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Thursday, February 08, 2018

इवान मिनायेव के बिहार यात्राः 1.1 बिहारशरीफ में


बिहार में (मार्च 1875)

1.1      बिहारशरीफ में

[*187] फरवरी 1875 में नेपाल के यात्रा खातिर रवाना होते बखत हमरा बिहार अर्थात् प्राचीन मगध होके आवे के इच्छा होलइ । हमरा ई प्रान्त में रुचि हलइ, विशेष रूप से ई कारण से कि ई प्रान्त में प्राचीनता के विविधता हइ, आउ पवित्र स्थल के रूप में भी, जेकर अभी हिन्दू जन के जिनगी में कम महत्त्व नयँ हइ । हियाँ गया शहर हकइ, आउ श्रद्धालु हिन्दू के कहना हइ कि ऊ अदमी भाग्यशाली हइ जे गंगा में स्नान कइलकइ, प्रयाग (अर्थात् इलाहाबाद) में अपन केश मुंडन करवइलकइ, बनारस में मरलइ, आउ जेकरा लगी गया में श्राद्ध निष्पन्न होलइ। हरेक बरस, कउनो समय में हजारों तीर्थयात्री गया में अइते जा हका । सब्भे जात के, भारत के सब्भे हिस्सा से, राजा होवे चाहे रंक, हियाँ जुटते जा हका । प्रत्येक व्यक्ति के कर्तव्य हइ कि श्राद्ध करे, अर्थात्, ऊ पवित्र स्थल पर अपन पितर सब के आद करे, जाहाँ भगवान विष्णु के चरण-चिह्न हइ । एकर अलावे बिहार में बौद्ध धर्म स्थापित होले हल, ई कइएक शताब्दी तक फललइ-फुललइ, आउ हिएँ आझ तलुक पवित्र बोधिवृक्ष अस्तित्व में हइ, सब देश आउ सम्प्रदाय के बौद्ध लोग के तीर्थ स्थान हइ । अभियो तक ई वृक्ष के पूजा करे वलन में उत्तर में तिब्बत आउ नेपाल के, दक्षिण आउ दक्षिण-पूर्व में श्रीलंका, बर्मा आउ स्याम के बौद्ध लोग हका । [*188] लेकिन बिहार एगो पवित्र तीर्थस्थल खाली भारत से बाहर गेल बौद्ध लोग खातिर नयँ हइ; सब्भे सम्प्रदाय के खाली निष्ठावान हिन्दू लोग ही हियाँ तीर्थयात्रा पर नयँ अइते जा हका, बल्कि जैन लोग के भी मंदिर आउ तीर्थस्थल हकइ; मुसलमानो के हियाँ अपन पवित्र मकबरा हकइ । ई देश, जाहाँ बौद्ध लोग पृथ्वी के केन्द्र खोज रहला हल, सत्य के अधार पर चित्रमय स्थिति लगी प्रसिद्ध हइ, लेकिन एकर अलावे खेतिहर अबादी के गरीबी, आउ कुछ स्थान में जमीन के अनुर्वरता खातिर भी; कहीं-कहीं बिहार शहर के आसपास खाली एक्के फसल होवऽ हइ, आउ एक साल पहिले हियाँ के वासी सब के बड़गो भुखमरी के तकलीफ झेले पड़लइ ।
