बरदास कर लेतइ, काहेकि ऊ खाली हमर खुशी चाहऽ हइ । हम एकरा में बिलकुल विश्वास नयँ कइलिअइ, लेकिन ओकरा हम कसम, वादा आदि से शांत कइलिअइ ।
"त तूँ मेरी से विवाह नयँ करे जा रहलहो ह ? उनका से प्रेम नयँ करऽ हो ? ... लेकिन ऊ सोचऽ हथिन ... जानऽ हो, ऊ तोरा से पागलपन के हद तक प्यार करऽ हथुन, बेचारी ! ..."

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लगभग दू बजे रात के हम खिड़की खोललिअइ, आउ दू शाल के बान्हके, खंभा के सहारा लेले, हम उपरौला बालकोनी से निचला में उतरलिअइ । छोटकी राजकुमारी के कमरा में अभियो रोशनी जल रहले हल । कुछ तो हमरा ई खिड़की दने ढकललकइ । परदा पूरा तरह से लगवल नयँ हलइ, आउ हम कमरा के अंदरूनी भाग में अपन उत्सुकता भरल दृष्टि डाल सकलिअइ । मेरी अपन बिछौना पर बैठल हलथिन, टेहुना पर हाथ आड़े-तिरछे कइले । उनकर घना केश, लेस के झालर लगल रात्रि टोपी (night-cap) के अंदर जामा हलइ । एगो बड़गो गहरा लाल ओढ़नी उनकर गोर कन्हा के ढँकले हलइ । उनकर छोटका गोड़ रंग-बिरंगा फारसी चप्पल में छिप्पल हलइ । ऊ अपन सिर निच्चे छाती पर झुकइले, बिन हिले-डुलले, बैठल हलथिन । उनकर सामने के एगो छोटगर टेबुल पर एगो खुल्लल किताब हलइ, लेकिन उनकर आँख, निर्निमेष (motionless) आउ अनिर्वचनीय (inexplicable) उदासी से भरल, लगऽ हलइ, सोम्मा तुरी ओहे एक्के पृष्ठ पर फिर रहले हल, जबकि उनकर विचार कहीं दूर पर हलइ ... एहे क्षण झाड़ी के पीछू कोय तो हलचल कइलकइ । हम बालकोनी से उछलके निच्चे घास के थिगली (turf) पर आ गेलिअइ । एगो अदृश्य हाथ हमर कन्हा पकड़ लेलकइ ।

"आहा !" एगो रूक्ष स्वर कहलकइ, "पकड़ा गेलँऽ ! ... हमरा हीं रात में राजकुमारी लोग के कमरा में जाय के सबक सिखइबउ ! ..."
"कसके ओकरा पकड़ !" एगो कोना से बहरसी उछलके आल दोसर कोय चिल्ललइ ।
ई हलइ ग्रुशनित्स्की आउ सेना के कप्तान ।
हम परवर्ती (latter) के सिर पर मुक्का से प्रहार कइलिअइ, ओकरा प्रहार से निच्चे गिरा देलिअइ आउ तेजी से झाड़ी में घुस गेलिअइ । हमन्हीं सब के घर के सामने के बाग के, जे ढलान पर हलइ, सब्भे रस्ता हमरा मालूम हलइ ।
"चोर ! गार्ड ! ..." ओकन्हीं चिल्लइलइ । बन्दूक के गोली के अवाज सुनाय देलकइ; एगो धुआँऽ रहल कारतूस लगभग हमर गोड़वा भिर गिरल ।

एक मिनट के बाद हम अपन कमरा में पहुँच गेलिअइ, आउ कपड़ा उतारके बिछौना पर पड़ गेलिअइ । मोसकिल से हमर नौकर दरवाजा में ताला लगइलकइ, कि ग्रुशनित्स्की आउ कप्तान दस्तक देवे लगलइ ।
"पिचोरिन ! अपने सुत्तल हथिन ? हिएँ हथिन ? ...", कप्तान चिल्लइलइ ।
"हम सुत्तल हिअइ", हम गोसाल उत्तर देलिअइ ।
"उठथिन ! चोर ... चेर्केस ..."
"हमरा सर्दी होल हकइ", हम उत्तर देलिअइ, "हमरा ठंढ लग जाय के डर हइ ।"
ओकन्हीं चल गेलइ । हम बेकारे में ओकन्हीं के जवाब देलिअइ - बाग में ओकन्हीं हमरा आउ एक घंटा खोजते रहते हल । ई दौरान भयंकर खलबली मच गेलइ । किला से धड़फड़ाल एगो कज़ाक अइलइ । सब कोय दौड़धूप कर रहले हल । सब्भे झाड़ी में चेर्केस लोग के खोजल गेलइ - आउ, जाहिर हइ, कुच्छो नयँ मिललइ । लेकिन कइएक लोग के, शायद, ई बात के पक्का विश्वास हलइ, कि अगर रक्षकदल आउ अधिक साहस आउ तत्परता देखइते हल, त लगभग दू दर्जन डाकू जगह पर पकड़ा जइते हल ।


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