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Monday, August 01, 2016

रूसी उपन्यास "आझकल के हीरो" ; भाग-1 ; 3. पिचोरिन के डायरी ; 0. प्रस्तावना



रूसी उपन्यास – “आझकल के हीरो”
भाग-1
3. पिचोरिन के डायरी
प्रस्तावना

हाल में हमरा मालूम होलइ, कि पिचोरिन फारस से वापिस आते बखत मर गेलइ । ई समाचार से हमरा बहुत खुशी होलइ - ई समाचार हमरा ई सब नोट के प्रकाशित करे के अधिकार देलकइ, आउ दोसर के रचना पर हम अपन नाम देवे खातिर ई घटना के फयदा उठइलिअइ । भगमान करे, पाठक लोग हमरा अइसन निर्दोष जालसाजी लगी दंडित नयँ करते जइता !

अब हमरा कुछ कारण बतावे के चाही, जे हमरा एगो अइसन अदमी के प्रेमप्रकरण के रहस्य के लोग के सामने उजागर करे लगी प्रेरित कइलकइ, जेकरा हम कभी नयँ जानऽ हलिअइ । अगर हम ओकर दोस्त होतिए हल, त ई बात के ठीक समझल जा सकऽ हलइ - सच्चा दोस्त के विश्वासघाती धृष्टता हरेक कोय समझ सकऽ हइ; लेकिन हम ओकरा अपन जिनगी में खाली एक्के तुरी राजमार्ग (highway) पर देखलिए हल, परिणामस्वरूप, ओकरा प्रति ऊ अनिर्वचनीय (inexplicable) घृणा नयँ कर सकऽ हिअइ, जे मित्रता के आड़ में, ओकर सिर पे ताना, परामर्श, व्यंग्य आउ तरस के बौछार करे लगी, प्रिय पदार्थ (beloved object) के खाली मौत चाहे विपत्ति के प्रतीक्षा करऽ हइ । ई सब नोट के दोबारा पढ़ते बखत हम ओकर निष्कपटता से आश्वस्त हो गेलिअइ, जे एतना निर्ममता से अपन खुद के दुर्बलता आउ दोष के उजागर कइलकइ । एगो अदमी के आत्मा के इतिहास, चाहे ई सबसे क्षुद्र आत्मा के काहे नयँ होवइ, एगो राष्ट्र के इतिहास से मोसकिल से कम रोचक आउ कम उपयोगी होवऽ हइ, विशेष करके जब ऊ खुद के ऊपर एगो परिपक्व मस्तिष्क के प्रेक्षण के परिणाम रहइ आउ जब एकरा सहानुभूति चाहे आश्चर्य उत्पन्न करे के बिन कोय अहंकारी कामना से लिक्खल होवइ । रूसो के पाप स्वीकारोक्ति [1] में भी एगो दोष (defect) हइ, कि ऊ एकरा अपन मित्र सब के पढ़के सुनइलका हल ।

ई तरह, जे डायरी हमरा संयोग से मिल गेलइ, खाली एकर उपयोग के इच्छा हमरा एकर कुछ अंश प्रकाशित करे लगी बाध्य कइलकइ । हलाँकि हम सब्भे व्यक्तिगत नाम बदल देलिए ह, लेकिन ऊ लोग, जेकर वर्णन एकरा में हइ, संभवतः खुद के पछान जइते जइतइ, आउ शायद, ओकन्हीं ऊ सब हरक्कत के स्पष्टीकरण पा लेते जइतइ, जेकरा में अभी तक ओकन्हीं ऊ व्यक्ति के दोषी ठहरइते रहलइ, जेकरा अब से आगू ई संसार से कुच्छो लेना-देना नयँ हइ - हमन्हीं लगभग हमेशे माफ कर देते जा हिअइ ओकरा, जेकरा हमन्हीं समझऽ हिअइ ।

ई पुस्तक में हम खाली ओहे अंश शामिल कइलिए ह, जे पिचोरिन के काकेशिया में ठहराव से संबंधित हइ; हमर हाथ में एगो मोटगर नोट भी हकइ, जेकरा में ऊ अपन पूरा जिनगी के बारे बतावऽ हइ । कभी एहो संसार के सामने फैसला खातिर प्रकट होतइ; लेकिन अभी कइएक महत्त्वपूर्ण कारण से ई जिम्मेवारी के खुद पर लेवे के साहस नयँ कर सकऽ हिअइ ।

शायद, कुछ पाठक पिचोरिन के चरित्र के बारे हमर विचार जाने लगी चाहता । हमर उत्तर हइ - ई पुस्तक के शीर्षक । "लेकिन ई तो कटु व्यंग्य हइ !"  उनकन्हीं कहते जइता । हमरा मलूम नयँ ।


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