विजेट आपके ब्लॉग पर

Friday, March 02, 2018

इवान मिनायेव के बिहार यात्राः 4.1 बुद्धगया (बोधगया) में


4.

गया से पाँच मील दूर, फल्गू नदी के पश्चिमी किनारा पर, बुद्धगया अवस्थित हइ - स्थान प्राचीन हइ आउ अपन ऐतिहासिक संस्मरण के आधार पर विलक्षण हइ । सब्भे बौद्ध ई स्थान के जानऽ हइ आउ आदर करऽ हइ - कोय भी संन्यासी श्रीलंका में कहतइ कि हियाँ परी तेजस्वी वृक्ष बो (ficus religiosa)हइ, कि हियाँ परी पृथ्वी के नाभि हइ, हियाँ बुद्ध के पवित्र ज्ञान प्राप्त होले हल आउ हियाँ ऊ फेर से प्रकट होथिन । "दू हजार पाँच सो बरस के पश्चात्", हमरा कोलम्बो में एगो संन्यासी बोललइ - "बुद्ध के समुच्चे शक्ति मगध में वृक्ष बो के पास एकत्र होतइ; हुआँ एकत्र होतइ आउ पैगंबर शिक्षक के रूप धारण कर लेतइ । शिक्षक देवता आउ मानव लोग के धर्मोपदेश करथिन !" एकर बाद की होतइ - संन्यासी के [*225] या तो मालुम नयँ हलइ, चाहे ऊ घोषणा करे लगी नयँ चाहऽ हलइ । बौद्ध लोग के धारणा के अनुसार, विशेष करके ऊ लोग, जे बिहार कभी नयँ गेले ह, बुद्ध-गया - एक प्रकार के धरती पर के स्वर्ग हइ; हियाँ पर के नदियन बिल्लौर नियन साफ बहऽ हइ, आउ हरियरी आउ फूल असाधारण होवऽ हइ; हियाँ परी प्रकृति के शाश्वत उत्सव रहऽ हइ आउ बुद्ध के सिंहासन अभी तक अस्तित्व में हइ । लेकिन, अफसोस! वास्तव में, "ज्ञान के वृक्ष" के आसपास सूनापन हइ, आउ ई अपन दीर्घकाल के जीवन के अंतिम दिन जी रहले ह । बौद्ध लोग के स्थान में अधिकांश बौद्ध धर्म पतनोन्मुख आउ उपेक्षित स्थिति में हइ; हियाँ परी दोसरे धर्म घोंसला बना लेलके ह - दोसरहीं देवता सब हियाँ विख्यात होल हथिन, आउ वस्तुतः उत्तर चाहे दक्षिण से कभी-कभार भी आवे वला बौद्ध ई बात के स्मरण करऽ हइ कि कइसन त्रासदायक पल, किंवदन्ती के अनुसार, ई वृक्ष के निच्चे महान शिक्षक अनुभव कइलथिन हल । हियाँ ऊ राक्षस के पराजित कइलथिन हल, कामवासना आउ वेदना के प्रारंभ, आउ मानूँ ई आंतरिक संघर्ष से टुट्टल, शंका में पड़ गेलथिन आउ खुद से बोललथिन - "अभी नियम-कानून के घोषणा करे के उचित समय नयँ हइ, जे मोसकिल से समझ में अइतइ । लोग, पाप आउ कामवासना से भरल, कहते जइतइ - ई नियम-कानून तो बुद्धिसंगत नयँ हइ। कामवासना आउ अज्ञान के अंधकार से वशीभूत लोग नियम-कानून नयँ समझ पइतइ" ... आउ उनका सामने देव सब के देव, ब्रह्मा प्रकट होलथिन, आउ कहलथिन ... "दुख में डुब्बल लोग के तरफ देख, जे जन्म आउ बुढ़ापा के अधीन हइ ! उठ, नायक, विजेता ! संसार में आ, कारवाँ के नेता ! ..."
किंवदन्ती के अनुसार, हियाँ छट्ठी शताब्दी ई॰ पू॰ में पीड़ित मानवता के बचाव खातिर विश्व उपदेश के विचार परिपक्व होले हल । हियाँ से प्रस्थान करते समय, गया के रस्ता में, नयका गुरु खुद से बोललथिन - "हम सब कुछ त्याग देलिअइ आउ हम स्वतंत्र हिअइ; हमरा में इच्छा लुप्त हो चुकले ह । हमरा खुद ज्ञान प्राप्त हो चुकले ह, हमरा केकर अनुयायी बन्ने के हइ ? हमरा लगी कोय गुरु नयँ हथिन; हमरा नियन कोय नयँ हइ; न तो लोग के संसार में, न तो देव लोग के बीच में हमरा नियन कोय हइ ! ... हम काशी (अर्थात्, बनारस) जा रहलिए ह, कानून के चक्र घुमावे लगी, ढोल पर चोट करबइ, अज्ञानता के अंधकार से अंधा होल संसार के उद्धार के घोषणा करबइ !"