हम कलकत्ता से रेलगाड़ी से रवाना होलूँ आउ दोसरा दिन सुबह में बख्तियारपुर स्टेशन पहुँचलूँ, जाहाँ से हमर बिहार  के पर्यटन चालू होवे वला हल । ई प्रदेश के सुदूर दक्षिण तक जाय खातिर डब्बा से उतरके पालकी के इस्तेमाल करे के हल; बिहार (बिहारशरीफ) शहर जाय लगी आउ कोय दोसर उपाय नयँ हल । पूरे दिन हमन्हीं चलते रहलूँ ऊ सब इलाका से होके, जे चित्रण करे लायक से बहुत दूर हलइ, लगभग ओहे रस्ता से डेढ़ हजार साल पहिले चीनी तीर्थयात्री फ़ा-श्यान गेला हल; लेकिन मगध देश के अइसन खुला मैदान के संस्मरण उनकर कविसुलभ विवरण में कहीं नयँ मिल्लऽ हइ । बौद्ध-धर्म के पालना (हिंडोला), ई देश के पहिला छाप (impression) एकर काम के नयँ हलइ - गरमी, धूरी, सूर्य से दग्ध एकरूप मैदान, कहीं-कहीं दूर में पतरा-पतरा तार के पेड़, कभी-कभार देखाय देवे वला गाँव में गरीबी आउ गंदगी - ई सब कुछ तो ऊ बिलकुल नयँ हलइ, जे प्राचीन मगध के बारे, ओकर समृद्धि के बारे, घना अबादी वला शहर सब आउ धनाढ्य निवासी लोग के बारे बतावल जा हलइ । दखनी पहाड़ी हिस्सा छोड़के, समुच्चे पटना जिला में बड़गर-बड़गर मैदान हइ, कहीं-कहीं पेड़ के छोटगर-छोटगर समूह; वसन्तकाल में गाछ-वृक्ष आउ दग्ध मैदान के हालत दयनीय होवऽ हइ; मिट्टी मुख्य रूप से जलोढ़ (alluvial) हइ आउ गंगकिनारी प्रदेश [*189] विशेष रूप से उपजाऊ के रूप में मशहूर हइ । देर शाम के हमन्हीं बिहार शहर पहुँचलूँ । ई शहर में ऊ समय में एक्को यूरोपियन नयँ निवास करऽ हलइ, आउ एगो बंगाली हमरा एगो बहिर्भवन (outhouse) में शरण देलका, जे ऊ समय डिप्टी मजिस्ट्रेट के पद पर काम करऽ हला । हमरा देल गेल घर के एक कमरा के एगो स्तंभ सुन्दर बनइले हलइ, जे बालुकाश्म (sandstone) के तराश करके बनावल हलइ आउ जेकरा पर राजा स्कन्दगुप्त के अभिलेख हलइ - लेकिन खेद के बात हलइ कि ई स्तंभ उलटा तरफ करके जमीन में गड़ल हलइ, आउ अभिलेख के कुछ अंश रगड़इला से कुछ पता नयँ चलऽ हलइ । ई एक्के स्तंभ से ई अनुमान लगावल जा सकऽ हलइ, कि बिहार कउन मामला में धनी हइ । शहर के नाम (सं॰ विहार = मठ), जेकर वास्तविक अर्थ हकइ "मठ-शहर", ई निर्देशित करऽ हइ कि हियाँ कभी बौद्ध लोग हला, बौद्ध शहर हलइ, आउ वास्तव में मुसलमानी स्रोत सब से हमन्हीं के मालूम हइ, कि जब मोहम्मद बख्तियार ई शहर पर चढ़ाय करके कब्जा कइलकइ, त हियाँ ओकरा कइए गो सरमुंडन कइल ब्राह्मण (अर्थात्, बौद्ध भिक्खु), मंदिर, भरपूर मूर्ति, आउ मदरसा के व्यापक अर्थ में 'काफ़िर' (मुसलमान धर्म के नयँ माने वला) लोग के ढेर सारा किताब । ई सब विजेता के सहन नयँ होलइ - वाशिंदा लोग के कतल करके, ऊ मंदिर के तोड़-फोड़ देलकइ, कितब्बन के जरा देलकइ आउ मूर्ति सब के नष्ट कर देलकइ । लेकिन मुसलमान लोग मुस्लिम धर्म में विश्वास नयँ करे वलन के धर्म से संबंधित सब कुछ के बरबाद कर देवे के केतनो कोशिश कइलकइ, तइयो ओकरा से संबंधित स्मारक के ओकन्हीं पूरा तरह से नष्ट नयँ कर पइलकइ । ई तो मालूम नयँ, कि आझकल के बिहार प्राचीन