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Friday, April 21, 2017

विश्वप्रसिद्ध रूसी नाटक "इंस्पेक्टर" ; अंक-2 ; दृश्य-3

दृश्य-3
(ख़्लिस्ताकोव अकेल्ले हइ ।)
ख़्लिस्ताकोव - (स्वगत) केतना कसके भूख लगल हके ! जरी सुनी चहलकदमी कइलूँ, सोचलूँ, भूख मर जात - लेकिन नयँ, शैतान पकड़े, भूख जइवे नयँ करऽ हके । हाँ, अगर हम पेन्ज़ा (मास्को से दक्खिन-पूरब सरातोव के रस्ता में एगो शहर) में मौज-मस्ती नयँ करतूँ हल, त घर पहुँचे तक लगी काफी पैसा रहत हल । ऊ पैदल सेना के कप्तान हमरा जबरदस्ती जकड़ लेलक - जानवर कहीं के, ताश के पत्ता विचित्र ढंग से बाँटऽ हइ । कुल कइसूँ पनरह मिनट बैठलिअइ - आउ ऊ हमर सब कुछ साफ कर देलक । लेकिन ई सब के बावजूद हमरा ओकरा साथ फेर एक तुरी खेले के मन करते हल । लेकिन हमरा मोक्के नयँ मिल्लल । ई कइसन घटिया शहर हइ ! पनसारी दोकान में कुच्छो उधार नयँ देल जा हइ । ई तो बस खराब बात हइ । (शुरू में "रोबेर्त" [9] से गुनगुना हइ, फेर "नयँ तूँ सी हमरा लगी, माय" [10], आउ आखिर में एकरा से अलगे कुछ आउ ।) कोय आवे लगी नयँ चाहऽ हइ ।

  
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