[*226] दो हजार साल आउ कुछ शताब्दी से बुद्ध-गया, ई "पृथ्वी के आनंदमय कोना", जइसन कि बौद्ध लोग एकरा गौरवान्वित करते जा हथिन, अस्तित्व में हइ, आउ एतना लमगर अवधि तक एकर इतिहास से बहुत कम मालुम हइ - कोय संदेह नयँ, कि कइएक रूप में ई स्पष्ट होतइ, जब स्थल पर के वर्तमान पुरावशेष एकत्र कइल जइतइ, एकर वर्णन कइल जइतइ आउ विश्वसनीय फोटोग्राफ में प्रकाशित होतइ; तब शिलालेख से मिलान करके, स्तंभ, भिति-स्तंभ (pilasters) आउ नक्काशी (bas-reliefs) पर के सजावट के परीक्षण कइला पर स्थल के आंतरिक इतिहास के पुनरुद्धार करना आउ महत्त्वपूर्ण स्मारक सब के आधार पर लिखित स्रोत के आंशिक सूचना के संपूरक बनाना (to supplement) संभव होतइ, हलाँकि ई बिलकुल पूरा नयँ होतइ । अब तो कुछ निश्चयात्मक रूप से ई मानल जा सकऽ हइ कि पवित्र स्थल के अइसने मानल जाय लगले हल आउ बहुत पूर्व में हीं निर्माण चालू हो गेले हल, अर्थात्, लगभग ई॰पू॰ तृतीय या द्वितीय शताब्दी में ।  बौद्ध कथा ई बात के पुष्टि करऽ हइ कि सम्राट् अशोक ई स्थल के सुसज्जित आउ निर्माण करे वला पहिला हलथिन; बो वृक्ष के आसपास बालुकाश्म के दू गो स्तंभ के आकस्मिक खोज ई बात के पुष्टि करऽ हइ कि वर्तमान मामले में स्थानीय इतिहास प्राचीनता के अतिशयोक्ति में नयँ गेले हल । पवित्र वृक्ष के पास पावल गेल स्तंभ पर छोटगर-छोटगर शिलालेख सुरक्षित रह पइले ह - एगो पर, कोय तो "आदरणीय कौण्डिन्य" अपन नाम उत्कीर्ण करवइलथिन हल, दोसरको पर अइसीं हलइ - श्रीलंका के कोय; दुन्नु स्तंभ उपहार के रूप में लावल गेले हल । ई निर्णय करना मोसकिल हइ कि ई स्तंभ अभी के चारो तरफ कोय अविद्यमान स्तंभावली के भाग के रूप में सम्मिलित हलइ, कि ठीक एहे वृक्ष के आसपास ई स्तंभ के खड़ी कइल गेले हल; दुन्नु के समान संभावना हइ; ई स्थल पर कइएक स्तूप हलइ, आउ तारानाथ से ज्ञात हइ कि कभी ई वृक्ष के चारो दने स्तंभ आउ एकाश्म (monoliths, एक्के पत्थल के बन्नल बड़गो स्तंभ) हलइ । लेकिन एकरा में संदेह नयँ हइ कि ई सब स्तंभ के कइसनो मंदिर के आसपास ऊ जमाना में खड़ी कइल गेले हल, जब भारत में प्राचीनतम वर्णमाला पढ़ल जा हलइ आउ एकरा में लिक्खल जा हलइ, अर्थात्, तृतीय अथवा द्वितीय ई॰पू॰ में । लेकिन ई प्राचीन अवधि से, यदि सब्भे नयँ तो  अधिकांश [*227] स्मारक लुप्त हो गेले ह । हियाँ, बुद्ध-गया में, ऊ जंगली छायादार इलाका नयँ हइ, जेकरा बारे फ़ाशियान बोलऽ हइ, आउ जाहिर हइ, कि ई प्रत्याशा करना असंभव हइ कि हियाँ परी ऊ सब भव्य बहुसंख्यक भवन चाहे ऊ सब बाग के देखभो, जेकरा बारे श्वानचांग चित्रण कइलके हल । दुश्मन, विधर्मी (heretics) आउ जंगली हाथी सब भी एक्को तुरी जइसे ठीक ई वृक्ष के, आउ ओइसीं एकर चारो दने के मठ आउ मंदिर के नयँ नष्ट कइलकइ । लेकिन बुद्ध-गया ओकर बाद हरेक तुरी पुनर्जीवित हो उठलइ, आउ ई ज्ञात हइ कि गत पुनरुद्धार कइल मंदिर चौदहमी शताब्दी के हइ ।