काल में कउन प्रकार के शहर हलइ । मुसलमान काल से पहिले के पुरावशेष ई प्रमाणित करऽ हइ, कि हियाँ कभी एगो बड़गर आउ शानदार शहर हलइ । ऊ शायद पनचाने नद्दी के किनारे बसल हलइ, जे आझकल गरम वसन्त काल में बिलकुल सूख जा हइ, आउ मोटगर देवाल से घिरल हलइ, जे अभियो तक कहीं-कहीं अच्छा से सुरक्षित हकइ । प्राचीन बौद्ध मंदिर से बहुत-कुछ मुसलमान लोग सजावट लगी अपन मस्जिद आउ अपन मकबरा में लेके चल गेलइ । [*190] ऊ सब आउ दोसर-दोसर जगहवन पर बहुत अकसर स्तंभ, कॉर्निस आउ विकृत कइल बौद्ध मूर्ति पावल जा हइ । वर्तमान बिहार एगो शहर के रूप में कइसूँ न तो उल्लेखनीय हइ आउ न दिलचस्प । हियाँ के जनसंख्या कोय पैतालीस हजार हइ । नयका शहर पुरनका शहर के परिखा (moat) के पीछू में बनावल गेले ह आउ बहुत विशाल क्षेत्र में फैलल हइ । अलग-अलग मोहल्ला के बीच में मैदान आउ बाग फैलल हइ; तइयो रोड न तो चौड़गर हइ आउ न साफ-सुथरा । ऊ सब्भे में, बजार भी अपवाद नयँ हइ, पत्थल आउ अइँटा के जइसे-तइसे खड़ंजा कइल हइ । बजार के दुन्नु बगली पक्का घर के साथ-साथ अर्धध्वस्त झोपड़ी फैलल हइ । शहर के अधिकतर मस्जिद अर्धध्वस्त हइ ।
कहल जा हइ कि 1770 के अकाल आउ ओकर पहिले मराठा लोग के आक्रमण से ई शहर के वर्तमान स्थिति हो गेलइ । तब से ई सँभर नयँ पइलइ, हलाँकि अभियो तक एकर व्यापारिक महत्त्व हइ; बिहार से होके, जे नौगम्य (navigable) नदी पर नयँ बस्सल हइ आउ रेल मार्ग से दूर हइ, पटना, गया, हजारीबाग आउ मुंगेर के बीच बड़गो व्यापार होवऽ हइ । बरसात में आउ आंशिक रूप से शरत्काल में खाली बैले पर जाल जा सकऽ हइ; बैलवे पर समान के परिवहन कइल जा हइ । व्यापारी लोग के अपन माल में से कुछ के बिक्री के दौरान बिहार में रुक्के के आदत हइ। बिहार के एक चौथाई घर, अनाज के व्यापार करे वला आउ कागजी ऊतक (paper fabrics) के विक्रेता लोग के हइ । भाग्य के मारल ई शहर में, जे कइएक तुरी बरबाद हो चुकले ह आउ अभी मुख्य रास्ता से बिलकुल दूरवर्ती हइ, तइयो पुरावशेष के बल्कि छोटहीं सही, लेकिन महत्त्वपूर्ण संग्रह हइ । बिलकुल त्याग देवल गेल ई क्षेत्रीय संग्रहालय के इतिहास कुछ ई प्रकार हइ - कुछ साल पहिले हियाँ परी इंगलैंड के एगो डिप्टी मजिस्ट्रेट हलइ, जेकरा हलाँकि जादे जनकारी नयँ हलइ आउ जे प्रशिक्षित नयँ हलइ, लेकिन बड़गो उत्साही व्यक्ति हलइ। ऊ अपन खरचा से उत्खनन (खुदाई) करवइलकइ, आउ जे-जे चीज ऊ आसपास में नयँ पइलकइ, [*191] ऊ सब चीज घसीटके बिहार अपन घर में ले गेलइ । ई तरह कइएक साल गुजर गेलइ; उत्खनन से पुरावशेष के काफी कुछ संग्रह हो गेलइ, ओकर संग्रह के ई उत्साह