बुद्ध-गया कउनो तरफ से काहे नयँ जाहो, ई दूर से दृष्टिगोचर नयँ होवऽ हइ - विख्यात मंदिर गंधोल (Gandhola, "महाबोधि" के अर्थ में प्रयुक्त तिब्बती शब्द) दृष्टिगोचर तभिए होवऽ हइ, जब एकरा से कुच्छे पग दूर रहबहो । गंधोल एगो चतुष्फलकीय पिरामिड के रूप में नीला-लाल अइँटा से निर्मित उँचगर मीनार (160 फुट) हइ; ई एगो लमगर-चौड़गर अहाता में हलइ आउ जेकरा में पूरब दने कइएक आच्छादित उपभवन हलइ, जेकरा में से अब खाली स्तंभ सुरक्षित रह गेले ह । मंदिर के आसपास एतना कचरा जामा हो गेलइ कि एकर प्रवेशद्वार के दहलीज आसपास के जगह से बहुत जादे निच्चे हइ । मंदिर के पूर्व के प्रांगण के पूरब तरफ के फाटक से अंदर प्रवेश करते समय, प्रवेश करे के ठीक पहिले "बुद्ध के चरण-चिह्न" के प्रतिमा भेंटतो । प्रतिमा के साथ ई पत्थल एगो आच्छादित मंडप के अंदर हइ; ग्रैनाइट के स्तंभ भवन के अपेक्षा बहुत प्राचीन हइ, आउ चूँकि डिजाइन में ई सब एक्के नयँ हइ, त शायद ई सब के विभिन्न जगह से लाके संगृहीत कइल गेले होत । फाटक के बामा तरफ तीन गो छोटगर देवालय हइ - एगो के पाँच पांडव के मंदिर कहल जा हइ; पाँच गो बुद्ध के मूर्ति के पाँच पांडव-वीर चित्रित करऽ हइ - आउ दू गो दोसरकन मंदिर के महादेव के समर्पित कइल हइ, लेकिन जेहो बौद्ध अलंकरण से वंचित नयँ हइ; अइसने महादेव के मंदिर फाटक के दहिना पटी हइ । गंधोल हलाँकि ब्राह्मण के प्रबंधन में अभी हइ, लेकिन एकर निरीक्षण स्वतंत्रतापूर्वक कइल जा सकऽ हइ आउ सगरो जाल जा सकऽ हइ । मंदिर के अंदरूनी हिस्सा विशाल नयँ हइ, एकर लंबाई [*228] 20 फुट 4 इंच आउ चौड़ाई 13 फुट हइ । पश्चिमी भाग में कार बसाल्ट के एगो चौड़गर पीठिका (pedestal ) हइ - ई पश्चिमी देवाल के पूरा छेंकले हइ आउ एकर चौड़ाई 5 फुट 9 इंच आउ ऊँचाई 4 फुट हइ । हियाँ परी, शायद, ऊ विख्यात महाबोधि मूर्ति हलइ, जेकरा बारे तारानाथ एतना जादे वर्णन करऽ हइ - एकर बदले अभी कुछ बुद्ध प्रतिमा के बीच लिंगम् (शिवलिंग) हइ आउ विष्णु भगवान के मूर्ति । फर्श ग्रैनाइट से पाटल हइ आउ बहुत भद्दा नक्काशी से आच्छादित हइ; अर्पण सहित भगवान के पूजक लोग के चित्रण कइल हइ । भीतरी छत (ceiling) कइएक छोटगर भाग में विभाजित हइ, कहीं-कहीं पर बुद्ध के प्रतिमा चित्रित कइल हइ। मंदिर के देवाल के बाहरी भाग में ताखा बन्नल हइ; अभी ऊ सब खाली हइ, लेकिन कुछ में अभियो गोड़ आड़ा-तिरछा कइल मूर्ति हइ - पूरा संभावना हइ, ई ऊ सब स्वर्ण मंडित (gilded) बुद्ध मूर्ति के अवशेष हइ, जेकरा से प्राचीन काल में सुसज्जित आउ विख्यात हलइ । हम उपरौका मंजिल में घुस नयँ पइलिअइ । निचला मंजिल के ऊँचाई 22 फुट 1 इंच हइ ।