में नयँ मालुम केतना हद तक ई शौकिया पुरातत्त्ववेत्ता के संग्रहालय विस्तार पइते हल; लेकिन अचानक ई पूरा उपयोगी क्रियाकलाप के बीच एगो अफवाह ई अंग्रेज अफसर के एगो गंभीर अपराध के दोष लगावे लगी शुरू कइलकइ; सबूत बहुत हलइ, आउ खुद के दोषी अनुभव करते, ई पुरातत्त्ववेत्ता भारत से भाग जाना बेहतर समझलकइ, नयँ मालुम काहाँ । लेकिन एकर पहिले ऊ अपन सब्भे पुरावशेष संग्रह के संरक्षण खातिर वर्तमान डिप्टी मजिस्ट्रेट के सौंप चुकले हल । जब सरकार के तरफ से ओकर प्रत्यर्पण करे के माँग शुरू होलइ, त ई अफसर पुरावशेष के प्रत्यर्पण करे से इनकार कर देलकइ, ई बात पर जोर देते कि ई पलायन कइल अभियुक्त (escaped accused) के निजी संपत्ति हइ, नयँ कि कोय दंडित अपराधी (convicted criminal) के । एकरे साथ ई मामला समाप्त हो गेलइ; एकरा चलते संग्रह के बहुत कुछ खो गेलइ । ई संग्रह खराब तरह से रक्खल हइ, आउ एकान्त स्थान में, आउ ई बात के चलते कि ई संग्रह एगो बदनाम व्यक्ति के नाम से संबंधित हइ, ई संभव हइ कि लमगर अवधि तक कोय अंग्रेज एकरा पर उचित ध्यान नयँ देतइ, जे बहुत अफसोस के बात हइ । ई संग्रह में शिलालेख, पत्थल या लकड़ी में कइल नक्काशी (bas-reliefs), स्तंभ, मूर्ति आदि हइ । बहुत कुछ अत्यंत रोचक हइ आउ सर्वोत्तम देख-रेख आउ आकस्मिक फोटो (snapshots) के प्रकाशन के योग्य हो सकऽ हइ । वर्तमान समय में सब समान के बाग में जामा कइल हइ आउ ओहे से परिवर्तनशील मौसम से प्रभावित होवऽ हइ - बारिश में भींग जा हइ, धूल-धूसरित हो जा हइ आउ धीरे-धीरे गरमी के मौसम में नष्ट हो जा हइ; कुछ साल आउ गुजरतइ, आउ निस्संदेह, संग्रह में से बहुत कुछ विज्ञान लगी हमेशे लगी खो जइतइ । अभिए अधिकांश वस्तु सब टुट्टल हइ, आउ मूर्ति के खंड, आउ अखंडित वस्तु सब के भी चोरा लेल जा हइ आउ गायब हो जा हइ । संग्रहालय के सब्भे वस्तु बिहार में संगृहीत हइ आउ बौद्ध धर्म के सबसे अंतिम युग के हइ, पौराणिकी (mythology) के तीव्रतम विकास के युग के हइ; लेकिन ई ओकर महत्त्व के कम नयँ करऽ हइ; ई सब मूर्ति के सहायता से आउ शिलालेख के अध्ययन के बाद आउ अधिक ई निश्चय करे के संभावना हइ [*192] कि बिहार में केतना अवधि तक बौद्ध धर्म टिक्कल रहलइ, आउ भारत में अपन अस्तित्व के अंतिम काल में कउन प्रकार के हलइ । कला के संबंध में पूरा संग्रह, पंजाब में पावल जाल ओइसने वस्तु सब से आउ लाहौर संग्रहालय में संगृहीत वस्तु सब से बहुत निम्नतर कोटि के हइ । भगोड़ा संग्राहक सब वस्तु के एगो विस्तृत सूचीपत्र (catalogue) छोड़ गेलइ, जे लेकिन अभी बिहार में नयँ हइ, आउ ई एगो महत्त्वपूर्ण क्षति हइ; जाहाँ तक वस्तु सब के विवरण के मामला हइ, त निस्संदेह एकरा फेर से तैयार कइल जा सकऽ हइ, लेकिन वर्तमान समय में हियाँ केकरो ई बात मालुम नयँ, कि कउन वस्तु काहाँ से लावल गेलइ, चाहे काहाँ परी कउन हालत में ऊ मिललइ । लेकिन ई संग्रहालय शहर के एगो अल्पकालिक आउ बिलकुल सांयोगिक सौन्दर्य हइ । कुछ साल आउ गुजरतइ, संग्राहक के कलंकित नाम भुला देवल जइतइ, संग्रह पर ही अधिक ध्यान देल जइतइ, आउ येन केन प्रकारेण ओकरा दोसर जगहा पर स्थानांतरित कइल जइतइ; ऊ समय तक, ई आशा कइल जा सकऽ हइ कि आखिरकार अइसन शानदार कारवाँ-सराय बनावल जइतइ, जेकर हमर समय में पैसा के बल पर बनावे लगी शुरुए कइल गेले हल, जे आंशिक रूप से जामा कइल चंदा से, आउ आंशिक रूप से  क्षेत्रीय जमींदार के दान से प्राप्त कइल गेले हल आउ ई तरह पुरावशेष के संग्रहालय के शहर से दूर हटा देलो पर बिहार लगी गौरव के बात होतइ । हाँ, बिहार से कभियो एकर परिवेश (surroundings) से वंचित नयँ कइल जा सकतइ, जे ओकर प्रदान कइल पुरातात्त्विक सामग्री के प्रचुरता के आधार पर आउ चित्रात्मक स्थिति (picturesque location) के चलते उल्लेखनीय हइ । ठीक शहर के पास में एगो छोटगर पहाड़ी हइ - एकरा पर अभी मस्जिद के खंडहर आउ मुसलमान के कुछ मजार हइ । हियाँ परी कुछ बौद्ध मूर्ति आउ छोटगर-छोटगर चैत्य प्राप्त होले ह, आउ एकर आधार पर एगो बहुत ठोस अनुमान लगावल गेलइ कि मस्जिद आउ मजार ऊ जगह लेलकइ, जाहाँ परी पहिले बौद्ध मठ चाहे मंदिर हलइ।
[*193] ई बात के बारे कि हियाँ परी कउन प्रकार के मंदिर हलइ, प्राचीन काल में ओकरा कउन नाम से पुकारल जा हलइ, पुरातत्त्ववेत्ता लोग के बीच अभियो तक विवादास्पद हइ । पहाड़ी के स्थिति पटना से दक्षिण-पूरब आउ बड़गाँव चाहे नालंदा से उत्तर-पूरब ई अनुमान के संभावना दे हइ कि ई पहाड़ी ठीक ओहे एकाकी (solitary) पहाड़ी हइ, जेकरा बारे फ़ाशियान (Faxian, परंपरागत चीनी लिपि में 法顯 , सरलीकृत रूप में 法显) पचमी शताब्दी में बात करऽ हइ । ई जगह पर, ओकर शब्द में, एगो मठ हलइ, जेकर कुछ अवशेष बिहार के संग्रहालय में संगृहीत हइ । मूर्तियन में से कुछ के, जे हियाँ परी मिलले हल, ब्रोडली द्वारा विवरण देल गेले ह आउ ऊ सब पर के समझ लेल जा चुकल शिलालेख (inscriptions) के अनुसार बहुत रोचक हइ । लेकिन ई सब शिलालेख काफी बाद के हइ ।
भारत में, देश के अंदर, रेलमार्ग आउ  राजमार्ग से दूर, साधारणतः अदमी के कन्हा द्वारा ढोवल जाल पालकी में लोग यात्रा करते जा हइ; घोड़ा सगरो नयँ मिल्लऽ हइ, आउ सीधे उपरे से पड़ रहल सूरज के किरण में हमेशे घोड़ा से कइएक घंटा तक यात्रा करना सुविधाजनक नयँ होवऽ हइ; लगभग दस बजे सूरज तेजी से जलावे लगऽ हइ, हियाँ तक कि दिसंबर आउ जनवरी में भी, मतलब शरद् ऋतु  के बीचोबीच में, आउ बाद में तो गरमी आउ जादे कष्टकारक होवऽ हइ ।
बिहार में भारवाहक (कुली) के मजदूरी बहुत जादे नयँ होवऽ हइ आउ स्थानीय प्राधिकारी द्वारा निश्चित कइल जा हइ ताकि यात्री आउ भारवाहक के बीच कोय वाद-विवाद नयँ होवे - लेकिन, भारवाहक एतना कम आग्रही होवऽ हइ कि नगण्य बख्शीश ओकन्हीं के पूरा संतुष्ट कर दे हइ, आउ एकरा खातिर अतिरिक्त सेवा करे लगी तैयार हो जा हइ । ओकन्हीं एक घंटा में तीन से चार मील तक पैदल चल्लऽ हइ; आउ जेतने जादे भारवाहक होवऽ हइ, ओतने जल्दी समान के ढुलाई होवऽ हइ । एक यात्री लगी थोड़े दूरी के यात्रा में चार चाहे छो अदमी पूरा तरह से काफी होवऽ हइ । मूलवासी लमगर दूरी के यात्रा पर भी अकसर कमहीं भारवाहक के साथ चल पड़ते जा हइ; एगो यूरोपियन के अइसन यात्रा करे लगी चाहलो पर कभी सफलता नयँ मिलतइ । बिहार में मजूर के मजूरी बहुत जादे नयँ होवऽ हइ - रोज के हिसाब से दू आना पावऽ हइ, अर्थात् ¼ शिलिंग । जमींदार के काम खातिर [*194] ओकरा एकर आधा मिल्लऽ हइ, चाहे ओकरा चावल देल जा हइ, जेकर कीमत आउ कम होवऽ हइ । पुरनका जमाना में मजदूरी आउ कमती हलइ । औरतियन के तो बहुत कम मिल्लऽ हइ ।
बिहार आउ गया के आसपास ई सब जगह के किसान के स्थिति निम्मन नयँ हइ; ओकरा पास अप्पन नाम से कोय जमीन नयँ होवऽ हइ आउ अधिकांश खाली छोटगर अवधि के किसान होवऽ हइ । अइसन अकसर होवऽ हइ कि ओकरा दस्तावेज के कोय सुरक्षा नयँ होवऽ हइ आउ कभी भी अपन पट्टा (lease) से वंचित कर देल जा सकऽ हइ ।
पट्टा लगी किसान या तो पैसा से चाहे उपज से भुगतान करऽ हइ; पहिलौका हालत में पट्टा के नकदी  कहल जा हइ, दोसरौका में भावली । पट्टा स्थायी  हो सकऽ हइ, चाहे अस्थायी, तीन से नो साल तक के । किराया पैसा के रूप में साल में दू तुरी भुगतान कइल जा हइ, फसल के कटनी के बाद; अगर किसान अपन किराया उपज के रूप में करऽ हइ, त ओकरा हरेक फसल के कटनी के बाद निकास देल जा सकऽ हइ । हलाँकि सैद्धांतिक रूप से किसान के आधा उपज मिल्ले के चाही, लेकिन वास्तव में ओकरा कभियो एक तिहाई से जादे नयँ मिल पावऽ हइ, कभी-कभी तो ओकरो से कम । साधारणतः फसल के कटनी के कुछ समय पहिले किसान के दलाल लोग भावी फासल के आकलन करऽ हइ, आउ अपन मालिक के साथ-साथ अपन खुद के लाभ के ध्यान में रखते, भावी फासल के यथासंभव जादे से जादे पैमाना पर नोट करे के प्रयास करऽ हइ; किसान ओकन्हीं के घूस देवे लगी मजबूर हो जा हइ ताकि सही आकलन नोट कइल जाय, चाहे ओकरा ऊ आधा हिस्सा से जादहीं भुगतान करे पड़ऽ हइ, जे ऊ खुद पावऽ हइ । बिहार के आसापास के जमीन के, सगरो नियन, एकर गुणवत्ता पर निर्भर करऽ हइ; सबसे निम्मन जमीन फी एकड़ 1 पौंड 4 शिलिंग (1 पौंड = 20 शिलिंग) से लेके ओतने माप लगी 4 पौंड 17 शिलिंग पर देल जा हइ; कुछ-कुछ जमीन बिहार के आसपास 6 पौंड 4 शिलिंग फी एकड़ के हिसाब से देल जा हइ, लेकिन 6 शिलिंग आउ 12 शिलिंग फी एकड़ वला भी जमीन हइ । किसान पट्टा पर 2 से 16 एकड़ तक ले हइ; औसत पट्टा साढ़े छो एकड़ से जादे नयँ होवऽ हइ आउ किसान द्वारा पट्टा पर लेल एतना जमीन काफी से अधिक समझल जा हइ । [*195] अंग्रेज अफसर लोग के हिसाब के अनुसार 1 पौंड मासिक आमदनी, ई सब जगह में, छो जन के एगो खेतिहर परिवार के गुजारा लगी पूरा तरह से सुरक्षित होवऽ हइ । पटना जिला में पट्टा चाहे बटाई पर काम करे वलन जोतदार के अलावे बहुत सारा भूमिहीन मजूर लोग हइ, आउ दिहाड़ी पर काम करे वलन मजूर भी हइ, जे दासत्व (slavery) के पहिले गरीबी तक पहुँचावल हइ । दक्षिण बिहार में बहुत अकसर अइसन होवऽ हइ कि कर्जदार खुद के चाहे अपन बाल-बुतरू के दासत्व में बेच दे हइ । ई दास (बंधुआ मजूर) लोग के, जेकर अंग्रेजी कानून द्वारा मान्यताप्राप्त नयँ हइ, अस्तित्व हइ आउ भिन्न-भिन्न नाम से जानल जा हइ - नफ्फर, लौंड़ी आउ गुलाम । स्वतंत्र मजूर के नगद के बदले उत्पन्न अनाज के रूप में (चाहे आउ कोय सुविधा के रूप में) मजूरी देल (paid in kind) जा हइ आउ निस्संदेह जादे नयँ, जइसन कि उपरे उल्लेख कइल जा चुकले ह । दास के कम नयँ मिल्लऽ हइ - ई बात के ध्यान में रखते कि ऊ विरले स्वतंत्रता खोजऽ हइ आउ अपन जिनगी एक्के जगह गुजार दे हइ, आउ जे रोजाना पाँच-छो पौंड (दू-तीन किलो) चावल में संतुष्ट रहऽ हइ ।
कमिया या हरवाहा के पूरा सीज़न खातिर रक्खल जा हइ । साधारणतः ओकन्हीं के 1 पौंड से लेके 2 पौंड तक अग्रिम देल जा हइ आउ अइसन कर्जदार होल हरवाहा ओतना समय तक काम करे लगी बाध्य होवऽ हइ, जब तक कि ऊ अपन कर्ज चुका नयँ दे हइ । मालिक ओकरा हल आउ बीज दे हइ आउ ओकरा से रोजाना जबरदस्ती लगभग नो घंटा काम करवावऽ हइ । बहुत अकसर अइसन होवऽ हइ कि कर्ज कभियो नयँ चुकावल जा हइ आउ ऊ पिता से विरासत के रूप में बेटवा पर चल जा हइ, जे ओहे गुलामी के वहन करऽ हइ । एक मामला में दास (गुलाम) के स्थिति स्वतंत्र दिहाड़ी पर काम करे वला मजूर से बेहतर होवऽ हइ - मालिक ओकरा खाली खाने नयँ, बल्कि कपड़ो दे हइ; एकरा अलावे ओकर बाल-बुतरू के शादी के खरचा उठावे के भारो खुद पर ले हइ ।


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