मंदिर से पश्चिम दने के बो वृक्ष तरफ सीढ़ी चढ़भो; दुन्नु तरफ से मंदिर में प्रवेश खातिर एगो छोटगर सीढ़ी हइ, आउ मंदिर में बिन प्रवेश कइले वृक्ष तरफ चढ़ल जा सकऽ हइ । ऊ चबूतरा, जेकरा पर बो वृक्ष बढ़ऽ हइ, मंदिर के उपरौका मंजिल के बराबर तल पर हइ, अर्थात्, 25½ फुट के ऊँचाई पर, निचला मंजिल के फर्श पर से नापला पर, चाहे 18 फुट के ऊँचाई पर, जब मंदिर के आसपास जामा होल कचरा के तल से नापल जाय । चबूतरा के निचला हिस्सा से चक्कर काटला पर स्पष्ट रूप से छो तल्ला पछानल जा सकऽ हइ - चबूतरा के धीरे-धीरे खड़ी कइल गेलइ; जइसे-जइसे वृक्ष के निचला शाखा मुरझइलइ, सबसे उपरे वला एगो मुख्य शाखा के बनइले रक्खे लगी जरूरी हो गेलइ, आउ परिणामस्वरूप, एक तल्ला पर दोसरा तल्ला उपरे खड़ी कइल गेलइ । ऊ चबूतरा के, जेकरा पर अभी ई वृक्ष बढ़ल हइ, चौड़ाई 29 फुट हइ; वृक्ष के चारो दने एगो कगार (शिलाफलक) सहित गोल पिरामिड बन्नल हइ; लेकिन ई कगार से वृक्ष के चारो तरफ परिक्रमा कइल जा सकऽ हइ, अर्थात्, ओकर प्रार्थना कइल जा सकऽ हइ, [*229] जे बौद्ध आउ ब्राह्मण द्वारा समान तौर पर कइल जा हइ। ब्राह्मण लोग ई दौरान अन्य बात के साथ-साथ निम्नलिखित पाठ करते जा हथिन - "वृक्षराज ! भगवान नारायण तोरा में हमेशे रहऽ हथुन ! ओहे से वृक्ष सब के बीच तूँ हमेशे पवित्र हकऽ ! तूँ धनी हकऽ, आउ दुस्स्वप्न के दूर करऽ हो !" वर्तमान वृक्ष अभी बहुत दयनीय स्थिति में हइ; अर्द्धशुष्क, कुम्हलाल शाखा कइसूँ बगल में बढ़ऽ हइ, लेकिन उपरे दने नयँ ।
दोसर छोटगर-छोटगर मंदिर सब के, जेकरा हम देखलिअइ, हम बेगर कुछ कहले आगू बढ़ऽ हिअइ आउ हियाँ सगरो बिखरल - प्रांगण में, घरवन के देवलियन पर, नयका गोसाईं मठ के मंदिर सब में, ऊ सब के समाधि पर - पुरावशेष के वर्णन भी नयँ करबइ । ई सब के वर्णन, बिन ड्राइंग के, बिलकुल अनुपयोगी होतइ; खाली एतने कहबइ कि उच्च वैज्ञानिक महत्त्व के कइएक वस्तु, जे धर्म के इतिहास, भारतीय वास्तु, कला आउ रोजमर्रा के जिनगी लगी महत्त्वपूर्ण हइ, बिन कोय देखरेख के एन्ने-ओन्ने बिखरल हइ, आउ न तो समय आउ न लोग द्वारा बचावल नष्ट हो रहले ह । बिहार के पुरावशेष के निरीक्षण मस्तिष्क पर एगो विचित्र छाप छोड़ऽ हइ - ई सब महानता से आश्चर्यचकित नयँ करऽ हइ आउ खाली विरले हालत में लालित्य में बढ़-चढ़के हइ, यद्यपि बुद्ध-गया में विभिन्न प्रकार के जानवर, हाथी आउ वानर, वृक्ष आउ मानवीय आकृति के एक से अधिक कुशल मूर्तिकलाविषयक प्रतिमा हइ; अतीत के ई सब अवशेष ओतना अधिक प्राचीन नयँ हइ, जेतना कि मिस्र के पिरामिड चाहे आख़िमेनिद सब (Achaemenids) के भवन हइ; ई सब ओइसन नयँ बिखरल हइ, जइसन कि श्रीलंका में, शानदार प्रकृति के बीच, अत्यंत अद्भुत उष्णकटिबंधी हरियाली के छाया में; आउ एकर बावजूद, विशेष महत्त्व के अतिरिक्त, जे प्राचीनतम आउ सबसे प्रसारित धर्म के बीच अन्यतम के विकास के सुराग पावे के इच्छुक खातिर ऊ सब के हइ, बिहार के पुरावशेष ठीक अपन वर्तमान परिस्थिति के बीच, नयका मंदिर आउ मठ सब में रोचक हइ । ई सब मूर्ति के तरफ दृष्टि डालहो, जेकर अभियो तक पूजा कइल जा हइ, [*230] लेकिन दोसर नाम से; आझकल के उपासना तरफ, ओइसने जइसन कि ऊ, जे हजार साल पहिले आउ ओकरो पहिले हलइ; तीर्थयात्री के भीड़ तरफ, जे सगरो से एकत्र होवऽ हइ, नयका नाम के अंतर्गत पुरनका मूर्ति सब के पूजा खातिर; तब खुद से प्रश्न करभो - भारत में विकास कउची में निहित हलइ ?

No comments: